शनिवार, 19 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: प्लेसमेंट का बड़ा खेल

 तरकश, 20 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

प्लेसमेंट का बड़ा खेल

विधानसभा के प्रश्नकाल में कल अजय चंद्राकर के सवाल के जवाब में खुलासा हुआ कि राजधानी रायपुर में आठ साल पहले खुला दिव्यांग कॉलेज प्लेसमेंट के लोगों से संचालित हो रहा है। प्लेसमेंट के लोग वहां तबला वादन भी सीखा रहे और कंप्यूटर चलाना भी। कॉलेज के लिए स्वीकृत 31 पदों से 30 पद आठ साल से खाली हैं। कह सकते हैं, सिस्टम ने दिव्यांगों के कॉलेज को भी दिव्यांग बना दिया। बहरहाल, ये सिर्फ एक कॉलेज का मामला नहीं है। रायपुर के सरकारी डेंटल कॉलेज के प्रिंसिपल भी कई साल तक प्लेसमेंट में रहे। छत्तीसगढ़ में प्लेसमेंट का वायरस दशक भर पहले आया और अब कड़वा सच यह भी कि सरकार का कोई विभाग ऐसा नहीं, जो प्लेसमेंट नाम के वायरस से बचा हो। कई विभागों की स्थिति यह है कि वहां रेगुलर स्टॉफ से ज्यादा प्लेसमेंट के लोग हो गए हैं। चाहे वह इंद्रावती भवन हो या फिर मंत्रालय। मंत्रालय के प्यून भी प्लेसमेंट में हैं। दिक्कत यह है कि प्लेसमेंट के इन मुलाजिमों पर सरकार का पैसा भी खर्च हो रहा और विधानसभा के हर सत्र में उसे इस सवाल का सामना भी करना पड़ता है...फलां-फलां विभाग में इतना पद खाली क्यों?

प्लेसमेंट में बड़ा खेल-1

प्लेसमेंट एजेंसियों के लिए छत्तीसगढ़ चारागाह बनता जा रहा है। दस साल पहले जो कंपनियां लाखों में थीं अब करोड़ों में खेल रही हैं। छत्तीसगढ़ की शोहरत सुन देश भर से कंपनियां रायपुर भागे आ रही हैं। दरअसल, इस काम में प्लेसमेंट कंपनियों को सिर्फ फायदे-ही-फायदे हैं। इसमें अफसरों को एक बार उनकी कीमत दे दो उसके बाद फिर उसका दस गुना वसूलते रहो। बता दें, आजकल प्लेसमेंट में भर्ती के लिए भी लोगों को मोटा रिश्वत देना पड़ रहा है। शर्त ये भी होती है कि महीने की सेलरी का इतना परसेंट प्लेसमेंट एजेंसी को देना होगा। फिर, किस एजेंसी के कितने लोग कागजों पर काम कर रहे और कितने टेबल पर, इसे कोई देखता नहीं। जो देखने वाला है, वह पहले ही अपनी कीमत ले चुका होता है। बड़े अफसरों को उपकृत करने उनके कुछ नाते-रिश्तेदार या करीबी को लाखों की सेलरी में इंगेज कर देती हैं। कुल मिलाकर प्लेसमेंट के इस खेल में पिस रहे हैं तो वहां काम करने वाले कर्मचारी। पहले सरकारी नौकरी के लिए पैसे देने होते थे मगर अब प्लेसमेंट में भी घूस देने पड़ रहे, उपर से कुछ महीने में रिचार्ज कराने का झंझट भी। उपर से, प्लेसमेंट कर्मचारियों की कोई एकाउंटबिलिटी होती नहीं, सो कई ऐसी जानकारियां भी लीक हो रही, जो पहले गोपनीय होती थीं।

स्पीकर की नसीहत

दिव्यांग कॉलेज के खाली पदों का मामला विधानसभा में उठा तो समाज कल्याण मंत्री लक्ष्मी रजवाड़े ने विपक्ष पर ठीकरा फोड़ते हुए कहा कि 2017 में पद स्वीकृत हुए थे, 2018 में हमारी सरकार हार गई। इसके बाद कांग्रेस की सरकार ने पांच साल में कुछ नहीं किया। दरअसल, पिछले कुछ सत्रों में कई मंत्रियों ने पिछली सरकार का नाम लिया तो इसका औचित्य भी था। मगर अब काफी समय हो गया है। सो, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने इसे पकड़ लिया। उन्होंने तल्खी से कहा...आप ये कहकर बच नहीं सकतीं...अब आपको डेढ़ साल हो गया है...सीधा-सीधा बताइये कि आप कब तक व्यवस्था सुधार देंगी। स्पीकर के इस दो टूक पर मंत्री किंचित सकपकाई, फिर बोली...जल्द-से-जल्द वे कोशिश करेंगी।

जेम का खेल

छत्तीसगढ़ में करप्शन का रिकार्ड बन जाता। 32 हजार में स्टील का जग आदिवासी हॉस्टल में सप्लाई हो चुका होता...मगर उससे पहले पकड़ में आ गया। और, राज्य का नाम खराब होने से बच गया। दरअसल, जेम का यह खेल सिर्फ छत्तीसगढ़ में नहीं है। बाकी राज्यों में कार्रवाई होती है, इसलिए वहां सप्लायरों में डर होता है...छत्तीसगढ़ में आज तक किसी सप्लायर और अधिकारी को उल्टा टांगा नहीं गया, सो लिमिट क्रॉस कर गया है। खैर, सिस्टम के लिए यह गंभीर चिंतन का सब्जेक्ट हो सकता है कि सप्लायरों ने सरकारी मुलाजिमों के साथ मिलकर जेम का तोड़ निकाल लिया है, उससे निबटा कैसे जाए। छत्तीसगढ़ में सीजीएमएससी से लेकर जितने विभागों में सप्लाई के काम हो रहे, सभी में एक ही खेल चल रहा। पहले संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर डील कर लो। टेंडर में ऐसा क्लॉज जोड़ दिया जाएगा, जो वह कंपनी ही पूरी करती है। फिर एक ही सप्लायर कई फार्म बनाकर रखता है। अपने ही तीन फार्मों के नाम पर तीन टेंडर भर देगा। और एल1 के नाम पर काम हासिल कर लेता है। 32 हजार में स्टील का जग इसी तरह एल1 आ गया था। इन फार्मो का पता-ठिकाना खोजने जाने पर कोई किराना दुकान मिलेगा या फिर कोई मुहल्ले के बीच एक बंद पड़ा मामूली कमरा मिलेगा। अब वक्त आ गया है कि सप्लायरों के खेल का तोड़ निकाला जाएगा। उसी तरह जिस तरह जीएसटी सिकरेट्री ने जीएसटी चोरी को तोड़ निकाला है। जीएसटी से रेवेन्यू में तभी छत्तीसगढ़ ने सारे बड़े राज्यों को पीछे छोड़ दिया है।

सिस्टम पर सप्लायर भारी

कुछ अरसा पहले सीजीएमएससी में मोक्षित कारपोरेशन के इशारे के बिना पत्ता नहीं हिलता था। टेंडर, सप्लाई तो छोटी बात थी, सीजीएमएससी में किस अफसर की पोस्टिंग करनी है और किसे हटवाना, ये वही तय करता था। चलिये वो तो एक नमूना था...छत्तीसगढ़ में ऐसे कई मोक्षित हैं, जो खुला खेल...फर्रुखाबादी की तरह काम कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में वे इतने ताकतवर हो गए हैं कि उनका कोई कुछ कर भी नहीं सकता। उनकी नेटवर्किंग इतनी जबर्दस्त है कि मैदानी अफसरों से पहले उन्हें पता चल जाता है कि सरकार में क्या चल रहा, क्या खरीदी करनी है। और वे उन जिलों में धमक जाते हैं। उनके पास हर बीमारी का इलाज होता है। जन्मदिन से लेकर दशहरा, दिवाली में महंगे गिफ्ट भेंटकर सारे बड़े हाउसों को ऐसे सेट करके रखते हैं कि एक ने उनका काम रोका, तो दूसरी जगह, दूसरी नहीं तो तीसरी जगह से फोन करा देंगे। यहां से अगर बात नहीं बनी तो फिर यूपी या दिल्ली से कनेक्शन ढूंढ निकालेंगे। ऐसे में, छत्तीसगढ़ में ठेका, सप्लाई और टेंडर में करप्शन रोकना नामुमकिन जैसा प्रतीत होता है।

आईएएस को बदनाम, ट्रांसफर

सिस्टम पर सप्लायर किस कदर भारी पड़ रहे हैं, इस वाकये से आपको पता चल जाएगा। तीन-चार साल पहले की बात है। सीजीएमएससी में धोखे से एक ठीकठाक छबि वाले आईएएस को एमडी बना दिया गया था। चूकि अफसर ईमानदार होगा, तो मक्खी गिरा दूध नहीं पियेगा। सो, उसने सारे गड़बड़झालों की फाइलों को रोक दी। इसके बाद सप्लायरों ने ऐसा बवाल काटा कि पूछिए मत! हर तरफ एक ही चर्चा थी...फलां ने दवा और मेडिकल इक्विपमेंट की फाइलें रोक दी...कोई काम ही नहीं हो रहा...अस्पतालों में हाहाकार मचा हुआ है। इसका नतीजा यह हुआ कि आईएएस का वहां से ट्रांसफर हो गया। छत्तीसगढ़ में यह है सप्लायरों और ठेकेदारों का पावर।

छत्तीसगढ़ कैडर के ऐसे आईएएस

छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस रहे बीवीआर सुब्रमणियम विजन डॉक्यूमेंट के विमोचन के सिलसिले में रायपुर में थे। सुब्रमणियम जब 2017 में जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकेरट्री बनकर श्रीनगर गए थे, तब यहां एसीएस होम थे। वे अगर छत्तीसगढ़ में रहे होते तो हो सकता था कि यहां सीएस बन जाते। मगर वे ऐसा चाहते नहीं थे, न ही उनका कोई प्रयास दिखा। मोदी सरकार ने उन्हें खुद ही बुलाकर जेके का चीफ सिकरेट्री बना दिया। अपने मित्रों में बीवीआर के नाम से जाने जाने वाले सुब्रमणियम ने कश्मीर से धारा 370 हटाने का ड्राफ्ट बनाने में अहम भूमिका निभाई। इसका उन्हें ईनाम भी मिला। केंद्र में सिकरेट्री बनने वाले वे छत्तीसगढ़ कैडर के पहले आईएएस बने। और वहां से रिटायर होने के बाद मोदी सरकार ने उन्हें नीति आयोग का सीईओ बनाया। सुब्रमणियम रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। नीति आयोग में भी उन्होंने रिफार्म कर दिया। छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी को सुब्रमणियम पर गर्व हो सकता है। एसीएस रहते उन्होंने छेड़छाड़ के आरोपी एआईजी को चौतरफा प्रेशर के बाद भी बर्खास्त कराकर ही माना। तब कैबिनेट के कई सदस्य मन मसोसकर रह गए थे। ये अलग बात है कि उनके जाने के बाद एआईजी फिर बहाल हो गए।  

आईएएस की लिस्ट

चिंतन शिविर के बाद अब विधानसभा का मानसून सत्र भी निबट गया है। राज्योत्सव से पहले सरकार के सामने कोई बड़ा इवेंट नहीं है। सरकार अब योजनाओं के क्रियान्वयन पर अपना फोकस बढाएगी। ग्राम सुराज में आए आवेदनों का रिव्यू किया जाएगा। दो-तीन जिलों के कलेक्टरों का ट्रांसफर भी हो सकता है। आईएएस अवार्ड वाले अधिकारियों में से वैसे तो ज्यादातर अच्छी पोस्टिंग में हैं, मगर जो बचे हैं, उन्हें उम्मीद होगी कि आईएएस के अनुरूप में पदास्थापना मिलेगी। बालोद जिले में कुछ महीने से जिला पंचायत सीईओ का पद खाली है, उसे भी भरा जा सकता है। गरियाबंद और जीपीएम जिले में तबाही की स्थिति है...भगवान भरोसे पूरा सिस्टम चल रहा। पीएम आवास सरकार का अहम प्रोजेक्ट है, इस पर भी कई जिलों के कलेक्टरों का ध्यान नहीं है। सरकार जब तक दो-चार कौवा मारकर नहीं लटकाएगी, तब तक सब....ऐसा ही चलता रहेगा।

कांग्रेस में नो चेंज!

