तरकश, 20 जुलाई 2025
संजय के. दीक्षित
प्लेसमेंट का बड़ा खेल
विधानसभा के प्रश्नकाल में कल अजय चंद्राकर के सवाल के जवाब में खुलासा हुआ कि राजधानी रायपुर में आठ साल पहले खुला दिव्यांग कॉलेज प्लेसमेंट के लोगों से संचालित हो रहा है। प्लेसमेंट के लोग वहां तबला वादन भी सीखा रहे और कंप्यूटर चलाना भी। कॉलेज के लिए स्वीकृत 31 पदों से 30 पद आठ साल से खाली हैं। कह सकते हैं, सिस्टम ने दिव्यांगों के कॉलेज को भी दिव्यांग बना दिया। बहरहाल, ये सिर्फ एक कॉलेज का मामला नहीं है। रायपुर के सरकारी डेंटल कॉलेज के प्रिंसिपल भी कई साल तक प्लेसमेंट में रहे। छत्तीसगढ़ में प्लेसमेंट का वायरस दशक भर पहले आया और अब कड़वा सच यह भी कि सरकार का कोई विभाग ऐसा नहीं, जो प्लेसमेंट नाम के वायरस से बचा हो। कई विभागों की स्थिति यह है कि वहां रेगुलर स्टॉफ से ज्यादा प्लेसमेंट के लोग हो गए हैं। चाहे वह इंद्रावती भवन हो या फिर मंत्रालय। मंत्रालय के प्यून भी प्लेसमेंट में हैं। दिक्कत यह है कि प्लेसमेंट के इन मुलाजिमों पर सरकार का पैसा भी खर्च हो रहा और विधानसभा के हर सत्र में उसे इस सवाल का सामना भी करना पड़ता है...फलां-फलां विभाग में इतना पद खाली क्यों?
प्लेसमेंट में बड़ा खेल-1
प्लेसमेंट एजेंसियों के लिए छत्तीसगढ़ चारागाह बनता जा रहा है। दस साल पहले जो कंपनियां लाखों में थीं अब करोड़ों में खेल रही हैं। छत्तीसगढ़ की शोहरत सुन देश भर से कंपनियां रायपुर भागे आ रही हैं। दरअसल, इस काम में प्लेसमेंट कंपनियों को सिर्फ फायदे-ही-फायदे हैं। इसमें अफसरों को एक बार उनकी कीमत दे दो उसके बाद फिर उसका दस गुना वसूलते रहो। बता दें, आजकल प्लेसमेंट में भर्ती के लिए भी लोगों को मोटा रिश्वत देना पड़ रहा है। शर्त ये भी होती है कि महीने की सेलरी का इतना परसेंट प्लेसमेंट एजेंसी को देना होगा। फिर, किस एजेंसी के कितने लोग कागजों पर काम कर रहे और कितने टेबल पर, इसे कोई देखता नहीं। जो देखने वाला है, वह पहले ही अपनी कीमत ले चुका होता है। बड़े अफसरों को उपकृत करने उनके कुछ नाते-रिश्तेदार या करीबी को लाखों की सेलरी में इंगेज कर देती हैं। कुल मिलाकर प्लेसमेंट के इस खेल में पिस रहे हैं तो वहां काम करने वाले कर्मचारी। पहले सरकारी नौकरी के लिए पैसे देने होते थे मगर अब प्लेसमेंट में भी घूस देने पड़ रहे, उपर से कुछ महीने में रिचार्ज कराने का झंझट भी। उपर से, प्लेसमेंट कर्मचारियों की कोई एकाउंटबिलिटी होती नहीं, सो कई ऐसी जानकारियां भी लीक हो रही, जो पहले गोपनीय होती थीं।
स्पीकर की नसीहत
दिव्यांग कॉलेज के खाली पदों का मामला विधानसभा में उठा तो समाज कल्याण मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने विपक्ष पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि 2017 में पद स्वीकृत हुए थे, 2018 में हमारी सरकार हार गई। इसके बाद कांग्रेस की सरकार ने पांच साल में कुछ नहीं किया। दरअसल, पिछले कुछ सत्रों में कई मंत्रियों ने पिछली सरकार का नाम लिया तो इसका औचित्य भी था। मगर अब काफी समय हो गया है। सो, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने इसे पकड़ लिया। उन्होंने तल्खी से कहा...आप ये कहकर बच नहीं सकतीं...अब आपको डेढ़ साल हो गया है...सीधा-सीधा बताइये कि आप कब तक व्यवस्था सुधार देंगी। स्पीकर के इस दो टूक पर मंत्री किंचित सकपकाई, फिर बोली...जल्द-से-जल्द वे कोशिश करेंगी।
