रविवार, 20 नवंबर 2022

भानुप्रतापपुर उपचुनाव का मतलब?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 20 नवंबर 2022

भानुप्रतापपुर उपचुनाव का मतलब?

पहले भी इस स्तंभ में लिखा जा चुका है...भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव सामान्य चुनाव नहीं है। कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों के नेताओं की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर होगी। अगर बीजेपी को फतह मिल गई तो कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ जाएगी। और कांग्रेस जीती तो समझ लीजिए बीजेपी को सत्ता में लौटने के लिए छह साल और वेट करना पड़ेगा। यह उपचुनाव इस लिहाज से भी दोनों पार्टियों के लिए लिटमस टेस्ट होगा कि 2023 के विस चुनाव में बस्तर में उंट किस करवट बैठेगा। जाहिर है, बस्तर का जनादेश कभी बंटता नहीं...जिस पार्टी के पक्ष में जाता है, वो एकतरफा होता है। 2003 से लेकर 2018 तक के बीच हुए चार विस चुनावों में यही हुआ है। बहरहाल, लोकल एजेंसियों और सर्वे की रिपोर्ट में सत्ताधारी पार्टी का पलड़ा भारी बताया जा रहा है। मनोज मंडावी के निधन के महीने भर में चुनाव होना कांग्रेस पार्टी के लिए प्लस रहा। विपक्ष के नेता भी मान रहे हैं कि सहानुभूति भी एक फैक्टर रहेगा। पार्टी ने इसे भुनाने मंडावी की पत्नी को चुनाव मैदान मे उतार ही दिया है। मगर यह भी सही है कि बीजेपी नेता बृजमोहन अग्रवाल ने चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी लेकर उपचुनाव की रोचकता बढ़ा दी है। बृजमोहन सियासत के चतुर खिलाड़ी हैं। बीजेपी के सरकार के समय उपचुनाव में बतौर प्रभारी उनकी जीत का औसत हंड्रेड परसेंट रहा है। मगर अब भूपेश बघेल की सरकार है। बहरहाल, बृजमोहन के पहल करके प्रभारी बनने से सियासी प्रेक्षक भी हैरान हैं। क्योंकि, जिस चुनाव को सरकार आसान मानकर खास गंभीरता नहीं दिखा रही, उसमें बृजमोहन कैसे कूद पड़े?

नए खुफिया चीफ

ठीक ही कहा जाता है...वक्त बलवान होता है। पिछले साल पांच सितंबर को देर रात अजय यादव को रायपुर एसएसपी से हटा दिया गया था। तब पुरानी बस्ती थाने में पादरी की पिटाई के बाद सरकार ने उन्हें हटाना बेहतर समझा। लेकिन, 13 महीने में अब वे पुलिस महकमे में दूसरे नम्बर के ताकतवर आईपीएस बन गए हैं। जाहिर है, पुलिस में पावर और प्रभाव के मामले में डीजी पुलिस के बाद खुफिया चीफ का पद होता है। सारे एसपी से रोज जिले का अपडेट लेना, लॉ एंड आर्डर के सिचुएशन में फोर्स मुहैया कराने से लेकर मुख्यमंत्री को प्रदेश के बारे में रोज ब्रीफ करना खुफिया चीफ की जवाबदेही होती है। अजय 2004 बैच के आईपीएस हैं। छह महीने पहले ओपी पाल आईजी से हटाए गए थे, उस समय भी अजय यादव का नाम चला था। मगर तब बद्री मीणा को रायपुर रेंज का अतिरिक्त प्रभार मिल गया था। चलिए, उपर वाले ने अब दिया तो छप्पड़ फाड़कर। आईजी के साथ इंटेलिजेंस चीफ भी।

आनंद सेफ रेंज में

खुफिया चीफ डॉ. आनंद छाबड़ा वीवीआईपी रेंज दुर्ग के पुलिस महानिरीक्षक बनाए गए हैं। छाबड़ा का जाना अप्रत्याशित नहीं है। उनका खुफिया चीफ के तौर पर तीन साल हो गया था। जाहिर है, विधानसभा चुनाव के दौरान वे इस पद पर रह नही सकते थे। तब तक चार साल हो जाता और आयोग उन्हें हटा देता। पता चला है, लंबा समय हो जाने की वजह से वे खुद भी खुफिया की जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे। सो, सरकार ने रास्ता निकालते हुए उन्हें दुर्ग शिफ्थ कर दिया।

एसपी की लिस्ट?

