शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

सिंह का खौफ

3 फरवरी
87 बैच के आईपीएस बीके सिंह 17 साल बाद चार फरवरी को छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। वे 2002 में सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली गए, उसके बाद नहीं लौटे। ये वही बीके हैं, जो पिछले दो साल से एक्स डीजीपी एएन उपध्याय को परेशान करते रहे। आए दिन मीडिया में ये खबर आ जाती थी…बीके लौट रहे हैं…डीजीपी बनेंगे। हालांकि, बीके के पास ज्यादा वक्त नहीं है। रिटायरमेंट में बस 11 महीने बचे हैं। इसके बाद भी लोग उनसे खतरे में नही रहेंगे, एकदम से ऐसा नहीं कहा जा सकता। वह इसलिए क्योंकि, बीके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के बेहद क्लोज माने जाते हैं। तब के विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी का जब विंध्य इलाके में जलजला था, तब दिग्विजय ने बीके को रीवा का डीआईजी बनाकर भेजा था। पुराने लोग इसके मायने समझ सकते हैं। छत्तीसगढ़ में भी जब अजीत जोगी की सरकार बनी तो फर्स्ट खुफिया चीफ वे ही बने थे। बाद में जोगी को जब पता चला तो मामला गड़बड़ाया था। दिग्विजय सीएम भूपेश बघेल के राजनीतिक गुरू हैं। ऐसे में, भला छत्तीसगढ़ के सीनियर आईपीएस अफसरों में खौफ कैसे नहीं रहेगा। दिमाग में बार-बार यही कौंध रहा….पहले भी सिंह का खौफ और अब भी…।

विक्रम और अमन

छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनने के बाद लोगों के मन में बरबस ये सवाल उठ रहे हैं कि सीएम भूपेश बघेल के विक्रम और अमन कौन होंगे। कुछ लोग उनके ओएसडी प्रवीण शुक्ला को विक्रम मान लिए थे। इसके बाद अमन की तलाश हो रही थी…सीएम के ईर्द-गिर्द रहने वालों में अमन का अक्स ढूंढा जा रहा था। लेकिन, प्रवीण शुक्ला का विकेट महीने भर में ही उड़ गया। अब जब विक्रम ही नहीं रहे तो अमन कहां से आएंगे। रही बात अमन की, तो अमन इतना जल्दी बनते नहीं। याद होगा, अमन को अमन बनने में पांच बरस लग गए थे। रमन सिंह की दूसरी पारी में अमन पावरफुल होकर उभरे थे। अलबत्ता, बहुत कुछ सीएम पर डिपेंड करेगा….वे किसी को अमन बनाना चाहेंगे क्या। वैसे भी, सीएम कई बार कह चुके हैं, वे अफसरों के जरिये सरकार चलाना नहीं चाहेंगे।

न राम मिले, न रहीम

विधानसभा चुनाव में हार से दुखी जोगी कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने कांग्रेस ज्वाईन करने की पूरी तैयारी कर ली थी। राहुल गांधी की सभा में उनका कांग्रेस प्रवेश होने वाला था। इसलिए, नए जैकेट भी खरीद लिए थे। इस बीच सूबे के एक बड़े नेता ने वीटो लगा दिया…कुछ दिन पहले कांग्रेस के खिलाफ बात करने वाले नेताओं को अगर पार्टी में शामिल किया गया तो लोकसभा चुनाव में अच्छा मैसेज नहीं जाएगा। इसके बाद कांग्रेस प्रवेश का मामला गड़बड़ा गया। उधर, जोगी कांग्रेस को इसकी भनक लग गई। पार्टी ने उठाकर सभी को निलंबित कर दिया। अब न वे जोगी कांग्रेस के रहे और न कांग्रेस के।

जिसका झंडा, उसके अफसर

अंतागढ़ एसआईटी के प्रभारी के तौर पर ही सही, आईपीएस जीपी सिंह की वापसी हो गई। दुर्ग रेंज आईजी से हटने के बाद उन्हें कोई विभाग नहीं दिया गया था। जीपी की वापसी से उन अफसरों में उम्मीद जगी है, जो नई सरकार के शपथ लेने के बाद बाद हांसिये पर हैं या कम महत्व के विभाग में बिठा दिए गए हैं। वैसे भी, कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो जिनका झंडा, उनके अफसर होते हैं। 2003 में लोगों ने आखिर इसे देखा ही। जिन पर जोगी का लेवल लगा था, उनकी भी छह महीने बाद अच्छी पोस्टिंग मिली और रमन सरकार में भी वे काम करके दिखाए। छत्तीसगढ़ में वैसे भी काम करने वाले अफसरों की बेहद कमी है। लिहाजा, रिजल्ट देने वाले अफसरों की हमेशा पूछ बनी रहेगी।

