सोमवार, 29 जुलाई 2019

सीएस को एक्सटेंशन?

28 जुलाई 2019
चीफ सिकरेट्री सुनील कुजूर को छह महीने का एक्सटेंशन देने का प्रस्ताव राज्य सरकार ने केंद्र को भेज दिया है। जाहिर है, आईएएस का मामला है, इसलिए प्रधानमंत्री इस पर निर्णय लेंगे। निर्णय क्या होगा, इस पर अटकलें कुजूर के पक्ष में नहीं है। प्रधानमंत्री कांग्रेस शासित राज्य के सीएस को भला एक्सटेंशन क्यों देंगे। राज्य में ऐसी कोई स्थिति भी उत्पन्न नहीं हो गई है, जिससे सीएस का कार्यकाल बढ़ाना पड़े। मगर यह सवाल तो उठता ही है कि जोर-जुगाड़ से दूर रहने वाले कुजूर ने एक्सटेंटशन की फाइल आखिर दिल्ली क्यों भिजवाई? जीएडी का हेड सीएस होता है। क्लियर है, बिना उनकी सहमति के प्रस्ताव भारत सरकार को गया नहीं होगा। कुजूर के पक्ष में एक संभावना निश्चित रूप से दिख रही कि छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम डेपुटेशन पर जम्मू-कश्मीर के चीफ सिकरेट्री हैं। भारत सरकार ने वहां राष्ट्रपति शासन छह महीने के लिए और बढ़ा दिया है। यानि जनवरी, फरवरी तक वहां विधानसभा चुनाव होंगे। सुब्रमणियम इसके बाद ही छत्तीसगढ़ लौटेंगे। कुजूर के एक्सटेंशन न होने से सुब्रमणियम को नुकसान होगा। क्योंकि, उन्हीं के 87 बैच में सीके खेतान और आरपी मंडल सीएस के तगड़े दावेदार हैं। एक्सटेंशन न होने की स्थिति में कुजूर 31 अक्टूबर को रिटायर हो जाएंगे। उनके बाद खेतान और मंडल में से किसी एक को ब्यूरोक्रेसी की शीर्ष कुर्सी मिलेगी। ऐसे में, सुब्रमणियम का रास्ता ब्लॉक हो जाएगा। लिहाजा, वे चाहेंगे ही कि कुजूर को एक्सटेंशन मिल जाए। ताकि, उनके लिए रास्ता बना रहे। दस बरस तक मनमोहन सिंह के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय में काम कर चुके सुब्रमणियम कुजूर को मदद करने में सक्षम भी हैं। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के बाद भारत सरकार में तीसरे नम्बर के ताकतवर नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइजर अजीत डोभाल से उनकी नजदीकियां भी बताई जाती हैं। डोभाल चाहेंगे तो छत्तीसगढ़ में किस पार्टी की सरकार है, यह गौण हो जाएगा। कुजूर की फिर अगले साल अप्रैल तक कुर्सी पक्की हो जाएगी। लेकिन, ये सिर्फ अटकलें और संभावनाएं हैं। होगा वही, जिसका मुकद्दर प्रबल होगा। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ वहीं बनता है, जिसके माथे पर लिखा होता है। वरना, कई तेज-तर्रार माने जाने वाले अफसर बिना सीएस, डीजीपी बने रिटायर थोड़े ही हो जाते।

मंत्रालय से बाहर नहीं

राज्य बनने के बाद पहला मौका आएगा, जब एक ही बैच के तीन आईएएस सीएस के दावेदार होंगे। बैच है 87 और अफसर हैं सीके खेतान, आरपी मंडल और बीवीआर सुब्रमण्यिम। अभी तक अफसर कम थे, इसलिए एक बैच में अनेक दावेदार वाली स्थिति निर्मित नहीं होती थी। 86 बैच में जरूर डा0 आलोक शुक्ला और सुनील कुजूर थे। लेकिन, नान मामले के चलते शुक्ला रेस शुरू होने से पहिले ही बाहर हो गए और कुजूर के लिए खुला मैदान मिल गया। लेकिन, 87 बैच से तीनों में से कोई भी सीएस बनें, दो को मंत्रालय से बाहर जाना पड़ेगा। क्योंकि, सेम बैच के बॉस के अंदर अफसर कैसे काम करेंगे। हालांकि, यह कोई नियम नहीं है। यह सरकार और प्रभावित होने वाले अफसरों पर निर्भर करता है। चाहें तो वे अपने ही बैच के सीएस के साथ मंत्रालय में रहकर काम कर सकते हैं। मध्यप्रदेश में एक बार ऐसा हुआ था, जब निर्मला बूच मुख्य सचिव बनी थीं और उन्हीं के बैच के डीजी भावे मंत्रालय में एसीएस रहे। लिहाजा, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि एक के सीएस बनने पर दो को मंत्रालय से बाहर जाना ही पड़ेगा।

