शनिवार, 30 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 2500 करोड़ सैलरी और काम 15 दिन

 तरकश, 31 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

2500 करोड़ सैलरी और काम 15 दिन

छत्तीसगढ़ में जब से फाइव डे वीक शुरू हुआ है, छुट्टियों का बहार है। पिछले नौ दिन में सिर्फ दो दिन वर्क हुआ, सात दिन छुट्टी रही। 31 के इस अगस्त महीने में पांच-पांच सटर्डे और संडे पड़ गया। उसके बाद 15 अगस्त, तीज, गणेश चतुर्थी, नवा खाई जैसी कई सरकारी छुटियां। इसके आगे भी कोई महीना नहीं है, जिसमें 12 दिन से ज्यादा छुट्टी न पड़ रही हो। छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा, जहां इतनी छुट्टियां...साउथ के राज्यों को छोड़ दें, बिहार, यूपी और ओड़िसा जैसे राज्यों में इतने सरकारी अवकाश नहीं होते। अब जरा सोचिए...कर्मचारियों और अधिकारियों की तनख्वाह पर हर महीने 2500 करोड़ खर्च हो रहा और काम आधा महीना भी नहीं। ऐसे में, छत्तीसगढ़ विकसित राज्य कैसे बन पाएगा। सिस्टम को इस विडंबना को दूर करने साहसिक फैसले लेने पड़ेंगे...तभी 2035 तक छत्तीसगढ़ विकसित राज्य बन पाएगा। वरना, विजन डाक्यूमेंट बनाने का फिर क्या मतलब?

ब्यूरोक्रेट्स और बाबू एक बराबर

छत्तीसगढ़ में स्थिति यह है कि अर्थहीन छुट्टियों में भी मंत्रालय और विभागाध्यक्ष भवन में कामकाज ठप्प पड़ जाता है। अर्थहीन का मतलब ये कि जिससे सभी वर्गों का ताल्लुकात न हो। अब भला हरेली और तीज से मंत्रालय के अधिकारियों का क्या वास्ता। वैसे भी बड़े लोगों के यहां तीज कोई करता नहीं...अब करवा चौथ का दौर है। बावजूद इसके तीज, हरेली, चेट्री चंड जैसी छुट्टियों में मंत्रालय बंद हो जाए तो सिस्टम को इसे देखना चाहिए...आखिर बाबू और ब्यूरोक्रेट्स में फर्क होता है कि नहीं! ब्यूरोक्रेट्स देश चलाते हैं...मगर ऐसे में राज्य कैसे चलेगा। आखिर, इसी छत्तीसगढ़ में 2018 तक छुट्टियों में भी बड़े अफसर मंत्रालय और ऑफिस पहुंचते थे...प्लानिंग से लेकर इंपार्टेंट काम छुट्टी के दिन होते थे। अलबत्ता, इस साल एक जनवरी की सीएम विष्णुदेव साय की बैठक के बाद मंत्रालय की वर्किंग सुधरी है। 70 परसेंट से अधिक अफसर अब टाईम पर आ रहे हैं। फिर भी यह ध्यान रखना होगा कि ब्यूरोक्रेट्स और बाबू में अंतर होता है।

हर्बल लाइफ, चेन और शेयर

छत्तीसगढ़ में छुट्टियों का साइड इफेक्ट ये हो रहा कि सरकारी मुलाजिम काम छोड़ आजकल शेयर, हर्बल लाइफ और चेन के बिजनेस में घुस गए हैं। नवा रायपुर के महानदी, इंद्रावती भवन समेत अधिकांश ऑफिसों में ऐसे अफसर मिल जाएंगे, जो 3 बजे तक इसलिए सीट पर बैठते हैं कि उसके बाद शेयर मार्केट खुला होता है। कुछ अधिकारियों की पूरी फेमिली चेन के कारोबार में लगी है तो ये बात छिपी नहीं कि पुलिस मुख्यालय के आईजी लेवल का एक अफसर इस बिजनेस में इंवाल्व रहे हैं। शिक्षकों में ऐसी बड़ी तादात है, जो स्कूलों में पढ़ाने-लिखाने से तोबा कर हर्बल लाइफ का चेन बना लोगों को मोटा-पतला बनाने का काम कर रहे हैं। ऐसे में, वर्किंग कल्चर की आप कल्पना कैसे कर सकते हैं।

कलेक्टर, एसपी की मौज-मस्ती

एक जमाना था, जब कलेक्टर, एसपी 24 घंटे काम करते थे। मगर छत्तीसगढ़ में छुट्टियों के बहार के दौर में छुट्टी से काफी पहले आजकल कलेक्टर, एसपी सैर-सपाटे का प्लान कर ले रहे हैं। फिर जीएडी में अर्जी के साथ बार-बार फोन...सर! फ्लाइट की टिकिट हो गई...। हालांकि, कलेक्टर-एसपी पहले से इस समय काफी ठीक है। फिर भी कसावट का मामला जरा ढीला है। जीएडी सिकरेट्री ने जनवरी में इन दोनों को कड़ा मैसेज भेजकर कई सारे प्वाइंट पर काम करने कहा था। मगर सब किसी-न-किसी से जुड़े हैं, तो फिर क्या किया जा सकता है। हाल में एक वीआईपी जिले में कलेक्टर, एसपी की कड़वाहट सतह पर आ गई। इसमें क्या हुआ? न होना था और न होगा। ऐसे में प्रशासन कैसे चलेगा? हाई लेवल पर देखना होगा कि प्रशासनिक कार्य में किसी तरह की दखलांदाजी नहीं होनी चाहिए। कलेक्टर, एसपी को भी छुट्टी मांगने से पहले सोचना चाहिए...कभी-कभी देवदूत की तरह जिले में काम करने का अवसर मिलता है। इसे सिर्फ मौज-मस्ती और पैसा कमाने में न गंवा दें।

विष्णुदेव को पॉलिटिकल माइलेज

सीएम विष्णुदेव का पहला विदेश दौरा कितना सफल रहा, जमीनी तौर पर इसे दिखने में थोड़ा वक्त लगेगा। मगर राजनीतिक दृष्टि से इससे उन्हें बड़ा माइलेज मिला है। छत्तीसगढ़ में पहली बार किसी मुख्यमंत्री का विदेश यात्रा से लौटने पर एयरपोर्ट पर ऐसा स्वागत हुआ। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंहदेव से लेकर सारे मंत्री, निगम-मंडल के अध्यक्ष और पार्टी के बड़े नेता विमानतल पर मौजूद रहे। मुख्यमंत्री के स्वागत के शो को देखकर सियासी पंडित भी चकित रह गए। जाहिर है, राजनीति में स्वागत और भीड़ से भी अपने संदेश निकलते हैं...एयरपोर्ट पर आतिशि स्वागत का मतलब यही होगा न...सीएम ने अपनी राजनीतिक पकड़ बेहद मजबूत कर ली है!

प्रमोटी आईएएस PSC चेयरमैन क्यों?

छत्तीसगढ़ सरकार ने पीएससी की मेंबर रीता शांडिल्य को अपग्रेड करते हुए चेयरमैन बना दिया है। मगर उनका कार्यकाल साल भर ही रहेगा। वे पिछले साल सितंबर में आईएएस से रिटायर हुईं थीं। और पीएससी में 62 वर्ष रिटायरमेंट है। इस लिहाज से उनका एक साल निकल गया है। अगले साल 30 सितंबर को वे रिटायर हो जाएंगी। याने नेक्स्ट ईयर जून-जुलाई से नए चेयरमैन की तलाश शुरू हो जाएगी। बता दें, 60 में रिटायर होने के बाद आईएएस अधिकारियों को पीएससी में सिर्फ दो साल मिलता है इसलिए कोई डायरेक्ट आईएएस अधिकारी पीएससी चेयरमैन नहीं बनना चाहते। उनकी नजर पांच साल वाली पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग पर रहती है। छत्तीसगढ़ में अभी तक कोई डायरेक्ट आईएएस पीएससी चेयरमैन नहीं बना है। डायरेक्ट आईपीएस श्रीमोहन शुक्ला और अशोक दरबारी जरूर चेयरमैन रहे। उनके अलावे आईएएस में स्टेट सर्विस से आईएएस वाले ही चेयरमैन बनें हैं। मसलन, बीएल ठाकुर, केआर पिस्दा, आरएस विश्वकर्मा, टामन सिंह सोनवानी और अब रीता शांडिल्य।

पोस्टिंग और भाग्य-1

दिसंबर 2023 में जब बीजेपी की नई सरकार बनी थी, तब एसीएस होम मनोज पिंगुआ का नाम सीएम सचिवालय के लिए खूब चला था। मगर बाद में ऐसा हो नहीं सका। इसके बाद नए चीफ सिकरेट्री के लिए के लिए उनका नाम लगभग फायनल हो गया था, सिर्फ आदेश की रस्मअदायगी बच गई थी। 30 जून को कैबिनेट की बैठक के बाद उनके नाम का आदेश निकलना था कि दिल्ली के हाई पावर जोन से फोन आ गया। फोन ऐसा था कि सरकार में बैठे लोग चाहकर भी कुछ नहीं कर सके और अमिताभ जैन को तीन महीने का एक्सटेंशन देने का रास्ता निकालना पड़ा। अब 30 सितंबर को अमिताभ जैन को फिर से तीन महीने का एक्सटेंशन मिलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है। निहितार्थ है कि सबसे बड़ी किस्मत होती है।

पोस्टिंग और भाग्य-2

सचिव स्तर के पिछले फेरबदल में सरकार ने सिकरेट्री अविनाश चंपावत से राजस्व लेकर रीना बाबा कंगाले को दे दिया। इसके बाद अविनाश के पास सिर्फ जीएडी बचा है, जो आज तक किसी सिकरेट्री के पास सिंगल चार्ज के तौर पर नहीं रहा। जीएडी हमेशा दूसरे विभागों के साथ पुछल्ला होता था। ब्यूरोक्रेसी में ये किसी को समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा हुआ कैसे। दागी राप्रसे अधिकारी को आईएएस बनाने के लिए क्लीन चीट देने से अंबलगन ने मना किया तो उनसे जीएडी लिया गया था। मगर चंपावत ने वो सब कुछ कर दिया, फिर ऐसी बेदर्दी उनके साथ क्यों? अफसरों की संख्या बढ़ गई है, ये रीजन है या कोई और?

लोकप्रिय सीएम, संयोग और खतरे

एक नामी मीडिया समूह के सर्वे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को देश का दूसरे सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री चुना गया है। पहले नंबर पर असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा हैं। बात छत्तीसगढ़ के सीएम की तो लगता है...पिछले छह-आठ महीने में ई-ऑफिस से लेकर गवर्नेंस के फील्ड में रिफार्म किए गए, उसके संदेश अच्छे गए, तभी 41 परसेंट से अधिक लोग उन्हें पसंद किए। सर्वे के मुताबिक सुशासन तिहार का आम जनमानस पर बडा प्रभाव पड़ा। इसमें सीएम सचिवालय के निर्विवाद अधिकारियों की भूमिका भी अहम रही। खासकर, छत्तीसगढ़ जैसे स्टेट में कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी कि यहां ऑनलाइन फाइलें चलेंगी। गुड गवर्नेंस की दिशा में यह प्रयास मील का पत्थर जैसा है। हालांकि, बीजेपी में इस बात पर चुटकी ली जा रही कि इससे पहले 2005 में भी इसी इंडिया टुडे-सी वोटर सर्वे में डॉ. रमन सिंह देश के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद रमन ऐसे मजबूत होते चले गए कि 15 साल उन्हें कोई हिला नहीं पाया। कहीं वही संयोग दुहरा गया तो फिर कांग्रेस का लंबा वनवास होगा ही, बीजेपी के दीगर दावेदारों का स्कोप विष्णुदेव खतम कर देंगे।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. मंत्री बनने में पुरंदर मिश्रा का कोई रिसोर्स काम नहीं आ पाया तो क्या चीफ सिकेरट्री में सुब्रत साहू की दावेदारी अब प्रबल हो जाएगी?

2. क्या ये सही है कि करप्शन पर काबू पाने सिस्टम को एक बार आंख मूंदकर तलवार भांजने की जरूरत है?

