सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

सीएस को बैकअप

28 जनवरी
एक्स चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार को सरकार ने सीएम का एडवाइजर अपाइंट किया है। उनके आदेश में कुछ विभागों का जिक्र किया गया है….फलां, फलां काम देखेंगे। लेकिन, समझने वाले समझ गए हैं कि उनकी भूमिका क्या होगी। तभी तो इस खबर से ब्यूरोक्रेट्स सन्न रह गए। वैसे, सुनिल कुमार सिर्फ सलाहकार के तौर पर ही नहीं होंगे। यह काम तो वे अभी भी कर रहे हैं। प्लानिंग कमीशन के डिप्टी चेयरमैन के साथ ही सरकार अभी भी महत्वपूर्ण मामलों में उनसे सलाह लेती है। सरकार के कहने पर उन्होंने रायपुर में स्टे को हफ्ते से बढ़ाकर 15 दिन कर दिया था। दरअसल, चुनावी बरस में सरकार को नियम-कायदों के गुणी व्यक्ति के साथ ही सिस्टम पर पैनी नजर रखने वाले एक तेज अफसर की दरकार थी। क्योंकि, राज्य में सिस्टम डिरेल्ड हो चुका है। जिलों में अराजकता के हालात हैं। ट्रांसफर्मर लगवाने और लोगों से वसूली करने वाले एई पर कार्रवाई करने के लिए सरकार को रायपुर से सिकरेट्री पावर और एमडी को भेजना पड़ रहा है। ग्राउंड पर दर्जनों योजनाएं चल रही है। इसके बाद भी सरकार को इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। हालत दिनोंदिन प्रतिकूल होती जा रही है। राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह ने भी राज्य के दौरे में इसे महसूस किया। बहरहाल, सुनिल कुमार के लिए प्लस यह होगा कि सौम्य और शालीन चीफ सिकरेट्री अजय सिंह भी उन्हें बेहद सम्मान देते हैं। लिहाजा, ऐसा समझा जा रहा है, इगो के टकराव वाली स्थिति भी पैदा नहीं होगी…..अलबत्ता, सीएस को बैकअप मिलेगा और, सरकार को एक मास्टर स्ट्रोक वाले अफसर।

कड़े फैसले!

पता चला है, सुनिल कुमार को मंत्रालय में बिठाकर भ्रष्टाचार के मामले में सरकार कुछ कड़े फैसले लेना चाहती है। कुमार का ऐसा ओहरा है कि अफसर चू-चाएं नहीं करते। याद होगा, प्रिंसिपल सिकरेट्री केडीपी राव को सरकार ने 2013 में बिलासपुर का कमिश्नर बना दिया था। लेकिन, अफसरों की हिम्मत नहीं पड़ी कि इस मामले में कुछ करें। सबने केडीपी का अंदरुनी मामला बताकर पल्ला झा़ड़ लिया था। अभी तो आलम यह है कि भानुप्रतापपुर एसडीएम को हटाया गया तो आईएएस एसोसियेशन पहुंच गया सीएस और सीएम के पास। सरकार एसोसियेशन के इतना प्रेशर में है कि किसी भ्रष्ट अफसर को वह नोटिस भी नहीं जारी कर सकती….गोलबंद होकर पहुंच जाएंगे सीएम के पास। सुनिल कुमार की विषय पर इतनी पकड़ है और गड़बड़ अफसरों की नस का ज्ञान….कि सरकार इसका लाभ लेना चाहेगी।

दुष्ट आत्माओं का निवारण

पीएमजीएसवाय के सीईओ और आईएफएस राकेश चतुर्वेदी के दुष्टात्मा का निवारण सरकार ने कर दिया है। लंबे समय से वे इससे परेशान थे। सरकार भी उनके लिए कुछ करना चाहती थी कि एक आत्मा रोड़ा बनकर खड़ी हो जाती थी। आखिरकार, सरकार ने सचिवालय के शिव से पूछा….आप ही बताइये, इस ब्राम्हण का उद्धार कैसे किया जाए….बेचारे का कुछ नहीं हुआ, तो पाप लग जाएगा। शिव बोले, ठहरो वत्स! मैं कुछ करता हूं….तुम सरकार हो तो क्या हुआ, कुछ आत्माएं ऐसी होती है किसी को नहीं बख्शती। नंगा से बेचारी गंगा भी परेशां हो गई थी….फिर भी मैं कुछ करता हूं। फिर, एक दिन सचिवालय के अफसरों ने बैठकर आत्मा के निवारण का रास्ता ढूंढ निकाला। शिव ने कहा कि जब तक आत्मा राकेश पर सवार रहेगी, फाइल मैं अपने पास रखूंगा। तंत्रोपचार के बाद आत्मा जैसे ही राकेश के सिर से हटेगी, मैं फाइल बढ़ा दूंगा। और, ऐसा ही हुआ। सीएम 13 को ऑस्ट्रेलिया के लिए उड़े और शिव ने फाइल आगे बढ़ाई। सीएस अजय सिंह ने अगले दिन आर्डर जारी कर दिया। अब सरकार भी राहत की सांस ले रही है और राकेश भी।

