तरकश, 14 जुलाई 2024
संजय के. दीक्षित
क्या इसलिए टला छत्तीसगढ़ में कैबिनेट विस्तार!
राजधानी रायपुर में बीजेपी की हाई प्रोफाइल बैठक हुई और उसी दिन देर रात राज्य सरकार ने मंत्री केदार कश्यप को संसदीय कार्यमंत्री का अतिरिक्त प्रभार सौंपने का आदेश जारी कर दिया। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद यह विभाग खाली था। कुछ दिन बाद छत्तीसग़ढ़ विधानसभा का मानसून सत्र है। विपक्ष खामोख्वाह इसे इश्यू बनाता, इसलिए सरकार को अतिरिक्त प्रभार का फैसला करना पड़ा। केदार कश्यप को संसदीय कार्य विभाग देने के बाद जाहिर है कम-से-कम विधानसभा सत्र से पहले अब मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं होगा। मगर उसके बाद कब...? बीजेपी के शीर्ष सूत्रों की मानें तो कैबिनेट का विस्तार अब नवंबर के बाद तक जा सकता है। दरअसल, पार्टी को लग रहा कि मंत्रियों के दो पद खाली रखने का परिणाम नगरीय निकाय चुनावों में देखने मिल सकता है। मंत्री बनने की आस में सारे विधायक अपने-अपने इलाकों में लगकर काम करेंगे। जैसे लोकसभा चुनाव में काम हुआ। विधानसभा चुनाव में बिलासपुर में अमर अग्रवाल की लीड थी 28959 हजार, मगर लोकसभा चुनाव में बढ़कर 52432 हजार हो गई। याने लगभग डबल। इसी तरह रायपुर पश्चिम में राजेश मूणत की विस की लीड थी 41229 और लोस में 87 हजार, कुरूद में अजय चंद्राकर जीते थे 8090 वोटों से और लोस चुनाव में लीड मिली 24929 वोटों की। याने तीगुनी। इससे लगता है, नगरीय निकाय में भी पार्टी को फायदा होगा। मगर सवाल यह भी है कि जिन मंत्रियों के इलाके में लोकसभा चुनाव में पार्टी की लीड बुरी कदर कम हुई या पिछड़ गई....नगरीय निकाय चुनावों में पारफर्मेंस नहीं आया, तो क्या ऐसे मंत्रियों के लिए भी पार्टी रिप्लेसमेंट का कोई फार्मूला बनाएगी? क्योंकि, लोकसभा चुनाव में मोदी का भी असर था, नगरीय निकाय चुनाव विशुद्ध तौर पर मंत्रियों के लिए लिटमस टेस्ट होगा। बहरहाल, बात कैबिनेट विस्तार की, तो कुर्ता, पायजामा और जैकेट सिलवाकर शपथ लेने का इंतजार कर रहे विधायकों को अभी और वेट करना होगा।
एक पोस्ट, 5 का पेनल
एडीजी पवनदेव का बंद लिफाफा खुलने से अब डीजी पुलिस की दौड़ में एक नाम और शामिल हो गया है। दरअसल, डीजी प्रमोशन में डीपीसी ने अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के नाम को हरी झंडी देते हुए आईपीएस पवनदेव के नाम का लिफाफा बंद कर दिया था। मगर जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पवनदेव का नाम ओके कर दिया। सरकार से सहमति मिलने के बाद गृह विभाग ने लिफाफा ओपन कर उन्हें डीजी प्रमोट करने की नोटशीट चला दी है। आजकल में कभी भी पवनदेव को डीजी बनाने का आदेश हो जाएगा। इसके साथ ही अगले महीने 4 अगस्त को खाली हो रहे डीजी पुलिस के लिए अब तीन दावेदार हो जाएंगे। अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता के साथ पवनदेव भी। हालांकि, गृह विभाग पांच नामों का पेनल यूपीएससी को भेजने जा रहा है। इनमें एसआरपी कल्लूरी और प्रदीप गुप्ता का नाम भी शामिल है। डीजीपी सलेक्शन का प्रॉसेज यह है कि यूपीएससी चेयरमैन की अध्यक्षता में डीपीसी बैठेगी। इनमें एमएचए के ज्वाइंट सिकरेट्री के साथ ही छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री और वर्तमान डीजीपी होंगे। डीपीसी के बाद यूपीएससी तीन नामों का पेनल फायनल कर राज्य सरकार को भेजेगी। राज्य सरकार उनमें से किसी एक नाम को ओके कर डीजीपी अपाइंट करेगी। लोगों की उत्सुकता इस बात को लेकर है कि विष्णुदेव सरकार इन पांच में से किस पर भरोसा कर छत्तीसगढ़ पुलिस की कमान सौंपती है।
आईपीएस की ट्रेनिंग