शनिवार, 23 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: सोशल+पॉलिटिकल इंजीनियरिंग

तरकश, 24 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

सोशल+पॉलिटिकल इंजीनियरिंग

सियासत में आपने सोशल इंजीनियरिंग शब्द सुना होगा, मगर इससे आगे बढ़कर अब पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का दौर आ गया है। हाल में विष्णुदेव कैबिनेट का विस्तार हुआ, उसमें इसी तरह का एक नमूना दिखा। कैबिनेट में जिन तीन नए मंत्रियों को शामिल किया गया, उसमें सोशल इंजीनियरिंग के साथ पॉलिटिकल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया गया। तभी इसमें दोनों का संमिश्रण नजर आया। बहरहाल, गजेंद्र यादव के नाम पर काफी पहले से सहमति बन गई थी, मगर खुशवंत साहेब और राजेश अग्रवाल को लेकर बीजेपी में पर्दे के पीछे शह-मात का खेल चला, उससे पार्टी के दिग्गज नेता भी भौंचक रह गए....किसने किधर से बॉल फेंकी और खुरदुरी पिच पर वो इतनी स्पिन कैसे हो गई? जाहिर है, बॉल को समझने में राजनीति के बड़े-बड़े सूरमा भी चूक गए। इस गेम में क्रिकेट और शतरंज दोनों खेलों का जौहर दिखा। खेल को अपने पक्ष में करने दांव चलने में कोई कमी नहीं की गई। दिसंबर 2024 में किरण सिंहदेव को मंत्री बनाने के लिए हाथी को आगे बढ़ाया। मगर सामने वाले ने प्यादे से हाथी को मार डाला। और यह दावं उल्टा बैठ गया। फिर, दूसरी बार कैबिनेट विस्तार के समय उंट की चाल भी पिट गई। थक हारकर इस बार घोड़े को आगे बढ़ाया गया। जाहिर है, शतरंज के खेल में किसी भी दिशा में ढाई घर चलने की वजह से घोड़ा बेहद खतरनाक होता है। इस बार ऐसा ही हुआ...घोड़ा से घोड़ा को मारा गया। इस खेल का दिलचस्प पहलू यह रहा कि सोशल और पॉलिटिकल इंजीनियरिंग एक साथ साधी गई।

एक तीर, डबल निशाना?

बीजेपी की राजनीति को समझने वाले सियासी पंडितों की मानें तो कैबिनेट विस्तार में जिन लोगों ने सरगुजा में कमल खिलाया, उन्हीं के तरफ से खुशवंत साहेब का नाम भी आगे बढ़ाया गया। खैर, बीजेपी के नफे-नुकसान की दृष्टि से देखें तो खुशवंत का फैसला सही माना जा रहा है। भूपेश बघेल सरकार में मंत्री शिव डहरिया और रुद्र गुरू भले ही अपनी सीट नहीं बचा सकें, मगर ये जरूर हुआ कि 2023 के विधानसभा चुनाव में अजा के लिए रिजर्व 10 में से छह सीटें झटकने में कांग्रेस पार्टी कामयाब हो गई। बीजेपी को सिर्फ चार सीटों से संतोष करना पड़ा। इसी का हवाला देकर कैबिनेट में अजा का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का फर्मूला रखा गया। ऐसा करके एक तीर से दो निशाना किया गया। दूसरा निशाना था, लता उसेंडी को रोकना। लता उसेंडी का नाम लगभग फायनल समझा जा रहा था। मगर दूरगामी रणनीति के तहत कि अगले विस चुनाव से पहले सरगुजा का प्रतिनिधित्व कम होगा, तब बस्तर से किसी को मंत्री बनाया जा सके...इस दृष्टि से गुंजाइश बनाकर रखी गई है...ऐसा राजनीतिक समीक्षकों का दावा है।

विभाग वितरण में डंडी

पॉलिटिकल इंजीनियरिंग करते हुए बीजेपी ने तीन नए मंत्री बना दिए मगर विभाग बांटने के मामले में टाईप डंडी मार दी। गजेंद्र यादव को स्कूल शिक्षा तो कुछ ठीक भी है, बाकी दो की स्थिति ऐसी रही कि मंत्री बनने की खुशी मनाएं या फिर मालदार विभाग न मिलने का गम। तीन में से एक मंत्री इस प्रोफाइल के हैं कि उन्हें जो पोर्टफोलियो मिला है, उसके बजट से कई गुना ज्यादा उनका खुद का कारोबार है। हालांकि, विभाग के नाम पर झुनझुना थमाना कहना सही नहीं होगा मगर यह कड़वा सत्य तो है कि ये विभाग कभी भी किसी मंत्री का मेन विभाग नहीं रहा, पुछल्ला की तरह हमेशा टिकाया जाता था। ऐसा समझा जाता है कि दोनों मंत्रियों को अपेक्षित विभाग न देकर बीजेपी के उन वर्गों को जले पर बरनाल लगाने का काम किया गया है, जिनका मानना था कि कांग्रेस से आए नेताओं को पार्टी दोनों हाथों से उपकृत कर रही है।

मंत्रियों पर लटकी तलवार!

डेढ़ साल बाद ही सही विष्णुदेव कैबिनेट अब कंप्लीट हो गया है। ऐसे शुभ अवसर पर दुखी करने जैसी बातें नहीं होनी चाहिए। मगर कुछ मंत्री खुद ही घबराए दिख रहे हैं तो उसका क्या? असल में, अंबिकापुर से राजेश अग्रवाल को मंत्रिमंडल में शामिल करने से सरगुजा के मंत्रियों का रक्तचाप बढ़ गया है। सरगुजा से इस समय रामविचार नेताम, श्यामबिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े और अब राजेश अग्रवाल मंत्री हैं। जाहिर है, बस्तर और सरगुजा में ऐसा असंतुलन है कि लगभग सभी मानकर चल रहे हैं कि आगे चलकर सरगुजा से दो-एक मंत्रियों का विकेट गिरेगा। सरगुजा से बीजेपी को अगर 14 में 14 सीटें मिलीं तो बस्तर की 12 में से आठ सीटें आईं। सरगुजा को अगर 14 में पांच का प्रतिनिधित्व मिल रहा तो बस्तर को आठ में ढाई का तो मिलना ही चाहिए। ऐसे में, विधानसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में निश्चित तौर पर बस्तर को एक मंत्री मिलेगा ही। और, यह तय है कि अब मंत्रियों की संख्या 13 से अधिक होनी नहीं। ऐसे में, कटौती सरगुजा से ही होगी। लिहाजा, सरगुजा के मंत्रियों को घबराना जायज ही कहा जाएगा।

बीजेपी का असंतुलन

पॉलिटिकल इंजीनियरिंग करने में बीजेपी कामयाब हो गई मगर पार्टी के भीतर ही इस पर असंतोष है कि क्षेत्रवार संतुलन बनाने का प्रयास नहीं किया गया। पहली बात यह कि बस्तर से एक की तुलना में मंत्रिपरिषद में सरगुजा से पांच-पांच लोग हो गए हैं। अंबिकापुर से अखिलेश सोनी को बीजेपी कार्यकारिणी में महामंत्री बनाया गया, और वहीं से राजेश अग्रवाल को कैबिनेट मंत्री भी। इसी तरह आरंग से नवीन मार्केंडेय को महामंत्री और वहीं से खुशवंत साहेब को सरकार के मंत्री। जांजगीर में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया, मगर वहां से किसी को कार्यकारिणी में पदाधिकारी बनाने की जरूरत नहीं समझी गई। बिलासपुर जैसे सूबे के दूसरे बड़े जिले से न तो किसी को कार्यकारिणी में पद मिला और न मंत्रिमंडल में। अब देखना है कि बीजेपी के रणनीतिकार इस असंतुलन को दूर करने के लिए क्या कदम उठाते हैं।

सीएम हुए मजबूत

कैबिनेट विस्तार पर 16 अगस्त से 19 अगस्त तक करीब 80 घंटे तक उहापोह की स्थिति बनी रहने के बाद आखिरकार 20 अगस्त को तीन नए मंत्रियों ने शपथ ग्रहण कर ली। अगर इस बार शपथ टलता तो फिर पार्टी के साथ सरकार की स्थिति बड़ी खराब होती। मगर जो नाम 16 अगस्त को पब्लिक डोमेन में आए, उन्हीं तीनों ने 20 को शपथ ली। इस एपिसोड में राजनीतिक तौर पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय मजबूत हुए हैं।

चेंबर 12, बंगले भी 12

हरियाणा मॉडल पर छत्तीसगढ़ में 13 मंत्री तो हो गए मगर अब दिक्कत यह है कि मंत्रालय में मंत्री स्तर के 12 कमरे बनाए गए हैं, उसी तरह नवा रायपुर में भव्य हवेलियां भी 12 ही बनी हैं। दरअसल, मंत्रालय बनाते समय रमन सरकार ने नहीं सोचा होगा कि छत्तीसगढ़ में 13 मंत्री हो सकते हैं, उसी तरह पिछली कांग्रेस सरकार ने भी 12 से अधिक बंगले बनाना मुनासिब नहीं समझा। रमन सिंह सरकार ने 15 साल 12 मंत्रियों में गुजार दिए और कांग्रेस ने पांच साल। 2004 में ही हरियाणा और छत्तीसगढ़ ने 13 मंत्री कर लिया होता तो नए मंत्रियों को न मंत्रालय में बैठने की दिक्कत होती और न ही बंगले की। एक-एक विधायकों को और मंत्री बन जाने का चांस मिलता, वो अलग बात। चलिये, जो बीत गई, वो बात गई।

आईएएस का 2005 बैच

आईएएस का 2005 बैच यूनिटी के मामले में हमेशा एग्जाम्पल सेट करता रहा है। पोस्टिंग का मामला हो या सुख-दुख का, हमेशा एक-दूसरे के लिए खड़े रहते हैं...पोस्टिंग के लिए रास्ता क्रियेट कर देते हैं। इस बैच के छह में से एक ओपी चौधरी अब मंत्री बन चुके हैं। बाकी पांच में मुकेश बंसल सिकरेट्री टू सीएम हैं। रजत कुमार उद्योग के साथ जीएडी सिकरेट्री। जीएडी सीएम के पास है, यानी वे भी सीएम से कनेक्टेड हुए। एस0 प्रकाश ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के साथ ट्रांसपोर्ट सिकरेट्री। श्याम धावड़े को ग्रामोद्योग में शिफ्थ करने के बाद शंगीता अब आबकारी विभाग की होल सोल हो गई हैं। अब नया अपडेट यह है कि कैबिनेट विस्तार में इरीगेशन मुख्यमंत्री के पास आ गया है। इसके सचिव 2005 बैच के राजेश टोप्पो हैं। याने राजेश भी अब सीएम के विभाग वाले हो गए। इस तरह 05 बैच के तीन अफसर सीधे सीएम से कनेक्टेड रहेंगे। एक तो अधिकारिक तौर पर सीएम के सिकरेट्री हैं ही और दो विभागीय सचिव के नाते उनसे जुड़ गए हैं। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में आईएएस का 2005 बैच प्रारंभ से प्रभावशाली रहा है। रमन सिंह सरकार के दौरान भी इस बैच को हमेशा वेटेज मिला। मुकेश जब एमआईटी में पढ़ने यूएस गए तो उनकी जगह रजत कुमार सीएम सचिवालय में आए थे। कांग्रेस सरकार में ये बैच पांच बरस पूरी तरह हांसिये पर रहा। मुकेश और रजत सेंट्रल डेपुटेशन का रास्ता तलाश लिए थे तो आर0 शंगिता किस्मती रहीं कि कोई विभाग नहीं मिला तो कोई कार्रवाई भी नहीं हुई। राजेश टोप्पो का भी यही हाल रहा। मगर यह बैच अब फिर पुराने रौं में आ गया है।

बीजेपी के लिए अलर्ट

71 सीट वाली कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित हो गई थी। मगर वह फिर से खड़े होने की कोशिशों में जुट गई है। रायपुर में जून में बड़ा शो करने के बाद अब पार्टी ग्रासरुट लेवल पर जाकर समुदायों में अपनी पकड़ बनाने का प्रयास कर रही। विश्व आदिवासी दिवस पर कोटा में आदिवासियों पर एक बड़ा जलसा किया गया। एक्स सीएम से लेकर आधा दर्जन से अधिक विधायक इस मौके पर मौजूद रहे। आदिवासियों को इमोशनल तौर पर पार्टी से जोड़ने के लिए कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव में मां महामाया माई से प्रार्थना कर डाली कि कोटा की पहाड़ियों में कोई खनिज संपदा न निकल जाए, जिससे हमारे आदिवासी इलाके खुदाई के शिकार हो जाएं। कहने का आशय यह है कि बीजेपी के लिए अलर्ट होने का समय आ रहा है। पार्टी के नेता इस समय सरकार होने के स्वाभाविक नफे-नुकसान के चक्कर में उलझे हुए हैं, कांग्रेस अपना घर दुरूस्त करने में भिड़ गई है।

नशे के खिलाफ मुहिम?

नशे के चलते छत्तीसगढ़ में बढ़ी अपराधिक घटनाओं को लेकर समाज कल्याण विभाग आगे आया है। सरकार के निर्देश पर समाज कल्याण विभाग के सचिव भूवनेश यादव कैम्पेन चलाने का ड्राफ्ट तैयार कर रहे हैं। सरकार में बैठे लोगों का मानना है कि नशाजनित अपराधों की रोकथाम के लिए पुलिस के साथ समाज कल्याण विभाग को भी आगे आना चाहिए। हालांकि, सच्चाई यह है कि पुलिस अगर मन से चाह लें तो नशे के चेन पर 24 घंटे के भीतर अंकुश लगाया जा सकता है।

एसपी का जोखिम

धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील कहे जाने वाले रायपुर के एक नजदीकी जिले में दुष्कर्म की शिकार एक महिला महीनों से पुलिस थाने और एसपी ऑफिस का चक्कर लगा रही है। मगर कानून के पेशे वाला मुजरिम ऐसी उंची पहुंच वाला है कि पुलिस के हाथ-पांव कांप जा रहे। हालांकि, अपनी गर्दन बचाने पुलिस ने महिला की शिकायत को रोजनामचा में दर्ज कर लिया है मगर एफआईआर नहीं कर रही। जबकि, सुप्रीम कोर्ट की स्पष्ट रूलिंग है कि कोई महिला अगर दुष्कर्म की शिकायत लेकर आती है तो सबसे पहले एफआईआर करना है। ऐसे में, मामला अगर कोर्ट पहुंच गया तो एसपी साब क्या जवाब देंगे? खैर, चरणवंदना पोलिसिंग की दौर में इस तरह का प्रेशर और रिस्क रहता ही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डिप्टी सीएम अरुण साव से विधि-विधायी लेकर उन्हें उससे कहीं बड़ा और एक्सपोजर वाला खेल और युवा कल्याण विभाग दिया गया है, इससे वे खुश होंगे या मायूस?

