रविवार, 12 अगस्त 2018

धोखे में या इरादतन?

12 अगस्त
आईएएस अंकित आनंद के भारत सरकार में डेपुटेशन से ब्यूरोक्रेसी स्तब्ध है। हर कोई जानना चाह रहा है कि सरकार के इस पसंदीदा अफसर का नाम धोखे में भारत सरकार को चला गया या इरादतन। आखिर, अंकित साढ़े तीन साल से बिजली वितरण कंपनी संभाल रहे हैं। सरकार को उनका कोई विकल्प नहीं मिल रहा था। जिन आईएएस को अच्छे कामों की वजह से सरकार ने कलेक्टर नहीं बनाया, उनमें राजेश टोप्पो के अलावा अंकित भी हैं। जाहिर है, सरकार अगर लौटी तो उन्हें कम-से-कम एक बड़े जिले का कलेक्टर बनना तय था। लेकिन, जीएडी ने सब गु़ड़ गोबर कर दिया। बताते हैं, भारत सरकार ने जनगणना डायरेक्टर के लिए भारत सरकार से तीन नाम मांगे थे। जीएडी ने अंकित आनंद, यशवंत कुमार समेत एक महिला आईएएस का नाम प्रपोज कर दिया। आमतौर पर भारत सरकार उपर के दो नामों पर विचार करती है। यशवंत का चूकि विजिलेंस क्लियरेंस नहीं था। इसलिए, उनका नाम कट गया। अंकित आईआईटीयन हैं। कंप्यूटर साइंस में उन्होंने बीटेक किया है। इसलिए, उनका नाम ओके हो गया। राज्य सरकार के पास जब इसका आदेश पहुंचा तो आफिसर्स आवाक रह गए। अब सरकार केंद्र को लेटर भेज रही है कि अंकित को एडिशनल चार्ज के रूप में स्टेट में भी काम करने की छूट दी जाए। भारत सरकार ने अगर यह प्रस्ताव मान भी लिया तो भी अंकित का इसमें नुकसान ही हैं। न तो वे एडिशनल चार्ज में कलेक्टर बन पाएंगे और ना ही राज्य सरकार उन्हें महत्वपूर्ण पोस्टिंग दे पाएगी। बहरहाल, सवाल िंफर वही है कि यह सब घोखे में हुआ या इस बिहारी अफसर को ठिकाने लगाया गया?

कप्तानी ब्रेक

राजनांदगांव से हटाए गए एसपी प्रशांत अग्रवाल हफ्ते भर में जबर्दस्त वापसी करते हुए बलौदा बाजार का पुलिस कप्तान बनने में कामयाब रहे। लेकिन, कप्तानी ब्रेक होने से जाहिर तौर पर उन्हें झटका लगा होगा। 2008 बैच के इस आईपीएस का राजनांदगांव तीसरा जिला था। सरकार ने पहली लिस्ट में उन्हें पीएचक्यू में एआईजी बनाया गया। और, चार दिन बाद दूसरी सूची में बलौदा बाजार रवाना कर दिया। वैसे भी वीवीआईपी जिले के अफसरों को कम-से-कम एक पोस्टिंग अच्छी मिलती है। राजनांदगांव सीएम का निर्वाचन जिला है। लिहाजा, प्रशांत को अपेक्षाकृत बड़ा जिला मिलने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन, उनके साथ उल्टा हो गया। पीएचक्यू अगर उन्हें नहीं भेजा गया होता तो बलौदा बाजार उनका चौथा जिला होता। आखिर, लगातार कप्तानी के अपने मतलब होते हैं। छत्तीसगढ़ में बद्री मीणा लगातार सात जिले के एसपी रहे हैं। जो अब तक का रिकार्ड है। हालांकि, संजीव शुक्ला पांचवा जिला कर रहे हैं। जशपुर, राजनांदगांव, रायगढ़, रायपुर और अब दुर्ग। लेकिन, अब वे डीआईजी बन जाएंगे। इसलिए, दुर्ग उनका आखिरी जिला होगा। प्रशांत के डीआईजी बनने में अभी करीब चार साल बचे है। इसलिए, बद्री के रिकार्ड का उनसे खतरा हो सकता था। लेकिन, अब लगता है बद्री का रिकार्ड टूटना मुश्किल होगा।

कलेक्टर की उलझन

सरकार के आग्रह के बाद भी अंबिकापुर कलेक्टर किरण कौशल के मामले में चुनाव आयोग ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। आयोग से न ना हो रहा है और न हां ही। जाहिर है, ऐसे में किसी भी अफसर के लिए असमंजस की स्थिति होगी। हालांकि, उपर से किरण को अश्वस्त किया गया है, आयोग को उन्हें कंटीन्यू करने के लिए तैयार कर लिया जाएगा। मगर जब तक वहां से कोई आदेश नहीं आएगा, तब तक तो पेंडूलम जैसी ही उनकी स्थिति रहेगी। स्वाभाविक तौर पर काम पर भी इसका असर पड़ेगा। दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान किरण अंबिकापुर जिपं की सीईओ थीं। चुनाव आयोग के नियमानुसार कोई अफसर अगर पिछले चुनाव के समय वहां पोस्टिंग रहा हो तो अब प्रमोशन पर वहां पोस्ट नहीं हो सकता। सरकार ने अफसरों की कमी का हवाला देते हुए इस क्लॉज से रियायत देने के लिए आयोग को सीईसी क जरिये लेटर लिखा है।

फर्स्ट टाईम-1

मंत्रालय में ज्वाइंट सिकरेट्री यशवंत कुमार को सरकार ने ऐसी पोस्टिंग दी कि लोग बोल रहे हैं….भूतो न भविष्यति। उन्हें वाणिज्य, उद्योग और उर्जा से हटाकर डायरेक्टर लोकल फंड आडिट बनाया गया है। यह पोस्ट या तो एडिशनल तौर पर रहा है या फिर किसी प्रमोटी आईएएस के पास। रेगुलर रिकू्रट्ड आईएएस के पास सिंगल विभाग के रूप में कभी नहीं रहा। 2007 बैच के आईएएस यशवंत की कलेक्टरी की गाड़ी बीजापुर से जो उतरी, अब वे ट्रेक पर आने का नाम नहीं ले रही। एक तो जवानी के तीन साल उन्हें मंत्रालय में बितानी पड़ गई और अब तो उन्हें वहां से भी बाहर का रास्ता दिखा गया है।

फर्स्ट टाईम-2

अरबन एडमिनिस्ट्रेशन में विवेक ढांड, अजय सिंह, एमके राउत, सीके खेतान, आरपी मंडल सरीखे आईएएस सिकरेट्री रहे हैं। उस विभाग को जीएडी ने स्पेशल सिकरेट्री निरंजन दास के हवाले कर दिया है। निरंजन राप्रसे से आईएएस में आए हैं। इससे पहिले इस विभाग में इतना जूनियर अफसर कभी भी पोस्ट नहीं रहा। रोहित यादव स्पेशल सिकरेट्री थे। लेकिन, वे डायरेक्ट आईएएस थे। यद्यपि, विभाग की कमान मिलने के बाद निरंजन ने गजब का उत्साह दिखाया है। हफ्ते भर में बिलासपुर और बस्तर का दौरा कर आए। अब देखना है, सरकार के इस नए प्रयोग में वे कितना खरा उतरते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक अफसर को बेहद सफाई से क्यों किनारे लगा दिया गया?
2. पैराशूट नेताओं को कांग्रेस टिकिट नहीं देगी तो आरसी पटेल, विभोर जैसे अफसरों का क्या होगा?

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