Chhattisgarh Tarkash, Agust 11, 2024:
संजय के. दीक्षित
जी उठा सीआईडी
एक जमाने में सीआईडी पुलिस का बड़ा क्रेज होता था। पुलिस मुख्यालय का सबसे महत्वपूर्ण विभाग। पीएचक्यू के सबसे तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी को इसकी कमान सौंपी जाती थी। जिस तरह इस समय पीएचक्यू में इंटेलिजेंस चीफ का रुतबा होता है, सीआईडी चीफ का जलवा उससे ज्यादा ही होता था। कठिन और हाईप्रोफाइल मामलों की जांच सीआईडी को सौंपी जाती थी। बिल्कुल सीबीआई की तरह। मगर दुर्भाग्य की बात यह कि छत्तीसगढ़ में सीआईडी को खतम कर दिया गया। अब ये डेटा हब बनकर रह गया है। विधानसभा के प्रश्नों का जवाब तैयार करना सीआईडी का प्रमुख काम रह गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस के जिलों से लेकर रेंज तक के सारे डेटा आजकल सीआईडी संभाल रहा। प्रमोटी आईपीएस इस समय सीआईडी के आईजी हैं। इससे आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं। मगर बात सीआईडी के जी उठने की...तो छत्तीसगढ़ के सीआईडी के लिए आज बड़ा दिन है। बिलासपुर के चर्चित डॉ0 पूजा चौरसिया केस में हाई कोर्ट ने आठ हफ्ते में सीआईडी जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है। राज्य बनने के करीब ढाई दशक में मुझे याद नहीं कि हत्या जैसे किसी मामले की जांच सीआईडी को किसी सरकार ने सौंपी होगी। जो काम सरकारों ने नहीं किया, वह हाई कोर्ट ने कर दिया। चलिये, उम्मीद करते हैं कि सीआईडी का अब कुछ होगा। वैसे भी बड़े अपराधों की जांच के लिए स्टेट लेवल की एक एजेंसी होनी ही चाहिए। मगर इसके लिए सरकार को सीबीआई या एनआईए रिटर्न आईपीएस को ढूंढना पड़ेगा।
कलेक्टर और क्राइम
बात राज्य बनने के थोड़े ही पहले की है। शायद 1999 की बारिश का महीना होगा। बिलासपुर जिले के बिल्हा के एक पहुंचविहीन गांव में एक छात्रा की हत्या हो गई थी। पहुंच विहीन इसलिए याद कि करीब दो किलोमीटर तक कठिन रास्तों पर पैदल चलकर गांव जाना पड़ा था। वहां पता चला गांव के प्रभावशाली परिवार के युवक ने कालेज जा रही छात्रा की रास्ते में गला दबाकर शव को नाले में फेंक दिया था। आरोपी का परिवार दबंग था, सो उसके खिलाफ मुंह खोलने की किसी की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। मैंने बिल्हा थाना फोन लगाया तो खैनी मूंह में दबाए मुंशीजी बोले, कैसे हुआ, कुछ पता नहीं चल रहा, क्या कर सकते हैं...गीता में लिखा है, जो आया है, वह जाएगा ही। जिस अखबार में उस समय मैं काम करता था, उसमें अगले दिन आठ कॉलम में यह खबर प्रकाशित हुई। खबर छपते ही सुबह-सुबह तत्कालीन एसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव का लैंडलाइन पर फोन आया। लैंडलाइन ही उस समय संचार का साधन था। एसपी साब बोले, क्या छाप दिए हो...कलेक्टर साब पूछ रहे हैं। फिर उन्होंने मुझसे घटना का ब्रीफ लिया और दोपहर बाद आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कलेक्टर थे शैलेंद्र सिंह। राज्य बनने के बाद दोनों शैलेंद्र मध्यप्रदेश चले गए। बहरहाल, अबके कलेक्टर क्राइम की तरफ झांकते नहीं...कोई घटना हुई तो जाने एसपी साब। बलौदा बाजार में अगर कलेक्टर ने इनिशियेटिव लिया होता, तो कलेक्ट्रेट जलाने की घटना नहीं हुई होती।
कलेक्टर कमजोर क्यों-1