जेम का खेल
छत्तीसगढ़ में करप्शन का रिकार्ड बन जाता। 32 हजार में स्टील का जग आदिवासी हॉस्टल में सप्लाई हो चुका होता...मगर उससे पहले पकड़ में आ गया। और, राज्य का नाम खराब होने से बच गया। दरअसल, जेम का यह खेल सिर्फ छत्तीसगढ़ में नहीं है। बाकी राज्यों में कार्रवाई होती है, इसलिए वहां सप्लायरों में डर होता है...छत्तीसगढ़ में आज तक किसी सप्लायर और अधिकारी को उल्टा टांगा नहीं गया, सो लिमिट क्रॉस कर गया है। खैर, सिस्टम के लिए यह गंभीर चिंतन का सब्जेक्ट हो सकता है कि सप्लायरों ने सरकारी मुलाजिमों के साथ मिलकर जेम का तोड़ निकाल लिया है, उससे निबटा कैसे जाए। छत्तीसगढ़ में सीजीएमएससी से लेकर जितने विभागों में सप्लाई के काम हो रहे, सभी में एक ही खेल चल रहा। पहले संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर डील कर लो। टेंडर में ऐसा क्लॉज जोड़ दिया जाएगा, जो वह कंपनी ही पूरी करती है। फिर एक ही सप्लायर कई फार्म बनाकर रखता है। अपने ही तीन फार्मों के नाम पर तीन टेंडर भर देगा। और एल1 के नाम पर काम हासिल कर लेता है। 32 हजार में स्टील का जग इसी तरह एल1 आ गया था। इन फार्मो का पता-ठिकाना खोजने जाने पर कोई किराना दुकान मिलेगा या फिर कोई मुहल्ले के बीच एक बंद पड़ा मामूली कमरा मिलेगा। अब वक्त आ गया है कि सप्लायरों के खेल का तोड़ निकाला जाएगा। उसी तरह जिस तरह जीएसटी सिकरेट्री ने जीएसटी चोरी को तोड़ निकाला है। जीएसटी से रेवेन्यू में तभी छत्तीसगढ़ ने सारे बड़े राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।
सिस्टम पर सप्लायर भारी
कुछ अरसा पहले सीजीएमएससी में मोक्षित कारपोरेशन के इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता था। टेंडर, सप्लाई तो छोटी बात थी, सीजीएमएससी में किस अफसर की पोस्टिंग करनी है और किसे हटवाना, ये वही तय करता था। चलिये वो तो एक नमूना था...छत्तीसगढ़ में ऐसे कई मोक्षित हैं, जो खुला खेल...फर्रुखाबादी की तरह काम कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में वे इतने ताकतवर हो गए हैं कि उनका कोई कुछ कर भी नहीं सकता। उनकी नेटवर्किंग इतनी जबर्दस्त है कि मैदानी अफसरों से पहले उन्हें पता चल जाता है कि सरकार में क्या चल रहा, क्या खरीदी करनी है। और वे उन जिलों में धमक जाते हैं। उनके पास हर बीमारी का इलाज होता है। जन्मदिन से लेकर दशहरा, दिवाली में महंगे गिफ्ट भेंटकर सारे बड़े हाउसों को ऐसे सेट करके रखते हैं कि एक ने उनका काम रोका, तो दूसरी जगह, दूसरी नहीं तो तीसरी जगह से फोन करा देंगे। यहां से अगर बात नहीं बनी तो फिर यूपी या दिल्ली से कनेक्शन ढूंढ निकालेंगे। ऐसे में, छत्तीसगढ़ में ठेका, सप्लाई और टेंडर में करप्शन रोकना नामुमकिन जैसा प्रतीत होता है।