2. मंत्री केदार कश्यप से इरीगेशन लेकर उन्हें ट्रांसपोर्ट दिया गया, इसके क्या मायने हैं?

शनिवार, 16 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: नए मंत्रीः लिफाफे में किसका नाम?

 तरकश, 17 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

नए मंत्रीः लिफाफे में किसका नाम?

अब जबकि यह साफ हो चुका है कि दो-एक दिन में विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा, नए मंत्रियों के नामों पर सरगर्मियां बढ़ गईं हैं। शपथ लेने वाले मंत्रियों में गजेंद्र यादव का नाम सबसे उपर बताया जा रहा है मगर उनके बाद दो मंत्रियों का नाम क्लियर नहीं है। सत्ता के गलियारों में पांच नाम अवश्य तैर रहे हैं। मगर वो भी ’इफ’ और ’बट’ के साथ। इन पांच में अमर अग्रवाल, संपत अग्रवाल, राजेश अग्रवाल, लता उसेंडी और खुशवंत साहेब हैं। चर्चाएं ये भी हैं कि दो नाम यहां से दिल्ली भेजे गए, उनमें खुशवंत साहेब और संपत अग्रवाल शामिल थे। जातीय समीकरण के हिसाब से खुशवंत साहेब का नाम महत्वपूर्ण है तो पार्टी के कोष प्रबंधन की दृष्टि से संपत अग्रवाल का। अलबत्ता, खुशवंत पर अगर मुहर लग गई तो फिर संपत अग्रवाल का दावा कमजोर हो जाएगा। बहरहाल, इन दोनों के अलावे शपथ लेने वाले संभावितों में अमर अग्रवाल, लता उसेंडी और राजेश अग्रवाल का नाम भी प्रमुख है। राजेश अग्रवाल को मंत्री बनाने में एक पेंच ये आएगा कि सरगुजा संभाग से चार मंत्री हो जाएंगे। रामविचार नेताम, श्याम बिहारी जायसवाल, लक्ष्मी राजवाड़े इस समय सरगुजा से मंत्री हैं। राजनीतिक दृष्टि से अगर इसे समझने की कोशिश करें तो खुशवंत साहेब अगर मंत्री बनते हैं तो फिर लता उसेंडी और संपत अग्रवाल की दावेदारी कमजोर पड़ेगी। फिर सरगुजा से चार मंत्री का इश्यू है ही। ऐसे में, अमर अग्रवाल का पलड़ा भारी होगा। वैसे भी एक बड़ा वर्ग मानता है कि नाम चाहे कोई भी हो...मंत्रिमंडल में एक अनुभवी मंत्री होना चाहिए। मगर होगा वहीं, जो पार्टी और मुख्यमंत्री चाहेंगे। इसके लिए लिफाफा खुलने की प्रतीक्षा करनी होगी। बहरहाल, ये तो एक विश्लेषण हुआ...इस समय चर्चाएं गजेंद्र, खुशवंत और राजेश अग्रवाल की तेज है।

देर आए, दुरूस्त आए

छत्तीसगढ़ में भी अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रारंभ हो जाएगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाषण देते हुए इसका ऐलान किया। जाहिर है, देश में बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे गिने-चुने राज्य बचे हैं, जहां पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू नहीं हुआ है। पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश और ओड़िसा तक में इसकी शुरूआत हो चुकी है। यूपी, पश्चिम बंगाल में पहले से लागू है और साउथ के स्टेट में तो 20 साल से ज्यादा हो गया। अब बात करें छत्तीसगढ़ की, तो यहां पुलिस जिस तरह डिरेल्ड हुई है, उसमें कमिश्नर सिस्टम बहुत पहले लागू हो जाना चाहिए था। हालांकि, रमन सरकार के आखिरी टाईम में भी इसकी बात चली थी। पिछली कांग्रेस सरकार में भी सुगबुगाहट हुई थी, मगर कुछ हुआ नहीं। चलिये देर आए, दुरूस्त आए। छत्तीसगढ़ भी अब कमिश्नर सिस्टम वाले राज्य में शामिल हो गया है। बीजेपी सरकार ने पुलिस में रिफार्म की शुरूआत कर दी है। मगर यह भी सही है कि सिर्फ पुलिस कमिश्नर बिठाने से नहीं होगा। रायपुर में जिस तरह क्राईम बढ़ा है, उससे कोई भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा। इसके लिए पुलिस कमिश्नर को फ्री हैंड देना होगा। रायपुर में इस समय सबसे बड़ी जरूरत लॉ एंड आर्डर को ठीक करने का है। और यह कड़वा सत्य है कि जब तक राजनीतिक हस्तक्षेप रहेगा, ये हो नहीं पाएगा। पिछली सरकार में पेड और रिचार्ज पोस्टिंगों ने पुलिस का कबाड़ा किया और इस सरकार में पेड के साथ भाई साहब वाली पोस्टिंगें पोलिसिंग को खराब कर कर रही है। कई जिलों में ऐसा हो रहा कि सिफारिशी अफसर एसपी आईजी की सुनना पसंद नहीं कर रहे। पुलिस के इस रिफार्म को सफल बनाने के लिए सिस्टम को कठोर फैसला लेना होगा।

खतरे का अलार्म

राजधानी रायपुर में कानून-व्यवस्था को लेकर खतरे का अलार्म तब बज गया था, जब 2022 में एक लड़की ने नशे में एक युवक को चाकुओं से गोदकर मार डाला था। उसके तुरंत बाद हुए कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में तत्कालीन सीएम भूपेश बघेल ने इस घटना का जिक्र करते हुए पोलिसिंग पर सवाल उठाया था। कांफ्रेंस के बाद पुलिस कमिश्नर प्रणाली शुरू करने पर सरकार गंभीर भी दिखी थी...फर्स्ट कमिश्नर कौन होगा, इस पर मंथन भी प्रारंभ हो गया था। मगर परदे के पीछे पता नहीं क्या हुआ कि सरकार ने उसे ड्रॉप कर दिया। बहरहाल, रायपुर में जिस तरह की घटनाएं बढ़ी है, उससे हर छोटा-बड़ा हर आदमी असुरक्षित महसूस कर रहा है। रायपुर में तीन युवाओं की अकारण बेरहमी से की गई हत्या और आरोपियों द्वारा विक्ट्री साइन दिखाने के बाद तो बड़े लोग भी सहम गए हैं। एक आईएएस अफसर ने कहा, हमारे पास गन मैन भी नहीं। न गाड़ी में बत्ती। राह चलते किसी की बाइक कार से टकरा जाए और नशे में चाकू चला दे, कोई भरोसा नहीं। सही है...2022 में लड़की की चाकूबाजी के बाद ही सिस्टम की आखें अगर खुल गई होती तो राजधानी की पोलिसिंग आज शीर्षासन नहीं कर रही होती।

कौन होगा फर्स्ट कमिश्नर?

दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में डीजी लेवल के आईपीएस अधिकारी पुलिस कमिश्नर होते हैं। रायपुर में किस स्तर के अफसर को कमिश्नर बनाया जाएगा, सरकार के तरफ से अभी कोई संकेत नहीं है। मगर यह तय है कि यहां आईजी या एडीजी लेवल का ही कोई कमिश्नर होगा। एडीजी में प्रदीप गुप्ता, विवेकानंद, अमित कुमार और दीपांशु काबरा में से कोई नाम हो सकता है। वैसे सबसे बेस्ट स्थिति यह होगी कि इन एडीजी, आईजी में से किसी को कमिश्नर बना उनके नीचे एक तेज-तर्रार आईपीएस अधिकारी को एडिशनल कमिश्नर बिठा दिया जाए। रायपुर के एक पड़ोसी जिले में एक कप्तान से आजकल अपराधी से लेकर पुलिस महकमा त्रस्त महसूस कर रहा है। अपराधियों से गलबहियां करने वाली उस जिले की पुलिस को एसपी की अतिसक्रियता रास नहीं आ रही। रायपुर को इस वक्त इसी तरह के अधिकारियों की दरकार है। कमिश्नर के लिए अमरेश बढ़ियां च्वाइस हो सकते थे मगर ईओडब्लू और एसीबी में उनके पास ऐसे दायित्व हैं कि सरकार वहां से छोड़ना नहीं चाहेगी। जाहिर है, पुलिस कमिश्नर का सलेक्शन सरकार के लिए कठिन टास्क होगा।

रिफार्म पर करप्शन भारी!

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का 35 साल का राजनीतिक जीवन साफ-सुथरा रहा है, मुख्यमंत्री के तौर पर डेढ़ साल का उनके टेन्योर पर भी कोई उंगलियां नहीं उठी है। मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों की छबि भी ऑनेस्ट और निर्विवाद है। फिर सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि सूबे में करप्शन कम नहीं हो पा रहा बल्कि लेवल और बढ़ता जा रहा। सप्लाई, खरीदी, ठेका का कमीशन 35 परसेंट तक पहुंच गया है। मंत्री खुलेआम अपना 20 परसेंट मांग रहे। वो भी एडवांस। अगर एडवांस पेमेंट नहीं हुआ तो टेंडर या सप्लाई की फाइल आगे नहीं बढ़ेगी। विभागों को अगर रायपुर से परचेजिंग का आदेश जारी कराना है तो पहले कमीशन एडवांस में पे करना होगा। छत्तीसगढ़ के अधिकांश विभागों की यही स्थिति है। इसके बाद विधायकों का अपना परसेंटेज। उस इलाके में सत्ताधारी पार्टी का कोई बड़ा नेता है, तो उसे भी चाहिए। ऐसे में, क्वालिटी की उम्मीद कैसे की जा सकती है। फिर तो 32 हजार में जग खरीदने का टेंडर भरना ही होगा। यह सही है कि करप्शन कभी कम नहीं हो सकता। लेकिन, वह शिष्टाचार तक सीमित रहे तो ठीक है...लूटमारी में बदल जाए तो मामला गड़बड़ समझा जाएगा। सिस्टम के रणनीतिकारों को यह ध्यान रखना होगा कि 72 विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी पांच साल में ही क्यों सत्ता से बाहर हो गई? ऐसा नहीं है कि विष्णुदेव सरकार काम नहीं कर रही। रिफार्म पर कई दूरगामी परिणाम वाले बड़े काम हुए हैं। राजस्व, पंजीयन के बाद पुलिस कमिश्नर सिस्टम भी शुरू होने जा रहा है। नगरीय प्रशासन में भी कई फैसले हुए हैं। मगर हाई रेट के करप्शन के चलते सरकार के रिफार्म के काम कमजोर पड़ जा रहे हैं।

प्रभारी डीजीपी का साइड इफेक्ट

छत्तीसगढ़ में यह पहली दफा हुआ कि राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों के आईपीएस अवार्ड के लिए यूपीएससी की डीपीसी में डीजीपी अरुणदेव गौतम शामिल नहीं हो पाए। जबकि, डीपीसी में संबंधित राज्य के चीफ सिकरेट्री, एसीएस होम और डीजीपी मेंबर होते हैं। इससे पहले सभी डीपीसी में डीजीपी दिल्ली जाते रहे हैं। दरअसल, यूपीएससी का नियम है कि प्रभारी डीजीपी को वह डीपीसी का मेंबर नहीं बनाता। सीधे तौर पर कहें तो यूपीएससी प्रभारी अफसर को मान्यता नहीं देता। हालांकि, अशोक जुनेजा भी 11 महीने तक प्रभारी डीजीपी रहे। मगर उस दौरान कोई डीपीसी नहीं हुई। इसलिए चल गया। मगर इस बार डीपीसी में सिर्फ चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन और एसीएस होम मनोज पिंगुआ शिरकत कर पाए।

मंत्री का भतीजा

एक मिनिस्टर के भतीजे ने टुच्चई करते हुए पेट्रोल पंप के कर्मचारियों से मारपीट कर दी। उपर से धौंस भी जमाया...जानते नहीं, चचा हमारे मंत्री हैं। मगर पुलिस प्रेशर में नहीं आई। महिला कप्तान ने दबंगई दिखाते हुए न केवल गैर जमानती धाराओं में केस दर्ज कराया बल्कि गिरफ्तार कर जेल भी भिजवा दिया। पुलिस की छबि ऐसी कार्रवाइयों से दुरूस्त होगी। और अपराधियों का हौसला पस्त भी।

