सोमवार, 10 जुलाई 2017

मुलाकात के मायने


संजय दीक्षित 
2 जुलाई 2017
मुलाकात के मायनेसीबीआई डायरेक्टर आलोक कुमार वर्मा 22 जून को रायपुर में थे। उन्होंने ब्यूरो के स्टेट आफिस का इनॉग्रेशन किया। वर्मा से मिलने दुर्ग के एसपी अमरेश मिश्रा रायपुर आए थे। सीबीआई डायरेक्टर ने अमरेश से अकेले में 25 तक चर्चा की। अब देश की र्शीर्ष जांच एजेंसी का मुखिया किसी एसपी से अकेले में लंबी मुलाकात करें तो इस पर भला बतकही कैसे नहीं होगी। ब्यूरोक्रेसी में अपने-अपने हिसाब से अटकलें लगाई जा रही हैं। कोई कह रहा है वर्मा ने अमरेश से किसी अहम विषय पर फीडबैक लिया है। तो कोई कह रहा है अमरेश ने सीबीआई में डेपुटेशन पर जाने के संबंध में बात की हैं। लेकिन, ये दोनों ही नहीं है। अमरेश दिल्ली जाना भी चाहें तो सरकार छोड़ेगी नहीं। सूबे में अमरेश जैसे गिने-चुने एसपी हैं। तभी तो दुर्ग भेजा गया। दरअसल, सीबीआई डायरेक्टर बिहार के मुजफ्फरपुर से हैं। और अमरेश बक्सर के। जाहिर है, एक इलाके के होने के कारण दोनों के पुराने संबंध हैं। चलिये, इस चक्कर में अमरेश का ओहरा और बढ़ गया।

डिजिटल वर्क, नो डंप

मंत्रालय में अब डिजिटल वर्क होगा। याने नो नोटशीट…..नो फाइल। सारा काम कंप्यूटर, लेपटॉप या मोबाइल पर। अंडर सिकरेट्री से डिजिटल नोटशीट आगे बढ़ेगी, फिर सिकरेट्री से होते हुए चीफ सिकरेट्री तक जाएगी। मंत्रालय में इसकी तैयारी शुरू हो गई है। जीएडी ने मंत्रालय के अफसरों को जल्द-से-जल्द हिन्दी टायपिंग सीखने कहा है। डिजिटल वर्किंग का फायदा यह होगा कि अफसरों के टेबल पर फाइलों का अंबार नहीं लगेगा। अफसर घर पर हों, गाड़ी में रहें या दौरे में। टाईम मिलते ही मोबाइल पर फाइलों को क्लियर कर देंगे। मंत्रालय दूर होने के चलते आने-जाने में कम-से-कम एक घंटा लगता है। इस दौरान मोबाइल पर बात करने या झपकी लेने के अलावा और कोई चारा नहीं होता। अब इसका बखूबी उपयोग किया जा सकेगा। और, नुकसान यह है कि ब्यूरोक्रेट्स कुछ फाइलों पर चर्चा लिखकर उसे लटका देते थे। ये ऐसी फाइलें होतीं थीं, जिनसे या तो कोई नाराजगी होती हैं या फिर हिस्सा कम दे रहा होगा, तो वह बढ़ा देगा। अब ऐसा नहीं हो पाएगा। कोई-न-कोई कमेंट लिखकर फाइल को डिस्पोज्ड करना होगा। अलबत्ता, मंत्रालय के अफसर इसका तोड़ निकालने में जुट गए हैं। क्योंकि, फाइलें अगर लटकाई नहीं गई तो फिर इतना परिश्रम करके ब्यूरोक्रेट्स बनने का मतलब क्या। बहरहाल…..सिस्टम इम्पू्रव करने की ये कोशिश अच्छी है।

नाश्ते में पोहा, तो सावधान!

नाश्ते में अगर आप पोहा लेते हैं तो जरा रुकिए…..! घर वाली को बोलिये, झकझक सफेद पोहा खरीदने से बचें। क्योंकि, पोहा की सफेदी के लिए लेड मिलाया जा रहा है। और, ये हम नहीं कर रहे हैं। बल्कि पोहा मिल वाले खुद स्वीकार किया है। दरअसल, भाटापारा से पोहा मिल मालिकों का एक प्रतिनिधिमंडल एक मंत्री से मिलने रायपुर आया था। इत्तेफाक से इस कॉलम का लेखक भी वहीं मौजूद था। पोहा वालों ने मंत्रीजी को बुके दिया। फिर, शरमाते हुए बोले, हमलोगों ने लेड मिलाना बंद कर दिया है। पोहा वालों को अपने मुंह से यह सफाई क्यों देनी पड़ी, ये भी जानना आवश्यक है। पिछले साल भाटापारा के पोहा मिलों के खिलाफ लेड मिलाने की शिकायत पर मंत्रीजी ने कुछ पोहा मिलों को बंद करा दिया था। लिहाजा, वे मंत्रीजी को भरोसा देने आए थे। लेकिन, उनके भरोसे पर आप कितना एतबार करेंगे। वे तो धंधा कर रहे हैं। धंधा का एक ही वसूल होता है। अत्यधिक मुनाफा। लेड के सेवन से कैंसर हो सकता है, इससे पोहा मिलों को क्या वास्ता?

