सोमवार, 10 जुलाई 2017

रेरा का पेड़ा


संजय दीक्षित
9 जुलाई
रेरा का पेड़ारेरा बोले तो रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी। बिल्डरों को कसने के लिए भारत सरकार ने इस एक्ट को बनाया है। छत्तीसगढ़ में भी एक अगस्त से इसकी फंक्शनिंग चालू हो जाएगी। लिहाजा, जुलाई अंत तक चेयरमैन और मेम्बर्स की पोस्टिंग करनी होगी। सरकार ने इसके लिए तीन सदस्यीय कमेटी बना दी है। हाईकोर्ट के सीजे के नामनी के रूप में जस्टिस प्रितिंकर दिवाकर, पीएस आवास और पर्यावरण अमन सिंह और सिकरेट्री लॉ आरएस शर्मा इसके सदस्य बनाए गए हैं। चेयरमैन के लिए कम-से-कम प्रिंसिपल सिकरेट्री से रिटायर हुए अफसर पात्र होंगे। इस पोस्ट या इसके उपर से रिटायर होने वाले छत्तीसगढ़ में तीन आईएएस हैं। डीएस मिश्रा, आरएस विश्वकर्मा और एनके असवाल। विश्वकर्मा चूकि पीएसी चेयरमैन रह चुके हैं, इसलिए कोई और पोस्ट अब होल्ड नहीं कर सकते। डीएस को पहले सरकार ने कुछ नहीं दिया तो रेरा जैसी पोस्टिंग में संदेह है। मई में रिटायर होने के बाद असवाल ने जरूर अपने बंगले का एक्सटेंशन चार महीने के लिए करा लिया है। आवदेन भी अभी दो ही आए हैं। डीएस और असवाल का। इन दोनों में से किसी का नहीं हुआ तो सरकार या तो बाहर से किसी को लाएगी या फिर हो सकता है, कोई आला नौकरशाह इस पोस्ट के लिए वीआरएस ले लें। बहरहाल, जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता, रेरा का कौन खाएगा पेड़ा….अटकलें गर्म रहेंगी।

 रेरा इज अल्टीमेट

पोस्ट रिटायरमेंट वाले राज्य में जितने पद हैं, उनमें सर्वाधिक मलाईदार रेरा होगा। बिल्डर्स ही नहीं, बल्कि हाउसिंग बोर्ड, एनआरडीए, आरडीए जैसी सरकारी हाउसिंग संस्थाएं भी इसके अंतगर्त आएंगी। रेरा को बिल्डरों को अधिकतम तीन साल के लिए जेल भेजने का पावर होगा, वहीं खामियां मिलने पर प्रोजेक्ट का 10 फीसदी जुर्माना भी कर सकता है। याने 50 करोड़ के प्रोजेक्ट हैं, तो सीधे पांच करोड़। ऐसे में पांचों उंगलियां घी में रहेंगी। रुतबे का तो पूछिए मत! बड़े लेवल में पोस्ट रिटायरमेंट वाले अभी चार पोस्ट हैं। बिजली नियामक आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग, सूचना आयोग और पीएससी। पीएससी में एज 62 साल है, इसलिए ब्यूरोक्रेट्स उधर देखते नहीं। सूचना आयोग में आरटीआई वालों की गाली खाने के अलावा कोई काम नहीं है। राज्य निर्वाचन में कुछ धरा नहीं है। बिजली नियामक में साल में एक बार रेट तय करते समय पूछपरख होती है, उसके बाद वहां भी वही हाल है। प्रायवेट पावर कंपनियों की हालत खराब होने के बाद इस आयोग की भी हालत खराब ही समझिए। ऐसे में, रेरा इज अल्टीमेट।

सरकार को बद्-दुआएं

सरकार ने एक झटके में बैरियर और चेक पोस्ट बंद कर दिए। जरा भी खयाल नहीं किया, उससे राज्य के कितने लोगों की मौज कट रही थीं। बैरियरों से सरकार को हर महीने 85 से 90 करोड़ का रेवन्यू आता था। और करीब 45 से 50 करोड़ उपर से। एक नंबर वाले 85-90 करोड़ खजाने में चले जाते थे। और, उपर वाले…..बोरियों में भरकर लाए जाते थे। फिर, चार आदमी की ड्यूटी थी….तीन दिन बैठकर लिफाफे और थैले में पैक करों….इसके बाद लिस्टेड लोगों तक पहुंचाना। ट्रांसपोर्ट से उपकृत होने वालों में रसूखदार लोगों के अलावा पुलिस मुख्यालय, मंत्रालय के संबंधित आला अधिकारी, कलेक्टर, एसपी, आईजी, एडीएम, सीएसपी, पत्रकार, छुटभैया नेता शामिल थे। पांच तारीख तक ये लिफाफे घर पहुंच जाते थे, सो लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था। कुछ लोगों का घर का खर्चा इसी से चलता था….शायद यही वजह थी कि ट्रांसपोर्ट की लिस्ट में शामिल करने के लिए बड़े लेवल पर जैक लगाए जाते थे। पता नहीं, सरकार के रणनीतिकारों को क्या हो गया है। चुनाव के समय लिफाफों का वजन बढ़ाना था तो तीन दशक से चले आ रहे सिस्टम को यकबयक बंद कर दिया। जिनके लिफाफे बंद होंगे, वो सरकार को आखिर बद्-दुआएं ही तो देंगे।

