रविवार, 8 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरशाही का सेफ गेम

 तरकश, 8 जून 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरशाही का सेफ गेम

अफसरशाही ने सेफ गेम खेलने के लिए दिमाग तो अच्छा दौड़ाया था मगर नम्बर रांग डायल हो गया। बात कर रहे हैं कि नया रायपुर और पुराने रायपुर के बीच सेड़ीखेरी के प्राइम लोकेशन में नेताओं, अफसरो और जजों की आवासीय योजना की। पिछली सरकार ने 2022 में इसके लिए 23 एकड़ जमीन आबंटित की थी। इसमें 134 प्लॉट काटे गए। इनमें से विधायकों और सांसदों को 49 प्लॉट मिले। तब तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की डबल बेंच ने सरकारी जमीन पर बड़ा फैसला दे दिया। तेलांगना के एक केस में नवंबर 2024 में 64 पेज के आदेश में डबल बेंच ने कहा कि किसी भी वर्ग विशेष को सरकारी जमीन रियायती दर पर नहीं दी जा सकती। अगर प्लॉट दे भी दिया गया हो तो उसे निरस्त कर पैसा वापिस किया जाए। सीजेआई के इस फैसले से अफसरशाही ने जोरदार आइडिया निकाला। प्लान हुआ, पहले जजों को प्लॉट अलॉट कर दिया जाए, फिर अफसरों का। ताकि, कोई कानूनी अड़चन न आए। इसके लिए बिलासपुर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क किया गया। खुशामदी लहजे की नुमाइश हुई...सर, किन-किन जज साहबों को प्लॉट देना है, आपलोग ही फायनल कर उनके नाम और एड्रेस दे दीजिए, बाकी चिंता की कोई बात नहीं...हमलोग सब कर लेंगे। बताते हैं, रजिस्ट्रार जनरल से होते हुए मामला चीफ जस्टिस रमेश सिनहा तक पहुंचा। सीजे इसे सुनते ही भड़क गए। बोले, बिल्कुल नहीं...सुप्रीम कोर्ट जब इस पर रोक लगा चुकी है, तब जजों को सरकारी प्लॉट कैसे दिया जा सकता है। इसके बाद रजिस्ट्रार जनरल ने पत्र लिखकर बता दिया कि जजों को प्लॉट देना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा, ऐसा कतई संभव नहीं है। इससे अफसरशाही सकपका गई। जजों को पहले प्लॉट देने की होशियारी में पूरे 85 प्लॉट अधर में लटक गए हैं। इसमें जजों के बाद ऑल इंडिया सर्विस के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों को प्लॉट दिया जाना था। मगर अब न उगलते बन रहा और न निगलते।

बड़ा खेल, बड़ी चूक

रजिस्ट्रार जनरल के पत्र को अफसरशाही ने चतुराई दिखाते हुए दबा दिया कि ज्यादा बवेला मचा तो फिर आगे से अधिकारियों को सरकारी प्लॉट मिलना मुश्किल हो जाएगा। मगर इस पत्र को दबाने का नुकसान यह हुआ कि रायपुर एयरपोर्ट के पास विधायकों की बनने वाली कालोनी के लिए रायपुर जिला प्रशासन ने बस्तियों को हटाने की नोटिस जारी कर दी। जाहिर है, जिला प्रशासन को अगर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पत्र की जानकारी होती तो शायद ऐसा नहीं होता। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश के बाद तो किसी वर्ग विशेष को प्लॉट दिया ही नहीं जा सकता। भले ही वो जनप्रतिनिधि हो, जज या अफसर। यहां तक कि सेड़ीखेरी में राज्य प्रशासनिक सेवा को प्लॉट मिला है, उस पर भी अब खतरे मंडराने लगे हैं। फिर विधायकों की कॉलोनी कैसे बन सकती है? जाहिर है, जो चीज बननी ही नहीं, उसके लिए सरकार की किरकिरी हो गई कि माननीयों के लिए गरीबों की बस्ती उजाड़ी जा रही है।