सिर्फ दो मौके

छत्तीसगढ़ बनने के बाद सिर्फ दो मौके ऐसे आएं हैं, जब जूनियर आईएएस को चीफ सिकरेट्री बनाने के बाद सीनियर को मंत्रालय से बाहर किया गया। पहली बार जब शिवराज सिंह सीएस बनें थे। तब उनके तीन सीनियर अफसर थे। बीकेएस रे, पी राघवन और बीके कपूर। सरकार ने तीनों को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखाते हुए राजस्व बोर्ड, माध्यमिक शिक्षा मंडल आदि में भेज दिया था। दूसरा अवसर 2012 में आया जब सुनील कुमार सीएस बनें। पी जाय उम्मेन और नारायण सिंह उनके सीनियर थे। उम्मेन को बिजली बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था और नारायण को माध्यमिक शिक्षा मंडल में भेजा गया।

फंस जाएंगे कई आईपीएस

सरकार ने आउट ऑॅफ टर्न प्रमोशन में व्यापक गड़बड़ियों की जांच के लिए पुलिस मुख्यालय के बड़े अफसरों की कमेटी बना दी है। कमेटी अगर दबाकर जांच कर दें, तो कई आईपीएस भी फंस जाएंगे। दरअसल, पीएचक्यू में प्रमोशन के लिए एक कमेटी होती है। डीजीपी के बाद दूसरे नम्बर के सीनियर अफसर इस कमेटी के चेयरमैन होते हैं। और, एडीजी प्रशासन, खुफिया चीफ, एडीजी सीआईडी समेत कई आईपीएस मेम्बर। कमेटी आउट ऑफ टर्न प्रमोशन की सिफारिश करने से पहिले सभी दस्तावेजों की जांच करती है। पूर्णतः संतुष्ट हो जाने के बाद ही अनुमोदन के लिए फाइल डीजीपी के पास भेजी जाती है। डीजीपी इस पर चीड़िया बिठाने का काम करते हैं। हालांकि, इसमें कई ऐसे प्रकरण होंगे, जिसमें धांधली होने के बाद भी कोई साक्ष़्य नहीं मिलेगा। मसलन, खुफिया या एसआईबी के अफसरों से यह नहीं पूछा जा सकता कि फलां ने कौन सा ऐसा काम किया है, जिससे उसे आउट ऑफ टर्न प्रमोशन दिया जाए। एडीजी इंटेलिजेंस या एसआईबी जो बोल दें, उसे मानना ही पड़ेगा। फिर भी, सीनियर आईपीएस की इससे मुश्किलें जरूर बढ़ गई है। क्योंकि, पूर्व डीएसपी, पूर्व विधायक के बेटे को बिना किसी प्रॉसिजर के इन्हीं अफसरों ने सीधे हेड कांस्टेबल बना दिया।

तू डाल-डाल, मैं….

लहर गिनकर पैसा कमाने वाला…..किस्सा तो सबने सुना होगा। पुलिस महकमे में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है। भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद जिलों में संगठित वसूली के पर्याय बन चुके क्राइम ब्रांचों को भंग करवा दिया था। लेकिन, सूबे के एसपी भी कम पहुंचे हुए थोड़े ही हैं….आधा दर्जन से अधिक पुलिस अधीक्ष़्ाकों ने क्राइम ब्रांच की जगह सायबर सेल और विशेष अनुसंधान सेल की आड़़ में वसूली चालू करवा दी। डीजीपी डीएम अवस्थी ने इस पर तीखी नाराजगी जताते हुए सभी पुलिस अधीक्षकों को लेटर लिखकर तत्काल सायबर सेल और विशेष अनुसंधान सेल भंग करने का कहा है। हालांकि, डीजीपी को ऐसा नहीं करना चाहिए था। वसूली सेल बंद हो जाएगा तो कोई एसपी बनने के लिए चिरौरी क्यों करेगा। थानों से तो कभी-कभार आता है, मेन काम तो वसूली सेल ही करता है। यही वजह है कि इस सेल में पोस्टिंग पाने के लिए भी जैक लगता है। जिले के छंटे हुए खटराल कांस्टेबल और इंस्पेक्टर इसी सेल में आपको मिलेंगे। ये अपने काम में इतनी निपुणता हासिल कर लिए होते हैं कि कप्तान कोई भी आए, इनकी कुर्सी कायम रहती है। बहरहाल, अब देखना दिलचस्प होगा, डीजीपी के इस तेवर के बाद एसपी अब और कौन से रास्ते निकालते हैं।

प्रमोशन में ब्रेकर?

पीसीसीएफ के दो पदों के लिए 3 अगस्त को मंत्रालय में डीपीसी होने जा रही है। इसके लिए चार आईएफएस दावेदार हैं। सबसे उपर हैं, अतुल शुक्ला। फिर, राजेश गोवर्द्धन, आरबीपी सिनहा और संजय शुक्ला। इनमें से एक का सर्विस रिकार्ड तो कुछ ज्यादा ही गडबड़ है। मध्यप्रदेश के समय डीएफओ रहते विभागीय जांच हुई थी। लेकिन, छत्तीसगढ़ बनने के बाद उन्होंने फाइल ही गायब करवा दी। छत्तीसगढ़ में भी उन्होंने कम गुल नहीं खिलाए। सीमेंट कंपनियों की 16 करोड़ की लेनदारी माफ कर दी। पिछले सरकार की बातें अलग थी। इसमें तो लोग अफसर की कुंडली लेकर तैयार बैठे हैं कि प्रमोशन हो कि मय दस्तावेज के साथ ईओडब्लू को शिकायत करें।

