सोमवार, 29 जुलाई 2019

सीएस को एक्सटेंशन?

28 जुलाई 2019
चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर को छह महीने का एक्सटेंशन देने का प्रस्ताव राज्य सरकार ने केंद्र को भेज दिया है। जाहिर है, आईएएस का मामला है, इसलिए प्रधानमंत्री इस पर निर्णय लेंगे। निर्णय क्या होगा, इस पर अटकलें कुजूर के पक्ष में नहीं है। प्रधानमंत्री कांग्रेस शासित राज्य के सीएस को भला एक्सटेंशन क्यों देंगे। राज्य में ऐसी कोई स्थिति भी उत्पन्न नहीं हो गई है, जिससे सीएस का कार्यकाल बढ़ाना पड़े। मगर यह सवाल तो उठता ही है कि जोर-जुगाड़ से दूर रहने वाले कुजूर ने एक्सटेंटशन की फाइल आखिर दिल्ली क्यों भिजवाई? जीएडी का हेड सीएस होता है। क्लियर है, बिना उनकी सहमति के प्रस्ताव भारत सरकार को गया नहीं होगा। कुजूर के पक्ष में एक संभावना निश्चित रूप से दिख रही कि छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम डेपुटेशन पर जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकरेट्री हैं। भारत सरकार ने वहां राष्ट्रपति शासन छह महीने के लिए और बढ़ा दिया है। यानि जनवरी, फरवरी तक वहां विधानसभा चुनाव होंगे। सुब्रमणियम इसके बाद ही छत्तीसगढ़ लौटेंगे। कुजूर के एक्सटेंशन न होने से सुब्रमणियम को नुकसान होगा। क्योंकि, उन्हीं के 87 बैच में सीके खेतान और आरपी मंडल सीएस के तगड़े दावेदार हैं। एक्सटेंशन न होने की स्थिति में कुजूर 31 अक्टूबर को रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद खेतान और मंडल में से किसी एक को ब्यूरोक्रेसी की शीर्ष कुर्सी मिलेगी। ऐसे में, सुब्रमणियम का रास्ता ब्लॉक हो जाएगा। लिहाजा, वे चाहेंगे ही कि कुजूर को एक्सटेंशन मिल जाए। ताकि, उनके लिए रास्ता बना रहे। दस बरस तक मनमोहन सिंह के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में काम कर चुके सुब्रमणियम कुजूर को मदद करने में सक्षम भी हैं। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बाद भारत सरकार में तीसरे नम्बर के ताकतवर नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइजर अजीत डोभाल से उनकी नजदीकियां भी बताई जाती हैं। डोभाल चाहेंगे तो छत्तीसगढ़ में किस पार्टी की सरकार है, यह गौण हो जाएगा। कुजूर की फिर अगले साल अप्रैल तक कुर्सी पक्की हो जाएगी। लेकिन, ये सिर्फ अटकलें और संभावनाएं हैं। होगा वही, जिसका मुकद्दर प्रबल होगा। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ वहीं बनता है, जिसके माथे पर लिखा होता है। वरना, कई तेज-तर्रार माने जाने वाले अफसर बिना सीएस, डीजीपी बने रिटायर थोड़े ही हो जाते।

मंत्रालय से बाहर नहीं

राज्य बनने के बाद पहला मौका आएगा, जब एक ही बैच के तीन आईएएस सीएस के दावेदार होंगे। बैच है 87 और अफसर हैं सीके खेतान, आरपी मंडल और बीवीआर सुब्रमण्यिम। अभी तक अफसर कम थे, इसलिए एक बैच में अनेक दावेदार वाली स्थिति निर्मित नहीं होती थी। 86 बैच में जरूर डा0 आलोक शुक्ला और सुनील कुजूर थे। लेकिन, नान मामले के चलते शुक्ला रेस शुरू होने से पहिले ही बाहर हो गए और कुजूर के लिए खुला मैदान मिल गया। लेकिन, 87 बैच से तीनों में से कोई भी सीएस बनें, दो को मंत्रालय से बाहर जाना पड़ेगा। क्योंकि, सेम बैच के बॉस के अंदर अफसर कैसे काम करेंगे। हालांकि, यह कोई नियम नहीं है। यह सरकार और प्रभावित होने वाले अफसरों पर निर्भर करता है। चाहें तो वे अपने ही बैच के सीएस के साथ मंत्रालय में रहकर काम कर सकते हैं। मध्यप्रदेश में एक बार ऐसा हुआ था, जब निर्मला बूच मुख्य सचिव बनी थीं और उन्हीं के बैच के डीजी भावे मंत्रालय में एसीएस रहे। लिहाजा, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि एक के सीएस बनने पर दो को मंत्रालय से बाहर जाना ही पड़ेगा।

सिर्फ दो मौके

छत्तीसगढ़ बनने के बाद सिर्फ दो मौके ऐसे आएं हैं, जब जूनियर आईएएस को चीफ सिकरेट्री बनाने के बाद सीनियर को मंत्रालय से बाहर किया गया। पहली बार जब शिवराज सिंह सीएस बनें थे। तब उनके तीन सीनियर अफसर थे। बीकेएस रे, पी राघवन और बीके कपूर। सरकार ने तीनों को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखाते हुए राजस्व बोर्ड, माध्यमिक शिक्षा मंडल आदि में भेज दिया था। दूसरा अवसर 2012 में आया जब सुनील कुमार सीएस बनें। पी जाय उम्मेन और नारायण सिंह उनके सीनियर थे। उम्मेन को बिजली बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था और नारायण को माध्यमिक शिक्षा मंडल में भेजा गया।