DGP के लिए आरटीआई

यूपीएससी ने डीजीपी के लिए दो नामों को पेनल राज्य सरकार को भेज दिया है। हालांकि, नाम चार आईपीएस अधिकारियों के गए थे। मगर आधे कट गए। इससे खफा होकर एक आईपीएस ने आरटीआई लगाकर यूपीएससी से जानकारी मांगी है कि किस आधार पर उनका नाम पेनल से काटा गया। बताते हैं, जिन दो आईपीएस अफसरो ंके खिलाफ केस थे, वे सभी क्लियर हो गए हैं। फिर, पेनल अगर तीन का भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि, नाम पर टिक तो मुख्यमंत्री को लगाना था। पुलिस महकमा हैरान है कि दो नाम आखिर कटे कैसे। डीपीसी में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन गए थे। अमिताभ का ऐसा स्वभाव नहीं कि वे किसी का नाम कटवाएं। अब, यूपीएससी में किसी ने कंप्लेन किया होगा तो बात दीगर है।

मंत्रालय में रिफार्म?

सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्रालय में अटैचमेंट समाप्त करने के लिए विभागों से तीन दिन में रिपोर्ट मांगी है। जीएडी को यह बात खटक रहा है कि 200 से अधिक अधिकारी, कर्मचारी मंत्रालय में लंबे समय से बिना बताए मंत्रालय में अटैच हैं। स्थिति यह हो गई है कि वहां बैठने की अब जगह नहीं पुर पा रही। जीएडी की शिकायत कुछ हद तक ठीक है...मगर प्रश्न यह भी है कि सचिवों को बाहर से अधिकारियों, कर्मचारियों को मंत्रालय लाने की जरूरत क्यों पड़ी? इस बात से इंकार नहीं कि 50 परसेंट लोग जोर-जुगाड़ लगाकर मंत्रालय में घुस आए होंगे, मगर 50 परसेंट तो काम के होंगे। जीएडी को सचिवों से पूछना चाहिए कि क्या मजबूरी थी कि उन्हें बाहर से कर्मचारियों को बुलाना पड़ा। पता ये भी करना चाहिए कि मंत्रालय के स्टॉफ कार्यकुशलता में कितने माहिर हैं, कितने अनुशासित भी। पावरफुल आईएएस उनका कुछ कर सकते हैं क्या? सुनिल कुमार जैसे अब तक के सबसे तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री नौकरशाहों को तो कस दिए थे मगर उससे नीचे देखने की कभी कोशिश नहीं की। वो तो गनीमत है कि भोपाल वाले अब नहीं के बराबर है, वरना दसेक साल पहले मंत्रालय में नौकरशाहों से ज्यादा नीचे वालों की तूती बोलती थी।

IAS, डिप्टी कलेक्टर और भृत्य बराबर

समानता का यह अधिकार छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में ही देखने को मिल सकता है। वहां आईएएस और डिप्टी कलेक्टर भी डिप्टी सिकरेट्री हैं तथा भृत्य कैडर वाले भी। दरअसल, मंत्रालय में हर पांच साल में प्रमोशन का प्रावधान है। सो, वहां प्यून में भर्ती होने वाले पांच साल में बाबू प्रमोट हो जाते हैं और फिर उसके बाद सेक्शन ऑफिसर, अंडर सिकरेट्री से होते हुए उप सचिव बन जाते हैं। वहीं, सीनियर डिप्टी कलेक्टर भी मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री बनते हैं तो आठ साल की सर्विस वाले आईएएस भी। 2017 बैच के आईएएस इस समय मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री हैं। मंत्रालय के इस प्रमोशन सिस्टम से बाकी कर्मचारियों को ईर्ष्या हो सकती है।