रिटायरमेंट

आईएएस आलोक अवस्थी 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। जनसंपर्क विभाग के अधिकारी रहे आलोक एलायड कोटे से 2008 में आईएएस बने थे। वे जांजगीर और कोरिया के कलेक्टर रहे। आलोक फिलहाल खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड के एमडी हैं।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. किस नगर निगम कमिश्नर के ढिले-ढाले परफारमेंस से सरकार खुश नहीं है?
2. सिकरेट्री और डीआईजी समेत पांच आईएएस और आईपीएस पर थाने में मुकदमा दर्ज हो गया, इसके पीछे किसकी चूक मानी जानी चाहिए?

शनिवार, 13 जुलाई 2019

लक्ष्मीपुत्र अफसर भारी?

14 जुलाई 2019
सरकार ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर दीपक अग्रवाल को बलौदाबाजार और अजय अग्रवाल को जांजगीर जिला पंचायत का सीईओ अपाइंट किया था। दोनों ने आदेश निकलने के 20 दिन बाद भी ज्वाईन नहीं किया। सीईओ की गैर मौजूदगी में जब दोनों जिला पंचायतों का काम ठप होने लगा तो वहां के जनप्रतिनिधियों ने कोहराम मचाया। कलेक्टरों ने भी सरकार से दरख्वास्त की। इसके बाद 12 जुलाई को दोनों अफसरों का आदेश केंसिल करके नए सीईओ की पोस्टिंग कर दी गई। याने दीपक और अजय अग्रवाल अब रायपुर में ही रहेंगे। इसका मतलब आप ये मत निकालियेगा कि इस सरकार में भी लक्ष्मीपुत्र अफसर भारी हैं। हो सकता है, उनकी कुछ मजबूरियां होंगी।

आयोग में पोस्टिंग

कम महत्व के निगम, मंडलों में पॉलीटिकल पोस्टिंग भले ही नगरीय चुनाव के बाद दिसंबर तक हो। लेकिन, खबर है बड़े आयोगों में विधानसभा के मानसून सत्र के बाद सरकार नियुक्तियां कर सकती है। इनमें हाउसिंग बोर्ड, माईनिंग कारपोरेशन, ब्रेवरेज कारपोरेशन, कर्मकार मंडल जैसे निगम संभावित हैं। सरकार में बैठे लोगों का मानना है, मंत्रियों के पास इन निगमों का एडिशनल चार्ज होने से तरीके से वर्किंग नहीं हो पा रही है। मंत्रियों पर लोड भी बढ़ जा रहा है। इसलिए, इनमें अध्यक्ष समेत सदस्यों की नियुक्तियां अब अपरिहार्य हो गई है। ये अलग बात है कि कांग्र्रेस नेताओं का भी इसके लिए प्रेशर है। कांग्रेस नेताओं में सबसे अधिक डिमांड हाउसिंग बोर्ड और कर्मकार मंडल का है। हाउसिंग बोर्ड को जगदलपुर में एनएमडीसी का कालोनी बनाने के लिए 1200 करोड़ का काम मिला है तो कर्मकार मंडल का बजट 300 करोड़ तक पहुंच जाता है। श्रमिकों को दाल-भात से लेकर सायकिल, सिलाई मशीन आदि कर्मकार मंडल ही बांटता है। कर्मकार मंडल में सरकार लेबर फील्ड में काम करने वाले किसी नेता को बिठा सकती है।

अफसरों की वापसी

आईएएस मुकेश बंसल को सरकार ने आदिवासी विभाग का डायरेक्टर अपाइंट किया है। वहीं, नीरज बंसोड़ को डायरेक्टर हेल्थ। ये दोनों अफसर पिछली सरकार में भी अच्छे पोजिशन में रहे। मुकेश बंसल तो स्टडी लीव में जाने से पहिले डिप्टी सिकरेट्री टू सीएम थे। वहां से लौटे तो उन्हें स्पेशल सिकरेट्री एग्रीकल्चर की पोस्टिंग दी गई तो लगा मुकेश भी साइडलाइन हो गए। लेकिन, सरकार ने हफ्ते भर के भीतर ट्राईबल का जिम्मा उन्हें सौंप दिया। ठीक भी है। अगर रिजल्ट चाहिए तो योग्य अफसरों को इम्पोर्टेंस देना ही होगा। क्योंकि, काबिल अफसर, जिसके साथ भी रहेंगे, अच्छा ही करेंगे। आखिर, रिजल्ट देने वालों को तो हर आदमी पसंद करता है। श्रम विभाग में सुबोध सिंह ने श्रमिकों को रिटायरमेंट एज 60 करवाकर छत्तीसगढ़ को नेशनल लेवल पर सुर्खियो में ला दिया। केंद्र समेत किसी भी राज्य ने अब तक श्रमिकों का रिटायरमेंट एज नहीं बढ़ाया है। सिद्धार्थ कोमल परदेशी ने भी महिला बाल विकास की कमान संभाल ली है। संकेत मिल रहे हैं, जल्द ही कुछ और अफसरों की मेन स्ट्रीम में वापसी होगी।

