शनिवार, 6 जुलाई 2019

दो मंत्रियों की छुट्टी?

30 जून 2019
अमरजीत भगत के बारहवें मंत्री बनने से सत्यनारायण शर्मा और धनेंद्र साहू जैसे वरिष्ठ विधायकों को मायूस होने की जरूरत नहीं है। मंतरी बनने का रास्ता उनका ब्लॉक नहीं हुआ है। अंदर की खबर है, दो मंत्रियों के पारफारमेंस से सरकार खुश नहीं है। दोनों का विभागों पर बिल्कुल कंट्रोल नहीं है। यही वजह है कि पिछली सरकार में सक्रिय ठेकेदारों और सप्लायरों का दबदबा इनके विभागों में बढ़ता जा रहा है। इनमें एक ट्राईबल मंत्री हैं और दूसरे अनुसूचित जाति से। अनुसूचित जाति के मंत्री की छुट्टी होने पर सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू या फिर अमितेष शुक्ल को रायपुर कोटे से मौका मिल सकता है। अभी ब्राम्हण में सिर्फ एक मंत्री हैं। रविंद्र चौबे। उनका भी स्वास्थ्य कुछ दिन पहले खराब हुआ था। उधर, धनेंद्र साहू को मंत्री बनाने के सियासी मायने हैं। इससे साहू समाज की नाराजगी दूर होगी, वहीं ताम्रध्वज साहू का रुआब कम होगा। हालांकि, कांग्रेस के सूत्रों का कहना है, मंत्रिमंडल का पुनर्गठन लोकल चुनाव के बाद ही होगा। तब तक सरकार के लगभग एक बरस पूरे भी हो गए रहेंगे।

अमरजीत से बैलेंस

भूपेश बघेल सरकार में तीन आदिवासी विधायकों को मंत्री बनने का अवसर मिला था। बस्तर से कवासी लकमा, डौंडीलोहारा से अनिला भेड़िया और सरगुजा से प्रेमसाय सिंह टेकाम। ये तीनों गोंड समुदाय की नुमाइंदगी करते हैं। जबकि, छत्तीसगढ़ में उरांव आदिवासियों की संख्या भी कम नहीं हैं। अमरजीत भगत को शामिल करने से मंत्रिमंडल में अब उड़ाव आदिवासियों की भागीदारी हो गई है। उधर, आदिवासी मंत्रियों की संख्या भी अब चार हो गई है। हालांकि, भेड़िया को मंत्री बनाने से सरकार को डबल फायदा है। आदिवासी के साथ ही वे महिला वर्ग का भी प्रतिनिधित्व कर रही हैं।

मनिंदर की वापसी

आईएएस डा. मनिन्दर कौर द्विवेदी को सरकार ने प्रिंसिपल सिकरेट्री ग्रामोद्योग के साथ ही प्रिंसिपल सिकरेट्री कृषि बनाया है। उनके पास प्रमुख आवासीय आयुक्त छत्तीसगढ़ भवन का चार्ज यथावत रहेगा। उनकी पोस्टिंग से प्रतीत होता है वे अक्टूबर में रिटायर हो रहे एपीसी और एसीएस एग्रीकल्चर केडीपी राव की जगह लेंगी। क्योंकि, सरकार के पास एपीसी लायक कोई अफसर दिख भी नहीं रहा है। 95 बैच की आईएएस मनिंदर तेज-तर्राट अफसर हैं। डेपुटेशन से लौटने पर सरकार ने उन्हें दिल्ली में प्रमुख आवासीय आयुक्त बनाया था। उधर, साफ-सुथरी छबि के आईएएस सिद्धार्थ कोमल परदेशी की वापसी करते हुए सरकार ने महिला बाल विकास की जिम्मेदारी सौंपी है। परदेशी की पोस्टिंग से उन अफसरों को आस जगी है, जो काम में तेज हैं मगर पिछली सरकार से नजदीकियों के चलते अच्छी पोस्टिंग से वंचित हो गए हैं। वैसे, टूरिज्म में लंबे समय बाद किसी आईएएस की पोस्टिंग हुई है। भीम सिंह को एमडी बनाया गया है। वरना, आईएफएस एमडी ने तो छत्तीसगढ़ के टूरिज्म का कबाड़ा ही कर दिया। सरकार ने अविनाश चंपावत को इरीगेशन और धर्मस्व के साथ ही संस्कृति और टूरिज्म सिकरेट्री का कार्यभार सौंप दिया है। डा0 कमलप्रीत सिंह को अब सरकार ने फूड की पूरी जिम्मेदारी दे दी है। सिकरेट्री के साथ वे कमिश्नर सह संचालक फूड एन सिविल सप्लाई भी होंगे। उधर, आईएएस अनिल टुटेजा की वापसी हो गई है। लेकिन, डा0 आलोक शुक्ला पता नहीं कैसे छूट गए। जबकि, आलोक भी काबिल और रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। उनका अगले साल ही रिटायरमेंट है।

