शनिवार, 2 सितंबर 2017

विधवा गाड़ी और झंडा

20 अगस्त

संजय दीक्षित
गाड़ियों से बत्ती उतरने से न तो मंत्रियों को कोई फर्क पड़ा है और न ही आईपीएस अफसरों को। मंत्रियों के आगे सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियां दौड़ती हैं…..तो कैबिनेट और राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त बोर्ड और आयोगों के चेयरमैनों ने भी जोर-जुगाड़ लगाकर पायलेटिंग की व्यवस्था करा ली हैं। आईपीएस को दिक्कत इसलिए नहीं है कि उनकी गाड़ियों में पुलिस का झंडा के साथ ही उसमें स्टार लगे होते हैं…..एआईजी में एक, आईजी में दो और एडीजी, डीजी में तीन। झंका-मंका के लिए इतना काफी है। सबसे अधिक परेशानी आईएएस अफसरों को हो रही है। खासकर जो बोर्ड या आयोगों में पोस्टेड हैं…..उन्हें सीजी 02 नम्बर की जगह सीजी 04 नम्बर की वाहन मिलती हैं। वैसे भी, मंत्रालय के अधिकांश सीनियर अफसरों ने बोर्ड और आयोगों के मद से लग्जरी गाड़ियां ले रखी हैं। जाहिर है, वे सभी 04 नम्बर वाली हैं। पहले उसमें नीली बत्ती होती थी, तो पुलिस वाले सैल्यूट ठोकते थे। अब, तीस मार खां अफसर बगल से निकल जाते हैं, पुलिस वाले देखते तक नहीं। उपर से जगह-जगह रोक देते हैं। गाड़ियों के असमय विधवा हो जाने का नौकरशाहों का दर्द समझा जा सकता है। अलबत्ता, उन्हें पश्चिम बंगाल के आईएएस अफसरों से उम्मीद जगी है। वहां आईएएस एसोसियेशन ने सरकार से गाड़ियों में झंडा लगाने की अनुमति मांगी है। पश्चिम बंगाल में अगर झंडा लगाने की इजाजत मिल गई तो जाहिर है, छत्तीसगढ़ के आईएएस भी इसके लिए अवाज बुलंद करेंगे।

नारी सशक्तिकरण

स्कूल शिक्षा विभाग से संबंद्ध बोर्ड में पोस्टेड आल इंडिया सर्विसेज के एक अफसर मुश्किल में फंस गए हैं। उन्होंने हाल ही में एक लेडी स्टाफ का ट्रांसफर किया था। इसकी वजह थी, लेडी का शिक्षकों के साथ बुरा बर्ताव। इससे टीचर्स सड़क पर उतर आए थे। लिहाजा, लेडी को वहां से हटा दिया गया। लेकिन, उसे यह नागवार गुजर गया। उसने अफसर के खिलाफ यौन प्रताड़ना की शिकायत कर दी है। शिकायत मंत्री के यहां पहुंच गई है। अफसर की अब सिट्टी-पिटी गुम है। जाहिर है, यह मामला ही ऐसा है कि जो भी सुनेगा, कहेगा…. आग लगी होगी, तभी धुंआ उठा है।

जांच का संकट

सरकार ने आईएएस रेणु पिल्ले का बिलासपुर ट्रांसफर कर दिया है। पिल्ले के बिलासपुर जाने से इस बात का संकट खड़ा हो गया है कि बड़े अफसरों के खिलाफ अब सेक्सुअल ह्रासमेंट की जांच कौन करेगा। खासकर सिकरेट्री लेवल के आईएएस और आईजी, एडीजी स्तर के आईपीएस की। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार विशाखा कमेटी की चेयरमैन महिला होनी चाहिए….आरोपी अफसर से एक रैंक उपर। लेकिन, पीएचक्यू में डीआईजी लेवल से उपर कोई महिला नहीं हैं। तभी रेणु पिल्ले की मदद ली जाती है। सिकरेट्री लेवल पर भी यही प्राब्लम है। प्रिंसिपल सिकरेट्री स्तर पर रेणु पिल्ले अकेली आईएएस थीं। इनके उपर कोई महिला आईएएस है नहीं। इंदिरा मिश्रा 11 साल पहले रिटायर हुई थीं। इसके बाद महिला आईएएस में लंबा गैप हो गया। ऐसे में कोई सिकरेट्री फंसेगा तो….? हालांकि, आईएएस चतुराई से सब काम करते हैं…..फंसते हैं, आईपीएस। हाल-फिलहाल धमतरी की महिला और आईजी का मामला सामने है। अगर यह 180 डिग्री में टर्न ले लिया तो….फिर, खबर आ रही है…..एक एडीजी के भी जल्द कुछ खुलासे होने वाले हैं। प्रश्न उठता है, इसकी तहकीकात कौन करेगा?

बृजमोहन की मुश्किलें

कृषि एवं पशुपालन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। जलकी जमीन विवाद अभी ठंडा ही हुआ था कि धमधा में बीजेपी नेता के गोशाले में ढाई सौ गायों की मौत हो गई। यहीं नहीं, गोशाला संचालक की क्रूरता ने तो पार्टी नेताओं को मुंह छुपाने को मजबूर कर दिया है। इसमें इम्पोर्टेंट यह है कि गोशाला संचालकों को पशुपालन विभाग ने आंख मूंदकर लाखों रुपए का अनुदान दिया था। अनुदान बांटने में दरियादिली क्यों दिखाई गई, जांच में इसका खुलासा होगा। बहरहाल, उन्होंने दो डिप्टी डायरेक्टरों समेत नौ वेटनरी डाक्टरों को सस्पेंड कर दिया है।

अजब-गजब

छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग के कारनामों के किस्से तो अनेक हैं। मगर इस बार जो हुआ है, वह सबको पीछे छोड़ दिया। बताते हैं, सत्ताधारी पार्टी के मंडल अध्यक्ष ने एक शिक्षक के ट्रांसफर का रिकमांडेशन किया था। मगर लिस्ट निकली तो विभाग के अफसरों ने शिक्षक की जगह मंडल अध्यक्ष का ही ट्रांसफर कर दिया। शिक्षकों ने मंडल अध्यक्ष को जब लिस्ट दिखाई तो कुछ देर के लिए वे शून्य से हो गए। पता चला है,  उन्हांने सीएम से इसका कांप्लेन किया है। शुक्र है, एजुकेशन डिपार्टमेंट ने मंडल अध्यक्ष का ही ट्रांसफर किया है। कहीं मंत्री, विधायक का ही ट्रांसफर कर दें, तो अचरज नहीं। क्योंकि, ट्रांसफर के लिए रिकमांड तो सभी करते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जलकी के बाद अब कौन-सा जमीन घोटाला उजागर होने वाला है, जिसमें बड़ी संख्या में ब्यूरोक्रेट्स एक्सपोज होंगे?
2. जिलों के प्रभारी मंत्रियों के पुनर्गठन की फाइल क्यों लटक गई है? 

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