कुछ महीने पहले की ही बात है। दीपक बैज की जगह टीएस सिंहदेव को पीसीसी का अध्यक्ष तय मान लिया गया था...कभी भी उनके नाम का ऐलान होने के दावे किए जा रहे थे। मगर अब स्थिति यह है कि इस पर कोई बात भी नहीं कर रहा। अलबत्ता, रायपुर में पार्टी की जंगी सभा के बाद तो दीपक बैज का वजन और बढ़ गया है। डेढ़ साल पहले करारी पराजय के बाद कांग्रेस इतनी जल्दी उठ खड़ी होगी, इसको देख सियासी पंडित भी चकित हैं। जाहिर है, 2018 की हार के बाद बीजेपी को संभलने में लंबा वक्त लगा। पांचवे साल में भी मोदी, अमित भाई, मनसुख भाई और नीतीन नबीन ने जलवा नहीं दिखाया होता, तो बीजेपी किस हाल में होती, पता नहीं। बहरहाल, बात दीपक बैज की तो बरसते पानी में हजारों की सभा कराने के बाद वे आदिवासी नेताओं की बैठक में शिरकत कर दिल्ली से लौट चुके हैं। राहुल गांधी के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ने की भी खबरें आ रही हैं। ऐसे में, नहीं लगता कि आने वाले समय में दीपक बैज को पार्टी पीसीसी चीफ से हटाएगी। उमेश पटेल, देवेंद्र यादव, विकास उपध्याय और शिव डहरिया में से दो-तीन कार्यकारी अध्यक्ष जरूर बनाए जा सकते हैं।

मंत्रियों का हनीमून, नेताओं के सपने

अचरज की बात यह है कि हमेशा लाइव रहने वाले बीजेपी के नेता इस समय किधर हैं, पता नहीं चल रहा। विपक्ष के बेसिर पैर के आरोपों पर भी पार्टी नेताओं की चुप्पी नहीं टूट रही। दीपक बैज ने 32 हजार के ऐसे जग पर ट्वीट कर सनसनी पैदा कर दी, जो खरीदी ही नहीं गई। ऐसे कई मसले हैं, जिस पर पार्टी खुल कर प्रतिक्रिया नहीं दे रही और न ही सरकार में बैठे मंत्री। असल में, दिक्कत यह है कि विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत से पार्टी के लोकल नेताओं का दिमाग सातवें आसमान पर चढ़ गया...सरकार हमने बनवाई तो हमारा कुछ होना चाहिए। सबको लाल बत्ती चाहिए या फिर बड़ा ठेका और सप्लाई। वास्तविकता यह है कि कैडर बेस पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने डेढ़ साल में ढंग का एक कार्यक्रम नहीं किया है। सरकार के मंत्री हनीमून से उबर नहीं पा रहे तो नेता लाल बत्ती के सपने से बाहर नहीं आ रहे। चिंतन शिविर में पार्टी अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा ने मंत्रियों को आखिर ऐसे थोड़े ही चेताया। कुछ मंत्रियों का ये हाल है कि जो कार्यकर्ता उनके चुनाव में बढ़-चढ़कर काम किया, बंगले में उसकी इंट्री नहीं है, फोन उठाने की बात दीगर है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अधिकारियों द्वारा होमवर्क करवा कर भेजने के बाद भी कई मंत्री विधानसभा में जाकर विभाग का नाम क्यों खराब कर डालते हैं?

2. एक मंत्री का नाम बताइये, जो छंटनी के खतरे से घबराकर इन दिनों सामाजिक कार्यक्रम कराने में जुट गए हैं?

रविवार, 13 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: कमीशनखोरी का चिप्स

 तरकश, 13 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

कमीशनखोरी का चिप्स

छत्तीसगढ़ बनने के दो साल बाद सीएम अजीत जोगी ने स्टेट में आईटी के बेहतर इस्तेमाल के लिए छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसाईटी याने ’चिप्स’ का गठन किया था। आईएएस अमित अग्रवाल इसके फर्स्ट सीईओ बनाए गए। बाद में रमन सिंह के कार्यकाल में रायपुर के सिविल लाईन में चार मंजिला भव्य ऑफिस बनाया गया। मगर पिछले कुछ सालों में स्थिति यह है कि चिप्स अब सफेद हाथी बनकर रह गया है। इस संस्था का रिकार्ड इतना खराब हो चुका है कि अब उस पर मंत्रालय के सिकरेट्री भी भरोसा नहीं कर रहे...कोई अहम काम चिप्स को नहीं सौंपा जा रहा। क्योंकि, एक तो अनाप-शनाप चार्ज बता दिया जाएगा, फिर टाईम पर होगा नहीं और हुआ तो कब तक काम करेगा, कहा नहीं जा सकता। जाहिर है, भारत सरकार का साफ्टवेयर नहीं होता तो सूबे में मंत्रालय से लेकर जिलों तक ई-ऑफिस लागू नहीं हो पाता। चिप्स के चलते ही पुलिस इंस्पेक्टरों की भर्ती व्यापम में लटकी रही। थक-हारकार गृह विभाग को पीएससी से बात करनी पड़ी। दरअसल, चिप्स भाई-भतीजावाद और कमीशनखोरी का अड्डा बनकर रह गया है। साफ्टवेयर तैयार करने में अपनों को उपकृत करना या फिर भारी कमीशन की डिमांड...ऐसे में चिप्स से क्वालिटी वर्क की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। हालांकि, सरकार ने एक आईएफएस अधिकारी मयंक अग्रवाल को चिप्स का सीओओ बनाया है। मगर यह भी सही है कि चिप्स के वर्तमान सीईओ प्रभात मलिक के पास तीन-तीन एडिशनल चार्ज है। चिप्स के सीईओ के अतिरिक्त ज्वाइंट सिकरेट्री आईटी, ज्वाइंट सिकरेट्री गुड गवर्नेंस और डायरेक्टर इंडर्स्ट्री। बहरहाल, आईटी के दौर में अब वक्त आ गया है कि चिप्स को पटरी पर लाया जाए।

खजाने को करोड़ों की बचत

जाहिर है, टेक्नोलॉजी में दुनिया कहां से कहां जा रही है...ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने अपने देश में बैठे-बैठे पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को सटिक निशाना लगाते हुए उन्हें उड़ा दिया था। और छत्तीसगढ़ में ये हाल है कि धान के लिए पटवारी से रिपोर्ट मांगी जाती है। और पटवारी पैसे लेकर बंजर और परती जमीन में भी 21 क्विंटल धान उपजा देते हैं। चिप्स अगर साफ्टवेयर तैयार कर दे तो रायपुर में बैठे-बैठे बताया जा सकेगा कि किस किसान के खेत में कितना बोया गया है और कहां नहीं। चिप्स चाहे तो ये भी पता चल सकता है कि कितना धान दूसरे राज्यों से आ रहा तो कितना धान बिचौलिये और राईस मिलर अलटी-पलटी कर सरकार के खजाने को चूना लगा दे रहे हैं। एक मोटे अनुमान के तहत मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं होने की वजह से सरकार को 30 परसेंट एक्स्ट्रा धान खरीदना पड़ता है। 2024-25 में 149 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया, ये सब कलाबाजियां नहीं होती तो सरकार को कम-से-कम 40 से 50 मीट्रिक टन कम परचेज करना पड़ता। याने चार से पांच करोड़ क्विंटल। पांच करोड़ क्विंटल से अगर 3100 से गुणा करें तो 1.55 खरब रुपए होता है। इससे समझा जा सकता है कि खजाने का कितना पैसा बचता। यह पैसा स्कूल, कॉलेज, अस्पताल पर व्यय होता, जो माफियाओं की जेब में जा रहा है। टेक्नोलॉजी की मदद से राईस मिलरों के झोल का पता लगाया जा सकता है कि कितने वॉट बिजली का उपयोग किया गया। अधिकांश राईस मिलों की जितनी कैपिसिटी नहीं होती, उससे अधिक मिलिंग दिखा दिया जाता है। कहने का आशय यह है कि चिप्स को अगर स्ट्रांग कर दिया जाए तो पारदर्शिता के साथ भ्रष्टाचार को रोकने में भारी मदद मिल सकती है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी चोट

भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने इस हफ्ते एक प्रेस नोट जारी किया, उसके मजमूं से लगता है कि सरकार अब जीरो टॉलरेंस को लेकर काफी अग्रेसिव मोड में आ गई है। प्रेस नोट के कंटेंट और भाषा से प्रतीत हो ही रहा...सरकार के करीबी लोगों का भी मानना है कि विधानसभा सत्र के बाद सरकार करप्शन पर प्रभावी चोट करेगी। 22 एक्साइज अफसरों का निलंबन इसी का हिस्सा था। एसीबी को भी सरकार ने फ्री हैंड दिया है। राज्य बनने के बाद यह पहली बार हुआ कि चार-चार आईएएस अधिकारी को पूछताछ के लिए एसीबी मुख्यालय बुलाया जा चुका है। सीजीएमएससी घोटाले में सीजीएमएससी की वर्तमान और पूर्व एमडी, पूर्व हेल्थ डायरेक्टर और एनएचएम की एमडी से एसीबी हेडक्वार्टर में घंटों की पूछताछ की गई। इनमें सिर्फ एक प्रमोटी आईएएस है। बाकी तीन आरआर आईएएस अफसर हैं। सरकार के रणनीतिकारों का मानना है कि जिस तरह 2023 के विधानसभा चुनाव में करप्शन सबसे बड़ा मुद्दा रहा, उसी तरह 2028 के चुनाव में करप्शन पर जीरो टॉलरेंस को मुद्दा बनाया जाएगा। अनेक स्टडी में ये बात सामने आई भी है कि विकास कार्य एक बार ना भी हो तो चलेगा मगर करप्शन पर प्रहार जनता को प्रभावित करता है। पड़ोसी राज्य ओड़िसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हर साल कुछ अफसरों को कौवा मारकर लटका देते थे...और चुनाव जीतते रहे। छत्तीसगढ़ में भी अब जीरो टॉलरेंस को टॉप प्रायरिटी बनाया जाएगा।

डीजीपी को भरोसा?

छत्तीसगढ़ में पूर्णकालिक डीजीपी न होने से परेशानियां अब परिलक्षित होने लगी है। जिला पुलिस को पेटी कंट्रक्शन रिपेयरिंग के नाम पर हर साल पांच से 10 लाख रुपए का बजट जारी किया जाता था, अभी तक वह नहीं हो पाया है। इस पैसे से थानों या पुलिस के भवनों की मरम्मत के छोटे-मोटे काम होते थे। वैसे प्रभारी डीजीपी अरुणदेव के फ्रंट फुट पर नहीं खेलने की जायज वजहें भी हैं। आखिर, दूध का जला...मुहावरा है ही। सितंबर 2024 में गौतम को प्रभारी डीजीपी बनाने प्रॉसेज प्रारंभ होने वाला था कि दिल्ली से फोन आ गया...अशोक जुनेजा को एक्सटेंशन के लिए प्रस्ताव भेजिए। एसीएस होम मनोज पिंगुआ ने प्रस्ताव भेजा और 15 घंटे के भीतर दिल्ली से ओके होकर आ गया। फिर, 30 जून को चीफ सिकरेट्री नियुक्ति एपिसोड में जो हुआ, उससे गौतम क्या...प्रदेश की जनता अनभिज्ञ नहीं है। ऐसे में, कोई यह समझे कि गौतम देश के बाकी प्रभारी डीजीपी की तरह छत्तीसगढ़ की पोलिसिंग में जान लगा दें तो यह भला कैसे संभव है। यद्यपि, यूपी ऐसा स्टेट है कि पिछले तीन बार से वहां प्रभारी डीजीपी अपाइंट हो रहे और वे अपना कार्यकाल पूरा कर रिटायर हो रहे। बहरहाल, छत्तीसगढ़ की बात करें तो सिस्टम को दो काम करना होगा। या तो पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति की जाए या फिर गौतम को कोई खतरा नहीं का भरोसा दिया जाए।