सतर्क हो जाएं

कांग्रेस ने राज्य में पहली बार दो तेज आदिवासी नेताओं को बड़ा मौका दिया है। मोहन मरकाम पीसीसी अध्यक्ष और अमरजीत भगत मंत्री बनाए गए हैं। मरकाम और भगत सामान्य आदिवासी नेता नहीं हैं। मरकाम को ज्योग्राफी में पीजी किए हैं। कुशल वक्ता होने के साथ ही विषय वस्तु पर उनकी गहरी पकड़ है। विधानसभा में भी उनका उत्कृष्ठ प्रदर्शन रहा है। अलबत्ता, बीजेपी ने भी एक बार विद्वान नेता नंदकुमार साय को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। लेकिन, सरकार बनने से पहिले ही उन्हें निबटा भी दिया। 2003 के विधानसभा चुनाव के समय साय तपकरा से विधायक थे। भाजपा ने उन्हें तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के सामने मरवाही में उतार दिया था। अब जोगी के सामने साय को हारना ही था। इसके बाद भाजपा में कभी तेज नेताओं को महत्वपूर्ण पद नहीं मिला। अध्यक्ष भी शिवप्रताप सिंह, रामसेवक पैकरा और विष्णुदेव साय जैसे नेता बन पाएं। हालांकि, कांग्रेस में भी कमोवेश यही हुआ। मध्यप्रदेश के समय मरवाही से विधायक डा0 भंवर सिंह पोर्ते जब ताकतवर होने लगे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने 85 के विधानसभा चुनाव में उनकी टिकिट काट दी। अभी तक कांग्रेस और भाजपा सरकारों में नाम के मंत्री होते थे। लेकिन, अब न मोहन मरकाम वैसे हैं और न ही अमरजीत भगत। जाहिर है, ऐसे में सूबे में आदिवासी नेतृत्व मजबूत होगा। इससे कांग्रेस को ही नहीं बल्कि बीजेपी को भी तकलीफ जाएगी।

अब सबसे सीनियर

डीजी नक्सल, जेल एवं होमगार्ड गिरधारी नायक कल रविवार होने के कारण एक दिन पहिले ही 29 जून की शाम को रिटायर हो गए। 83 बैच के नायक छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईपीएस थे। उनसे दो साल जूनियर अमरनाथ उपध्याय अब प्रदेश के सबसे वरिष्ठ आईपीएस हो गए हैं। उपध्याय 85 बैच के आईपीएस हैं। उनसे एक साल जूनियर डीएम अवस्थी फिलहाल डीजीपी हैं। हालांकि, दो महीने बाद 31 अगस्त को डीएम सबसे सीनियर हो जाएंगे, जब उपध्याय रिटायर हो जाएंगे।

कठिन स्थिति

आज शाम रिटायर हुए डीजी गिरधारी नायक के पास नक्सल ऑपरेशंस के साथ जेल और होमगार्ड था। ये काफी महत्वपूर्ण विभाग हैं। जेल और होमगार्ड तो हमेशा डीजी रैंक के अफसर के पास रहा है। नायक के रिटायर होने के बाद सरकार के सामने कठिन स्थिति होगी कि नक्सल आपरेशंस और जेल का चार्ज किसे दिया जाए। नायक के बाद सरकार के पास डीजी लेवल के पांच अफसर हैं। एएन उपध्याय, बीके सिंह, संजय पिल्ले, आरके विज और मुकेश गुप्ता। उपध्याय पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के प्रमुख हैं और दो महीने बाद वे रिटायर हो जाएंगे। बीके सिंह ईओडब्लू और एसीबी के डीजी हैं। नवंबर में उनका भी रिटायरमेंट हैं। बचे पिल्ले, विज और गुप्ता। इनमें से मुकेश गुप्ता को अलग कर दें। पिल्ले के पास इंटेलिजेंस और विज के पास प्लानिंग एन प्रोविजनिंग है। सरकार के पास एडीजी भी नहीं हैं, जिन्हें डीजी से रिप्लेस किया जा सकें। अभी तीन एडीजी पदोन्नत हुए हैं, उनमें से जीपी सिंह पहले से ईओडब्लू, एसीबी तथा एसआरपी कल्लूरी ट्रांसपोर्ट में हैं। तीसरे हिमांशु गुप्ता दुर्ग रेंज के आईजी हैं। पीएचक्यू में दो एडीजी और हैं। अशोक जुनेजा और पवनदेव। जुनेजा के पास प्रशासन और छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स है। कुल मिलाकर सरकार को पुलिस महकमे में एक बड़ी सर्जरी करनी होगी तब जाकर मामला दुरुस्त हो पाएगा।

फाइव इन वन?

आईएफएस में शीर्ष लेवल पर डीपीसी नहीं हो पाने के कारण पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी पर लोड बढ़ता जा रहा है। वे वन विभाग के प्रमुख तो हैं ही, वाईल्डलाइफ और लघु वनोपज संघ के पीसीसीएफ का चार्ज भी उनके पास है। आज वन विकास निगम के पीसीसीएफ केसी यादव और हर्बल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड प्रमुख एके द्विवदी भी रिटायर हो रहे हैं। सरकार के पास पीसीसीएफ हैं नहीं। उपर से याने दो विभाग और खाली हो जाएंगे। जाहिर है, राकेश के पास तीन चार्ज पहिले से है और दो और बढ़ जाएंगे। याने पीसीसीएफ के साथ ही पांच चार्ज हो जाएंगे। हालांकि, राकेश सरकार से कई बार आग्रह कर चुके हैं कि उनका वर्कलोड कम किया जाए। वाईल्डलाइफ और लघु वनोपज संघ के प्रमुख के लिए नोटशीट चली भी थी। लेकिन, उपर में जाकर वो भी कहीं अटक गई हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस के रूप में पुलिस महकमे में 36 बरस तक कार्य करने वाले गिरधारी नायक के लिए बिदाई समारोह का आयोजन क्यों नहीं किया गया?
2. क्या बोर्ड एवं निगमों में नियुक्ति स्थानीय चुनाव के बाद हो पाएंगे या उससे पहिले?

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