रविवार, 19 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: कलेक्टर, सोशल मीडिया और दिवाली

 तरकश, 19 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

कलेक्टर, सोशल मीडिया और दिवाली

सोशल मीडिया ने इस बार कई कलेक्टर, एसपी की दिवाली को कमजोर कर दिया। दरअसल, 13 अक्टूबर को कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस खतम होते ही फेसबुक, व्हाट्सएप पर कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर को लेकर भविष्यवाणियों की ऐसी झड़ी लगी कि जैसे कुछ मिनटों में लिस्ट आने वाली है। ऐसे में हलाकान, परेशान कई कलेक्टरों ने उपर तक के लोगों को फोन लगा डाला। कुल मिलाकर दो दिन में ऐसा रायता फैला कि लोगों को लगा दिवाली से पहले कुछ लोग निबट जाएंगे। जाहिर है, ऐसी खबरों को पंख लगते देरी नहीं लगती। इसका असर यह हुआ कि बड़े लोगों की दिवाली मनवाने वाले कारपोरेट, ठेकेदार और सप्लायरों ने इस बार पहले जैसी दिलेरी नहीं दिखाई। उन्हें लगा साब जाने वाले हैं तो अब ज्यादा चारा फेंकने का क्या मतलब?

सीएम विष्णुदेव और हिन्दुत्व!

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय बीजेपी की सियासत के बेहद साफ्ट चेहरा माने जाते हैं। 35 साल के दीर्घ सियासी सफर में उनके दामन पर विवादों के कोई छींटे नहीं पड़े। न वे हिन्दू और हिन्दुत्व को लेकर कभी मुखर रहे। मगर हालात को देखते कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में उन्होंने तेवर तल्ख किया है। खासकर, धर्मांतरण को लेकर। कांफ्रेंस में सरगुजा के एसपी ने जब कहा कि हमारे यहां धर्मांतरण नहीं...कभी-कभी चंगाई सभा होती है तो मुख्यमंत्री बोले, आपको पता नहीं। चंगाई सभा धर्मांतरण का पहला चरण होता है...इसे रोकने आपलोग कड़ी कार्रवाई कीजिए। इसके बाद बलरामपुर जिले की बात आई तो मुख्यमंत्री ने तीखी टिप्प्णी की। पुराने दिनों को याद करते बोले, मैं बलरामपुर जाता था तो वहां हरे-हरे झंडे दिखाई पड़ते थे। आपलोग अवैध वाशिंदों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। हिन्दुत्व को लेकर मुख्यमंत्री की गंभीरता को देखते कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बाद कई जिलों में पुलिस ने धर्मांतरण के केस में सख्ती बढ़ा दी है।

पुलिस कमिश्नरेट में देरी

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की रजत जयंती के मौके पर रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने की चर्चाएं थी। सरकार ने कमिश्नर सिस्टम के लिए ड्राफ्ट बनाने के लिए कमेटी बनाई थी, कमेटी ने रिपोर्ट भी सौंप दी। मगर इसके बाद पता नहीं कैसे, मामला कहीं फंस गया है। अफसरों की मानें तो अब राज्योत्सव में हफ्ता भर का टाईम बच गया है, इतने कम समय में पुलिस कमिश्नर ऑफिस से लेकर सेटअप तैयार करना संभव नहीं। लिहाजा, अब माना जा रहा कि रायपुर पुलिस कमिश्नरेट एक जनवरी से ही प्रारंभ हो पाएगा।

कलेक्टर्स की लिस्ट

सरकार ने कलेक्टरों को दिवाली से पहले डिस्टर्ब करना मुनासिब नहीं समझा। मगर संभावना है कि राज्योत्सव से पहले दो-एक कलेक्टरों की लिस्ट निकल जाए। सरकार एक कलेक्टर को अब जैसे भी हो बदलना चाहती है, मगर उसका उद्देश्य कार्रवाई नहीं, मजबूरी है। लिहाजा, उन्हें दूसरा कोई ठीक ठाक जिला भी दिया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो फिर दो जिले के कलेक्टरों की लिस्ट निकलेगी। बाकी मुख्यमंत्री के उपर है, वे क्या सोचते हैं। क्या भरोसा, कुछ दिनों के लिए सिंगल जिले का ही लिस्ट निकल जाए।

पीएम के 3 नाइट हॉल्ट

डीजीपी कांफ्रेंस के सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन, दो रात रायपुर में रुकेंगे। मोदी 28 नवंबर की शाम को रायपुर आएंगे। 29 को रहेंगे। 30 नवंबर को समापन समारोह में हिस्सा लेने के बाद शाम यहां से दिल्ली के लिए रवाना होंगे। इससे पहले रायपुर में किसी प्रधानमंत्री का इतना लंबा दौरा नहीं हुआ। वो भी मोदी जैसे पीएम...। अटल जी बिलासपुर में जरूर दो रात रुके थे। 2003 में अजीत जोगी सरकार के दौरान वे रेलवे जोन मुख्यालय भवन का उद्घाटन और परिवर्तन रैली को संबोधित करने आए थे, उस समय बिलासपुर के छत्तीसगढ़ भवन में वे दो रात रुके। इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री का छत्तीसगढ़ के किसी एक शहर में दो दिन का विजिट नहीं रहा। इससे पहले राज्योत्सव के मौके पर पीएम मोदी 31 अक्टूबर को भी रायपुर आ रहे। 31 को उनका रायपुर में ही रात्रि विश्राम है। 1 नवंबर को वे अलग-अलग पांच कार्यक्रमों में शामिल होंगे। कुल मिलाकर महीना भर के भीतर पीएम मोदी का रायपुर में तीन नाइट हॉल्ट होगा।

होटलों में नो रुम

अगर रायपुर में 28 से 30 नवंबर के बीच आप कोई कार्यक्रम करना चाहते हैं तो उसे टालना बेहतर होगा। क्योंकि, रायपुर में राज्य बनने के बाद दो सबसे सबसे बड़े आयोजन होने जा रहे हैं। 28 से 30 के बीच डीजीपी, आईजी कांफ्रेंस तो है ही, 28 नवंबर से तीन दिन का डॉक्टरों का एक नेशनल सेमिनार होगा। इसमें देश भर से करीब ढाई हजार डॉक्टरों के शिरकत करने का अंदेशा है। छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों का इस लेवल का आयोजन पहली बार हो रहा है। ऐसे में, होटलों में रुम नहीं मिल रहे। डीजीपी, आईजी कांफ्रेंस के लिए आईबी वाले परेशान हैं, होटलों के अलावे रायपुर के आसपास के जितने गेस्ट हाउसेज हैं, उन्हें तैयार किया जा रहा है। डॉक्टरों के वर्कशॉॅप के लिए प्रायवेट फार्महाउसों से भी रुम के लिए बात की जा रही। जाहिर है, डीजीपी कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्रालय के सीनियर अफसर समेत देश के सभी राज्यों के डीजीपी, आईजी और गृह सचिव रायपुर में रहेंगे। पता चला है, होटल वाले बाहर से शेफ और केटरर टीम बुला रहे तो टैक्सी वाले दूसरे राज्यों से इनोवा बुला रहे। क्योंकि, रायपुर में उतनी गाड़ियां नहीं हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एनएचएम में सरकार कोई नया डायरेक्टर अपाइंट करने वाली है?

2. रायपुर में पुलिस कमिश्नरेट प्रारंभ होने में देरी के पीछे क्या वजह है?

शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: 10 हजार करोड़ का गड्ढा

 तरकश, 12 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

10 हजार करोड़ का गड्ढा

10 अक्टूबर की विष्णुदेव कैबिनेट की बैठक अलग मोड में हुई। फूड और मार्कफेड के अफसर प्रेजेंटेशन दे रहे थे और मंत्रिपरिषद सुन रही थी। बैठक में यहां तक बात आ गई कि अगर धान खरीदी की यही स्थिति रही तो एकाध साल बाद धान खरीदने की स्थिति नहीं रहेगी। आज की तारीख में मार्कफेड पर 38 हजार करोड़ का लोन है और इस साल ओवर परचेजिंग से राज्य के खजाने को 8 हजार करोड़ की चपत लग चुकी है। दरअसल, दिक्कत किसान और धान से नहीं, दिक्कत धान की रिसाइकिलिंग और राईस माफियाओं के खेल से है। छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का ग्राफ इस तेजी से बढ़ रहा कि अच्छे-अच्छे कृषि वैज्ञानिक हैरान हैं। पुराने लोगों को याद होगा, 2002-03 में मात्र 18 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई थी। 20 साल में यह नौ गुना बढ़ गई। जबकि, खेती का रकबा तेजी से कम हो रहा है। ये कहना भी कुतर्क होगा कि रेट बढ़ने से धान ज्यादा बोए जा रहे हैं। आखिर पहले भी सिर्फ धान बोए जाते थे...और कोई फसल लगाए नहीं जाते थे कि उसे बंद कर अब धान बोया जा रहा। जाहिर है, 2024-25 में सारे रिकार्ड तोड़ते हुए धान खरीदी 149 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गई। जबकि, जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में वास्तविक धान 100 से 110 लाख मीट्रिक टन होना चाहिए। याने बिचौलियों और अधिकारियों की मिलीभगत से की जाने वाली रिसाइकिलिंग और दूसरे प्रदेशों से आने वाले अवैध धानों को रोक दिया जाए तो सीधे-सीधे 30 से 35 लाख मीट्रिक टन की फर्जी खरीदी रुक जाएगी। बता दें, 2024-25 में भी लिमिट से अधिक खरीदी से धान का डिस्पोजल नहीं हो पाया और खुले बाजार में नीलामी से करीब दो हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा। बहरहाल, पहली ही बार में पूरे लूज पोल तो बंद नहीं किए जा सकते। फिर भी अगर रिसाइकिलिंग और बिचौलियों पर अंकुश लगाकर 25 से 30 लाख मीट्रिक टन धान की फर्जी खरीदी अगर रोक दी गई तो खजाने का करीब 10 हजार करोड़ बचेगा, जो माफियाओं, राईस मिलरों, अधिकारियों और नेताओं की जेब में जाता है।