7 महीने में 5 डायरेक्टर

छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल सूबा है। 30 फीसदी से अधिक आदिवासी यहां रहते हैं। लेकिन, उनकी देखरेख के लिए बनाया गया आदिवासी विभाग में कुछ ऐसा हो रहा है कि वहां कोई आईएएस टिक नहीं पा रहा है। आलम यह है कि पिछले छह महीने में पांच डायरेक्टर बदल गए। पिछले साल 9 सितंबर को जी चुरेंद्र को हटाकर पीएस एलमा को डायरेक्टर बनाया गया था। एलमा की दिसंबर एंड में छुट्टी हो गई। उनकी जगह कॉमरेड अफसर अलेक्स पॉल मेनन ने ली। अलेक्स जून में लीव पर अमेरिका गए और इधर उनका विकेट गिर गया। अलेक्स के बाद नीरज बंसोड़ डायरेक्टर बनें। नीरज ने विभाग को समझना शुरू किया था कि महीने भर में उन्हें हटाकर मुकेश बंसल को बिठा दिया गया। यह तब हो रहा है, जब ब्यूरोक्रेसी के मुखिया सुनील कुजूर भी आदिवासी है। कुजूर साब को विभाग में कुछ पूजा-पाठ कराना चाहिए, ताकि मुकेश बंसल अब कुछ दिन टिक जाएं।

2008 बैच का खाता

2008 बैच की आईएएस शिखा राजपूत को सरकार ने बेमेतरा का कलेक्टर बनाया है। हालांकि, बेमेतरा किसी आईएएस के लिए पहला जिला होता है। शिखा राजपूत कोंडागांव की कलेक्टर रह चुकी हैं। उनके हिसाब से तो बेमेतरा काफी छोटा हो गया। लेकिन, चलिए 2008 बैच का खाता तो खुला। अभी सूबे में 2006 से लेकर 2012 बैच के आईएएस कलेक्टर हैं। इनमें से सिर्फ 2008 बैच ऐसा था, जिसमें से कोई कलेक्टर नहीं था। शिखा के अलावे इस बैच में नीरज बंसोड़, राजेश राणा और भीम सिंह इस बैच में हैं। ये सभी राजधानी लौट चुके हैं। अलबत्ता, 2007 बैच में भी यशवंत कुमार मोर्चा संभाले हुए हैं। छह में से वे ही रायगढ़ के कलेक्टर हैं।

जेल में एडीजी?

गिरधारी नायक के 29 जून को रिटायर होने के बाद से डीजी जेल और होमगार्ड का पद खाली है। नायक के पास नक्सल ऑपरेशन भी था। चूकि, सूबे में डीजी दो ही हैं और दोनों बड़े विभाग संभाल रहे हैं। संजय पिल्ले के पास इंटेलिजेंस और आरके विज के पास प्लानिंग एन प्रोविजनिंग है। संजय को डीजी जेल बनाने की चर्चा है। लेकिन, अब ये भी सुनने में आ रहा है कि सरकार किसी एडीजी को भी जेल में पोस्ट कर दे, तो हैरानी नहीं। वैसे भी, जेल का कैडर पोस्ट एडीजी का ही है। पिछली सरकार में डीजी लेवल के अफसरों को पोस्ट करने से उसे डीजी लेवल का मान लिया गया।

फिर चुके

कई बार स्थिति ऐसी निर्मित हो जाती है कि सरकार के नजदीक होने के बाद भी इच्छा के अनुरुप बात नहीं बन पाती। बात कर रहे हैं, जनसंपर्क आयुक्त तारण सिनहा की। आईएएस अवार्ड होने के बाद पिछले साल उन्हें ट्रेनिंग के लिए मसूरी जाना था। आईएएस बनने के बाद मसूरी में ट्रेनिंग को लेकर स्वाभाविक तौर पर उनके मन में रोमांच तो रहा ही होगा। लेकिन, पिछले साल चीफ सिकरेट्री अजय सिंह ने उन्हें ट्रेनिंग में जाने की इजाजत नहीं दी। कहा गया चुनाव से पहिले डायरेक्टर पंचायत को ट्रेनिंग में जाने की छुट्टी नहीं दी जा सकती….अगले साल कर लेना। तारण के अधिकांश बैचमेट पिछले साल ट्रेनिंग करके लौट आए। जो बचे थे, इस बार मसूरी रवाना हो गए हैं। मगर तारण इस बार इसलिए नहीं जा पाए क्योंकि, जनसंपर्क आयुक्त जैसी संवदेनशील जिम्मेदारी उनके पास है। याने अब उन्हें अगले साल के लिए वेट करना होगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के किस कलेक्टर के बारे में कहा जाता है, जहां पोस्टिंग होती है वहां चिल्हर की कमी हो जाती है?
2. प्रिंसिपल सिकरेट्री लेवल के किस आईएएस ने मंत्री से पोस्टिंग की सिफारिश करवाकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली?