 एसपी की लिस्ट

डीएफओ की लंबी लिस्ट के बाद अब एसपी की बारी है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली और राष्ट्रपति के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के छत्तीसगढ़ दौरे के बाद संकेत मिले हैं, एसपी की लिस्ट निकल जाएगी। कलेक्टर और डीएफओ की तरह एसपी की लिस्ट बड़ी नहीं होगी। एसपी की लिस्ट में कुछ अड़चनें थीं। एक कु-ख्यात एसपी ने बड़ा जैक लगा दिया था। और दूसरा, बीजापुर एसपी केएल ध्रुव और दंतेवाड़ा एसपी कमललोचन कश्यप के ढाई साल से अधिक हो गए हैं। सरकार उन्हें चेंज करना चाह रही है। लेकिन, बस्तर आईजी विवेकानंद ने इन दोनों के लिए सरकार से आग्रह किया है। दरअसल, विवेकानंद के ज्वाईन करने से पहिले ही सुकमा, बस्तर, कोंडागांव और नारायणपुर के एसपी बदल गए थे। दो ही एसपी पुराने हैं। वो भी हट गए तो आईजी के लिए स्वाभाविक रूप से दिक्कतें तो होगी ही।

 डिप्टी कलेक्टर्स भी

डिप्टी कलेक्टरों के लिस्ट भी लगभग तैयार है। सीएम से सिर्फ अंतिम चर्चा भर बाकी है। समझा जाता है, अगले हफ्ते डिप्टी कलेक्टरों के आदेश भी निकल जाएंगे। इनमें ज्यादतर वे होंगे, जिनका दो साल से अधिक हो गया है या चुनाव के लिए आचार संहिता प्रभावशील होने तक दो साल हो जाएगा।

आईपीएस के लिए बस्तर

अफसरों के लिए बस्तर वैसे ही स्वर्ग माना जाता है। शराब का सरकारीकरण और ट्रांसपोर्ट बैरियर बंद होने के बाद खास तौर से एसपी के लिए मैदानी जिले में अब कुछ बच नहीं गया है। एसपी जब तक हाथ-पांव नहीं चलाए, कुछ नहीं मिलने वाला। बस्तर में नक्सल के अलावा नेतागिरी वाला कोई प्रेशर नहीं है। दूसरा, गृह विभाग ने एसएस मनी भी बढ़ाकर हर महीने पांच-पांच लाख रुपए कर दिया है। बस्तर में कागजों में ढेरों काम होते हैं, वह अलग है। सो, शाही सुख-सुविधाओं में कोई कमी नहीं है। एसपी के बंगले के इंटिरियर के लिए नागपुर और मुंबई से आदमी बुलाए जा रहे हैं। चलिए, ठीक है। बस्तर में पोस्टिंग का चार्म बढ़े….यह अच्छी बात है।

नो कमेंट्स

बात बस्तर की हो तो सुकमा डीएफओ राजेश चंदेले का नाम जेहन में बरबस आ जाता है। चंदेले ने बंगले में स्वीमिंग पुल बनाकर सुर्खियां बटोरी थी। आय से अधिक संपति के मामले में चंदेले के खिलाफ राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग ने भारत सरकार से चालान पेश करने की अनुमति मांगी है। इसके लिए रिमाइंडर भी भेजे जा रहे हैं। इस बीच सरकार ने कल उन्हें धमतरी जैसे समृद्ध डिविजन का डीएफओ बना दिया है…..तो फिर नो कमेंट्स।

रिटायर्स की भीड़

पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग के लिए नौकरशाहों की भीड़ बढ़ती जा रही है। पिछले साल मार्च में दिनेश श्रीवास्तव रिटायर हुए थे। इसके बाद डीएस मिश्रा, ठाकुर राम सिंह, बीएल तिवारी, राधाकृष्णन, एसएल रात्रे, एनके असवाल। असवाल तो पिछले महीने ही सेवामुक्त हुए हैं। बहरहाल, इनमें से सिर्फ ठाकुर राम सिंह किस्मती निकले। सरकार ने उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद नवाज दिया। बाकि, बाट जोह रहे हैं। सितंबर में सिकरेट्री इरीगेशन गणेश शंकर मिश्रा भी रिटायर होंगे। आईपीएस में राजीव श्रीवास्तव और आईएफएस में बीके सिनहा भी क्यूं में हैं। हालांकि, पोस्ट तो कई खाली है। लेकिन, सरकार मुठ्ठी बांधकर रखी है। मुख्य सूचना आयुक्त का पोस्ट को खाली हुए करीब डेढ़ साल हो गए हैं। मानवाधिकार आयोग में भी वैकेंसी है। सूचना आयुक्त का भी एक पद खाली होने वाला है। पुलिस जवाबदेह प्राधिकरण में भी पोस्ट वैकेंट हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. ईओडब्लू के खिलाफ मोर्चा खोलने का इरीगेशन डिपार्टमेंट ने दुःसाहस क्यों किया?
2. अजीत जोगी की जाति पर फैसले को लोग अमित शाह के दौरे से जोड़कर क्यों देख रहे हैं?

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