महिला सिकरेट्री का दर्द

पुरस्कारों को लेकर मंत्रालय की एक महिला सिकरेट्री का दर्द आखिर छलक आया। आईएएस के व्हाट्सएप ग्रुप में उन्होंने लिखा, तीन साल में हमने विभाग के लिए क्या नहीं किया। फिर भी कोई रिवार्ड नहीं। इसके बाद तो ग्रुप में सहानुभूति जताने वालों की तांता लग गई। आईएएस अफसरों ने लिखा है, हमलोग आपके काम को एप्रीसियेट करते हैं।

मनोज के बदले रीचा

आईएएस मनोज पिंगुआ को दिल्ली डेपुटेशन से बुलाने के लिए भूपेश सरकार ने केंद्र को लेटर लिख दिया है। डीओपीटी से किसी भी दिन मनोज को रिलीव करने का आर्डर निकल सकता है। इधर, रीचा शर्मा क पोस्टिंग भी भारत सरकार में हो गई है। पोस्टिंग के बाद अगर वे वहां नहीं गई तो नियमानुसार वे सेंट्रल डेपुटेशन से पांच साल के लिए डिबार हो जाएंगी। निधि छिब्बर एक बार डिबार हो चुकी हैं। राज्य शासन ने एनओसी देने के बाद उन्हें रिलीव नहीं किया था। रीचा को यहां से कब रिलीव किया जाएगा, कोई सुगबुगाहट नहीं है। समझा जाता है, मनोज के आने के बाद ही रीचा को सरकार रिलीव करें। मनोज और रीचा, दोनों प्रमुख सचिव रैंक के आईएएस हैं। रीचा ने फूड में अपना काम भी बखूबी किया। जब उन्हें सिकरेट्री फूड बनाया गया था, विभाग की हालत बडी दयनीय हो गई थी। नान घोटाला भी उसके कुछ समय पहले ही सामने आया था। सरकार में ताकतवर राईस लॉबी से भी उन्हें लोहा लेना था। मार्कफेड में शार्टेज के नाम पर हर साल करोड़ों रुपए अंदर किए जा रहे थे। ऐसे विषम हालात में महिला अफसर ने गजब का हौसला दिखाकर फूड को पटरी पर ले आई।

जांच के पीछे

नान घोटाले की एसआइटी और ईडी की जांच के पीछे क्या है, इस संवेदनशील मामले में अभी कुछ कहना जल्दीबाजी होगी। लेकिन, यह तो साफ है कि अगर दोनों ने ढंग से जांच कर दी तो बड़े-बड़ों को आफत आ जाएगी। कुछ आईएएस समेत मंत्रालय के कई लोग भी इसके लपेटे में आएंगे। एक आईएफएस तक भी जांच की लपटें पहुंच सकती है। क्योंकि, एसआइटी 2014 की बजाए 2011 से जांच शुरू कर दी है। आईएफएस को नान घोटाले का मास्टरमाइंड माना जाता है।

कलेक्टरों का नम्बर

नई सरकार बनने के बाद पहली सूची में छह कलेक्टरों को बदला गया था। उस लिस्ट में मंत्रालय एवं एचओडी लेवल में बड़े फेरबदल किए गए थे। अभी कलेक्टरों की जो लिस्ट निकलने वाली है, उसमें भी बड़ी उलटफेर के संकेत मिल रहे हैं। भूपेश सरकार वैसे भी कलेक्टरों के पारफारमेंस से बहुत खुश नहीं है। सरकार की नोटिस में ये बात है कि बीजेपी को 15 सीटें मिली, उसमें कलेक्टरों की भी भूमिका थी। कलेक्टर अगर बढ़ियां काम किए होते तो ये नौबत नहीं आती। अधिकांश कलेक्टर आंकड़ों की बाजीगरी दिखाकर सरकार से अपना नम्बर बढ़वा लेते थे। इसीलिए, कलेक्टरों की लिस्ट बनाने में इसका ध्यान रखा जा रहा है। सीएम दो दिन राज्य से बाहर हैं। समझा जाता है, उनके लौटने के बाद सोमवार या उसके एक-दो दिन में कलेक्टरों की लिस्ट निकल जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नान घोटाले के एसआइटी जांच के बाद ईडी से जांच के क्या मायने हैं?
2. अंतागढ़ टेप कांड के एसआइटी प्रभारी से रायपुर आईजी आनंद छाबड़ा को एकाएक क्यों हटा दिया गया?

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