नारी शक्ति को कमान

राज्य सरकार ने धान खरीदी में भ्रष्टाचार को रोकने दो महिला आईएएस अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी हैं। रीना बाबा कंगाले इस समय सिकरेट्री फूड और किरण कौशल एमडी मार्कफेड। सीएम सचिवालय ने इसकी प्लानिंग पहले ही कर ली थी। इसी रणनीति के तहत रीना को रेवेन्यू का अतिरिक्त प्रभार दिया गया। इसका फायदा यह हुआ कि उन्होंने राजस्व अमले से धान की फसल का क्रॉप सर्वे करा लिया। पटवारियों से गिरदावरी रिपोर्ट भी ले ली गई। अब ग्राम पंचायतों में उसे पढ़कर बताया जा रहा कि इस इलाके में एक एकड़ में इतना धान होना संभावित है। याने बिचौलियो की अब नहीं चल पाएगी। अभी तक जिन खेतों में एकड़ में 15 क्विंटल धान नहीं होते थे, वहां 21 क्विंटल का क्लेम किया जा रहा था। उपर से कैबिनेट ने ऑनलाइन धान खरीदी पर मुहर लगा दी है। भारत सरकार के साफ्टवेयर से किसानों का पंजीयन किया जाएगा। मोबाइल ऐप्प से टोकन मिलेगा और फिर बायोमेट्रिक भी होगा। जाहिर है, सिस्टम की कवायद सही रही तो राईस माफियाओं और अधिकारियों को बड़ी चोट पड़ेगी।

छत्तीसगढ़, धान और गरीबी

कृषि अर्थशास्त्री धान को गरीबी से जोड़ते ही हैं, छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी भी हमेशा कहते थे कि छत्तीसगढ़ में धान और गरीबी दोनों एक-दूसरे की पूरक है। मध्यप्रदेश के समय कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया गया कि छत्तीसगढ़ में खेती का ट्रेंड बदला जाए। राज्य बनने के बाद अजीत जोगी ने जरूर फसल चक्र परिवर्तन के तहत मक्का, मिलेट और दलहन-तिलहन के लिए कोशिशें शुरू की थीं। मगर इसके कुछ अरसा बाद ही सरकार बदल गई। फिर दो दशक में फसल चक्र कभी चर्चा में नहीं आया। जबकि, फैक्ट है कि दूसरी फसलें कई गुना ज्यादा आमदनी दे सकती हैं। धान में एकड़ पर 20 हजार से ज्यादा नहीं बचता, वहीं मिलेट या दूसरी फसलें लगाएं तो 40 से 50 हजार रुपए की बचत हो सकती है। राजनांदगांव में छुरिया और कांकेर के पखांजूर इलाके के किसान मक्का के अलावा कुछ लगा नहीं रहे हैं आजकल। ऐसा बाकी जिलों में भी किया जा सकता है। इसकी इसलिए भी जरूरत है कि 3100 रुपए में धान खरीदी के बाद भी छोटे किसानों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं। 85 से 90 परसेंट तो छोटे ही किसान हैं। जिनके पास दो-तीन, चार एकड़ जमीनें होती हैं। कोई बड़ा खर्च आ जाए तो आज भी उन्हें कर्ज ही लेना पड़ता है।

आईपीएस दुखी

आईपीएस रॉबिंसन गुड़िया के नारायणपुर जिले के एसपी बनाने की वजह से 2020 बैच के आईपीएस दुखी हुए जा रहे हैं। उन्हें मलाल है कि बैच में जूनियर होने की वजह से रॉबिंसन को पहले एसपी बनने का मौका कैसे मिल गया। हालांकि, ये कोई पहली बार नहीं हुआ। परिस्थितिवश कई बार कलेक्टर, एसपी बनाने में उपर-नीचे हो जाता है। और...ऐसे कहें तो फिर ऋचा शर्मा को विकास शील के साथ काम ही नहीं करना चाहिए। विकास शील बैचवाइज उनसे जूनियर हैं। एसपी में बैच की सीनियरिटी को सुपरसीड कभी-कभार हो पाता है। कलेक्टरों में तो अक्सर होते रहता है। 2014 में तो 2007 बैच की शम्मी आबिदी से पहले 2008 बैच के आईएएस भीम सिंह धमतरी के कलेक्टर बन गए थे। 2013 बैच में विनीत नंदनवार चौथे नंबर पर थे, मगर कलेक्टर बनने का अवसर उन्हें पहले मिल गया। इसलिए, 2020 बैच के आईपीएस अधिकारियों को ज्यादा सेंटिमेंटल होने की जरूरत नहीं। अमित कुमार को उन्हें बुलाकर समझा देना चाहिए।

डीएफओ कांफ्रेंस का हिस्सा

अभी तक कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में डीएफओ को कभी शामिल नहीं किया गया। मगर 13 अक्टूबर को कलेक्टर के साथ डीएफओ की भी सीएम क्लास लेंगे। डीएफओ को कांफ्रेंस में शामिल करने का मकसद यह है कि छत्तीसगढ़ में 40 फीसदी से अधिक जंगल है। सरकार पर्यटन पर फोकस कर रही है और सूबे में पर्यटन पर जो काम हुए हैं, वह अधिकांश फॉरेस्ट एरिया में ही हैं। उसमें फॉरेस्ट का सहयोग रहा है। वन पट्टा से कल-कारखानों को जमीन देने में फॉरेस्ट क्ल्यिरेंस की जरूरत पड़ती है। इस लिहाज से इस बार डीएफओ को अबकी इम्पॉर्टेंस दिया गया है।

सिकरेट्री, कलेक्टरों का बढ़ा बीपी

कलेक्टर-एसपी-डीएफओ काफ्रेंस इस बार अलग अंदाज में हो रहा है। एक तो होटलों या कॉफी हाउस की बजाए मंत्रालय के पांचवे फ्लोर पर सीएम सचिवालय के जस्ट बगल में बने नए ऑडिटोरियम में बैठक होगी, उपर से सचिवों का भी इस बार विभागवार प्रेजेंटेशन होगा। सोशल सेक्टर पर सरकार ज्यादा जोर दे रही, इसलिए सबसे अधिक टाईम स्कूल एजुकेशन, हेल्थ और महिला बाल विकास के एजेंडा को दिया गया है। पीडब्लूडी जैसे विभाग जिसका कलेक्टरों से खास संबंध नहीं होता, उसका कोई एजेंडा नहीं है। सारे जिलों का प्रेजेंटेशन सबके सामने डिस्प्ले होगा। जाहिर है, मुख्य सचिव नए हैं, उनके सामने पुअर पारफर्मेंस पर लाल बत्ती जलेगी तो कलेक्टरों की धड़कनें भी बढ़ेंगी। उधर, मुख्य सचिव विकास शील ने सचिवों को निर्देश दिया है कि उनके विभाग से संबंधित मिनिट्स तुरंत तैयार कर लें।

सिकरेट्री तेज, विभाग कमजोर!

हेल्थ सिकरेट्री अमित कटारिया वीरेंद्र सहवाग टाईप आगे बढ़कर खेलने वाले ब्यूरोक्रेट्स माने जाते हैं। रायपुर, रायगढ़ में पोस्टिंग के दौरान उन्होंने काम अच्छा किया था। मगर डेपुटेशन से लौटने के बाद स्वास्थ्य विभाग को ट्रेक पर लाने की उनकी कोशिशें सफल नहीं हो पा रही। अस्पतालों में दवाइयों से लेकर उपकरणों की खरीदी करने वाला सीजीएमएससी बैठ गया है। आलम यह है कि वीवीआईपी जिलों के अस्पतालों में दवाइयां नहीं मिल रही। जहां सिविल सर्जन ठीक हैं और कलेक्टर से उनका कोआर्डिनेशन हैं, वहां लोकल लेवल पर कामचलाउ दवाइयां खरीद जा रही मगर बाकी जगहों का भगवान मालिक हैं। दरअसल, दुर्ग और महासमुंद की कंपनी सीजीएमएससी के लिए दलाली का काम करती थी, उस पर कार्रवाई के बाद दवा खरीदी का सिस्टम बंद हो गया है। एसीबी और ईडी की कार्रवाई के बाद दोनों कंपनियों के साथ ही सीजीएमएससी के खटराल लोग जेल में है। अमित कटारिया को सबसे पहले सीजीएमएससी को ट्रैक पर लाना चाहिए, वरना जितनी देरी होगी, सरकार के लिए उतनी मुसीबतें बढ़ेंगी। और हां...कम-से-कम वीआईपी जिले को पर तो एक्स्ट्रा फोकस करना ही चाहिए।

कलेक्टर अच्छे, मगर...

सरकार ने अधिकांश बड़े और महत्वपूर्ण जिलों में कलेक्टर तो अच्छे तैनात कर दिए हैं मगर उनके अधीनस्थों की पूछेंगे तो सारे कलेक्टर व्यथित मिलेंगे। सरकार को देखना चाहिए कि सभी में नहीं तो कम-से-कम आठ-दस बड़े जिलों में डिस्ट्रिक्ट लेवल पर अच्छे अधिकारियों को तैनात किया जाए। दो जिले की खबर है...सीएमओ, डीईओ और डिप्टी डायरेक्ट एग्रीकल्चर पेड पोस्टिंग कोटे से बड़े जिले तो पा लिए मगर उन्हें विभाग की बेसिक चीजें नहीं पता। ऐसे में, सरकार कितना भी तेज-तर्रार कलेक्टर पोस्ट कर दें, उसे फेल होना ही है। आखिर, अच्छे कप्तान को अच्छा हैंड भी तो चाहिए। मुख्य सचिव विकास शील और पीएस टू सीएम सुबोध सिंह को इसे भी देखना चाहिए।

कलेक्टर से पहले मंत्रालय

सीएम सचिवालय ने प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए कलेक्टर बनने से पहले अब मंत्रालय की पोस्टिंग जरूरी करने जा रहा है। सिस्टम में बैठे लोगों का मानना है कि मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री के तौर पर एक पोस्टिंग कर लेने के बाद कलेक्टर बनने पर बहुत सारी चीजें उसके लिए इजी हो जाएगी। क्योंकि, मंत्रालय के सिस्टम से वह भलीभांति वाकिफ रहेगा। वैसे छत्तीसगढ़ में अफसरों की कमी थी, इसलिए इस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। वरना, तेलांगना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में ये सिस्टम पहले से है। सरकार इस पर विचार कर रही कि आईएएस में आने के बाद कम-से-कम सात साल बाद जिलों में कलेक्टर बनाया जाए। मध्यप्रदेश के दौर में आठ-नौ साल से पहले जिले की कलेक्टरी नहीं मिलती थी। कई बार 10-10 साल हो जाता था। अभी भी दूसरे राज्यों में ये पीरियड सात-से-आठ साल है। देश में अभी सिर्फ छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां छह साल में कलेक्टरी मिल जा रही। आईएएस के तौर पर मैच्योरिटी कम होने से जिलों में कलेक्टरों की वर्किंग प्रभावित हो रही। छत्तीसगढ में कलेक्टर नाम की संस्था पंगु होती जा रही, इसके पीछे ये भी एक बड़ी वजह है।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. क्या ये सही है कि छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी के नेताओं द्वारा सेल्फ गोल मारे जा रहे हैं?

