रविवार, 29 अक्तूबर 2023

10 हजार करोड़ की माफ़ी

 तरकश, 29 अक्टूबर 2023

संजय के. दीक्षित

10 हजार करोड़ की माफ़ी 

सीएम भूपेश बघेल ने सरकार लौटने पर किसानों का फिर कर्जा माफ करने का बड़ा दांव चल दिया है। भूपेश का छोड़ा गया ये मिसाइल इतना खतरनाक है कि भाजपा को उसका काट ढूंढ पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा होगा। बीजेपी के सामने अब मजबूरी आ गई है कि उसे मुकाबले में अगर टिके रहना है तो जाहिर तौर पर इससे कोई बड़ा गोला दागना पड़ेगा। बता दें, कर्ज माफी से किसानों की जेब में करीब 10 हजार करोड़ रुपए जाएगा। इसे ऐसे समझते हैं। 2018 में सरकार बनने पर 19.75 लाख किसानों का कर्ज माफ किया गया था। इस पर करीब 10 हजार करोड़ रुपए खर्च हुआ था। इस बार 24.87 लाख किसान रजिस्टर्ड हैं। इनमें से मोटे अनुमान के अनुसार करीब 70 फीसदी किसानों ने 10 हजार से लेकर तीन लाख तक का लोन लिया है। से संख्या करीब 17 लाख के करीब जा रही है। अफसरों का कहना है, इस बार चूकि राजीव न्याय योजना के तहत लगातार उनके खाते में पैसा जाता रहा, इसलिए 2018 की तुलना में इस बार कम किसानों ने लोन लिया है। इसीलिए संख्या में करीब दो लाख की कमी आई है। याने इस बार भी कर्ज माफी का एमाउंट करीब 10 हजार करोड़ ही रहेगा। बहरहाल, कर्ज माफी की घोषणा के बाद लोन नहीं लेने वाले किसान अब पछता रहे हैं...काश! हम भी कर्ज ले लिए होते।

भाजपा का राकेट...

जाहिर है, सीएम भूपेश बघेल की कर्ज माफी की घोषणा ने भाजपा के हथियार कुंद तो किए ही, चुनाव की दिशा और दशा बदल दिया है। भाजपा अभी तक ईडी, आईटी, भ्रष्टाचार से लेकर हिन्दुत्व कार्ड के जरिये हवा का रुख अपने पक्ष मे ंकरने की कोशिश कर रही थी। बिरनपुर कांड के पीड़ित पिता को साजा से टिकिट दिया गया तो हिन्दुत्व को लेकर मुखर विजय शर्मा को कवर्धा से उतारा गया। मगर छत्तीसगढ़ में अब ये स्थापित हो गया है कि धान और किसान ही इस चुनाव के मुद्दे होंगे और आगे भी इसी पर चुनाव लड़े जाएंगे। 2018 का विधानसभा चुनाव भी इसी इश्यू पड़ा लड़ा गया। तब कांग्रेस ने बोनस के साथ 25 सौ रुपए धान खरीदने का वादा किया और यही टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना और इसका नतीजा हुआ कि बीजेपी 15 सीटों पर सिमट गई। हालांकि, बीजेपी की लोकल बॉडी ने धान पर लचीला रुख अपनाने के लिए दिल्ली के नेताओं से आग्रह किया था। मगर बात बनी नहीं। चूकि इस बार भी धान और किसान चुनाव के केंद्र बिन्दु बनते जा रहे हैं तो लगता है भाजपा भी इस बार मुठ्ठी खोलेगी। पार्टी ने अभी एक वीडियो भी जारी किया है। इसमें बताया गया है कि कांग्रेस का बम फुस्स हो गया...उनका राकेट आने वाला है। देखने की उत्सुकता होगी, बीजेपी का राकेट कांग्रेस के मिसाइल पर क्या असर डालता है।

पुलिस से चुनाव

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद ये पहला मौका होगा, जब पहले चरण का प्रचार खतम होने में हफ्ते भर बच गए हैं मगर चुनाव जैसा माहौल कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा। न प्रत्याशियों में जोश और गरमी नजर आ रही और न ही प्रचार अभियान में तेजी। गनीमत है, चौक-चौराहे पर पुलिस वाले चेकिंग कर चुनाव जैसा अहसास करा दे रहे। वरना, बाहर से आए नेता और मीडियाकर्मी भी छत्तीसगढ़ की चुनावी स्थिति को देखकर आवाक हैं। चुनाव प्रचार का लय न पकड़ने का एक बड़ा कारण घोषणा पत्र माना जा रहा है। पिछले बार की तरह यह चुनाव भी घोषणा पत्र के आधार पर लड़ा जाना है। इसलिए, सबकी निगाहें इस बात पर टिकी है कि दोनों पार्टियों किसानों को क्या दे रही है। किसान भी अब चतुर हो गए हैं...जो ज्यादा देगा उसे वोट देंगे। दरअसल, छत्तीसगढ़ में करीब 37 लाख किसान हैं। इसमें से 30 लाख भी अगर वास्तविक किसान होंगे तब भी एक परिवार में चार वोट के आधार पर एक करोड़ से उपर मतदाता होते हैं। चुनावी उलटफेर करने के लिए ये एक बड़ा फिगर है।

