रविवार, 1 अक्तूबर 2023

Chhattisgarh Tarkash: सबसे छोटी जीत

Chhattisgarh तरकश, 1 अक्टूबर 2023

संजय के. दीक्षित

सबसे छोटी जीत

आजादी के बाद छत्तीसगढ़ की कोटा और खरसिया ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां कांग्रेस पार्टी अपराजेय रही है। इन सीटों पर कभी भी किसी और पार्टी को जीत का मौका नहीं मिला। फिलहाल बात कोटा की। कोटा से मथुरा प्रसाद दुबे लगातार चार बार विधायक चुने गए। सबसे कम मतों से जीत दर्ज करने का रिकार्ड भी उन्हीं के नाम है। 1977 के विधानसभा चुनाव में कोटा में मात्र 74 वोट से उन्होंने जीत दर्ज की थी। हालांकि, विधायक वे चार बार ही रहे मगर सियासत में ख्याति उन्होंने खूब कमाई। मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रहे। विधायिकी ज्ञान के कारण उन्हें विधान पुरूष की उपाधि दी गई थी। मथुरा दुबे के सियासी विरासत को उनके भांजे राजेंद्र प्रसाद शुक्ल ने आगे बढ़ाया। उनके बाद 1985 के चुनाव में कोटा सीट से राजेंद्र प्रसाद को टिकिट दी गई और लगातार पांच बार उन्होंने जीत दर्ज की...मृत्यु पर्यंत उन्होंने इस सीट की नुमाइंदगी की।

सिंहदेव की तारीफ के मायने

ये बात पुरानी हो गई थी कि पीएम नरेंद्र मोदी के रायगढ़ के सरकारी कार्यक्रम में मंत्री टीएस सिंहदेव ने उनकी तारीफ की...सिंहदेव को इसके लिए पार्टी के हैदराबाद सम्मेलन में खेद प्रगट करना पड़ा। मगर पीएम मोदी ने आज बिलासपुर में सिंहदेव की तारीफ और कांग्रेस पार्टी पर तंज कस मामले को फिर से ताजा कर दिया। मोदी के इस कटाक्ष के निहितार्थ समझे जा सकते हैं। दरअसल, ढाई-ढाई साल के इश्यू को लेकर सिंहदेव पार्टी से खफा थे। चुनाव से ऐन पहिले डिप्टी सीएम की कुर्सी देकर कांग्रेस द्वारा उन्हें साधने की कोशिश की गई थी। मगर मोदी और सिंहदेव की एक-दूसरे की तारीफ ने उनकी स्थिति विचित्र कर दी है। जाहिर है, कांग्रेस पार्टी ने सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाकर कार्यकर्ताओं को एकजुटता का संदेश दिया था। मगर इस तारीफ एपीसोड ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। पहला सवाल सिंहदेव के सियासी भविष्य को लेकर है। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है, मोदी ने सिंहदेव की तारीफ कर उन्हें साधने की कोशिश की है तो कांग्रेस की एकजुटता में सेंध भी लगा दिया। अब देखना होगा, मोदी के तरकश के इस तीर से कांग्रेस पार्टी कैसे निबटती है?

कांग्रेस की टिकिट

टिकिट वितरण में बीजेपी जरूर आगे निकल रही है मगर सत्ताधारी पार्टी होने के नाते कांग्रेस के लिए टिकिट फायनल करना आसान नहीं है। खासकर ऐसे में और मामला और पेचीदा हो जाता है, जब 90 सीटों के लिए 2200 से अधिक दावेदार हों। पता चला है, सिंगल या कम दावेदारी वाली दो दर्जन सीटों पर प्रत्याशियों के नामों का ऐलान जल्द ही कर दिया जाएगा मगर करीब 50 से 60 सीटें नामंकन के आखिरी दिनों में क्लियर होने के संकेत मिल रहे हैं। कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि पार्टी में नेताओं की संख्या काफी है। याद कीजिए, 2018 में कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तब भी टिकिट का क्रेज कम नहीं था। आलम यह रहा कि नामंकन शुरू हो गया था और दिल्ली में मशक्कत जारी रही। अब तो पार्टी सरकार में है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी इस बार बड़ी संख्या में चेहरे बदलने जा रही है। पार्टी के सर्वेक्षणों में यह बात आई है कि विधायकों के एंटी इंकाम्बेंसी ज्यादा है...71 में से करीब दो दर्जन से अधिक विधायकों की टिकिट काटनी पड़ेगी। ये ऐसे विधायक हैं, जो कांग्रेस की लहर में वैतरणी पार हो गए और उसके बाद अपनी छबि भी नहीं बना पाए। टिकिट कटने पर असंतुष्टों को डैमेज करने का मौका नहीं मिल पाए, इसलिए दूसरी और बड़ी लिस्ट नामंकन के दौरान ही निकल पाएगी।

आखिरी चुनाव

81 की उम्र में रामपुकार सिंह पत्थलगांव से टिकिट की दावेदारी कर रहे हैं और उम्मीद भी है कि कांग्रेस पार्टी इस वरिष्ठ नेता का सम्मान करते हुए उन्हें टिकिट दे दें। उम्र के मद्देनजर ये उनका आखिरी चुनाव होगा। जाहिर तौर पर इसके बाद वे चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं होंगे। उम्र और स्वास्थ्य के हिसाब से देखें तो कृषि मंत्री रविंद्र चौबे और रामपुर के विधायक और पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर का भी ये आखिरी चुनाव है। कंवर को इसी नजरिये से टिकिट देने पर विचार किया जा रहा है कि मेरा आखिरी चुनाव...के दांव पर उनकी सीट निकल जाए।