2. हर सरकारें कहती हैं, पुलिस कर्मियों को बस्तर में अब रोटेशन के आधार पर पोस्टिंग दी जाएगी, मगर धरातल पर वह उतर क्यों नहीं पाता?

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरशाही की रफ्तार!

तरकश, 5 अक्टूबर 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरशाही की रफ्तार!

अफसरशाही को योजनाओं के रिव्यू की तरह कभी-कभी अपने परफार्मेंस का भी एसेसमेंट करना चाहिए। दरअसल, बात ऐसी है कि पिछले साल सितंबर में कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस हुई थी। जीएडी और पुलिस मुख्यालय ने कांफ्रेंस में सीएम के निर्देशों को कलेक्टर, एसपी को भेज दिया। मगर इसके बाद बात आई-गई खतम हो गई। अफसरों को सुध नहीं रहा कि एक बार पता लगा लें कि कलेक्टर, एसपी को निर्देश दिए, उस पर कितना अमल हुआ। अभी 12 और 13 अक्टूबर को कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस तय हुआ तो अधिकारियों को खयाल आया कि पिछले साल के कांफ्रेंस का फीडबैक तो लिया नहीं गया...आनन-फानन में जीएडी और पीएचक्यू ने कलेक्टर, एसपी को पत्र भेज लास्ट कांफ्रेंस की कंप्लायंस रिपोर्ट मंगवाई गई है। अफसरशाही को रफ्तार थोड़ी ठीक करनी चाहिए।

मंत्रियों का परफार्मेंस

भले ही थोड़ा वक्त लगा...मगर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपनी प्रशासनिक टीम मजबूत कर ली है। पौने पांच साल बाद प्रशासनिक मुखिया बदला ही, मंत्रालय में करीब 80 परसेंट सिकरेट्री अब पहले से बेहतर हैं। पांचों पुलिस रेंज के आईजी निर्विवाद छबि के हैं तो 33 में से बीसेक जिलों के कलेक्टर, एसपी काम करने वाले हैं। अब मंत्रियों के परफार्मेंस पर फोकस करना चाहिए। क्योंकि, 13 मंत्रियों में पब्लिक को तीन-चार ही काम करते लगते हैं। बाकी किधर, क्या कर रहे, पता नहीं चल रहा। ठीक है, योजनाओं का क्रियान्वयन अफसर करते हैं मगर सरकार का पॉलीटिकल एक्सपोजर मंत्रियों की छबि और उनकी सक्रियता से होता है। आखिर, केंद्र के मंत्री किस तरह लगातार राज्यों का दौरा कर रहे हैं? छत्तीसगढ़ के मंत्रियों को भी जिलों में जाकर अपने विभाग का काम देखना चाहिए। मंत्रियों के फील्ड में जाने का प्रभाव तो पड़ता है। इस समय हो ऐसा रहा कि मंत्री रायपुर में रहते हैं या फिर सीधे अपने गृह जिले का रुख करते हैं। उपर से अभी भी कई मंत्री अपने विभागों को समझ नहीं पा रहे। इसका खामियाजा यह हो रहा कि सप्लाई, ठेका, खरीदी में बिचौलियों का हस्तक्षेप कम नहीं हो पा रहा। सरकार और संगठन को इसे देखना चाहिए।

राजभवन में नया एडीसी

हमेशा से ऐसा होता आया है, राजभवन में एडीसी रहने के बाद आईपीएस अधिकारियों को ठीकठाक जिले में एसपी बनाकर भेजा जाता है। विवेकानंद से लेकर दीपांशु काबरा, आनंद छाबड़ा, राहुल शर्मा, अमरेश मिश्रा, मयंक श्रीवास्तव, अभिषेक पाठक, रामगोपाल गर्ग, अभिषेक शांडिल्य, भोजराम पटेल, त्रिलोक बंसल, विवेक शुक्ला, सूरज सिंह परिहार तक हमेशा ऐसा ही होता रहा। मगर पहली बार ऐसा हुआ कि आईपीएस उमेश गुप्ता को एडीसी नियुक्त किया गया, लेकिन सुनील शर्मा की कहीं पोस्टिंग नहीं दी गई। राजभवन से पहले सुनील शर्मा अंबिकापुर के एसपी रहे और चर्चा थी कि उन्हें बिलासपुर, रायपुर जैसे किसी जिले का कप्तान बनाया जाएगा, मगर पिछले साल अचानक एडीसी टू गवर्नर नियुक्त हुए तो लोग चौंके थे। और...इस हफ्ते फिर लोग चौंके जब बिना किसी जिले का एसपी बनाए सुनील शर्मा हटा दिए गए। चौंकने का विषय यह भी है कि सुनील शर्मा की जगह पर आईपीएस उमेश गुप्ता को नया एडीसी बनाया गया था, उन्होंने इस नई जिम्मेदारी से हाथ खड़ा कर दिया है। एडीसी एपिसोड पर आईपीएस बिरादरी की गहरी खामोशी से लगता है कोई संजीदा मामला है। अगर ऐसा कुछ है तो फिर आईपीएस एसोसियेशन को कुछ पूजा-पाठ करा लेनी चाहिए। बहरहाल, नए एडीसी के लिए जल्द ही तीन नए नामों को पेनल राजभवन भेजा जाएगा। उसके बाद नई नियुक्ति की जाएगी।

पुलिस कमिश्नर सिस्टम?

छत्तीसगढ़ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम शुरू होने को लेकर जिस बात की आशंकाएं थी, वह दृष्टिगोचर होने लगी हैं। दरअसल, कोई भी रिफार्म या बदलाव यूं ही नहीं हो जाता। भांति-भांति के अवरोध आते हैं...पावर गेम का सामना करना पड़ता है। स्वाभाविक है कि किसी की बरसों की सत्ता पर आंच आएगी तो वो कैसे इसे स्वीकार करेगा। पड़ोसी राज्य ओड़िसा में नवीन पटनायक ने जब इस सिस्टम को लागू किया तो उन्हें भी अफसरशाही से लोहा लेना पड़ा था। बता दें, देश का बेस्ट पुलिस कमिश्नर सिस्टम ओड़िसा का है। विधानसभा में एक्ट पारित कर उसे बनाया गया है।

फर्स्ट पुलिस कमिश्नर

रायपुर में एक नवंबर से पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होगा...फिलहाल इसमें अब कोई संशय नहीं लगता। लोगों की जिज्ञासा यह है कि रायपुर का फर्स्ट पुलिस कमिश्नर कौन होगा? हालांकि, यह स्पष्ट हो चुका है कि आईजी लेवल का पुलिस कमिश्नर होगा। एडीजी प्रदीप गुप्ता की अध्यक्षता में बनी सात सदस्यीय कमेटी ने भी आईजी को पुलिस कमिश्नर बनाने की सिफारिश की है। और जब आईजी को इस पद पर बिठाना है तो जाहिर है कि सीटिंग आईजी को ही वेटेज दिया जाएगा। सीटिंग आईजी में सबसे सीनियर सुंदरराज बस्तर में हैं। नक्सलियों के सफाये के मार्च 2026 के डेडलाइन को देखते इस समय उन्हें कोई हिला नहीं सकता। रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा के पास ईओडब्लू और एसीबी भी है। इन दोनों जांच एजेंसियों के पास इतना वर्कलोड है कि सरकार उन्हें डिस्टर्ब करना नहीं चाहेगी। बच गए बिलासपुर आईजी संजीव शुक्ला, दुर्ग आईजी रामगोपाल गर्ग और सरगुजा आईजी दीपक झा। तीनों साफ-सुथरी छबि के आईपीएस अधिकारी हैं। प्रोफाइल के मामले में दीपक जरूर वजनदार पड़ेंगे। वे सात जिलों के एसपी रहे हैं। आईजी के तौर पर राजनांदगांव के बाद सरगुजा में दूसरा रेंज कर रहे हैं। बहरहाल, यह तय है कि डिसाइड इन तीन नामों में से होगा।

आईपीएस की लिस्ट

वैसे तो सुनने में आ रहा कि कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस के बाद एसपी की एक लिस्ट निकलेगी। महासमुंद एसपी डेपुटेशन पर जा रहे हैं। दो-तीन और पुलिस अधीक्षक सरकार के राडार पर हैं। पुलिस कमिश्नर बनने के बाद महासमुंद नया पुलिस रेंज बनेगा। अजय यादव इस रेंज के आईजी बन सकते हैं। आईजी बनने वालों में बद्रीनारायण मीणा का नाम भी हैं। दुर्ग, बिलासपुर और सरगुजा आईजी में से कोई अगर रायपुर पुलिस कमिश्नर बना तो बद्री को उनकी जगह आईजी पोस्ट किया जा सकता है।

सुब्रत को रेवेन्यू बोर्ड, मगर...