फंस जाएंगे कई आईपीएस

सरकार ने आउट ऑॅफ टर्न प्रमोशन में व्यापक गड़बड़ियों की जांच के लिए पुलिस मुख्यालय के बड़े अफसरों की कमेटी बना दी है। कमेटी अगर दबाकर जांच कर दें, तो कई आईपीएस भी फंस जाएंगे। दरअसल, पीएचक्यू में प्रमोशन के लिए एक कमेटी होती है। डीजीपी के बाद दूसरे नम्बर के सीनियर अफसर इस कमेटी के चेयरमैन होते हैं। और, एडीजी प्रशासन, खुफिया चीफ, एडीजी सीआईडी समेत कई आईपीएस मेम्बर। कमेटी आउट ऑफ टर्न प्रमोशन की सिफारिश करने से पहिले सभी दस्तावेजों की जांच करती है। पूर्णतः संतुष्ट हो जाने के बाद ही अनुमोदन के लिए फाइल डीजीपी के पास भेजी जाती है। डीजीपी इस पर चीड़िया बिठाने का काम करते हैं। हालांकि, इसमें कई ऐसे प्रकरण होंगे, जिसमें धांधली होने के बाद भी कोई साक्ष़्य नहीं मिलेगा। मसलन, खुफिया या एसआईबी के अफसरों से यह नहीं पूछा जा सकता कि फलां ने कौन सा ऐसा काम किया है, जिससे उसे आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया जाए। एडीजी इंटेलिजेंस या एसआईबी जो बोल दें, उसे मानना ही पड़ेगा। फिर भी, सीनियर आईपीएस की इससे मुश्किलें जरूर बढ़ गई है। क्योंकि, पूर्व डीएसपी, पूर्व विधायक के बेटे को बिना किसी प्रॉसिजर के इन्हीं अफसरों ने सीधे हेड कांस्टेबल बना दिया।

तू डाल-डाल, मैं….

लहर गिनकर पैसा कमाने वाला…..किस्सा तो सबने सुना होगा। पुलिस महकमे में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है। भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद जिलों में संगठित वसूली के पर्याय बन चुके क्राइम ब्रांचों को भंग करवा दिया था। लेकिन, सूबे के एसपी भी कम पहुंचे हुए थोड़े ही हैं….आधा दर्जन से अधिक पुलिस अधीक्ष़्ाकों ने क्राइम ब्रांच की जगह सायबर सेल और विशेष अनुसंधान सेल की आड़़ में वसूली चालू करवा दी। डीजीपी डीएम अवस्थी ने इस पर तीखी नाराजगी जताते हुए सभी पुलिस अधीक्षकों को लेटर लिखकर तत्काल सायबर सेल और विशेष अनुसंधान सेल भंग करने का कहा है। हालांकि, डीजीपी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। वसूली सेल बंद हो जाएगा तो कोई एसपी बनने के लिए चिरौरी क्यों करेगा। थानों से तो कभी-कभार आता है, मेन काम तो वसूली सेल ही करता है। यही वजह है कि इस सेल में पोस्टिंग पाने के लिए भी जैक लगता है। जिले के छंटे हुए खटराल कांस्टेबल और इंस्पेक्टर इसी सेल में आपको मिलेंगे। ये अपने काम में इतनी निपुणता हासिल कर लिए होते हैं कि कप्तान कोई भी आए, इनकी कुर्सी कायम रहती है। बहरहाल, अब देखना दिलचस्प होगा, डीजीपी के इस तेवर के बाद एसपी अब और कौन से रास्ते निकालते हैं।

प्रमोशन में ब्रेकर?

पीसीसीएफ के दो पदों के लिए 3 अगस्त को मंत्रालय में डीपीसी होने जा रही है। इसके लिए चार आईएफएस दावेदार हैं। सबसे उपर हैं, अतुल शुक्ला। फिर, राजेश गोवर्द्धन, आरबीपी सिनहा और संजय शुक्ला। इनमें से एक का सर्विस रिकार्ड तो कुछ ज्यादा ही गडबड़ है। मध्यप्रदेश के समय डीएफओ रहते विभागीय जांच हुई थी। लेकिन, छत्तीसगढ़ बनने के बाद उन्होंने फाइल ही गायब करवा दी। छत्तीसगढ़ में भी उन्होंने कम गुल नहीं खिलाए। सीमेंट कंपनियों की 16 करोड़ की लेनदारी माफ कर दी। पिछले सरकार की बातें अलग थी। इसमें तो लोग अफसर की कुंडली लेकर तैयार बैठे हैं कि प्रमोशन हो कि मय दस्तावेज के साथ ईओडब्लू को शिकायत करें।

रिटायरमेंट

आईएएस आलोक अवस्थी 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। जनसंपर्क विभाग के अधिकारी रहे आलोक एलायड कोटे से 2008 में आईएएस बने थे। वे जांजगीर और कोरिया के कलेक्टर रहे। आलोक फिलहाल खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड के एमडी हैं।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. किस नगर निगम कमिश्नर के ढिले-ढाले परफारमेंस से सरकार खुश नहीं है?
2. सिकरेट्री और डीआईजी समेत पांच आईएएस और आईपीएस पर थाने में मुकदमा दर्ज हो गया, इसके पीछे किसकी चूक मानी जानी चाहिए?

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