तरकश, 24 नवंबर 2024
संजय के. दीक्षित
नए डीजीपी का पैनल
छत्तीसगढ़ में नए डीजीपी नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। दरअसल, कुछ राज्यों में ऐन मौके पर डीजीपी नियुक्ति की फाइल यूपीएससी को भेजने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी। अपेक्स कोर्ट ने कहा था कि नए डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया तीन महीने पहले शुरू हो जानी चाहिए। तीन महीने के पैरामीटर से देखें तो छत्तीसगढ़ में कुछ लेट हुआ है। डीजीपी अशोक जुनेजा का छह महीने का एक्सटेंशन 5 फरवरी को कंप्लीट हो जाएगा। बहरहाल, जैसा कि पता चला है...छत्तीसगढ़ के नए डीजीपी पैनल के लिए फाइल का प्रॉसेज शुरू हो गया है। एसीएस होम, गृह मंत्री से होकर फाइल अंतिम अनुमोदन के लिए मुख्यमंत्री तक जाएगी। पैनल में तीन नाम भेजा जाए या पांच, इस पर मशिवरा चल रहा है। यदि तीन नाम भेजना होगा तो पवनदेव, अरुणदेव गौतम और हिमांशु गुप्ता का नाम होगा। और पांच जाएगा तो एसआरपी कल्लूरी और प्रदीप गुप्ता का नाम जुड़ जाएगा। हालांकि, डीजीपी कौन होगा, यह लगभग तय हो चुका है। यूपीएससी से पैनल एप्रूव्ह होने के बाद उसी नाम पर सरकार टिक लगा देगी। अलबत्ता, ऐन वक़्त पर अगर अशोक जुनेजा का ऊपर से एक्सटेंशन का कोई आदेश आ गया तो फिर बात अलग है।
मंत्रियों के सिपहसालार
लोकसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ के मंत्रियों के लिए आईआईएम में स्पेशल क्लास आरगेनाइज किया गया था। मगर मंत्रियों की 11 महीने की वर्किंग और परफार्मेंस देखकर नहीं लगता कि देश के प्रतिष्ठित मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट की क्लास से कोई फायदा हुआ। स्थिति विकट है...करीब-करीब साल गुजरने वाला है मगर मंत्रियों का कोई काम ट्रेक पकड़ता नहीं दिख रहा है। इसकी दो महत्वपूर्ण वजह बताई जा रही है। पहली, अधिकांश मंत्रियों को काम सीखने में इंट्रेस्ट नहीं प्रतीत हो रहा। और दूसरी, गड़बड़ नस्ल के उनके स्टाफ। पिछले सरकारों के सारे खटराल पीए और सिपहसालार जोर-जुगाड़ लगाकर नए मंत्रियों के साथ जुड़ गए। मंत्रियों के पीए सलेक्शन में न जीएडी ने ध्यान दिया और न ही मंत्रियों ने। नतीजा यह हुआ कि मंत्रियों को ट्रांसफर-पोस्टिंग के खेला में उलझा दिया गया। मंत्रियों के विभाग की बात तो अलग उनके सिपहसालारों ने उनके गृह जिलों का भी कबाड़ा कर दिया। अब ये कितनी हैरान करने वाली बात है कि डिप्टी सीएम अरुण साव के गृह नगर पंचायत लोरमी को लोवर ग्रेड के बाबू रैंक का सहायक राजस्व निरीक्षक चला रहा है। जबकि, अरुण इसी विभाग के मंत्री हैं...कायदे से सूबे के सबसे काबिल सीएमओ की वहां नियुक्ति की जानी चाहिए थी। वहीं, दूसरे डिप्टी सीएम विजय शर्मा के गृह क्षेत्र कवर्धा का कलेक्टर एलायड सर्विस के एक ऐसे अफसर को बना दिया गया, जिन्हें न रेवेन्यू का अनुभव है और न एडमिनिस्ट्रेशन का। बाकी मंत्रियों का हाल भी कमोवेश वही है। ऐसी स्थिति रही तो बीजेपी को कैबिनेट में बड़ी सर्जरी करनी पड़ जाएगी।
रांग नंबर डायल
मंत्रीजी के लोगों के पीए खुद को मंत्री से कम नहीं समझते। अफसरों को इस अंदाज में फोन लगाते हैं, जैसे पीए नहीं मंत्री वे ही हो। मगर एक मंत्री के पीए ने एक गलत नंबर डॉयल कर दिया। उन्होंने रायपुर पुलिस के एक बड़े अफसर को फोन लगाया...मंत्रीजी ने कहा है...ये काम करना है। दूसरे दिन फिर फोन...मंत्रीजी पूछ रहे हैं, जो बताया था, वो हुआ नहीं। अफसर ठहरे 24 कैरेट वाले। सो, पलट कर ऐसा हड़काया कि अब फिर पीए की हिम्मत नहीं होगी अफसर को फोन लगाने की। वैसे, इससे पहले मुकेश गुप्ता का भी ऐसा औरा था कि मंत्री के पीए कौन कहें, मंत्रियों को बात करने से पहले दस बार सोचना पड़ता था।
