शनिवार, 14 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: मंत्री का कमाऊं पीएस

 तरकश, 15 जून 2025

संजय के. दीक्षित

मंत्री का कमाऊं पीएस

सीएम सचिवालय ने कुछ अरसा पहले मंत्रियों के पीए और पीएस की निगरानी शुरू की थी, उसमें पता नहीं कितने को ट्रेस किया गया। मगर अब भी हालत जुदा नहीं है। एक बड़े मंत्री के पीएस कई बड़े मालदार विभागों के होने के बाद भी जनहित वाले छोटे विभागों को भी नहीं बख्श रहे। छोटी सप्लाई और टेंडरों में कमीशन चाहिए, तो बाबुओं की पोस्टिंगों में भी रोकड़ा होना। वो भी हर तीन महीने में रिचार्ज की अनिवार्यता। मंत्रीजी का अच्छा भला फ्यूचर खटराल पीएस के फेर में दांव पर लगता जा रहा। जाहिर है, उनकी गिनती सबसे अधिक कमीशन वाले मंत्री में होने लगी है। वो अब उसे झटक भी नहीं सकते, क्योंकि उसने थैली देकर आदत खराब कर डाली है, दूसरा घरवाली के साथ परिजनों का खास बन गया है। ऐसा ही रहा तो अगले चुनाव में मंत्री जी की सीट भी खतरे में पड़ जाएगी। क्योंकि, पीएस कोई घर छोड़ नहीं रहे। सो, इलाके के अपने लोग भी अब नाराज हो रहे हैं।

लाल बत्ती, नो वैकेंसी

लगभग सभी छोटे-बड़े निगम-बोर्डों में सरकार राजनीतिक नियुक्तियां कर चुकी हैं। आखिरी था ब्रेवरेज कारपोरेशन और अपेक्स बैंक चेयरमैन...वो भी कंप्लीट हो गया। केदार गुप्ता के रिजेक्ट करने से दुग्ध संघ खाली है मगर उसमें कोई जाना चाह नहीं रहा है...केदार ने इसकी रेटिंग डाउन कर दिया है। कादम्बरी जैसे झुनझुना वाले बोर्ड का भी यही हाल है। सरकारी नियुक्तियों में पीएससी जरूर बचा है। छत्तीसगढ़ में ऐसे कई दृष्टांत हैं, जिसमें प्रोफसर और अफसरों के अलावा जनप्रतिनिधियों को पीएससी मेंबर बनाया गया। अब बल्क में बचा है तो वह है बोर्डो में मेंबर। मगर इसमें गाड़ी और लेटरहेड पर लिखने के अलावा कुछ मिलता नहीं। बोर्ड, निगम के मेंबर में भी अगर कोई बाजीगरी दिखा ले तो बात अलग है। आगे चलकर जिला सहकारी बैंकों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष में नियुक्तियां जरूर होगी। अलबत्ता, राज्य स्तर के बोर्ड और निगमों में चेयरमैन लेवल की अब कोई रिक्तियां नहीं हैं।

जांच में रोड़ा, पर्दे के पीछे कौन?

राज्य सरकार जीरो टॉलरेंस नीति के तहत जो मामले सामने आ रहे हैं, उसकी जांच में कोई कोताही नहीं बरत रही...ताबड़तोड़ घोषणाएं की जा रही। मगर यह भी सही है कि कोई भी जांच अंजाम तक नहीं पहुंच पा रही...बल्कि उससे पहले ही डिरेल्ड हो जा रही है। सीजीएमएसी से लेकर आरआई प्रमोशन स्कैम तक की ईओडब्लू जांच में यही हुआ। 1131 करोड़ की अरपा-भैंसाझाड़ मुआवजा घोटाले की ईओडब्लू जांच के लिए मुख्यमंत्री ने बैठक में घोषणा की। मगर महीना भर ज्यादा हो गया, अभी तक जांच एजेंसी को कोई चिठ्ठी नहीं भेजी गई है। सीएम के बैठक के मिनिट्स में उसे ऐसे शामिल किया गया, जैसे ईओडब्लू जांच कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। सवाल उठता है, जांच में आखिर रोड़े कौन अटका रहा है? सरकार की इसकी पहचान करनी चाहिए कि कौन वो शख्सियत है, जो पर्दे के पीछे से सरकार को डैमेज कर रहा है।

