रविवार, 7 जुलाई 2019

सिंहदेव को चुनौती?


7 जुलाई 2019
टीएस सिंहदेव के सामने से पहिले मुख्यमंत्री की कुर्सी खिसक गई अब अमरजीत भगत के मंत्री बनने से अपने ही घर में उन्हें अपनी सल्तनत बरकरार रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। यह बात छिपी नहीं है कि सिंहदेव के विरोध के चलते ही अमरजीत पहली सूची में मंत्री नहीं बन पाए थे। ना ही उन्हें पीसीसी की कमान मिल पाई। छह महीने का वक्त उनका यूं ही निकल गया। हाल ही में दिल्ली में सिंहदेव की राहुल गांधी से मुलाकात हुई। और, इसके बाद अमरजीत को मंत्री बनाने का ऐलान हो गया। बेशक सिंहदेव ने बेमन से अमरजीत को मंत्री बनाने के लिए हरी झंडी दी होगी। लेकिन, मंत्री बनते ही अमरजीत के तेवर से लोगों को दीवारों पर लिक्खी इबारत समझ में आ गई….वे सरगुजा पैलेस के प्रभाव में नहीं आने वाले……वे अब अपनी पैठ मजबूत करेंगे। मंत्री बनने के बाद अमरजीत जब पहिली बार अंबिकापुर पहुंचे तो रेलवे स्टेशन पर स्वागत-सत्कार में आए लोग और बैनर-पोस्टर से समझ में आ गया कि सरगुजा की सियासत में आगे क्या होने वाला है। बैनरों से सिंहदेव गायब थे। एकाध में किसी ने उनकी फोटो लगाई भी तो इतनी छोटी कि पूछिए मत! स्वागत करने जोगी कांग्रेस के लोग भी बड़ी संख्या में रेलवे स्टेशन पहुंचे। इनमें कुछ ऐसे भी थे, जो विधानसभा में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इसको लेकर पार्टी में काफी बवाल हुआ। जिला कांग्रेस कमिटी के कार्यक्रम में अमरजीत की जब बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि स्वागत को लेकर पार्टी में ढेरों बातें हो रही है….मगर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि जो सामने आएगा, उसे लाभ मिलेगा। इशारा साफ था कि आप हमारे साथ आइये, वरना चूक जाएंगे। सरगुजा पैलेस से जुड़े अधिकांश लोग ही जिला कांग्रेस कमेटी में हैं। उन्हें अपने साथ बुलाकर अमरजीत आखिर पैलेस को ही तो चुनौती दे रहे हैं।

कलेक्टरों को बड़ा झटका

डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड के चेयरमैन से बेदखल करके भूपेश सरकार ने कलेक्टरों को 440 वॉट का झटका दे दिया है। सरकार ने डीएमएम के रुल में बदलाव करके प्रभारी मंत्री को इसका चेयरमैन बनाया है। कलेक्टर अब सचिव होंगे। इसमें लोकल विधायकों को भी शामिल कर दिया गया है। याने कलेक्टरों की मोनोपल्ली सरकार ने खतम कर दिया है। पिछली सरकार में कलेक्टर ही इस कमेटी के सर्वेसर्वा थे। कमेटी में एक भी विधायक नहीं होते थे। कलेक्टर चेयरमैन होते थे। ग्राम पंचायतों के तीन प्रतिनिधि को छोड़कर सारे जिले के अधिकारी होते थे। ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों के एक-दो काम डीएमएफ से काम करके उन्हें आब्लाइज कर लिया जाता था। इसके बाद जहां कहेंं वे अपना अगूंठा लगा देते थे। यही वजह है, कुछ कलेक्टरों ने डीएमएफ का जमकर दुरूपयोग किया। कलेक्टरों का आफिस, बंगला, गाड़ी-घोड़ा से लेकर सप्लाई, निर्माण कायों में करोड़ों रुपयों के वारे-न्यारे किए गए। हालांकि, दंतेवाड़ा में तत्कालीन कलेक्टर ओपी चौधरी ने डीएमएफ से कुछ अच्छे काम किए। डीएमएफ के जरिये पिछली सरकार में कलेक्टर मंत्रियों से अधिक पावरफुल हो गए थे। मंत्रियों को कुछ लाख के काम की फाइल फायनेंस में जाती थी। लेकिन, डीएमएफ में कलेक्टरों को इतना पावर मिला था कि कई-कई करोड़ के काम खुद ही सेंक्शन कर दिए। कांग्रेस को यह अखरता था। लिहाजा, सरकार में आते ही सीएम भूपेश बघेल ने पहिली मीटिंग में डीएमएफ पर आंखें तरेर दी थीं। और, अब कलेक्टरों की मनमानी भी खतम कर दी।

रुतबे के लिए 50 लाख

ढाई साल पहले तक नक्सल जिलों के एसपी को सिक्रेट सर्विस मनी के रूप में एक से डेढ़ लाख रुपए मिलते थे। पिछली सरकार ने अलग से पांच-पांच लाख रुपए का और प्रावधान कर दिया। बस्तर में सात जिले हैं। कवर्धा और राजनांगांव भी नक्सल जिले में शामिल हैं। इन दोनों को मिलाकर नौ एसपी। और एक बस्तर आईजी। दसों के खाते में हर महीने पांच-पांच लाख रुपए पहुंच जाता है। ये ऐसे पैसे हैं, जिसका न आडिट होता न कोई हिसाब। मुखबिरों पर खर्च कर दिए तो ठीक, जेब में रख लिए तो भी कोई पूछेगा नहीं। ऐसे में, बस्तर में पोस्ट होने वाला अफसर अब दुखी नहीं होता। दो साल रह लिए तो समझ लीजिए खोखा का इंतजाम हो गया। हालांकि, एक साफ-सुथरी छबि के एसपी ने शेयर किया, इतना पैसा आदमी कहां खर्च करेगा….जाहिर है, इससे ईमान खराब होगा। ये राशि खामोख्वाह क्यों बढाई गई, इसकी वजह हम आपको बताते हैं। एक पुराने होम सिकरेट्री नक्सल मामले में पैठ बढ़ाना चाहते थे, ताकि दिल्ली में नम्बर बढ़ाया जाए। लेकिन, तब कि नक्सल ऑपरेशन संभालने वाले सीनियर आईपीएस सिकरेट्री साब को फटकने नहीं देते थे। इसका रास्ता निकालने के लिए सिकरेट्री ने पृथक से पांच-पांच लाख एसएस मनी का प्रावधान कर दिया। इसके बाद नक्सल जिलों के कप्तान सचिव की लगे जय जयकार करने। यानि, रुतबा बढ़ाने के नाम पर सरकारी खजाने से हर महीने पचास लाख रुपए भेंट चढ़ जा रहा।

सरकार की नजर

नई सरकार की पुलिस महकमे के एसएस मनी यानि सिक्रेट सर्विस मनी पर भी नजर है। 2005 में मात्र 45 हजार एसएस मनी था। लेकिन, नक्सली के नाम पर साल-दर-साल बढ़ते हुए यह साढ़े नौ करोड़ पर पहुंच गया है। सरकार को शिकायत मिली है कि एसएस मनी को बिना डिमांड के ही किसी के इशारे पर एसएसी मनी बढ़ता गया। एसआईबी को पहले पिछले साल तक दस लाख रुपए हर महीने मिलता था। एसआईबी प्रमुख के बिना डिमांड के ही इसे बढाकर बारह लाख कर दिया गया। नक्सल प्रभावित जिलों को छोड़ दें तो दीगर डिस्ट्रिक्ट को आज भी एसएस मनी के नाम पर 15 से 20 हजार रुपए मिलते हैं। एसपी आफिस के चाय-नाश्ते पर ही यह खर्च हो जाता है। मुखबिर के लिए इसमें अब कहां बचेगा। एक पुराने डीजी ने साहित्यिक आयोजनों पर इस राशि का भरपूर इस्तेमाल किया। जीएडी ने एसीबी और ईओडब्लू के लिए भी 40-40 लाख रुपए फिक्स कर दिया है। बहरहाल, एसएस मनी की फिजूलखर्ची सरकार की नोटिस में आ गई है। अफसरों का कहना है, अब इसकी समीक्षा की जाएगी कि आखिर इतनी राशि की वास्तव में जरूरत है क्या?

पोस्टिंग की अटकलें

पुलिस महकमे से एक अहम सर्जरी की खबरें आ रही हैं। डीजी गिरधारी नायक के जेल, होमगार्ड एवं नक्सल इंटेलिजेंस से एक जुलाई को रिटायर होने के बाद वैसे भी पुलिस में एक लिस्ट तो निकलनी ही थी। फिलहाल, पोस्टिंग को लेकर जो अटकलें चल रही हैं, उसमें जेल और होमगार्ड के लिए खुफिया चीफ संजय पिल्ले का नाम चर्चा में है। पुलिस महकमे में डीजीपी के बाद कोई प्रतिष्ठापूर्ण पद समझा जाता है तो वह जेल और होमगार्ड ही है। इसमें वासुदेव दुबे से लेकर राजीव माथुर, संतकुमार पासवान, जैसे अफसर डीजी जेल और होमगार्ड रह चुके हैं। खबरों के अनुसार संजय अगर डीजी जेल बनें तो एडीजी ईओडब्लू जीपी सिंह उनकी जगह ले सकते हैं। याने जीपी हो जाएंगे नए खुफिया चीफ। ईओडब्लू में बीके सिंह पहले से डीजी है। छोटे से सेटअप वाले ईओडब्लू में डीजी के बाद एडीजी रखने का कोई लॉजिक दिखता भी नहीं। गिरधारी नायक के पास एक अहम चार्ज नक्सल इंटेलिजेंस यानी एसआईबी था। डीजी आरके विज को प्लानिंग एन प्रोविजनिंग के साथ ही एसआईबी सौंपा जा सकता है। हालांकि, एक चर्चा तो ये भी है कि बस्तर आईजी विवेकानंद को बुलाकर किसी एडीजी को बस्तर रेंज की कमान सौंपी जाए। दुर्ग रेंज में पहिले से एडीजी हिमांशु गुप्ता पोस्टेड हैं। हो सकता है, पांच रेंज मे से दो में सरकार एडीजी पोस्ट कर दे। बहरहाल, पता चला है कि इन नामों में से कुछ पर उपर में सहमति की स्थिति नहीं है। इसी वजह से लिस्ट अटक जा रही है।

हालत नाजुक

नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद केंद्र के अफसरों की हालत पूछिए मत….क्या गुजर रही है उन पर। असल में, चुनाव से पहिले ही पीएम ने सचिवों से सरकार वापिस आने पर सौ दिन का कार्ययोजना मांग लिया था। तब अफसरों को यकीं नहीं था कि सरकार लौटेगी ही। इसलिए, कई कठिन योजनाओं को भी लिखकर दे दिया, जो बेहद कठिन टास्क था। अब शपथ लेने के बाद मोदी ने सभी सचिवों को लाइन में खड़ा कर दिया है….सौ दिन में पूरा करके दिखाओ। अब सिकरेट्री से लेकर ज्वाइंट सिकरेट्री, डायरेक्टर तक सुबह से रात तक दौड़े पड़े हैं। 100 दिन में रिजल्ट नहीं आया तो बचने का कोई चांस नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1भाजपा में किस नेता के बिना पद के हर मंच पर मौजूद रहने से बेचैनी है?
2. जिस तरह के आईएएस को कमिश्नर बनाया जाता है, उससे नहीं लगता कि कमिश्नर सिस्टम बंद कर देना चाहिए?

1 टिप्पणी:

  1. जी सर कमिश्नर सिस्टम बंद हो , पुलिस के लिये कमिश्नरेट सिस्टम चालू हो |

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