2 बड़े रिफार्म

इस हफ्ते छत्तीसगढ़ में दो बड़े रिफार्म किए गए। पहला, कम संख्या वाले 10 हजार से अधिक स्कूलों को दूसरे स्कूलों में मर्ज कर दिया गया और 13 हजार अतिशेष शिक्षकों को शिक्षक विहीन स्कूलों में पोस्ट किया गया। हालांकि, अतिशेष के नाम पर बीईओ और डीईओ ने तबाही मचाते हुए कई खोखा का खेला कर डाला। फिर भी सुधार की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है...राज्य बनने के बाद कभी भी इतने बड़े स्तर पर युक्तियुक्तकरण नहीं किया गया। और न ही शिक्षक विहीन स्कूलों की सुध ली गई। जाहिर है, 211 स्कूलों में एक भी बच्चे नहीं थे, फिर भी बरसों से शिक्षक और स्कूल चल रहे थे। दूसरा रिफार्म है...आवास और पर्यावरण विभाग की किफायती जन आवास योजना। लोवर मीडिल और मीडिल क्लास को इस योजना से कम कीमत में सुव्यवस्थित कॉलोनियों में मकान मुहैया हो सकेगा। दावा है कि इससे छोटे मकानों की कीमत 30 परसेंट तक कम हो जाएगी। वहीं, रियल इस्टेट में इंवेस्टमेंट बढ़ेगा।

मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न

सीएम विष्णुदेव साय की दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। सोशल मीडिया में फिर अटकलों का दौर शुरू हो गया है। मगर इस बार विश्वास का संकट है। असल में, दो बार शपथ होते-होते मामला टांय-टांय फुस्स हो गया था। पहली बार दिसंबर 2024 में शपथ के लिए राज्यपाल का बस्तर दौरा निरस्त हो गया था। सो, इस बार मंत्रिमंडल विस्तार की खबर अगर सही भी होगी, तब भी राजभवन से जब तक अधिकृत जानकारी नहीं आएगी, कोई भरोसा नहीं करने वाला। यहां तक कि दावेदारों को भी यकीं नहीं होगा...बेचारे कई बार ठगे से रह गए।

माटीपुत्र की आखिरी लड़ाई

प्रदेश के सबसे सीनियर आईएफएस अधिकारी सुधीर अग्रवाल हक की आखिरी लड़ाई लड़ने सुप्रीम कोर्ट की देहरी पर पहुंच चुके हैं। हालांकि, हेड ऑफ फॉरेस्ट बनने के लिए उनके पास अब टाईम नहीं बचा है। दो-एक महीने में रिटायर हो जाएंगे, मगर उम्मीद पर दुनिया टिकी है तो फिर सुधीर पीछे क्यों रहते? असल में, दिसंबर 2023 में सरकार बदली तो सुधीर बेहद आशान्वित थे कि पिछली सरकार में बेहद पावरफुल रहे श्रीनिवास राव की जगह उन्हें कुर्सी मिल जाएगी। मगर ऐसा हुआ नहीं तो इसका ठीकरा सूटकेस और गांधीजी पर नहीं फोड़ना चाहिए। 80 हजार स्केल वाले सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पदों के लिए हथेली में रेखाएं भी होनी चाहिए। हथेली में भाग्य रेखा प्रबल हो सारी व्यवस्थाएं अपने आप हो जाती हैं।

प्रमोटी आईएएस पावरफुल!

ऐसा नहीं कह सकते कि प्रमोटी आईएएस अधिकारियों की पिछली सरकार में ही चलती थी। इस सरकार में भी कुछ अफसरों का रुतबा कायम है। आरआई प्रमोशन घोटाले में सरकार ने ईओडब्लू जांच का ऐलान किया था। मीडिया में खबर आई कि ईओडब्लू ने 40 या 45 बिंदुओं पर जवाब मांगा है। मगर उसके बाद कुछ नहीं हुआ। ये भी पता नहीं चल पा रहा कि एफआईआर वगैरह दर्ज भी हुआ है या नहीं। दरअसल, जमीन-जायदाद वाले विभाग में पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले अफसर ने उपर के न जाने के कितने प्रभावशाली अधिकारियों और मंत्रियों, नेताओं के लैंड मैनेजमेंट में हाथ बंटाया होगा। नई सरकार को इसकी जानकारी नहीं रही होगी, इसलिए केस ईओडब्लू को दे दिया। मगर सिस्टम के ऐसे उपयोगी लोगों के खिलाफ भला जांच कैसे हो सकती है?

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि अच्छी पोस्टिंग के लिए काम के साथ 20 से 25 परसेंट लॉबिंग काम करती है?

2. मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबर से कौन-कौन से मंत्री को रात में नींद की गोली लेनी पड़ रही है?

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