सीएस, डीजीपी साथ-साथ

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद यह पहला मौका होगा, जब चीफ सिकरेट्री और डीजीपी का सलेक्शन लगभग साथ-साथ होना है। नवंबर 2000 के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ। तब अरुण कुमार सीएस और श्रीमोहन शुक्ला डीजी पुलिस नियुक्त हुए थे। छत्तीसगढ़ में अभी तक 12 मुख्य सचिव और 11 डीजीपी अपाइंट हुए हैं। अरुणदेव गौतम अभी प्रभारी हैं...सरकार की इनायत अगर कंटीन्यू रही तो वे छत्तीसगढ़ के 12वें डीजीपी बनेंगे। बहरहाल, अशोक जुनेजा को छह महीने का एक्सटेंशन नहीं मिला होता तो सीएस और डीजीपी की एक साथ नियुक्ति वाली स्थिति नहीं आती। एक्सटेंशन की वजह से जुनेजा सितंबर 2024 की बजाए फरवरी 2025 में रिटायर हुए और यूपीएससी से क्लियर होकर पेनल आते-आते जून आ गया। इसी जून में मुख्य सचिव अमिताभ जैन का भी रिटायरमेंट है। प्रशासन और पुलिस के इन दोनों शीर्ष पदों पर राज्य सरकार का च्वाइस कसौटी पर रहेगा। इन नियुक्तियों से पता चलेगा कि सरकार आखिर किस लाइन पर चलना चाहती है।

प्रभारवाद में डीजीपी

यूपीएससी से दो आईपीएस अधिकारियों के नामों का पेनल आने के 20 दिन बाद भी अभी तक पूर्णकालिक डीजीपी पोस्ट करने की सरकार स्तर पर कोई सुगबुगाहट नहीं है। और जैसे हालात दिख रहे हैं, उससे प्रतीत होता है कि अरुणदेव गौतम प्रभारी डीजीपी बने रहने के अलावा कोई चारा नहीं है। वैसे कई राज्यों में प्रभार में डीजीपी चल रहे हैं। यूपी देश का पहला राज्य होगा, जहां कई साल से पूर्णकालिक डीजीपी नहीं बने। प्रभारी डीजीपी प्रशांत कुमार के रिटायर होने पर राजीव कृष्ण प्रभारी डीजीपी बने हैं। वो भी छह आईपीएस अधिकारियों के सुपरसीड करके। असल में, सभी राज्यों की अपनी-अपनी मजबूरियां होती हैं। कहीं सीनियर अफसर सरकार के पसंद के नहीं होता तो कहीं पसंद का होता है तो दूसरे तरह के जैक-एप्रोच नियुक्ति में बाधा बनकर खड़े हो जाते हैं। अब छत्तीसगढ़ में किस तरह का ब्रेकर है...ये तो नहीं पता। मगर कुछ तो है। ऐसे में, लगता है कि प्रभारवाद अभी जारी रहेगा।

सीएस का काउंटडाउन

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन के रिटायरमेंट में ठीक 15 दिन बच गए हैं। 30 जून को चार साल सात महीने का रिकार्ड पारी खेल कर वे पेवेलियन लौट जाएंगे। ऐसे में, लोगों की जिज्ञासाएं हिलोरें मार रहीं...छत्तीसगढ़ का अगला प्रशासनिक मुखिया कौन बनेगा। जाहिर है, डीजीपी की तरह चीफ सिकरेट्री में प्रभारवाद होता नहीं। होना भी नहीं चाहिए...राज्य का प्रशासनिक मुखिया ही प्रभारी हो जाएगा तो फिर उसकी कौन सुनेगा। फिलवक्त पांच आईएएस अफसर चीफ सिकरेट्री के लिए एलिजिबल हैं। रेणु पिल्ले, सुब्रत साहू, अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा और मनोज पिंगुआ। हालांकि, कुछ दिनों से रेस में सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ आगे बताए जा रहे थे। धर्मेद्र प्रधान अगर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाते तो इनमें से एक का पलड़ा निश्चित तौर से भारी हो जाता। मगर ऐसा हुआ नहीं। उधर, सालों से सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड अमित अग्रवाल के बारे में पहले खबर आई थी कि वे छत्तीसगढ़ लौटने इच्छुक नहीं हैं। मगर पिछले हफ्ते से ब्यूरोक्रेसी में ये चर्चाएं जोर पकड़ने लगी है कि सरकार अगर बुलाए तो वे चीफ सिकरेट्री बनने के लिए रायपुर आ सकते हैं। उनके कुछ बैचमेटों ने इसकी तस्दीक की है। इससे मामला पेचीदा हो चला है। अमित अग्रवाल के रायपुर लौटने के संदर्भ में अगर कोई बात होगी तो निश्चित तौर पर दिल्ली में पीएम और केंद्रीय गृह मंत्री से सीएम की मुलाकात में आई होगी। और अगर अमित अग्रवाल अगर नहीं आए तो फिर मुख्य मुकाबला सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ में होगा। सुब्रत 91 बैच के आईएएस हैं और मनोज 94 बैच के। इनमें से जिसका मुकद्दर बुलंद होगा, वह 30 जून को अमिताभ जैन से कार्यभार ग्रहण करेगा।