नॉट आउट एसपी

पिछले पांच साल में लगातार हुए ट्रांसफर के बीच छत्तीसगढ़ में दो ऐसे एसपी हैं, जो छह साल से ज्यादा समय से नॉट आउट क्रीज पर टिके हुए हैं, और उनकी वर्किंग से समझा जाता है, आगे भी बैटिंग करते रहेंगे। इनमें पहला नाम है बिलासपुर एसपी संतोष सिंह और दूसरा कबीरधाम के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव। दोनों पिछली सरकार में एसपी अपाइंट हुए थे और आज भी जिला संभाल रहे हैं। संतोष का ये आठवां जिला है और अभिषेक का चौथा। संतोष कोंडागांव, नारायणपुर, महासमुंद, कोरिया, राजनांदगांव, रायगढ़, कोरबा के बाद बिलासपुर में कप्तानी कर रहे हैं। संतोष इतना बैलेंस काम कर रहे हैं कि पिछली सरकार में भी उनका ठीक ठाक था और इस सरकार में भी। बिलासपुर के बाद बहुत संभावना है कि वे रायपुर जिले का एसपी बन बद्री मीणा का नौ जिले का रिकार्ड ब्रेक करें। उधर, अभिषेक दंतेवाड़ा, जांजगीर, दुर्ग जिले के बाद अब कबीरधाम के एसपी हैं। दंतेवाड़ा में करीब चार साल एसपी रहने का उन्होंने रिकार्ड बनाया। सोशल मीडिया सक्रियता की वजह से वे अपने ही आईपीएस बिरादरी के निशाने पर आ गए वरना कामकाज और साफ-सुथरी छबि के मामले मे वे चुनिंदा पुलिस अफसरों में उनका नाम शुमार किया जाता है। फिर भी अच्छी बात यह है कि एसपी के ट्रेक पर बने हुए हैं। सबसे जरूरी भी है...ट्रेक पर बने रहना। संतोष सिंह को इसी सरकार ने जब रायगढ़ से हटाकर कोरिया भेजा था, तब कहा गया था संतोष की पारी अब खतम है। मगर उसके बाद वे राजनांदगांव, कोरबा के बाद बिलासपुर के एसपी हैं। इन दोनों के अलावा 2018 के चुनाव वाले तीन एसपी और हैं, जो इस समय भी जिला संभाल रहे हैं। मगर ये तीनों बीच में कुछ समय के लिए ट्रेक से बाहर रहे। इनमें दीपक झा, जीतेंद्र मीणा, अभिषेक मीणा और लाल उम्मेद सिंह शामिल हैं। दीपक इस समय बलौदा बाजार, जीतेंद्र बस्तर, अभिषेक राजनांदगांव और लाल उम्मेद बलरामपुर के एसपी हैं।

स्पीकर की चुनौती

छत्तीसगढ़ में मिथक था...नेता प्रतिपक्ष और विधानसभा अध्यक्ष चुनाव नहीं जीतते। प्रथम नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय से लेकर महेद्र कर्मा और रविंद्र चौबे तक चुनाव हार गए। इनमें से सबसे अधिक धक्का चौबे को लगा। साजा सीट पर तीन दशक से उनके परिवार का कब्जा रहा। मगर 2013 के चुनाव में उन्हें भाजपा के अल्पज्ञात व्यापारी नेता से पराजय का सामना करना पड़ा। चौबे की हार के बाद टीएस सिंहदेव नेता प्रतिपक्ष बनें। उन्हांंने 2018 के चुनाव में जीत दर्ज कर नेता प्रतिपक्ष के चुनाव न जीतने के मिथक को तोड़ दिया। रही बात स्पीकर की, तो यह मिथक अभी कायम है। राज्य बनने के बाद राजेंद्र शुक्ल स्पीकर बने और 2003 का चुनाव जीते। मगर उनके बाद कोई भी स्पीकर चुनाव नहीं जीत पाया। प्रेमप्रकाश पाण्डेय से लेकर धरमलाल कौशिक और गौरीशंकर अग्रवाल अपनी सीट नहीं बचा पाए। ऐसे में, स्पीकर डॉ. चरणदास महंत के सामने इस मिथक को तोड़ने की बड़ी चुनौती होगी। खासकर ऐसे में, जब सक्ती में प्रायोजित ही सही...राजपरिवार द्वारा उनका विरोध किया जा रहा।

कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर?

आचार संहिता लागू होने से पहिले कलेक्टर, एसपी की एक लिस्ट निकल सकती है। इनमें ऐसे अफसरों का नाम हो सकता है, जो चुनाव आयोग के राडार पर हैं। वैसे, चार अक्टूबर तक वोटर लिस्ट का काम चलेगा, उसके बाद ही कलेक्टरों का ट्रांसफर हो सकता है। किन्तु एसपी का सरकार जब चाहे तब कर सकती है। एसपी की इस हफ्ते चर्चा भी उड़ी थी, मगर लिस्ट निकल नहीं पाई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या राज्य सरकार पीएससी केस में कोई बड़ा एक्शन लेने की तैयारी कर रही है?

2. आसन्न विधानसभा चुनाव में बसपा दो-एक सीट निकालेगी या वोट प्रभावित करेगी?


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