रविवार, 7 जुलाई 2019

सिंहदेव को चुनौती?


7 जुलाई 2019
टीएस सिंहदेव के सामने से पहिले मुख्यमंत्री की कुर्सी खिसक गई अब अमरजीत भगत के मंत्री बनने से अपने ही घर में उन्हें अपनी सल्तनत बरकरार रखने की चुनौती खड़ी हो गई है। यह बात छिपी नहीं है कि सिंहदेव के विरोध के चलते ही अमरजीत पहली सूची में मंत्री नहीं बन पाए थे। ना ही उन्हें पीसीसी की कमान मिल पाई। छह महीने का वक्त उनका यूं ही निकल गया। हाल ही में दिल्ली में सिंहदेव की राहुल गांधी से मुलाकात हुई। और, इसके बाद अमरजीत को मंत्री बनाने का ऐलान हो गया। बेशक सिंहदेव ने बेमन से अमरजीत को मंत्री बनाने के लिए हरी झंडी दी होगी। लेकिन, मंत्री बनते ही अमरजीत के तेवर से लोगों को दीवारों पर लिक्खी इबारत समझ में आ गई….वे सरगुजा पैलेस के प्रभाव में नहीं आने वाले……वे अब अपनी पैठ मजबूत करेंगे। मंत्री बनने के बाद अमरजीत जब पहिली बार अंबिकापुर पहुंचे तो रेलवे स्टेशन पर स्वागत-सत्कार में आए लोग और बैनर-पोस्टर से समझ में आ गया कि सरगुजा की सियासत में आगे क्या होने वाला है। बैनरों से सिंहदेव गायब थे। एकाध में किसी ने उनकी फोटो लगाई भी तो इतनी छोटी कि पूछिए मत! स्वागत करने जोगी कांग्रेस के लोग भी बड़ी संख्या में रेलवे स्टेशन पहुंचे। इनमें कुछ ऐसे भी थे, जो विधानसभा में कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इसको लेकर पार्टी में काफी बवाल हुआ। जिला कांग्रेस कमिटी के कार्यक्रम में अमरजीत की जब बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि स्वागत को लेकर पार्टी में ढेरों बातें हो रही है….मगर मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि जो सामने आएगा, उसे लाभ मिलेगा। इशारा साफ था कि आप हमारे साथ आइये, वरना चूक जाएंगे। सरगुजा पैलेस से जुड़े अधिकांश लोग ही जिला कांग्रेस कमेटी में हैं। उन्हें अपने साथ बुलाकर अमरजीत आखिर पैलेस को ही तो चुनौती दे रहे हैं।

कलेक्टरों को बड़ा झटका

डिस्ट्रिक्ट माईनिंग फंड के चेयरमैन से बेदखल करके भूपेश सरकार ने कलेक्टरों को 440 वॉट का झटका दे दिया है। सरकार ने डीएमएम के रुल में बदलाव करके प्रभारी मंत्री को इसका चेयरमैन बनाया है। कलेक्टर अब सचिव होंगे। इसमें लोकल विधायकों को भी शामिल कर दिया गया है। याने कलेक्टरों की मोनोपल्ली सरकार ने खतम कर दिया है। पिछली सरकार में कलेक्टर ही इस कमेटी के सर्वेसर्वा थे। कमेटी में एक भी विधायक नहीं होते थे। कलेक्टर चेयरमैन होते थे। ग्राम पंचायतों के तीन प्रतिनिधि को छोड़कर सारे जिले के अधिकारी होते थे। ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों के एक-दो काम डीएमएफ से काम करके उन्हें आब्लाइज कर लिया जाता था। इसके बाद जहां कहेंं वे अपना अगूंठा लगा देते थे। यही वजह है, कुछ कलेक्टरों ने डीएमएफ का जमकर दुरूपयोग किया। कलेक्टरों का आफिस, बंगला, गाड़ी-घोड़ा से लेकर सप्लाई, निर्माण कायों में करोड़ों रुपयों के वारे-न्यारे किए गए। हालांकि, दंतेवाड़ा में तत्कालीन कलेक्टर ओपी चौधरी ने डीएमएफ से कुछ अच्छे काम किए। डीएमएफ के जरिये पिछली सरकार में कलेक्टर मंत्रियों से अधिक पावरफुल हो गए थे। मंत्रियों को कुछ लाख के काम की फाइल फायनेंस में जाती थी। लेकिन, डीएमएफ में कलेक्टरों को इतना पावर मिला था कि कई-कई करोड़ के काम खुद ही सेंक्शन कर दिए। कांग्रेस को यह अखरता था। लिहाजा, सरकार में आते ही सीएम भूपेश बघेल ने पहिली मीटिंग में डीएमएफ पर आंखें तरेर दी थीं। और, अब कलेक्टरों की मनमानी भी खतम कर दी।

रुतबे के लिए 50 लाख

ढाई साल पहले तक नक्सल जिलों के एसपी को सिक्रेट सर्विस मनी के रूप में एक से डेढ़ लाख रुपए मिलते थे। पिछली सरकार ने अलग से पांच-पांच लाख रुपए का और प्रावधान कर दिया। बस्तर में सात जिले हैं। कवर्धा और राजनांगांव भी नक्सल जिले में शामिल हैं। इन दोनों को मिलाकर नौ एसपी। और एक बस्तर आईजी। दसों के खाते में हर महीने पांच-पांच लाख रुपए पहुंच जाता है। ये ऐसे पैसे हैं, जिसका न आडिट होता न कोई हिसाब। मुखबिरों पर खर्च कर दिए तो ठीक, जेब में रख लिए तो भी कोई पूछेगा नहीं। ऐसे में, बस्तर में पोस्ट होने वाला अफसर अब दुखी नहीं होता। दो साल रह लिए तो समझ लीजिए खोखा का इंतजाम हो गया। हालांकि, एक साफ-सुथरी छबि के एसपी ने शेयर किया, इतना पैसा आदमी कहां खर्च करेगा….जाहिर है, इससे ईमान खराब होगा। ये राशि खामोख्वाह क्यों बढाई गई, इसकी वजह हम आपको बताते हैं। एक पुराने होम सिकरेट्री नक्सल मामले में पैठ बढ़ाना चाहते थे, ताकि दिल्ली में नम्बर बढ़ाया जाए। लेकिन, तब कि नक्सल ऑपरेशन संभालने वाले सीनियर आईपीएस सिकरेट्री साब को फटकने नहीं देते थे। इसका रास्ता निकालने के लिए सिकरेट्री ने पृथक से पांच-पांच लाख एसएस मनी का प्रावधान कर दिया। इसके बाद नक्सल जिलों के कप्तान सचिव की लगे जय जयकार करने। यानि, रुतबा बढ़ाने के नाम पर सरकारी खजाने से हर महीने पचास लाख रुपए भेंट चढ़ जा रहा।

सरकार की नजर

नई सरकार की पुलिस महकमे के एसएस मनी यानि सिक्रेट सर्विस मनी पर भी नजर है। 2005 में मात्र 45 हजार एसएस मनी था। लेकिन, नक्सली के नाम पर साल-दर-साल बढ़ते हुए यह साढ़े नौ करोड़ पर पहुंच गया है। सरकार को शिकायत मिली है कि एसएस मनी को बिना डिमांड के ही किसी के इशारे पर एसएसी मनी बढ़ता गया। एसआईबी को पहले पिछले साल तक दस लाख रुपए हर महीने मिलता था। एसआईबी प्रमुख के बिना डिमांड के ही इसे बढाकर बारह लाख कर दिया गया। नक्सल प्रभावित जिलों को छोड़ दें तो दीगर डिस्ट्रिक्ट को आज भी एसएस मनी के नाम पर 15 से 20 हजार रुपए मिलते हैं। एसपी आफिस के चाय-नाश्ते पर ही यह खर्च हो जाता है। मुखबिर के लिए इसमें अब कहां बचेगा। एक पुराने डीजी ने साहित्यिक आयोजनों पर इस राशि का भरपूर इस्तेमाल किया। जीएडी ने एसीबी और ईओडब्लू के लिए भी 40-40 लाख रुपए फिक्स कर दिया है। बहरहाल, एसएस मनी की फिजूलखर्ची सरकार की नोटिस में आ गई है। अफसरों का कहना है, अब इसकी समीक्षा की जाएगी कि आखिर इतनी राशि की वास्तव में जरूरत है क्या?

पोस्टिंग की अटकलें

पुलिस महकमे से एक अहम सर्जरी की खबरें आ रही हैं। डीजी गिरधारी नायक के जेल, होमगार्ड एवं नक्सल इंटेलिजेंस से एक जुलाई को रिटायर होने के बाद वैसे भी पुलिस में एक लिस्ट तो निकलनी ही थी। फिलहाल, पोस्टिंग को लेकर जो अटकलें चल रही हैं, उसमें जेल और होमगार्ड के लिए खुफिया चीफ संजय पिल्ले का नाम चर्चा में है। पुलिस महकमे में डीजीपी के बाद कोई प्रतिष्ठापूर्ण पद समझा जाता है तो वह जेल और होमगार्ड ही है। इसमें वासुदेव दुबे से लेकर राजीव माथुर, संतकुमार पासवान, जैसे अफसर डीजी जेल और होमगार्ड रह चुके हैं। खबरों के अनुसार संजय अगर डीजी जेल बनें तो एडीजी ईओडब्लू जीपी सिंह उनकी जगह ले सकते हैं। याने जीपी हो जाएंगे नए खुफिया चीफ। ईओडब्लू में बीके सिंह पहले से डीजी है। छोटे से सेटअप वाले ईओडब्लू में डीजी के बाद एडीजी रखने का कोई लॉजिक दिखता भी नहीं। गिरधारी नायक के पास एक अहम चार्ज नक्सल इंटेलिजेंस यानी एसआईबी था। डीजी आरके विज को प्लानिंग एन प्रोविजनिंग के साथ ही एसआईबी सौंपा जा सकता है। हालांकि, एक चर्चा तो ये भी है कि बस्तर आईजी विवेकानंद को बुलाकर किसी एडीजी को बस्तर रेंज की कमान सौंपी जाए। दुर्ग रेंज में पहिले से एडीजी हिमांशु गुप्ता पोस्टेड हैं। हो सकता है, पांच रेंज मे से दो में सरकार एडीजी पोस्ट कर दे। बहरहाल, पता चला है कि इन नामों में से कुछ पर उपर में सहमति की स्थिति नहीं है। इसी वजह से लिस्ट अटक जा रही है।

हालत नाजुक

नरेंद्र मोदी के दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद केंद्र के अफसरों की हालत पूछिए मत….क्या गुजर रही है उन पर। असल में, चुनाव से पहिले ही पीएम ने सचिवों से सरकार वापिस आने पर सौ दिन का कार्ययोजना मांग लिया था। तब अफसरों को यकीं नहीं था कि सरकार लौटेगी ही। इसलिए, कई कठिन योजनाओं को भी लिखकर दे दिया, जो बेहद कठिन टास्क था। अब शपथ लेने के बाद मोदी ने सभी सचिवों को लाइन में खड़ा कर दिया है….सौ दिन में पूरा करके दिखाओ। अब सिकरेट्री से लेकर ज्वाइंट सिकरेट्री, डायरेक्टर तक सुबह से रात तक दौड़े पड़े हैं। 100 दिन में रिजल्ट नहीं आया तो बचने का कोई चांस नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

1भाजपा में किस नेता के बिना पद के हर मंच पर मौजूद रहने से बेचैनी है?
2. जिस तरह के आईएएस को कमिश्नर बनाया जाता है, उससे नहीं लगता कि कमिश्नर सिस्टम बंद कर देना चाहिए?

शनिवार, 6 जुलाई 2019

दो मंत्रियों की छुट्टी?

30 जून 2019
अमरजीत भगत के बारहवें मंत्री बनने से सत्यनारायण शर्मा और धनेंद्र साहू जैसे वरिष्ठ विधायकों को मायूस होने की जरूरत नहीं है। मंतरी बनने का रास्ता उनका ब्लॉक नहीं हुआ है। अंदर की खबर है, दो मंत्रियों के पारफारमेंस से सरकार खुश नहीं है। दोनों का विभागों पर बिल्कुल कंट्रोल नहीं है। यही वजह है कि पिछली सरकार में सक्रिय ठेकेदारों और सप्लायरों का दबदबा इनके विभागों में बढ़ता जा रहा है। इनमें एक ट्राईबल मंत्री हैं और दूसरे अनुसूचित जाति से। अनुसूचित जाति के मंत्री की छुट्टी होने पर सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू या फिर अमितेष शुक्ल को रायपुर कोटे से मौका मिल सकता है। अभी ब्राम्हण में सिर्फ एक मंत्री हैं। रविंद्र चौबे। उनका भी स्वास्थ्य कुछ दिन पहले खराब हुआ था। उधर, धनेंद्र साहू को मंत्री बनाने के सियासी मायने हैं। इससे साहू समाज की नाराजगी दूर होगी, वहीं ताम्रध्वज साहू का रुआब कम होगा। हालांकि, कांग्रेस के सूत्रों का कहना है, मंत्रिमंडल का पुनर्गठन लोकल चुनाव के बाद ही होगा। तब तक सरकार के लगभग एक बरस पूरे भी हो गए रहेंगे।

अमरजीत से बैलेंस

भूपेश बघेल सरकार में तीन आदिवासी विधायकों को मंत्री बनने का अवसर मिला था। बस्तर से कवासी लकमा, डौंडीलोहारा से अनिला भेड़िया और सरगुजा से प्रेमसाय सिंह टेकाम। ये तीनों गोंड समुदाय की नुमाइंदगी करते हैं। जबकि, छत्तीसगढ़ में उरांव आदिवासियों की संख्या भी कम नहीं हैं। अमरजीत भगत को शामिल करने से मंत्रिमंडल में अब उड़ाव आदिवासियों की भागीदारी हो गई है। उधर, आदिवासी मंत्रियों की संख्या भी अब चार हो गई है। हालांकि, भेड़िया को मंत्री बनाने से सरकार को डबल फायदा है। आदिवासी के साथ ही वे महिला वर्ग का भी प्रतिनिधित्व कर रही हैं।