आईएएस रजिस्ट्रार

छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का चर्चित स्लोगन था...अमीर धरती के गरीब लोग। इस विरोधाभास को दूर करने उन्होंने सूबे के ह्यूमन रिसोर्स की मजबूती के लिए कई स्तर पर कोशिशें शुरू की थी। जोगी ने सबसे पहले विश्वविद्यालयों में डायरेक्ट आईएएस अधिकारियों को रजिस्ट्रार बनाया। एक समय रायपुर, बिनासपुर दोनों में आईएएस रजिस्ट्रार होते थे। अभी के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार रह चुके हैं। मगर उसके बाद...? उसके बाद हायर एजुकेशन को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। इस समय छत्तीसगढ़ के एक को छोड़कर सभी विश्वविद्यालयों का प्रशासन गुरूजी लोग संभाल रहे हैं। कुलसचिवों की नियुक्ति सरकार ने नहीं, कुलपतियों ने खुद से कर लिया है। तरीका वही...प्रभारवाद। जाहिर है, अफसर कैडर का रजिस्ट्रार रहता है तो उसकी एकाउंटबिलिटी रहती है। गलत होने पर वह अड़ सकता है। मगर असिस्टेंट प्रोफेसरों और प्रोफेसरों की कहां मजाल कि वह कुलपतियों से अलग जाए। लिहाजा, कुलपतियों के दोनों हाथ घी में सिर कढ़ाई में है।

कुलपति बोले तो बड़ा बाबू

एक समय था, जब कुलपतियों के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा होती थी। उनका अलग प्रोटोकॉल और औरा था। वीसी को नेक्स्ट टू गवर्नर कहा जाता था। कार्यक्रमों में वीसी मुख्यमंत्री और राज्यपालों के बगल में बिठाए जाते थे। मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद पैसे कमाने के चक्कर में कुलपतियों का ऐसा पतन हुआ कि उनकी स्थिति बड़े बाबू से ज्यादा नहीं रह गई है। सूटकेश वाले कुलपतियों का क्वालिटी एजुकेशन और रिसर्च से कोई वास्ता नहीं,...उनका एक ही मोटो है, जितना खर्चा किया, वह ब्याज समेत निकल आए। जाहिर है, ऐसे में निर्माण कार्यों और नियुक्तियों पर गिद्ध दृष्टि रहेगी ही। जितना ज्यादा कंक्रीट की इमारतें खड़ी करेंगे, कमीशन उतना अधिक मिलेगा। फिर थोक के भाव में होने वाली नियुक्तियां तो हॉट केक है ही। बस्तर यूनिवर्सिटी की नियुक्यिं में आप सभी ने देखा ही, बाकी यूनिवर्सिटी का हाल भी जुदा नहीं है। वो चाहे संघ के नाम पर कुलपति बनने वाले हो या फिर सूटकेस वाले, छत्तीसगढ़ में सभी कुलपतियों ने कारटेल बनाकर अपना रेट तय कर लिया है। असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 30 से 35, एसोसियेट प्रोफसर याने रीडर के लिए 50 और प्रोफेसर के लिए 75 लाख। अब आप कैलकुलेटर से जोड़ लीजिए कि 5 साल में अगर 50 नियुक्ति भी कर ली तो कई खोखा का इंतजाम हो गया। याने अपनी संतानों के साथ नाती-पोता के लिए भी व्यवस्था। संघ की दुहाई और गांधी जी को कोसने वाले एक कुलपति ने तो तबाही मचा दी है...डेली वेजेज की कर्मचारियों की पोस्टिंग भी गांधीजी के बिना नहीं करते।

संघ-कांग्रेस का कॉकटेल

कुलपतियों की नियुक्ति में अब कोई विचाराधारा नहीं रह गया है। संघ के हैं या कांग्रेस के, बिना सूटकेस कुछ नहीं होने वाला। यह बाती छिपी नहीं है कि पिछली कांग्रेस सरकार में एक संघ परिवार के प्रोफेसर ने कैसे कुलपति की कुर्सी जुगाड़ी। उनके लिए संघ वालों ने प्रयास किया तो कांग्रेस के लोगों ने भी लॉबिंग की। ये तो हुआ एप्रोच। मगर सिर्फ इससे काम नहीं चलने वाला...जमाना बदल गया है। एप्रोच तो पहुंच और बात आगे बढ़ाने के लिए है...सूटकेस मस्ट है। संघ-कांग्रेस के एप्रोच वाले प्रोफसर साब ने बाजार से ब्याज पर पैसा लिया था। प्राध्यापकों की नियुक्तियां कर अब वे पैसे लौटा रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि कांग्रेस की जगह भाजपा के कुछ असंतुष्ट नेता ही विपक्ष का रोल निभा रहे हैं?

2. छंटनी होने की अभी दूर-दूर तक कोई खबर नहीं, फिर एक मंत्री का बंगला सूनसान क्यों रहने लगा है?

