शनिवार, 16 मार्च 2013

तरकश, 17 मार्च

जीडीपी पर सवाल

आईपीएस अफसरों ने अपनी संपत्ति की घोषणा करके रमन सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कुछ ने शून्य संपत्ति बताई है। तो कई ने 20 लाख से भी कम। याने शिक्षाकर्मियों से भी बदतर हालत है अपने आईपीएस की। 80 फीसदी से अधिक शिक्षाकर्मियों के पास मकान और जमीन मिलाकर 25 लाख से अधिक की संपत्ति है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के जीडीपी पर सवाल उठना लाजिमी है। जीडीपी है, सबसे अधिक। 11 फीसद से भी ज्यादा। और आईपीएस मुफलिसी में।

डबल विकेट

ट्रांसपोर्ट विभाग में पिछले हफ्ते डबल विकेट ऐसे ही नहीं गिरा। मामला ब्लंडर था। परिवहन मंत्री राजेश मूणत ने नोट बरसने वाले बैरियर के लिए 150 लोगों का नाम ओके किया था, उसमें से रातोंरात 43 नाम कटकर दूसरे कर्मियों के नाम जोड़ दिए गए। घंटे भर में दो खोखा का खेल हो गया। मूणत के पास शिकायत हुई, तो मामले का खुलासा हुआ। बताते हैं, मंत्री ने सीएम से शिकायत की। और डाक्टर साब ने देर नहीं लगाई। बड़े मियां निबटे ही, छोटे भी नप गए। रीवा निवासी छोटे मियां का नपना सरप्राइजिंग रहा। सत्ता में सीधी पैठ के चलते उनकी तूती बोलती थी। मगर सरकार ने उन्हें बता दिया, हर चीज की सीमा होती है।

नो कमेंट्स

सिस्टम की कमजोरी की वजह से अच्छी योजनाएं फाइलों में किस तरह दफन हो जाती है, इसका एक केस आपको बताते हैं। पिछले साल जनवरी में एसीएस स्कूल शिक्षा रहने के दौरान एक सीनियर आईएएस अफसर ने 10वीं, 11वीं और 12वीं में 70 फीसदी नम्बर लाने वाले छात्रों को प्रति महीने दो सौ रुपए स्कालरशिप देने की योजना बनाई थी। इससे राज्य के करीब सात से आठ हजार छात्र लाभान्वित होते। इसके साथ ही ब्लाक लेवल पर साइंस की कोचिंग की भी योजना थी। ताकि, स्कूलों में साइंस टीचर ना होने से पढ़ाई की भरपाई की जा सकें। इतनी अच्छी योजना थी कि उसे भला मंजूरी कैसे नहीं मिलती। सरकार ने पिछले साल के बजट में पांच करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया था। इस बीच आईएएस पदोन्नत होकर शीर्ष पर पहुंच गए। और उनकी योजना गर्त में। 13 महीने निकल गए, फाइल का कोई अता-पता नहीं है। आलम यह है कि फाइल है या गुम गई, यह भी कोई बताने के लिए तैयार नहीं है। स्तंभकार द्वारा क्वेरी करने पर स्कालरशीप वाली फाइल पिछले ह्फ्ते मूव हुई है। बड़े अफसरों की योजनाओं का ये हाल है, तो बाकी का आप अंदाज लगा लीजिए।

मनरेगा और तेल

मंगलवार को विधानसभा के मुख्यमंत्री कक्ष में हुई मनरेगा की बैठक में कुछ दिलनचस्प प्रसंगों पर खूब चुटकी ली गई। मनरेगा की रिपोर्ट पेश करने के दौरान जब तालाब खुदाई का जिक्र आया, तो एक आला आईएएस अफसर ने हास-परिहास के लहजे में टिप्पणी कर दी कि मनरेगा के तहत कागजों में जितने तालाबों की खुदाई की गई है, वास्तव में अगर ऐसा किया गया होता, तो छत्तीसगढ़ में तेल का भंडार निकल गया होता। इस पर सरकार में रसूख रखने वाले एक रिटायर नौकरशाह ने यह कहते हुए उनका समर्थन किया कि राज्य में जितने वृक्षारोपण हुए हैं, वास्तव में अगर उतने पेड़ लगाए गए होते तो आज हम जंगल के बीच बैठे होते। बैठक में मुख्यमंत्री समेत आधा दर्जन से अधिक मंत्री थे। चलिये, इससे ये पता चल गया कि राज्य मंे जो कुछ चल रहा है, उससे उपर बैठे लोग नावाकिफ नहीं हैं। 