5 विभागों के लिए एक बिल

विधानसभा के मानसून सत्र में इस बार अब तक का सबसे महत्वपूर्ण विधेयक आने वाला है, वह है जनविश्वास अधिनियम विधेयक। यह पहला बिल है, जिसमें एक साथ पांच विभागों के नियम बदलेंगे। इनमें नगरीय प्रशासन, पंचायत, गृह और सहकारिता जैसे विभाग शामिल हैं। यह बिल अलग इस मायने में भी है अलग है कि इसे तैयार करने का दायित्व इन पांचों से अलग किसी तीसरे विभाग को सौंपा गया है। राज्य सरकार ने उद्योग विभाग को इसका नोडल डिपार्टमेंट बनाया है। विभाग के सिकरेट्री रजत कुमार ने पखवाड़े भर के भीतर इस बिल को तैयार कर डाला। बता दें, भारत सरकार के कंसेप्ट पर राज्यों में अंग्रेजों के टाईम के नियम बदले जा रहे हैं।

पेनाल्टी नहीं, अब अर्थदंड

जनविश्वास बिल के पारित होने के बाद छत्तीसगढ़ में छोटे-छोटे मामलों में अब पेनाल्टी या जुर्माना शब्द का उपयोग हमेशा के लिए सामाप्त हो जाएगा। मसलन, अभी तक वाहन चालक अगर चौक पर जेब्रा लाइन को क्रॉस कर गया, या गाड़ी में लायसेंस नहीं है या फिर सड़क पर पंडाल बना दिया, नाली पर स्लैब डालने पर उसे फाईन करने का अधिकार संबंधित संस्थाओं को दिया गया था। आश्चर्य की बात ये कि इन विभाग ने नियम बना दिया था कि फलां नियम को ओवरलुक करने पर इतने साल की सजा और इतने का जुर्माना किया जाएगा। मगर भारतीय दंड विधान में उसका प्रावधान नहीं था। लिहाजा, इस तरह की स्थिति अगर निर्मित हुई तो पहले परिवाद दायर करना होगा। सीजेएम के आदेश पर फिर एफआईआर किया जाएगा। जनविश्वास अधिनियम में इन पेचीदगियों को खतम कर दिया गया है। एक तो अब जुर्माना या पेनाल्टी की बजाए अब अर्थदंड किया जाएगा। इसके पीछे मंशा यह है कि छोटे-छोटे ये मामले अपराध की श्रेणी में नहीं आते और फिर यह भी कि जुर्माना या पेनाल्टी लगाने का अधिकार सिर्फ कोर्ट को है, विभागों को नहीं। जनविश्वास अधिनियम में 50 से लेकर 200, 300 के जुर्माने को हटाकर राशि को बढा दी गई है। पहले निगम कमिश्नरों को जुर्माना करने का अधिकार दिया गया था, उसमें लिखा था कि 5000 रुपए तक निगम आयुक्त या सीएमओ पेनाल्टी कर सकते हैं। इससे प्रभावशाली लोग घोखे से फंस भी गए तो मामूली पेनाल्टी कराकर बच जाते थे। मगर अब इसे 5 हजार फिक्स कर दिया गया है। याने सबके उपर यह लागू होगा। इससे सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा। फिर 100 साल पुराने हिसाब से 50 से 100 रुपए पेनाल्टी की नोटिस भेजने में भी अफसरों को हिचक आती थी...उससे अधिक नोटिस पहुंचाने में कर्मचारियों का पेट्रोल जल जाता था। ऐसे में, इसे बड़ा रिफार्म समझा जाना चाहिए।

आखिरी सत्र

विधानसभा का पांच दिन का मानसून सत्र कल 14 जुलाई से प्रारंभ हो जाएगा। विधानसभा के इस टेम्पोरेरी बिल्डिंग का यह आखिरी सेशन होगा। इसके बाद अब 25 साल की यादें शेष रह जाएंगी। अगला शीतकालीन सत्र नवा रायपुर के नवा विधानसभा भवन में होगा। नई एसेंबली को अंतिम रूप देने जोर-शोर से तैयारी शुरू हो गई है। राज्योत्सव के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नए विधानसभा भवन का लोकार्पण कराने की तैयारी चल रही है। विस अध्यक्ष डॉ0 रमन सिंह इसके लिए पीएम मोदी को आमंत्रण देकर आ चुके हैं।

एकमात्र विधायक

छत्तीसगढ़ बनने के बाद प्रथम विधानसभा सत्र से लेकर छठवे तक सिर्फ एक नेता हमेशा विधानसभा में पहुंचता रहा, वो रहे रायपुर के विधायक बृजमोहन अग्रवाल। 1989 में बृजमोहन पहली बार विधायक बनकर एमपी विधानसभा में पहुंचे थे। फिर नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ बनने के बाद राजकुमार कॉलेज में पहला सत्र हुआ था, उसमें भी वे मौजूद रहे और जनवरी 2024 के छठवें सत्र में भी। ये अलग बात है कि उनकी इच्छा के विरूद्ध उन्हें प्रमोशन देकर अब लोकसभा भेज दिया गया है। मगर यह कीर्तिमान उनके नाम दर्ज रहेगा कि पहले से लेकर छठवी विधानसभा तक पहुंचते-पहुंचते कई बड़े दिग्गज चुनाव हारे मगर बृजमोहन अजातशत्रु बने रहे। अलबत्ता, रविंद्र चौबे अगर 2013 का चुनाव नहीं हारे होते तो वे बृजमोहन अग्रवाल के समकक्ष होते।

रविवार, 6 जुलाई 2025

Chhattisgarh Tarkash: लालफीताशाही का नमूना

 तरकश, 6 जुलाई 2025

संजय के. दीक्षित

लालफीताशाही का नमूना

छत्तीसगढ़ में डॉयल 112 की गाड़ियां डेढ़-डेढ़, दो-दो लाख किलोमीटर चलकर अंतिम समय में पहुंच गई है। वहीं, अधिकांश थानों की गाड़ियां कंडम हो चुकी हैं। मगर इसका दूसरा स्याह पहलू यह है कि रायपुर से लगे अमलेश्वर बटालियन में 600 से अधिक नई बोलेरो गाड़ियां दो साल से रखे-रखे सड़ रही हैं। वजह यह कि 365 बोलेरो खरीद तो ली गई मगर डॉयल 112 सर्विस को ऑपरेट करने के लिए वेंडर फायनल नहीं हो पाया। तब तक थानों की गाड़ियों को रिप्लेस करने के लिए 300 नई बोलेरो और आ गईं। पीएचक्यू के अधिकारियों ने एक्स्ट्रा दिमाग लगाते हुए तय किया कि थानों के लिए आई गाड़ियों को डॉयल 112 के लिए रख लिया जाए और डॉयल 112 के नाम से दो साल पहले ली गई 370 बोलेरो को थानों को दे दिया जाए। पीएचक्यू के अफसर चाहते तो ये काम खुद ही कर सकते थे...इसके लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं थी। मगर पीएचक्यू ने अपना भार टालने के लिए मंत्रालय को लिख मारा। अब स्थिति यह है कि महीनों से नोटशीट किधर घूम रही है, ये बताने कोई तैयार नहीं। किन गाड़ियों को थाने को दिया जाए और किसे डॉयल 112 को, जब तक यह वीराट फैसला होगा, तब तक उन गाड़ियों की स्थिति क्या होगी, आप समझ सकते हैं। इसे ही कहते हैं लालफीताशाही...जनता की गाढ़ी कमाई का 50-100 करोड़ स्वाहा भी हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है।

रायपुर टॉप पर

किराये की गाड़ियां दौड़ाने के मामले में कवर्धा और राजनांदगांव के बाद रायपुर पुलिस अब टॉप पर आ गया है। रायपुर में हर महीने साढ़े छह सौ से सात सौ गाड़ियां किराये पर ली जा रही हैं। डीजीपी अशोक जुनेजा और खुफिया चीफ अमित कुमार की पुलिस अधीक्षकों की क्लास के बाद हालाकि, कुछ जिलों में किराये की गाड़ियों में कमी आई थी। मगर सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कोई कप्तान बुरा नहीं बनना चाहता। दरअसल, पुलिस महकमे में किराये में चलने वाली 80 परसेंट से अधिक गाड़ियां पुलिस परिवारों की है। आरआई से लेकर मुंशी, दरोगा, डीएसपी सबकी दो-दो, चार-चार गाड़ियां कागजों में दौड़ रही है। वेतन से चार गुना, पांच गुना इंकम इन गाड़ियों से आ रहा। कुछ अफसरों ने तो बकायदा ट्रेव्लर्स कंपनी बना लिया है। अब आप समझ सकते हैं...एसपी आखिर अपने ही घर में कितने लोगों से बुरा बनें...आखिर पोलिसिंग का काम भी उन्हीं लोगों से लेना है। ऐसे में, वित्त को ही कुछ करना होगा। हालांकि, फायनेंस सिकरेट्री मुकेश बंसल ने कुछ महीने पहले वाहनों की गड़बड़ियों के मामले में पीएचक्यू से कैफियत मांगी थी। पता नहीं, क्या जवाब आया।

अफसरों की क्लास

सुशासन तिहार में मैदानी इलाकों का हकीकत जानने के बाद सीएम विष्णुदेव साय योजनाओं के क्रियान्वयन की वस्तुस्थिति परखने विभागों की समीक्षा कर रहे हैं। सीएम का रिव्यू इस बार जरा दबाकर हो रहा है। वैसे भी डेढ़ साल में सीएम अब अफसरों और विभागों को काफी समझ चुके हैं तो सीएम सचिवालय के अफसरों का भी होमवर्क तगड़ा है...सो, इधर-उधर होने पर टोक दिया जा रहा। इस रिव्यू की सबसे खास बात यह है कि विभागों के अफसर आंकड़ों की बाजीगरी नहीं दिखा पा रहे। क्योंकि, सीएमओ के पास पहले से डायरेक्ट्रेट से लेकर जिलों तक का पूरा डेटा आ चुका है।

एक्सटेंशन का रिकार्ड

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के नाम एक और रिकार्ड दर्ज हो गया। फर्स्ट एक्सटेंशन का। छत्तीसगढ़ में अभी तक किसी मुख्य सचिव का सेवा विस्तार नहीं हुआ था। मगर क्रीटिकल सिचुएशन में ही सही, अमिताभ को तीन महीने का एक्सटेंशन मिल गया। इससे पहले सुनील कुजूर और आरपी मंडल के एक्सटेंशन के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा गया था। पर मंजूरी मिली नहीं। बहरहाल, अमिताभ के तीन महीने बढ़ने की वजह से उनका कार्यकाल अब चार साल 10 महीने हो जाएगा। संभवतः यह भी अपने आप में एक रिकार्ड होगा। नेट पर सर्च करने पर इतनी लंबी अवधि वाले किसी मुख्य सचिव का नाम मिला नहीं।

अगला चीफ सिकरेट्री

अब यह पब्लिक डोमेन में आ चुका है कि दिल्ली से आए एक फोन कॉल के बाद किस तरह सिचुएशन ने यूटर्न लिया और चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन को विदाई की बेला में तीन महीने का एक्सटेंशन मिल गया। मगर सवाल उठता है, तीन महीने बाद कौन? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर देने की स्थिति में कोई नहीं है। कारण कि गेंद अब केंद्र के पाले में जा चुका है। हो सकता है, बदले हालात में भारत सरकार अब अमित अग्रवाल को डेपुटेशन ब्रेक कर छत्तीसगढ़ भेज दे। या फिर विकासशील को मनीला से वापिस बुला लिया जाए। चर्चाएं विकासशील को बुलाने की भी हैं। विकासशील इस समय एशियाई विकास बैंक मनीला में एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। विकासशील को फिलिपिंस से वापिस बुलाने वालों का तर्क यह है कि किसी भी आईएएस को पहले अपना कैडर देखना चाहिए, च्वाइस की सर्विस इसके बाद आती है। इन दोनों का अगर नही हुआ तो फिर मनोज पिंगुआ को सरकार आजमा सकती है। हालांकि, रेखाएं अगर सुब्रत साहू के हाथों में होगी तो फिर उन्हें कौन रोक पाएगा। हालांकि, कुल जमा सार यह है कि पहली बार में जब छत्तीसगढ़ के अफसरों को दरकिनार कर अगर अमिताभ को एक्सटेंशन दिया गया, तो उससे मैसेज तो यही निकला कि अब उपर से ही कोई आएगा।