कलेक्टर के चेम्बर और कार में पहले वायरलेस सेट लगा होता था। जिले में क्राइम के सारे अपडेट कंट्रोल रुम से सीधे कलेक्टर को मिलते रहते थे। कलेक्टर के पावर को बताने के लिए शैलेंद्र सिंह को यहां एक बार और उद्धृत करना जरूरी होगा। बिलासपुर में यूथ कांग्रेस के एक प्रेसिडेंट का बड़ा जलजला था। यूनिर्वसिटी में आए दिन उठापटक चलती रहती थी। शैलेंद्र सिंह एक दिन गाड़ी से लंच के लिए निकले, रास्ते में वायरलेस पर संदेश आया, यूनिर्वसिटी में यूथ कांग्रेस ने तोड़फोड़ कर दिया है। कलेक्टर को पता था कि पुलिस की यूथ कांग्रेसी पर कुछ ज्यादा मेहरबानी है, ऐसे में कोई कार्रवाई होगी नहीं। कलेक्टर ने अपनी गाड़ी यूनिर्वसिटी की तरफ मोड़ दी। उन्होंने एसपी को भी सूचित कर दिया। पीछे-पीछे एसपी भी भागते हुए यूनिर्वसिटी पहुंचे। उसके बाद रुलिंग पार्टी के जिला अध्यक्ष और उसके साथियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कहने का मतलब यह है कि कलेक्टरों की भी ड्यूटी होती है कि वह क्राईम पर नजर रखें। चीफ सिकरेट्री और डीजीपी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कलेक्टर-एसपी मिलकर काम करें और अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन करें। राज्य बनने के 24 साल बाद भी आखिर यह सुनने में क्यों आता है कि पुराने मध्यप्रदेश में सिस्टम रन कर रहा है और छत्तीसगढ़ में? सिस्टम शीर्षासन कर रहा है। कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में साल में एक बार कह देने से नहीं होगा कि दोनों मिलकर काम करें। उसका फॉलोअप भी लेना चाहिए। वरना, छत्तीसगढ़ को बिहार, यूपी के रास्ते पर जाने से कोई रोक नहीं पाएगा।
कलेक्टर कमजोर क्यों-2
छत्तीसगढ़ में कलेक्टर-एसपी में तालमेल का बड़ा अभाव है। कई जिलों में आलम यह है कि हफ्ता निकल जाता है, दोनों में बातें नहीं होती। सरकार के निर्देशों के बाद भी एसपी कलेक्टर की टीएल मीटिंग में नहीं जाते। कलेक्टर भी चाहते हैं...एसपी से दूर ही रहे। दरअसल, उसकी एक बड़ी वजह करप्शन हैं। खासतौर से डीएमएफ ने कलेक्टर सिस्टम को पंगु बना दिया। डीएमएफ से हर साल करोड़ों रुपए बरस रहे हैं। और कलेक्टर इसके मालिक हैं, वही चेक काटते हैं। इसमें 20 से 30 परसेंट ही जमीन पर काम होता है। 70 परसेंट से ज्यादा का कलेक्टर साब लोग खेला कर डालते हैं। ऐसे में उन्हें चोर की दाढ़ी में तिनका की तरह डर सताता रहता है....एसपी कहीं उसे ट्रेप न कर लें। लिहाजा, वे क्राइम की तरफ देखना नहीं चाहते...एसपी साब कहीं नाराज हो गए तो।
सम्मान से विदाई की तैयारी
छत्तीसगढ़ के डीजीपी अशोक जुनेजा को भारत सरकार ने छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया है। सर्विस पूरी होने के बाद भारत सरकार से एक्सटेंशन मिलने का यह पहला केस है। बहरहाल, 5 अगस्त 2022 को डीजीपी जुनेजा को दो साल की पूर्णकालिक नियुक्ति मिली थी, सो 4 अगस्त को उनका टेन्योर कंप्लीट हो रहा था। उस दिन रविवार था। अब जुनेजा जैसे डीजीपी छुटटी के दिन विदा होते तो अच्छा नहीं लगता। सो, सरकार में सेपरेट नोटशीट चलाई गई। इसमें रविवार का हवाला देते हुए उनके रिटायरमेंट को एक दिन बढ़ाया गया ताकि उन्हें सम्मान पूर्वक ग्रेंड फेयरवेल दिया जा सकें। मगर दिल्ली से ऐसी चकरी घुमी कि रिटायरमेंट डेट बढ़ाने का कोई मतलब नहीं हुआ। अचानक जब दिल्ली से एक लाईन का संदेश आया कि अशोक जुनेजा के छह महीने का एक्सटेंशन का प्रापोजल भेजिए...