शनिवार, 16 सितंबर 2023

Chhattisgar Tarkash: 7 दिन के सीएम

 तरकश, 17 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

7 दिन के सीएम

छत्तीसगढ़ से एक ऐसे मुख्यमंत्री भी हुए, जो महज सात दिन अपनी कुर्सी पर बैठ पाए। मध्यप्रदेश के दौर का यह वाकया पुराना है। छत्तीसगढ़ के पुराने लोगों को याद होगा...1967 में संविद सरकार के समय विधायकों की नाराजगी के चलते गोविंद नारायण सिंह की सरकार गिर गई थी। ऐसे में, प्रश्न उठा कि गोविंद की जगह किसे सीएम बनाया जाए। कई दिन की सियासी जोर आजमाइश के बाद सारंगढ़ के राजा नरेशचंद्र सिंह का नाम फायनल हुआ। नरेशचंद्र आदिवासी राजा थे। सारंगढ़ रियासत का मध्यप्रदेश की सियासत में काफी दखल था। उनकी बेटी पुष्पा सिंह 80 और 90 के दशक में कई बार रायगढ़ से सांसद चुनी गईं। बहरहाल, नरेशचंद्र के शपथ लेने के तीसरे दिन विधायकों ने बगावत कर दी। विधायकों का विरोध इतना व्यापक हुआ कि उन्हें सातवें दिन ही कुर्सी छोड़नी पड़ गई। बता दें, 10 दिन के भीतर सीएम की कुर्सी गंवाने वाले मध्यप्रदेश में दो सीएम रहे हैं। नरेशचंद्र के अलावा अर्जुन सिंह। 1985 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बम्पर बहुमत से जीताने के बाद भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अर्जुन सिंह को पंजाब का गवर्नर बनाकर चंडीगढ़ भेज दिया था। दूसरी बार शपथ लेने के तीसरे दिन ही उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ गई। आज भी ऐसा मानने वालों की कमी नहीं है कि अर्जुन सिंह के बढ़ते राजनीतिक कद को कम करने के लिए ऐसा किया गया। चलिए बात छत्तीसगढ़ से सीएम की...तो बहुतों को यही मालूम है कि एमपी के समय छत्तीसगढ़ से श्यामाचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा ही सीएम रहे हैं। मगर ऐसा नहीं...इस लिस्ट में नरेशचंद्र का नाम भी शामिल करना चाहिए।

देश भक्ति कार्ड

छत्तीसगढ़ में आधा दर्जन से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी को कभी सफलता नहीं मिल पाई। उनमें सरगुजा संभाग की सीतापुर सीट भी शामिल हैं। इस सीट से खाद्य मंत्री अमरजीत भगत लगातार चार बार से जीत रहे हैं। उससे पहिले भी कांग्रेस ही इस सीट से जीतते रही है। मगर इस सीट पर बीजेपी ने देशभक्ति का दांव चल दिया है। इस बार बीएसएफ के जवान रामकुमार टोप्पो को वहां से मैदान में उतारने जा रही है। रामकुमार को वीरता के लिए राष्ट्रपति से मैडल मिल चुका है। जाहिर है, बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर इस बार ऐसी सीटों पर खासतौर से फोकस कर रहे हैं, जिस पर बीजेपी कभी जीत नहीं पाई। बीएसएफ जवान की स्क्रिप्ट उनकी प्लानिंग के तहत ही लिखी गई है। बिल्कुल फिल्मी अंदाज में। सीतापुर के सैकड़ों युवा रामकुमार को चुनाव लड़ने के लिए पत्र लिखते हैं। पत्र मिलते ही इस्तीफा और आनन-फानन में स्वीकार भी। नौकरी छोड़कर रामकुमार सीतापुर पहुंचे तो पांच हजार से अधिक युवाओं ने उनकी अगुवानी की। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा के समक्ष पार्टी ज्वाईन करने कल बीएसएफ के पूर्व जवान सीतापुर से निकले तो उनके काफिले में 100 से अधिक गाड़ियां रहीं। हालांकि, अमरजीत भगत ने भी सीतापुर में अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली हैं। मगर देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के देशभक्ति कार्ड को अमरजीत कैसे फेस करते हैं।

नो एडिशनल सीईओ

अभी तक छत्तीसगढ़ में हुए तीनों विधानसभा और लोकसभा चुनावों में चीफ इलेक्शन आफिसर के साथ ही एक एडिशनल सीईओ के साथ एक-एक ज्वाइंट सीईओ, डिप्टी सीईओ की व्यवस्था रही है। 2013 के समय डीडी सिंह ज्वाइंट सीईओ रहे तो 2018 के विधानसभा चुनाव के समय डॉ. एस भारतीदासन। मगर फर्स्ट टाईम अबकी एडिशनल सीईओ की पोस्टिंग नहीं होगी। पता चला है, जीएडी से इसके लिए नामों का पेनल भेजा गया था। मगर सीईओ आफिस ने बता दिया कि एडिशनल सीईओ की जरूरत नहीं। इस समय सीईओ रीना बाबा कंगाले के नीचे नीलेश श्रीरसागर और विपिन मांझी ज्वाइंट सीईओ हैं। यही तीन अफसरों की टीम पर चुनाव का दारोमदार रहेगा।

मौज-मस्ती का बंगला

छत्तीसगढ़ के कई नौकरशाह इन दिनों रहते हैं अपने प्रायवेट बंगलो में मगर सरकारी मकान भी अलाट करा रखा है। इसका इस्तेमाल वे मौज-मस्ती या फिर भांति-भांति के मेल-मुलाकात के लिए कर रहे हैं। एक यंग अफसर का रायपुर के सबसे पॉश कालोनी में निवास है मगर देर रात तक उनकी महफिल सजी रहती है सरकारी बंगले में। ईडी के दौर में आजकल अफसरों ने काम करने का अपना तरीका बदल दिया है। ठेकेदारों और सप्लायरों को पीए बता देते हैं साब के सरकारी बंगले में इतने बजे पहुंच जाइयेगा।

भगवान मिल जाए, मगर...

