रविवार, 15 सितंबर 2019

मसूरी में CM का प्रोजेक्ट

15 सितंबर 2019
भूपेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट नरवा, गरूवा, घुरवा और बाड़ी योजना की चर्चा आईएएस अकादमी मसूरी में हो रही है। खासकर नरवा और बाड़ी की। नए आईएएस को छत्तीसगढ़ का एग्जाम्पल देते हुए बताया जा रहा है कि ये दोनों योजनाएं देश के लिए क्यों और कितना जरूरी है। नरवा से तेजी से फॉल हो रहे वाटरलेवल को ठीक किया जा सकता है। तो बाड़ी से कुपोषण की समस्या दूर होगी। देश में एक बड़ा वर्ग आज भी भयंकर अभावों के बीच जी रहा है। पौष्टिक सब्जियां एवं फलों के रेट ऐसे महंगाई छू रहे हैं कि उसके पहुंच से बाहर है। बाड़ी में सब्जी, भाजी एवं देशी फल लगाने से पौष्टिक आहार का प्राब्लम दूर हो जाएगा। चलिये, छत्तीसगढ़ की किसी योजना की चर्चा अगर मसूरी में हो रही है तो निश्चित तौर पर वह देश के अन्य हिस्सों में भी पहुंचेगी। क्योंकि, ट्रेनिंग के बाद आईएएस अपने काडर वाले राज्यों में पहुंचेंंगे तो इसे क्रियान्वयन करने का प्रयास अवश्य करेंगे।

पोस्ट 41 और आईएएस?

छत्तीसगढ़ के आईएएस के लिए डेपुटेशन के 41 पोस्ट है। मगर गए कितने हैं, संख्या जानकार आप हैरान रह जाएंगे। इस साल सरकार ने दो को दिल्ली जाने की अनुमति दी। रीचा शर्मा पहले गइंर्। अगले हफ्ते तक सुबोध सिंह दिल्ली की फ्लाइट पकड़ लेंगे। इससे पहिले तो निधि छिब्बर को दिल्ली जाने के लिए पसीना बहाना पड़ गया था। राज्य सरकार ने पहले उन्हें एनओसी दे दिया और भारत सरकार ने जब उन्हें पोस्टिंग दे दी तो राज्य सरकार ने रिलीव करने से इंकार कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि निधि को केंद्र ने डेपुटेशन के लिए पांच साल के लिए डिबार कर दिया था। निधि कैट की शरण में गईं। तब उनका डिबार हटा और वे दिल्ली जा पाईं। अभी बैजेंद्र कुमार, वीबीआर सुब्रमणियम, अमित अग्रवाल, रीचा शर्मा, विकास शील, निघि छिब्बर, रोहित यादव, रीतू सेन, अमित कटारिया प्रतिनियुक्ति पर हैं। सुबोध सिंह जाने वाले हैं। टोटल हुए 10। याने 41 की तुलना में 25 परसेंट भी नहीं।

छत्तीसगढ़ से क्यों नहीं

अब सवाल उठते हैं, सेंट्रल डेपुटेशन पर छत्तीसगढ़ के अफसर इतने कम क्यों हैं। दरअसल, छत्तीसगढ़ काडर में दिक्कत यह है कि यहां की माटी इतनी फर्टाइल है…..आईएएस एक बार यहां आ जाते हैं तो फिर बाहर जाकर अपना नुकसान करना नहीं चाहते। सेंट्रल डेपुटेशन का मतलब होता है कैरियर बनाना। हमारे अफसर कैरियर वगैरह के फालतू चीजों में पड़ना नहीं चाहते। और, जो थोड़े-बहुत अधिकारी जाना चाहते हैं, उन्हें अनुमति नहीं मिलती। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व दिल्ली में बेहद निराशाजनक है। न कोई सिकरेट्री है, न एडिशनल सिकरेट्री। बस गिने-चुने पांच ज्वाइंट सिकरेट्री। दूसरे राज्यों के सिकरेट्री के साथ ही डेपुटेशन वाले अफसरों का भारत सरकार में जमावड़ा रहता है। इसलिए, उन राज्यों को केंद्रीय योजनाओं में उसी हिसाब से लाभ भी मिलता है। आखिर, कोई भी अफसर अपने राज्य का खयाल तो रखेगा ही।