ब्यूरोक्रेट्स पर प्रेशर

छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं, अफसरों के खिलाफ शिकायतों की फाइल मोटी होती जा रहीं। पता चला है, अभी तक डेढ़ दर्जन से अधिक आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ आयोग में कंप्लेन हो चुके हैं। एक्साइज के खिलाफ भी काफी शिकायतें की जा रही। पुलिस में एसपी, आईजी से लेकर बड़े-बड़े अधिकारियों के नाम हैं तो लगभग आधे दर्जन जिले के कलेक्टरों के नाम शिकायतों की लिस्ट में शामिल हैं। हालांकि, ये शिकायतें चुनावी होती हैं। अफसरों पर प्रेशर टेकनीक भी। सियासी नेताओं को भी पता होता है, ब्यूरोक्रेट्स किसी के नहीं होते...जिसका झंडा, उनके अफसर। 2003 के विधानसभा चुनाव में दो जिले ऐसा रहा, जहां के कलेक्टर, एसपी दोनों को आयोग ने बदल दिया था। सरकार बदलने पर उन्हें ट्रेक पर आने में चार-पांच महीना लगा। मगर उसके बाद फिर उन्हें महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो मिल गया। एक को तो राजधानी रायपुर कलेक्टर की कमान मिल गई। तो दूसरे ने तीन जिले की कलेक्टरी की।

अफसरों पर तलवार?

आचार संहिता लागू होने के पहिले माना जा रहा था कि छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी जिस तरह ईडी और आईटी के राडार पर है, उसमें बड़ी संख्या में अफसरों की छुट्टी होगी। इलेक्शन कमीशन के फुल बोर्ड ने कलेक्टर, एसपी की मीटिंग में तीखे तेवर दिखाए ही थे। मगर छत्तीसगढ़ में दो कलेक्टर और तीन एसपी को हटाने के बाद कार्रवाई ठहर गई। जबकि, राजस्थान और तेलांगना में कई अफसर निबट गए। तेलांगना में तीन पुलिस कमिश्नर समेत 13 आईपीएस अफसर हटा दिए गए। छत्तीसगढ़ को लेकर चुनाव आयोग अगर उदार है तो इसकी एक वजह डिप्टी इलेक्शन कमिश्नर आरके गुप्ता भी हैं। गुप्ता केंद्रीय मंत्रालय कैडर के अफसर हैं। काफी मैच्योर भी। उन्हीं के पास छत्तीसगढ़ का प्रभार है। ब्यूरोक्रेसी के लोग भी मानते हैं कि गुप्ता की जगह अगर कोई आईएएस अफसर छत्तीसगढ़ का इंचार्ज होता तो अभी तक कई की लाईन लग गई होती। वैसे मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रीना बाबा कंगाले भी अफसरों को लेकर कोई पूर्वाग्रह नहीं है। अफसरों के कार्रवाई से बचने ये भी एक बड़ा कारण है। हालांकि, सेकेंड फेज के इलेक्शन में बीसेक दिन का समय है...कोई खुद से हिट विकेट हो जाए तो इसमें आयोग और सीईसी क्या करेंगी।

30 पर नजर

30 अक्टूबर का दिन खासकर कांग्रेस के लिए बड़ा महत्वपूर्ण रहेगा। इस दिन दूसरे और अंतिम चरण के नामंकन का अंतिम दिन है। कांग्रेस की सियासत में इस बात की हलचलें तेज हैं कि इस दिन जिन नेताओं को टिकिट नहीं मिला है वे निर्दलीय या किसी और पार्टी से अपना पर्चा दाखिल कर सकते हैं। हालांकि, कांग्रेस पार्टी द्वारा उन्हें समझाने की कोशिशें भरपूर की जा रही मगर इसके बाद भी दो-से-तीन नेता अपना सूर नहीं बदल रहे। उल्टे प्रचारित किया जा रहा कि कुछ सीटों पर प्रत्याशी बदले जा सकते हैं, जो कि अब होना नहीं है। धमतरी से गुरमुख सिंह होरा के तेवर कायम हैं तो मनेंद्रगढ़ से विनय जायसवाल और रायपुर उत्तर से अजीत कुकरेजा के बारे में भी कई तरह की बातें सुनाई पड़ रही है। हालांकि, कांग्रेस को दोनों स्थितियों में नुकसान था। इनमें से कुछ को पार्टी अगर टिकिट देती तो वे जीतते नहीं। और अगर बगावत कर खड़े हो गए तो भी वे अधिकृत प्रत्याशी को नुकसान पहुंचाएंगे। अंतागढ़, पामगढ़ और सराईपाली में पार्टी के तीन नेता पाला बदलकर अलग मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में, अब कांग्रेस भी नहीं चाहेगी कि कोई और नेता बगावत करें। जाहिर है, 30 अक्टूबर पर सबकी निगाहें रहेंगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. विधानसभा अध्यक्ष कभी चुनाव नहीं जीतते...चरणदास महंत क्या अबकी इस मिथक को तोड़ देंगे?

2. टिकिट न मिलने से नाराज एक भाजपा नेता अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ एक महिला को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं...नाम?


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