इगो प्राब्लम और कोआर्डिनेशन

डॉक्टर डे के दिन रायपुर में एक ऐसी घटना हुई, जिसे होना नहीं था। और 25 साल में ऐसा कभी हुआ भी नहीं। असल में, कार्यक्र्रम के कोआर्डिनेशन में चूक हुई। कार्यक्रम हो रहा था मेडिकल कॉलेज में, मगर कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन को पूछा नहीं गया। इसलिए, वे पहुंची भी नहीं। डॉक्टर डे के कार्यक्रम में कॉलेज के डीन नीचे कहीं कोने में बैठे हुए थे और जिनका उस कार्यक्रम से कोई नाता नहीं, वे नेता मंचासीन थे। बेशक, इसमें विरोधियों का हाथ रहा होगा, मगर इगो प्राब्लम और कोआर्डिनेशन की चूक से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

हाल-बेहाल

पिछले पांच साल में कई स्वास्थ्य मंत्री, सिकरेट्री और डायरेक्टर की आंबेडकर अस्पताल का मुआयना करती फोटूएं मीडिया में आई होंगी, मगर किसी ने उन होनहारों के हॉस्टल का जायजा लेने की जरूरत नहीं समझी कि वे किस हाल में रह रहे हैं। सरकारी अस्पतालों के शौचालयों से ज्यादा बुरी स्थिति में मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल के शौचालय हैं। जाहिर है, मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट प्रदेश के क्रीम होते हैं, उसमें भी सूबे के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रायपुर के। याने क्रीम में क्रीम। उनका ये हाल तो बाकी मेडिकल कॉलेज का आप समझ सकते हैं...भगवान ही मालिक होंगे।

रमन-धर्मजीत की जोड़ी

वैसे तो विधानसभा उपाध्यक्ष की खास जरूरत पड़ती नहीं। सभापति के पैनल से काम चला लिया जाता है। मध्यप्रदेश में 2020 के बाद कोई उपाध्यक्ष नहीं बना है। छत्तीसगढ़ में फिर भी लगभग हर विधानसभा में उपाध्यक्ष रहे हैं। उपाध्यक्ष का पद पहले विपक्ष को दिया जाता था। अजीत जोगी सरकार के दौरान बीजेपी के बनवारी लाल अग्रवाल उपाध्यक्ष रहे। मगर किसी बात पर आवेश में आकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया, उसके बाद यह पद विपक्ष से छीन गया। बहरहाल, इस छठवीं विधानसभा में अभी तक उपाध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है। पलड़ा धर्मजीत सिंह का भारी लग रहा है। सतीश भैया के नाम से जाने जाने वाले धर्मजीत पहले भी विस उपाध्यक्ष रह चुके हैं। उनके साथ विडंबना यह रही कि जिस हाइट के वे हैं, सियासत में उन्हें वह मुकाम मिला नहीं। मध्यप्रदेश विधानसभा में उन्हें उत्कृष्ठ विधायक का सम्मान मिला था। उनके सामने जन्म लिए लोग आज डिप्टी सीएम और मंत्री हैं, मगर सतीश भैया विधायक से उपर नहीं पहुंच पाए। असल में, रेखाओं का खेल कहें कि उनकी राजनीति हमेशा उल्टी दिशा में बहती रही। जब दिग्विजय सिंह का राज था, तो वे विद्याचरण के खेमे में थे। अजीत जोगी उन्हें छोटे भाई कहते रहे मगर कुछ दिया नहीं। 2018 में जब कांग्रेस का राज आया तो वे अजीत जोगी के साथ रहे। कांग्रेस में अगर होते भी तो उन्हें कुछ मिलता नहीं, क्योंकि भूपेश बघेल के साथ उनके गुण मिलते नहीं। और अब बीजेपी में आए तो बीजेपी वाले उन्हें अपना मानने तैयार नहीं। अलबत्ता, बीजेपी में मारामारी के बीच धर्मजीत ने कोई बड़ी ख्वाहिश पाली नहीं होगी। वैसे, विस उपाध्यक्ष के लिए धर्मजीत से कोई बेस्ट कंडिडेट हो भी नहीं सकता। सबसे अनुभवी, प्रखर वक्ता। स्पीकर डॉ0 रमन सिंह के साथ जोड़ेगी जमेगी भी। दोनों की केमेस्ट्री पुरानी है। 98 में रमन सिंह के पास जब अचानक केंद्रीय राज्य मंत्री का शपथ लेने के लिए फोन आया तो उनके पास ठीकठाक कुर्ता नहीं था। रेडिमेड उस समय इतना प्रचलित नहीं हुआ था और न रमन सिंह के साइज का कुर्ता मिल पाता। रमन के डीलडौल के धर्मजीत सिंह वहां थे। उनके पास एक नया कुर्ता था। बताते हैं, रमन सिंह ने उसे पहन केंद्रीय राज्य मंत्री की शपथ ली थी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. साढ़े छह साल के लंबे कार्यकाल के बाद भी आईपीएस पवनदेव पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन से मुक्त क्यों नहीं हो पा रहे हैं?

2. सफेद हाथी बनता जा रहा चिप्स की क्या कोई उपयोगिता रह गई है?

Chhattisgarh Tarkash 2025: रेखाओं का खेल है मुकद्दर...

 तरकश, 29 जून 2025

संजय के. दीक्षित

रेखाओं का खेल है मुकद्दर...

जगजीत सिंह का ये मशहूर गजल, छत्तीसगढ़ के राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के लिए मौजू है। अब देखिए न, दिसंबर 2023 में जब सरकार बदली थी तो लोग दावे कर रहे थे, मुख्य सचिव अमिताभ जैन को हटाकर रेवेन्यू बोर्ड का चेयरमैन बनाया जा रहा है। मगर अमिताभ, पूरे अमिताभ निकले। उन्होंने बचा डेढ़ साल कंप्लीट किया। और अब? रेखाओं का खेल देखिए, जिन अफसरों की नए सीएस बनने की अटकलें थी, उन्हें अब रेवेन्यू बोर्ड में दिन गुजारना पड़ेगा। जाहिर है, ब्यूरोक्रेसी में इससे पहले बीकेएस रे, पी राघवन, बीके कपूर, नारायण सिंह और सीके खेतान जैसे आईएएस रेखाओं से मात खा चुके हैं। इसी तरह राजनीति में भी...। रेखाओं के फेर में दिलीप सिंह जूदेव रमन सिंह से पिछड़ गए। वरना, ट्रेप कांड नहीं हुआ होता तो हो सकता था कि जूदेव सीएम बने होते। टीएस सिंहदेव का तो ताजा उदाहरण है। रेखाओं के मारे टीएस बंद कमरे में सिर्फ तीन लोगों के बीच भी ये नहीं कह सके कि मेरी उम्र हो रही है...मुझे पहले मौका दे दिया जाए। जाहिर है, वे इतना भर बोल गए होते तो छत्तीसगढ़ की राजनीति आज अलग दिशा में होती। मगर रेखाएं भूपेश बघेल की हथेली में थीं। इसी तरह सांसद के बाद हवाई जहाज के टेकऑफ की तरह प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने वाले अरुण साव ने कभी कहां सोचा था कि बगीया गांव से विष्णुदेव साय आ जाएंगे। 15 साल सीएम की कुर्सी पर बैठ चुके डॉ. रमन सिंह भी कम उम्मीद से थोड़े थे। मगर इस बार मुकद्दर ने साथ नहीं दिया। टंकराम वर्मा तथा श्याम बिहारी जायसवाल मंत्री बनेंगे और बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत मंत्रिमंडल से बाहर बैठेंगे, ये भी कहां किसी ने सोचा था? जगजीत सिंह की गजल की पंक्तियां सही इन सभी पर सही बैठती है...रेखाओं का खेल है मुकद्दर....रेखाओं से मात खा रहे हो...।

CS बड़ा या CM सचिवालय?

चीफ सिकरेट्री राज्य का प्रशासनिक मुखिया होता है। कैबिनेट का सिकरेट्री भी। मुख्य सचिव के पावर को इससे समझा जा सकता है कि सीएम तक जाने वाली कोई भी फाइल बिना सीएस के अनुमोदन के नहीं जाती। मगर वक्त के साथ प्रशासनिक स्वरूप बदलता गया। खासकर, पिछले डेढ़-दो दशक में...राज्यों में सीएम सचिवालय ताकतवर होता गया। छत्तीसगढ़ में ही देखें तो सुनिल कुमार, विवेक ढांड, शिवराज सिंह के सिकरेट्री टू सीएम रहने तक सीएम सचिवालय को कोई जानता नहीं था। 2008 के बाद बैजेंद्र कुमार, अमन सिंह और सुबोध सिंह जैसे अधिकारियों से सीएम सचिवालय का ग्लेमर बढ़ा। बावजूद इसके विवेक ढांड तक सीएस का वजूद कुछ हद तक बचा रहा। ढांड अपने पसंद का काम करा लेते थे, तो आईएएस, आईपीएस के ट्रांसफर में उनके चहेते अफसरों का नाम नोटशीट में जुड़ जाता था। मगर मार्च 2018 में उनके रिटायर होने के बाद छत्तीसगढ़ में सीएस नाम की संस्था गौण होती चली गई। सीएम सचिवालयों के भारी पड़ने की वजहें भी हैं। राज्य में सारे अधिकार सीएम में समाहित होते हैं। उस सीएम के साथ उनके सचिव 12 से 15 घंटे साथ रहते हैं। कई बार कोई मीटिंग या सीएम को दौरा पर निकलना हो तो सिकरेट्री सुबह आठ बजे हाउस पहुंच जाते हैं। सरकारी मीटिंगों के बाद सीएम से अहम चर्चाओं में कई बार आधी रात हो जाती है। सीएम से जुड़ी बारीक चीजों पर भी सीएम सचिवालय के अधिकारियों की पैनी नजरें होती हैं। जाहिर है, इतना क्लोजनेस के बाद पावर तो बढ़ेगा ही।

लिफाफे में नाम बंद

छत्तीसगढ़ के नए चीफ सिकरेट्री के नाम को लेकर भले ही संशय की स्थिति दिखलाई पड़ रही है मगर दबी जुबां से यह स्वीकार करने वालों की कमी नहीं है कि नाम का लिफाफा बंद हो चुका है। दरअसल, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय हाल में दिल्ली गए थे। अमित शाह के साथ बीएसएफ की फ्लाइट से वाराणसी गए और उसके बाद वहां से दिल्ली। इस दरम्यान ऐसा कुछ हुआ कि हाईकमान ने सरकार की पसंद पर मुहर लगा दी। अब सवाल है कि सरकार की पसंद कौन? तो इसका जवाब मुख्यमंत्री के स्वभाव और उनके च्वाइस से आप अंदाज लगा सकते हैं कि किस तरह के अफसर उन्हें पसंद होंगे...वही इस सवाल का उत्तर होगा। हां, ये इशारा अवश्य है कि नया सीएस साफ-सुथरी छबि का होगा। इसके बाद भी आप अंदाज नहीं लगा पा रहे तो फिर 30 घंटे का वेट कर लीजिए। इसके भीतर ही नए सीएस का नाम सामने आ जाएगा।

CS का बेटा CS?

छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री के लिए पांच दावेदार हैं, उनमें सुब्रत साहू के पिता पड़ोसी राज्य ओड़िसा के चीफ सिकरेट्री रह चुके हैं। सीनियरिटी में सुब्रत रेणु पिल्ले के बाद दूसरे नंबर पर है। अगर वे सीएस बनेंगे तो देश में पहली बार ऐसा होगा कि सीएस का बेटा सीएस बना। हालांकि, रेणु पिल्ले के पिता भी आंध्रप्रदेश के नामचीन आईएएस अधिकारी रहे हैं। वे एडिशनल चीफ सिकरेट्री से रिटायर हुए। चीफ सिकरेट्री के मजबूत दावेदारों में से एक मनोज पिंगुआ के पिता राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हैं तो उन्हीं की बैच की ऋचा शर्मा के पिता रायपुर में जेलर रहे। अब देखते हैं इनमें से किसको सूबे के प्रशासनिक मुखिया की कुर्सी मिलती है।

सुखी मंत्री

छत्तीसगढ़ में अभी हैं तो 10 मंत्री मगर इनमें से दो-तीन ही सुखी याने अफसरशाही की दृष्टि से कंफर्टेबल होंगे। बाकी मंत्रियों का न तो अपना पारफर्मेंस ठीक है और न ही वे जो करना चाह रहे, सिकरेट्री उन्हें करने दे रहे। कुछ मंत्री अपनी महिला सचिवों से संतुष्ट नहीं हैं...वे अपनी चलाना चाहते हैं मगर सख्त महिला अधिकारी उनकी चलने नहीं दे रहीं। डेपुटेशन से लौटे एक तेज-तर्रार सिकरेट्री ने एक मंत्रीजी के सपनों को तोड़ दिया। मंत्रीजी अब खुद ही रजिस्टर लेकर 10-10, 20-20 हजार का हिसाब देख रहे। कंफर्टेबल मंत्रियों में आप अरुण साव, ओपी चौधरी, टंकराम वर्मा को मान सकते हैं। अरुण साव के सिकरेट्री कमलप्रीत सिंह की खासियत यह है कि जिसके साथ उन्हें लगा दो, मंत्री को दिक्कत नहीं होती। ओपी चौधरी के सचिवों की तो बात ही अलग है...चेले, दोस्त, यार जो बोल लो। अविनाश चंपावत भी टंकराम वर्मा को कभी दुखी नहीं होने देते।

CM के सिकरेट्री CS

मुख्यमंत्री के सचिव रहने के बाद राज्य का चीफ सिकरेट्री बनने वाले आईएएस अधिकारियों की बात करें, तो चार अफसरों के नाम जेहन में आते हैं। इनमें शिवराज सिंह, सुनिल कुमार और विवेक ढांड का नाम प्रमुख है। रमन सिंह की पहली पारी में दिल्ली डेपुटेशन से लौटने के बाद शिवराज सिंह प्रमुख सचिव टू सीएम बनाए गए, फिर आरपी बगाई के रिटायर होने पर 2007 में चीफ सिकरेट्री बने। इसके बाद 2011 में सुनिल कुमार मुख्य सचिव बनाए गए। इससे पहले 2000 से 2003 तक वे अजीत जोगी के सचिव रह चुके थे। सुनिल कुमार के रिटायर होने के बाद 2014 में विवेक ढांड मुख्य सचिव नियुक्त किए गए। वे भी रमन सिंह की पहली पारी में उनके सिकरेट्री रहे। यद्यपि, शिवराज सिंह के दिल्ली से आने के बाद ढांड के उपर शिवराज प्रमुख सचिव टू सीएम बन गए थे। उधर, आरपी मंडल अजीत जोगी सचिवालय में सिकरेट्री तो नहीं, पर डिप्टी सिकरेट्री जरूर रहे। सीएम सचिवालय से उन्हें बिलासपुर का कलेक्टर बनाकर भेजा गया था। इस समय सीएस बनने वाले पांच दावेदारों में सिर्फ सुब्रत साहू सीएम सचिवालय में काम कर चुके हैं। गौरव द्विवेदी को हटाने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुब्रत को अपने सचिवालय में पहले प्रमुख सचिव बनाया। फिर टाईम से करीब डेढ़ साल पहले प्रमोशन देते हुए उन्हें एसीएस बनाया गया। इतना जानने के बाद अब स्वाभावित उत्सुकता होगी कि शिवराज, सुनिल, विवेक और मंडल की तरह क्या सुब्रत भी मुख्य सचिव की कुर्सी तक पहुंच पाएंगे।

आधे घंटे में पोस्टिंग

चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के बाद अब तक जिन्हें पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिली है, उनमें शिवराज सिंह, सुनिल कुमार, विवेक ढांड, अजय सिंह, सुनील कुजूर और आरपी मंडल शामिल हैं। शिवराज सिंह को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया गया था। हालांकि, वहां उनका मन नहीं लगा तो फिर सरकार ने बिजली कंपनियों का चेयरमैन अपाइंट कर दिया। इसके बाद सुनिल कुमार राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष बनाए गए। मगर उनका आर्डर करीब तीन महीने बाद निकला। विवेक ढांड रेरा सीएस रहते रेरा के चेयरमैन सलेक्ट हो गए थे, इसलिए उन्हें पोस्टिंग का इंतजार नहीं करना पड़ा। अजय सिंह को सीएस से हटाकर भूपेश बघेल सरकार ने प्लानिंग कमीशन भेज दिया था, सो रिटायरमेंट के बाद वे वहीं कंटीन्यू हो गए थे। उनके बाद आए सुनील कुजूर को भी रिटायरमेंट के करीब छह महीने बाद सहकारिता निर्वाचन का कमिश्नर बनाया गया। सुनील कुजूर की ताजपोशी में वक्त इसलिए लगा क्योंकि, सरकार को निर्वाचन से जीएस मिश्रा को हटाने में वक्त लगा। इन सभी में सबसे अधिक किस्मती रहे आरपी मंडल। 30 नवंबर 2020 को रिटायर होने के बाद भूपेश सरकार ने शाम 04.35 बजे अमिताभ जैन का सीएस बनाने का आदेश निकाला और उसके ठीक 10 मिनट बाद 04.45 बजे मंडल को नया रायपुर विकास प्राधिकरण का चेयरमैन नियुक्त करने का आर्डर जारी हो गया। बताते हैं, अमिताभ की नियुक्ति और मंडल को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग आदेश एक साथ तैयार हुआ था, जारी करने में 10 मिनट का गैप हुआ। इस बार भी तैयारी कुछ ऐसी ही थी। मगर सीआईसी का मामला हाई कोर्ट में फंस गया। जीएडी ने आखिरी मौके पर हाथ-पैर खुब चलाया मगर हाई कोर्ट में केस की लिस्टिंग नहीं हो सकी।

प्रमोशन के बाद झटका

कई महीनों की मशक्कत के बाद सूबे के 46 इंस्पेक्टर प्रमोट होकर डीएसपी बने। इस प्रमोशन के लिए उन्हें बड़े पापड़ बेलने पड़े। दावेदारों से व्यवस्था कर पांच-छह पेटी खर्च किया गया। जाहिर है, दरोगा हो या डीएसपी, आजकल बिना लक्ष्मीनारायण का काम कहां होता है। ऐसे में, पीएससी से लेकर मंत्रालय तक फाइल खिसकाने के लिए स्पेशल एफर्ट करना पड़ा। मगर सरकार ने उनके इस संघर्ष का सम्मान नहीं किया। 46 में से 21 को एक झटके में बस्तर भेज दिया। दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर जाकर बेचारे पछता रहे हैं...इससे बढ़ियां तो बिना प्रमोशन के थे। अफसरी करने का शौक ले डूबा...थानेदारी गई ही, उपर से बस्तर पटक दिया गया।

ऑनलाइन वसूली

एसीबी के एक्शन मोड में आने के बाद भी भ्रष्ट तंत्र पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। पुलिस महकमे के कुछ लोग अब नया इनोवेशन किए हैं...ऑनलाईन करप्शन का। आपको याद होगा, पिछले साल दो-तीन ऐसे मामले आए थे, जिसमें मुंशी और सब इंस्पेक्टर ने एकाउंट में ऑनलाइन रिश्वत ले ली थी। महकमे के लोग अब सिस्टमेटिक ढंग से इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं। खासकर, गाड़ियों की चेकिंग में। असल में, कई बार लोगों के पास फाईन पटाने के लिए कैश नहीं होते। उपर से पुलिस वालों की कोशिश होती है कि पेमेंट ऑनलाईन हो जाए। हाल में एक जिले से होकर गुजरना हुआ, वहां क्यूआर कोड के जरिये फाईन लिया जा रहा था। पता करने पर लोगों ने बताया कि डिजिटल युग में डिजिटल रिश्वत का ये नया आईडिया है। इसमें पूरी ईमानदारी बरती जाती है। प्रायवेट व्यक्ति थाने से किसी-न-किसी रुप में जुर्म-जरायम के जरिये जुड़ा होता है। जुर्माने से आए पैसे वो पूरी ईमानदारी के साथ पुलिस को दे देता है। उसमें से 10 परसेंट कमीशन उसे मिल जाता है। इसके अलावा पुलिस वाले से संबंध प्रगाढ़ होने से वह जुर्म की दुनिया का दो-चार काम थाने वालों से करा लेता है, वह अलग है। पुलिस मुख्यालय को इसके लिए कप्तान साहबों के नाम सर्कुलर जारी करना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. 30 जून को छत्तीसगढ़ रेवेन्यू बोर्ड का चेयरमैन किस आईएएस अधिकारी को बनाया जाएगा?

2. क्या ये सही है कि मंत्रीपरिषद के अचानक विस्तार की सूचना देकर सरकार लोगों को चौंकाने वाली है?

शनिवार, 21 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash: 7 एसडीएम सस्पेंड, मगर....

 तरकश, 22 जून 2025

संजय के. दीक्षित

7 एसडीएम सस्पेंड, मगर....

छत्तीसगढ़ बनने के 24 बरस में राज्य प्रशासनिक सेवा के सिर्फ दो अफसरों के निलंबित होने का स्मरण आता है। मगर विष्णुदेव सरकार के पिछले एक साल के भीतर सात एसडीएम सस्पेंड हो चुके हैं। टेकराम माहेश्वरी और भागीरथ खांडे रिश्वत लेते ट्रेप हुए तो निर्भया साहू, आनंदस्वरूप तिवारी, शशिकांत कुर्रे और अशोक कुमार मार्बल पर मुआवजा स्कैम में गाज गिरी। वहीं, प्रेमप्रकाश शर्मा पाठ्य पुस्तक घोटाले में निलबित हुए। इसके अलावे राजस्व और ट्रेप मामलों में सुपरिटेंडेंट इंजीनियर से लेकर अब तक 70 से ज्यादा तहसीलदार, नायब तहसीलदार, दरोगा, टीआई गिरफ्तार और सस्पेंड हो चुके हैं। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में करप्शन का लेवल कम नहीं हो पा रहा बल्कि पिछली कांग्रेस सरकार से टक्कर लेने की स्थिति में है। तो सिस्टम में बैठे लोगों के लिए सोचने का विषय है कि साल भर के भीतर सात-सात एसडीएम सस्पेंड...छह तो छह महीने में। फिर भी खटराल तंत्र में वो खौफ क्यों नहीं बन पा रहा, जिसकी इस समय बड़ी जरूरत है। भ्रष्टाचार की बीमारी लाइलाज बन छत्तीसगढ़ की प्रगति को निगल जाए, इससे पहले सरकार को कोई हाइपरसोनिक कदम उठाना चाहिए।

ऐसे चीफ सिकरेट्री-1

छत्तीसगढ़ के पुराने लोगों को याद होगा...2008 के विधानसभा चुनाव में रमन सरकार की नैया एक रुपए किलो चावल के सहारे पार हो गई थी। मगर 2013 के चुनाव के लिए कोई एजेंडा नहीं था। रमन सिंह के रणनीतिकारों ने सिस्टम में अनुशासन लाकर सरकार की साफ-सुथरी छबि का मैसेज देने का रास्ता निकाला। इसके लिए दिल्ली में डेपुटेशन पर पोस्टेड सुनिल कुमार को आग्रह पूर्वक बुलाकर चीफ सिकरेट्री बनाया गया। इसके बाद बीजेपी 2013 का विस चुनाव जीती भी। बहरहाल, बात वर्तमान की। पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ के सिस्टम में जिस तरह भ्रष्टाचार का विष बेल फैला है, उसे कोई शीर्ष स्तर पर बैठा सख्त नौकरशाह ही अंकुश लगा सकता है...सरकार के सुशासन की कोशिशों में सुरखाब के पंख लगा सकता है। हालांकि, सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड अमित अग्रवाल के भले ही चीफ सिकरेट्री बनने की संभावनाएं कम प्रतीत हो रही हैं मगर यह कड़वा सत्य यह है कि उनके नाम से ब्यूरोक्रेसी तक घबरा रही है। जाहिर है, ऐसे