विकास शील को मुख्य सचिव बनाने के बाद सरकार ने उनसे सीनियर रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू को मंत्रालय से बाहर शिफ्थ कर दिया। दोनों को मुख्य सचिव के समकक्ष पोस्टिंगें मिली हैं। याने सम्मान का ध्यान रखा गया है। रेणु को व्यापम और माध्यमिक शिक्षा मंडल का चेयरमैन बनाया गया तो सुब्रत को प्रशासन अकादमी के डायरेक्टर जनरल के साथ अतिरिक्त प्रभार के तौर पर राजस्व बोर्ड का चेयरमैन का दायित्व सौंपा गया है। 31 अक्टूबर को टीपी वर्मा के रिटायर होने के बाद एक नवंबर को वे राजस्व बोर्ड का दायित्व संभालेंगे। हालांकि, सुब्रत का प्रशासन अकादमी का आदेश बदल सकता है। एक तो, कैडर लिस्ट में महानिदेशक प्रशासन अकादमी का पद प्रमुख सचिव लेवल का है। सुब्रत 2021 से एडिशनल चीफ सिकरेट्री हैं और अब मुख्य सचिव से सीनियर भी। फिर कायदे से रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन को अतिरिक्त प्रभार नहीं देना चाहिए। इससे पहले ऐसा कभी हुआ भी नहीं कि रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन के पास दो चार्ज रहे। सो, अंदेशा है कि 31 अक्टूबर को सरकार सुब्रत साहू के आदेश को संशोधित कर मुख्य पोस्टिंग चेयरमैन रेवेन्यू बोर्ड कर देगी। और प्रशासन अकादमी का अतिरिक्त प्रभार प्रमुख सचिव निहारिका बारिक या सोनमणि बोरा को सौंप दे।

ब्यूरोक्रेसी में दूसरे नंबर का पद

छत्तीसगढ़ में भले ही चेयरमैन रेवेन्यू बोर्ड की रेटिंग गिरा दी गई हो मगर दूसरे राज्यों में इसे नेक्स्ट टू सीएस माना जाता है। छत्तीसगढ़ के आईएएस के ग्रेडेशन लिस्ट में भी रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन को मुख्य सचिव के बाद दूसरे नंबर पर रखा गया है। डीएस मिश्रा और सीके खेतान को थोड़े दिन के लिए रेवेन्यू बोर्ड में अवसर मिला था, उसमें दोनों ने कई बड़े फैसले किए। बड़ी-बड़ी सीमेंट कंपनियों को हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। रेवेन्यू बोर्ड राजस्व का अपेक्स कोर्ट है। इसमें नायब तहसीलदार, तहसीलदार, कलेक्टर, कमिश्नर कोर्ट के फैसले की अपील होती है। यही नहीं, कमिश्नर लैंड रिकार्ड, माईनिंग और पंजीयन विभाग की अपील भी रेवेन्यू बोर्ड में की जाती हैं। बहरहाल बता दें, सीएस रैंक के एक आईएएस अफसर ने रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन रहते ऐसी तबाही मचाई थी कि सिस्टम हिल गया था। कलेक्टर-कमिश्नरों ने सरकार से फरियाद की, साहब इन्हें बदलिए...ये सारे फैसले पलटते जा रहे हैं। इसके बाद सरकार ने उन्हें रातोरात हटा दिया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या डीएमएफ घोटाले में ईडी की जांच के जद में कुछ पूर्व कलेक्टर आ सकते हैं?

2. डीएमएफ घोटाले में लिप्त रहे छत्तीसगढ़ के सप्लायर ईडी के नाम पर कांप क्यों रहे हैं?

मंगलवार, 30 सितंबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: नए मुख्य सचिव और चुनौतियां

 Chhattisgarh Tarkash 2025: 28 सितंबर, 2025

संजय के. दीक्षित

नए मुख्य सचिव और चुनौतियां

इस स्तंभ के प्रकाशित होने के 48 घंटे बाद विकास शील छत्तीसगढ़ के नए मुख्य सचिव की जिम्मेदारी संभाल लेंगे। विकास शील के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी की साख बहाल करने की होगी। वे ऐसे समय में प्रशासनिक मुखिया का दायित्व ग्रहण करने जा रहे हैं, जब घपले-घोटालों में सात वर्तमान और रिटायर आईएएस अधिकारी गिरफ्तार हो चुके हैं। डेपुटेशन पर सेवा देने आए इंडियन टेलीकाम सर्विस के दो अधिकारी बहती गंगा में डूबकी लगाने के चक्कर में सलाखों के पीछे पहुंच गए। और दूसरे कई मामलों में चार आईएएस अधिकारी ईडी और एसीबी के राडार पर हैं। इतना छोटा कैडर में दर्जन भर से अधिक अफसर अगर जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं तो समझा जा सकता है स्थिति क्या है। दूसरा, कामकाज को गति देने विकास शील को सिस्टम में अनुशासन और रिजल्ट पर जोर देना होगा। कलेक्टर, एसपी को टाईट कर उनमें समन्वय बिठाने का प्रयास करना चाहिए। बीच में कुछ ऐसा वाकया हुआ, जिसमें पता चला कि जिले के कलेक्टर-एसपी में बातचीत की तो दूर की बात देखादेखी नहीं है। हालांकि, ये अच्छी बात है कि विकास शील के आने से पहले गुड गवर्नेंस की दिशा में अहम काम करते हुए मंत्रालय समेत राजधानी के सभी विभागों में ई-ऑफिस लागू कर दिया गया है। पहले जहां दो फीसदी अफसर भी टाईम पर मंत्रालय नहीं आते थे, वहीं अब 70 प्रतिशत से अधिक अधिकारी 10 बजे मंत्रालय पहुंच जा रहे। मगर बायोमेट्रिक अटेंडेंस अभी भी चालू नहीं हो पाया है। भारत सरकार में चीफ सिकरेट्री रैंक के अफसर बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाते हैं मगर छत्तीसगढ़ में इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया गया है। विकास शील को खुद पहल करते हुए पहले दिन से ही बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाना शुरू कर देना चाहिए। जाहिर है, वे प्रारंभ करेंगे तो फिर बाकी अपने आप शुरू हो जाएंगे। जाहिर है, इस साल एक जनवरी को मुख्यमंत्री ने मंत्रालय में अफसरों की बैठक ली थी, उसमें भी उन्होंने टाईमिंग और अटेंडेंस को लेकर इशारों में अपनी मंशा व्यक्त की थी।

सिस्टम में कैडर जरूरी

मंत्रालय में हालांकि, टाईमिंग फॉलो करने और ई-ऑफिस से काफी चीजें स्मूथ हुई हैं मगर मंत्रालय का सिस्टम कुछ मामलों में अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहा है। राज्य बनने के 25 साल बाद भी मंत्रालयीन अधिकारियों का कोई कैडर नहीं बना। लिहाजा, मैट्रिक पास भृत्य और बाबू आज भी पांच-पांच साल में प्रमोशन पाकर अंडर सिकरेट्री, डिप्टी सिकरेट्री बन रहे हैं। जबकि, दीगर राज्यों में मंत्रालयीन अधिकारियों का अलग कैडर होता है। उनकी अलग से भर्ती होती है...मंत्रालय में काम करने की ट्रेनिंग दी जाती हैं। जाहिर है, मंत्रालय में ही अगर स्किल्ड सिस्टम नहीं होगा तो फिर चीजें फास्ट कैसे होंगी। अलबत्ता, मंत्रालय के बाहर भी हाल जूदा नहीं है। प्रायमरी सेक्टर...हेल्थ और स्कूल एजुकेशन की बात करें...हेल्थ में अंधा बांटे रेवड़ी की तरह किसी को भी सीएमओ बना दिया जा रहा। ऐसे रेवड़ी वाले सीएमओ साहबों से सरकार की योजनाओं को लेकर क्या उम्मीद पाली जा सकती है। कायदे से सीएमओ का एक कैडर बनाना चाहिए। स्कूल शिक्षा में गुरूजी लोग डीईओ और जेडी बन जा रहे। प्रशासनिक अनुभव उन्हें होता नहीं। जोर-जुगाड़ करके वे प्रशासनिक पद पर पहुंच तो जाते हैं मगर उस कार्य में सक्षम नहीं होते। लिहाजा, अनियमितता में लगातार सस्पेंड हो रहे या जांच में घिर रहे। इसी तरह बाकी विभागों में भी वर्किंग सिस्टम बनाने प्रयास करना चाहिए, जो 25 सालों में नहीं हो पाया।

500 से अधिक डिप्टी कलेक्टर

छत्तीसगढ़ सरकार के पास इस समय 500 से अधिक डिप्टी कलेक्टर हो गए हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार को विभिन्न विभागों के प्रशासनिक कार्यों में इनका उपयोग करना चाहिए। भूपेश बघेल सरकार ने अपर कलेक्टर रैंक के दो अफसरों को पहली बार डीपीआई में बिठाया था। मगर स्कूल शिक्षा के माफियाओं ने उन्हें साल भर तक कोई प्रभार नहीं देने दिया। हाई कोर्ट में याचिका लगी सो अलग। आखिरकार, दोनों को डीपीआई से हटाना पड़ गया। नए चीफ सिकरेट्री विकास शील को डिप्टी कलेक्टरों के सही उपयोग पर विचार करना चाहिए। संभागीय मुख्यालयों वाले जिलों में डिप्टी कलेक्टरों को जिला शिक्षा अधिकारी बनाने का आईडिया बुरा नहीं। हालांकि, ऐसा नहीं कि डिप्टी कलेक्टरों के आने से गड़बड़ियां रुक जाएंगी। मगर यह सही है कि प्रशासनिक चीजें कुछ दुरूस्त होंगी। शिक्षक बेचारे रैकेट के फेर में पड़ निबट जा रहे, उससे तो बचेंगे।

आईएएस को रजिस्ट्रार

छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ह्यूमन रिसोर्स को लेकर इतने गंभीर थे कि मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने सूबे के दोनों विश्वविद्यालयों में आईएएस को रजिस्ट्रार बनाया। बिलासपुर विश्वविद्यालय में तीन-तीन आईएएस रजिस्ट्रार रहे। डॉ0 एसके राजू, सोनमणि बोरा और शहला निगार। इसी तरह रायपुर विश्वविद्यालय में भी कई साल तक आईएएस कुलसचिव रहे। मगर इसके बाद रजिस्ट्रार का कैडर ही खतम कर दिया गया। अब रविशंकर विवि हो या फिर बिलासपुर के अटलबिहारी बाजपेयी विवि या दुर्ग, सरगुजा और बस्तर विश्वविद्यालय...सभी जगहों पर शिक्षकों को प्रभारी रजिस्ट्रार बना हायर एजुकेशन के सिस्टम को कबाड़ा किया जा रहा है। नए चीफ सिकरेट्री को हायर एजुकेशन की बेहतरी के लिए रजिस्ट्रार कैडर को फिर से जीवित करने का प्रयास करना चाहिए। आईएएस को न सही, राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को तो जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। यदि यूनिवर्सिटी के सिस्टम में सुधार होगा तो कॉलेजों की स्थिति बदलेगी।

