तरकश, 10 नवंबर 2024
संजय के. दीक्षित
मंत्री की गंभीर चूक
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति का एक लाईन ऑफ प्रोटोकॉल होता है। ये जब राज्यों के दौरे पर होते हैं तो इनकी अगुवानी करने के लिए मंत्रियों की तो दूर की बात राज्यपाल और मुख्यमंत्री को विमान लैंड करने से पहले एयरपोर्ट पहुंचना होता है। जबकि, विमान लैंड होने के बाद रनवे पर रेंगने, सिक्यूरिटी नार्म पूरा करने और दरवाजा खुलने में 20 से 25 मिनट तक लग जाता है, बावजूद इसके राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत वे तमाम विशिष्ट लोग एयरपोर्ट पर हाजिर रहते हैं, जिनके नाम स्वागत सूची में होते हैं। मगर छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव के अलंकरण समारोह में रायपुर पहुंचे उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ के अगुवानी में एक मंत्रीजी ने इंतेहा कर दी।
उपराष्ट्रपति का भारतीय वायु सेना का प्लेन देर शाम रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट पर लैंड किया। प्रोटोकॉल के अनुसार राज्यपाल रमेन डेका, सीएम विष्णुदेव साय समेत वेलकम करने वाले सभी एयरपोर्ट पहुंच चुके थे। उपराष्ट्रपति विमान से उतरे तो कतार में सबसे आगे खड़े सबसे राज्यपाल ने उनका स्वागत किया, फिर मुख्यमंत्री ने।
इसी बीच एक मंत्रीजी तेज कदमों से चलते हुए आए और लाइन के बीच में घुस गए। ठीक उसी तरह जैसे रेलवे के टिकिट काउंटर पर लोग बीच में घुस जाते हैं। इसे देख उपराष्ट्रपति के सिक्यूरिटी अफसर बेहद नाराज हुए। उन्होंने पूछा कि व्हाइस प्रेसिडेंट के विमान से उतरने के बाद टॉप सिक्योरिटी प्रीमाइसिज में मंत्री को इंट्री कैसे मिल गई? अब कोई क्या जवाब देता...मंत्री ठहरे, सो पुलिस वाले किंकर्तव्यविमूढ़ थे।
कुल मिलाकर मंत्री जैसे जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा व्हाइस प्रेसिडेंट के प्रोटोकॉल और सिक्यूरिटी की धज्जियां उड़ाने से मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी खफा बताए जा रहे हैं...स्वाभाविक भी है, कम-से-कम मंत्री से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। लेटलतीफी के लिए मशहूर रायपुर के एक भैया ने भी 35 साल के सार्वजनिक जीवन में कभी ऐसा नहीं किया, जो नए मंत्रीजी ने कर डाला।
विजन डॉक्यूमेंट और दिवाली की खुमारी
विजन डॉक्यूमेंट-2047 बनाने वाला छत्तीसगढ़ देश का दूसरा राज्य बन गया है। अभी सिर्फ गुजरात का बना है...बाकी एमपी, राजस्थान, बिहार जैसे कई राज्य इसकी कवायद में लगे हुए हैं। मगर छत्तीसगढ़ आगे निकल गया। जाहिर है, राज्य में कोई अच्छी बात हो, तो प्रसन्नता स्वाभाविक है। मगर विजन डॉक्यूमेंट तभी प्रभावी होगा, जब आम आदमी का विजन भी बदले। लोग छुट्टियां का आनंद भी उठाएं और काम भी डटकर करें। छत्तीसगढ़ में विगत कुछ सालों से होली, दिवाली जैसे त्यौहारों में इंतेहा हो जा रही है।
इस बार दिवाली गुरूवार को थी। शुक्रवार, शनि, रविवार की तो उम्मीद बेमानी थी। लगा सोमवार से सब कुछ पटरी पर आ जाएगा। मगर पूरा हफ्ता निकल गया। सोमवार, मंगलवर को सड़कें सूनी रही। हर आदमी को तीज-त्यौहार को इंज्वाय करने का अधिकार है। मगर ये भी सोचना होगा कि एक त्यौहार में 10-10 दिन तक स्टेट ठहर जाए, तो फिर छत्तीसगढ़ गुजरात कैसे बन पाएगा? कायदे से चीफ सिकरेट्री को रायपुर आईआईएम से इस पर काम कराना चाहिए कि छत्तीसगढ़ के मेहनतकश लोगों के श्रम की यूपी, पंजाब और जम्मू में इतनी प्रशंसा क्यों होती है...वो चीजें लोकल स्तर पर क्यों नहीं?