आईएएस को बदनाम, ट्रांसफर
सिस्टम पर सप्लायर किस कदर भारी पड़ रहे हैं, इस वाकये से आपको पता चल जाएगा। तीन-चार साल पहले की बात है। सीजीएमएससी में धोखे से एक ठीकठाक छबि वाले आईएएस को एमडी बना दिया गया था। चूकि अफसर ईमानदार होगा, तो मक्खी गिरा दूध नहीं पियेगा। सो, उसने सारे गड़बड़झालों की फाइलों को रोक दी। इसके बाद सप्लायरों ने ऐसा बवाल काटा कि पूछिए मत! हर तरफ एक ही चर्चा थी...फलां ने दवा और मेडिकल इक्विपमेंट की फाइलें रोक दी...कोई काम ही नहीं हो रहा...अस्पतालों में हाहाकार मचा हुआ है। इसका नतीजा यह हुआ कि आईएएस का वहां से ट्रांसफर हो गया। छत्तीसगढ़ में यह है सप्लायरों और ठेकेदारों का पावर।
छत्तीसगढ़ कैडर के ऐसे आईएएस
छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस रहे बीवीआर सुब्रमणियम विजन डॉक्यूमेंट के विमोचन के सिलसिले में रायपुर में थे। सुब्रमणियम जब 2017 में जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकेरट्री बनकर श्रीनगर गए थे, तब यहां एसीएस होम थे। वे अगर छत्तीसगढ़ में रहे होते तो हो सकता था कि यहां सीएस बन जाते। मगर वे ऐसा चाहते नहीं थे, न ही उनका कोई प्रयास दिखा। मोदी सरकार ने उन्हें खुद ही बुलाकर जेके का चीफ सिकरेट्री बना दिया। अपने मित्रों में बीवीआर के नाम से जाने जाने वाले सुब्रमणियम ने कश्मीर से धारा 370 हटाने का ड्राफ्ट बनाने में अहम भूमिका निभाई। इसका उन्हें ईनाम भी मिला। केंद्र में सिकरेट्री बनने वाले वे छत्तीसगढ़ कैडर के पहले आईएएस बने। और वहां से रिटायर होने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें नीति आयोग का सीईओ बनाया। सुब्रमणियम रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। नीति आयोग में भी उन्होंने रिफार्म कर दिया। छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी को सुब्रमणियम पर गर्व हो सकता है। एसीएस रहते उन्होंने छेड़छाड़ के आरोपी एआईजी को चौतरफा प्रेशर के बाद भी बर्खास्त कराकर ही माना। तब कैबिनेट के कई सदस्य मन मसोसकर रह गए थे। ये अलग बात है कि उनके जाने के बाद एआईजी फिर बहाल हो गए।
आईएएस की लिस्ट
चिंतन शिविर के बाद अब विधानसभा का मानसून सत्र भी निबट गया है। राज्योत्सव से पहले सरकार के सामने कोई बड़ा इवेंट नहीं है। सरकार अब योजनाओं के क्रियान्वयन पर अपना फोकस बढाएगी। ग्राम सुराज में आए आवेदनों का रिव्यू किया जाएगा। दो-तीन जिलों के कलेक्टरों का ट्रांसफर भी हो सकता है। आईएएस अवार्ड वाले अधिकारियों में से वैसे तो ज्यादातर अच्छी पोस्टिंग में हैं, मगर जो बचे हैं, उन्हें उम्मीद होगी कि आईएएस के अनुरूप में पदास्थापना मिलेगी। बालोद जिले में कुछ महीने से जिला पंचायत सीईओ का पद खाली है, उसे भी भरा जा सकता है। गरियाबंद और जीपीएम जिले में तबाही की स्थिति है...भगवान भरोसे पूरा सिस्टम चल रहा। पीएम आवास सरकार का अहम प्रोजेक्ट है, इस पर भी कई जिलों के कलेक्टरों का ध्यान नहीं है। सरकार जब तक दो-चार कौवा मारकर नहीं लटकाएगी, तब तक सब....ऐसा ही चलता रहेगा।
कांग्रेस में नो चेंज!