रविवार, 8 जून 2025

Chhattisgarh Tarkash 2025: अफसरशाही का सेफ गेम

 तरकश, 8 जून 2025

संजय के. दीक्षित

अफसरशाही का सेफ गेम

अफसरशाही ने सेफ गेम खेलने के लिए दिमाग तो अच्छा दौड़ाया था मगर नम्बर रांग डायल हो गया। बात कर रहे हैं कि नया रायपुर और पुराने रायपुर के बीच सेड़ीखेरी के प्राइम लोकेशन में नेताओं, अफसरो और जजों की आवासीय योजना की। पिछली सरकार ने 2022 में इसके लिए 23 एकड़ जमीन आबंटित की थी। इसमें 134 प्लॉट काटे गए। इनमें से विधायकों और सांसदों को 49 प्लॉट मिले। तब तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की डबल बेंच ने सरकारी जमीन पर बड़ा फैसला दे दिया। तेलांगना के एक केस में नवंबर 2024 में 64 पेज के आदेश में डबल बेंच ने कहा कि किसी भी वर्ग विशेष को सरकारी जमीन रियायती दर पर नहीं दी जा सकती। अगर प्लॉट दे भी दिया गया हो तो उसे निरस्त कर पैसा वापिस किया जाए। सीजेआई के इस फैसले से अफसरशाही ने जोरदार आइडिया निकाला। प्लान हुआ, पहले जजों को प्लॉट अलॉट कर दिया जाए, फिर अफसरों का। ताकि, कोई कानूनी अड़चन न आए। इसके लिए बिलासपुर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से संपर्क किया गया। खुशामदी लहजे की नुमाइश हुई...सर, किन-किन जज साहबों को प्लॉट देना है, आपलोग ही फायनल कर उनके नाम और एड्रेस दे दीजिए, बाकी चिंता की कोई बात नहीं...हमलोग सब कर लेंगे। बताते हैं, रजिस्ट्रार जनरल से होते हुए मामला चीफ जस्टिस रमेश सिनहा तक पहुंचा। सीजे इसे सुनते ही भड़क गए। बोले, बिल्कुल नहीं...सुप्रीम कोर्ट जब इस पर रोक लगा चुकी है, तब जजों को सरकारी प्लॉट कैसे दिया जा सकता है। इसके बाद रजिस्ट्रार जनरल ने पत्र लिखकर बता दिया कि जजों को प्लॉट देना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगा, ऐसा कतई संभव नहीं है। इससे अफसरशाही सकपका गई। जजों को पहले प्लॉट देने की होशियारी में पूरे 85 प्लॉट अधर में लटक गए हैं। इसमें जजों के बाद ऑल इंडिया सर्विस के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों को प्लॉट दिया जाना था। मगर अब न उगलते बन रहा और न निगलते।

बड़ा खेल, बड़ी चूक

रजिस्ट्रार जनरल के पत्र को अफसरशाही ने चतुराई दिखाते हुए दबा दिया कि ज्यादा बवेला मचा तो फिर आगे से अधिकारियों को सरकारी प्लॉट मिलना मुश्किल हो जाएगा। मगर इस पत्र को दबाने का नुकसान यह हुआ कि रायपुर एयरपोर्ट के पास विधायकों की बनने वाली कालोनी के लिए रायपुर जिला प्रशासन ने बस्तियों को हटाने की नोटिस जारी कर दी। जाहिर है, जिला प्रशासन को अगर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के पत्र की जानकारी होती तो शायद ऐसा नहीं होता। क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश के बाद तो किसी वर्ग विशेष को प्लॉट दिया ही नहीं जा सकता। भले ही वो जनप्रतिनिधि हो, जज या अफसर। यहां तक कि सेड़ीखेरी में राज्य प्रशासनिक सेवा को प्लॉट मिला है, उस पर भी अब खतरे मंडराने लगे हैं। फिर विधायकों की कॉलोनी कैसे बन सकती है? जाहिर है, जो चीज बननी ही नहीं, उसके लिए सरकार की किरकिरी हो गई कि माननीयों के लिए गरीबों की बस्ती उजाड़ी जा रही है।

DGP के लिए आरटीआई

यूपीएससी ने डीजीपी के लिए दो नामों को पेनल राज्य सरकार को भेज दिया है। हालांकि, नाम चार आईपीएस अधिकारियों के गए थे। मगर आधे कट गए। इससे खफा होकर एक आईपीएस ने आरटीआई लगाकर यूपीएससी से जानकारी मांगी है कि किस आधार पर उनका नाम पेनल से काटा गया। बताते हैं, जिन दो आईपीएस अफसरो ंके खिलाफ केस थे, वे सभी क्लियर हो गए हैं। फिर, पेनल अगर तीन का भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि, नाम पर टिक तो मुख्यमंत्री को लगाना था। पुलिस महकमा हैरान है कि दो नाम आखिर कटे कैसे। डीपीसी में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन गए थे। अमिताभ का ऐसा स्वभाव नहीं कि वे किसी का नाम कटवाएं। अब, यूपीएससी में किसी ने कंप्लेन किया होगा तो बात दीगर है।

मंत्रालय में रिफार्म?

सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्रालय में अटैचमेंट समाप्त करने के लिए विभागों से तीन दिन में रिपोर्ट मांगी है। जीएडी को यह बात खटक रहा है कि 200 से अधिक अधिकारी, कर्मचारी मंत्रालय में लंबे समय से बिना बताए मंत्रालय में अटैच हैं। स्थिति यह हो गई है कि वहां बैठने की अब जगह नहीं पुर पा रही। जीएडी की शिकायत कुछ हद तक ठीक है...मगर प्रश्न यह भी है कि सचिवों को बाहर से अधिकारियों, कर्मचारियों को मंत्रालय लाने की जरूरत क्यों पड़ी? इस बात से इंकार नहीं कि 50 परसेंट लोग जोर-जुगाड़ लगाकर मंत्रालय में घुस आए होंगे, मगर 50 परसेंट तो काम के होंगे। जीएडी को सचिवों से पूछना चाहिए कि क्या मजबूरी थी कि उन्हें बाहर से कर्मचारियों को बुलाना पड़ा। पता ये भी करना चाहिए कि मंत्रालय के स्टॉफ कार्यकुशलता में कितने माहिर हैं, कितने अनुशासित भी। पावरफुल आईएएस उनका कुछ कर सकते हैं क्या? सुनिल कुमार जैसे अब तक के सबसे तेज-तर्रार चीफ सिकरेट्री नौकरशाहों को तो कस दिए थे मगर उससे नीचे देखने की कभी कोशिश नहीं की। वो तो गनीमत है कि भोपाल वाले अब नहीं के बराबर है, वरना दसेक साल पहले मंत्रालय में नौकरशाहों से ज्यादा नीचे वालों की तूती बोलती थी।

IAS, डिप्टी कलेक्टर और भृत्य बराबर

समानता का यह अधिकार छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में ही देखने को मिल सकता है। वहां आईएएस और डिप्टी कलेक्टर भी डिप्टी सिकरेट्री हैं तथा भृत्य कैडर वाले भी। दरअसल, मंत्रालय में हर पांच साल में प्रमोशन का प्रावधान है। सो, वहां प्यून में भर्ती होने वाले पांच साल में बाबू प्रमोट हो जाते हैं और फिर उसके बाद सेक्शन ऑफिसर, अंडर सिकरेट्री से होते हुए उप सचिव बन जाते हैं। वहीं, सीनियर डिप्टी कलेक्टर भी मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री बनते हैं तो आठ साल की सर्विस वाले आईएएस भी। 2017 बैच के आईएएस इस समय मंत्रालय में डिप्टी सिकरेट्री हैं। मंत्रालय के इस प्रमोशन सिस्टम से बाकी कर्मचारियों को ईर्ष्या हो सकती है।

2 बड़े रिफार्म

इस हफ्ते छत्तीसगढ़ में दो बड़े रिफार्म किए गए। पहला, कम संख्या वाले 10 हजार से अधिक स्कूलों को दूसरे स्कूलों में मर्ज कर दिया गया और 13 हजार अतिशेष शिक्षकों को शिक्षक विहीन स्कूलों में पोस्ट किया गया। हालांकि, अतिशेष के नाम पर बीईओ और डीईओ ने तबाही मचाते हुए कई खोखा का खेला कर डाला। फिर भी सुधार की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है...राज्य बनने के बाद कभी भी इतने बड़े स्तर पर युक्तियुक्तकरण नहीं किया गया। और न ही शिक्षक विहीन स्कूलों की सुध ली गई। जाहिर है, 211 स्कूलों में एक भी बच्चे नहीं थे, फिर भी बरसों से शिक्षक और स्कूल चल रहे थे। दूसरा रिफार्म है...आवास और पर्यावरण विभाग की किफायती जन आवास योजना। लोवर मीडिल और मीडिल क्लास को इस योजना से कम कीमत में सुव्यवस्थित कॉलोनियों में मकान मुहैया हो सकेगा। दावा है कि इससे छोटे मकानों की कीमत 30 परसेंट तक कम हो जाएगी। वहीं, रियल इस्टेट में इंवेस्टमेंट बढ़ेगा।

मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न

सीएम विष्णुदेव साय की दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात के साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। सोशल मीडिया में फिर अटकलों का दौर शुरू हो गया है। मगर इस बार विश्वास का संकट है। असल में, दो बार शपथ होते-होते मामला टांय-टांय फुस्स हो गया था। पहली बार दिसंबर 2024 में शपथ के लिए राज्यपाल का बस्तर दौरा निरस्त हो गया था। सो, इस बार मंत्रिमंडल विस्तार की खबर अगर सही भी होगी, तब भी राजभवन से जब तक अधिकृत जानकारी नहीं आएगी, कोई भरोसा नहीं करने वाला। यहां तक कि दावेदारों को भी यकीं नहीं होगा...बेचारे कई बार ठगे से रह गए।