6 दिन पहले आदेश का मतलब

छत्तीसगढ़ के 25 साल में 13 मुख्य सचिवों की नियुक्ति हुई हैं। इनमें पहली दफा अबकी सीएस के रिटायरमेंट के छह दिन पहले नए सीएस का आदेश निकाल दिया गया। इससे पहले अभी तक सीएस के रिटायरमेंट के दिन सुबह या दोपहर आदेश निकलता था। अमिताभ जैन के 30 जून को रिटायरमेंट के दिन भी ऐसा ही हुआ था। 12 बजे से कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी और उसमें अमिताभ जैन की विदाई के बाद आदेश निकालने का प्लान था। कैबिनेट में सारे मंत्री एक-एक कर विदाई भाषण दे चुके थे। इस बीच दिल्ली से फोन आ गया। अमिताभ को तीन महीने का एक्सटेंशन के लिए प्रस्ताव भेजिए। और फिर उन्हें सेवा विस्तार मिल गया। इस बार भी 30 सितंबर को अमिताभ जैन की विदाई के लिए फिर से कैबिनेट बुलाई गई है। बैठक में विदाई भाषण भी होगा। मगर फर्क यह रहेगा कि नए सीएस को लेकर कोई सस्पेंस जैसी स्थिति नहीं रहेगी। सरकार ने छह दिन पहले आदेश जारी कर अपना स्टैंड क्लियर कर दिया और अपना कांफिडेंस भी बता दिया। दरअसल, बाकी राज्यों में भी सीएस की नियुक्ति का ट्रेंड बदल रहा।

फास्ट पोस्टिंग का रिकार्ड

अमिताभ जैन भले ही पौने पांच साल की सीएस की पारी खेलकर विदा हो रहे हैं मगर सबसे फास्ट पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग का आरपी मंडल का रिकार्ड शायद ही कोई तोड़ पाए। नवंबर 2020 में आरपी मंडल जब मुख्य सचिव से रिटायर हुए तो उन्हें अमिताभ जैन के नए सीएस के आदेश निकलने के 20 मिनट के भीतर नया रायपुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन बनाने का आर्डर जारी हो गया था। छत्तीसगढ़ में अभी तक किसी भी मुख्य सचिव को सेवानिवृत्ति के बाद इतनी फास्ट पोस्टिंग नहीं मिली। सुनिल कुमार को भी तीन महीने लग गए थे। हालांकि, यह बताना जरूरी होगा कि छत्तीसगढ़ के 12 मुख्य सचिवों में से प्रॉपर रिटारयमेंट कम का ही हुआ। एसके मिश्रा, एके विजयवर्गीय, शिवराज सिंह और विवेक ढांड ने पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए समय से पहले वीआरएस ले लिया था। पी0 जॉय उम्मेन ने भी वीआरएस लिया मगर इसके पीछे पद से हटाए जाने की उनकी नाराजगी रही। तीसरे मुख्य सचिव आरपी बगाई की सरकार के साथ रिश्तों की खाई इतनी चौड़ी हो गई थी कि प्रॉपर रिटायरमेंट का सवाल नहीं उठता। विवेक ढांड ने भी वीआरएस लिया था मगर पर्दे के पीछे कुछ और बातें रही। ढांड के बाद अजय सिंह नौंवे मुख्य सचिव बनें। मगर सरकार बदलने पर जनवरी 2019 में उन्हें हटा दिया गया।

रिटायरमेंट का तोहफा

छत्तीसगढ़ में अमिताभ जैन से पहले 11 मुख्य सचिव हुए हैं, उनमें से तीन को छोड़ सभी को सभी को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली है। उन तीन में प्रथम मुख्य सचिव अरुण कुमार, आरपी बगाई और पी0 जॉय उम्मेन शामिल हैं। बताते हैं, अरुण कुमार पोस्टिंग के इच्छुक नहीं थे, इसलिए वे भोपाल चले गए। आरपी बगाई के सरकार से रिश्ते बिगड़ गए थे। और उम्मेन को रमन सरकार ने बिजली बोर्ड का चेयरमैन कंटिन्यू करने का ऑफर दिया था मगर छुट्टी मनाने के दौरान सरकार द्वारा खो कर दिए जाने से वे इतने नाराज थे कि रिटायरमेंट का तोहफा स्वीकार नहीं किया। इन तीनों के अलावे सभी को सरकारों ने रिटायरमेंट का गिफ्ट दिया। सुनील कुजूर को भले ही थोड़ा छोटा मिला मगर उन्हें भी पिछली सरकार ने सहकारिता निर्वाचन आयुक्त बनाया गया।

अमिताभ को सीआईसी?

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन 30 सितंबर को रिटायर हो रहे हैं। उनके पास राज्य नीति आयोग के उपाध्यक्ष का पद है मगर अतिरिक्त प्रभार होने की वजह से सीएस से हटते ही यह ओहदा स्वयमेव समाप्त हो जाएगा। अमिताभ को मुख्य सूचना आयुक्त बनाए जाने की अटकलें कई महीने से चल रही हैं। उन्होंने इसके लिए इंटरव्यू भी दिया है। इस बीच विद्युत नियामक आयोग मे ंचेयरमैन का पद खाली हो गया है। इस पद के लिए अमिताभ का दावा प्रबल समझा जा रहा था। मगर सिस्टम के रफ्तार से नहीं लगता कि अमिताभ को पोस्टिंग देने फिलहाल कोई विशेष उत्साह दिखाया जा रहा। चेयरमैन के पद को खाली हुए 10 दिन होने जा रहे मगर उर्जा विभाग ने अभी तक विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया है। ऐसे में बहुत संभावना है कि रिटायरमेंट के बाद अमिताभ को मुख्य सूचना आयुक्त बनाया जाए। हालांकि, सीआईसी का मामला हाई कोर्ट में लंबित है। किंतु सुनने में आ रहा, कोर्ट में कुछ हलचल हुआ है। स्टे हटते ही सरकार सूचना आयोग में नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ कर देगी। विद्युत नियामक आयोग में रिस्क इस बात का है कि नेशनल लेवल पर इसका विज्ञापन होना है, कोई बाहर का आदमी बड़ा एप्रोच लेकर आ गया तो फिर जोखिम हो जाएगा।

19 बैच के कलेक्टर?

राज्योत्सव से पहले सूबे में कलेक्टरों का ट्रांसफर किए जाने का सरकार का कोई प्लान नहीं था। मगर राजनांदगांव कलेक्टर डॉ0 सर्वेश्वर भूरे के डेपुटेशन पर जाने की वजह से वहां नए कलेक्टर की पोस्टिंग अब अपरिहार्य हो गई है। सर्वेश्वर ज्वाइंट टेक्सटाइल कमिश्नर बनकर मुंबई जा रहे हैं। समझा जाता है कि अक्टूबर में किसी दिन वे यहां से रिलीव हो जाएंगे। जाहिर है, इससे पहले राजनांदगांव में नए कलेक्टर की पोस्टिंग करनी होगी। कलेक्टर के लिए यंग अफसरों की बात की जाए, तो 2018 बैच कंप्लीट हो गया है, 2019 बैच शुरू होना है। 2019 बैच में पांच आईएएस अफसर हैं। वैसे राजनांदगांव विधानसभा अध्यक्ष और 15 साल के मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह का निर्वाचन जिला है। उनकी कोई पसंद अगर सामने आई तो हो सकता है, 2019 बैच से उपर के किसी आईएएस अधिकारी को मौका मिल जाए। हालांकि, अपवादस्वरूप दो-एक बार को छोड़ दें तो राजनांदगांव कभी किसी आईएएस का फर्स्ट डिस्ट्रिक्ट नहीं रहा। राजनांदगांव मुकेश बंसल का तीसरा जिला रहा तो सर्वेश भूरे का चौथा।

बिना मेजर सर्जरी सत्ता बदलाव

30 सितंबर को अमिताभ जैन के रिटायरमेंट से पहले आईएएस की एक ट्रांसफर लिस्ट निकलेगी। जाहिर है, एसीएस रेण पिल्ले और सुब्रत साहू नए मुख्य सचिव विकास शील से सीनियर हैं, इसलिए दोनों को मंत्रालय से शिफ्थ किया जाएगा। हालांकि, दोनों के पास सरकार में कोई खास जिम्मेदारी नहीं है। रेणु के पास साइंस एंड टेक्नालॉजी है और सुब्रत के पास सहकारिता। सहकारिता में वैसे भी सीआर प्रसन्ना सिकरेट्री हैं। ऐसे में, सहकारिता से सुब्रत को हटाया जाएगा तो कोई बड़ा परिवर्तन नहीं होगा। सुब्रत के पास प्रशासन अकादमी है। मगर जहां तक संभावना है अक्टूबर में रेवेन्यू बोर्ड के चेयरमैन का पद खाली हो रहा है। टीपी वर्मा 31 अक्टूबर को रिटायर होंगे। अत्यधिक संभावना है सुब्रत को अक्टूबर एंड में प्रशासन अकादमी के डायरेक्टर जनरल के बदले रेवेन्यू बोर्ड चेयरमैन बना दिया जाए। रही बात रेणु पिल्ले की तो उनके पास इस समय माध्यमिक शिक्षा मंडल और व्यापम चेयरमैन का चार्ज है। साइंस एंड टेक्नालॉजी हटने के बाद उनके पास इन दोनों महत्वपूर्ण परीक्षा एजेंसियों का प्रभार रहेगा। रेणु पिल्ले का साइंस एंड टेक्नालॉजी सरकार किसी और सिकरेट्री को दे देगी। कहने का मतलब यह है कि नए चीफ सिकरेट्री के ज्वाईन करने के बाद सरकार को बहुत ज्यादा उठापटक करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आमतौर पर कई अधिकारियों को सुपरसीड करके जब मुख्य सचिव बनाए जाते हैं तो बड़ी प्रशासनिक सर्जरी होती है। मगर छत्तीसगढ़ में पहले से ही दोनों सीनियर आईएएस अधिकारियों के पास जिम्मेदारी कम कर दी गई थी। दोनों बैचमेट ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ के विभाग यथावत रहेंगे। लिहाजा, सीएम सचिवालय और जीएडी को ज्यादा झंझट नहीं करना पड़ेगा।