ऐसे चीफ सिकरेट्री-2

चीफ सिकरेट्री का पद इतना महत्वपूर्ण है कि उसमें थोड़ा लचीलापन न हो तो सरकार का कामधाम ठहर सा जाएगा। यही वजह है कि 99 परसेंट सरकारें यस मैन चीफ सिकरेट्री ही पसंद करती है। ध्यान रहे, सुनिल कुमार को रमन सरकार ने दिल्ली से बुलाया जरूर, मगर फरवरी 2013 में उनके एक्सटेंशन के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया। जबकि, झीरम कांड के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री के समक्ष वे अपनी उपयोगिता प्रमाणित कर चुके थे। वाकई, तेज नौकरशाहों को झेलना कठिन होता है मगर ये भी सही है कि ऐसे अफसर फाइलों में सरकार को फंसने नहीं देते। एक सिकरेट्री टू सीएम की पोस्टिंग पर सवाल उठा तो सुनिल कुमार ने दिमाग दौड़ाते हुए बकायदा संविदा कानून बनवा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि हाई कोर्ट से पीआईएल खारिज हो गया।

ऐसे चीफ सिकरेट्री-3

छत्तीसगढ़ बनने के बाद अभी तक 12 चीफ सिकरेट्री अपाइंट हो चुके हैं। अरुण कुमार से लेकर एसके मिश्र, अशोक विजयवर्गीय, आरपी बगाई, शिवराज सिंह, पी0 जॉय उम्मेन, सुनिल कुमार, विवेक ढांड, अजय सिंह, सुनील कुजूर, आरपी मंडल, अमिताभ जैन। मगर इनमें से किसी के नाम से सिकरेट्री, कलेक्टर से लेकर सरकारी मुलाजिम घबराते थे, उनमें चार नाम प्रमुख हैं। आरपी बगाई, शिवराज सिंह, सुनील कुमार और विवेक ढांड। इसमें दिलचस्प यह है कि ये चारों अफसर एक ही सरकार, एक ही मुख्यमंत्री के दौरान मुख्य सचिव रहे। बचे आठ में से अजय सिंह सरकार बदलने का शिकार होकर विकेट गंवा बैठे तो आरपी मंडल का कार्यकाल कोरोना का भेंट चढ़ गया। इनमें सबसे सरल और सहज कहा जाए तो अशोक विजयवर्गीय और सुनील कुजूर का नाम सबसे उपर आएगा। उधर, 80 बरस के एसके मिश्रा अभी भी काफी सक्रिय हैं। और, अमिताभ जैन सबसे लंबे कार्यकाल का ऐसा रिकार्ड बनाकर जा रहे कि निकट भविष्य में उसे कोई तोड़ नहीं सकता। अमित अग्रवाल के पास पूरे पांच साल जरूर हैं मगर वैसे अफसर इतना लंबा चलते नहीं। मनोज पिंगुआ बने तो वे सीएस के फोर ईयर क्लब में शामिल अवश्य हो जाएंगे मगर अमिताभ का रिकार्ड नहीं ब्रेक कर पाएंगे।

ईडी की तरह ईओडब्लू

खबर है, भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के तहत सरकार अब एसीबी को स्ट्रांग करने जा रही है। बिल्कुल ईडी की तरह। ईओडब्लू और एसीबी को अब संसाधनों से लैस किया जाएगा। थोक में वहां अफसरों को भेजने के लिए नोटशीट चल चुकी है। चलिये...सरकार का आइडिया बढ़ियां है। आखिर, मोदीजी की छबि चमकाने में ईडी का हाथ रहा ही। छत्तीसगढ़ में करप्शन से पब्लिक इतना त्रस्त हो चुकी है कि एक चुनाव तो करप्शन पर चोट कर निकाला जा सकता है। पिछली कांग्रेस सरकार सिर्फ और सिर्फ करप्शन के इश्यू पर पिट गई, वरना 2018 के चुनाव में 15 सीट पर आ चुकी बीजेपी के लिए कम-से-कम 10 साल तक कोई संभावनाएं नहीं थी। नो दाउट, कांग्रेस सरकार की कई योजनाएं अच्छी थीं, मगर उसका क्रियान्वयन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। बहरहाल, बात ईओडब्लू को ईडी की तरह बनाने की, तो उसे ईडी की तरह पावर भी देना होगा। किस अफसर को पूछताछ के लिए बुलाना है किसे नहीं, इसमें भेदभाव और भाई साहबों का दखल न हो। तभी ईओडब्लू को मजबूत करने का फायदा 2028 के विधानसभा चुनाव में मिल सकेगा।

सबसे सीनियर कलेक्टर

2009 बैच के अवनीश शरण और 2010 बैच के कार्तिकेय गोयल के रायपुर वापसी के बाद अब छत्तीसगढ़ में 2011 बैच वाले सबसे सीनियर कलेक्टर हो गए हैं। इस बैच के इस समय पांच आईएएस अधिकारी जिला संभाल रहे हैं। सर्वेश भूरे राजनांदगांव, दीपक सोनी बलौदा बाजार, नीलेश श्रीरसागर कांकेर, भोस्कर विलास संदीपन अंबिकापुर और जन्मजय मोहबे जांजगीर। हालांकि, ये अलग बात है कि सीनियरिटी के हिसाब से इनमें से अधिकांश को बड़ा जिला नहीं मिला है। और अभी उम्मीद भी नहीं है। क्योंकि, ’ए’ केटेगरी वाले तीनों जिलों में वैकेंसी नहीं है। रायपुर में गौरव सिंह मजबूती से क्रीज पर टिके हुए हैं तो बिलासपुर और दुर्ग वाले अभी-अभी क्रीज पर उतरे हैं। छत्तीसगढ़ में ’ए’ और ’बी’ के बीच में एक ’बी प्लस’ केटेगरी भी है। वो हैं कोरबा, दंतेवाड़ा, रायगढ़ और राजनांदगांव। इनमें कोरबा को छोड़ तीनों में नए कलेक्टर हैं। उन्हें हटाया नहीं जा सकता। आगामी फेरबदल में 2011 बैच वालों के लिए फिलहाल कोरबा ही एक बचता है, जहां के लिए वे भगवान विष्णुदेव को वे खुश करने का प्रयास कर सकते हैं।

पूर्णकालिक डीजीपी

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल 22 जून को रायपुर आ रहे हैं। रात्रि विश्राम करने के बाद वे अगले दिन बस्तर जाएंगे। अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे में नए मंत्रियों और नए चीफ सिकरेट्री का नाम भले ही फायनल न हो मगर अंदेशा है कि पूर्णकालिक डीजीपी का नाम जरूर तय हो जाएगा। क्योंकि, ये विषय अब सरकार के औरा से जु़ड़ गया है। अगर यूपीएससी से पेनल नहीं आया होता तो बात अलग थी। दो नामों का पेनल आए महीना भर होने जा रहा है। अरुणदेव गौतम को सरकार ने प्रभारी डीजीपी बनाया है तो निश्चित तौर पर वे सरकार के पसंदीदा भी होंगे। मगर आर्डर नहीं निकल पा रहा तो संदेश ये जा रहा कि सिस्टम किसी प्रेशर की वजह से कश्मकश में है। सो, कश्मकश दूर करने के लिए संभावना है कि अमित शाह के दौरे में कम-से-कम पूर्णकालिक डीजीपी का नाम तय हो जाएगा।

गृह मंत्री का खौफ

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे की तैयारी में अफसरशाही कई दिन से बेहद व्यस्त चल रही है। खासकर, गृह और पुलिस मुख्यालय के अफसर। मंत्रालय के गलियारों में काफी हलचल है। दरअसल, अमित शाह ऐसे मंत्री हैं, जिनका मीटिंग यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी से ज्यादा कठिन होता है। बता दें, अमित शाह का खौफ सरकार के लोगों को ही नहीं बल्कि संगठन के नेताओं पर भी सिर चढ़कर बोलता है। 2019 का वाकया याद होगा, जब एक हारे हुए विधायक ने सरकार की पराजय का ठीकरा रमन सिंह और उनके अफसरों पर फोड़ने का प्रयास किया तो अमित शाह ने उन्हें यह कहते हुए झिड़क दिया था कि कांग्रेस के गढ़ रहे छत्तीसगढ़ में बीजेपी का 15 साल तक शासन करना आसान नहीं था। बहरहाल, अमित शाह की बैठकों में शामिल होने वाले अफसर बताते हैं...चाहे जितनी भी तैयारी कर के जाओ, वे ऐसे कठिन सवाल पूछ देंगे, जिसका जवाब तैयार नहीं रहता। अमित शाह का होम वर्क इतना तगड़ा होता है, उन्हें फेस कर पाना अच्छे-अच्छे अधिकारियों के वश की बात नहीं होती।

हॉट टॉपिक

छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी और उसके वास्ता रखने वालों के बीच इस समय सबसे हॉट टॉपिक है...नेक्स्ट चीफ सिकरेट्री कौन? दरअसल, मुख्य सचिव अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में अब पांच वर्किंग डे बच गया है। 23 से 27 जून। 28 और 29 को शनिवार, रविवार अवकाश है। और उसके अगले दिन 30 को दोपहर तक नए सीएस का आदेश निकल जाएगा। यह पहली बार है कि ब्यूरोक्रेसी के बड़े अधिकारियों को भी समझ में नहीं आ पा रहा कि उंट किस करवट बैठेगा? सूबे के प्रशासनिक मुखिया के लिए पांच अफसर पात्रता रखते हैं। दिल्ली स्तर पर अगर फैसला होगा तो अमित अग्रवाल और ऋचा शर्मा हो सकती हैं तो स्टेट लेवल पर सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ में टक्कर है। हालांकि, सीनियरिटी के हिसाब से देखें तो एसीएस रेणु पिल्ले का नाम सबसे उपर आएगा। मगर उनके नाम की चर्चा इसलिए नहीं है क्योंकि, जनरल परसेप्शन बन गया है...नियम-कायदों से इंच भर भी समझौता नहीं करने वाले आजकल सीएस बनते नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सारे पैरामीटर पर अगर सहमति की बात की जाए तो चीफ सिकरेट्री के लिए आईएएस सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल और मनोज पिंगुआ में से किसका पलड़ा भारी रहेगा?

2. इसमें कितनी सत्यता है कि छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल विस्तार भाई साहब लोगों की पसंद-नापसंद की वजह से लटक जा रही है?


शनिवार, 14 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: मंत्री का कमाऊं पीएस

 तरकश, 15 जून 2025

संजय के. दीक्षित

मंत्री का कमाऊं पीएस

सीएम सचिवालय ने कुछ अरसा पहले मंत्रियों के पीए और पीएस की निगरानी शुरू की थी, उसमें पता नहीं कितने को ट्रेस किया गया। मगर अब भी हालत जुदा नहीं है। एक बड़े मंत्री के पीएस कई बड़े मालदार विभागों के होने के बाद भी जनहित वाले छोटे विभागों को भी नहीं बख्श रहे। छोटी सप्लाई और टेंडरों में कमीशन चाहिए, तो बाबुओं की पोस्टिंगों में भी रोकड़ा होना। वो भी हर तीन महीने में रिचार्ज की अनिवार्यता। मंत्रीजी का अच्छा भला फ्यूचर खटराल पीएस के फेर में दांव पर लगता जा रहा। जाहिर है, उनकी गिनती सबसे अधिक कमीशन वाले मंत्री में होने लगी है। वो अब उसे झटक भी नहीं सकते, क्योंकि उसने थैली देकर आदत खराब कर डाली है, दूसरा घरवाली के साथ परिजनों का खास बन गया है। ऐसा ही रहा तो अगले चुनाव में मंत्री जी की सीट भी खतरे में पड़ जाएगी। क्योंकि, पीएस कोई घर छोड़ नहीं रहे। सो, इलाके के अपने लोग भी अब नाराज हो रहे हैं।

लाल बत्ती, नो वैकेंसी

लगभग सभी छोटे-बड़े निगम-बोर्डों में सरकार राजनीतिक नियुक्तियां कर चुकी हैं। आखिरी था ब्रेवरेज कारपोरेशन और अपेक्स बैंक चेयरमैन...वो भी कंप्लीट हो गया। केदार गुप्ता के रिजेक्ट करने से दुग्ध संघ खाली है मगर उसमें कोई जाना चाह नहीं रहा है...केदार ने इसकी रेटिंग डाउन कर दिया है। कादम्बरी जैसे झुनझुना वाले बोर्ड का भी यही हाल है। सरकारी नियुक्तियों में पीएससी जरूर बचा है। छत्तीसगढ़ में ऐसे कई दृष्टांत हैं, जिसमें प्रोफसर और अफसरों के अलावा जनप्रतिनिधियों को पीएससी मेंबर बनाया गया। अब बल्क में बचा है तो वह है बोर्डो में मेंबर। मगर इसमें गाड़ी और लेटरहेड पर लिखने के अलावा कुछ मिलता नहीं। बोर्ड, निगम के मेंबर में भी अगर कोई बाजीगरी दिखा ले तो बात अलग है। आगे चलकर जिला सहकारी बैंकों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष में नियुक्तियां जरूर होगी। अलबत्ता, राज्य स्तर के बोर्ड और निगमों में चेयरमैन लेवल की अब कोई रिक्तियां नहीं हैं।

जांच में रोड़ा, पर्दे के पीछे कौन?