माटीपुत्र की आखिरी लड़ाई

प्रदेश के सबसे सीनियर आईएफएस अधिकारी सुधीर अग्रवाल हक की आखिरी लड़ाई लड़ने सुप्रीम कोर्ट की देहरी पर पहुंच चुके हैं। हालांकि, हेड ऑफ फॉरेस्ट बनने के लिए उनके पास अब टाईम नहीं बचा है। दो-एक महीने में रिटायर हो जाएंगे, मगर उम्मीद पर दुनिया टिकी है तो फिर सुधीर पीछे क्यों रहते? असल में, दिसंबर 2023 में सरकार बदली तो सुधीर बेहद आशान्वित थे कि पिछली सरकार में बेहद पावरफुल रहे श्रीनिवास राव की जगह उन्हें कुर्सी मिल जाएगी। मगर ऐसा हुआ नहीं तो इसका ठीकरा सूटकेस और गांधीजी पर नहीं फोड़ना चाहिए। 80 हजार स्केल वाले सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पदों के लिए हथेली में रेखाएं भी होनी चाहिए। हथेली में भाग्य रेखा प्रबल हो सारी व्यवस्थाएं अपने आप हो जाती हैं।

प्रमोटी आईएएस पावरफुल!

ऐसा नहीं कह सकते कि प्रमोटी आईएएस अधिकारियों की पिछली सरकार में ही चलती थी। इस सरकार में भी कुछ अफसरों का रुतबा कायम है। आरआई प्रमोशन घोटाले में सरकार ने ईओडब्लू जांच का ऐलान किया था। मीडिया में खबर आई कि ईओडब्लू ने 40 या 45 बिंदुओं पर जवाब मांगा है। मगर उसके बाद कुछ नहीं हुआ। ये भी पता नहीं चल पा रहा कि एफआईआर वगैरह दर्ज भी हुआ है या नहीं। दरअसल, जमीन-जायदाद वाले विभाग में पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले अफसर ने उपर के न जाने के कितने प्रभावशाली अधिकारियों और मंत्रियों, नेताओं के लैंड मैनेजमेंट में हाथ बंटाया होगा। नई सरकार को इसकी जानकारी नहीं रही होगी, इसलिए केस ईओडब्लू को दे दिया। मगर सिस्टम के ऐसे उपयोगी लोगों के खिलाफ भला जांच कैसे हो सकती है?

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या ये सही है कि अच्छी पोस्टिंग के लिए काम के साथ 20 से 25 परसेंट लॉबिंग काम करती है?

2. मंत्रिमंडल की सर्जरी की खबर से कौन-कौन से मंत्री को रात में नींद की गोली लेनी पड़ रही है?

सोमवार, 2 जून 2025

छत्तीसगढ़ः ऐसे नेता, ऐसा तंत्र

 तरकश, 1 जून 2025

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ः ऐसे नेता, ऐसा तंत्र

बात 2005-06 के आसपास की होगी। तत्कालीन राज्य सरकार का सिकलसेल पर बड़ा जोर था। मैंने भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इस पर कई स्टोरी की। तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे कलाम के हाथों मुझे सिकलसेल पर शोध करने के लिए फेलोशिप मिला। तब डॉ0 कृष्णमूर्ति बांधी हेल्थ मिनिस्टर थे। उस दौरान राज्य सरकार ने फैसला किया था कि सिकलसेल का एक राष्ट्रीय स्तर का संस्थान बनाया जाएगा। अब खबर है कि वर्तमान सरकार ने इसके लिए प्रयास तेज किया है...बिल्डिंग का निर्माण प्रारंभ होने वाला है। याने घोषणा के बाद बिल्डिंग का काम शुरू करने में दो दशक निकल गए। सिकलसेल मूलतः ओबीसी और आदिवासियों में पाई जाने वाली बीमारी है। इससे सूबे में हर साल 10 हजार से अधिक मौतें होती हैं। सात फीसदी बच्चे छह-सात साल के भीतर काल के गाल में समा जाते हैं। और अगर बच गए तो 50 से 55 तक ही चल पाते हैं। सियासी दृष्टि से छत्तीसगढ़ ओबीसी और आदिवासी डोमिनेटिंग स्टेट रहा है। इन समुदायों से कैबिनेट में हमेशा पांच से सात मंत्री रहे हैं। पिछली कांग्रेस सरकार तो ओबीसी अवधारणा पर ही बनी थी। उसके बाद भी सिकलसेल संस्थान अभी जमीन से उपर नहीं उठ पाया तो समझ सकते हैं कि छत्तीसगढ़ के ओबीसी नेता क्या कर रहे और तंत्र कैसा काम कर रहा है। और जब ओबीसी नेताओं को अपनों के मरने की चिंता नहीं तो अधिकारियों का क्या? बहरहाल, इस बीरबल की खिचड़ी वाले सिकलसेल संस्थान से यह भी साफ हो गया है कि आम आदमी की जानमाल को लेकर छत्तीसगढ़ का सिस्टम कितना गंभीर है।

