मंगलवार, 1 नवंबर 2022

डीएमई के खटराल अधिकारियों पर छत्तीसगढ़ के हेल्थ सिकरेट्री का नकैल, नीट पीजी का मेरिट लिस्ट किया निरस्त...तरकश का असर

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 30 अक्टूबर 2022

खटराल अफसरों पर नकैल

पिछले हफ्ते तरकश में अंधेर नगरी, खटराल अफसर शीर्षक से मेडिकल एजुकेशन की अंधेरगर्दी को प्रमुखता से उठाया गया था। हमने बताया था कि डीएमई के बदनाम अफसरों ने किस तरह नीट पीजी में जिस अभ्यर्थी को मेरिट में हंड्रेड से नीचे होना था, उसे टॉपर बना दिया। नए हेल्थ सिकरेट्री प्रसन्ना आर. ने इस खबर को संज्ञान लेकर दिवाली के दूसरे दिन ही डीएमई आफिस के अफसरों को तलब किया। अधिकारियों की उन्होंने तगड़ी क्लास ली...फौरन मेरिट लिस्ट रिजेक्ट कर फिर से बनाने का आदेश दिया। बता दें, छत्तीसगढ़ का डीएमई देश में बदनाम है। पीएमटी के समय न जाने कितने मेधावी विद्यार्थियों का वाजिब हक छीनकर अपने नाते-रिश्तेदारों को सीट आबंटित कर दी या फिर पैसे में बेच डाली। खुद डीएमई की बेटी को गलत दाखिला दे दिया गया। सुप्रीम कोर्ट में मामला गया। चूकि, तब तक डीएमई की बेटी फायनल ईयर में पहुंच गई थीं। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट ने मानवीयता के आधार पर पांच लाख जुर्माना करके बख्श दिया। अब पांच लाख में एमबीबीएस हो गया और क्या चाहिए। एक्स सीएम के पीए की भतीजी ने भी बहती गंगा में डूबकी लगा ली। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री की 12वीं फेल बेटी को खटराल अधिकारियों ने एमबीबीएस करवा दिया। एक आईएएस की बेटी को भी पिछले दरवाजे से दाखिला दे दिया। प्रसन्ना ने अब कसना प्रारंभ किया है तो उम्ममीद है इस बार ऐसा कुछ न हो।

सिंह के बाद सिंह!

रिटायर आईएएस ठाकुर राम सिंह को पिछली सरकार ने राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया था। उनका पांच साल का कार्यकाल मई में कंप्लीट हो चुका है। चूकि सरकार ने कोई नई नियुक्ति नहीं की, लिहाजा निर्वाचन आयोग के बायलॉज के अनुसार नई नियुक्ति होने तक आयुक्त छह महीने तक कंटीन्यू कर सकते हैं। जाहिर है, इस दौरान उनके पास चुनाव कराने से लेकर सारे अधिकार होते हैं...गाड़ी-घोड़ा, बंगला, नौकर, चाकर सभी। बहरहाल, राम सिंह का छह महीने का एडिशनल कार्यकाल पूरा होने जा रहा है। लिहाजा, यह तय है कि जल्द ही नए राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति हो जाएगी। क्योंकि, संवैधानिक आयोग होने के कारण इस पद को खाली नहीं रखा जा सकता। इस पद के लिए लंबे समय से रिटायर आईएएस और सिकरेट्री टू सीएम डीडी सिंह का नाम चल रहा है। राम सिंह के रिटायरमेंट के पहले से डीडी सिंह का नाम की अटकलें शुरू हो गई थी। सरकार के पास वैसे विकल्प भी कम है। कोई और आईएएस इस समय न तो रिटायर हुआ है और न होने वाला है। डीडी सिंह आदिवासी हैं। सो सियासी दृष्टि से भी फायदेमंद रहेगा। दिनेश श्रीवास्तव के बाद वे छत्तीसगढ़ के दूसरे प्रमोटी आईएएस होंगे, जो भारत सरकार में ज्वाइंट सिकरेट्री इम्पेनल हुए थे। अब देखना है, सिंह के बाद सिंह की ही इस पद पर ताजपोशी होती है या सरकार कुछ नया करके चौंकाती है।

रिटायर नौकरशाहों का टोटा

आमतौर पर राज्य निर्वाचन आयुक्त चीफ सिकरेट्री से रिटायर आईएएस अधिकारियों को बनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में भी शिवराज सिंह सीएस से रिटायर होने के बाद राज्य निर्वाचन आयोग में पोस्ट किए गए थे। मगर अफसरों की कमी के चलते कई बार सिकरेट्री लेवल के अधिकारी भी रिटायरमेंट के बाद नियुक्त हो गए। अब अगले महीने मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत रिटायर होने वाले हैं। सूचना आयुक्त अशोक अग्रवाल भी उनके 15 दिन बाद सेवानिवृत्त हो जाएंगे। अगले साल मार्च में रेरा के चेयरमैन विवेक ढांड का कार्यकाल भी पूरा हो जाएगा। मुख्य सूचना आयुक्त और रेरा चेयरमैन चीफ सिकरेट्री के समकक्ष पद हैं। मगर सरकार के समक्ष दिक्कत यह है कि इस समय कोई रिटायर होने वाला अफसर है नहीं। रेरा में तो किसी आईएफएस अफसर को मौका मिल सकता है। मगर राउत की जगह कौन लेगा...कोई नाम नहीं है। कुछ लोग किसी पत्रकार का नाम ले रहे हैं। अब पत्रकार लोकल लेवल का होगा या बाहर का, ये भी क्लियर नहीं।

