शनिवार, 28 सितंबर 2013

तरकश, 29 सितंबर

तरकश, 29 सितंबर

tarkash logo

अकेले पड़ गए मोहन भैया

सुनिल कुमार एपिसोड पर रमन सरकार के ताकतवर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल अकेले पड़ गए। कोशिशों के बाद भी कोई मंत्री खुलकर सामने नहीं आया। कैबिनेट से पहले सीएम के कक्ष में अमर अग्रवाल अपने किसी काम से गए थे। गोलीकांड के मसले पर ननकीराम कंवर कहीं कुछ बोल न दें, इसलिए सीएम ने उन्हें पहले से बुलवा लिया था। रामविचार नेताम भी अपने ही काम से आए थे। बृजमोहन के साथ हेमचंद यादव आए। तब सीएम के पास सुनिल कुमार और सुबोध सिंह थे। बृजमोहन ने सीएम से कहा, आपसे कुछ बात करनी है, सो इशारा भांपकर सीएस और सुबोध बाहर निकल गए। बताते हैं, इसके बाद बृजमोहन ने अपनी भड़ास निकाली। मगर साथी मंत्रियों से जिस तरह की अपेक्षा उन्हेांने की थी, वैसा नहीं हुआ। सभी मंत्री स्कूल शिक्षा मंत्री के चेहरे के भाव-भंगिमा को देखते रहे। अब, मोहन भैया को अखर रहा होगा, काश!प्रेमप्रकाश पाण्डेय और अजय चंद्राकर चुनाव जीत गए होते। तो आज स्थिति कुछ और होती।

बात पुरानी मगर….

बात 11 साल पुरानी है मगर सत्ता मंे बैठे लोगों के लिए मौजूं है। जब राजधानी के लिए जगह सलेक्ट हुआ था, उस समय कमेटी में एक चीफ सिकरेट्री भी थे। जब तक सरकार जमीन की खरीदी-बिक्री पर रोक लगाई जाती, सीएस के एक करीबी ने चिन्हित जमीन के ठीक बगल में 2 करोड़ की जमीन खरीद डाली। अजीत जोगी ने इसकी जांच कराई और जब पता चला कि वह सीएस का ही आदमी है, और उनके इशारे पर ही यह कारगुजारी की है, जोगी जैसा सीएम ने मौन रहना ही मुनासिब समझा। तब उनके कुछ करीबी लोगों ने पूछा था कि जिम्मेदार पोस्ट पर बैठे अफसर ने इतनी बड़ी गलती की है और आप ने कुछ नहीं किया। तब जोगी ने कहा था, सीएस पर उंगली उठेगी……मामला मीडिया में उछलेगा और इससे ब्यूरोक्रेसी डिमरलाइज होगी। उसका असर शासन-प्रशासन पर पड़ेगा। और अभी भाजपा के राज में क्या हुआ, आप सबने देखा। जाहिर है, इसका मैसेज अच्छा नहीं गया। जाहिर है, जब र्शीर्ष अफसर के साथ ऐसा हो सकता है, तो नीचे के अफसरों के साथ क्या होता होगा, समझा जा सकता है।

अंत भला तो

कहते हैं, अंत भला तो सब भला। मगर अपशकुन कुछ ऐसा हुआ है कि अंत गड़बड़ा जा रहा है। विधानसभा सत्र की तरह रमन कैबिनेट की अंतिम बैठक के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जीरम नक्सली हमले की वजह से विधानसभा का आखिरी सत्र कड़वाहट भरा रहा। पहली बार न ग्रुप फोटोग्राफी हुई और न ही बिदाई पार्टी। लेकिन इससे भी खराब स्थिति 24 सितंबर को रमन सिंह की आखिरी कैबिनेट के साथ रही। जिम्मेदार मंत्रियों ने ऐसी जिम्मेदारी निभाई कि कैबिनेट की खबर गौण हो गई। मीडिया ने भी इसमंे अपनी ओर से छौंक लगाने में कोई कमी नही की…..मंत्रियों का हंगामा……इस्तीफे की पेशकश…… सीएस हटाओ……एसीएस हटाओ…..। खबरों को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ, मानों मंत्री ट्रेड यूनियन के नेता हो गए हों।