विधायक का बीपी

दिल का उम्र से कोई रिश्ता नहीं होता। तभी तो मंगलवार को विधानसभा में जब सरकारी कन्यादान योजना की गड़बडि़यों पर शिव डहरिया ने सवाल उठाया और उस पर हंसी मजाक हुआ, उससे एक विधायक का ब्लडप्रेशर इतना बढ़ गया कि चेकअप कराने के लिए उन्हें विधानसभा के डाक्टर के पास जाना पड़ गया। असल में, शादी पर युवा विधायक जब अविवाहित देवजी भाई को छेड़ रहे थे, उस दौरान एक 60 वर्ष से अधिक वाले विधायक भी खड़े होकर देवजी भाई की शादी क्यों नहीं हो रही, इसकी जांच कराने की मांग करने लगे। स्पीकर धरमलाल कौशिक ने उन्हें यह कहकर बिठा दिया कि शादी विवाह के मसले पर आप क्यों खड़े हो रहे हो। इसके बाद उनकी शादी को लेकर कई विधायकों ने उनसे खूब ठिठोली की। बताते हैं, इससे उनकी हर्ट बीट बढ़ गई। डाक्टर ने उनसे कहा, आप कुछ सोच रहे हैं, अब विधायकजी क्या बोलते।

उलझन

आईपीएल जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, मुश्किलें वैसे-वैसे बढ़ती जा रही है। सिक्यूरिटी के लिए पांच करोड़ रुपए मांगकर पुलिस ने खेल अधिकारियों के होश उड़ा दिए हैं। इस्टीमेट में इसके लिए 50 लाख रुपए का ही प्रावधान है। असल में, कैबिनेट में 2008 का इस्टीमेट पास कर अफसर फंस गए हैं। राशि बढ़ाई जाती है, तो गलत मैसेज जाएगा। इसलिए एक-एक चीज में उन्हें मोल-तोल करना पड़ रहा है। युद्ध स्तर पर काम चल रहा है मगर समय कम है। 60 हजार कुर्सियों को गैलरी में डी्रल करके नट-बोल्ट से कसना है। अभी यह शुरू भी नहीं हुआ है। 40 कारपोरेट बाक्स बनना है। इनमें से ले देकर एक बन पाया है। अलबत्ता, सुबह 5 बजे से लेकर देर रात तक काम करने की वजह से स्पोट्र्स सिकरेट्री आरपी मंडल की सेहत जवाब देने लगी है। पीठ के दर्द कम करने के लिए उन्हें स्टेडियम से लौटकर फिजियोथेरेपी करानी पड़ रही है। उधर, स्पोट्र्स डायरेक्टर जीतेंद्र शुक्ला के हाथ में मोच आ गया है। याने आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। आईपीएल के अफसर तैयारियों को लेकर अलग भौंहे तरेर रहे हैं।

ट्वेंटी-ट्वेंटी

विधानसभा का सत्र जैसे-जैसे अंतिम दिन की ओर बढ़ रहा है, कलेक्टरों का बीपी वैसे-वैसे तेज हो रहा है। जाहिर है, सत्र के जस्ट बाद कलेक्टरों का बड़ा फेरबदल होगा। चुनावी बरस है। इसलिए ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच वाले प्लेयर चुने जाएंगे। खूब ठोक-बजा कर अफसरों की पोस्टिंग की जाएगी। 2008 के चुनाव के समय शिवराज सिंह सीएस थे। तब उन्होंने अनुभवी आईएएस को जिलों की कमान सौंपी गई थी और रिजल्ट सरकार के पक्ष में आया था। इस बार भी कुछ इसी तरह करने पर विचार किया जा रहा है। 

अंत में दो सवाल आपसे

1.    राजधानी में हाल ही में तैयार हुए एक सरकारी बिल्डिंग का नाम बताइये, जिसे टेंडर हो जाने के बाद उसका डिजाइन बदलकर सिर्फ इसलिए विहंगम बनाया गया, क्योंकि उसके महिला आर्किटेक्ट को सिर्फ डेढ़ लाख रुपए मिल रहे थे और इस्टीमेट बढ़ाने पर उसे पांच लाख मिले?
2.    सब इंस्पेक्टरों की भरती रद्द होने से पीएचक्यू के अफसरों को कितना नुकसान हुआ होगा?

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