ह्यूमन रिसोर्स का कबाड़ा
चूकि उपर बात वर्क कल्चर और ह्यूमन रिसोर्स की हो रही तो इसका भी जिक्र लाजिमी है कि छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में कलेक्टरों द्वारा नकल वगैरह करवाने के बाद भी फर्स्ट डिविजन वालों की संख्या 30 फीसदी से उपर क्यों नहीं जा पा रही। कलेक्टर और नकल...इस पर आप चौंकेंगे तो इसे क्लियर करना आवश्यक है। अधिकांश कलेक्टर अपने जिले का रिजल्ट ठीक दिखने के लिए स्कूल शिक्षा के अधिकारियों को बता देते हैं कि जैसे भी हो, जिले का परफार्मेंस खराब नहीं होना चाहिए।
बहरहाल, कालेजों का हाल भी जुदा नहीं है। सरकारी कॉलेजों में संसाधन नहीं है और मोटी फीस लेने वाले प्रायवेट इंस्टिट्यूट डिग्री बेचने वाले केंद्र बनकर रह गए हैं। प्रायवेट कालेज वालों ने बीएड, फार्मेसी जैसे पाठ्यक्रमों के लिए बिना क्लास अटेंड किए परीक्षा में बिठाने 30 से 40 हजार रुपए का रेट निर्धारित कर दिया है। ऐसे में, छत्तीसगढ़ के ह्यूमन रिसोर्स का भगवान मालिक हैं। इस हालत में कल-कारखाने वाले दूसरे राज्यों से स्किल्ड लोगों को बुलाकर काम नहीं कराएंगे तो क्या करेंगे? बता दें, राज्य बनने के 24 सालों में ह्यूमन रिसोर्स को मजबूत करने पर कभी बात ही नहीं हुई।
ठोकने वाला सीएम
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठोकने वाले मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाते हैं। दरअसल, विधानसभा का उनका एक चर्चित भाषण है, जिसमें वे कह रहे हैं कि माफिया लोग अपराध से बाज आए वरना उन्हें ठोक देंगे। और ऐसा हुआ भी। उत्तप्रदेश में बड़ी संख्या में माफियाओं के एनकाउंटर हुए। अब छत्तीसगढ़ में भी इसकी शुरूआत हो गई है। पुलिस ने 8 नवंबर को भिलाई में एक अपराधी को मार गिराया।
बताते हैं, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। यद्यपि, मुख्यमंत्री का ऐसा स्वभाव नहीं। उनके स्वभाव से जुड़े सवाल पर मुख्यमंत्री के एक करीबी ने चुटकी ली...छत्तीसगढ़ बदल रहा है तो मुख्यमंत्री का बदलना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ बदलने का तात्पर्य उनका इस बात से था कि अपराध की प्रवृति बदल रही है। जाहिर है, गैंगवार में गोलियां बरस रही हैं। खैर...महत्वपूर्ण यह है कि पुलिस अब एक्शन में दिखेगी। क्योंकि, उपर से अब ठोकने जैसे निर्देश जारी हो गए हैं।
एडीजी को नई जिम्मेदारी
एडीजी शिवराम प्रसाद कल्लूरी को डीजीपी अशोक जुनेजा ने प्रशासन विभाग की जिम्मेदारी सौंपी है। हिमांशु गुप्ता के डीजी जेल अपाइंट होने के बाद से यह पद खाली था। आईजी के तौर पर बद्रीनारायण मीणा प्रशासन संभाल रहे थे। यह नियुक्ति डीजीपी की सिफारिश पर हुई है। डीजीपी ने कल्लूरी का नाम रिकमांड किया और सरकार ने ओके कर दिया। हालांकि, आदेश डीजीपी ने ही निकाला। पीएचक्यू में खुफिया और फायनेंस एंड प्रोवजनिंग के बाद प्रशासन सबसे महत्वपूर्ण विभाग माना जाता है। कह सकते हैं कल्लूरी का कद बढ़ा है।
इंद्रावती भवन का हाल खराब
सिकरेट्री की गंभीर चूक से मंत्रालय में जगह का टोटा पड़ने की तरकश की खबर के बाद स्तंभकार के पास कई लोगों के फोन आए कि विभागाध्यक्ष भवन का भी यही हाल है। इंद्रावती भवन बनाने के पीछे कंसेप्ट यही था कि पुलिस मुख्यालय और वन मुख्यालय को छोड़ सारे विभाग के लोग एक ही बिल्डिंग में बैठेंगे। इससे फाइलों की आवाजाही आसान होगी, काम स्मूथली होगा। मगर धीरे-धीरे जीएसटी, विकास भवन, पीडब्लूडी, हेल्थ जैसे कई अलग बिल्डिंगें बन गई। बावजूद इसके इंद्रावती भवन में जगह की कमी पड़ जा रही। वहां यह कोई देखने वाला भी नहीं कि जिस विभाग में कोई काम नहीं उन्हें भी उतना ही स्पेस मिला है और जिन विभागों में फाइलें दौड़ती रहती हैं, उन्हें भी उतना ही।
