तरकश, 16 नवंबर
संजय के. दीक्षित
नारी शक्ति और कलेक्टरों की परीक्षा
छत्तीसगढ़ सरकार ने खजाने का करीब 10 हजार करोड़ रुपए बिचैलिये और भ्रष्ट तंत्र की जेब में जाने के खिलाफ कमर कस लिया है। इसके लिए फूड सिकरेट्री रीना बाबा कंगाले और मार्कफेड एमडी किरण कौशल की जोड़ी इस बार मुस्तैद हैं। कलेक्टरों को भी बार-बार फरमान जा रहा है। चीफ सिकरेट्री विकास शील खुद सिकरेट्री फूड रह चुके हैं, वे लगातार माॅनटरिंग कर रहे। जाहिर है, धान खरीदी अगर अबकी 120 लाख मीट्रिक टन पर रुक गया तो भ्रष्टाचार पर बड़ी चोट होगी ही, आर्थिक मोर्चे पर इस सरकार की सबसे बड़ी कामयाबी होगी। क्योंकि, सरकारी खजाने की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। आज की तारीख में मार्कफेड पर 38 हजार करोड़ का लोन है और पिछले सीजन में ओवर परचेजिंग से 8 हजार करोड़ की चपत लग चुकी है। दरअसल, दिक्कत किसान और धान से नहीं, दिक्कत धान की रिसाइकिलिंग और राईस माफियाओं के खेल से है। छत्तीसगढ़ में धान खरीदी का ग्राफ इस तेजी से बढ़ रहा कि अच्छे-अच्छे कृषि वैज्ञानिक हैरान हैं। 2002-03 में मात्र 18 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई थी। 20 साल में यह नौ गुना बढ़ गई। जबकि, खेती का रकबा तेजी से कम हो रहा है। ये कहना भी कुतर्क होगा कि रेट बढ़ने से धान ज्यादा बोए जा रहे हैं। आखिर पहले भी सिर्फ धान बोए जाते थे...और कोई फसल लगाए नहीं जाते थे कि उसे बंद कर अब धान बोया जा रहा। जाहिर है, 2024-25 में सारे रिकार्ड तोड़ते हुए धान खरीदी 149 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गई। जबकि, जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में वास्तविक धान 100 से 110 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए। याने बिचैलियों और अधिकारियों की मिलीभगत से की जाने वाली रिसाइकिलिंग, पटवारियों की कृपा से कागजों में पैदावार लेना और दूसरे प्रदेशों से आने वाले अवैध धानों को रोक दिया जाए तो सीधे-सीधे 30 से 35 लाख मीट्रिक टन की फर्जी खरीदी रुक जाएगी। यह करीब 10 हजार करोड़ रुपए का होता है, जिसे राईस माफिया, राईस मिलर्स, अफसर और पाॅलिटिशियन हजम कर जाते हैं। निश्चित तौर पर फर्जी धान खरीदी रोकने में दोनों महिला अधिकारियों के साथ कलेक्टरों की परीक्षा होगी। जो कलेक्टर जितना ज्यादा सक्रिय होकर कार्रवाई करेगा, उस जिले में कम फर्जी खरीदी होगी।
नितिन डिप्टी सीएम!
छत्तीसगढ़ के प्रभारी नितिन नबीन बिहार के बांकीपुर सीट से रिकार्ड मतों से चुनाव जीत गए हैं। 50 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीतने वाले आठ नेताओं के क्लब में उनका भी नाम है। पटना जिले के इस सीट से वे लगातार पांचवी बार चुने गए हैं। उससे पहले उनके पिता नवीन किशोर सिनहा 1995 से विधायक थे। उनके निधन के बाद उपचुनाव में पार्टी ने 2006 में नितिन को टिकिट दिया और उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2020 के चुनाव में उन्होंने फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिनहा के बेटे को बड़े मतों के अंतर से पराजित किया था। बहरहाल, नितिन की लोकप्रियता बिहार में तो है ही, अपने राजनीतिक कौशल से शीर्ष नेतृत्व का ध्यान भी खींचा है। छत्तीसगढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान लोगों ने उनका काम देखा। सूबे का शायद ही कोई ब्लाॅक होगा, जहां वे नहीं गए। चुनाव का कंप्लीट मैदानी कमान उन्होंने अपने हाथ में ले ली थी, और पूरा छत्तीसगढ़ छान मारा। इसका उन्हें ईनाम भी मिला। ओम माथुर की जगह उन्हें प्रमोट कर सह प्रभारी से प्रभारी बनाया गया। पिछले साल नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई तो उसमें उन्हें कैबिनेट मंत्री का दायित्व मिला। और अब...