डेपुटेशन का तांता

राजनांदगांव कलेक्टर डॉ0 सर्वेश भूरे प्रतिनियुक्ति पर ज्वाइंट टेक्सटाइल कमिश्नर बनकर मुंबई जा रहे हैं। उनके बाद छत्तीसगढ़ से आईएएस अधिकारियों के डेपुटेशन पर जाने का तांता लगने वाला है। 2006 बैच के एक आईएएस दिवाली के बाद दिल्ली जाएंगे। 2009 बैच की महिला आईएएस के सेंट्रल स्पोर्ट्स में जाने की बात सुनाई पड़ रही है। 2010 बैच के एक, 2011 बैच के तीन आईएएस और लाइन में हैं। 2012 बैच के दो आईएएस का अगले साल दिल्ली जाने का प्लान है। जगदलपुर कलेक्टर हरीश एस0 भी निजी कारणों से सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने की चर्चा है। असल में, भारत सरकार ने सेंट्रल डेपुटेशन के लिए डायरेक्टर लेवल की एक पोस्टिंग केंद्र में करना अनिवार्य कर दिया है। इसके बिना केंद्र में कभी पोस्टिंग नहीं मिलेगी। वरना, पहले एक समय था...जब छत्तीसगढ़ से एक या दो आईएएस दिल्ली में होते थे। इस समय सर्वेश भूरे को मिलाकर 17 आईएएस डेपुटेशन पर हैं। अगले साल मई-जून तक ये संख्या 25 से उपर पहुंच जाएगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ में मुख्य सचिव की नियुक्ति हो गई, पूर्णकालिक डीजीपी के अप्वाइंटमेंट का अटका पेंच कब तक दूर होगा?

2. किस मंत्री और उनके अधीन बोर्ड के चेयरमैन के बीच मनीराम को लेकर खींचतान बढ़ती जा रही है?

शनिवार, 20 सितंबर 2025

Chhattisgarh Tarkas 2025: कलेक्टर-एसडीएम टैक्स

 Chhattisgarh Tarkas 2025: 22 सितंबर, 2025

संजय के. दीक्षित

कलेक्टर-एसडीएम टैक्स

छत्तीसगढ़ में एक महिला विधायक के वायरल ऑडियो ने लोगों को हिला दिया है। पब्लिक को यह बखूबी पता है कि सूबे में करप्शन का कोई लेवल नहीं रह गया है। मगर माफियाओं की तरह कलेक्टर, एसडीएम इस तरह रंगदारी टैक्स वसूलने लगे, ये तो शर्मनाक है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि पैसे के लिए कलेक्टर, एसडीएम इतना नीचे गिर जाएं कि विपक्षी विधायक से गठजोड़ करने लगें। ऑडियो में विधायक रेत माफिया से किस बेफिक्री से बोल रही कि कलेक्टर इतना से कम में मानेगा नहीं, फिर भी मैं बात कर लूंगी...एसडीएम को इतना देना पड़ेगा। हालांकि, विधायक ने ऑडियो को साजिश बताया है मगर सिस्टम को इसकी जांच करानी चाहिए, क्योंकि इस ऑडियो से विधायिका और कार्यपालिका की बची-खुची साख कटघरे में आ गई है।

मलाईदार पोस्टिंग और जेल

वक्त का गजबे चक्कर है...कभी आसमान पर पहुंचा देता है तो कभी धड़ाम से जमीन पर पटक देता है। विषय है गिरफ्तार आईएएस निरंजन दास का। राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस बने निरंजन दास का जलवा लोगों ने बीजेपी में भी देखा तो कांग्रेस में भी। बीजेपी के दौरान नॉन आईएएस होते भी तीन साल तक भिलाई जैसे निगम के कमिश्नर रहे तो तीन साल नगरीय प्रशासन के डायरेक्टर। गरियाबंद में दो साल कलेक्टर की। हालांकि, कांग्रेस शासनकाल में उन्हें गजब का पोर्टफोलिया मिला। वे नगरीय प्रशासन के सिकरेट्री भी बनें। 31 जनवरी 2023 को रिटायर हुए तो 24 घंटे के भीतर संविदा पोस्टिंग मिल गई थी। और, विभाग ऐसे कि उन्होंने कभी कल्पना नहीं की होगी। आबकारी सचिव, आबकारी कमिश्नर, पंजीयन सचिव, नॉन के एमडी, ब्रेवरेज कॉरपोरेशन के एमडी। एक साथ पांच पोस्टिंग और पांचों उंगली घी वाली। संविदा में ऐसी पोस्टिंग किसी सचिव को आज तक नसीब नहीं हुई होगी। मगर निरंजन की ये हैसियत छह-सात महीने ही रह पाई। ईडी ने छापा मारकर उनकी हवाई रफ्तार पर ऐसा ब्रेक लगाया कि एक साल की संविदा नियुक्ति में तीन-चार महीना इधर-उधर भागते बीता। और अब...? सुप्रीम कोर्ट से गिरफ्तारी पर रोक की अर्जी खारिज होने के बाद वे बोरिया-बिस्तर समेटकर भागने के फेर में थे कि ईओडब्लू ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।

दुहराएगा इतिहास?

कहते हैं इतिहास दुहराता है...छत्तीसगढ़ में यह सही उतरता दिख रहा है। मुख्य सूचना आयुक्त सरजियस मिंज 2017 में रिटायर हुए तो करीब डेढ साल तक यह पद खाली रहा। तब तत्कालीन चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड का सीआईसी बनना लगभग तय माना जा रहा था। मगर जैसे ही रेरा अस्तित्व में आया, उन्होंने सीआईसी की कुर्सी पर से अपना रुमाल उठा लिया और फिर सूबे की सबसे बड़ी पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग उन्हें मिल गई। वे रेरा के चेयरमैन बन गए। इसके बाद एमके राउत को सीआईसी बनाया गया। राउत को रिटायर हुए तीन साल हो गए हैं। मगर अभी तक इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई है। मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने सीआईसी के लिए इंटरव्यू दिया है, लेकिन मामला गोल-गोल रानी की तरह घूम रहा है। ताजा अपडेट यह है कि अमिताभ जैन बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन बनेंगे। 19 सितंबर को हेमंत वर्मा रिलीव होकर त्रिपुरा चले गए और अब इस पद पर भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। अमिताभ अगर बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन बन गए तो फिर इतिहास दुहराएगा।

41 साल का सर्विस क्लब

मुख्य सचिव अमिताभ जैन अगर बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन बनें तो वे छत्तीसगढ़ के 42 साल वाले सर्विस क्लब में शामिल हो जाएंगे। अमिताभ आईएएस में 36 साल की सर्विस पूरी कर चुके हैं। और पांच साल उन्हें बिजली विनियामक आयोग में मिल जाएगा। याने 41 साल की सरकारी सर्विस हो जाएगी। उनसे पहले विवेक ढांड और अजय सिंह इस क्लब के मेंबर हैं। विवेक आईएएस में करीब 37 साल रहे। उसके बाद पांच साल रेरा में। फिर डेढ़ साल योग आयोग में। अजय सिंह करीब 37 साल आईएएस में रहने के बाद प्लानिंग कमीशन में रहे और इस समय राज्य निर्वाचन कमिश्नर हैं। हालांकि, पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के मामले में अजय सिंह विवेक और अमिताभ के सामने थोड़ा कमजोर पड़ेंगे। राज्य निर्वाचन की पोस्टिंग सम्मानजनक है मगर रेरा और बिजली विनियामक जैसा ग्लेमर नहीं।

मुकद्दर का कमाल!

जब तक आईएएस बीएल अग्रवाल क्रीज पर रहे, तब तक यही समझा जाता था कि अमिताभ जैन को सीएस की कुर्सी तक पहुंचना आसान नहीं। बीएल, अमिताभ से जस्ट एक बैच उपर 88 बैच के आईएएस थे। और 22 साल में आईएएस बन जाने से सर्विस भी लंबी थी। जाहिर है, अमिताभ के सपने में कोई आता होगा तो वो बीएल ही होंगे। अलबत्ता, अमिताभ गजबे किस्मती हैं। कौन सी ऐसी अच्छी पोस्टिंग रही, जो उन्होंने नहीं की। रायपुर कलेक्टर से लेकर डीपीआर तक। दो बार पीडब्लूडी सिकरेट्री। वित्त, वाणिज्यिक कर से लेकर राजभवन सचिव तक। अमिताभ प्रमुख सचिव थे, इसी दौरान बीएल अग्रवाल सर्विस से बाहर हो गए। इसके बाद तो फिर...अमिताभ जैन ने पौने पांच साल की कीर्तिमानी पारी खेल डाली। और अब उनका भाग्य देखिए...सीएस से रिटायरमेंट से 11 दिन पहले बिजली विनियामक आयोग चेयरमैन की कुर्सी खाली हो गई। ऐसा भी नहीं कि हेमंत वर्मा को प्रेशर डालकर हटाया गया हो। उनका त्रिपुरा में सलेक्शन हो गया और फायदे को देखते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसे अब किस्मत नहीं कहेंगे तो फिर क्या कहेंगे।