राउत आखिरी सीआईसी

बात मुख्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति की चली तो बता दें कि अब इसका वो चार्म नहीं रहा, जो पहले था। मोदी सरकार ने सीआईसी का न केवल कार्यकाल पांच बरस से कम करके तीन साल कर दिया है। बल्कि आजीवन मिलने वाली सुविधाओं में भी कटौती कर दी गई है। अभी जो सीआईसी हैं, उन्हें रिटायरमेंट के बाद आखिरी सांस तक पीए और एक केयर टेकर मिलता है। साथ ही अनलिमिटेड टेलीफोन बिल। इसके अलावा सीआईसी के साथ ही उनकी पत्नी को आजीवन मुफ्त में इलाज की सुविधा। वे देश के किसी भी महंगे अस्पताल में अपना उपचार करा सकते हैं...आयोग इसका भुगतान करेगा। एमके राउत से पहले अशोक विजयवर्गीय और सरजियस मिंज इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। और अब राउत का नम्बर है। मगर उनके बाद सब बंद हो जाएगा। मगर कुर्सी पर रहने के दौरान ढाई लाख वेतन के साथ गाड़ी, बंगला, मेडिकल सुविधा का लाभ तो रहेगा...ये भी कम थोड़े ही है।

दूसरे आईएएस

ईडी के गिरफ्त में आए 2009 बैच के आईएएस समीर विश्नोई को कोर्ट ने 14 दिनों के लिए जेल भेज दिया है। उन्हें रायपुर के सेंट्रल जेल के उसी सेल में रखा गया है, जिसमें आईपीएस जीपी सिंह रहे। बहरहाल, जेल जाने वाले वे छत्तीसगढ़ के दूसरे आईएएस होंगे। उनसे पहले 88 बैच के आईएएस अधिकारी बीएल अग्रवाल को जेल हुई थी। अग्रवाल तब प्रमुख सचिव थे। आईपीएस में जेल जाने वाले जीपी सिंह पहले अधिकारी हैं। ऑल इंडिया सर्विसेज में आईएफएफ अधिकारी अभी तक सेफ हैं। कई बड़े मामलों में उनके नाम जरूर आए मगर सफाई से अपना दामन बचा लिया।

आईएएस का सस्पेंशन?

जीएडी का वेबसाइट 11 अक्टूबर के बाद अपडेट नहीं हुआ है। जबकि, इससे पहले हर दो-तीन दिन में अपडेट होता था। ऐसे में ब्यूरोक्रेसी के भीतर से सवाल उठ रहे हैं...आईएएस समीर विश्नोई को जीएडी ने सस्पेंड तो नहीं कर दिया है। वैसे भी नियमानुसार किसी भी सरकारी मुलाजिम की गिरफ्तारी के बाद अनिवार्य तौर पर उसे सस्पेंड कर दिया जाता है। झारखंड में पूजा सिंघल भी निलंबित हुई थीं। समीर को 17 दिन ईडी के रिमांड पर रहने के बाद जेल भी भेजा जा चुका है। बहरहाल, समीर का निलंबन हुआ है या नहीं, कोई बोलने तैयार नहीं। मगर ब्यूरोक्रेसी में कुछ इस तरह की चर्चाएं तो चल रही हैं।

सरकार बड़ी या अदृश्य शक्ति?

कैबिनेट द्वारा ट्रांसफर पर बैन खोलने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग में तीन हजार से अधिक शिक्षकों का ट्रांसफर किया गया। ये अलग बात है कि इस विभाग के ट्रांसफर में 100 खोखा का खेल हुआ, या इससे अधिक का। गंभीर विषय यह है कि आदेश निकलने के महीने भर बाद भी कवर्धा के सौ से अधिक शिक्षकों की रिलीविंग रोक दी गई है। डीईओ का कहना है, नो रिलीविंग। बताते हैं, कोई अदृश्य शक्ति ने डीईओ को रात में चमका दिया....रिलीव करोगे तो तुम भुगतोगे। अब शिक्षक परेशान हैं कि डेढ़ से ढाई पेटी देने के बाद ट्रांसफर हुआ, वो भी लटक गया। उधर, डीईओ भी परेशान...जितने शिक्षक रिलीव होते हैं, उतने ज्वाईन करते हैं। प्रदेश के डीईओ ने इसके लिए रेट तय कर दिया है...रिलीविंग हो या ज्वाइंनिंग 10 हजार का लिफाफा जेब में रखकर आना होगा।  