सीएम का फर्स्ट विदेश प्रवास

सीएम विष्णुदेव साय 21 अगस्त को प्रथम विदेश प्रवास पर रवाना हो रहे हैं। वे जापान में ओसाका वर्ल्ड एक्सपो में हिस्सा लेंगे। इसमें उन्हें आमंत्रित किया गया है। उनके साथ उनके प्रमुख सचिव सुबोध सिंह, उद्योग सचिव रजत कुमार, सीएसआईडीसी एमडी विश्वेष कुमार रहेंगे। कुल मिलाकर टीम काफी छोटी होगी। इंडस्ट्रीज फ्रेंडली नई उद्योग नीति लांच करने के बाद इस एक्सपो से छत्तीसगढ़ में इंवेस्टमेंट की काफी उम्मीदें रहेंगी।

छुट्टी के दिन एक्शन में PHQ

15 अगस्त की थकाउ कार्यक्रम और आज जन्माष्टमी की छुट्टी के बाद आज पुलिस मुख्यालय के एक कॉल से आईजी साहब लोग घबरा गए। एक लाइन का मैसेज था, 12 बजे पूरी तैयारी के साथ वीसी में कनेक्ट होइये। डीजीपी अरुणदेव गौतम के साथ वीसी में खुफिया चीफ अमित कुमार भी मौजूद थे। डीजीपी ने सभी आईजी की क्लास ली। विषय था बढ़ती चाकूबाजी। मीटिंग के तुरंत बाद आईजी ने सभी एसपी को निर्देश जारी कर दिए। आज रात से ही चौक-चौराहों पर पुलिस तैनात होनी शुरू हो गई है। कल से वाहनों की चेकिंग और बढ़ जाएगी। मगर इसके साथ जरूरी यह भी झुग्गी-झोपड़ी बहुल इलाकों में जाकर सघन चेकिंग करना, पता करना कि कौन-कौन नशा कर रहा है। यह काम कोई कठिन नहीं। बस्तियों में लोगों को पता रहता है कि कौन क्या कर रहा है...थानों की पुलिस भी इससे भिज्ञ होती है। मगर जब थानेदारों के संरक्षण में ही नशे का धंधा फल-फूल रहा तो फिर चौराहों पर चेंकिंग से क्या होगा। पुलिस महकमे में आखिर किसको नहीं पता कि स्पा की आड़ में क्या हो रहा और पान दुकानों में क्या बिक रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक महिला डीएसपी ने पत्र के जरिये गृह विभाग की ट्रांसफर पॉलिसी को खूला चैलेंज कर दिया है, इसे किस अर्थ में लेना चाहिए?

2. छत्तीसगढ़ के पांचों आईजी जब निर्विवाद और साफ-सुथरी छबि के हैं, फिर भी पोलिसिंग पटरी पर क्यों नहीं आ पा रही?


शनिवार, 2 अगस्त 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 25 सालः बिना करप्शन एकमात्र काम

 तरकश, 3 अगस्त, 2025

संजय के. दीक्षित

25 सालः बिना करप्शन एकमात्र काम

छत्तीसगढ़ में 25 गुना, 30 गुना अधिक दर पर सरकारी खरीदी एपिसोड के बाद सरकार ने अफसरों को टाईट करना शुरू किया है। मगर यह शाश्वत सत्य है कि सरकारी खरीदी या निर्माण कार्य युगों से ऐसी ही होता आ रहा है। सिर्फ एक मौके को छोड़....जब 33 करोड़ का काम 29 करोड़ में हो गया था। बात 2013 की है। रायपुर के क्रिकेट स्टेडियम में पहला आईपीएल होना था। समय कम था और स्टेडियम का सिर्फ सिविल वर्क हुआ था। सीटिंग अरेंजमेंट से लेकर तमाम काम बचे हुए थे। उस समय सुनिल कुमार चीफ सिकरेट्री थे। तत्कालीन सीएम रमन सिंह ने उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंपी। सुनिल ने तब के स्पोर्ट्स कमिश्नर आईपीएस राजकुमार देवांगन से एस्टीमेट मंगाया। उन्होंने खर्च बताया 65 करोड़। तब तक रायपुर के कुछ सप्लायर माफिया भी एक्टिव हो गए थे। वे 2200 में कुर्सी खरीदने का लगे प्रेशर बनाने। सीएस ने सबसे पहले देवांगन को हटाकर जीतेंद्र शुक्ला को कमिश्नर बनाया। आरपी मंडल पहले से सिकरेट्री स्पोर्ट्स थे। सुनिल कुमार ने दोनों को बुलाकर अपनी मंशा बता दी। कम खर्च में कैसे काम ज्यादा हो जाए, इसके लिए कई दौर की मंथन हुई। सीएस ने कहा कि बिचौलियों से 2200 की कुर्सी खरीदने की बजाए क्यों न मैन्युफैक्चरर्स से बात की जाए। और यही हुआ। मैन्युफैक्चरर से 800 में कुर्सी मिल गई। उपर से कंपनी पर प्रेशर डाल 500 से अधिक कुर्सी ले ली गई कि कही ट्रांसपोर्टिंग में टूट हुई तो कौन क्लेम करने आएगा, उससे अच्छा है कि पहले ही 500 चेयर अधिक दे दो। आईपीएल शुरू होने से हफ्ता भर पहले मंडल और जीतेंद्र न जब सुनिल कुमार को खर्च की रिपोर्ट सौंपी तो पता चला 33 करोड़ की जगह 29 करोड़ में कुर्सी से लेकर सारी गैलरीज बनकर तैयार हो गईं। याने बजट से चार करोड़ कम में काम हो गया। छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद 25 साल में निर्माण और सप्लाई का पहला काम होगा, जो बजट से कम में हो गया।

भावी मंत्रियों को गुड न्यूज!

मुख्यमंत्री जैसे राज्यों के प्रमुखों को भी प्रधानमंत्री से मिलना आसान नहीं होता। वो भी मोदी जैसे पीएम से तो और मुश्किल। तभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को साल में दो-एक बार ही पीएम से मिलने का अवसर मिल पाता है। मगर छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णुदेव साय शपथ लेने के बाद डेढ़ साल में पांच बार पीएम मोदी से वन-टू-वन मिल चुके हैं। हर दो-तीन महीने में उनकी पीएम और गृह मंत्री से मुलाकात हो जाती है। जाहिर है, उनके समकक्षों को यह जानने की उत्सुकता होगी कि विष्णुदेव को पीएमओ से टाईम कैसे मिल जाता है...आखिर वो चैनल कौन-सा है? बहरहाल, पिछले छह महीने में जितने बार विष्णुदेव पीएम मोदी और अमित शाह से मिले हैं, हर बार मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें तेज हुई है। हर बार लगता है...सीएम ने जरूर इस पर बात की होगी। इस बार भी लोगों को लग रहा कि कुछ होगा। हालांकि, दिल्ली से लौटने पर सीएम ने मीडिया से कहा, इंतजार कीजिए, मगर उनके बॉडी लैंग्वेज से लग रहा था कि इस बार कुछ खास होगा...भावी मंत्रियों को जल्द गुड न्यूज मिल सकता है।

चीफ सिकरेट्री का गुस्सा

शीर्षक आपको अटपटा लगेगा...सोचेंगे मुख्य सचिव अमिताभ जैन कभी गुस्सा भी करते हैं? मगर बुधवार को रायपुर-बिलासपुर हाईवे पर 18 गायों की दर्दनाक मौत पर अमिताभ ने कलेक्टर, और एसपी के व्हाट्सएप ग्रुप में जो लिखा, वह हैरान करने वाला था। दो मिनट के भीतर धड़ाधड़ भेजे चार मैसेज से सूबे के कलेक्टर, एसपी हिल गए। कई कलेक्टर, एसपी ऑफिस और घरों से निकलकर शहरों में गायों को देखने चले गए। एक जिले की पुलिस ने घंटे भर के भीतर दो मवेशी मालिकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बता दें, छत्तीसगढ़ की गोठान बनी सड़कें हाई कोर्ट के संज्ञान में है। हर महीने चीफ सिकरेट्री को होई कोर्ट में स्टेट्स रिपोर्ट देनी होती है। बावजूद इसके हफ्ते भर में 90 से अधिक गायों की मौत हो गई, तो सीएस को गुस्सा तो आएगा ही।

छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य

छत्तीसगढ़ में 95 परसेंट से अधिक हिन्दू हैं। अब हिन्दू धर्म में गायों का क्या स्थान है, इसे बताने की जरूरत नहीं। मगर दुर्भाग्य यह है कि सड़क हादसों में गायें अगर सबसे अधिक जान गंवा रही है तो वह छत्तीसगढ़ है। पिछले एक हफ्ते में चार अलग-अलग दुर्घटनाओं में 90 गायों की मौत हो चुकी हैं। इन गायों को ट्रकों और हाईवा ने बेरहमी से कुचल दिया। यही नहीं, गायों से टकराकर वाहन चालक भी हादसे का शिकार हो रहे हैं...जान गंवा रहे हैं। दरअसल, सूबे में गोवंश को लेकर गांवों से लेकर शहरों तक हालत बेहद खराब है। देश के किसी भी राज्य में आप गो माता के प्रति इतनी निर्दयता नहीं देखेंगे कि दूध देना बंद कर दिया तो उन्हें सड़कों पर अवारा घूमने के लिए छोड़ दिया। राजधानी रायपुर के चकाचौंध वाले इलाकों में भी आपको सड़कें घेर कर बैठी गायें मिल जाएंगी...कवर करके बनाया गया केनाल और वीआईपी रोड तक इससे अछूता नहीं है। जरा सोचिए, बाहर से आने वाले लोग छत्तीसगढ़ की क्या छबि लेकर जाते होंगे। दरअसल, मवेशियों को अवारा छोड़ना छत्तीसगढ़ में यह सामाजिक समस्या बनता जा रहा है। छत्तीसगढ़ का नाम खराब होने से बचाने प्रशासन के साथ हिन्दू संगठनों को भी आगे आना होगा।

ये तीन उपाय

छत्तीसगढ़ में सिस्टम इतना बेपटरी हो चुका है कि जिस काम में पैसा नहीं, उधर सरकारी मुलाजिमों को देखना गवारा नहीं। अब गायों की रोकथाम करने से क्या मिलने वाला। उपर से कार्रवाई कर दिए तो फिर धरना, प्रदर्शन, घेराव की सियासत झेलो। पिछली सरकार ने गोठान जैसी अच्छी योजना शुरू की थी मगर सही क्रियान्वयन के अभाव में इसने दम तोड़ दिया। सिस्टम अगर वाकई ईमानदारी से इस सामाजिक समस्या का निराकरण चाहता है तो उसे कांजीहाउस की व्यवस्था फिर से दुरूस्त करनी होगी। ढाई-तीन दशक पहले नगरीय निकायों से लेकर ग्राम पंचायतों में कांजी हाउस इतना सक्रिया होता था कि लोग अपने मवेशियों को खुला छोड़ने में घबराते थे। दूसरा, जुर्माना के प्रावधान को कड़ा किया जाए, और तीसरा...ग्राम पंचायतों के सचिव जी लोगों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाए। जनपद पंचायतों के सीईओ की मॉनिटरिंग में ग्राम पंचायतों के सचिव मवेशियों पर नजर रखें। ग्राम पंचायतों में लाखों रुपए का बजट आता है, सरपंच, सचिव दिन भर वन टू के फोर...खेल में लगे रहते हैं। लगभग सभी जिलों में वेटनरी की टीम है। उनकी भी एकाउंटबिलिटी बनती है। रही बात शहरी इलाकों की तो कलेक्टरों को रिर्चाज किया जाए...दो-चार बार वे खुद फोटो खिंचकर निगम कमिश्नर और नगरपालिका के सीएमओ को भेज देंगे, उतने में काम हो जाएगा। लेकिन, उसके लिए कलेक्टरों को अवेयर होना पड़ेगा। उसके बाद सड़कों पर न तो गाय मरेंगी, न वाहन चालक हादसों के शिकार होंगे...न कोर्ट का समय खराब होगा।

मंत्री को एक और डिप्टी कलेक्टर

राज्य सरकार ने स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्यामबिहारी जायसवाल के स्टाफ में एक और डिप्टी कलेक्टर दिया है। श्यामबिहारी के पास पहले से राप्रसे अधिकारी हिमांचल साहू विशेष सहायक थे। अब 2021 बैच के राप्रसे अफसर कमल किशोर को उनका ओएसडी बनाया गया है। आमतौर पर मंत्रियों के निजी स्टाफ में एकाध डिप्टी कलेक्टर होते हैं। राप्रसे अधिकारियों को विशेष सहायक बनाने की परंपरा पिछली सरकार में चालू हुई। रमन सरकार में भी सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल के पास राप्रसे अधिकारी विशेष सहायक थीं। मगर अब तो सभी मंत्रियों के स्टाफ में राप्रसे अधिकारी हैं तो किसी के पास दो-दो। असल में, छत्तीसगढ़ में डिप्टी कलेक्टरों की स्थिति चना-मुर्रा की तरह हो गई है। इतने छोटे स्टेट में संख्या 500 को क्रॉस कर गया है। 2013 बैच के बाद वालों की तादात इतनी है कि बेचारों को आईएएस अवार्ड भी नहीं हो पाएगा। बहरहाल, मंत्री के स्टाफ में काम करने का अपना अलग आकर्षण होता है। मंत्रियों के पीएस लोगों का जलवा देख ही रहे हैं...कई पीएस मंत्री को चला रहे हैं।