आईजी के बाद एसपी की लिस्ट आने की चर्चा बड़ी तेज है। चुनावी दृष्टि से सरकार कुछ जिलों के पुलिस कप्तानों को बदलना चाहती है। मगर समय को लेकर संशय है। एक तो आईजी के तुरंत बाद एसपी के ट्रांसफर होते अपन देखे नहीं हैं। आईजी थोड़े दिन में देख-समझ लेते हैं फिर एसपी बदले जाते हैं। उधर, कांकेर एसपी शलभ सिनहा को किसी बड़े जिले की कमान सौंपे जाने की चर्चा है। लेकिन, भानुप्रतापपुर में उपचुनाव चल रहा है। आठ दिसंबर से पहले उन्हें चेंज नहीं किया जा सकता। सो, प्रतीत होता है, उपचुनाव के बाद एसपी की लिस्ट आए। बाकी सरकार, सरकार होती है, कभी भी लिस्ट निकाल सकती है।

कलेक्टरों के लिए वार्निंग

रायपुर में एक जमीन की तीन रजिस्ट्री मामले में रजिस्ट्री अधिकारियों ने सरकार और इंकम टैक्स को लाखों रुपए की चपत लगाई, उसमें डिप्टी रजिस्ट्रार निबट गए। उन्हें सस्पेंड कर दिया गया है। मगर यह यह घटना कलेक्टरों के लिए वार्निंग होगी। कलेक्टर स्टांप ऑफ ड्यूटी होते हैं। मगर वे देख नहीं पाते कि रजिस्ट्री में किस तरह का गोरखधंधा किया जा रहा है। बता दें, एक प्लाट की तीन रजिस्ट्री की जांच में लीपापोती करते हुए अफसरों को क्लीन चिट देते हुए विक्रेताओं को बड़ी सफाई से जिम्मेदार ठहरा दिया गया। और कलेक्टर को मिसगाइड कर गलत जांच रिपोर्ट सरकार को भिजवा दी गई। दरअसल, जिस अफसर ने काला पीला किया, उसी से जवाब मांगा गया। और उसने जो लिखकर दिया, उसे जांच अधिकारी ने एडिशनल कलेक्टर को भेज दिया और एडिशनल कलेक्टर ने अपने कलेक्टर का दस्तखत करवा कर उसे सरकार को भिजवा दिया। पिछले तरकश में जब यह इस शीर्षक से खबर छपी कि सिस्टम किधर है....तो सरकारी मशीनरी हरकत में आई। और फिर रजिस्ट्री अधिकारी को निलंबित किया गया। जांच अधिकारी को नोटिस जारी किया गया है।

जमीनों का खेला

राजधानी रायपुर में जमीनों का ऐसा खेला हो रहा कि दूसरे राज्यों के लोग पइसा लगाने छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। एक प्लाट तीन रजिस्ट्री में लखनउ का व्यक्ति रायपुर में जमीन खरीद लिया। फिर उसने मुंबई के व्यक्ति को भेज दिया। दरअसल, रजिस्ट्री विभाग में सबसे बड़ा रुपैया वाला मामला चलता है। बिना दलाल के जरिये अगर आप रजिस्ट्री आफिस गए तो वहा इतनी क्वेरी बता दी जाएगी कि आपके लिए जमीन बेचना या खरीदना नामुमकिन हो जाएगा। मगर कमाल है...लखनउ से आए आदमी का सायकिल स्टैंड में रजिस्ट्री कर दी गई। एक आईएएस अफसर ने अपनी पत्नी के नाम पर पिछले तीन साल में नौ प्लाट खरीदे हैं। उसमें से नौ के नौ एग्रीकल्चर लैंड बता कर रजिस्ट्री की गई है। इनमें राजधानी की एक बड़ी कालोनी में 20 हजार वर्गफुट का प्लाट कृषि भूमि दिखाकर रजिस्ट्री की गई है, उसके जस्ट बगल में लग्जरी क्लब हाउस है। यह धतकरम करने वाले रजिस्ट्री अधिकारी वही हैं, जो इन दिनों चर्चाओं में हैं।