छत्तीसगढ़ के लोग हतप्रभ रह गए। हतप्रभ इसलिए कि उसी दिन सुबह गृह विभाग ने दो नामों को पेनल यूपीएससी को भेजा गया था और अरूणदेव गौतम को प्रभारी डीजीपी बनाने की तैयारी शुरू हो चुकी थी। दरअसल, नक्सल मोर्चे पर मिली अभूतपूर्व कामयाबी के बाद दिल्ली में जुनेजा का खासा औरा कायम हो गया है। जुनेजा दो बार सेंट्रल डेपुटेशन कर चुके हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स के वे सिक्यूरिटी इंचार्ज थे और तत्कालीन कैबिनेट सिकरेट्री अजीत सेठ चेयरमैन। वे सीधे कैबिनेट सिकरेट्री को रिपोर्ट करते थे। तात्पर्य यह है कि दिल्ली की ब्यूरोक्रेसी में उनके अच्छे रिश्ते हैं। इसका उन्हें लाभ मिला।
कमिश्नर मटेरियल
छत्तीसगढ़ सरकार ने महादेव कांवरे को रायपुर का कमिश्नर बनाया है। वे पहले भी कमिश्नर रह चुके हैं। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में कुछ आईएएस अधिकारी कमिश्नर के लिए पेटेंट हो गए हैं। इनमें पहला नाम है जी चुरेंद्र। चुरेंद बिलासपुर छोड़कर छत्तीसगढ़ के चारों संभाग के कमिश्नर रह चुके हैं। सरगुजा में वे कमिश्नर की दूसरी पारी खेल रहे हैं। उनके बाद नाम आता है दसेक दिन पहले रिटायर हुए संजय अलंग का। संजय का नया रिकार्ड बनाया, डबल कमिश्नर का। पहले बिलासपुर कमिश्नर रहते उनके पास सरगुजा का भी चार्ज रहा। और अभी रायपुर के साथ ही बिलासपुर संभाग भी उनके पास था। दिलीप वासनीकर भी बस्तर, रायपुर और दुर्ग के कमिश्नर रहे। इससे पहिले महादेव कांवरे भी दुर्ग के कमिश्नर रह चुके हैं। इस कड़ी में अब नीलम एक्का का नाम जुड़ गया है।
नीलम का कद बढ़ा या घटा?
नीलम एक्का को बिलासपुर संभाग का कमिश्नर बनाया गया है। पहली बात, आप नीलम के नाम पर मत जाईयेगा, नीलम अच्छी छबि के पुरूष अधिकारी हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमोटी आईएएस में सबसे सीनियर। 2005 बैच में दो अधिकारी हैं। टीपी वर्मा और नीलम एक्का। नीलम इससे पहले राजस्व सिकरेट्री रह चुके हैं। इस हैसियत से वे पूरे स्टेट के राजस्व मामले की सुनवाई करते थे। अब संभाग के आयुक्त बन गए हैं। इस तरह की कुर्सी तोड़ने वाली पोस्टिंग उनके स्वभाव में नहीं। हालांकि, ये क्लियर नहीं कि वे कमिश्नर की पोस्टिंग से वाकई खुश नहीं हैं मगर ब्यूरोक्रेसी में कहा तो ऐसा ही जा रहा है।
छोटी लिस्ट
छत्तीसगढ़ में आईएएस, आईपीएस ट्रांसफर की एक लिस्ट आने की चर्चा बड़ी तेज है। चार-पांच दिन से लोग डेट के भी दावे कर रहे...9-10 अगस्त तक आदेश निकल जाएगा। खैर चर्चाओं में कुछ दम तो नजर आ रहा। एक छोटी लिस्ट आ सकती है। इनमें दो-एक आईएएस और लगभग इतने ही आईपीएस होंगे। मगर डेट का अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि, ट्रांसफर का इतना हल्ला हो गया है कि हो सकता है डेट आगे टल जाए।
अंत में दो सवाल आपसे
1. ओबीसी कल्याण आयोग के अध्यक्ष के लिए रिटायर आईएएस आरएस विश्वकर्मा को ढ़ूंढ कर क्यों निकाला गया?
2. आठ महीना गुजर जाने के बाद भी छत्तीसगढ़ सरकार के कई मंत्रियों का लाइन और लेंग्थ क्यों नहीं सुधर रहा?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें