शनिवार, 21 अप्रैल 2012

तरकश, 23 अप्रैल




नया चेहरा

चुनाव भले ही अगले साल हो मगर सत्ताधारी पार्टी भाजपा अभी से जीतने वाले उम्मीदवारों को टटोलने में जुट गई है। भीतर की खबर है, विधानसभावार पांच-पांचों नामों के पेनल बनाए जा रहे हैं। बड़े ही गोपनीय तौर पर इस अभियान को अंजाम दिया जा रहा है। दरअसल, पार्टी के रणनीतिकारों के सामने तीसरी बार सत्ता में आने के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, एंटी इंकम्बेंसी को कम करना। और भाजपा नेताओं को एक ही रास्ता दिख रहा है, अधिक-से-अधिक नए उम्मीदवारों को उतारें। नए प्रत्याशियों से लोगों को गिला-शिकवा नहीं रहता। संगठन के एक प्रभावशाली नेता की मानें तो 50 में से 20 से 25 विधायकों की टिकिट कट सकती है। इनमें दो-तीन मंत्री भी होंगे। मंत्री कितने भी वरिष्ठ हो, पार्टी को इससे कोई मतलब नहीं। पिछली बार भी भाजपा के रिपीट होने का बड़ी वजह एक यह भी रही कि पार्टी ने दर्जन भर सीटिंग विधायकों की टिकिट काट नए लोगों पर दांव लगाया। राजनीतिक प्रेक्षक भी मानते हैं, चुनावी तैयारी में जो दल आगे रहेगा, पलड़ा उसका भारी रहेगा। सो, कांग्रेस भी पीछे नहीं है। प्रत्याशियों का गुणा-भाग वहां भी शुरू हो गया है। असुरक्षित समझ रहे कांग्रेस के कई विधायक सीट बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें धरमजीत सिंह का भी नाम है। पिछले बार ही, पुन्नुराम मोहले को लोरमी से टिकिट मिल गई होती तो स्थिति कुछ और होती।   

झटका

रमन सरकार को इस खबर से झटका लग सकता है कि जिस रिटायर नौकरशाह पर इनायत करते हुए लाल बत्ती से नवाजा, वे कांग्रेस की टिकिट पर अगले विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। बात मुख्य सूचना आयुक्त सरजियस मिंज की हो रही है। अगले साल राजनीति में कदम रखने के बाद वे कुनकुरी से अपना भाग्य आजमाएंगे। बताते हैं, इसके लिए कांग्रेस नेताओं से हरी झंडी मिल गई है। और कहते हैं, उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी है। उनकी लाल बत्ती गाड़ी अक्सर कुनकुरी इलाके में घूूमती देखी जा रही है। सूत्रों का ये भी दावा है, अगले साल वे किसी भी समय सूचना आयोग को बाय कह सकते हैं। उधर, आईजी आरसी पटेल का भी कांग्रेस टिकिट से अगला विधानसभा चुनाव लड़ना तय माना जा रहा। चुनाव से पहले उनके भी नौकरी से इस्तीफा देने की चर्चा है। 

कई सवाल

आईएएस अधिकारी आलोक अवस्थी को पाठ्य पुस्तक निगम का एमडी बनाने का मामला किसी को हजम नहीं हो रहा है। सुभाष मिश्रा निगम में महाप्रबंधक हैं और राजधानी में यह बात किसी से छिपी नहीं है, दोनों के बीच किस तरह के मधुर रिश्ते हैं। दोनों जनसंपर्क सेवा के अधिकारी हैं और एलाएड सर्विसेज से जो आईएएस अवार्ड होता है, उसके प्रबल दावेदार थे। मगर आलोक बाजी मार ले गए। सरकार भी इससे अनभिज्ञ नहीं है। और आमतौर पर इस सिचुयेशन में पोस्टिंग होती नहीं। मगर हो गई तो चर्चा स्वाभाविक है......मिश्रा को निबटाने के लिए आलोक को भेजा गया है या आलोक को.....। यही नहीं, आलोक की जगह जे मिंज को डायरेक्टर पंचायत का प्रभार दिया गया है। मिंज के पास पहले से माध्यमिक शिक्षा मंडल है। सवाल इस पर भी उठ रहे हैं। पंचायत जैसे विभाग के लिए पूर्णकालिक डायरेक्टर क्यों नहीं?  