सीईओ पोस्टिंग का मापदंड

'तरकश' में हमने गरियाबंद और जीपीएम जिले में पीएम आवास योजना की बदहाली का जिक्र किया था। यह भी बताया था कि बालोद में संजय कन्नौजे के कलेक्टर बनकर जाने के बाद तीन महीने से जिला पंचायत सीईओ का पद खाली है। राज्य सरकार ने राप्रसे अधिकारियों के 75 लोगों का लिस्ट निकाला, उसमें गरियाबंद और जीपीएम के सीईओ को हटा दिया, वहीं बालोद में नए सीईओ की तैनाती कर दी। मगर इससे के सिस्टम को चिंतन करना चाहिए कि सिर्फ उपकृत करने के लिए जिला पंचायत जैसे महत्वपूर्ण संस्था में किसी की भी नियुक्ति न कर दें। जाहिर है, सरकार की सारी जमीनी योजनाएं जिला पंचायतों के जरिये संचालित होती है। मध्यप्रदेश के जमाने में जब डीआरडीए होता था, उस समय भी डायरेक्ट आईएएस की पोस्टिंग होती थी। छत्तीसगढ़ में स्थिति यह है कि नायब तहसीलदार से प्रमोट होकर डिप्टी कलेक्टर बने अधिकारियों को जिला पंचायतों का सीईओ बना दिया जा रहा। पोस्टिंग का लेवल इतना गिर जाएगा, कोई सोचा नहीं होगा। गनीमत है, सरकार ने अब इस विसंगति को दूर कर दिया है। मगर पीएम आवास जैसी योजनाओं को बदहाली से बचाने आगे इसे ध्यान रखना होगा।

ऐसे भी अफसरः 172 करोड़ का MOU

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी देश में बदनाम जरूर हो गई है मगर इसका मतलब यह नहीं कि सारे-के-सारे अफसर पथभ्रष्ट हो चुके हैं। आखिर, 25 साल में राज्य ने तरक्की किया है तो उसमें अच्छे अधिकारियों का योगदान रहा। इस समय भी कई ब्यूरोक्रेट्स साइलेंटली ऐसा काम कर रहे, जो पब्लिक डोमेन में नहीं आ रहा। रायपुर से लगे पड़ोसी जिले के एक आईआईटीयन कलेक्टर ने रायपुर में निगम कमिश्नर रहते ऐसी पहल करी कि अगले हफ्ते एक बड़ा एमओयू होने जा रहा है। आईएएस ने नेट पर सर्च कर पता किया कि छत्तीसगढ़ का कौन सा उद्योगपति राज्य के लिए कुछ कर सकता है। देश के टॉप की इंवेस्टमेंट कंपनी मोतीलाल फाउंडेशन के मालिक रामदेव आरंग के रहने वाले हैं। इस समय वे 1.7 बिलियन डॉलर की कंपनी के वे मालिक हैं। आईएएस की पहल पर रामदेव अग्रवाल रायपुर आईआईएम को 101 करोड़ और एनआईटी को 71 करोड़ रुपए देने जा रहे हैं। कुल 172 करोड़। प्रवासी भारतीय सम्मेलन की तरह छत्तीसगढ़ सरकार को रायपुर में एक प्रवासी छत्तीसगढ़ियां का एक सम्मेलन कराना चाहिए। बीएसपी की वजह से भिलाई में पले-बढ़े कई लोग देश-विदेश में बडा काम कर रहे हैं। उन्हें यदि बुलाकर उनके काम को सम्मान दिया जाएगा तो उससे राज्य को काफी लाभ होगा। ब्रांडिंग होगी, सो अलग।

बाढ़े पूत पिता के धरमे

पुरानी कहावत है, बाढ़े पूत पिता के धरमे...याने पिता के पुण्य का लाभ उसके संतान को मिलता है। मगर वर्तमान दौर में यह कहावत निरर्थक हो चली है। जमाना अब वृद्धाश्रम का आ रहा है। पिता अगर घर में हैं भी तो पुराने सामान की तरह कमरे में उपेक्षित पड़े होते हैं। बेटों का लगता है, वे पिता को साथ रखकर परिवार पर अहसान कर रहे हैं। ऐसे समय में बिलासपुर नगर निगम के एक रिटायर चीफ इंजीनियर द्वारा हाल ही में अपने पिता का 95वें जन्मदिन पर भव्य आयोजन करना युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन सकता है। वक्त की जरूरत है कि ऐसे आयोजनों की संख्या बढ़नी चाहिए...पिता की लंबी आयु के चलते अगर बेटों को ऐसा मौका मिलता है, तो उसे इनकैश कर समाज को एक मैसेज देना चाहिए, कम-से-कम इससे कुछ बुजुर्गो को सम्मान तो मिलेगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के एक प्रभावशाली मंत्री 30 जुलाई की रात नौ बजे हाई कोर्ट परिसर क्यों पहुंचे थे?

2. आईएएस की ट्रांसफर लिस्ट निकलते-निकलते क्यों और कहां रुक गई?

शनिवार, 26 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरों को सरकार की वार्निंग

 तरकश, 27 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरों को सरकार की वार्निंग

34 हजार में स्टील का जग, एक हजार का चप्पल और एक लाख की टीवी...सरकारी खरीदी के इस एपिसोड ने आम आदमी को चौंकाया ही, सरकार को भी हिला कर रख दिया। हालांकि, इसके बाद सरकार हरकत में आई...ताजा अपडेट यह है कि सीएम सचिवालय ने सभी सचिवों और डायरेक्टर्स-कमिश्नरों को व्हाट्सएप मैसेज भेज कड़ी चेतावनी दी है। सचिवों और विभागाध्यक्षों से दो टूक कहा गया है कि फलां साहब ने बोला...फलां जी ने ऐसा करने कहा...नहीं चलेगा। आप खरीदी प्रक्रिया से लेकर उसके नियमों पर कड़ी नजर रखेंगे। और आगे से कोई भी गड़बड़ी होगी तो उसके लिए सीधे सचिव और एचओडी जिम्मेदार होंगे। जिला स्तर पर अगर कोई खरीदी हो रही तो निगरानी का दायित्व कलेक्टरों का होगा। अब देखना है कि इस चेतावनी से आएं-बाएं होने वाली सरकारी खरीदी पर कितना अंकुश लगता है?

वसूली का निज सचिव

सीएम सचिवालय ने सचिवों और एचओडी को चेतावनी जारी कर दिया मगर जब तक मंत्रियों के निज सचिवों को टाईट नहीं किया जाएगा, तब तक इसका कोई खास असर नहीं होगा। दरअसल, छत्तीसगढ़ में सरकारी खरीदी का नया ट्रेंड शुरू हो गया है। सचिवों का जो हिस्सा बनता था, वह मिल जा रहा मगर उसकी पूरी मॉनिटरिंग मंत्रियों के बंगले से हो रही है। 10 में से कम-से-कम आठ मंत्रियों के निज सचिव बंगले से पूरा खेल कर रहे हैं। बंगले से ही सप्लायरों से डील होती है। दो-एक मंत्री तो अपने निज सचिवों के जाल में फंसकर अपनी बरसों से बनी-बनाई छबि को तार-तार कर लिया है। खटराल निज सचिवों ने ऐसा चस्का लगा दिया कि पूछिए मत! आखिर, आई हुई लक्ष्मीजी को ठुकराने का साहस सबमें होता नहीं। ऐसे में, मंत्रियों के स्टॉफ की मनमानी बढ़ेगी ही। बात मिलियन की है...निज सचिवों पर सरकार ने अगर लगाम नहीं लगाया तो सरकार के साथ कई मंत्रियों की छबि धूल-धूसरित होगी। अब भला बताइये, अटलजी जैसे बीजेपी के प्रातः स्मरणीय नेता की प्रतिमा में कमीशन मांगा जाए तो फिर तो फिर इसके बाद कुछ बचता है क्या?

खरीदी का खेल

1000 का चप्पल और एक लाख की टीवी पर सोशल मीडिया में खूब ट्रेंड हुआ...मगर यह कुछ भी नहीं है। 2020 से लेकर 2022 तक आत्मानंद अंग्रेजी स्कूलों में डीएमएफ से खरीदी में सूबे के कलेक्टरों ने जो खेल किया, उसके सामने ये कुछ भी नहीं है। कई जिलों में सप्लायर लाल हो गए...25 हजार का डिजिटल बोर्ड कलेक्टरों ने डेढ़ से दो लाख में खरीदा था। इसी तरह फर्नीचर से लेकर यूनिफार्म, स्कूलों का रिनोवेशन के काम में कलेक्टरों ने करोड़ों पिट डाला। ये अलग बात है कि जो पकड़ा गया वह चोर, जो बच गया ईमानदार। सरकार आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल की सिर्फ खरीदी की जांच करा दें तो कई आईएएस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

कमिश्नर सिस्टम में रोड़ा?

छत्तीसगढ़ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने गृह विभाग ने पुलिस महकमे से रिपोर्ट मंगाई थी। फर्स्ट फेज में रायपुर और भिलाई-दुर्ग को मिलाकर पुलिस कमिश्नरेट बनाने का प्लान था। रायपुर और दुर्ग पुलिस ने इसके लिए सरकार को विस्तृत रिपोर्ट भेज दी थी। मगर चार महीने से ज्यादा हो गया, रायपुर में पुलिस कमिश्नर बिठाने कोई सुगबुगाहट नहीं है। हालांकि, पहले भी कई बार रायपुर और बिलासपुर में पुलिस कमिश्नर बिठाने की बातें हुई मगर उसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया। अलबत्ता, पिछली सरकार ने कमिश्नर सिस्टम लागू-लागू करते-करते रायपुर रेंज को दो हिस्सों में बांट दिया था। दिसंबर 2024 में सरकार बदली तो दोनों को एक किया गया। बहरहाल, एमपी गवर्नमेंट ने भोपाल, इंदौर और जबलपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू कर दिया है। छत्तीसगढ़, बिहार जैसे बहुत कम राज्य बच गए हैं, जहां अभी तक पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू नहीं हो पाया है। बहरहाल, रायपुर अगर पुलिस कमिश्नरेट बन गया तो आईजी स्तर का कमिश्नर होगा, वहीं एसपी स्तर के कम-से-कम चार डिप्टी पुलिस कमिश्नर होंगे। राजधानी बनने के बाद रायपुर में 25 साल में जिस तरह किसिम-किसिम के क्राइम बढ़े हैं, उसमें कमिश्नर सिस्टम अब जरूरत बन गया है। जाहिर है, पुलिस में रिफार्म की दिशा में भी यह बड़ा प्रयास होगा।

अस्पताल की मौत!

ये शीर्षक आपको अटपटा लग सकता है...अस्पताल में मरीजों की मौत होती है...अस्पताल भला कैसे मर सकता है। मगर रायपुर के डीकेएस सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल के संदर्भ में यह शीर्षक मौजूं है। बीजेपी की तीसरी सरकार के दौरान इस खाली पड़े मंत्रालय भवन को सुपरस्पेशलिटी अस्पताल बनाने का मसविदा तैयार किया गया था, उसे पढ़कर कोई भी चकित हो जाएगा। एम्स की तरह इसे डेवलप किया जाना था। इसके सिविल वर्क के लिए पीडब्लूडी ने 19 करोड़ का बजट दिया था। मगर सीजीएमएससी ने उसे नौ करोड़ में कंप्लीट कर दिया। तब सीजीएमएससी में 40 परसेंट वाला हिसाब-किताब शुरू नहीं हुआ था। बहरहाल, डीकेएस का मसविदा में स्पष्ट तौर पर लिखा था कि दिल्ली एम्स की तरह आईएएस को इस अस्पताल का प्रशासक बनाया जाएगा। देश के नामी डॉक्टरों का पैकेज की बात आई तो सिस्टम में बैठे लोगों ने कहा कि सात-आठ लाख रुपए से कम में कोई सुपरस्पेशिलिटी वाला डॉक्टर रायपुर नहीं आएगा और चूकि चीफ सिकरेट्री का वेतन ढाई लाख है, इसलिए इससे अधिक डॉक्टरों को वेतन दिया नहीं जा सकता। इस पर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर भड़क गए थे। बोले, चीफ सिकरेट्री का काम अलग है और डॉक्टर का काम अलग। चीफ सिकरेट्री राज्य की योजनाओं को एक्जीक्यूट करता है और डॉक्टर लोगों की जान बचाता है। इसलिए, अच्छे डॉक्टरों को बुलाने जितना लगे उतना देकर लाया जाए। बताते हैं, इसके लिए सीएम रमन सिंह भी तैयार हो गए थे। मगर अस्पताल पूर्ण स्वरूप में आता, तब तक विधानसभा चुनाव आ गया और सरकार चली गई। इसके बाद डीकेएस को सेपरेट संस्था बनाने और आईएएस पोस्ट करने की बजाए सिस्टम ने इसका गला घोंट दिया। डीकेएस को रायपुर मेडिकल कॉलेज के डीन के अधीन कर दिया गया। अब जरा सोचिए, जो लोग आंबेडकर अस्पताल को ठीक से नहीं चला पाए, वे सुपरस्पेशलिटी को कैसे चलाएंगे। और, वही हुआ...पिछले छह साल में डीकेएस अस्पताल तड़प-तड़पकर मरने जैसा हो गया। आज की तारीख में इस सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल का कहीं कोई नाम नहीं सुनने में आता।