राज्य सरकार जीरो टॉलरेंस नीति के तहत जो मामले सामने आ रहे हैं, उसकी जांच में कोई कोताही नहीं बरत रही...ताबड़तोड़ घोषणाएं की जा रही। मगर यह भी सही है कि कोई भी जांच अंजाम तक नहीं पहुंच पा रही...बल्कि उससे पहले ही डिरेल्ड हो जा रही है। सीजीएमएसी से लेकर आरआई प्रमोशन स्कैम तक की ईओडब्लू जांच में यही हुआ। 1131 करोड़ की अरपा-भैंसाझाड़ मुआवजा घोटाले की ईओडब्लू जांच के लिए मुख्यमंत्री ने बैठक में घोषणा की। मगर महीना भर ज्यादा हो गया, अभी तक जांच एजेंसी को कोई चिठ्ठी नहीं भेजी गई है। सीएम के बैठक के मिनिट्स में उसे ऐसे शामिल किया गया, जैसे ईओडब्लू जांच कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। सवाल उठता है, जांच में आखिर रोड़े कौन अटका रहा है? सरकार की इसकी पहचान करनी चाहिए कि कौन वो शख्सियत है, जो पर्दे के पीछे से सरकार को डैमेज कर रहा है।

सीएस, डीजीपी साथ-साथ

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद यह पहला मौका होगा, जब चीफ सिकरेट्री और डीजीपी का सलेक्शन लगभग साथ-साथ होना है। नवंबर 2000 के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ। तब अरुण कुमार सीएस और श्रीमोहन शुक्ला डीजी पुलिस नियुक्त हुए थे। छत्तीसगढ़ में अभी तक 12 मुख्य सचिव और 11 डीजीपी अपाइंट हुए हैं। अरुणदेव गौतम अभी प्रभारी हैं...सरकार की इनायत अगर कंटीन्यू रही तो वे छत्तीसगढ़ के 12वें डीजीपी बनेंगे। बहरहाल, अशोक जुनेजा को छह महीने का एक्सटेंशन नहीं मिला होता तो सीएस और डीजीपी की एक साथ नियुक्ति वाली स्थिति नहीं आती। एक्सटेंशन की वजह से जुनेजा सितंबर 2024 की बजाए फरवरी 2025 में रिटायर हुए और यूपीएससी से क्लियर होकर पेनल आते-आते जून आ गया। इसी जून में मुख्य सचिव अमिताभ जैन का भी रिटायरमेंट है। प्रशासन और पुलिस के इन दोनों शीर्ष पदों पर राज्य सरकार का च्वाइस कसौटी पर रहेगा। इन नियुक्तियों से पता चलेगा कि सरकार आखिर किस लाइन पर चलना चाहती है।

प्रभारवाद में डीजीपी

यूपीएससी से दो आईपीएस अधिकारियों के नामों का पेनल आने के 20 दिन बाद भी अभी तक पूर्णकालिक डीजीपी पोस्ट करने की सरकार स्तर पर कोई सुगबुगाहट नहीं है। और जैसे हालात दिख रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कि अरुणदेव गौतम प्रभारी डीजीपी बने रहने के अलावा कोई चारा नहीं है। वैसे कई राज्यों में प्रभार में डीजीपी चल रहे हैं। यूपी देश का पहला राज्य होगा, जहां कई साल से पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बने। प्रभारी डीजीपी प्रशांत कुमार के रिटायर होने पर राजीव कृष्ण प्रभारी डीजीपी बने हैं। वो भी छह आईपीएस अधिकारियों के सुपरसीड करके। असल में, सभी राज्यों की अपनी-अपनी मजबूरियां होती हैं। कहीं सीनियर अफसर सरकार के पसंद के नहीं होता तो कहीं पसंद का होता है तो दूसरे तरह के जैक-एप्रोच नियुक्ति में बाधा बनकर खड़े हो जाते हैं। अब छत्तीसगढ़ में किस तरह का ब्रेकर है...ये तो नहीं पता। मगर कुछ तो है। ऐसे में, लगता है कि प्रभारवाद अभी जारी रहेगा।

सीएस का काउंटडाउन

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में ठीक 15 दिन बच गए हैं। 30 जून को चार साल सात महीने का रिकार्ड पारी खेल कर वे पेवेलियन लौट जाएंगे। ऐसे में, लोगों की जिज्ञासाएं हिलोरें मार रहीं...छत्तीसगढ़ का अगला प्रशासनिक मुखिया कौन बनेगा। जाहिर है, डीजीपी की तरह चीफ सिकरेट्री में प्रभारवाद होता नहीं। होना भी नहीं चाहिए...राज्य का प्रशासनिक मुखिया ही प्रभारी हो जाएगा तो फिर उसकी कौन सुनेगा। फिलवक्त पांच आईएएस अफसर चीफ सिकरेट्री के लिए एलिजिबल हैं। रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ। हालांकि, कुछ दिनों से रेस में सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ आगे बताए जा रहे थे। धर्मेद्र प्रधान अगर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाते तो इनमें से एक का पलड़ा निश्चित तौर से भारी हो जाता। मगर ऐसा हुआ नहीं। उधर, सालों से सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड अमित अग्रवाल के बारे में पहले खबर आई थी कि वे छत्तीसगढ़ लौटने इच्छुक नहीं हैं। मगर पिछले हफ्ते से ब्यूरोक्रेसी में ये चर्चाएं जोर पकड़ने लगी है कि सरकार अगर बुलाए तो वे चीफ सिकरेट्री बनने के लिए रायपुर आ सकते हैं। उनके कुछ बैचमेटों ने इसकी तस्दीक की है। इससे मामला पेचीदा हो चला है। अमित अग्रवाल के रायपुर लौटने के संदर्भ में अगर कोई बात होगी तो निश्चित तौर पर दिल्ली में पीएम और केंद्रीय गृह मंत्री से सीएम की मुलाकात में आई होगी। और अगर अमित अग्रवाल अगर नहीं आए तो फिर मुख्य मुकाबला सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ में होगा। सुब्रत 91 बैच के आईएएस हैं और मनोज 94 बैच के। इनमें से जिसका मुकद्दर बुलंद होगा, वह 30 जून को अमिताभ जैन से कार्यभार ग्रहण करेगा।

आईएएस रजिस्ट्रार

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का चर्चित स्लोगन था...अमीर धरती के गरीब लोग। इस विरोधाभास को दूर करने उन्होंने सूबे के ह्यूमन रिसोर्स की मजबूती के लिए कई स्तर पर कोशिशें शुरू की थी। जोगी ने सबसे पहले विश्वविद्यालयों में डायरेक्ट आईएएस अधिकारियों को रजिस्ट्रार बनाया। एक समय रायपुर, बिनासपुर दोनों में आईएएस रजिस्ट्रार होते थे। अभी के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार रह चुके हैं। मगर उसके बाद...? उसके बाद हायर एजुकेशन को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। इस समय छत्तीसगढ़ के एक को छोड़कर सभी विश्वविद्यालयों का प्रशासन गुरूजी लोग संभाल रहे हैं। कुलसचिवों की नियुक्ति सरकार ने नहीं, कुलपतियों ने खुद से कर लिया है। तरीका वही...प्रभारवाद। जाहिर है, अफसर कैडर का रजिस्ट्रार रहता है तो उसकी एकाउंटबिलिटी रहती है। गलत होने पर वह अड़ सकता है। मगर असिस्टेंट प्रोफेसरों और प्रोफेसरों की कहां मजाल कि वह कुलपतियों से अलग जाए। लिहाजा, कुलपतियों के दोनों हाथ घी में सिर कढ़ाई में है।

कुलपति बोले तो बड़ा बाबू

एक समय था, जब कुलपतियों के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा होती थी। उनका अलग प्रोटोकॉल और औरा था। वीसी को नेक्स्ट टू गवर्नर कहा जाता था। कार्यक्रमों में वीसी मुख्यमंत्री और राज्यपालों के बगल में बिठाए जाते थे। मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद पैसे कमाने के चक्कर में कुलपतियों का ऐसा पतन हुआ कि उनकी स्थिति बड़े बाबू से ज्यादा नहीं रह गई है। सूटकेश वाले कुलपतियों का क्वालिटी एजुकेशन और रिसर्च से कोई वास्ता नहीं,...उनका एक ही मोटो है, जितना खर्चा किया, वह ब्याज समेत निकल आए। जाहिर है, ऐसे में निर्माण कार्यों और नियुक्तियों पर गिद्ध दृष्टि रहेगी ही। जितना ज्यादा कंक्रीट की इमारतें खड़ी करेंगे, कमीशन उतना अधिक मिलेगा। फिर थोक के भाव में होने वाली नियुक्तियां तो हॉट केक है ही। बस्तर यूनिवर्सिटी की नियुक्यिं में आप सभी ने देखा ही, बाकी यूनिवर्सिटी का हाल भी जुदा नहीं है। वो चाहे संघ के नाम पर कुलपति बनने वाले हो या फिर सूटकेस वाले, छत्तीसगढ़ में सभी कुलपतियों ने कारटेल बनाकर अपना रेट तय कर लिया है। असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 30 से 35, एसोसियेट प्रोफसर याने रीडर के लिए 50 और प्रोफेसर के लिए 75 लाख। अब आप कैलकुलेटर से जोड़ लीजिए कि 5 साल में अगर 50 नियुक्ति भी कर ली तो कई खोखा का इंतजाम हो गया। याने अपनी संतानों के साथ नाती-पोता के लिए भी व्यवस्था। संघ की दुहाई और गांधी जी को कोसने वाले एक कुलपति ने तो तबाही मचा दी है...डेली वेजेज की कर्मचारियों की पोस्टिंग भी गांधीजी के बिना नहीं करते।

संघ-कांग्रेस का कॉकटेल

कुलपतियों की नियुक्ति में अब कोई विचाराधारा नहीं रह गया है। संघ के हैं या कांग्रेस के, बिना सूटकेस कुछ नहीं होने वाला। यह बाती छिपी नहीं है कि पिछली कांग्रेस सरकार में एक संघ परिवार के प्रोफेसर ने कैसे कुलपति की कुर्सी जुगाड़ी। उनके लिए संघ वालों ने प्रयास किया तो कांग्रेस के लोगों ने भी लॉबिंग की। ये तो हुआ एप्रोच। मगर सिर्फ इससे काम नहीं चलने वाला...जमाना बदल गया है। एप्रोच तो पहुंच और बात आगे बढ़ाने के लिए है...सूटकेस मस्ट है। संघ-कांग्रेस के एप्रोच वाले प्रोफसर साब ने बाजार से ब्याज पर पैसा लिया था। प्राध्यापकों की नियुक्तियां कर अब वे पैसे लौटा रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि कांग्रेस की जगह भाजपा के कुछ असंतुष्ट नेता ही विपक्ष का रोल निभा रहे हैं?

2. छंटनी होने की अभी दूर-दूर तक कोई खबर नहीं, फिर एक मंत्री का बंगला सूनसान क्यों रहने लगा है?

