शनिवार, 21 सितंबर 2019

आईएएस का अंधविश्वास!

22 सितंबर 2019
देश की सबसे प्रतिष्ठित सर्विस आईएएस बनने के लिए कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके बाद भी आईएएस बने कुछ लोग बौरा जाते हैं। पहले एक अजयपाल सिंह थे, जिन्होंने बृजमोहन अग्रवाल जैसे मंत्री के खिलाफ प्रेस कांफें्रस ले लिया था। अजयपाल आईएएस बनकर क्या किए ये खुद उन्हें भी नहीं मालूम होगा। भारत सरकार ने पिछले साल उन्हें फोर्सली रिटायर कर दिया। छत्तीसगढ़ में इसी तरह के एक आयटम और हैं, जो ब्यूरोक्रेसी में चर्चा के विषय बने हुए हैं। युवा आईएएस जिस जिले में जाते हैं, सरकारी आवास में जितने कमरे होते हैं, सबसे पहिले उसमें बेड लगवाते हैं। कामख्या के किसी तांत्रिक ने उन्हें बता दिया है कि रोज कमरे बदलकर सोओगे तो तुम्हारा भला होगा….अच्छी पोस्टिंग मिलेगी। बंगले के नौकर-चाकर भी कई बार चक्कर में पड़ जाते हैं कि साब आज किस कमरे में सोए हैं। आईएएस पर कई बार सनक सवार होता है तो एक जिले से दूसरे जिले में चाय पीने चले जाते हैं। अफसर से ड्राईवर भी परेशान हैं। कई बार आधी रात को उन्हें आउटिंग सूझ जाती है। फिर क्या, ड्राईवर बेचारा आंख मिसते हुए पोर्च से गाड़ी निकालता है। आईएएस एसोसियेशन को इसे भी देखना चाहिए। बिरादरी का एक अफसर ऑफट्रेक हो गया है। इलाज की जरूरत हो तो वह भी किया जाए। क्योंकि, जब छत्तीसगढ़ियां आईएएस को ठीक-ठाक पोस्टिंग मिल रही हो, उस दौर में एक अफसर भारी डिप्रेशन का शिकार हो गया है।

मंत्रीजी और दो पंकज 

वन विभाग में पंकज के नाम के दो आईएफएस हैं। एक पंकज राजपूत और दूसरा पंकज कमल। पंकज राजपूत सरगुजा का डीएफओ बनने के लिए सूबे के एक मंत्रीजी से जैक लगवाए थे। मगर मंत्रीजी से बोलने में चूक हो गई….पंकज राजपूत की जगह वे सरकार को पंकज कमल बोल बैठे। सरकार ने भी अपने मंत्री की इच्छा पूरी करने में देर नहीं लगाई। 19 सितंबर को पंकज कमल का आदेश निकल गया। आदेश में पंकज कमल का नाम देखकर लोग आवाक थे….पंकज राजपूत भी परेशान….सब मेहनत बेकार गया। 2016 बैच के पंकज कमल को भी नहीं पता था कि पहली बार में उन्हें सरगुजा जैसा बड़ा डिविजन मिल जाएगा। उनका तो रायपुर से वन विकास निगम में बिलासपुर ट्रांसफर हुआ था। अभी वहां ज्वाईन भी नहीं किए थे कि डीएफओ बनाने का आदेश निकल गया। ज्वाईन करने से पहिले जब वे वन मुख्यालय में अफसरों से मिलने पहुंचे तो लोगों ने तंज कसा….क्यों मियां मंत्री से जैक….? पंकज कमल को काटो तो खून नहीं! वे मंत्री को जानते भी नहीं। लेकिन, लेबल लगने से घबरा रहे थे। हालांकि, अंदर की बात यह है कि मंत्रीजी ने गलत नाम लिया इसलिए आदेश निकल गया। अगर वे पंकज राजपूत बोले होते तो कतई पोस्टिंग नहीं होती। क्योंकि, पंकज राजनांदगांव में डीएफओ रह चुके हैं। राजनांदगांव में डीएफओ रहने का मतलब आप समझ सकते हैं। पिछली सरकार का लेवल।

हफ्ते भर में ट्रांसफर

किस अफसर की कितने दिन तक कुर्सी सुरक्षित है, छत्तीसगढ़ में इसे कोई नहीं बता सकता। सरगुजा डीएफओ इसकी बानगी हैं। आईएफएस पीआर अरबिंद को हफ्ते भर पहिले ही डीएफओ बनाकर सरगुजा भेजा गया था। अंबिकापुर में उनका अभी स्वागत-सत्कार का दौर भी पूरा नहीं हुआ था कि उनकी कुर्सी खिसक गई। पंकज कमल को सरगुजा भेजने के लिए अरबिंद को कोरिया भेज दिया गया। और कोरिया के माटी पुत्र आईएफएस मनीष कश्यप को वन मुख्यालय बुला लिया गया। याने दो पंकज के फेर में एक छत्तीसगढ़ियां अफसर की डीएफओगिरी चली गई।