प्रायवेट अस्पतालों में हड़कंप

डीकेएस सुपरस्पेशलिटी के बारे में सरकार की प्लानिंग सुन प्रायवेट अस्पताल मालिक सहम गए थे। मंत्रालय से लेकर हर उस चौखट पर विरोध कराया गया, जहां से राहत मिल सकती थी। दरअसल, प्रायवेट अस्पताल की लॉबी नहीं चाहती कि कोई सरकारी अस्पताल सक्षम बने। यही वजह है कि सरकारी अस्पतालों में लाखों, करोड़ों की मशीनें तो खरीद ली जाती है मगर उसकी पेकिंग तक नहीं खोली जाती। और खुली भी तो महीने-दो महीने में कर दिया जाता है खराब घोषित। रायगढ़ निवासी मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ0 राजीव राठी इस समय दिल्ली के मैक्स अस्पताल में हैं। अपने स्टेट को लेकर वे बड़े संजीदा रहते हैं। रमन सिंह की दूसरी पारी में उनके साथ स्वास्थ्य विभाग ने कंट्रेक्ट किया था कि महीने में दो बार रायपुर आकर वे आंबेडकर में मरीजों को देख जाए। मगर प्रायवेट अस्पताल से कमीशन लेने वाले आंबेडकर हॉस्पिटल के लोग बार-बार कैथलेब को खराब कर देते थे। ऐसे में, कई बार डॉ0 राठी को उल्टे पावं दिल्ली लौटना पड़ा। आंबेडकर अस्पताल वालों का लक्षण देख डॉ0 राठी ने रायपुर आना बंद कर दिया। उधर, डीकेएस सुपरस्पेशलिटी को फेल करने में आखिरकार 2019 में कामयाबी मिल गई। स्वास्थ्य विभाग ने आदेश जारी कर डीकेएस को रायपुर डीन के अधीन कर दिया। इसके साथ ही एम्स जैसे सरकारी संस्थान बनाने की प्लानिंग भी ध्वस्त हो गई।

छोटे नवाब, फॉर्चूनर गाड़ी

एक वो भी समय था, जब सरकारी अफसरों को पोस्ट के अनुसार गाड़ी दी जाती थी। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी करीब 2010 तक कलेक्टर, एसपी के पास एंबेसडर कार होती थी और उनके नीचे के अधिकारियों के पास बोलेरो या स्वीफ्ट, इंडिगो जैसी गाड़ियां। मगर उसके बाद छत्तीसगढ़ की अफसरशाही में रामराज आ गया। अब आलम यह है कि गाड़ियों से आप पहचान नहीं पाएंगे कि किसमें सिकरेट्री, कलेक्टर या एसपी साहब होंगे और किसमें एसडीएम, एसडीओपी या कोई ंक्लास टू का अफसर। इन दिनों मलाईदार विभागों के क्लास टू के अफसर भी इनोवा में चलते हैं और कलेक्टर, एसपी और सिकरेट्री भी। सिस्टम में किसका ओहदा बड़ा है, किसका छोटा...सूबे में यह फर्क मिट गया है। छत्तीसगढ़ के बड़े नौकरशाहों ने अपना दिल इतना बड़ा कर लिया है कि इन छोटी-मोटी बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। फिलहाल, शीर्षक के हिसाब से बात छोटे नवाब, फार्चूनर गाड़ी की तो, यह मसला ट्राईबल विभाग से जुड़ा है। जाहिर है, यह विभाग हाल में 32 हजार का जग खरीदने को लेकर परम कुख्याती हासिल कर चुका है। इस विभाग के कुछ असिस्टेंट कमिश्नर 35 लाख की फॉचॅूनर गाड़ियों में चलते हैं। वे बकायदा कलेक्टर की मीटिंगों में भी जाते हैं। इससे समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में क्या चल रहा है।

फायनेंस का ब्रेकर खतम

हालांकि, वित्त विभाग का नियम है कि सरकारी अफसरों के लिए 10 लाख से अधिक की गाड़ियां नहीं खरीदी जा सकती। इससे अधिक की लेनी हो तो फायनेंस से स्वीकृति लेनी होगी। डीएस मिश्रा के फायनेंस सिकरेट्री रहते तक अफसर उनके आगे-पीछे चिरौरी करते रहते थे कि कृपा होने पर वे पंसदीदा गाड़ी खरीद सकें। मगर अब भारत सरकार की इतनी योजनाएं आ गईं कि फायनेंस से पूछने की कोई जरूरत नहीं। जो भी गाड़ी किराये से ले लो, बिल विभाग वहन करेगा। कई जिलों के कलेक्टर, एसपी जैसे अथॉरिटी माने जाने वाले अफसर भी किराये की गाड़ियों में आपको दिख जाएंगे। हालांकि, वित्त सचिव मुकेश बंसल ने कुछ महीने पहले किराये की गाड़िया हायर करने पर बंदिशें लगाई थीं मगर पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने अपना आदेश वापिस ले लिया।

आईपीएस की पार्टी

अरसे बाद रायपुर के पुलिस ऑफिसर्स मेस में आईपीएस की फेमिली पार्टी हुई। रायपुर में पोस्टेड सारे आईपीएस के साथ ही राजधानी के आसपास के जिलों के कप्तानों को भी इसमें बुलाया गया। आईएएस की तो अक्सर कोई-न-कोई पार्टी होती रहती हैं। मंत्रालय वाले महीने में एक लंच का आयोजन कर लेते हैं...साल में आईएएस कांक्लेव भी हो जाता है। मगर आईपीएस अधिकारी इस तरह की गैदरिंग न होने से दुखी रहते थे। चलिये आईएएस अधिकारियों की ये शिकायत दूर हुई।

छत्तीसगढ़ से उपराष्ट्रपति?

यूपीए शासनकाल में उप राष्ट्रपति के लिए छत्तीसगढ़ के मोतीलाल वोरा का नाम चर्चा में था। मगर बाद में कांग्रेस ने वोट बैंक की दृष्टि से हमीद अंसारी को उप राष्ट्रपति बनाना मुनासिब समझा। इस समय जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से देश की दूसरी सबसे बड़ी कुर्सी खाली है। भारत निर्वाचन आयोग ने उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए प्रॉसेज प्रारंभ कर दिया है। रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति हो गई है। बहरहाल, छत्तीसगढ़ के पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज ने सात बार के सांसद तथा तीन राज्यों के राज्यपाल रहे रमेश बैस को इस चेयर पर बिठाने का पत्र लिखा है। हालांकि, विशुद्ध रूप से बैज द्वारा छोड़ा गया यह सियासी शगूफा है। मगर यह भी सत्य है कि उप राष्ट्रपति बनने लायक छत्तीसगढ़ में दो बड़े फेस तो हैं। इनमें से एक की किस्मत तो बड़ी तगड़ी है। वैसे भी राजनीति में कब किसके सितारे बुलंद हो जाए और कब बूझ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

'टाटा' को झटका

ग्राम पंचायतों में नेटवर्किंग का काम करने वाली टाटा कंपनी को बड़ा झटका लगा है। भारत नेट परियोजना के तहत उसे पांच हजार से अधिक गांवों में इंटरनेट के लिए फाइबर बिछाना था। मगर 1600 करोड़ पेमेंट हो जाने के बाद भी पता चल रहा कि 50 के करीब गांव में ही इंटरनेट फंक्शन कर रहा है। टाटा कंपनी के खिलाफ 'चिप्स' ने तगड़ा एक्शन लेते हुए न केवल टेंडर निरस्त कर दिया है बल्कि 170 करोड़ की बैंक गारंटी जब्त कर ली है। जाहिर है, टाटा जैसी कंपनी का इतने बड़े स्तर पर कहीं बैंक गारंटी सीज नहीं हुई होगी। असल में, टाटा नेटवर्किंग कंपनी के अधिकारियों ने काम ही ऐसा किया...क्रेडिबल कंपनी का रेपो खुद से खराब कर दिया।

मंत्रिमंडल विस्तार

जिस तरह जगदीप धनखड़ ने उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देकर पूरे देश को चौंका दिया, उसी तरह भारतीय जनता पार्टी के नेता विष्णुदेव कैबिनेट का विस्तार की सूचना देकर लोगों को चकित कर दें तो बात अलग है। वरना, मंत्रिपरिषद विस्तार का मामला अब ठंडे बस्ते में ही समझिए। इस समय स्थिति यह है कि मंत्रिमंडल विस्तार पर सरकार से लेकर बीजेपी तक कोई बात करने तैयार नहीं है। मंत्री पद के दावेदारों को अब थोड़ी-बहुत उम्मीद बची है तो बिहार चुनाव से। बिहार में इस साल नवंबर में विधानसभा चुनाव है। यादव वोटरों पर डोरे डालने बीजेपी गजेंद्र यादव को मंत्री बना सकती है। संघ पृष्ठभूमि के गजेंद्र का नाम शुरू से चर्चाओं में है। सियासी पंडितों का कहना है कि गजेंद्र के भरोसे मंत्रिमंडल विस्तार हो गया तो ठीक है, नहीं तो फिर 10 मंत्रियों के भरोसे ही सब कुछ चलता रहेगा...जैसा कि इस समय चल रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सिकरेट्री या प्रिंसिपल सिकरेट्री रैंक के आईएएस को स्टेट कैपिटल रीजन का सीईओ बनाया जाएगा, आप इस लायक तीन अफसरों का नाम बताइये?

2. आगरा यूनिवर्सिटी से छत्तीसगढ़ का क्या कनेक्शन है कि वहां के दो-दो प्रोफेसर यहां कुलपति बन गए?

शनिवार, 19 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: प्लेसमेंट का बड़ा खेल

 तरकश, 20 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

प्लेसमेंट का बड़ा खेल

विधानसभा के प्रश्नकाल में कल अजय चंद्राकर के सवाल के जवाब में खुलासा हुआ कि राजधानी रायपुर में आठ साल पहले खुला दिव्यांग कॉलेज प्लेसमेंट के लोगों से संचालित हो रहा है। प्लेसमेंट के लोग वहां तबला वादन भी सीखा रहे और कंप्यूटर चलाना भी। कॉलेज के लिए स्वीकृत 31 पदों से 30 पद आठ साल से खाली हैं। कह सकते हैं, सिस्टम ने दिव्यांगों के कॉलेज को भी दिव्यांग बना दिया। बहरहाल, ये सिर्फ एक कॉलेज का मामला नहीं है। रायपुर के सरकारी डेंटल कॉलेज के प्रिंसिपल भी कई साल तक प्लेसमेंट में रहे। छत्तीसगढ़ में प्लेसमेंट का वायरस दशक भर पहले आया और अब कड़वा सच यह भी कि सरकार का कोई विभाग ऐसा नहीं, जो प्लेसमेंट नाम के वायरस से बचा हो। कई विभागों की स्थिति यह है कि वहां रेगुलर स्टॉफ से ज्यादा प्लेसमेंट के लोग हो गए हैं। चाहे वह इंद्रावती भवन हो या फिर मंत्रालय। मंत्रालय के प्यून भी प्लेसमेंट में हैं। दिक्कत यह है कि प्लेसमेंट के इन मुलाजिमों पर सरकार का पैसा भी खर्च हो रहा और विधानसभा के हर सत्र में उसे इस सवाल का सामना भी करना पड़ता है...फलां-फलां विभाग में इतना पद खाली क्यों?