बिहार में एनडीए की सुनामी के बाद उन्हें डिप्टी सीएम बनाने की अटकलें तेज हो गई है। फार्मूला यह है कि नीतीश मुख्यमंत्री बनेंगे तो जनरल और एससी से दो उप मुख्यमंत्री बन सकते हैं। सामान्य वर्ग में नितिन नबीन से बेहतर कोई नाम नहीं हो सकता, वहीं अनुसूचित जाति से लोक जनशक्ति पार्टी से कोई एक डिप्टी सीएम बनेगा। नितिन नबीन अगर बिहार के उप मुख्यमंत्री बने तो फिर उनके पास छत्तीसगढ़ के लिए टाईम नहीं बचेगा। ऐसे में, हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में किसी और नेता को प्रभारी नियुक्त किया जाए।
बांकीपुर में छत्तीसगढ़
चूकि नितिन नबीन छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं, सो स्वाभाविक तौर पर उनके प्रचार के लिए छत्तीसगढ़ से बड़ी संख्या में नेताओं, मंत्रियों, विधायकों की फौज बांकीपुर पहुंची थी। बेलतरा विधायक सुशांत शुक्ला 10 दिन तक लगातार वहां कैंप किए तो पार्टी के स्टेट प्रेसिडेंट किरण सिंहदेव, डिप्टी सीएमद्वय अरुण साव, विजय शर्मा, वित्त मंत्री ओपी चैधरी, विधायक गोमती साय, मोतीलाल साहू, राम गर्ग, राजीव अग्रवाल, राजा पाण्डेय, नीलू शर्मा समेत दो दर्जन से अधिक नेताओं ने वहां प्रचार किया। खासकर, कलेक्टर-टू-मंत्री के नाम से ओपी ने वहां खूब शमां बांधा।
पवन साय को अहम जिम्मेदारी
छत्तीसगढ़ बीजेपी के प्रदेश संगठन मंत्री पवन साय को पश्चिम बंगाल की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि, यह टेम्पोरेरी दायित्व है मगर सुनने में आ रहा...पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए उन्हें वहां की पूर्णकालिक जिम्मेदारी दी जा सकती है। पवन साय संघ के काफी कर्मठ चेहरा रहे हैं। इसीलिए उन्हें छत्तीसगढ़ बीजेपी का संगठन मंत्री बनाया गया था। उन्होंने अपना काम भी दिखाया। उधर, वेस्ट बंगाल के पिछले विधानसभा चुनाव में काफी पसीना बहाने के बाद बीजेपी सत्ता तक नहीं पहुंच पाई। किन्तु इस बार बीजेपी और संघ की कोर टीम दो साल पहले से काम प्रारंभ कर दिया है। आरएसएस के टाॅप फाइव में शामिल रामदत्त चक्रधर के पास इस समय पश्चिम बंगाल का प्रभार है। रामदत्त भी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। और अगर पवन साय गए तो वे छत्तीसगढ़ के दूसरे शख्सियत होंगे, जिन्हें पश्चिम बंगाल में अहम जिम्मेदारी मिलेगी।
ब्यूरोक्रेसी और वक्त
छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में एक वक्त वो भी था, जब मुख्यमंत्री ने एक जनवरी 2025 को मंत्रालय में मीटिंग लेकर अफसरों की टाईमिंग ठीक न होने को लेकर स्पष्ट रूप से इशारा किया था। उसके बाद कुछ हद तक मंत्रालय आने-जाने का टाईम सुधरा। लेकिन बायोमेट्रिक अटेंडेंस के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। अलबत्ता, सवाल उठाया गया...आईएएस लाईन लगाकर थंब इंप्रेशन कैसे लगाएगा। तत्पश्चात जीएडी ने मोबाइल में ऐप्प अपलोड करने का विकल्प दिया, उसमें मंत्रालय के भीतर आते ही अपने आप अटेंडेंस लग जाता। मगर इसके लिए भी कोई टस-से-मस नहीं हुआ। मगर अब एक दिसंबर से सचिवालय का एक नंबर गेट, जहां से अफसर प्रवेश करते हैं, वहां के लिए बायोमेट्रिक मंगा लिया गया है। दो-चार दिन में उसका ट्राॅयल प्रारंभ हो जाएगा। दरअसल, चीफ सिकरेट्री विकास शील ने ज्वाईन करते ही साफ कह दिया था कि दिल्ली की तरह मंत्रालय में भी बायोमेट्रिक लगाया जाए। दिल्ली में मुख्य सचिव के समकक्ष भारत सरकार के सचिव से लेकर सेक्शन आॅफिसर और बाबू तक थंब लगाते हैं, फिर भीतर जाते हैं। खैर, छत्तीसगढ़ के नौकरशाहों ने वक्त को भांप लिया है। वैसे भी ब्यूरोक्रेट वक्त को भांपने और उसके हिसाब से आस्था और निष्ठा बदलने में माहिर होते हैं।