कुछ महीने पहले की ही बात है। दीपक बैज की जगह टीएस सिंहदेव को पीसीसी का अध्यक्ष तय मान लिया गया था...कभी भी उनके नाम का ऐलान होने के दावे किए जा रहे थे। मगर अब स्थिति यह है कि इस पर कोई बात भी नहीं कर रहा। अलबत्ता, रायपुर में पार्टी की जंगी सभा के बाद तो दीपक बैज का वजन और बढ़ गया है। डेढ़ साल पहले करारी पराजय के बाद कांग्रेस इतनी जल्दी उठ खड़ी होगी, इसको देख सियासी पंडित भी चकित हैं। जाहिर है, 2018 की हार के बाद बीजेपी को संभलने में लंबा वक्त लगा। पांचवे साल में भी मोदी, अमित भाई, मनसुख भाई और नीतीन नबीन ने जलवा नहीं दिखाया होता, तो बीजेपी किस हाल में होती, पता नहीं। बहरहाल, बात दीपक बैज की तो बरसते पानी में हजारों की सभा कराने के बाद वे आदिवासी नेताओं की बैठक में शिरकत कर दिल्ली से लौट चुके हैं। राहुल गांधी के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ने की भी खबरें आ रही हैं। ऐसे में, नहीं लगता कि आने वाले समय में दीपक बैज को पार्टी पीसीसी चीफ से हटाएगी। उमेश पटेल, देवेंद्र यादव, विकास उपध्याय और शिव डहरिया में से दो-तीन कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बनाए जा सकते हैं।
मंत्रियों का हनीमून, नेताओं के सपने
अचरज की बात यह है कि हमेशा लाइव रहने वाले बीजेपी के नेता इस समय किधर हैं, पता नहीं चल रहा। विपक्ष के बेसिर पैर के आरोपों पर भी पार्टी नेताओं की चुप्पी नहीं टूट रही। दीपक बैज ने 32 हजार के ऐसे जग पर ट्वीट कर सनसनी पैदा कर दी, जो खरीदी ही नहीं गई। ऐसे कई मसले हैं, जिस पर पार्टी खुल कर प्रतिक्रिया नहीं दे रही और न ही सरकार में बैठे मंत्री। असल में, दिक्कत यह है कि विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत से पार्टी के लोकल नेताओं का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया...सरकार हमने बनवाई तो हमारा कुछ होना चाहिए। सबको लाल बत्ती चाहिए या फिर बड़ा ठेका और सप्लाई। वास्तविकता यह है कि कैडर बेस पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने डेढ़ साल में ढंग का एक कार्यक्रम नहीं किया है। सरकार के मंत्री हनीमून से उबर नहीं पा रहे तो नेता लाल बत्ती के सपने से बाहर नहीं आ रहे। चिंतन शिविर में पार्टी अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा ने मंत्रियों को आखिर ऐसे थोड़े ही चेताया। कुछ मंत्रियों का ये हाल है कि जो कार्यकर्ता उनके चुनाव में बढ़-चढ़कर काम किया, बंगले में उसकी इंट्री नहीं है, फोन उठाने की बात दीगर है।
अंत में दो सवाल आपसे
1. अधिकारियों द्वारा होमवर्क करवा कर भेजने के बाद भी कई मंत्री विधानसभा में जाकर विभाग का नाम क्यों खराब कर डालते हैं?
2. एक मंत्री का नाम बताइये, जो छंटनी के खतरे से घबराकर इन दिनों सामाजिक कार्यक्रम कराने में जुट गए हैं?