अमित को विभाग
2004 बैच के आईएएस अफसर अमित कटारिया सेंट्रल डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौट आए हैं। हालांकि, उन्होंने ज्वाईन अगस्त में कर लिया था मगर इसके बाद वे छुट्टी पर चले गए थे। हालांकि, इससे पहले वे डेपुटेशन कंप्लीट करने के बाद ज्वाईन करने आए थे मगर इसके बाद वे छुट्टी पर चले गए थे। अमित केंद्र से लौटे हैं, तो विभाग भी ठीकठाक ही मिलने की उम्मीदें होंगी। ब्यूरोक्रेसी में जिस तरह की चर्चाएं हैं, उसके मुताबिक अमित को हेल्थ, पीडब्लूडी और नगरीय निकाय में से कोई एक विभाग मिल सकता है। बता दें, ये सिर्फ अटकलें हैं, तय तो सीएम विष्णुदेव साय को करना है। कई बार ज्यादा चर्चाएं होने पर सरकारें अपना डिसिजन बदल देती हैं।
चिप्स में डबल आईएएस
राज्य सरकार ने विश्वरंजन को सीओओ अपाइंट किया है। इससे पहले प्रभात मलिक सीईओ बनाए गए थे। छत्तीसगढ़ में यह पहला मौका होगा, जब चिप्स में दो-दो आईएएस होंगे। आईटी के इस युग में चिप्स के पास काम करने की अतंहीन संभावनाएं हैं। वैसे में और भी जब विष्णुदेव सरकार ऑनलाईन वर्किंग पर जोर दे रही है...वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विभागों के आईटी वर्क के लिए पहली बार 300 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। अब चिप्स को अपना पैटर्न दुरूस्त करना चाहिए। पिछले महीने व्यापम पुलिस की परीक्षा इसलिए नहीं ले पाया क्योंकि चिप्स के साफ्टवेयर को लेकर बात नहीं बन सकी। चिप्स कोर्ट केस को लेकर ऐसी परीक्षाओं से बचना चाहता है कि उसे भी पार्टी बनाया जा सकता है। अब सिस्टम में हैं तो कोर्ट-कचहरी उसका पार्ट होता है। चीफ सिकरेट्री को भी कई बार कोर्ट से नोटिस आ जाती है। इसका मतलब ये नहीं कि प्रतियोगी परीक्षाओं के साफ्टवेयर ही न तैयार करें।
गले का फांस?
राज्य सरकार ने नगरीय निकायों के अध्यक्षों से चेक पर साइन करने का अधिकार समाप्त कर दिया है। अब सिर्फ सीएमओ के ही चेक पर दस्तखत होंगे। हालांकि, रमन सिंह की 15 साल की सरकार में भी चेक पर सीएमओ के ही दस्तखत होते थे मगर पिछली सरकार ने ये व्यवस्था बदलते हुए डबल सिगनेचर अनिवार्य कर दिया था। सीएमओ के साथ चेयरमैनों की भी। मगर सरकार बदलते ही यह नियम बदल दिया गया। सरकार ने यह बदलाव अच्छा किया है। जनप्रतिनिधियों के चेक पर हस्ताक्षर करने का मतलब समझा जा सकता है, इसके पीछे मकसद क्या होगा। मगर यह भी सही है कि सीएमओ पर भी सरकार को नजर रखनी होगी। वरना नगरीय निकाय चुनाव के आचार संहिता प्रभावशील होने से पहले सीएमओ कहीं धूम मत मचा दें।
भाग्य क़े धनी सुनील बाबू
छत्तीसगढ़ में भाग्य क़े धनी राजनेताओं की बात होगी तो सुनील सोनी का नाम टॉप थ्री में होगा. सुनील रायपुर क़े महापौर रहे, रायपुर विकास प्राधिकरण के चेयरमैन बनाये गए. फिर रायपुर लोकसभा से सांसद चुने गए. और अब विधायक निर्वाचित हुए हैं. वो भी थोड़े वोट से नहीं...46 हजार की लीड. अगर वोटिंग परसेंट ठीक ठाक रहता तो हो सकता था, गुरू गुड़ और चेला शक्कर हो जाता. गुरू यानी बृजमोहन अग्रवाल. गुरू विधानसभा चुनाव में 67 हजार से जीते थे. अलबत्ता, सुनील को जब टिकिट मिला तो चौक-चौराहों पर लोग नाक- भौं सिकोड़ कर रहे थे... बीजेपी ने ये क़्या किया. मगर या तो पार्टी ने ज्यादा मेहनत कर दी या फिर वही...सुनील सोनी भाग्य लिखा कर लाए हैं...कम वोटिंग में भी उन्हें बड़ी लीड मिल गई.
अंत में दो सवाल आपसे?
1. छत्तीसगढ़ क़े भाग्य क़े धनी तीन नेताओं क़े नाम बताइये?
2. छत्तीसगढ़ का अगला DGP कौन बनेगा?
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