रविवार, 8 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरशाही का सेफ गेम

 तरकश, 8 जून 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरशाही का सेफ गेम

अफसरशाही ने सेफ गेम खेलने के लिए दिमाग तो अच्छा दौड़ाया था मगर नम्बर रांग डायल हो गया। बात कर रहे हैं कि नया रायपुर और पुराने रायपुर के बीच सेड़ीखेरी के प्राइम लोकेशन में नेताओं, अफसरो और जजों की आवासीय योजना की। पिछली सरकार ने 2022 में इसके लिए 23 एकड़ जमीन आबंटित की थी। इसमें 134 प्लॉट काटे गए। इनमें से विधायकों और सांसदों को 49 प्लॉट मिले। तब तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की डबल बेंच ने सरकारी जमीन पर बड़ा फैसला दे दिया। तेलांगना के एक केस में नवंबर 2024 में 64 पेज के आदेश में डबल बेंच ने कहा कि किसी भी वर्ग विशेष को सरकारी जमीन रियायती दर पर नहीं दी जा सकती। अगर प्लॉट दे भी दिया गया हो तो उसे निरस्त कर पैसा वापिस किया जाए। सीजेआई के इस फैसले से अफसरशाही ने जोरदार आइडिया निकाला। प्लान हुआ, पहले जजों को प्लॉट अलॉट कर दिया जाए, फिर अफसरों का। ताकि, कोई कानूनी अड़चन न आए। इसके लिए बिलासपुर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क किया गया। खुशामदी लहजे की नुमाइश हुई...सर, किन-किन जज साहबों को प्लॉट देना है, आपलोग ही फायनल कर उनके नाम और एड्रेस दे दीजिए, बाकी चिंता की कोई बात नहीं...हमलोग सब कर लेंगे। बताते हैं, रजिस्ट्रार जनरल से होते हुए मामला चीफ जस्टिस रमेश सिनहा तक पहुंचा। सीजे इसे सुनते ही भड़क गए। बोले, बिल्कुल नहीं...सुप्रीम कोर्ट जब इस पर रोक लगा चुकी है, तब जजों को सरकारी प्लॉट कैसे दिया जा सकता है। इसके बाद रजिस्ट्रार जनरल ने पत्र लिखकर बता दिया कि जजों को प्लॉट देना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा, ऐसा कतई संभव नहीं है। इससे अफसरशाही सकपका गई। जजों को पहले प्लॉट देने की होशियारी में पूरे 85 प्लॉट अधर में लटक गए हैं। इसमें जजों के बाद ऑल इंडिया सर्विस के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों को प्लॉट दिया जाना था। मगर अब न उगलते बन रहा और न निगलते।

बड़ा खेल, बड़ी चूक

रजिस्ट्रार जनरल के पत्र को अफसरशाही ने चतुराई दिखाते हुए दबा दिया कि ज्यादा बवेला मचा तो फिर आगे से अधिकारियों को सरकारी प्लॉट मिलना मुश्किल हो जाएगा। मगर इस पत्र को दबाने का नुकसान यह हुआ कि रायपुर एयरपोर्ट के पास विधायकों की बनने वाली कालोनी के लिए रायपुर जिला प्रशासन ने बस्तियों को हटाने की नोटिस जारी कर दी। जाहिर है, जिला प्रशासन को अगर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पत्र की जानकारी होती तो शायद ऐसा नहीं होता। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश के बाद तो किसी वर्ग विशेष को प्लॉट दिया ही नहीं जा सकता। भले ही वो जनप्रतिनिधि हो, जज या अफसर। यहां तक कि सेड़ीखेरी में राज्य प्रशासनिक सेवा को प्लॉट मिला है, उस पर भी अब खतरे मंडराने लगे हैं। फिर विधायकों की कॉलोनी कैसे बन सकती है? जाहिर है, जो चीज बननी ही नहीं, उसके लिए सरकार की किरकिरी हो गई कि माननीयों के लिए गरीबों की बस्ती उजाड़ी जा रही है।

DGP के लिए आरटीआई

यूपीएससी ने डीजीपी के लिए दो नामों को पेनल राज्य सरकार को भेज दिया है। हालांकि, नाम चार आईपीएस अधिकारियों के गए थे। मगर आधे कट गए। इससे खफा होकर एक आईपीएस ने आरटीआई लगाकर यूपीएससी से जानकारी मांगी है कि किस आधार पर उनका नाम पेनल से काटा गया। बताते हैं, जिन दो आईपीएस अफसरो ंके खिलाफ केस थे, वे सभी क्लियर हो गए हैं। फिर, पेनल अगर तीन का भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि, नाम पर टिक तो मुख्यमंत्री को लगाना था। पुलिस महकमा हैरान है कि दो नाम आखिर कटे कैसे। डीपीसी में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन गए थे। अमिताभ का ऐसा स्वभाव नहीं कि वे किसी का नाम कटवाएं। अब, यूपीएससी में किसी ने कंप्लेन किया होगा तो बात दीगर है।

मंत्रालय में रिफार्म?

सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्रालय में अटैचमेंट समाप्त करने के लिए विभागों से तीन दिन में रिपोर्ट मांगी है। जीएडी को यह बात खटक रहा है कि 200 से अधिक अधिकारी, कर्मचारी मंत्रालय में लंबे समय से बिना बताए मंत्रालय में अटैच हैं। स्थिति यह हो गई है कि वहां बैठने की अब जगह नहीं पुर पा रही। जीएडी की शिकायत कुछ हद तक ठीक है...मगर प्रश्न यह भी है कि सचिवों को बाहर से अधिकारियों, कर्मचारियों को मंत्रालय लाने की जरूरत क्यों पड़ी? इस बात से इंकार नहीं कि 50 परसेंट लोग जोर-जुगाड़ लगाकर मंत्रालय में घुस आए होंगे, मगर 50 परसेंट तो काम के होंगे। जीएडी को सचिवों से पूछना चाहिए कि क्या मजबूरी थी कि उन्हें बाहर से कर्मचारियों को बुलाना पड़ा। पता ये भी करना चाहिए कि मंत्रालय के स्टॉफ कार्यकुशलता में कितने माहिर हैं, कितने अनुशासित भी। पावरफुल आईएएस उनका कुछ कर सकते हैं क्या? सुनिल कुमार जैसे अब तक के सबसे तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री नौकरशाहों को तो कस दिए थे मगर उससे नीचे देखने की कभी कोशिश नहीं की। वो तो गनीमत है कि भोपाल वाले अब नहीं के बराबर है, वरना दसेक साल पहले मंत्रालय में नौकरशाहों से ज्यादा नीचे वालों की तूती बोलती थी।

IAS, डिप्टी कलेक्टर और भृत्य बराबर

समानता का यह अधिकार छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में ही देखने को मिल सकता है। वहां आईएएस और डिप्टी कलेक्टर भी डिप्टी सिकरेट्री हैं तथा भृत्य कैडर वाले भी। दरअसल, मंत्रालय में हर पांच साल में प्रमोशन का प्रावधान है। सो, वहां प्यून में भर्ती होने वाले पांच साल में बाबू प्रमोट हो जाते हैं और फिर उसके बाद सेक्शन ऑफिसर, अंडर सिकरेट्री से होते हुए उप सचिव बन जाते हैं। वहीं, सीनियर डिप्टी कलेक्टर भी मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री बनते हैं तो आठ साल की सर्विस वाले आईएएस भी। 2017 बैच के आईएएस इस समय मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री हैं। मंत्रालय के इस प्रमोशन सिस्टम से बाकी कर्मचारियों को ईर्ष्या हो सकती है।

2 बड़े रिफार्म

इस हफ्ते छत्तीसगढ़ में दो बड़े रिफार्म किए गए। पहला, कम संख्या वाले 10 हजार से अधिक स्कूलों को दूसरे स्कूलों में मर्ज कर दिया गया और 13 हजार अतिशेष शिक्षकों को शिक्षक विहीन स्कूलों में पोस्ट किया गया। हालांकि, अतिशेष के नाम पर बीईओ और डीईओ ने तबाही मचाते हुए कई खोखा का खेला कर डाला। फिर भी सुधार की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है...राज्य बनने के बाद कभी भी इतने बड़े स्तर पर युक्तियुक्तकरण नहीं किया गया। और न ही शिक्षक विहीन स्कूलों की सुध ली गई। जाहिर है, 211 स्कूलों में एक भी बच्चे नहीं थे, फिर भी बरसों से शिक्षक और स्कूल चल रहे थे। दूसरा रिफार्म है...आवास और पर्यावरण विभाग की किफायती जन आवास योजना। लोवर मीडिल और मीडिल क्लास को इस योजना से कम कीमत में सुव्यवस्थित कॉलोनियों में मकान मुहैया हो सकेगा। दावा है कि इससे छोटे मकानों की कीमत 30 परसेंट तक कम हो जाएगी। वहीं, रियल इस्टेट में इंवेस्टमेंट बढ़ेगा।

मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न

सीएम विष्णुदेव साय की दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। सोशल मीडिया में फिर अटकलों का दौर शुरू हो गया है। मगर इस बार विश्वास का संकट है। असल में, दो बार शपथ होते-होते मामला टांय-टांय फुस्स हो गया था। पहली बार दिसंबर 2024 में शपथ के लिए राज्यपाल का बस्तर दौरा निरस्त हो गया था। सो, इस बार मंत्रिमंडल विस्तार की खबर अगर सही भी होगी, तब भी राजभवन से जब तक अधिकृत जानकारी नहीं आएगी, कोई भरोसा नहीं करने वाला। यहां तक कि दावेदारों को भी यकीं नहीं होगा...बेचारे कई बार ठगे से रह गए।

माटीपुत्र की आखिरी लड़ाई

प्रदेश के सबसे सीनियर आईएफएस अधिकारी सुधीर अग्रवाल हक की आखिरी लड़ाई लड़ने सुप्रीम कोर्ट की देहरी पर पहुंच चुके हैं। हालांकि, हेड ऑफ फॉरेस्ट बनने के लिए उनके पास अब टाईम नहीं बचा है। दो-एक महीने में रिटायर हो जाएंगे, मगर उम्मीद पर दुनिया टिकी है तो फिर सुधीर पीछे क्यों रहते? असल में, दिसंबर 2023 में सरकार बदली तो सुधीर बेहद आशान्वित थे कि पिछली सरकार में बेहद पावरफुल रहे श्रीनिवास राव की जगह उन्हें कुर्सी मिल जाएगी। मगर ऐसा हुआ नहीं तो इसका ठीकरा सूटकेस और गांधीजी पर नहीं फोड़ना चाहिए। 80 हजार स्केल वाले सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पदों के लिए हथेली में रेखाएं भी होनी चाहिए। हथेली में भाग्य रेखा प्रबल हो सारी व्यवस्थाएं अपने आप हो जाती हैं।

प्रमोटी आईएएस पावरफुल!

ऐसा नहीं कह सकते कि प्रमोटी आईएएस अधिकारियों की पिछली सरकार में ही चलती थी। इस सरकार में भी कुछ अफसरों का रुतबा कायम है। आरआई प्रमोशन घोटाले में सरकार ने ईओडब्लू जांच का ऐलान किया था। मीडिया में खबर आई कि ईओडब्लू ने 40 या 45 बिंदुओं पर जवाब मांगा है। मगर उसके बाद कुछ नहीं हुआ। ये भी पता नहीं चल पा रहा कि एफआईआर वगैरह दर्ज भी हुआ है या नहीं। दरअसल, जमीन-जायदाद वाले विभाग में पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले अफसर ने उपर के न जाने के कितने प्रभावशाली अधिकारियों और मंत्रियों, नेताओं के लैंड मैनेजमेंट में हाथ बंटाया होगा। नई सरकार को इसकी जानकारी नहीं रही होगी, इसलिए केस ईओडब्लू को दे दिया। मगर सिस्टम के ऐसे उपयोगी लोगों के खिलाफ भला जांच कैसे हो सकती है?

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि अच्छी पोस्टिंग के लिए काम के साथ 20 से 25 परसेंट लॉबिंग काम करती है?

2. मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबर से कौन-कौन से मंत्री को रात में नींद की गोली लेनी पड़ रही है?