फिर एक सवाल यह भी है कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद जब संसदीय सचिव अपाइंट किए जाएंगे, तो वे कहां बैठेंगे। क्योंकि सिकरेट्री ब्लॉक में कमरे न होने से मंत्री ब्लॉक में कई सचिवों को बिठाया जा रहा है। नए साल में संसदीय सचिवों की नियुक्ति के बाद जीएडी सिकरेट्री अविनाश चंपावत के लिए यह एक बड़ा सिरदर्द बनेगा। क्योंकि, मंत्री ब्लॉक में बैठने वाले अधिकांश सिकरेट्री हाई प्रोफाइल वाले हैं।
प्रमोशन में ब्रेकर
छत्तीसगढ़ के आईएफएस अधिकारी आईएएस, आईपीएस अफसरों की तरह खुशकिस्मत नहीं हैं। आलम यह है कि जनवरी में पीसीसीएफ का प्रमोशन ड्यू होने के बाद नवंबर आधा निकलने वाला है मगर उनकी फाइल किधर है, इसे कोई देखने वाला नहीं। 93 बैच में आलोक कटियार हैं और 94 बैच में अरुण पाण्डेय, सुनील मिश्रा, प्रेम कुमार और अनूप विश्वास हैं।
इनमें से अनूप इसी महीने 30 नवंबर को रिटायर हो जाएंगे। सरकार ने इनकी अगर डीपीसी नहीं की तो अनूप के लिए बड़ा हार्डलक रहेगा। उन्हें बिना पीसीसीएफ प्रमोट हुए नौकरी से विदा लेनी पड़ेगी। हो सकता है कि इनमें से किसी अफसर विशेष के प्रमोशन को लेकर सिस्टम संशय में होगा, तो ऐसे मामलों से निबटने के लिए सिस्टम के पास बहुत सारे रास्ते होते हैं। उन्हें ड्रॉप कर बाकी की डीपीसी कराई जा सकती है।
एंटीइंकाम्बेंसी
छत्तीसगढ़ में उल्टा हो रहा है...सरकार की जगह लोकल नेताओं की एंटीइंकाम्बेंसी बढ़ती जा रही है। कई जिलों में विधायकों और संगठन के स्थानीय नेताओं ने बेईमान सिस्टम से गलबहियां कर ली है तो कई जगहों पर ईमानदार सिस्टम बुरी कदर परेशान है। कांग्रेस शासनकाल में पिछले पांच साल में जो हुआ, उसी को बीजेपी के नेता आदर्श पथ मान चुके हैं। स्थिति यह है कि अधिकारियों, ठेकेदारों से विधायकों को भी खुशामद चाहिए और संगठन के जिला स्तर के नेताओं को भी।
कांग्रेसी राज में जिस तरह जुआ, सट्टा, शराब के कारोबार पर लोकल नेताओं का वर्चस्व था, कमोवेश स्थिति बदली नहीं है। लॉ एंड आर्डर के लिए सारा ठीकरा पुलिस पर फोड़ना भी ठीक नहीं। पुलिस पर नेताओं का प्रेशर बढ़ता जा रहा। संवेदनशील मामलों में कोई मार्गदर्शन देने वाला नहीं। याने एसपी अपने स्तर पर निबटे। अगर लाठी चला दिया तो भी सस्पेंड होगा और नहीं चलाया तो भी।
ये कितना अजीब है कि रुलिंग पार्टी के लोग थानों में हुड़दंग मचाने लगे हैं। मोदी युग में कम-से-कम ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती। उपर बैठे नेताओं को कैडर को बताना चाहिए कि केंद्रीय नेतृत्व ने अगर जोर नहीं लगाया होता तो बीजेपी विपक्ष में बैठी होती। पीएम मोदी के अथक परिश्रम से बीजेपी सत्ता में आ गई है तो नेताओं को पार्टी की शुचिता का ध्यान रखना चाहिए। वरना, लोग जिस तरह कांग्रेस के समय ऐलान करने लगे थे कि इनमें से आधे विधायक भी दोबारा जीतकर नहीं आएंगे, वैसा ही कुछ बीजेपी के विधायकों के बारे में कहा जाने लगेगा।
अंत में दो सवाल आपसे
1. लोगों को आत्मनिर्भर बनाए बिना छत्तीसगढ़ का विकास संभव है क्या?
2. क्या नगरीय और पंचायत चुनाव तक लाल बत्ती पर अब ब्रेक लग गया है?
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