शनिवार, 23 सितंबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: आचार संहिता 15 अक्टूबर तक?

 तरकश, 24 सितंबर 2023

संजय के. दीक्षित

आचार संहिता 15 अक्टूबर तक?

2018 के विधानसभा चुनाव के समय 6 अक्टूबर को चुनाव का ऐलान हुआ था...इसी दिन से आचार संहिता भी प्रभावशील हो गई थी। तब नवंबर मे पहले हफ्ते में 7 को दिवाली थी। इसलिए फर्स्ट फेज में 18 सीटों की पोलिंग 12 नवंबर को हुई और सेकेंड फेज की 72 सीटों पर वोटिंग 20 नवंबर को हुई थी। इस बार दिक्कत यह हो रही कि लगभग 12 नवंबर को दिवाली है और छठ पूजा 19 को। इस चक्कर में हो सकता है, दिवाली, गोवर्द्धन पूजा, भाई दूज और छठ के बाद याने 20 और 25 के बीच दो फेज में वोटिंग हो। चुनाव आयोग से जुड़े अफसरों का मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो इस बार आचार संहिता अक्टूबर के पहिले हफ्ता की बजाए 12 से 15 अक्टूबर तक जा सकती है।

टिकिट पर घमासान

भाजपा ने अगस्त एंड में 21 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान करके सबसे पहिले टिकिट वितरण कर सियासी पंडितों को चौंकाया तो कांग्रेस भी एक्साइटेड होकर 6 सितंबर को पहली सूची जारी करने की घोषणा की थी। मगर इस डेट को निकले पखवाड़ा भर से अधिक हो गया, कांग्रेस का कोई नेता पुख्ता कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं है। राहुल जी आएंगे...खड़गे जी आएंगे उसके बाद...। यानी 28 सितंबर को बाद ही कोई उम्मीद की जानी चाहिए। पता चला है, 30 सितंबर के आसपास 12 मंत्रियों समेत सिंगल नाम वाले दो-तीन सीटों पर पार्टी ऐलान कर सकती है। बची सीटों पर आचार संहिता लगने के बाद ही कुछ हो पाएगा। सूबे के 90 सीटों के लिए 2200 से अधिक कांग्रेस नेताओं ने दावेदारी की है। जाहिर है, कांग्रेस के रणनीतिकारों को लग रहा कि पहले टिकिट वितरण में नुकसान हो सकता है। हालांकि, भाजपा का हाल भी जुदा नहीं है। 21 प्रत्याशियों की घोषणा कर बाजी मारने वाली बीजेपी अब फूंक-फूंककर कदम रख रही है। 12 सितंबर के आसपास भाजपा की एक लिस्ट आने की चर्चा थी...पार्टी के कई नेताओं ने इशारों में इसकी पुष्टि भी की। किन्तु भाजपा भी अब वेट एंड वॉच की मुद्रा में दिखाई पड़ रही है।

सीएम का सपना

2005 में जब पीएससी घोटाला हुआ था, तब कांग्रेस ने ऐसा आंदोलन खड़ा किया कि तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल केएम सेठ को कड़ा एक्शन लेने विवश होना पड़ा था। उन्होंने डीजीपी रहे पीएससी के हाई प्रोफाइल चेयरमैन अशोक दरबारी को सस्पेंड कर दिया था। राज्य सरकार ने भी ईओडब्लू जांच का ऐलान करना पड़ा। बहरहाल, 2005 की तरह इस समय भी पीएससी सुर्खियों में है। बेटे-बेटियों, रिश्तेदारों को डिप्टी कलेक्टर बनाने की खबरें पब्लिक डोमेन में घूम रही हैं। मगर ताज्जुब की बात यह है कि चुनाव के दो महीने पहले युवाओं से जुड़े इसे मसले पर भी 15 साल सत्ता में रही बीजेपी के बड़े नेता उज्जवल दीपक जैसे तीसरी पंक्ति के नेता को आगे कर सीएम के सपने देखने में व्यस्त हैं। वैसे, उज्जवल कई महीनों से सरकार के फैसलों को ट्वीटर के जरिये उठाए पड़े हैं। लेकिन सवाल उठता है छत्तीसगढ़ के कितने परसेंट लोग ट्वीटर से ताल्लुक रखते हैं। भाजपा के ही एक पूर्व मंत्री ने अपने नेताओ ंपर तंज किया...हमारे नेताजी लोग सीएम की शपथ लेने का सपना देखने में बिजी हैं...किस कलर का कुर्ता पहनूंगा, किस कलर का जैकेट। बाकी ओम माथुर, अनिल जामवाल और नीतिन नबीन मेहनत कर ही रहे हैं...बचेगा वो मोदीजी और अमितशाह जी देख लेंगे।