हर त्यौहार होली

छत्तीसगढ़ में पहले छठी-बरही और होली तक शराब सीमित थी। इसके अलावा शादी-ब्याह। मगर राज्य बनने के बाद सूबे में शराब का चलन ऐसा तेजी से बढ़ा कि अब तो हर तीज-त्यौहार होली हो गया है। अब तो आलम यह हो गया है...कोई त्यौहार आया नहीं कि शराब दुकानों में भीड़ बढ़ जाती है। लोग दिवाली को भी नहीं छोड़ रहे....ड्रिंक करके लक्ष्मी पूजा। दिवाली में अब मिठाई की जगह गिफ्ट में शराब की बोतलें बंट रही हैं। पहले होली में पुलिस को लॉ एंड आर्डर के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी, अब गोवर्धन पूजा तक में पुलिस को रात भर चौकसी बरतनी पड़ती है कहीं बलवा या खूनखराबा न हो जाए।

हैप्पी दिवाली

कोरोना के चलते छत्तीसगढ़ की पिछली तीन दिवाली फीकी रही थी। बाजार भी ठंडा रहा। मगर तीन साल बाद अबकी बाजार में दिवाली की रौनक दिखी। इसकी बड़ी वजह किसानों को न्याय योजना का पैसा भी रहा। दिवाली से ठीक पहले सरकार ने किसानों के खाते में 1866 करोड़ रुपए ट्रांसफर कर दिए। अब जेब में पैसा रहते छत्तीसगढ़ के लोग त्यौहारों में कंजूसी नहीं करते। नहीं हो तो उधारी ले लेंगे, लेकिन मन मसोसकर रहना स्वभाव नहीं। इस बार तो किसानों के खुद के खाते में पैसा आ गए थे। सो, सराफा बाजार हो या आटोमोबाइल या फिर कपड़ा मार्केट...पूरा गुलजार रहा।

कप्तान की किस्मत

वीवीआईपी जिला दुर्ग के पुलिस कप्तान डॉ0 अभिषेक पल्लव शरीफ किस्म के आईपीएस माने जाते हैं। इजी गोइंग....तीन-तिकड़म से दूर। मगर दुर्ग में उनकी किस्मत साथ नहीं दे रही है। दुर्ग वे जब से गए हैं, कुछ-न-कुछ हो जा रहा। हाईवे पर नौ घंटे जाम की जिम्मेदारी उन पर डाल दी गई। अभी अमलेश्वर में सराफा व्यापारी की गोली मारकर हत्या हो गई तो एकबारगी लगा कि पल्लव की कुर्सी अब खतरे में है। मगर 24 घंटे के भीतर आरोपियों को सिनेमाई अंदाज में पकड़कर उन्होंने सरकार को सियासी परेशानी से बचा लिया।

कलेक्टर और कप्तान में ट्यूनिंग

हर सरकार चाहती है...कलेक्टर और कप्तान में समन्वय बना रहे। पिछले कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में सीएम भूपेश बघेल ने भी यही ताकीद की थी। मगर व्यवहार में ऐसा होता नहीं। कलेक्टर और एसपी अपनी-अपनी राह चल रहे। इसका सबसे अधिक प्रभाव लॉ एंड आर्डर पर पड़ रहा। अपन किसी सड़क हादसे की बात करें। एक्सीडेंट होता है तो पुलिस तो मौके पर पहुंच जाती है। मगर तहसीलदार या एसडीएम नहीं पहुंचते। जब भीड़ का गुस्सा शांत हो जाता है तब मुआवजे का ऐलान करने प्रशासनिक अफसर मौके पर पहुंचते हैं। चीफ सिकरेट्री और डीजीपी को इसे देखना चाहिए। क्योंकि, जाम से आम आदमी परेशान होता है।

राज्योत्सव तामझाम से

छत्तीसगढ़ की पांचवी सरकार का यह आखिरी राज्योत्सव और अलंकरण समारोह होगा। जाहिर है, अगले साल एक नवंबर से पहले आचार संहिता लग चुका होगा। तब राज्योत्सव की औपचारिकता भर होगी। अलंकरण समारोह भी नहीं होगा। आचार संहिता के कारण किसी राजनेता को मुख्य अतिथि नहीं बनाया जा सकता। राज्यपाल मुख्य अभ्यागत होते हैं। 2003, 2008, 2013 और 2018 में ऐसा ही हुआ था। कह सकते हैं...चुनावी सालों में राज्योत्सव बेमजा होता है। लिहाजा, रेगुलर राज्योत्सव अब 2024 में होगा। यही वजह है, सरकारी मशीनरी इस राज्योत्सव को सफल बनाने में ताकत झोंक दी है। खुद मुख्यमंत्री राज्योत्सव स्थल का जायजा ले चुके हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किन जिलों के पुलिस अधीक्षक ईडी के छापे के बाद से रात में बंगले की बजाए अज्ञात स्थान पर सोने के लिए चले जाते हैं?

2.पहली बार अधिकारी अपने पैसे से चेक के जरिये आईफोन-14 खरीद रहे हैं, इसकी क्या वजह है?


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