तरकश, 18 अगस्त 2024
संजय के. दीक्षित
दमदार अफसर, दमदार नेता
बात 87 की होगी। रायपुर में उस समय सिर्फ एक सीएसपी होते थे। लेकिन, उस समय के सीएसपी आज के एसपी, आईजी से ज्यादा धाक रखते थे। और वो भी रुस्तम सिंह जैसे आईपीएस सीएसपी हो तो क्या कहने। बहरहाल, रायपुर के एक बड़े नेताजी उस समय प्रभावशाली स्टूडेंट लीडर हुआ करते थे। किसी मामले को लेकर उन्होंने रायपुर बंद का आयोजन किया था। रविवार का दिन होने की वजह से रुस्तम सिंह ने बंद के आयोजकों को समझाने के लिए अपने घर बुलाया। छात्र नेताओं को वहां पहुंचने में कुछ विलंब हो गया। तब तक रुस्तम सिंह भोजन करने बैठ गए। रुस्तम जब बाहर निकले तो छात्र नेताओं से हॉट-टॉक हो गया...नेताओं ने कहा कि हम हड़ताल करेंगे ही और लगे नारेबाजी करने। रुस्तम सिंह ने फिर समझाया, मगर छा़त्र नेताओं ने कुछ कड़ा जवाब दे दिया। इस पर रुस्तम सिंह तमतमा गए। उन्होंने खटाक से पिस्तौल निकाला और एक बड़े नेता पर तान दिया। सारे स्टूडेंट लीडर हक्के-बक्के रह गए। हालांकि, बाद में मामला ठंडा हो गया। रुस्तम सिंह कुछ साल बाद फिर रायपुर के एसपी बनकर आए और इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा गए। उनके लॉ एंड आर्डर को रायपुर ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ के पुराने लोग आज भी याद करते हैं।
हड़ताल और एसीबी का खौफ
पंजीयन विभाग ने जमीनों की रजिस्ट्री में व्यापक गड़बड़िया उजागर होने पर बड़ा एक्शन लेते हुए तीन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया। चूकि इस विभाग में कभी ऐसी कोई कार्रवाई हुई नहीं थी, इसलिए खलबली मचनी ही थी। ट्रिपल सस्पेंशन के अगले दिन रविवार था, इसके बाद भी दोपहर से लेकर आधी रात तक फैसले के विरोध को लेकर मीटिंगें होती रही। पंजीयन अधिकारी संघ ने हड़ताल पर जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। तभी रात एक बजे कहीं से प्वाइंट चला...और भी कई अफसरों की फाइलें तैयार है...सभी केस एसीबी को सौंप दिए जाएंगे। इतना सुनते ही अधिकारियों के हाथ-पांव फुल गए। व्हाट्सएप ग्रुप में सुबह से क्रांतिकारी बातें करने वाले अधिकारियों ने अपनी वीरता दिखाने वाली पोस्टों को फटाफट डिलीट मार दिया। फिर अगले दिन अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल पंजीयन मंत्री ओपी चौधरी से क्षमा याचना करने मंत्रालय पहुंच गया। मंत्री ने अफसरों से दो टूक कहा, आठ महीने में मैं आठ रुपिया लिया हूं तो बताओ...मेरे आईजी, सचिव इनलोगों ने लिया क्या? पहले क्या हुआ, ये मैं नहीं जानता...पर मेरे कार्यकाल में करप्शन होगा तो फिर बख्शा नहीं जाएगा। इसके बाद निलंबित अधिकारियों ने सर गलती हो गई...माफी मांगी और फिर बैठक समाप्त हो गई। बताते हैं, पंजीयन विभाग के अधिकारियों की स्वाभाविक तौर से भूमाफियाओं, बिल्डरों और सफेदपोश लोगों से निकटता है, सो कार्रवाई के खिलाफ अधिकारियों को कहीं से उर्जा मिल रही थी, मगर सब गुड़ गोबर हो गया। अब देखना है...मंत्री की चमकाइटिस का कितन असर होता है।
प्लीज...नो पॉलिटिक्स