वी वांट थर्टी सीट्स

भाजपा की टिकिट में इस बार आरएसएस का अड़ंगा लग रहा है। अंदरखाने से जो खबरें निकल कर आ रही है, उस पर यकीन करें तो संघ का भारी प्रेशर है कि भाजपा 2008 में जीती 50 सीटें ले लें साथ में, कांग्रेस के साथ नुराकुश्ती में हारने वाली 10 सीटें भी। बची 30 सीटें आरएसएस अपने लिए मांग रही है। वहां वह अपने हिसाब से प्रत्याशी उतारेगी। इसके लिए पिछले सप्ताह नागपुर से भैया जोशी राजनांदगांव पहुंचे थे। संघ और भाजपा नेताओ ंको टिप्स देकर वे वहीं से नागपुर लौट गए। इसको देखकर लगता है, भाजपा के लिए भी अबकी प्रत्याशी चयन करना उतना आसान नहीं होगा।

एक म्यान में

एक म्यान में एक ही तलवार रह सकता है। मगर पीसीसी ने एक में दो तलवार रखने की कोशिश की और उसका रिजल्ट आपने देखा ही। मीडिया सेल के चेयरमैन से नेताजी को इस्तीफा देना पड़ गया। असल में, शैलेष नीतिन त्रिवेदी वहां पहले से कमान संभाले हुए थे। नंदकुमार पटेल ने उन्हें वहां बिठाया था और उन्होंने मीडिया विभाग को सिस्टमेटिक कर दिया था। मगर हर बार की तरह चुनावी सीजन में मीडिया सेल में सक्रिय होने वाले नेताजी ने उपर के नेताओं को साधकर इस बार फिर अपना जलवा दिखाया। मगर इस बार अपने ही अपने सगा से उनका सामना हो गया। रायपुर इंजीनियरिंग कालेज से सिविल में बीई करने के बाद राजनीति में हाथ आजमाने आए त्रिवेदी भी कमजोर थोड़े ही हैं। दोनों ही बलौदा बाजार से टिकिट के दावेदार हैं। नेताजी की बिदाई की एक वजह यह भी बताई जाती है, राहुल की सभा में वे हेलीकाप्टर से जगदलपुर जाना चाहते थे। मगर दाउ ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मीडिया सेल का काम मीडिया आफिस में ही बैठकर करें। इसके बाद अनबन हुआ और नेताजी ने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा।

सत्तू भैया और अमर

विधानसभा चुनाव के लिए किसी की तगड़ी तैयारी होगी, तो वह हैं कांग्रेस में सत्तू भैया और भाजपा में अमर अग्रवाल की। बताते हैं, 2008 में चुनाव हारने के चार घंटे बाद ही सत्तू भैया ने एक तेरही कार्यक्रम में जाकर लोगों को चैंका दिया था। एक साल से तो वे लगातार अपने इलाके में सक्रिय हैं। रही बात अमर की तो उनसे राजनीतिज्ञों को इलेक्शन मैनेजमेंट सीखना चाहिए। छह महीने तक अमर की स्थिति कमजोर आंकी जा रही थी। मगर अब लोग कह रहे है कि अमर लीड बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। टिकिट का ऐलान होने से पहले शहनवाज हूूसैन अल्पसंख्यकों को और चेतन भगत युवाओं को चार्ज करके जा चुके हैं। अमर ने 22 सितंबर को अपने जन्म दिन का भी बखूबी उपयोग किया। बताते हैं, दिन भर के उनके कार्यक्रम इस तरह तैयार किए गए कि उन्हें 10 हजार से अधिक लोगों से सीधे मिलने का मौका मिल गया। पोस्टर-बैनरों से पूरा बिलासपुर अमरमय रहा। छत्तीसगढ़ मंे संभवतः यह पहला मौका होगा, जब किसी नेता का जन्मदिन इतना धूमधाम से मना हो। अमर जिस तरह से बैक हुए हैं, उससे कांग्रेस के लोग भी हतप्रभ हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. खुद के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग करना कितना बड़ा अपराध है?
2. मध्यप्रदेश में 90 बैच के आईएएस प्रींसिपल सिकरेट्र बन गए मगर छत्तीसढ़ में 89 बैच के आईएएस प्रमोट क्यों नहीं हो पाए हैं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें