शनिवार, 19 अक्तूबर 2019

आईएएस और अपराध

20 अक्टूबर 2019
सूबे के दो आईएएस अफसरों की मुश्किलें बढ़ सकती है। सरकार की नोटिस में इनके खिलाफ गंभीर टाईप के फीडबैक आएं हैं। घटना अपराधिक है। तब एक कलेक्टर थे और दूसरा एसडीएम। एसडीएम फिलहाल एक बड़े जिला पंचायत के सीईओ बन गए हैं। मौत की मिस्ट्री दबाने में पुलिस की भूमिका भी कटघरे में है। हालांकि, तब आईएएस लॉबी का भारी प्रेशर था। तभी ऐसे एसडीओपी और थानेदारों से केस का खात्मा कराया गया, जिन्हें एकाध महीने में रिटायर होना था। सरकार बदलने के बाद अब मिस्ट्री के शिकार घरवाले अब सक्रिय हुए हैं। घरवालों ने उस समय भी तीन पेज में सिलसिलेवार शिकायत की थी। लेकिन, उसे कूड़ेदान में डाल दिया गया। फिलहाल, उपर में शिकायत हुई है कि योजनाबद्ध तरीके से उस घटना को अंजाम दिया गया। केस डायरी अभी भी चुगली कर रही है कि जिला अस्पताल में डेथ घोषित होने के बाद मृतक को सिर्फ इसलिए प्रायवेट अस्पताल में ले जाया गया ताकि, लगे के बचाने का हरसंभव प्रयास किया गया। पुलिस ने फिर से फाईल ओपन कर दी तो निश्चित तौर पर दो आईएएस अफसरों की शामत आ जाएगी।
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अफसर, नेता और दिवाली

अफसरों और नेताओं को प्रभाव आंकने के लिए किसी पंडित से ग्रह-नक्षत्र और कुंडली दिखाने की जरूरत नहीं! दिवाली काफी होती है। दरअसल, दिवाली को अफसरों एवं नेताओं को हैसियत का अहसास कराने वाला पर्व भी माना जाता है। सिर्फ राजधानी में मोटे तौर पर दिवाली में करीब 15 करोड़ के गिफ्ट बंटते हैं। इसमें महंगे गिफ्ट बॉक्स से लेकर सोने के सिक्के और वजनी लिफाफे शामिल हैं। असल में, साल में एक मौका मिलता है….ठेकेदार हो या सप्लायर, व्यवसायिक रिश्तों को रिनीवल करने से कोई चूकना नहीं चाहता। इसमें चतुर टाईप के लोग अफसरों की घरवालियों के पसंद, नापासंद का पूरा ध्यान रखते हैं। कुछ को लिफाफा पसंद होता तो कुछ गोल्ड को देखकर खिल उठती हैं। दिवाली गिफ्ट के लिए कुछ मापदंड भी हैं। सिर्फ बड़ा पद नही चलेगा। पद के साथ लक्ष्मीवाला विभाग भी होना चाहिए। मंत्रालय के तीन-चार विभाग ऐसे हैं कि वहां लिफाफा और गोल्ड क्वाइन की पूछिए मत! कारोबारियों की लाइन लगी रहती है। सेकेंड में आते हैं निर्माण विभाग वाले। लूप लाईन वालों की दिवाली जरूर कुछ फीकी होती है। हालांकि, होशियार ठेकेदार, सप्लायर, बिल्डर लूप लाईन वालों पर भी इंवेस्ट करना बिजनेस ट्रिक मानते हैं। उनको अच्छे से पता होता है, डायरेक्ट आईएएस, आईपीएस है…कुछ दिन बाद फिर ठीक पोजिशन में आएगा ही। हां, जिन अधिकारियों का रिटायरमेंट नजदीक होता है, उनके यहां संख्या कम हो जाती है। कुल मिलाकर गिफ्टों की संख्या और लिफाफों की संख्या प्रभाव का पैमाना होता है।

चारों लोकल, चारों ब्राम्हण

यह एक संयोग है, और बेहद दिलचस्प। फॉरेस्ट में टॉप लेवल पर चार आईएफएस हैं। टॉप लेवल याने पीसीसीएफ, पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ, लघुवनोपज विकास संघ और वन विकास निगम। राकेश चतुर्वेदी पीसीसीएफ हैं। अतुल शुक्ला पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ, संजय शुक्ला लघुवनोपज संघ प्रमुख और राजेश गोवर्द्धन वन विकास निगम के एमडी। चारों माटी पुत्र हैं। कास्ट ब्राम्हण। सभी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के पास आउट। इसमें एक संयोग ये भी….वन विभाग के एडिशनल चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल भी रायपुर इंजीनियरिंग कालेज वाले हैं। है न इंटरेस्टिंग!

आईपीएस की लिस्ट

चित्रकोट उपचुनाव होने के बाद किसी भी दिन आईपीएस की लिस्ट निकल सकती है। हालांकि, लिस्ट पहले से तैयार हैं। चित्रकोट के लिए आचार संहिता लागू हो जाने के कारण सरकार इसे स्थगित कर दिया था। लिस्ट में आधा दर्जन एसपी और आईजी शामिल बताए जाते हैं। एक-दो बड़े जिलों के नाम अभी और जुड़ने वाले हैं। चूकि बस्तर आईजी विवेकानंद के कारण लिस्ट अटक गई। ढाई साल से बस्तर में काम कर रहे विवेकानंद को सरकार वहां से निकालना चाहती है। उन्हें दुर्ग का आईजी बनाने के संकेत हैं। अगर विवेकानंद दुर्ग आईजी बनें तो एडीजी हिमांशु गुप्ता रायपुर लौटेंगे। फिर, दो-एक एडीजी की भी नई पोस्टिंग हो सकती है। अब देखना है, सरकार दिवाली बाद लिस्ट निकालती है या फिर पहले। पहले निकालने पर कुछ अफसरों की दिवाली जरूर खराब होगी।

हार्ड लक

डीआईजी एएम जुरी की किस्मत केसी अग्रवाल की तरह साथ नहीं दिया। जुरी को 2017 में भारत सरकार ने फोर्सली रिटायर किया था। वे कैट से अपने पक्ष में जब तक आर्डर लाए, तब रिटायरमेंट में दो दिन बचा था। उसमें भी एक दिन छुट्टी पड़ गई। आखिरी दिन जुरी पुलिस मुख्यालय में काफी प्रयास किए कि ज्वाईनिंग हो जाए। लेकिन, अफसरों ने उन्हें ज्वाईन कराने से हाथ खड़ा कर दिया। चूकि, जुरी को भारत सरकार ने रिटायर किया था, लिहाजा ज्वाईनिंग के लिए वहां से हरी झंडी जरूरी थी। भारत सरकार का प्रॉसेज काफी लंबा होता है। सो, जुरी की आखिरी दि नही सही वर्दी पहनने की आस अधूरी रह गई। हालांकि, उनके साथ डीआईजी केसी अग्रवाल भी फोर्सली रिटायर किए गए थे। मगर एक तो कैट से काफी पहले उन्हें राहत मिल गई। और, उनके रिटायरमेंट में समय भी था। लिहाजा, कैट के बाद जब उनकी ज्वाईनिंग नहीं हुई तो वे हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट के आदेश के बाद भारत सरकार ने क्लियरेंस दिया। तब जाकर वे न केवल ज्वाईन किए बल्कि आज सरगुजा के आईजी हैं।

अमिताभ को जल्दी नहीं

नए चीफ सिकरेट्री का रिटायरमेंट डेट जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, दावेदारों के रेस में और नाम जुड़ते जा रहे हैं। कुछ लोग अब एसीएस अमिताभ जैन को भी सीएस के रेस में बता रहे हैं। जबकि, अमिताभ के लिए जल्दी करने के कोई कारण नहीं है। उनके पास पर्याप्त समय है। पूरे छह साल। उन्हें तो ऐसे भी अवसर मिलेगा। और, लंबा मिलेगा। फिर, क्यों दौड़ में शामिल होकर वे अपनी एनर्जी नष्ट करें।

डिप्रेशन में आईएएस

एक युवा आईएएस बेहद डिप्रेशन में है। हालांकि, इसमें अफसर के कलेक्टरों की भूमिका भी कम नहीं रही है। प्रोबेशन या एसडीएम रहने के दौरान अधिकांश कलेक्टरों ने इस अफसर का यूज किया। किसी ने बेजा कब्जा तोड़वाने में तो किसी ने स्टाफ का चमकवाने में। आईएएस जिस जिले में एडिशनल कलेक्टर हैं, वहां के कलेक्टर का ये हाल है कि उन्होंने उन्हें कोई विभाग नहीं दिया है। वजह, काम नहीं करता। अब ये कोई जवाब हुआ। यूपीएससी सलेक्ट होकर आईएएस बना अफसर भला काम कैसे नहीं करेगा। कुछ तो उसकी परेशानी होगी। आईएएस बिरादरी में आजकल एक बुरी बात यह हो गई है कि करप्शन के इश्यू में एक-दूसरे को बचाने के लिए तो सब एक हो जाते हैं मगर व्यक्तिगत मामलों में कोई रुचि नहीं। एमके राउत जब सिकरेट्री पंचायत थे, तब उन्होंने अपने इस अफसर को पटरी पर लाने का काफी प्रयास किया था। अफसर की स्थिति सुधरने लगी थी, तब तक वे रिटायर हो गए। कायदे से यंग आईएएस अगर किसी दिक्कत में है तो उसे मोटिवेट करने का काम संबंधित जिले के कलेक्टर का होता है। पहले ऐसा होता भी था। लेकिन, अब आईएएस लोग ही माटी पुत्र अफसर का मजाक उड़ा रहे हैं। ये भी एक विडंबना है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या सीनियर आईएएस एन बैजेंद्र कुमार एनएमडीसी डेपुटेशन से छत्तीसगढ़ लौटने वाले हैं?
2. किस कलेक्टर पर छुट्टी की तलवार लटक रही है?

रविवार, 13 अक्तूबर 2019

माशूका का हाथ, हाथ में….

13 अक्टूबर 2019
भाजपा के भीतर आजकल पार्टी की स्थिति पर खूब तंज कसे जा रहे हैं। बीजेपी के लोग मान रहे हैं कि पार्टी की हालत दिलीप कुमार के मशहूर डॉयलाग….माशूका का हाथ, हाथ में आने पर हथियार छूट जाता है, सरीखी हो गई है। बात सही भी है। 15 साल सत्ता में रहने के बाद अब नेताओं में संघर्ष करने का माद्दा रहा नहीं। पार्टी सिरे से गायब है। दंतेवाड़ा में हारे ही चित्रकोट में भी पराजय तय दिख रहा है। इसी से समझा जा सकता है, बस्तर में चुनाव है और वहां से ताल्लुकात रखने वाले पार्टी के एक शीर्ष नेता सीएम हाउस का चक्कर लगा रहे हैं। जाहिर है, चित्रकोट इलेक्शन से पहिले ही भाजपा ने हथियार डाल दिया है। नगरीय निकाय में भी बीजेपी की स्थिति खास नहीं रहने वाली। वजह? कार्यकर्ताओं में उत्साह नदारत है। और, उनमें जोश जगाने के लिए पार्टी के पास कोई कार्यक्रम है और न ही कोई चेहरा।

तरकश का असर

15 सितंबर के तरकश स्तंभ में एक खबर थी, नौकरशाहों ने रायपुर, नया रायपुर के आवासों को बैंकों को ऑब्लाइज कर मोटी राशि में किराये में उठा दिया। हाउसिंग बोर्ड ने इस पर करीब दर्जन भर ब्यूरोक्रेट्स को नोटिस थमा दी है….हाउसिंग बोर्ड ने लिखा है कि आपने आवासीय उपयोग के लिए मकान खरीदा तो उसे कामर्सियल यूज के लिए कैसे दे दिया। अब अफसर परेशान हैं। और, हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर भीम सिंह भी। आखिर, लोग उन्हीं को फोन करेंगे न।

वीवीआईपी अफसर

छत्तीसगढ़ में 2012 बैच के आईएफएस अफसर हैं प्रणय मिश्रा। प्रणय रायबरेली से हैं। धरमजयगढ़ के डीएफओ रहते उन्होंने बलरामपुर का डीएफओ बनने के लिए ट्राय किया था। लेकिन, वन विभाग ने उन्हें हल्के में ले लिया। और, पिछले महीने बलरामपुर की बजाए उन्हें राजनांदगांव का डीएफओ बनाकर भेज दिया। मगर, प्रणय ठहरे रायबरेली वाले। रायबरेली का मतलब आप समझ सकते हैं। कहीं से फोन आया और अफसरों के हाथ-पांव फुल गए। मंत्रालय से तत्काल एक आर्डर निकाला गया। और, प्रणय 20 दिन से भी कम समय में राजनांदगांव से बलरामपुर के डीएफओ बन गए। बलरामपुपर याने यूपी का बॉर्डर। ठीक भी है। प्रणय का रायबरेली कनेक्शन बना रहेगा।

ये अपना छत्तीसगढ़िया…

अब छत्तीसढ़िया आईएफएस मनीष कश्यप की बात कर लें। मनीष बिलासपुर शहर में समाहित हो गए मंगला गांव के रहने वाले हैं। मंगला बोलें तो कुर्मी, काछी बहुल गांव। मनीष इन्हीं कुर्मी परिवार से आते हैं। खड़गपुर आईआईटी से सिविल में बीई किए हैं। कोरिया डीएफओ के रूप में वे जबर्दस्त काम कर रहे थे। लेकिन, पिछले महीने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने अचानक उन्हें उठाकर बिलासपुर के वन विस्तार मंडल में डंप कर दिया। एक ओर सरकार लोकल को अहमियत देने की बात कर रही, वहीं दूसरी ओर आईआईटीयन माटी पुत्र के साथ ऐसी नाइंसाफी?

भोपाल लॉबी 

राज्य बनने के 19 साल बाद मंत्रालय में भोपाल लॉबी का असर कुछ कम हुआ है। लेकिन, विधानसभा में अभी भी मजबूत पोजिशन में है। इसकी बानगी है एडिशनल सिकरेट्री शिवकुमार राय का एक्सटेंशन। शिवकुमार के रिटायरमेंट के पहिले से स्पीकर चरणदास महंत के सिकरेट्री दिनेश शर्मा का इस पद पर प्रमोशन तय माना जा रहा था। दिनेश स्पीकर के सिकरेट्री हैं। लेकिन, विधानसभा में उनका रैंक डिप्टी सिकरेट्री का है। शिवकुमार रिटायर होते तो दिनेश एडिशनल सिकरेट्री बन जाते। लेकिन, शिवकुमार को एक अक्टूबर से एक साल के लिए एक्सटेंशन मिल गया। और, दिनेश प्रमोशन की बाट जोहते रह गए। जांजगीर के रहने वाले दिनेश अब बिलासपुर के बाशिंदा हो गए हैं। याने विशुद्ध छत्तीसगढ़ियां। उपर से स्पीकर के सिकरेट्री। उसके बाद भी ये हालत!

एक बैच, एक विभाग

2006 बैच के भूवनेश यादव हेल्थ डिपार्टमेंट में पहिले से स्पेशल सिकरेट्री थे और अब उन्हीं के बैच के सीआर प्रसन्ना को स्पेशल सिकरेट्री हेल्थ बनाया गया है। याने एक बैच, एक विभाग। आमतौर पर ऐसा होता नहीं कि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में एक बैच के आईएएस एक ही विभाग में रहे। इसमें मजेदार यह भी हुआ है कि प्रसन्ना मानव के स्वास्थ्य का जिम्मा संभालेंगे और पशुओं के भी। उनके पास डायरेक्टर वेटनरी का तो चार्ज है ही, स्वस्थ्य विभाग एडिशनल मिल गया है। मंत्रालय में इस पर चुटकी ली जा रही…वेटनरी की दवाई कहीं गफलत में स्वास्थ्य विभाग को सप्लाई हो गया तो क्या होगा।

सिंहदेव का निशाना

भोपाल के नेशनल शूटिंग एकेडमी में आज सूबे के वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव का अचूक निशाना देखकर लोग हतप्रभ रह गए। उन्होंने बंदूक से पोजिशन ली और टारगेट पर फायर कर दिया। इस पर लोग मजे लेने से नहीं चूके…. सियासत में उनका निशाना कैसे चूक गया। जाहिर है, छत्तीसगढ़ का सीएम डिसाइड होने के दौरान एक नाम टीएस का भी था। लेकिन, सियासी निशानेबाजी में भूपेश बघेल बाजी मार ले गए।

कलेक्टर का खेद

कांकेर कलेक्टर केएल चौहान ने पीडब्लूडी के ईई एपीसोड में खेद व्यक्त कर बड़ा दिल दिखाया। वरना, मामला बिगड़ता जा रहा था। कलेक्टर ने सीएम के कार्यक्रम में तैयारियों में लापरवाही के लिए ईई को थाने में बिठा दिया। ऐसा काम सूबे में तेज-तर्रार कलेक्टरी के लिए याद किए जाने वाले कलेक्टरों ने भी कभी नहीं किया। चलिये, ये अच्छा है। कलेक्टर ने मामला खतम कर दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिटायर आईएएस हेमंत पहारे को पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग किसकी सिफारिश पर मिली?
2. 31 अक्टूबर को रिटायर होने जा रहे एसीएस केडीपी राव को क्या पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिलेगी?

रविवार, 6 अक्तूबर 2019

ड्रॉप होंगे तीन मंत्री?

देवती कर्मा के विधायक निर्वाचित होने के बाद सियासी गलियारों में उन्हें मंत्री बनाने की अटकलें बड़़ी तेज हैं। इसके पीछे ठोस तर्क भी दिए जा रहे….बस्तर का मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व बेहद कम है। सिर्फ एक। कवासी लकमा उद्योग और आबकारी विभाग संभाल रहे हैं। वहीं, सरगुजा से तीन मंत्री हैं। सबसे सीनियर टीएस सिंहदेव। फिर प्रेमसाय सिंह और नए मंत्री अमरजीत भगत। जाहिर है, सरकार मंत्रिमंडल में बस्तर का प्रतिनिधित्व बढ़ाना चाहेगी। और, सियासी दृष्टि से देवती से अच्छा कोई नाम नहीं हो सकता। बस्तर शेर कहे जाने वाले दिवंगत नेता महेंद्र कर्मा की पत्नी हैं। ट्राईबल भी और महिला भी। कहने के लिए हो जाएगा, भूपेश सरकार ने राज्य बनने के बाद पहली बार दो महिलाओं को मंत्रिमंडल में जगह दी। लेकिन, इसके लिए सरकार को मंत्रिमंडल में एक सर्जरी करनी होगी। क्योंकि, कोटा फुल है। 12 ही मंत्री बन सकते हैं। एक सीट खाली थी, उस पर अमरजीत को मौका मिल गया। वैसे, नगरीय निकाय चुनाव के बाद माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल में एक सर्जरी होगी। इसमें दो-से-तीन मंत्री ड्रॉप हो सकते हैं। तीनों के परफारमेंस पुअर है। एक विकेट सरगुजा से गिरेगा। दो और नामों की चर्चा है।
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चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर को छह महीने का एक्सटेंशन देने के लिए सरकार ने केंद्र को रिमाइंडर भेजा है। उसमें बताया गया है कि वर्तमान सीएस को एक्सटेंशन देना क्यों जरूरी है। लिहाजा, अब सीके खेतान और आरपी मंडल के साथ ही सुनील कुजूर का नाम भी सीएस की दौड़ में शामिल हो गया है। हालांकि, पहले यह माना जा रहा था कि भारत सरकार आसानी से एक्सटेंशन देती नहीं। लेकिन, सरकार के रिमाइंडर से यह जाहिर हुआ है कि कुजूर को लेकर सरकार गंभीर है। बहरहाल, रिमाइंडर पर भारत सरकार क्या रुख अपनाती है यह आखिरी समय में ही तय होगा। जानकारों का कहना है, ऐसे केस में भारत सरकार लास्ट वीक या लास्ट दिन भी कई बार फैसले करती है। याने 31 अक्टूबर को कुजूर रिटायर होने वाले हैं तो उससे एक-दो दिन पहले सरकार का फैसला आएगा। यदि एक्सटेंशन मिलेगा तो लेटर आ जाएगा। और, नहीं तो 30 अक्टूबर तक वेट कर राज्य सरकार नए सीएस का ऐलान कर देगी। उससे पहिले सूबे में अटकलों का दौर जारी है। खासकर, ब्यूरोक्रेसी में इसको लेकर खूब गुणा-भाग किए जा रहे हैं। हालांकि, कैलकुलेशन का कोई मतलब नहीं। चीफ सिकरेट्री और डीजीपी वही बनता है, जिसके माथे पर लिखा होता है। वरना, कई आईएएस, आईपीएस बिना इस पद को इनज्वॉय किए बिदा नहीं हो गए होते। सुनील कुजूर भी भला कभी सोचे होंगे कि वे चीफ सिकरेट्री बन सकते हैं। और, एक्सटेंशन देने के लिए सरकार प्रयास करेगी। वे तो बेचारे अदद एक बढ़ियां विभाग के मोहताज थे। इसी तरह रिटायर डीजीपी एएन उपध्याय भी हैं। उनके जैसा दुनियादारी से दूर रहने वाले अफसर को सरकार डीजीपी बनाएगी, उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन, उपध्याय ने पोस्टिंग का रिकार्ड ही बना दिया। पूरे पौने पांच साल डीजीपी रहे।

मंत्री के लेटरहेड पर वसूली

स्कूल शिक्षा विभाग के ट्रांसफर में गोलमाल को लेकर सरकार ने मंत्री के ओएसडी और विशेष सहायक की छुट्टी कर दी। लेकिन, इसके बाद भी विभाग में नित नए कारनामे सामने आ रहे हैं। बताते हैं, स्कूल शिक्षा डायरेक्ट्रेट के स्थापना शाखा के एक अधिकारी ने डीईओ, बीईओ के ट्रांसफर के लिए दूसरे विभाग के एक मंत्री का लेटरहेड जुगाड़ लिया। और, जिसने पैसा दिया, उसके लिए उसी लेटरहेड पर मंत्री की तरफ से खुद ही ट्रांसफर की अनुशंसा कर आर्डर निकाल दिया। ताकि, कोई पूछ तो बता दें कि फलां मंत्रीजी ने रिकमांड किया था। स्कूल शिक्षा इससे बेखबर रहे। अफसर के खेल का भंडाफोड़ तब हुआ, जब लिस्ट में एक ही समुदाय के 70 परसेंट से अधिक लोग डीईओ, बीईओ बन गए। सरकार को इसकी जानकारी मिल गई है। जल्द ही स्कूल शिक्षा में तीसरा विकेट गिर जाए, तो आश्चर्य नहीं।

विवेकानंद का रिकार्ड

लांग कुमेर के बाद विवेकानंद बस्तर के पहिले आईजी होंगे, जिन्होंने वहां ढाई साल का लंबा कार्यकाल पूरा कर लिया है और अभी भी पिच पर जमे हुए हैं। वे ऐसे समय में बिलासपुर से बस्तर गए थे, जब बिलासपुर में आईजी बने उनका तीन महीना भी नहीं हुआ था। एसआरपी कल्लूरी को बस्तर से हटाने के बाद सरकार किसी उपयुक्त चेहरे की तलाश कर रही थी। उस समय तत्कालीन डीजीपी एएन उपध्याय ने सरकार को सुझाया कि विवेकानंद बस्तर के लिए बेहतर होंगे। इस बेहतर के फेर में विवेकानंद फंस गए। वरना, बस्तर गए अधिकांश आईजी साल, डेढ़ साल में जोर-जुगाड़ लगाकर रायपुर लौट आए। सिर्फ लांग कुमेर ही ऐसे आईपीएस थे, जो लंबे समय तक बस्तर में रहे। लेकिन, वे वैसा खुद चाह रहे थे। उन्हें हिन्दी का प्राब्लम था फिर वहां उन्होंने ऐसा कुछ जमा लिया था कि डीआईजी, आईजी और एडीजी बनने तक कुछ दिन वे बस्तर रेंज में रहे।

अमिताभ और सोनमणि


अमिताभ जैन जब दिल्ली डेपुटेशन से लौटे थे तो उस समय शेखर दत्त सूबे के गवर्नर थे। राज्य में भाजपा की सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस की। शेखर दत्त ने मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह से अमिताभ जैन को सिकरेट्री के रूप में मांगा था। और, यह दूसरी बार हुआ कि राज्यपाल अनसुईया उईके ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को फोन कर सोनमणि बोरा सचिव के रूप में मांगा। और, मुख्यमंत्री ने इसमें तनिक भी देरी नहीं लगाई। सोनमणि का आदेश राजभवन के लिए जारी हो गया।

22 दिन का कार्यकाल

सोनमणि बोरा के लिए अखरने वाली बात यह रही कि सबसे कम दिन तक किसी विभाग में सिकरेट्री रहने का रिकार्ड उनके नाम दर्ज हो गया। सिर्फ 22 दिन। इस 22 दिन में एक बहुत बड़ा काम उन्होंने यह किया कि हाईकोर्ट में रिट दायर कर सहायक प्राध्यापकों की भरती पर लगी रोक उन्होंने हटवा दी। संस्कृति सचिव के रूप में ट्राईबल डांस को लेकर भी वे बड़ा तेजी से काम कर रहे थे। ये दोनों उनके हाथ से निकल गए। हालांकि, पहले भी राजभवन के साथ ही हायर एजुकेशन या किसी और विभाग का चार्ज अफसरों के पास हमेशा रहा है। वैसे, छत्तीसगढ़ राजभवन में सुनील कुजूर, आईसीपी केसरी, शैलेष पाठक, अमिताभ जैन सिकरेट्री रहे हैं। आरआर के रूप में सोनमणि का नाम भी इसमें जुड़ गया।

दुआ कीजिए!

हायर एजुकेशन में चार महीने में चार सिकरेट्री चेंज हो गए। 31 मई को सुरेंद्र जायसवाल रिटायर हुए थे। रेणु पिल्ले को उनकी जगह सिकरेट्री बनाया गया था। 9 सितंबर को उन्हें हटाकर सोनमणि बोरा को हायर एजुकेशन का दायित्व सौंपा गया। एक अक्टूबर को वे भी बिदा हो गए। अलरमेल मंगई डी अब उच्च शिक्षा की नई सिकरेट्री बनी हैं। इस विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को कुछ अनुष्ठान वगैरह करना चाहिए। ताकि, मंगई कुछ दिन हायर एजुकेशन में बनी रहें।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रायपुर के लोकल हनी के गिरफ्त में फंसे कितने आईएएस और आईएफएस के नाम इंटेलिजेंस ने सरकार को दिए हैं?
2. डिप्रेशन के शिकार किस आईएएस को उपचार कराने में मदद की बजाए आईएएस अफसर ही उनका मजाक उड़ा रहे हैं?