कांग्रेस की टिकिट का पेंच फंसता जा रहा है। भाजपा की पहली लिस्ट से उत्साहित प्रदेश प्रभारी सैलजा ने छह सितंबर को पहली लिस्ट जारी करने का ऐलान किया था। पर 16 तारीख निकल गई, टिकिट तय करने वाले भी नहीं जानते कि सूची कब और कैसे जारी होगी। टिकिट के लिए नेताओं की बैठकें हो रही, उससे बात बन नहीं पा रही। सबकी अपनी लिस्ट है। सीएम तो राज्य के मुखिया होते हैं, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत स्क्रीनिंग कमिटी में हैं ही, पता चला है पीसीसी के नए चीफ दीपक बैज भी अपने पद और पावर को लेकर संजीदा हो गए हैं। बहरहाल, ऐसी खींचतान में कोई हल निकलेगा नहीं। जाहिर है, फाइनल दिल्ली से होगा। वैसे भी कांग्रेस की टिकिट के बारे में कहा जाता है भगवान मिल जाएंगे मगर कांग्रेस की टिकिट नहीं। कांग्रेस पार्टी में नामंकन भरने के आखिरी दिन तक मशक्कत चलती रहती है। सत्ता में रहने के दौरान तो और भी मत पूछिए। कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा कार्यकर्ता टिकिट का दावेदार है। वैसे, दावेदारी के भी अपने फायदे हैं। नाम चर्चा में आने पर कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ मिल जाते हैं। ठेका, सप्लाई, और तोरी का लेवल बढ़ जाता है।

एजी वर्सेज 50 वकील

बिलासपुर हाई कोर्ट में शिक्षक पोस्टिंग स्कैम पर बहस की बड़ी चर्चा है। शिक्षकों के तरफ से 50 से अधिक वकील खड़े थे और सरकार की तरफ से महाधिवक्ता सतीश चंद्र। एजी उस दिन रोज पूरे रौ में थे। बचाव पक्ष के वकीलों की उनके सामने एक नहीं चल पाई। जब ये कहा गया कि जब इतना बड़ा मामला था तो ज्वाइंट डायरेक्टरों को सिर्फ सस्पेंड क्यों किया गया। इस पर किंचित तमतमाते हुए एजी ने कहा, आप देखते जाइए... हम एफआईआर भी करने जा रहे हैं। उनकी तार्किक दलील का ही नतीजा था कि कोर्ट ने शिक्षकों के वकीलों की एक न सुनी। वकील आग्रह करते रह गए। जस्टिस अरविंद चंदेल बोले... नो... नो। आप अपील कर सकते हैं।

ब्राम्हणों का शक्ति प्रदर्शन

बिलासपुर में 17 सितंबर को छत्तीसगढ़ ब्राम्हण परिषद का एक बड़ा सम्मेलन होने जा रहा है। इसमें सूबे के मुखिया भूपेश बघेल मुख्य अभ्यागत होंगे। उनके सलाहकार प्रदीप शर्मा इस ताकत नुमाइश के मुख्य सूत्रधार बताए जाते हैं। उन्होंने ही परिषद को भवन बनाने दो एकड़ जमीन दिलाई है। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य है चुनाव के समय विप्रजनों की एकजुटता को प्रदर्शित करना। इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रदेश भर से ब्राम्हण बिलासपुर पहुंचेंगे। ब्राम्हणों का पूरा जोर ब्राम्हण डोमिनेटिंग बेलतरा की टिकिट को लेकर है। कांग्रेस ने जब तक ब्राम्हणों को टिकिट दिया, उसे जीत हासिल होती रही। उसके बाद न ब्राम्हण को टिकिट मिली और न कांग्रेस को सीट। लेकिन सबसे बड़ा सवाल है जातीय राजनीति के दौर में एक जिले में आखिर कितने ब्राम्हण को टिकिट मिलेगी। बिलासपुर में ऑलरेडी कांग्रेस के विधायक हैं।

एक्साइज के अगले त्रिपाठी

एक्साइज में महादेव कांवड़े को सचिव और कमिश्नर बनाया गया है। मगर उनके नीचे एपी त्रिपाठी मॉडल का कोई अफसर नहीं है, जो शराब की खरीदी-बिक्री की सिस्टम को आपरेट कर सके। ऐसे में, डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ आबकारी विभाग में आए एक अफसर की चर्चा है कि वे अपना प्रताप दिखाने रायपुर हेड क्वार्टर लाए जा रहे हैं। अगले हफ्ते उनका आदेश निकल सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत और मंत्री जय सिंह को एक-दूसरे की मजबूरी क्यों कहा जाता है?

2. मंत्री टीएस सिंहदेव ने शिष्टाचारवश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच से केंद्र सरकार की तारीफ की...इससे कांग्रेस पार्टी को फायदा होगा या नुकसान?



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