प्लेसमेंट में बड़ा खेल-1

प्लेसमेंट एजेंसियों के लिए छत्तीसगढ़ चारागाह बनता जा रहा है। दस साल पहले जो कंपनियां लाखों में थीं अब करोड़ों में खेल रही हैं। छत्तीसगढ़ की शोहरत सुन देश भर से कंपनियां रायपुर भागे आ रही हैं। दरअसल, इस काम में प्लेसमेंट कंपनियों को सिर्फ फायदे-ही-फायदे हैं। इसमें अफसरों को एक बार उनकी कीमत दे दो उसके बाद फिर उसका दस गुना वसूलते रहो। बता दें, आजकल प्लेसमेंट में भर्ती के लिए भी लोगों को मोटा रिश्वत देना पड़ रहा है। शर्त ये भी होती है कि महीने की सेलरी का इतना परसेंट प्लेसमेंट एजेंसी को देना होगा। फिर, किस एजेंसी के कितने लोग कागजों पर काम कर रहे और कितने टेबल पर, इसे कोई देखता नहीं। जो देखने वाला है, वह पहले ही अपनी कीमत ले चुका होता है। बड़े अफसरों को उपकृत करने उनके कुछ नाते-रिश्तेदार या करीबी को लाखों की सेलरी में इंगेज कर देती हैं। कुल मिलाकर प्लेसमेंट के इस खेल में पिस रहे हैं तो वहां काम करने वाले कर्मचारी। पहले सरकारी नौकरी के लिए पैसे देने होते थे मगर अब प्लेसमेंट में भी घूस देने पड़ रहे, उपर से कुछ महीने में रिचार्ज कराने का झंझट भी। उपर से, प्लेसमेंट कर्मचारियों की कोई एकाउंटबिलिटी होती नहीं, सो कई ऐसी जानकारियां भी लीक हो रही, जो पहले गोपनीय होती थीं।

स्पीकर की नसीहत

दिव्यांग कॉलेज के खाली पदों का मामला विधानसभा में उठा तो समाज कल्याण मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने विपक्ष पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि 2017 में पद स्वीकृत हुए थे, 2018 में हमारी सरकार हार गई। इसके बाद कांग्रेस की सरकार ने पांच साल में कुछ नहीं किया। दरअसल, पिछले कुछ सत्रों में कई मंत्रियों ने पिछली सरकार का नाम लिया तो इसका औचित्य भी था। मगर अब काफी समय हो गया है। सो, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने इसे पकड़ लिया। उन्होंने तल्खी से कहा...आप ये कहकर बच नहीं सकतीं...अब आपको डेढ़ साल हो गया है...सीधा-सीधा बताइये कि आप कब तक व्यवस्था सुधार देंगी। स्पीकर के इस दो टूक पर मंत्री किंचित सकपकाई, फिर बोली...जल्द-से-जल्द वे कोशिश करेंगी।

जेम का खेल

छत्तीसगढ़ में करप्शन का रिकार्ड बन जाता। 32 हजार में स्टील का जग आदिवासी हॉस्टल में सप्लाई हो चुका होता...मगर उससे पहले पकड़ में आ गया। और, राज्य का नाम खराब होने से बच गया। दरअसल, जेम का यह खेल सिर्फ छत्तीसगढ़ में नहीं है। बाकी राज्यों में कार्रवाई होती है, इसलिए वहां सप्लायरों में डर होता है...छत्तीसगढ़ में आज तक किसी सप्लायर और अधिकारी को उल्टा टांगा नहीं गया, सो लिमिट क्रॉस कर गया है। खैर, सिस्टम के लिए यह गंभीर चिंतन का सब्जेक्ट हो सकता है कि सप्लायरों ने सरकारी मुलाजिमों के साथ मिलकर जेम का तोड़ निकाल लिया है, उससे निबटा कैसे जाए। छत्तीसगढ़ में सीजीएमएससी से लेकर जितने विभागों में सप्लाई के काम हो रहे, सभी में एक ही खेल चल रहा। पहले संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर डील कर लो। टेंडर में ऐसा क्लॉज जोड़ दिया जाएगा, जो वह कंपनी ही पूरी करती है। फिर एक ही सप्लायर कई फार्म बनाकर रखता है। अपने ही तीन फार्मों के नाम पर तीन टेंडर भर देगा। और एल1 के नाम पर काम हासिल कर लेता है। 32 हजार में स्टील का जग इसी तरह एल1 आ गया था। इन फार्मो का पता-ठिकाना खोजने जाने पर कोई किराना दुकान मिलेगा या फिर कोई मुहल्ले के बीच एक बंद पड़ा मामूली कमरा मिलेगा। अब वक्त आ गया है कि सप्लायरों के खेल का तोड़ निकाला जाएगा। उसी तरह जिस तरह जीएसटी सिकरेट्री ने जीएसटी चोरी को तोड़ निकाला है। जीएसटी से रेवेन्यू में तभी छत्तीसगढ़ ने सारे बड़े राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।

सिस्टम पर सप्लायर भारी

कुछ अरसा पहले सीजीएमएससी में मोक्षित कारपोरेशन के इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता था। टेंडर, सप्लाई तो छोटी बात थी, सीजीएमएससी में किस अफसर की पोस्टिंग करनी है और किसे हटवाना, ये वही तय करता था। चलिये वो तो एक नमूना था...छत्तीसगढ़ में ऐसे कई मोक्षित हैं, जो खुला खेल...फर्रुखाबादी की तरह काम कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में वे इतने ताकतवर हो गए हैं कि उनका कोई कुछ कर भी नहीं सकता। उनकी नेटवर्किंग इतनी जबर्दस्त है कि मैदानी अफसरों से पहले उन्हें पता चल जाता है कि सरकार में क्या चल रहा, क्या खरीदी करनी है। और वे उन जिलों में धमक जाते हैं। उनके पास हर बीमारी का इलाज होता है। जन्मदिन से लेकर दशहरा, दिवाली में महंगे गिफ्ट भेंटकर सारे बड़े हाउसों को ऐसे सेट करके रखते हैं कि एक ने उनका काम रोका, तो दूसरी जगह, दूसरी नहीं तो तीसरी जगह से फोन करा देंगे। यहां से अगर बात नहीं बनी तो फिर यूपी या दिल्ली से कनेक्शन ढूंढ निकालेंगे। ऐसे में, छत्तीसगढ़ में ठेका, सप्लाई और टेंडर में करप्शन रोकना नामुमकिन जैसा प्रतीत होता है।

आईएएस को बदनाम, ट्रांसफर

सिस्टम पर सप्लायर किस कदर भारी पड़ रहे हैं, इस वाकये से आपको पता चल जाएगा। तीन-चार साल पहले की बात है। सीजीएमएससी में धोखे से एक ठीकठाक छबि वाले आईएएस को एमडी बना दिया गया था। चूकि अफसर ईमानदार होगा, तो मक्खी गिरा दूध नहीं पियेगा। सो, उसने सारे गड़बड़झालों की फाइलों को रोक दी। इसके बाद सप्लायरों ने ऐसा बवाल काटा कि पूछिए मत! हर तरफ एक ही चर्चा थी...फलां ने दवा और मेडिकल इक्विपमेंट की फाइलें रोक दी...कोई काम ही नहीं हो रहा...अस्पतालों में हाहाकार मचा हुआ है। इसका नतीजा यह हुआ कि आईएएस का वहां से ट्रांसफर हो गया। छत्तीसगढ़ में यह है सप्लायरों और ठेकेदारों का पावर।

छत्तीसगढ़ कैडर के ऐसे आईएएस

छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस रहे बीवीआर सुब्रमणियम विजन डॉक्यूमेंट के विमोचन के सिलसिले में रायपुर में थे। सुब्रमणियम जब 2017 में जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकेरट्री बनकर श्रीनगर गए थे, तब यहां एसीएस होम थे। वे अगर छत्तीसगढ़ में रहे होते तो हो सकता था कि यहां सीएस बन जाते। मगर वे ऐसा चाहते नहीं थे, न ही उनका कोई प्रयास दिखा। मोदी सरकार ने उन्हें खुद ही बुलाकर जेके का चीफ सिकरेट्री बना दिया। अपने मित्रों में बीवीआर के नाम से जाने जाने वाले सुब्रमणियम ने कश्मीर से धारा 370 हटाने का ड्राफ्ट बनाने में अहम भूमिका निभाई। इसका उन्हें ईनाम भी मिला। केंद्र में सिकरेट्री बनने वाले वे छत्तीसगढ़ कैडर के पहले आईएएस बने। और वहां से रिटायर होने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें नीति आयोग का सीईओ बनाया। सुब्रमणियम रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। नीति आयोग में भी उन्होंने रिफार्म कर दिया। छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी को सुब्रमणियम पर गर्व हो सकता है। एसीएस रहते उन्होंने छेड़छाड़ के आरोपी एआईजी को चौतरफा प्रेशर के बाद भी बर्खास्त कराकर ही माना। तब कैबिनेट के कई सदस्य मन मसोसकर रह गए थे। ये अलग बात है कि उनके जाने के बाद एआईजी फिर बहाल हो गए।  

आईएएस की लिस्ट

चिंतन शिविर के बाद अब विधानसभा का मानसून सत्र भी निबट गया है। राज्योत्सव से पहले सरकार के सामने कोई बड़ा इवेंट नहीं है। सरकार अब योजनाओं के क्रियान्वयन पर अपना फोकस बढाएगी। ग्राम सुराज में आए आवेदनों का रिव्यू किया जाएगा। दो-तीन जिलों के कलेक्टरों का ट्रांसफर भी हो सकता है। आईएएस अवार्ड वाले अधिकारियों में से वैसे तो ज्यादातर अच्छी पोस्टिंग में हैं, मगर जो बचे हैं, उन्हें उम्मीद होगी कि आईएएस के अनुरूप में पदास्थापना मिलेगी। बालोद जिले में कुछ महीने से जिला पंचायत सीईओ का पद खाली है, उसे भी भरा जा सकता है। गरियाबंद और जीपीएम जिले में तबाही की स्थिति है...भगवान भरोसे पूरा सिस्टम चल रहा। पीएम आवास सरकार का अहम प्रोजेक्ट है, इस पर भी कई जिलों के कलेक्टरों का ध्यान नहीं है। सरकार जब तक दो-चार कौवा मारकर नहीं लटकाएगी, तब तक सब....ऐसा ही चलता रहेगा।

कांग्रेस में नो चेंज!

कुछ महीने पहले की ही बात है। दीपक बैज की जगह टीएस सिंहदेव को पीसीसी का अध्यक्ष तय मान लिया गया था...कभी भी उनके नाम का ऐलान होने के दावे किए जा रहे थे। मगर अब स्थिति यह है कि इस पर कोई बात भी नहीं कर रहा। अलबत्ता, रायपुर में पार्टी की जंगी सभा के बाद तो दीपक बैज का वजन और बढ़ गया है। डेढ़ साल पहले करारी पराजय के बाद कांग्रेस इतनी जल्दी उठ खड़ी होगी, इसको देख सियासी पंडित भी चकित हैं। जाहिर है, 2018 की हार के बाद बीजेपी को संभलने में लंबा वक्त लगा। पांचवे साल में भी मोदी, अमित भाई, मनसुख भाई और नीतीन नबीन ने जलवा नहीं दिखाया होता, तो बीजेपी किस हाल में होती, पता नहीं। बहरहाल, बात दीपक बैज की तो बरसते पानी में हजारों की सभा कराने के बाद वे आदिवासी नेताओं की बैठक में शिरकत कर दिल्ली से लौट चुके हैं। राहुल गांधी के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ने की भी खबरें आ रही हैं। ऐसे में, नहीं लगता कि आने वाले समय में दीपक बैज को पार्टी पीसीसी चीफ से हटाएगी। उमेश पटेल, देवेंद्र यादव, विकास उपध्याय और शिव डहरिया में से दो-तीन कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बनाए जा सकते हैं।

मंत्रियों का हनीमून, नेताओं के सपने

अचरज की बात यह है कि हमेशा लाइव रहने वाले बीजेपी के नेता इस समय किधर हैं, पता नहीं चल रहा। विपक्ष के बेसिर पैर के आरोपों पर भी पार्टी नेताओं की चुप्पी नहीं टूट रही। दीपक बैज ने 32 हजार के ऐसे जग पर ट्वीट कर सनसनी पैदा कर दी, जो खरीदी ही नहीं गई। ऐसे कई मसले हैं, जिस पर पार्टी खुल कर प्रतिक्रिया नहीं दे रही और न ही सरकार में बैठे मंत्री। असल में, दिक्कत यह है कि विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत से पार्टी के लोकल नेताओं का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया...सरकार हमने बनवाई तो हमारा कुछ होना चाहिए। सबको लाल बत्ती चाहिए या फिर बड़ा ठेका और सप्लाई। वास्तविकता यह है कि कैडर बेस पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने डेढ़ साल में ढंग का एक कार्यक्रम नहीं किया है। सरकार के मंत्री हनीमून से उबर नहीं पा रहे तो नेता लाल बत्ती के सपने से बाहर नहीं आ रहे। चिंतन शिविर में पार्टी अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा ने मंत्रियों को आखिर ऐसे थोड़े ही चेताया। कुछ मंत्रियों का ये हाल है कि जो कार्यकर्ता उनके चुनाव में बढ़-चढ़कर काम किया, बंगले में उसकी इंट्री नहीं है, फोन उठाने की बात दीगर है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अधिकारियों द्वारा होमवर्क करवा कर भेजने के बाद भी कई मंत्री विधानसभा में जाकर विभाग का नाम क्यों खराब कर डालते हैं?

2. एक मंत्री का नाम बताइये, जो छंटनी के खतरे से घबराकर इन दिनों सामाजिक कार्यक्रम कराने में जुट गए हैं?