बैंक और आईएएस-1

राज्य सरकार आईएएस और बैंकों के बीच क्या रिश्ता है, इसकी पड़ताल करने पर विचार कर रही है। सरकार को पता चला है कि अफसर अपने निहित स्वार्थों के चलते बैंकों पर कुछ ज्यादा ही दरियादिली दिखा रहे हैं। सरकारी योजना में पैसा आया नहीं कि बैंक वाले अपने यहां जमा कराने अफसरों के आगे-पीछे मंडराने लगते हैं। ये राशि 50 करोड़ से लेकर हजार करोड़ तक होती है। जाहिर है, इस एमाउंट से किसी भी बैंक की लाटरी निकल आएगी। लेकिन, ताली एक हाथ से थोड़े ही बजती है। अफसरों के पुराने रायपुर से लेकर नए रायपुर में जितने मकान हैं, सभी में बैंक खुल गए हैं। ऐसे-ऐसे बैंक, जिसका आप नाम भी नहीं सुने होंगे। जहां 25 हजार किराया मिलना चाहिए, वहां बैंक वाले 80 हजार से लेकर एक लाख तक चूका रहे हैं। अब इसे किराया चुकाना माने या अफसरों का एहसान। मगर सरकार की नोटिस में ये बात आ गई है। इसलिए, किसी भी दिन मामला बिगड़ सकता है।

बैंक और आईएएस-2

एक सीनियर आईएएस का अपना यहां कोई मकान नहीं था। फिर बैंकों को किराये के लिए कैसे कहें। इसलिए, उन्होंने रास्ता निकाला था सीधे-सीधे कमीशन का। उनके साथ एक बार दिलचस्प वाकया हुआ। एक बोर्ड के चेयरमैन रहते उन्होंने एक सरकारी बैंक में करीब 70 करोड़ रुपया जमा कराया था। कोई आईएएस इतना मोटा रोकड़ा जमा कराएगा तो जाहिर है, वह अपने बाल-बच्चों के लिए भी सोचेगा ही। उन्होंने बैंक मैनेजर पर प्रेशर बनाकर ज्वाइंट एकाउंट मद में जमा 8 करोड़ रुपए निकाल लिए। और खर्चा बता दिया। वह आडिट वाली राशि नहीं थी। जबकि, कायदे से चेयरमैन और सिकरेट्री के दस्तखत से ही पैसे निकल सकते थे। बाद में केडीपी राव और अनिल राय ने हल्ला मचाया तो दो साल बाद विभागीय जांच शुरू हुई। तब तक वे रिटायर होकर निकल लिए। जांच अभी चल रही है। जैसा की नौकरशाही में होता है। सब भाई-भाई। एक को भी पकड़ाना नहीं चाहिए। और, वैसा ही हुआ।

एसआइटी को बल

नान घोटाले में प्रमुख आरोपी शिवशंकर भट्ट के शपथ पत्र से और कुछ हो या नहीं मगर नान के लिए गठित एसआइटी को ताकत मिल गई है। अब एसआइटी के अफसर दमदारी से कह सकेंगे कि मामला बड़ी राशि का है और हाईप्रोफाइल लोग भी इनवाल्व हैं, इसलिए उसकी जांच आवश्यक है।

पवनदेव की पोस्टिंग

पुलिस महकमे में लंबे समय से हांसिये पर चल रहे एडीजी पवनदेव का लगता है भाग्य योग प्रबल होने वाला है। उन्हें जल्द ही कोई ठीक-ठाक पोस्टिंग मिल सकती है। दंतेवाड़ा बाइ इलेक्शन के बाद पुलिस महकमे में चेंजेस होने वाले हैं। इसमें पवन को कुछ ठीक-ठाक मिलने की अटकलें लगाई जा रही है। नई सरकार ने जब शपथ ली थी, तब उन्हें एसीबी और ईओडब्लू मिलने की चर्चा थी। लोग बोल रहे थे, बस आदेश निकलने ही वाला है। लेकिन, अचानक एसआरपी कल्लूरी का आर्डर हो गया था। फिलहाल, पवनदेव के पास कहने के लिए तीन-तीन पोस्टिंग है। लेकिन, इसमें से ढंग की एक भी नहीं।

राइट च्वाइस

छत्तीसगढ़ बनने के बाद हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट कभी किसी के प्रायरिटी में नहीं रहा। यही वजह है कि हर छह महीने, साल भर में सिकरेट्री बदलते रहे। एजेवी प्रसाद, एमके राउत और बीएल अग्रवाल ही ऐसे सचिव हुए, जो डेड़ साल से अधिक समय तक इस विभाग में रह पाए। अब सोनमणि बोरा को नया सिकरेट्री अपाइंट किया गया है। सोनमणि अमेरिका से मैनेजमेंट कोर्स करके लौटे हैं। फिर, गुरू घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर के रजिस्ट्रार भी रह चुके हैं। याने विश्वविद्यालयों के फंक्शनिंग के बारे में उन्हें बखूबी पता होगा। ठीक है, यूनिवर्सिटी आटोनॉमस बॉडी होती है लेकिन, कुलपति और रजिस्ट्रार कम-से-कम उन्हें मिसगाइड तो नही कर पाएंगे। इसे सरकार का राइट च्वाइस कह सकते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नगरीय प्रशासन चुनाव के बाद क्या किसी मंत्री को रिप्लेस किया जा सकता है?
2. एसएस बड़गैया बिलासपुर के सीएफ बनते-बनते रायपुर के सीएफ कैसे बन गए?

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