समय का चक्र

नॉन घोटाले में प्रिंसिपल सिकरेट्री डॉ. आलोक शुक्ला के यहां एसीबी ने छापा मारा तो ऐसा नहीं कि किसी बात को लेकर सरकार उनसे खफा हो गई थी। 2008 के विधानसभा चुनाव में आलोक शुक्ला के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी रहने के दौरान राज्य सरकार के साथ उनके संबंध जरूर बेहद खराब हो गए थे। मगर समय के साथ खाई पट गई और 2016 में आलोक जब सेंट्रल डेपुटेशन से रायपुर लौटे तो उनका रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत किया गया था। रेड कार्पेट का मतलब यह कि पहली बार किसी आईएएस को डेपुटेशन से लौटने से पहले पोस्टिंग दे दी गई, वो भी दो अहम विभागों की वाली। आलोक के रायपुर लौटने से करीब हफ्ता भर पहले सरकार ने प्रमुख सचिव खाद्य और स्वास्थ्य बनाने का आदेश जारी कर दिया था। तब ब्यूरोक्रेसी में भी काफी लोगों को ये खटका था कि आखिर क्या कारण है कि सरकार उन पर इतना प्रेम बरसाने लगी। मगर करीब सालेक भर बाद ही एसीबी का छापा पड़ा तो लोग हैरान रह गए। कुल मिलाकर इसे ग्रह-नक्षत्र का खेल कह सकते हैं। जाहिर है, आलोक रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते थे। पुराने मंत्रालय भवन में उस समय कंप्यूटर और लेपटॉप के कीबोर्ड खटखटाने वाले गिने-चुने अफसर थे, उनमें एक आलोक थे। छत्तीसगढ़ के पीडीएस की सुप्रीम कोर्ट से लेकर पूरे देश में तारीफ हुई, उसे बनाने वाले भी आलोक थे। मगर वही आलोक नॉन घोटाले के अभियुक्त बन गए...ईडी कोर्ट में पहुंच सरेंडर कर रहे तो ये समय का चक्र ही है।

फिलीपींस से मुख्य सचिव

छत्तीसगढ़ के अगले मुख्य सचिव विकास शील मनीला से दिल्ली लौट चुके हैं। वे छत्तीसगढ़ कब आएंगे, यह अभी क्लियर नहीं। मगर लोग इस बात से बेचैन हैं कि उनका मोबाइल स्वीच ऑफ आ रहा। फोन लगाने वालों में कुछ रीयल चाहने वाले हैं, तो कुछ बधाई देकर अपना नंबर बढ़वाने वाले। बहरहाल, बात मुख्य सचिव की तो अभी तक राज्यों में दिल्ली से मुख्य सचिव आते थे। मगर छत्तीसगढ़ का कद इस मामले में बढ़ गया है, यहां सीधे फिलीपींस से मुख्य सचिव आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के लिए ये खास तो है ही।

कलेक्टर और मुख्य सचिव

छत्तीसगढ़ में अभी तक 11 मुख्य सचिव हुए हैं, विकास शील 12वें होंगे। इन 12 में से चार मुख्य सचिव ऐसे हैं, जो रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। इनमें सुनिल कुमार पहले नंबर पर हैं। उनके बाद आरपी मंडल, अमिताभ जैन और अब विकास शील। मंडल के बाद रायपुरिया कलेक्टर के चीफ सिकरेट्री बनने का हैट्रिक बन जाएगा। और लगता है रायपुरिया कलेक्टर के चीफ सिकरेट्री बनने का सफर आगे भी जारी रहेगा। विकास शील 2029 में रिटायर होंगे तो उनकी कुर्सी के दो ही दावेदार होंगे। सुबोध कुमार सिंह और सोनमणि बोरा। दोनों रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। सुबोध 2027 में सीएस बनने के एलिजिबल हो जाएंगे तो सोनमणि जनवरी 2029 में। अगर सुबोध सिंह मुख्य सचिव बन गए तो भी सोनमणि दुखी नहीं होंगे क्योंकि उनके पास पर्याप्त टाईम रहेगा। सुबोध अगस्त 2033 में रिटायर होंगे। उसके बाद सोनमणि के पास सीएस रहने के लिए ढाई साल बचेगा। सोनमणि का रिटायरमेंट मार्च 2036 में हैं। हालांकि, 2002 बैच के आईएएस रोहित यादव बोरा के कंपीटिशिन में रहेंगे। रोहित 2032 में एसीएस हो जाएंगे। यदि सोनमणि की जगह रोहित का ग्रह-नक्षत्र काम कर गया तो वे भी रायपुर कलेक्टर रह चुके हैं। सोनमणि और रोहित का रिटायरमेंट ईयर 2036 है। जाहिर है, सुबोध के बाद यकीनन सोनमणि और रोहित में से कोई एक मुख्य सचिव बनेगा। और दिलचस्प यह है कि इन दोनों के बाद मुख्य सचिव के तगड़े दावेदार सिद्धार्थ कोमल परदेशी भी रायपुर के कलेक्टर रह चुके हैं। हालांकि, 2003 बैच में सिद्धार्थ समेत चार आईएएस अधिकारी हैं। मगर इनमें से सिर्फ सिद्धार्थ रायपुर के कलेक्टर रहे हैं। कहने का आशय यह है रायपुर कलेक्टर के मुख्य सचिव बनने का क्रम आगे भी जारी रहेगा।

बजट 15 करोड़, पहुंचा डाला 50 करोड़

नवा रायपुर के सेक्टर-24 में ट्राईबल म्यूजियम बन रहा है। भारत सरकार के पइसे से बन रहे म्यूजियम के लिए 2018 में 15 करोड़ का टेंडर हुआ था। इसके बाद टेंडर का अमाउंट 25 करोड़ हुआ फिर 45 करोड़। साढ़े पांच करोड़ रुपए डिजिटल वर्क के लिए सेंक्शन हुआ है। पीएम नरेंद्र मोदी का ये ड्रीम प्रोजेक्ट है। 2014 में पहली बार पीएम बनने के बाद उन्होंने आदिवासी बहुल राज्यों में ट्राईबल म्यूजियम बनाने का ऐलान किया था। 45 करोड़ के टेंडर में 17 करोड़ की सिर्फ मूर्तियां लगाई जा रही हैं। बिलिंग के फेर में मूर्तियों का इस कदर जाल बिछा दिया गया कि मुआयना करने आए केंद्रीय प्रतिनिधियों को कहना पड़ा कि मूर्तियों का म्यूजियम मत बना दीजिए...ट्राईबल टच रखिए। ताकि, म्यूजियम ही रहे, लग्जरी होटल न दिखे। असल में, मूर्तियों का खेल लाजवाब होता है। 172 नगरीय निकायों में अटलजी की प्रतिमाओं का मामला अभी ज्यादा दिन नहीं हुआ है। बाद में कोई बखेड़ा खड़ा हो, इससे बचने सिस्टम को इसकी सतत् मानिटरिंग करनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या पीएम आवास योजना में छत्तीसगढ़ कोई बड़ा धमाका करने वाला है?

2. विकास शील के मुख्य सचिव बनने के बाद एसीएस ऋचा शर्मा और मनोज पिगुआ क्या सेंट्रल डेपुटेशन का अब रास्ता तलाशेंगे?

रविवार, 14 सितंबर 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: तरकश: 17 बरस की अविराम यात्रा

 Chhattisgarh Tarkash 2025: 15 सितंबर, 2025

संजय के. दीक्षित

तरकश: 17 बरस की अविराम यात्रा

2008 में हरिभूमि समाचार पत्र से प्रारंभ हुआ साप्ताहिक स्तंभ ’तरकश’ ने 17 बरस पूरे कर लिए हैं...वो भी अविराम। जाहिर है, किसी भी स्तंभ के लिए सबसे जरूरी निरंतरता होती है। 2018 के लास्ट में महीने भर के भीतर दो निकटतम परिजनों को खोने की वजह से सिर्फ तीन हफ्ते का ब्रेक आया। वरना, रायपुर में रहे या रायपुर से बाहर, प्रयास हमेशा रहा कि तरकश अनवरत जारी रहे। इसका श्रेय छत्तीसगढ़ के सुधि पाठकों के भरोसा और जुड़ाव को जाता है। 2018 के पहले विरले कभी ब्रेक आया भी तो पाठकों के घनघनाते फोन और मैसेज ने प्रेरित किया कि कठिन हालातों में भी ’तरकश’ कभी रुकना नहीं चाहिए। और वैसा ही हुआ। 2008 में तरकश प्रारंभ हुआ, उसके बाद चार विधानसभा चुनाव हुए। सरकारें बदली, सिस्टम बदला। मगर स्तंभ न रुका, न तेवर बदला...और न राग-द्वेष को कभी स्थान मिला। बहरहाल, किसी एक अखबार में किसी कॉलम की 17 बरस की यात्रा बहुत अधिक नहीं, तो कम भी नहीं कही जा सकती। इसके लिए हरिभूमि पत्र और उसके प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी को आभार, जिन्होंने विश्वासपूर्वक अपना प्लेटफार्म उपलब्ध कराया...आभार छत्तीसगढ़ के लाखों पाठकों का भी...जिनकी बदौलत तरकश का सफर अविराम जारी है।

आखिरी कप्तान, आखिरी आईजी

रायपुर जिला अंग्रेजी शासन काल के पहले अस्तित्व में आ गया था। कलेक्ट्रेट से लगा रायपुर का टाउन हॉल का निर्माण 1860 में हुआ। उससे पहले रायपुर में एसपी बैठने लगे थे। इसके बाद पिछले तीन-चार दशक की बात करें तो मध्यप्रदेश के दौर में रायपुर में विजय रमण से लेकर सीपीजी उन्नी, रुस्तम सिंह, सरबजीत सिंह जैसे एसपी रहे तो छत्तीसगढ़ बनने के बाद डीएम अवस्थी, अशोक जुनेजा कप्तान बने, जो बाद में डीजीपी तक पहुंचे। इस समय रायपुर जिला पुलिस के लिए खुशी का पल है तो इमोशनल होने का भी। रायपुर जिला पुलिस अब कमिश्नरेट में तब्दील होने जा रहा है। शायद एक नवंबर से रायपुर में पुलिस कमिश्नर बैठने लगेंगे। खुशी इसलिए कि रायपुर पुलिस का रुतबा बढ़ने वाला है और इमोशनल उन यादों को लेकर कि जिला पुलिस और एसपी अब अतीत की बात हो जाएगी। जाहिर है, डॉ0 लाल उमेद सिंह रायपुर जिले के आखिरी पुलिस कप्तान होंगे। अगले महीने 31 अक्टूबर के बाद यह पद समाप्त हो जाएगा। हालांकि, रायपुर आईजी अमरेश मिश्रा भी आखिरी आईजी होंगे। रायपुर पुलिस रेंज भी अब खतम हो जाएगा। उसकी जगह रायपुर ग्रामीण या फिर महासमुंद रेंज हो सकता है।