छत्तीसगढ़ के एक रेंज आईजी ने छत्तीसगढ़ की बेहतरी और फोर्स पर भरोसा कायम रखने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए 100 से अधिक कांस्टेबलों का ट्रांसफर कर दूसरे जिलों में भेज दिया है। दरअसल, आईजी को अपने रेंज में कांस्टेबलों का तबादला करने का अधिकार है मगर आईजी साब लोग हिम्मत नहीं दिखाते। और उधर नेताजी लोग फोर्स का लोकलाइजेशन करने का मोह नहीं छोड़ पाते। कायदे से गृह गांव से 40 किमी के भीतर कांस्टेबलों की पोस्टिंग नहीं होनी चाहिए। मगर फोर्स के सारे नियम-कायदों को ताक पर रख छत्तीसगढ़ में कांस्टेबलों की पोस्टिंग उनके गृह इलाके के थानों में हो जा रही है। अलबत्ता, कांस्टेबलों का अब प्रयास ये होने लगा है कि खुद के गांव में कोई चौकी खुल जाए, जिससे लोग उनका जलवा देख सकें। नेताओं को भी यह भाता है...उनकी ड्यूटी बजाने वाले सिपाही मिल जाते हैं। किंतु इसका खामियाजा यह हुआ कि छत्तीसगढ़ के बस्तर से लेकर सरगुजा और रायगढ़, सारंगढ़ से लेकर बलौदा बाजार तक 50 प्रतिशत से अधिक लोकल पुलिस हो गई है। सूबे के लिए यह खतरनाक संकेत है। ऐसा ही रहा तो बलौदा बाजार जैसी घटनाओं की जगह-जगह पुनरावृत्ति होगी। चाहे बीजेपी के नेता हो या कांग्रेस के...फोर्स के मामले में सिस्टम को कड़ा स्टैंड लेना होगा...पुलिस की पोस्टिंग में नो पॉलिटिक्स।
गलत पंरपरा
छत्तीसगढ़ निर्माण के 24 बरसों में कभी वर्क कल्चर बनाने का प्रयास नहीं हुआ। उपर से फाइव डे वीक से लेकर सरकारी छुट्टियों की बरसात कर दी गई। अब एक गलत परंपरा की शुरूआत हो रही है...सरकार कड़ाई करे या सुधार की दिशा में कोई कोशिश हो तो उसका विरोध। अभी कुछ दिनों पहले पटवारियों ने हड़ताल की। राजस्व विभाग ने उन्हें हाथ-पैर जोड़कर हड़ताल तोड़वाया। कुछ और विभाग भी सुधार के कार्यों के विरोध में आंदोलन प्रारंभ करने की तैयारी कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ की भलाई के लिए सिस्टम को सख्त होना पड़ेगा। तभी अंतिम व्यक्ति तक गुड गवर्नेंस का लाभ पहुंच पाएगा।
पेटी लाओ, आदेश ले जाओ
डॉ0 रमन सिंह की पहली पारी में डॉ0 कृष्णमूर्ति बांधी को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था। वे पहली बार विधायक बने थे और सीधे मंत्री। हेल्थ का सिस्टम चरमराने लगा तो रमन सिंह ने अमर अग्रवाल को विभाग की कमान सौंपी थी। इस समय भी हालत जुदा नहीं है। मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल अच्छे व्यक्ति हैं, मगर उन्हें थोड़ा अलर्ट रहना पड़ेगा, वरना उनके अधिकारी और आसपास रहने वाले लोग मुसीबतें पैदा कर देंगे। आखिर, लोकसभा चुनाव के आचार संहिता के दौरान अधिकारियों ने संविदा अधिकारियों का ट्रांसफर कर डालने का कारनामा किया ही था। उसमें जीएडी की जांच कमिटी बनी। मगर चुनाव निबट जाने के बाद ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। और अभी सीएमओ और सिविल सर्जन के ट्रांसफर में ऐसा ही खेला हुआ। सीएमओ का रेट 35 पेटी तो सिविल सर्जन का 20। एक सीएमओ 25 पेटी देने तैयार था मगर 35 से नीचे लोग टस-से-मस नहीं हुए, लिहाजा प्रभारी सीएमओ की छुट्टी कर जिसने ज्यादा बोली लगाई, उसकी पोस्टिंग कर दी गई। ऐसे में फिर स्वास्थ्य विभाग को भगवान भी नहीं बचा पाएगा।
एक अनार, ....
छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के दो पदों के लिए संघ, संगठन और सरकार पर बड़ा प्रेशर है। दावेदारों में रिटायर आईएएस, आईपीएस से लेकर वकीलों और पत्रकारों की एक लंबी सूची है। हर आदमी अपने-अपने स्तर पर जैक लगा रहा है। इस समय नरेंद्र शुक्ला रिटायर आईएएस के कोटे से सूचना आयुक्त हैं। मगर ऐसा समझा जा रहा कि मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर किसी रिटायर आईएएस या आईपीएस को मौका दिया जा सकता है। हालांकि, ऐसा कोई नियम नहीं है कि पूर्व नौकरशाहों को ही मुख्य सूचना आयुक्त बनाया जाए। छत्तीसगढ़ में भले ही तीनों मुख्य सूचना आयुक्त रिटायर आईएएस रहे हैं। मगर कई राज्यों में सीनियर वकीलों और पत्रकारों को भी सीआईसी बनाया गया है। गोवा में एक विधायक सीआईसी रहे। इसका सलेक्शन पूरी तरह सरकारों पर निर्भर करता है। कमेटी तो सिर्फ नाम के लिए बनती है। बहरहाल, राज्य सरकार अगर पुरानी लीक पर चलते हुए अगर रिटायर आईएएस, आईपीएस को ही सीआईसी बनाना चाहेगी तो फिर पत्रकारों, वकीलों या अन्य वर्गो के लिए सिर्फ एक पद बचेगा। सूचना आयुक्त का। जाहिर तौर पर इसमें पत्रकारों का पलड़ा भारी रहेगा। पिछली सरकार में भी प्रेस कोटे से दो लोगों को सूचना आयुक्त बनाया गया था। अब देखना है, सरकार क्या फैसला करती है।
सुनील और संजय में भिड़ंत
रायपुर की दक्षिण विधानसभा सीट पर चुनावी भिड़त से पहले बीजेपी के सुनील सोनी और संजय श्रीवास्तव के बीच भिडं़त होगी। जाहिर है, इस उपचुनाव के लिए ये दो ही तगड़े दावेदार है और ये भी तय है कि इन दोनों में से किसी एक को प्रत्याशा बनाया जाएगा। सुनील सांसद बृजमोहन अग्रवाल के करीबी हैं। सुनील रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष, महापौर और सांसद रह चुके हैं। वहीं पार्टी के पढ़े-लिखे और जुझारू चेहरा संजय श्रीवास्तव को रायपुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन के साथ ही नगर निगम में एक बार सभापति रहने का मौका मिला है। हालांकि, 2003 में छत्तीसगढ़ बीजेपी के पितृ पुरूष लखीराम अग्रवाल ने राजेश मूणत के लिए वीटो नहीं लगाया होता तो उस समय संजय श्रीवास्तव को टिकिट मिल गया होता। बहरहाल, अब देखना है कि संजय की किस्मत का ताला इस बार खुलेगा या फिर पार्टी सुनील सोनी पर दांव लगाएगी। पलड़ा इसमें सुनील का भारी है क्योंकि पार्टी का एक वर्ग नहीं चाहता कि कोई दमदार नेतृत्व रायपुर में खड़ा हो।
अंत में दो सवाल आपसे
1. क्या एक्स सीएम भूपेश बघेल को राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व मंत्री टीएस सिंहदेव को पीसीसी चीफ बनाया जा रहा?
2. सरगुजा आईजी अंकित गर्ग बस्तर के नए आईजी होंगे या किसी और को पोस्ट किया जाएगा?
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