मंत्रियों की भूल

सूबे के कुछ मंत्रियों को लक्ष्मण रेखा का ध्यान नहीं है। वे कलेक्टर, एसपी से उलझ जा रहे। जबकि, सबको पता है कि कलेक्टर, एसपी मंत्री के अधीन नहीं, वे जिले में सरकार के प्रतिनिधि होते हैं और सीधे चीफ मिनिस्टर के बिहाफ में काम करते हैं। और यही सिस्टम भी है। कई बार अपनी पार्टी के नेताओ को टाईट करने के लिए सरकार टाईट कलेक्टर, एसपी को भेज देती है। अर्जुन सिंह से लेकर दिग्विजय सिंह, अजीत जोगी और रमन सिंह भी यह ट्रिक अपनाते रहे हैं। दो साल पहले एक कलेक्टर सीनियर मंत्री से भिड़ गए थे। सरकार ने कलेक्टर का प्रमोशन करके और बड़े जिले में भेज दिया था। मध्यप्रदेश के समय बिलासपुर के कुछ नेताओं को ठीक करने के लिए दिग्विजय सिंह ने कड़क आईएएस शैलेंद्र सिंह को कलेक्टर और विजय यादव को एसपी बनाकर भेज दिया था। शैलेंद्र सिंह ने मजिस्ट्रेटियल पावर का इस्तेमाल कर बिलासपुर में अपनी जबर्दस्त हनक कायम की। उन्होंने कड़े एक्शन लेते हुए कई कांग्रेस नेताओ को भी जेल भेजा था। छत्तीसगढ़ में भी कुछ मंत्री समझ रहे हैं कि उनके जिले में पोस्टेड कलेक्टर, एसपी जो बोलेंगे, वो करेंगे। लेकिन, ये उनकी भूल है। कलेक्टर, एसपी वो ही करते हैं, जो सरकार चाहती है। सभी राज्यों में ऐसा ही होता है। नए जिले में ज्वाईन करने के पहिले या बाद में कलेक्टर और एसपी सीएम से मिलकर उनका मार्गदर्शन लेते हैं। अगर कुछ इशारा करना होता है तो सीएम के सिकरेट्री या कोई बेहद करीबी अधिकारी अफसरों को संकेत में बता देते हैं कि उन्हें किस लाईन पर काम करना है….किसे ठीक करना है और किसे सपोर्ट।
नायक की जांच रिपोर्ट
मिक्की मेहता केस की जांच के लिए सरकार ने डीजी गिरधारी नायक को जिम्मा सौंपा था। नायक ने रिटायर होने से पहिले सरकार को रिपोर्ट भी सौंप भी। लेकिन, मामला जरा गड़बड़ा गया। जांच रिपोर्ट ने डीजीपी डीएम अवस्थी की उलझनें बढ़ा दी। बताते हैं, नायक ने रिपोर्ट में फाइंडिंग नहीं दी है। सिर्फ….ये कमियां हैं, इसकी ठीक से जांच नहीं की गई, ये होना था, की सिफारिश कर रिपोर्ट सौंप दी। नायक अगर एक लाइन भी लिख दिए होते कि इस मामले में अपराध किया गया है, तो उसी बेस पर थानेदार को बोलकर प्राथमिकी दर्ज करा दी जाती। अब एक बार फिर से जांच करने के लिए डीजीपी ने रायपुर आईजी को आदेशित किया है। चूकि, जांच अधिकारी बदल गए हैं, इसलिए फिर वहीं प्रक्रिया अपनाई जा रही है। फिर से गवाहों को बुलाया जा रहा है। याने डबल मेहनत। जाहिर है, नायक ने बचने की कोशिश की। ऐसे में, सवाल उठते हैं, रिटायरमेंट के बाद उन्हें उम्मीद से कैसे होना चाहिए।

पहाड़े की विदाई

आईएएस हेमंत पहाड़े इस महीने 30 सितंबर को रिटायर हो जाएंगे। राप्रसे से आईएएस बनें पहाड़े बिलासपुर के रहने वाले हैं। अजीत जोगी के मुख्यमंत्रित्व काल में पहाड़े उनके स्टाफ में रहे। तब उनका काफी रुतबा रहा। लेकिन, उसके बाद उन्हें कोई खास अहमियत नहीं मिली। गरियाबंद के वे कलेक्टर बनें तो चंद महीनों में ही उन्हें राजधानी लौटना पड़ गया। 2013 के विधानसभा चुनाव के आचार संहिता के दौरान वे राजनीति का शिकार हो गए। अलबत्ता, आखिरी वक्त में उन्हें जरूर अच्छी पोस्टिंग मिल गई थी। उनके पास सिकरेट्री एग्रीकल्चर, ग्रामोद्योग समेत छोटे-छोटे और कुछ चार्ज हैं। बहरहाल, पहाड़े पर जोगी का लेवल चस्पा है, लिहाजा पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलने की संभावना कम ही है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अजय सिंह को दूसरी बार चीफ सिकरेट्री बनाने की बात किसने और क्यों फैलाई?
2. सीएस सुनील कुजूर को एक्सटेंशन मिलने की कितने फीसदी संभावना है?

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