अफसरशाही को संरक्षण
जाहिर सी बात है, सरकार पाॅलिसी और प्लान बनाती है और उसका क्रियान्वयन अफसरशाही करती है। यह भी सत्य है कि अफसरशाही तभी अपना सर्वस्व दांव पर लगाती है, जब उसे सत्ता प्रतिष्ठान से संरक्षण मिले। मध्यप्रदेश के दौर में अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह के दौर में ये देखा गया और छत्तीसगढ़ बनने के बाद अजीत जोगी तथा रमन सिंह के समय भी ऐसा हुआ। अफसरशाही में ऐसा नहीं कि सभी भ्रष्ट और निकम्मा हो। सभी कैडर में 10 से 15 परसेंट अफसर साफ-सुथरी छबि के होते हैं तो 25 से 30 परसेंट बैलेंस। यही अफसर किसी भी सरकार के बैक बोन्स होते हैं। 10 से 15 परसेंट वाले आक्रमक बैटिंग करते हैं और 25 से 30 परसेंट पिच पर टिके होते हैं। कई बार अच्छा करने के बावजूद मानवीय चूक हो जाती है। ऐसे में, उनका इंटेंशन अगर गलत नहीं हो तो सरकारों आंख मूंदना पड़ता है। हालांकि, एक कलेक्टर के मामले में राज्य सरकार ने भी ये किया है। मगर इसका वैसा मैसेज नहीं गया, जैसा कि होना चाहिए...ब्यूरोक्रेसी के फारवर्ड प्लेयर अभी भी उस तरह के अश्वस्त नहीं हैं, जैसा कि होना चाहिए। वरना, रिजल्ट कम-से-कम 30 परसेंट और ज्यादा दिखता। दरअसल, परसेप्शन बन गया है, कुछ हुआ तो कौन बचाएगा, इसलिए उतना ही खेलो, जिसमें विकेट बचा रहे। पिछली कांग्रेस सरकार में यही हुआ, जिसका उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। और अभी भी हालत बहुत ज्यादा नहीं बदला है। याद होगा, सरकार बनने के कुछ महीने बाद एक नेत्री के पति के अवैध रेत परिवहन पर शिकंजा कसने पर एक आईएएस एसडीएम लक्ष्मण तिवारी को सूरजपुर से हटाकर 900 किलोमीटर दूर सुकमा भेज दिया गया था। इससे आहत होकर वे अपना कैडर ट्रांसफर करा बिहार चले गए। इससे नौकरशाही अभी उबरी नहीं है। उपर से सोशल मीडिया पर सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोग लगातार हमलावर हैं। यहां तक कि सीएम सचिवालय को भी नहीं बख्शा जा रहा और सत्ता, संगठन में बैठे लोग मौन हैं। ऐसे में, कोई अफसर जोखिम लेकर कैसे काम करेगा? सवाल गंभीर है। सत्ता और संगठन को इसे नोटिस में लेना चाहिए।
प्रभारी मंत्री, सचिव का औचित्य
मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ में चार-पांच साल प्रभारी मंत्री और प्रभारी सचिवों का सिस्टम चला मगर उसके बाद अब यह नाम के लिए बच गया है। न किसी मंत्री को अपने प्रभार वाले जिले से मतलब होता, और न ही प्रभारी सचिवों को अपने जिले का जायजा से कोई वास्ता। मध्यप्रदेश के दौर में दो-तीन महीने में एक बार प्रभारी मंत्री अपने जिलों का दौरा कर लेते थे। दिग्विजय सिंह ने जिला सरकार बनाया था, उसमें प्रभारी मंत्रियों की मौजूदगी अनिवार्य होती थी। तब फ्लाइट भी नहीं थी। मंत्री अमरकंटक, महानदी या फिर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से रातभर का सफर कर छत्तीसगढ़ आते थे। और अब...? छत्तीसगढ़ में अनेक ऐसे जिले हैं, जहां कई-कई महीने से प्रभारी मंत्रियों ने झांकने की जरूरत नहीं समझी। मंत्री या तो रायपुर में रहते हैं या फिर सीधे अपने विधानसभा भागते हैं...मानो प्रदेश के मंत्री नहीं, अपने विधानसभा क्षेत्र के मंत्री हो गए हों। प्रभारी सचिवों का हाल तो और खराब है। पिछले दो दशक से हर सरकार और मुख्यमंत्री के तरफ से फरमान जारी होता है...प्रभारी सचिव अपने जिलों में रात्रि विश्राम करेंगे, मीटिंग लेंगे। मगर इसमें खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं होता। मुख्यमंत्री या किसी वीआईपी का दौरा हुआ तो सचिव की इच्छा हुई तो जाएंगे वरना वो भी नहीं।