छत्तीसगढ़ में पोलिसिंग इस समय बेहद बुरे दौर से गुजर रही तो इसके लिए नए आईपीएस की ट्रेनिंग भी काफी कुछ जिम्मेदार है। आरआर याने डायरेक्ट आईपीएस अधिकारियों को इस तरह पोस्टिंग और दायित्व नहीं मिल रहा, जिससे वे विपरीत परिस्थितियों को कुशलता से हैंडिल कर सके। अब सवाल ट्रेनिंग कमजोर क्यों...तो इसके लिए पीछे चलना होगा। मध्यप्रदेश के दौरान सब कुछ ठीक था। वहां के सिस्टम का असर करीब-करीब 2002-03 तक दिखा। मगर इसके बाद डायरेक्टर आईपीएस की ट्रेनिंग बेपटरी होती गई। दरअसल, एमपी के दिनों में आईपीएस को एडिशनल एसपी का टेन्योर पूरा करने के बाद ही जिले की कमान याने एसपी बनाया जाता था। खुद डीजीपी अशोक जुनेजा बिलासपुर और रायगढ़ के एडिशनल एसपी रहे। मगर राज्य बनने के बाद एडिशनल वाला कल्चर खतम होता गया। प्रोबेशन के बाद बड़े शहरों में आईपीएस अधिकारियों को सीएसपी बनाया जाता है मगर उसके बाद कुछ दिनों के लिए बस्तर भेज फिर सीधे कप्तान अपाइंट कर दिया जा रहा। अब बस्तर में नक्सल को छोड़ और कोई लॉ एंड आर्डर का प्राब्लम नहीं है। इसलिए, वहां के एडिशनल एसपी का अनुभव मैदानी इलाकों में काम नहीं आता। डायरेक्ट आईपीएस को बड़े शहरों में सीएसपी बनाया जाता है मगर सीएसपी के अधिकार क्षेत्र में दो-चार थानों से अधिक कुछ होता नहीं। उन्हें पूरे शहर का अनुभव नहीं मिल पाता। आप याद कीजिए...मध्यप्रदेश के दौर में अमूमन सभी जिलों में दो एडिशनल एसपी होते थे....एक शहर और दूसरा ग्रामीण। डायरेक्ट आईपीएस अफसर को शहर की जिम्मेदारी दी जाती थी और स्टेट सर्विस वाले ग्रामीण की। यह अब पुरानी बात हो गई। लॉ एंड आर्डर की स्थिति हो या फिर कोई वीवीआईपी मूवमेंट का...डायरेक्ट आईपीएस की जगह स्टेट सर्विस वाले आईपीएस को भेज दिया जाता है। प्राईम मिनिस्टर या प्रेसिडेंट का जब भी दौरा होता है तो विजय अग्रवाल का स्कवॉड अफसर बनाया जाता है या फिर शशिमोहन सिंह को। डायरेक्ट आईपीएस को बचा कर रखने की छत्तीसगढ़ में जो परिपाटी सेट हो गई है, वह छत्तीसगढ़ पुलिस की सेहत के लिए अच्छी नहीं। विजय अग्रवाल और शशिमोहन आठ-दस साल में रिटायर हो जाएंगे...वक्त की जरूस्त है नए अफसरों को ट्रेंड किया जाए। वरना, छत्तीसगढ़ पुलिस पोलिसिंग का नहीं, करप्शन का प्रतीक बनकर रह जाएगी।
कका जिंदा हे
बीजेपी और कांग्रेस में फर्क यह है कि कांग्रेस नेता बड़े जीवट होते हैं, विपरीत परिस्थितियों में भी सीना तानकर खड़े रहने वाले। देख ही रहे हैं, पराजय के बाद भी सरकार पर हमला बोलने में कांग्रेस नेता पीछे नहीं। जिन विधायकों पर कई आरोप, वे भी दहाड़ रहे। जबकि, 2018 में जब बीजेपी की करारी पराजय हुई थी, मंत्री समेत सारे नेताओं की बिल में घुसने जैसी स्थिति थी। कई नेताओं का तो अगले विधानसभा चुनाव तक मुंह नहीं खुला। सभी डरे-सहमे सिमटे रहे...कहीं कुछ बोल दिया और फाइल खुल गई तो फिर क्या होगा? आखिरी समय में राजेश मूणत ने कुछ तेवर दिखाने की कोशिश की तो रायपुर पुलिस ने उनके साथ क्या किया, मूणतजी ही जानते हैं...उनके लिए रमन सिंह को थाने जाना पड़ गया। मगर अब तो सरकार बन गई है...10 मंत्री भी हैं लेकिन अधिकांश मंत्री पता नहीं क्यों...डिफेंसिव और बैकफुट पर...। इसके उलट कांग्रेस 2003 से लेकर 2018 तक याने 15 साल सत्ता से बाहर रही...बावजूद इसके, अंदरखाने में भले ही बीजेपी नेताओं के साथ गलबहियां करते करते रहे हो मगर पब्लिक के बीच हमेशा तने रहे। अलबत्ता, इस समय पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सरकारी निवास में पोस्टर-बैनर लगाए गए है, काबर चिंता करथस...कका अभी जिंदा हे। बलौदा बाजार की पुलिस विधायक देवेंद्र यादव को पूछताछ़ के लिए इंतजार कर रही थी। और देवेंद्र मीडिया को दमदारी के साथ बयान दे रहे थे। इसे ही बोलते हैं जीवटता। बीजेपी के मंत्रियों को भी अब खोल से बाहर निकलना चाहिए।
किस्मती इंजीनियर
कैबिनेट ने सुपरिटेंडेंट इंजीनियर से चीफ इंजीनियर के प्रमोशन में वन टाईम के लिए अनुभव में एक साल की छूट देते हुए पांच साल से चार साल कर दिया है। इससे राज्य के कितने एसई लाभान्वित होंगे ये तो नहीं पता, मगर ये सही है कि रायपुर में पीडब्लूडी के एक एसई का रुतबा बढ़ गया है। कैबिनेट के फैसले के बाद उनके पास ट्रांसफर, पोस्टिंग की सिफारिशें लेकर लोग पहुंचने लगे हैं। सबको लग रहा कि एसई साब बेहद पावरफुल हैं...तभी उनके लिए कैबिनेट ने प्रमोशन नियम को शिथिल कर दिया।
अंत में दो सवाल आपसे
1. किस महिला अफसर को जिले से शिफ्थ कर सरकार ने एक कलेक्टर को मुकेश के गाने सुनने की स्थिति में ला दिया है?
2. ऐसा क्यों कहा जा रहा कि एसीबी की शराब घोटाले की सप्लीमेंट्री चार्जशीट बडे़ धमाकेदार होगी?
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