एक और पोस्ट

रिटायर पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी को सरकार ने पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग देते हुए राज्य जैव विविधता बोर्ड का चेयरमैन बनाया है। तीन साल उनका कार्यकाल रहेगा। हालांकि, राकेश ने जिस तरह विभाग में सेवाएं दी है, उससे चर्चा थी कि उन्हें कुछ और ठीक-ठाक मिलेगा। मगर ऐसा हो नहीं सका। बावजूद इसके महत्वपूर्ण यह है कि रिटायर्ड पीसीसीएफ या उसके समकक्ष पदों से रिटायर होने वाले अधिकारियों की पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए बायोडायवर्सिटी बोर्ड का रास्ता खुल गया। राज्य बनने के बाद अभी तक यह पद हमेशा हेड ऑफ फॉरेस्ट के पास एडिशनल तौर पर रहता आया था। राकेश चतुर्वेदी भी हेड ऑफ फॉरेस्ट के साथ इस बोर्ड के चेयरमैन थे।

हॉफ खाली

राज्य में तीन ही पद 80 हजार स्केल वाले होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और हेड ऑफ फॉरेस्ट। मगर इसमें लोचा यह होता है कि सीनियरिटी को अगर ओवरलुक करके इन तीनों में से किसी पद पर बिठाया जाता है तो उसे यह शीर्ष स्केल नहीं मिल पाता। राकेश चतुर्वेदी को वन विभाग का मुखिया अपाइंट होने के बाद भी हेड ऑफ फॉरेस्ट का स्केल तभी मिला, जब मुदित कुमार रिटायर हुए। इस समय अतुल शुक्ला संजय षुक्ला से एक बैच सीनियर है। दोनों का रिटायरमेंट भी एक साथ अगले साल 31 मई को है। लिहाजा, सरकार ने कोई विशेष पहल नहीं की तो फिलहाल यह पद खाली ही रहेगा। वैसे पुलिस महकमे में भी कई बार ऐसा हो चुका है कि डीजी पुलिस को यह स्केल नही मिला, क्योंकि विभाग में उनसे सीनियर अफसर मौजूद रहे। गिरधारी नायक के रिटायर होने के बाद ही डीएम अवस्थी को 80 हजार का स्केल मिला था।

सम्मानजनक विदाई

सूबे के सबसे सीनियर आईपीएस डीएम अवस्थी को सरकार ने ईओडब्लू और एसीबी की चीफ बनाया है। तीन साल तक डीजी पुलिस रहने के बाद उसी जगह पर फिर से उसी एजेंसी में पोस्टिंग, जहां वे 12 साल पहले रह चुके हैं, पर ब्यूरोक्रेसी में टिका-टिप्पणी हो रही है। मगर इसे पोजिटिव ढंग से देखें तो अवस्थी के कैरियर के लिए ये काफी महत्वपूर्ण है। पोलिसिंग को लेकर उन्हें डीजी पुलिस से हटाया गया और उसके साल भर के भीतर उन्हें सरकार ने अहम जिम्मेदारी सौंप दी। डीएम का अगले बरस अप्रैल में रिटायरमेंट है। अब उनकी सम्मानजनक विदाई हो सकेगी। और, इस पांच महीने में डीएम ने ठीक-ठाक ढंग से काम कर दिया तो हो सकता है कि रिटायरमेंट के बाद उन्हें पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल जाए। पुलिस हाउसिंग बोर्ड भी उनके चेयरमैन से हटने के बाद खाली पड़ा है।

दो आईजी ऑफिस!

रायपुर पुलिस रेंज को दो हिस्सों में विभाजित करने से अब रायपुर आईजी आफिस का पता बदल जाएगा। पुराने पीएचक्यू के खुफिया भवन से ही आईजी अजय यादव आईजी का काम करेंगे। रायपुर छोड़कर चार जिलों के रेंज आईजी आरिफ शेख शंकर नगर वाले पुराने आईजी आफिस में बैठेंगे। उनके पास बलौदा बाजार, धमतरी, महासमुंद और गरियाबंद का दायित्व रहेगा। 2005 बैच के आईपीएस आरिफ का अगले साल जनवरी में आईजी प्रमोशन ड्यू हो जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पुलिस कप्तान के लिए सबसे अधिक जोर आजमाइश बिलासपुर के लिए क्यों हो रही है और उनमें से किसे कामयाबी मिलेगी?

2. ईडी का ऐसा क्या खौफ हो गया कि मंत्रालय से लेकर जिलों तक में अधिकारी ठंडे पड़ गए हैं?


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