प्रभारी सचिवों का जुगाड़
सरकार सचिवों की उपलब्धता की दृष्टि से प्रभारी सचिवों की नियुक्ति करती है मगर इसमें भी बड़ा जुगाड़ चलता है। अधिकांश सीनियर या जोर-जुगाड़ वाले आईएएस रायपुर के आसपास के जिले ले लेते हैं, ताकि रात रुकने की जरूरत ना पड़े...साल में घूमने-घामने का मन हुआ तो एकाध बार चक्कर लगाकर शाम तक रायपुर लौट जाएं। मगर प्रशासनिक रिफार्म के क्रम में राज्य सरकार प्रभारी सचिवों की लिस्ट बनाने में थोड़ी सख्त हुई है। इस बार जो लिस्ट जारी होगी, वह शायद जुगाड़ वाली न हो। सरकार चाहती है कि जनता से सीधे जुड़े विभागों के सचिवों को सरगुजा और बस्तर जैसे जिलों का दायित्व दिया जाए, ताकि आने-जाने के दौरान रास्ते में पड़ने वाले जिलों पर भी उनकी नजर रहे। चलिये, ये अच्छा प्रयास है।
मोदी ड्रेस
छत्तीसगढ़ के पाॅलिटिशियन के लिए खुशी की बात है कि मोदीजी का ड्रेस डिजाइन करने वाली टेक्सटाइल कंपनी जेड ब्लू छत्तीसगढ़ में इंवेस्ट करने के इच्छुक है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के गुजरात दौरे में कंपनी के प्रोप्राइटर ने उनसे मुलाकात की। चलिये, अच्छी बात है पीएम नरेंद्र मोदी के स्टाईल का कुर्ता, पायजामा और जैकेट अब छत्तीसगढ़ में बनेगा और यहां के नेताओं के लिए सुलभ होगा।
सीआईसी की ऐसी नियुक्ति
बिलासपुर हाई कोर्ट ने मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के खिलाफ लगी याचिका को खारिज कर इस रास्ते की बड़ी बाधा दूर कर दी है। याने किसी भी दिन अब सलेक्शन कमेटी की मीटिंग होगी और सीआईसी, आईसी की नियुक्ति हो जाएगी। बहरहाल, इस घटना से 2017 में हुए सीआईसी की नियुक्ति का प्रसंग याद आ गया। रिटायर आईएएस एमके राउत को सीआईसी बनाना था। सरकार ने फैसला ले लिया था मगर राज्यपाल बलरामदास टंडन इलाज के सिलसिले में दिल्ली में थे। उनसे नोटिफाई कराने फ्लाइट से एक मुलाजिम को दिल्ली भेजा गया और उनके हस्ताक्षर होने के अगले दिन रविवार का दिन था। कोई जोर-जुगाड़ या सिफारिश लगाए, उससे पहले सरकार ने 11 बजे नियुक्ति का आदेश निकाल दिया था। राज्यपाल दिल्ली से लौटे तो बात शपथ की आई। राजभवन ने कहा, इतना जल्दी कैसे संभव होगा। सबको सूचित करना होगा। इस दौरान राउत तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ0 रमन सिंह को थैंक्स बोलने पहुंचे। उन्होंने पूछा...ज्वाईन कर लिए। राउत बोले...सर अभी शपथ नहीं हुआ है। क्यों? राउत ने वास्तविकता बताई। इस पर रमन सिंह पास में खड़े ओएसडी से बोले, राजभवन फोन लगाओ। और अगले दिन का टाईम शपथ के लिए मुकर्रर हो गया। बहरहाल, सब कुछ ठीक रहा तो अमिताभ जैन अगले हफ्ते किसी दिन शपथ ग्रहण कर लेंगे।
अंत में दो सवाल आपसे
1. बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन अपाइंटमेंट की प्रक्रिया शुरू होने में सिस्टम कोई हड़बड़ी क्यों नहीं दिखा रहा?
2. क्या ये सही है कि महिला मित्र को तीन करोड़ का बंगला गिफ्ट करने वाले मंत्रीजी पार्टी के हिट लिस्ट में सबसे उपर हैं?
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