देवपुरूष के नाम पर महापाप

भाजपा में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी का दर्जा पितृ पुरूष से भी उपर है...पार्टी के लोग उन्हें प्रातः स्मरणीय मानते हैं। मगर पैसे के लिए लोग इतना नीचे गिर सकते हैं, यह इससे स्पष्ट होता है कि छत्तीसगढ़ के नगरीय निकायों में लगाई जाने वाली अटलजी की 183 प्रतिमाओं में भी पैसे खाने का बंदोबस्त कर लिया गया है। असल में, सभी निकायों में अटल चौक बनाने के लिए नगरीय प्रशासन विभाग ने 45 करोड़ रुपए स्वीकृत किया था। इसके लिए टेंडर हो गए हैं। मगर टेंडर से इतर प्रतिमा के लिए अनाधिकृत रूप से पांच फर्मों के नाम तय किए गए हैं। रायपुर से नगरीय निकायों के अधिकारियों और ठेकेदारों पर प्रेशर डाला जा रहा कि उन पांच लोगों से ही धातु की प्रतिमा खरीदी जाए। यह महज सुनी-सुनाई बात नहीं है। पद्यश्री नेल्सन समेत कई मूर्तिकारों ने नगरीय प्रशासन डायरेक्टर से इसकी लिखित शिकायत की है। अटलजी की प्रतिमा में कमीनशनखोरी...यह महापाप होगा। जिम्मेदार लोगों को सोचना चाहिए डायन भी एक घर छोड़कर चलती है...बीजेपी के लिए अटलजी तो देवपुरूष जैसे हैं।

20 हजार करोड़ का फटका!

सालों से एक परसेप्शन बना है कि सरकारें अधिकांश केस हार जाती है। मगर छत्तीसगढ़ में तो गजबे हो रहा है, जिस मामले का कोई सिर पैर नहीं, उस केस में भी हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट से सरकार को इसलिए झटका लग गया कि ढंग से न पक्ष रखा गया और न पेपर प्रस्तुत किया गया। मामला शिक्षकों के क्रमोन्नत वेतनमान का है। 2.10 लाख शिक्षकों में से एक महिला शिक्षक क्रमोन्नत वेतनमान के लिए कोर्ट पहुंच गई। महिला शिक्षिका के पति वकील हैं, उन्होंने केस लगा दिया। और फिर इस मामले में सरकार कोर्ट-दर-कोर्ट हारते चले गई। अब आलम यह है कि सभी शिक्षकों को अगर क्रमोन्नत वेतनमान का भुगतान करना पड़ा तो यह करीब 20 हजार करोड़ बैठेगा। याने स्कूल शिक्षा विभाग का चार साल का बजट एक झटके में निकल जाएगा। जाहिर है, 20 हजार करोड़ का फिगर सुन स्कूल शिक्षा विभाग के साथ वित्त विभाग के लोगों के हाथ-पांव फुल गए हैं। सरकार को कायदे से लीगल डिपार्टमेंट पर और इंवेस्ट की जरूरत है...आखिर, सरकारी कामकाज का ये भी एक महत्वपूर्ण पार्ट है।

आईएएस के दो पोस्ट

सामान्य प्रशासन विभाग ने एलॉयड सर्विस कोटे के आईएएस के खाली के हुए दो पदों के लिए आवेदन मंगाया है। अनुराग पाण्डेय और शारदा वर्मा के रिटायर होने के बाद ये दोनों पद खाली हुए हैं। इस समय इस कोटे वाले सिर्फ एक आईएएस गोपाल वर्मा कवर्धा के कलेक्टर हैं। बता दें, आईएएस बनने के लिए तीन रास्ते होते हैं। पहला यूपीएससी क्लियर करके। दूसरा पीएससी में डिप्टी कलेक्टर सलेक्ट होने के करीब 15 साल बाद प्रमोट होकर। और तीसरा रास्ता है अन्य विभागों से मेरिट के आधार पर सलेक्ट होकर। छत्तीसगढ़ में इसके लिए तीन पदों का कोटा हैं। इस कोटे से सबसे पहले आलोक अवस्थी आईएएस बने थे। इसके बाद अनुराग पाण्डेय, शारदा वर्मा और गोपाल वर्मा की लाटरी खुली। यह पहला मौका है कि इस समय एक साथ दो पद के लिए सलेक्शन होना है। इसमें आवेदन करने के लिए छह जून लास्ट डेट है। आमतौर पर सरकार जिसे चाहती है, उसी का सलेक्शन होता है। चीफ सिकरेट्री की अध्यक्षता में स्क्रीनिंग कमेटी नामों को पेनल बनाती है। फिर यूपीएससी में डीपीसी होती है, उसमें सीएस भी एक मेंबर होते हैं। यूपीएससी वाले भी जानते हैं कि एलॉयड सर्विस से आईएएस कैसे बना जाता है, याने सब जाना-समझा मामला होता है। जाहिर है, जिसका पौव्वा भारी होगा, वह आईएएस बन जाएगा। रमन सरकार के दौरान जनसंपर्क के एक अधिकारी का नाम पर लगभग तय हो गया था मगर संघ का पसंद कोई और था, इस चक्कर में किरदार बदल गया। देखना है अब इस बार किन दो अधिकारियों की किस्मत खुलती है।