नया तरीका

राज्य के संपदा विभाग ने बड़े-बड़ों से बंगला खाली कराने के लिए नायाब तरीका निकाला है। मकान खाली कर पहले संपदा विभाग से एनओसी ले आइये, इसके बाद ही पेंशन आदि का मामला आगे बढ़ेगा। यही नहीं, पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए भी अगर अप्लाई करना है तो पहले संपदा विभाग का अनापत्ति देना होगा। इसका फायदा यह हुआ है कि रिटायर होने वाले नौकरशाह बंगला खाली करने में देर नहीं कर रहे। हाल के दिनों में एनके असवाल एक अपवाद होंगे, जिन्हें रिटायर होने के बाद चार महीने के लिए सरकारी आवास में रहने का एक्सटेंशन मिला है। इससे पहिले, संपदा विभाग ने असवाल का बंगला अंबलगन पी दंपति को एलाट कर दिया था। लेकिन, अंबलगन को अब अक्टूबर तक वेट करना होगा।

समयदानी और अपराधी

बीजेपी का एक कार्यक्रम जोर-शोर से चल रहा है। समयदानी। समयदानी मतलब फील्ड में समय देने वाले। बताते हैं, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह का ये कंसेप्ट है। ताकि, पार्टी को और सुदृढ़ किया जा सकें। लेकिन, इसमें खबर यह है कि समयदानियों में कुछ गड़बड़ टाईप के लोगों का भी चयन हो गया है। बात करते हैं, सरगुजा इलाके का। सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट पीडीएफ में अफरातफरी करने वाले बीजेपी के नेता के खिलाफ पुलिस ने हाल ही में चार सौ बीसी का मुकदमा दर्ज किया है। एफआईआर भी आसानी से नहीं हुई है। कलेक्टर भीम सिंह ने निर्देश दिया था। महीने भर बाद किरण कौशल से कांप्लेन हुआ तो जाकर उन्होंने एसपी को बुलाकर पूछा तब जाकर अपराध दर्ज हो पाया। सत्ताधारी पार्टी को ऐसे लोगों की पहचान होनी चाहिए। वरना, जिस विधानसभा में उक्त नेताजी की ड्यूटी लगाई गई है, वहां वे किस बात की शिक्षा देंगे, समझा जा सकता है।

 रीना बाबा और जोगी

आईएएस रीना बाबा कंगाले की अध्यक्षता वाली हाईपावर कमेटी ने अजीत जोगी की जाति पर रिपोर्ट दे दी है। यह काम रीना बाबा ही कर सकती थी। लेडी आईएएस हैं। दलित भी। नागपुर से कनेक्शन भी। फिर भी जोगी कांग्रेस ने रीना पर अटैक किया है। रीना के अलावा कोई पुरूष आईएएएस जोगी के खिलाफ ऐतिहासिक रिपोर्ट देने का शायद हौसला नहीं जुटाता। एसीएस एनके असवाल को ट्राईबल से हटाकर जब उनसे 20 बैच जूनियर रीना को सिकरेट्री बनाया गया था, तो अंदेशा हो गया था कि कोई बात है।

मारवाही पर चर्चा

अजीत जोगी की जाति वाली रिपोर्ट अभी सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुई है। रिपोर्ट को स्टे करने के लिए जोगी शीर्ष अदालत में फरियाद करेंगे। सुको के फैसले के बाद ही इस पर अंतिम तौर से कुछ कहा जा सकेगा। मगर अभी से मारवाही उपचुनाव पर अटकलें शुरू हो गई हैं। एक राजनीतिक पार्टी ने तो कंडिडेट पर बात शुरू कर दी है। हालांकि, अभी इसे  उति उत्साह कहना चाहिए। तस्वीर तो सुको के रुख पर साफ होगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. जोगी की जाति वाली रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देने में पीसीसी चीफ भूपेश बघेल ने देर क्यों लगाई?
2. पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर का कांफिडेंस लेवल बढ़ता जा रहा है, इसकी वजह क्या है?

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