रविवार, 13 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: कमीशनखोरी का चिप्स

 तरकश, 13 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

कमीशनखोरी का चिप्स

छत्तीसगढ़ बनने के दो साल बाद सीएम अजीत जोगी ने स्टेट में आईटी के बेहतर इस्तेमाल के लिए छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसाईटी याने ’चिप्स’ का गठन किया था। आईएएस अमित अग्रवाल इसके फर्स्ट सीईओ बनाए गए। बाद में रमन सिंह के कार्यकाल में रायपुर के सिविल लाईन में चार मंजिला भव्य ऑफिस बनाया गया। मगर पिछले कुछ सालों में स्थिति यह है कि चिप्स अब सफेद हाथी बनकर रह गया है। इस संस्था का रिकार्ड इतना खराब हो चुका है कि अब उस पर मंत्रालय के सिकरेट्री भी भरोसा नहीं कर रहे...कोई अहम काम चिप्स को नहीं सौंपा जा रहा। क्योंकि, एक तो अनाप-शनाप चार्ज बता दिया जाएगा, फिर टाईम पर होगा नहीं और हुआ तो कब तक काम करेगा, कहा नहीं जा सकता। जाहिर है, भारत सरकार का साफ्टवेयर नहीं होता तो सूबे में मंत्रालय से लेकर जिलों तक ई-ऑफिस लागू नहीं हो पाता। चिप्स के चलते ही पुलिस इंस्पेक्टरों की भर्ती व्यापम में लटकी रही। थक-हारकार गृह विभाग को पीएससी से बात करनी पड़ी। दरअसल, चिप्स भाई-भतीजावाद और कमीशनखोरी का अड्डा बनकर रह गया है। साफ्टवेयर तैयार करने में अपनों को उपकृत करना या फिर भारी कमीशन की डिमांड...ऐसे में चिप्स से क्वालिटी वर्क की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। हालांकि, सरकार ने एक आईएफएस अधिकारी मयंक अग्रवाल को चिप्स का सीओओ बनाया है। मगर यह भी सही है कि चिप्स के वर्तमान सीईओ प्रभात मलिक के पास तीन-तीन एडिशनल चार्ज है। चिप्स के सीईओ के अतिरिक्त ज्वाइंट सिकरेट्री आईटी, ज्वाइंट सिकरेट्री गुड गवर्नेंस और डायरेक्टर इंडर्स्ट्री। बहरहाल, आईटी के दौर में अब वक्त आ गया है कि चिप्स को पटरी पर लाया जाए।

खजाने को करोड़ों की बचत

जाहिर है, टेक्नोलॉजी में दुनिया कहां से कहां जा रही है...ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने अपने देश में बैठे-बैठे पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को सटिक निशाना लगाते हुए उन्हें उड़ा दिया था। और छत्तीसगढ़ में ये हाल है कि धान के लिए पटवारी से रिपोर्ट मांगी जाती है। और पटवारी पैसे लेकर बंजर और परती जमीन में भी 21 क्विंटल धान उपजा देते हैं। चिप्स अगर साफ्टवेयर तैयार कर दे तो रायपुर में बैठे-बैठे बताया जा सकेगा कि किस किसान के खेत में कितना बोया गया है और कहां नहीं। चिप्स चाहे तो ये भी पता चल सकता है कि कितना धान दूसरे राज्यों से आ रहा तो कितना धान बिचौलिये और राईस मिलर अलटी-पलटी कर सरकार के खजाने को चूना लगा दे रहे हैं। एक मोटे अनुमान के तहत मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं होने की वजह से सरकार को 30 परसेंट एक्स्ट्रा धान खरीदना पड़ता है। 2024-25 में 149 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया, ये सब कलाबाजियां नहीं होती तो सरकार को कम-से-कम 40 से 50 मीट्रिक टन कम परचेज करना पड़ता। याने चार से पांच करोड़ क्विंटल। पांच करोड़ क्विंटल से अगर 3100 से गुणा करें तो 1.55 खरब रुपए होता है। इससे समझा जा सकता है कि खजाने का कितना पैसा बचता। यह पैसा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल पर व्यय होता, जो माफियाओं की जेब में जा रहा है। टेक्नोलॉजी की मदद से राईस मिलरों के झोल का पता लगाया जा सकता है कि कितने वॉट बिजली का उपयोग किया गया। अधिकांश राईस मिलों की जितनी कैपिसिटी नहीं होती, उससे अधिक मिलिंग दिखा दिया जाता है। कहने का आशय यह है कि चिप्स को अगर स्ट्रांग कर दिया जाए तो पारदर्शिता के साथ भ्रष्टाचार को रोकने में भारी मदद मिल सकती है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी चोट

भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने इस हफ्ते एक प्रेस नोट जारी किया, उसके मजमूं से लगता है कि सरकार अब जीरो टॉलरेंस को लेकर काफी अग्रेसिव मोड में आ गई है। प्रेस नोट के कंटेंट और भाषा से प्रतीत हो ही रहा...सरकार के करीबी लोगों का भी मानना है कि विधानसभा सत्र के बाद सरकार करप्शन पर प्रभावी चोट करेगी। 22 एक्साइज अफसरों का निलंबन इसी का हिस्सा था। एसीबी को भी सरकार ने फ्री हैंड दिया है। राज्य बनने के बाद यह पहली बार हुआ कि चार-चार आईएएस अधिकारी को पूछताछ के लिए एसीबी मुख्यालय बुलाया जा चुका है। सीजीएमएससी घोटाले में सीजीएमएससी की वर्तमान और पूर्व एमडी, पूर्व हेल्थ डायरेक्टर और एनएचएम की एमडी से एसीबी हेडक्वार्टर में घंटों की पूछताछ की गई। इनमें सिर्फ एक प्रमोटी आईएएस है। बाकी तीन आरआर आईएएस अफसर हैं। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि जिस तरह 2023 के विधानसभा चुनाव में करप्शन सबसे बड़ा मुद्दा रहा, उसी तरह 2028 के चुनाव में करप्शन पर जीरो टॉलरेंस को मुद्दा बनाया जाएगा। अनेक स्टडी में ये बात सामने आई भी है कि विकास कार्य एक बार ना भी हो तो चलेगा मगर करप्शन पर प्रहार जनता को प्रभावित करता है। पड़ोसी राज्य ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हर साल कुछ अफसरों को कौवा मारकर लटका देते थे...और चुनाव जीतते रहे। छत्तीसगढ़ में भी अब जीरो टॉलरेंस को टॉप प्रायरिटी बनाया जाएगा।

डीजीपी को भरोसा?

छत्तीसगढ़ में पूर्णकालिक डीजीपी न होने से परेशानियां अब परिलक्षित होने लगी है। जिला पुलिस को पेटी कंट्रक्शन रिपेयरिंग के नाम पर हर साल पांच से 10 लाख रुपए का बजट जारी किया जाता था, अभी तक वह नहीं हो पाया है। इस पैसे से थानों या पुलिस के भवनों की मरम्मत के छोटे-मोटे काम होते थे। वैसे प्रभारी डीजीपी अरुणदेव के फ्रंट फुट पर नहीं खेलने की जायज वजहें भी हैं। आखिर, दूध का जला...मुहावरा है ही। सितंबर 2024 में गौतम को प्रभारी डीजीपी बनाने प्रॉसेज प्रारंभ होने वाला था कि दिल्ली से फोन आ गया...अशोक जुनेजा को एक्सटेंशन के लिए प्रस्ताव भेजिए। एसीएस होम मनोज पिंगुआ ने प्रस्ताव भेजा और 15 घंटे के भीतर दिल्ली से ओके होकर आ गया। फिर, 30 जून को चीफ सिकरेट्री नियुक्ति एपिसोड में जो हुआ, उससे गौतम क्या...प्रदेश की जनता अनभिज्ञ नहीं है। ऐसे में, कोई यह समझे कि गौतम देश के बाकी प्रभारी डीजीपी की तरह छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग में जान लगा दें तो यह भला कैसे संभव है। यद्यपि, यूपी ऐसा स्टेट है कि पिछले तीन बार से वहां प्रभारी डीजीपी अपाइंट हो रहे और वे अपना कार्यकाल पूरा कर रिटायर हो रहे। बहरहाल, छत्तीसगढ़ की बात करें तो सिस्टम को दो काम करना होगा। या तो पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति की जाए या फिर गौतम को कोई खतरा नहीं का भरोसा दिया जाए।

5 विभागों के लिए एक बिल

विधानसभा के मानसून सत्र में इस बार अब तक का सबसे महत्वपूर्ण विधेयक आने वाला है, वह है जनविश्वास अधिनियम विधेयक। यह पहला बिल है, जिसमें एक साथ पांच विभागों के नियम बदलेंगे। इनमें नगरीय प्रशासन, पंचायत, गृह और सहकारिता जैसे विभाग शामिल हैं। यह बिल अलग इस मायने में भी है अलग है कि इसे तैयार करने का दायित्व इन पांचों से अलग किसी तीसरे विभाग को सौंपा गया है। राज्य सरकार ने उद्योग विभाग को इसका नोडल डिपार्टमेंट बनाया है। विभाग के सिकरेट्री रजत कुमार ने पखवाड़े भर के भीतर इस बिल को तैयार कर डाला। बता दें, भारत सरकार के कंसेप्ट पर राज्यों में अंग्रेजों के टाईम के नियम बदले जा रहे हैं।

पेनाल्टी नहीं, अब अर्थदंड

जनविश्वास बिल के पारित होने के बाद छत्तीसगढ़ में छोटे-छोटे मामलों में अब पेनाल्टी या जुर्माना शब्द का उपयोग हमेशा के लिए सामाप्त हो जाएगा। मसलन, अभी तक वाहन चालक अगर चौक पर जेब्रा लाइन को क्रॉस कर गया, या गाड़ी में लायसेंस नहीं है या फिर सड़क पर पंडाल बना दिया, नाली पर स्लैब डालने पर उसे फाईन करने का अधिकार संबंधित संस्थाओं को दिया गया था। आश्चर्य की बात ये कि इन विभाग ने नियम बना दिया था कि फलां नियम को ओवरलुक करने पर इतने साल की सजा और इतने का जुर्माना किया जाएगा। मगर भारतीय दंड विधान में उसका प्रावधान नहीं था। लिहाजा, इस तरह की स्थिति अगर निर्मित हुई तो पहले परिवाद दायर करना होगा। सीजेएम के आदेश पर फिर एफआईआर किया जाएगा। जनविश्वास अधिनियम में इन पेचीदगियों को खतम कर दिया गया है। एक तो अब जुर्माना या पेनाल्टी की बजाए अब अर्थदंड किया जाएगा। इसके पीछे मंशा यह है कि छोटे-छोटे ये मामले अपराध की श्रेणी में नहीं आते और फिर यह भी कि जुर्माना या पेनाल्टी लगाने का अधिकार सिर्फ कोर्ट को है, विभागों को नहीं। जनविश्वास अधिनियम में 50 से लेकर 200, 300 के जुर्माने को हटाकर राशि को बढा दी गई है। पहले निगम कमिश्नरों को जुर्माना करने का अधिकार दिया गया था, उसमें लिखा था कि 5000 रुपए तक निगम आयुक्त या सीएमओ पेनाल्टी कर सकते हैं। इससे प्रभावशाली लोग घोखे से फंस भी गए तो मामूली पेनाल्टी कराकर बच जाते थे। मगर अब इसे 5 हजार फिक्स कर दिया गया है। याने सबके उपर यह लागू होगा। इससे सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा। फिर 100 साल पुराने हिसाब से 50 से 100 रुपए पेनाल्टी की नोटिस भेजने में भी अफसरों को हिचक आती थी...उससे अधिक नोटिस पहुंचाने में कर्मचारियों का पेट्रोल जल जाता था। ऐसे में, इसे बड़ा रिफार्म समझा जाना चाहिए।

आखिरी सत्र

विधानसभा का पांच दिन का मानसून सत्र कल 14 जुलाई से प्रारंभ हो जाएगा। विधानसभा के इस टेम्पोरेरी बिल्डिंग का यह आखिरी सेशन होगा। इसके बाद अब 25 साल की यादें शेष रह जाएंगी। अगला शीतकालीन सत्र नवा रायपुर के नवा विधानसभा भवन में होगा। नई एसेंबली को अंतिम रूप देने जोर-शोर से तैयारी शुरू हो गई है। राज्योत्सव के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नए विधानसभा भवन का लोकार्पण कराने की तैयारी चल रही है। विस अध्यक्ष डॉ0 रमन सिंह इसके लिए पीएम मोदी को आमंत्रण देकर आ चुके हैं।

एकमात्र विधायक

छत्तीसगढ़ बनने के बाद प्रथम विधानसभा सत्र से लेकर छठवे तक सिर्फ एक नेता हमेशा विधानसभा में पहुंचता रहा, वो रहे रायपुर के विधायक बृजमोहन अग्रवाल। 1989 में बृजमोहन पहली बार विधायक बनकर एमपी विधानसभा में पहुंचे थे। फिर नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद राजकुमार कॉलेज में पहला सत्र हुआ था, उसमें भी वे मौजूद रहे और जनवरी 2024 के छठवें सत्र में भी। ये अलग बात है कि उनकी इच्छा के विरूद्ध उन्हें प्रमोशन देकर अब लोकसभा भेज दिया गया है। मगर यह कीर्तिमान उनके नाम दर्ज रहेगा कि पहले से लेकर छठवी विधानसभा तक पहुंचते-पहुंचते कई बड़े दिग्गज चुनाव हारे मगर बृजमोहन अजातशत्रु बने रहे। अलबत्ता, रविंद्र चौबे अगर 2013 का चुनाव नहीं हारे होते तो वे बृजमोहन अग्रवाल के समकक्ष होते।