चीफ सिकरेट्री और संयोग-1

चीफ सिकरेट्री के रिटायर होने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। यह स्तंभ प्रकाशित होने के बाद अमिताभ जैन के एक्सटेंशन समाप्त होने में सिर्फ 14 दिन बच जाएंगे। अगला चीफ सिकरेट्री कौन बनेगा? इस यक्ष प्रश्न का जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। हैं तो सिर्फ अटकलें और संभावनाएं। ये अवश्य है कि 94 बैच की एडिशनल चीफ सिकरेट्री ऋचा शर्मा अब मजबूत दावेदार के तौर पर उभर रही हैं। ऋचा का नाम पहले नहीं था। मगर मंत्रालय के गलियारों में उनकी चर्चाएं शुरू हो गई हैं। हालांकि, होना सब कुछ दिल्ली से है मगर ऋचा के नाम पर अगर मुहर लगी तो वे छत्तीसगढ़ की चौथी लोकल चीफ सिकरेट्री होंगी। सबसे पहले फरवरी 2014 में विवेक ढांड को मुख्य सचिव बनने का मौका मिला था। उनके बाद जनवरी 2018 में अजय सिंह आए, वे बिलासपुर के थे। और नवंबर 2020 में अमिताभ जैन सीएस बने, वे भी लोकल हैं। अब अगर ऋचा को मौका मिला, तो यह संख्या चार हो जाएंगी। बता दें, ऋचा छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले की रहने वाली हैं, उनके पिता रायपुर में जेलर रहे।

चीफ सिकरेट्री और संयोग-2

चीफ सिकरेर्ट्री की दौड़ में 94 बैच के मनोज पिंगुआ का नाम भी शामिल हैं। दावा है कि 30 जून को पावर हाउस से अगर फोन नहीं आया होता तो मनोज मुख्य सचिव बन गए होते। मनोज अगर चीफ सिकरेट्री बनेंगे तो तीसरे मेरिटोरियस स्टूडेंट होंगे, जो सूबे की सबसे बड़ी प्रशासनिक कुर्सी तक पहुंचेंगे। पड़ोसी राज्य झारखंड के रहने वाले मनोज बोर्ड परीक्षा में मेरिट में आ चुके हैं। रांची के नामी आवासीय विद्यालय नेतरहाट से उन्होंने अपनी स्कूलिंग की है। उनसे पहले अजय सिंह और अमिताभ जैन भी मेरिटोरियस स्टूडेंट रहे हैं। खैर, संयोग तो सुब्रत साहू के साथ भी बनेगा। दूसरे नंबर के सबसे सीनियर आईएएस अधिकारी सुब्रत के पिता ओडिसा के चीफ सिकरेट्री रहे हैं। अगर सुब्रत को अवसर मिलेगा तो फिर चीफ सिकरेट्री का बेटा चीफ सिकरेट्री बनेगा। यहां अमिताभ जैन के बाद सबसे सीनियर आईएएस रेणु पिल्ले की चर्चा भी लाजिमी है। रेणु पिल्ले के पिता आंध्रप्रदेश के बड़े तेज तर्रार आईएएस थे। अगर रेणु का नंबर लगा तो आईएएस की बेटी बनेंगी मुख्य सचिव। अमिताभ जैन के बाद रेणु पिल्ले छत्तीसगढ़ की सबसे सीनियर आईएएस अधिकारी होंगी।

रेखाओं का खेल

चीफ सिकरेट्री के लिए वैसे तो नाम आधा दर्जन आईएएस अधिकारियों के चल रहे हैं। मगर एडीबी में मनीला में पोस्टेड विकास शील और भारत सरकार में कार्यरत अमित अग्रवाल का नाम अटकलों में इस समय उपर चल रहे हैं। दोनों छत्तीसगढ़ कैडर के अधिकारी हैं। विकास शील 94 बैच के आईएएस हैं। सीएस बनाने से पहले उन्हें मनीला से वापिस बुलाना होगा। वैसे 93 बैच के आईएएस अमित अग्रवाल अगर छत्तीसगढ़ आएं तो 94 बैच डिस्टर्ब नहीं होगा। फिर एसीएस लेवल पर चेंज की जरूरत नहीं पड़ेगी। मगर मिलियन डॉलर का सवाल है, डीएस मिश्रा, एमके राउत, सीके खेतान सीएस नहीं बन पाए और अशोक विजयवर्गीय, सुनील कुजूर को मौका मिल गया। जाहिर है, सीएस और डीजीपी बनने के लिए रेखाओं का खेल बड़ा होता है। जिसके हाथ में किस्मत की लकीरें चकमदार और गुरू प्रबल होगा, उसको कोई रोक नहीं पाएगा।

मंत्री कमजोर क्यों?

राजकाज के मामले में छत्तीसगढ़ के मंत्रियों का पारफर्मेंस कैसा है, इसकी रिपोर्ट सरकार के पास होगी। मगर राजनीतिक तौर पर मंत्रियों की बैकफुट वाली स्थिति सियासी पंडितों को हैरान कर रही है। एक तो विष्णुदेव कैबिनेट नए मंत्रियों से भरा हुआ है। बोलने-बालने में दो-एक फायर ब्रांड मंत्री थे या आगे बढ़कर खेलने वाले...वे आश्चर्यजनक तौर पर खुद को समेट लिए हैं। बाकी को कहां क्या हो रहा, इससे कोई वास्ता नहीं। विपक्ष के हमलों का बीजेपी को सत्ताधारी पार्टी की तरह जवाब देना चाहिए, वो सिरे से नदारत है। उल्टे डेढ़ साल पहले 72 सीट से आधे पर आ गई कांग्रेस पार्टी का इतना जल्द उठ खड़े होना बीजेपी के रणनीतिकारों के माथे पर बल डाल रहा है। कुल मिलाकर आशय यह है कि सत्ताधारी पार्टी में वो औरा और कांफिडेंस नहीं दिखाई पड़ रहा, जिसकी आम आदमी उम्मीद कर रहा है। काम होना, न होना अलग बात है। सत्ता खेमे का इकबाल तो दिखना चाहिए। इसके लिए मंत्रियों और नेताओं को एक्स्ट्रा बुस्टप देने की जरूरत है।

नए पुलिस रेंज का नाम?

रायपुर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने के बाद महासमुंद, धमतरी, बलौदाबाजार और गरियाबंद जिले के लिए एक अन्य पुलिस रेंज का गठन किया जाएगा। पिछली सरकार के समय रायपुर ग्रामीण रेंज बनाया गया था। डॉ0 आनंद छाबड़ा और अजय यादव खुफिया चीफ के साथ सिर्फ रायपुर जिले वाले रेंज के आईजी थे। उससे पहले रमन सरकार के दौरान मुकेश गुप्ता रायपुर के सिंगल जिले वाले रेंज के आईजी रहे। पिछली सरकार में धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद और बलौदाबाजार जिले के लिए शेख आरिफ को आईजी बनाया गया था। इसी तरह अब पुलिस कमिश्नर सिस्टम प्रभावशील होने के बाद रायपुर पुलिस रेंज का अस्तित्व हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। चार जिलों का पुलिस रेंज सरकार किस नाम से बनाएगी, इसका अभी संकेत नहीं मिला है। मगर सबसे उपयुक्त महासमुंद होगा। महासमुंद में अगर रेंज बनेगा तो फिर वहां से धमतरी, गरियाबंद और बलौदा बाजार को कंट्रोल करना आसान होगा। रायपुर से लगा होने की वजह से आईपीएस अधिकारियों में महासमुंद को लेकर क्रेज भी रहेगा।

पुलिस कमिश्नर कमेटी और विरोधाभास

छत्तीसगढ़ के वीवीआईपी जिला जशपुर के साथ टॉप के तीनों जिलों रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में स्टेट कैडर से प्रमोटेड आईपीएस एसएसपी हैं। बड़े जिलों की बात करें तो बस्तर, सरगुजा, रायगढ़ और कोरबा में ही डायरेक्ट आईपीएस को एसपी बनाया गया है। मगर ए केटेगरी के तीन जिलों में से एक में भी डायरेक्ट आईपीएस नहीं हैं। पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी भी मानते हैं कि स्टेट में आरआर वाले आईपीएस ने अपने आप को बुरी कदर डिरेल्ड कर लिया है...इम्पॉर्टेंट जिलों में पोलिसिंग के लिए स्टेट वाले इन तीन-चार अफसरों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। मगर पुलिस कमिश्नर सिस्टम के लिए कमेटी बनी तो उसमें स्टेट पुलिस वाले एक को भी शामिल नहीं किया गया। सातों के सातों डायरेक्ट आईपीएस। जबकि, बेसिक पोलिसिंग की बातें आती हैं, उसमें स्टेट वालों का तजुर्बा आरआर वाले भी मानते हैं। तो क्या स्टेट वाले आईपीएस की पोलिसिंग पर भरोसा है मगर उनके ज्ञान पर नहीं? यह सवाल तो उठता ही है।

बीजेपी-कांग्रेस भाई-भाई

बिलासपुर की पॉलीटिक्स गजबे की है। पार्टी भले ही अलग-अलग, मगर काम और चाल दोनों लगभग बराबर। वहां कांग्रेस की सरकार आती है तो बीजेपी वालों को कोई दिक्कत नहीं होती और बीजेपी की सरकार आती है तो कांग्रेस वाले मस्त रहते हैं। पिछली कांग्रेस सरकार में एक विधायकजी के नेतृत्व में थाने में अपनी ही सरकार के मुखिया का मुर्दाबाद का नारे लगवा दिए गए तो बीजेपी सरकार में बीजेपी से जुड़े लोग झंडा लेकर इस हफ्ते एसएसपी के ऑफिस में हंगामा मचा आए। सत्ताधारी पार्टी को इतना तो पता होना ही चाहिए कि जिले का कलेक्टर, एसपी मुख्यमंत्री का प्रतिनिधि होता है। बड़े नेताओं और मंत्रियों को कैडर के लिए रिफ्रेशर कोर्स चलाते रहना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. बलौदा बाजार कांड में कलेक्टर को क्लीन चिट देकर डीई खतम कर दी गई तो फिर सीएस अमिताभ जैन के लिखने के बाद भी एसपी को क्यों नहीं?

2. क्या ये सही है कि छत्तीसगढ़ का सीएस बनाने के लिए आईएएस विकास शील को मनीला से वापिस बुलाने भारत सरकार ने पत्र मेल कर दिया है?