सचिव स्तर पर ट्रांसफर

सुशासन तिहार के बाद छत्तीसगढ़ में मंत्रालय में कुछ बदलाव किया जाएगा। दरअसल, अंबलगन पी0 और अलरमेल मंगई सेंट्रल डेपुटेशन पर जा रहे। इसके अलावे विपिन मांझी और केएल चौहान का इस महीने रिटायरमेंट है। विपिन सूचना आयोग में सचिव हैं और चौहान बिलासपुर के अपर आयुक्त। वहीं, अंबलगन संस्कृति और पर्यटन विभाग के सचिव थे तो अलरमेल सिकरेट्री लेबर और पंजीयन के साथ लेबर आयुक्त थीं। इन विभागों में सरकार को नई पोस्टिंग करनी होगी। ऐसे में, मंत्रालय सचिव स्तर पर एक आदेश निकलना तय है।

सिकरेट्री की फौज

छत्तीसगढ़ में 2008 से लेकर 2018 तक एक ऐसा भी दौर था, जब सचिव स्तर पर अफसरों का बड़ा टोटा था। आलम यह था कि जूनियर अफसरों को बड़े-बड़े विभाग सौंपे जा रहे थे। मगर सचिवों की अब ऐसी फौज खड़ी हो गई है कि डायरेक्टर और एमडी के पदों पर सिकरेट्री लेवल के आईएएस अधिकारियों को बिठाए जा रहे हैं। जाहिर है, अब च्वाइस की कोई कमी नहीं है। इस समय चीफ सिकरेट्र्री अमिताभ जैन को मिलाकर पूरे 52 सिकरेट्री हैं। इनमें सेंट्रल डुपेटेशन वाले अफसर शामिल नहीं है...अंबलगन और अलरमेल भी नहीं। इसके अलावा जनवरी 2028 तक 2010, 11 और 12 बैच के 29 और आईएएस सिकरेट्री प्रमोट हो जाएंगे। सबसे बड़ा बैच है 2012। 2010 में सात, 2011 में 10 और 2012 में 12 आईएएस हैं। याने जनवरी 2028 में 2012 बैच भी सिकरेट्री बन जाएगा। जबकि, आरआर वालों में रिटायर होने वालों की संख्या दो-तीन से ज्यादा नहीं है। अमिताभ जैन अगले महीने रिटायर होंगे, उनके बाद रेणु पिल्ले 2027 और सुब्रत साहू जुलाई 2028 में। इस तरह से देखा जाए तो जनवरी 2028 में सचिवों की संख्या 75 से उपर पहुंच जाएंगी।

डीजीपी को बोनस नहीं

छत्तीसगढ़ में रिटायर डीजीपी अशोक जुनेजा पहले पुलिस प्रमुख रहे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन के तहत दो साल की पोस्टिंग के फेर में 11 महीने का बोनस मिल गया। दरअसल, डीजीपी का पूर्णकालिक आदेश निकलने में देरी होने की वजह से उन्हें यह फायदा हुआ। वे सितंबर 2021 में प्रभारी डीजीपी बन गए थे। और पूर्णकालिक का आदेश हुआ अगस्त 2022 में। पूर्णकालिक डीजीपी में दो साल का टेन्योर मिलता है। भले ही रिटायरमेंट में छह महीने बचा हो मगर पोस्टिंग डेट से दो साल का कार्यकाल रहता है। ये और बात की...भारत सरकार ने जुनेजा को छह महीने का एक्सटेंशन दे दिया। इसलिए वे फरवरी 2025 में रिटायर हुए। इस तरह उन्हें 11 प्लस छह याने 17 महीने का एक्स्ट्रा लाभ मिल गया। मगर इस समय यूपीएससी से पेनल में दो अफसरों के नाम आए हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा। क्योंकि, अगर अरुणदेव गौतम डीजीपी बनते हैं तो उनका करीब दो साल बाद जुलाई 2028 में रिटायरमेंट है। याने वैसे भी दो साल ही बचा है उनके कार्यकाल में। हिमांशु गुप्ता का भी जून 2029 में रिटायरमेंट है। बोनस टाईम का फायदा हिमांशु को भी नहीं होगा। हां अगर राज्य सरकार लेट कर दो महीने बाद पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश निकाले तो फिर गौतम को दो महीने का फायदा मिल जाएगा।

थैंक्स गॉड, जान बची

सुशासन तिहार का टेंशन तो सभी अधिकारियों को था मगर कलेक्टर, एसपी की जान ज्यादा सांसत में थी...न जाने क्या चूक हो जाए, और निबटा दिए जाएं। मुख्यमंत्री ने पहले ही दिन यह कहते हुए डरा दिया था कि कोई भी गड़बड़ी पाई गई तो सीधे कलेक्टर-एसपी सस्पेंड होंगे। मगर सब कुछ गुडी-गुडी निकल गया तो आज शाम इन अफसरों ने थैंक्स गॉड कहा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. यूपीएससी से पेनल आने के बाद पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश निकलने में विलंब की वजह क्या है?

2. क्या ये सही है कि सुशासन तिहार में पुअर पारफर्मेंस की वजह से कुछ कलेक्टरों को बदला जा सकता है?