पूर्व मंत्रियों को डर

बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर बिना किसी हो-हंगामे के साइलेंटली काम कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में जाकर कार्यकर्ताओं से संपर्क कर रहे हैं। यही वजह है कि सूबे में चुनाव को लेकर परसेप्शन बदला है। लोग कहना शुरू कर दिए हैं कि सत्ताधारी पार्टी के लिए 2018 जैसा नहीं रहेगा। बीजेपी के सामने दिक्कत यह है कि लोकल नेता उस तरह सक्रिय नहीं हैं, जैसा होना चाहिए। सूबे में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरा डॉ0 रमन सिंह हैं...उनको छोड़ मीडिया में किसी को इम्पॉर्टेंस नहीं मिलता। पार्टी रमन सिंह को सम्मान बराबर दे रही है मगर फैसलों में ये नजर नहीं आता। हाल यह है कि लता उसेंडी को उनके समकक्ष राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव साफ-सुथरी छबि के नेता हैं...अच्छे वक्ता भी मगर उन्हें वैसा फ्री हैंड नहीं है, जैसा होना चाहिए। पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने का काम रमन सरकार के 12 मंत्री कर सकते थे। लेकिन, वे किन्हीं कारणों से सहमे, डरे प्रतीत होते हैं...वे सड़क पर उतरना नहीं चाहते। मंत्री तो मंत्री बीजेपी के समय के महापौर, आयोग और निगमों के नेता भी मुंह सिले हुए हैं...पता नहीं उसका क्या साइड इफेक्ट आ जाए। केद्रीय नेताओं के दौरे जरूर तेज हो गए हैं। लेकिन बीजेपी नेताओं को कर्नाटक चुनाव सनद होगा। पीएम मोदी और अमित शाह ने वहां क्या नहीं किया। मगर लोकल फेस नहीं होने की वजह से कर्नाटक में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। जाहिर है, ऐसे में ओम माथुर की चुनौती और बढ़ जाएगी।

पहली महिला मंत्री

महिला आरक्षण के वक्त में यह सवाल मौजूं हैं कि महिलाएं राजनीति में अपनी ठोस जगह क्यों नहीं बना पाती। देश की सियासत में वही गिने-चुने चेहरे...। छत्तीसगढ़ भी इससे जुदा नहीं है। रेणू जोगी को छोड़ दें तो सूबे में किसी भी महिला विधायक दो बार से अधिक चुनाव नहीं जीत पाई। या तो उन्हें टिकिट नहीं मिला और मिला तो वे सीट निकाल नहीं पाईं। कोटा उपचुनाव से चुनावी राजनीति में कदम रखने वाले रेणू जोगी इसी सीट से लगातार चौथी बार विधायक हैं। हालांकि, मध्यप्रदेश के दौर में मिनी माता पांच बार लोकसभा का चुनाव जीती। मिनी माता का जन्म स्थान असम रहा मगर छत्तीसगढ़ को उन्होंने कर्मभूमि बनाया। छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री गीता देवी सिंह रहीं। खैरागढ़ राजपरिवार से जुड़ी गीता देवी को प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने महिला बाल विकास मंत्री बनाया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. महादेव ऐप से आईएएस अफसरों में राहत के भाव और पुलिस वालों में घबराहट क्यों है?

2. लोकसभा में महिला आरक्षण का क्रेडिट लेने सभी पार्टियों में होड़ रही तो क्या छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा नैतिक तौर पर 33 परसेंट आरक्षण का पालन करेगी?


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