सावधान

ग्राम सुराज में बदले की भावना से सरकारी मुलाजिमों के खिलाफ शिकायत के प्रकरण भी आ रहे हैं। कोंडागांव जिले में सीएम के सामने ही एक वाकया हुआ। तीन-चार लोगों ने सीएम से पटवारी के खिलाफ पैसा मांगने की शिकायत कर डाली। पटवारी लगा हाथ-पैर जोड़ने.....साब मुझे यहां आए तीन-चार महीने ही हुए हैं। सीएम को खटका......इतने कम समय में शिकायतें होती नहीं। मगर उन्होंने कलेक्टर को पटवारी का ट्रांसफर करने को कह दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य ग्रामीणों से बात की तो पता चला, शिकायत करने वाले बाहरी लोग हैं और गलत ढंग से आदिवासियों की जमीन खरीद कर अपने नाम चढ़वाना चाहते हैं। नाराज होने की बारी अब डाक्टर साब की थी। उन्होंने नए पटवारी से कहा, उन्हें अब छोड़ना नहीं। जमकर रगड़ना। 

सैर-सपाटा

ग्राम सुराज में पूरी सरकार पसीना बहा रही है, सत्ताधारी पार्टी के विधायक इलाके का दौरा कर रहे हैं। मगर सीएसआईडीसी के चेयरमैन बद्रीधर दीवान सुरम्य वादियों का लुफ्त उठाने जम्मू-कश्मीर निकल लिए हैं। नोटशीट में यह लिख कर दौरे का सरकारीकरण किया गया है, माननीय कश्मीर के औद्योगिकीकरण का अध्ययन करेंगे और लौट कर अपने सूबे में उसे लागू करेंगे। अब कश्मीर में कौन से उद्योग है? वहां तो एक ही उद्योग है, आतंकवाद का। खैर, राजनेताओं के दौरे ऐसे ही बनाए जाते हैं। हवाई जहाज से आने-जाने, तफरी करने का पूरा खर्च सरकारी खाते से। वैसे भी, दीवानजी बुजुर्ग हो गए हैं। उन्हें यह भी मालूम है, अगली बार चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा नहीं। फिर बेवकूफ थोड़े ही हैं। ग्राम सुराज में पसीना  क्यों बहाएं। 

कटघरे में

माइनिंग कारपोरेशन के एमडी राजेश गोवर्द्धन जेपी सीमेंट को नियमों के खिलाफ लाभ पहुंचाने के चलते कटघरे में आ गए हैं। सीएसआईडीसी के एमडी रहने के दौरान उन्होंने सीमेंट कंपनी को सरकारी रेट से सस्ती दर पर जमीन दे डाली। सीएजी ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि इससे सरकार को पांच करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। सीएसआईडीसी ने साढ़े तीन लाख रुपए हेक्टेयर की जमीन को 1.80 लाख रुपए हेक्टेयर के हिसाब से दे दिया। शिकायत होने पर कारपोरेशन ने कहा, कंपनी से रिकवरी की जाएगी। मगर चार साल बाद भी एक पैसा नहीं मिला। आरोप है, इसमें बड़ा खेल हुआ।

अंत में दो सवाल आपसे

1 दुर्ग कलेक्टर रीना बाबा कंगाले को हटाने के लिए कुछ आईएएस अधिकारी लाबिंग क्यों कर रहे है?
2 रीना कंगाले की दुबई जाने की शिकायत के पीछे मंत्रालय की किस महिला आईएएस का हाथ है?



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