दूसरे नारायण

आरा मिल प्रकरण को निबटने के बाद राकेश चतुर्वेदी अब हवाई जहाज के टेकऑप जैसा प्रमोशन पाएंगे। अभी वे सीएफ है। इसी साल एडिशनल पीसीसीएफ के साथ ही पीसीसीएफ बन जाएंगे। प्रकरण के चलते उनका प्रमोशन नहीं हो पा रहा था। जबकि, उनके बैच वाले एडिशनल पीसीसीएफ हो गए हैं। कुछ इसी तरह आईएएस नारायण सिंह का हुआ था। मालिक मकबूजा केस में डीओपीटी ने पांच साल के लिए उनका प्रमोशन रोक दिया था। सजा की अवधि समाप्त होने के बाद नारायण सिंह छह महीने के भीतर सिकरेट्री से प्रिंसिपल सिकरेट्री और फिर एडिशनल सीएस बन गए थे।

मंत्री को ब्रम्हज्ञान

ठीक ही कहते हैं, ज्ञान हासिल करने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है। अपने एक मंत्रीजी भी इन दिनों विदेश की सैर पर हैं। वहां से वे रोज बौद्धिक ट्विट कर रहे हैं…..राजनीति में शतरंज के नियम लागू होने चाहिए….शतरंज के मोहरे कम-से-कम अपनों को तो नहीं मारते। अगले दिन फिर….सोनार का कचरा भी बनिये के बादाम से महंगा होता है। ट्विट पढ़कर मंत्रीजी के लोग हैरान हैं….भाई साब अचानक इतने डीप ज्ञान की बात कैसे करने लगे। वो भी पंद्रहवें साल में। उधर, उनके विरोधी पता लगा रहे हैं कि वो जगह कौन-सी है, जहां मंत्री को ज्ञान की प्राप्ति हो गई….कोई वृक्ष है या कोई विशिष्ट होटल।

छोटा बजट सत्र

विधानसभा का बजट सत्र अब तक का सबसे छोटा बजट सत्र होगा। सिर्फ 15 दिन का। 5 फरवरी से शुरू होकर 28 को अवसान हो जाएगा। हो सके तो इससे पहिले भी निबट जाए। क्योंकि, चुनावी बरस में किसी को सत्र की नहीं पड़ी है। विधायकों का मन अटका रहेगा अपने इलाके में। विपक्ष भी कोई उत्साहित नहीं दिख रहा है। इससे पता चलता है, जिस दिन सत्र प्रारंभ होगा, कांग्रेस विधायक दल की बैठक उसी दिन शाम को आहूत की गई है।

पिछड़ी बीजेपी

चुनाव के 10 महीने पहिले जिस तरह से नेताओं के बीच ट्विटर वार शुरू हुआ है, माना जा रहा है कि अगले चुनाव में सोशल मीडिया एक बड़ा फैक्टर होगा। बहरहाल, तमाम संसाधनों के बावजूद सोशल मीडिया में बीजेपी बुरी तरह पिछड़ती जा रही है। अधिकांश भाजपा नेता या तो सोशल मीडिया से दूर है या फिर उन्हें हैंडिल करने नहीं आता। पार्टी पूरी तरह सरकारी प्रचार तंत्र पर निर्भर हो गई है। लेकिन, लाख टके का सवाल है, अचार संहिता प्रभावशील होने के बाद क्या होगा। कांग्रेस ने शैलेष नीतिन त्रिवेदी को दोबारा लोकर अपनी मीडिया टीम को कस दिया है। वहीं, बीजेपी इस लेवल को छू भी नहीं पा रही। भाजपा की मीडिया टीम में अधिकांश लोग ऐसे हैं, जिनका मीडिया से कभी रिश्ता रहा नहीं। इसके उलट कांग्रेस की मीडिया टीम को दाद देनी पड़ेगी….पूरा डिवोशन है। मीडिया के न केवल वे संपर्क में है बल्कि छपे चाहे न छपे, सरकार के खिलाफ सामग्रियां भरपूर मुहैया कराई जा रही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कौन से आईजी एक एनजीओ संचालिका के गिरफ्त में उलझते जा रहे हैं?
2. एक बड़े अफसर का नाम बताइये, जो सरकार की नजर में धीरे-धीरे अप्रासांगिक होते जा रहे हैं?

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