मनिंदर की वापसी

आईएएस डा. मनिन्दर कौर द्विवेदी को सरकार ने प्रिंसिपल सिकरेट्री ग्रामोद्योग के साथ ही प्रिंसिपल सिकरेट्री कृषि बनाया है। उनके पास प्रमुख आवासीय आयुक्त छत्तीसगढ़ भवन का चार्ज यथावत रहेगा। उनकी पोस्टिंग से प्रतीत होता है वे अक्टूबर में रिटायर हो रहे एपीसी और एसीएस एग्रीकल्चर केडीपी राव की जगह लेंगी। क्योंकि, सरकार के पास एपीसी लायक कोई अफसर दिख भी नहीं रहा है। 95 बैच की आईएएस मनिंदर तेज-तर्राट अफसर हैं। डेपुटेशन से लौटने पर सरकार ने उन्हें दिल्ली में प्रमुख आवासीय आयुक्त बनाया था। उधर, साफ-सुथरी छबि के आईएएस सिद्धार्थ कोमल परदेशी की वापसी करते हुए सरकार ने महिला बाल विकास की जिम्मेदारी सौंपी है। परदेशी की पोस्टिंग से उन अफसरों को आस जगी है, जो काम में तेज हैं मगर पिछली सरकार से नजदीकियों के चलते अच्छी पोस्टिंग से वंचित हो गए हैं। वैसे, टूरिज्म में लंबे समय बाद किसी आईएएस की पोस्टिंग हुई है। भीम सिंह को एमडी बनाया गया है। वरना, आईएफएस एमडी ने तो छत्तीसगढ़ के टूरिज्म का कबाड़ा ही कर दिया। सरकार ने अविनाश चंपावत को इरीगेशन और धर्मस्व के साथ ही संस्कृति और टूरिज्म सिकरेट्री का कार्यभार सौंप दिया है। डा0 कमलप्रीत सिंह को अब सरकार ने फूड की पूरी जिम्मेदारी दे दी है। सिकरेट्री के साथ वे कमिश्नर सह संचालक फूड एन सिविल सप्लाई भी होंगे। उधर, आईएएस अनिल टुटेजा की वापसी हो गई है। लेकिन, डा0 आलोक शुक्ला पता नहीं कैसे छूट गए। जबकि, आलोक भी काबिल और रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। उनका अगले साल ही रिटायरमेंट है।

सतर्क हो जाएं

कांग्रेस ने राज्य में पहली बार दो तेज आदिवासी नेताओं को बड़ा मौका दिया है। मोहन मरकाम पीसीसी अध्यक्ष और अमरजीत भगत मंत्री बनाए गए हैं। मरकाम और भगत सामान्य आदिवासी नेता नहीं हैं। मरकाम को ज्योग्राफी में पीजी किए हैं। कुशल वक्ता होने के साथ ही विषय वस्तु पर उनकी गहरी पकड़ है। विधानसभा में भी उनका उत्कृष्ठ प्रदर्शन रहा है। अलबत्ता, बीजेपी ने भी एक बार विद्वान नेता नंदकुमार साय को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। लेकिन, सरकार बनने से पहिले ही उन्हें निबटा भी दिया। 2003 के विधानसभा चुनाव के समय साय तपकरा से विधायक थे। भाजपा ने उन्हें तत्कालीन सीएम अजीत जोगी के सामने मरवाही में उतार दिया था। अब जोगी के सामने साय को हारना ही था। इसके बाद भाजपा में कभी तेज नेताओं को महत्वपूर्ण पद नहीं मिला। अध्यक्ष भी शिवप्रताप सिंह, रामसेवक पैकरा और विष्णुदेव साय जैसे नेता बन पाएं। हालांकि, कांग्रेस में भी कमोवेश यही हुआ। मध्यप्रदेश के समय मरवाही से विधायक डा0 भंवर सिंह पोर्ते जब ताकतवर होने लगे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने 85 के विधानसभा चुनाव में उनकी टिकिट काट दी। अभी तक कांग्रेस और भाजपा सरकारों में नाम के मंत्री होते थे। लेकिन, अब न मोहन मरकाम वैसे हैं और न ही अमरजीत भगत। जाहिर है, ऐसे में सूबे में आदिवासी नेतृत्व मजबूत होगा। इससे कांग्रेस को ही नहीं बल्कि बीजेपी को भी तकलीफ जाएगी।

अब सबसे सीनियर

डीजी नक्सल, जेल एवं होमगार्ड गिरधारी नायक कल रविवार होने के कारण एक दिन पहिले ही 29 जून की शाम को रिटायर हो गए। 83 बैच के नायक छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईपीएस थे। उनसे दो साल जूनियर अमरनाथ उपध्याय अब प्रदेश के सबसे वरिष्ठ आईपीएस हो गए हैं। उपध्याय 85 बैच के आईपीएस हैं। उनसे एक साल जूनियर डीएम अवस्थी फिलहाल डीजीपी हैं। हालांकि, दो महीने बाद 31 अगस्त को डीएम सबसे सीनियर हो जाएंगे, जब उपध्याय रिटायर हो जाएंगे।

कठिन स्थिति

आज शाम रिटायर हुए डीजी गिरधारी नायक के पास नक्सल ऑपरेशंस के साथ जेल और होमगार्ड था। ये काफी महत्वपूर्ण विभाग हैं। जेल और होमगार्ड तो हमेशा डीजी रैंक के अफसर के पास रहा है। नायक के रिटायर होने के बाद सरकार के सामने कठिन स्थिति होगी कि नक्सल आपरेशंस और जेल का चार्ज किसे दिया जाए। नायक के बाद सरकार के पास डीजी लेवल के पांच अफसर हैं। एएन उपध्याय, बीके सिंह, संजय पिल्ले, आरके विज और मुकेश गुप्ता। उपध्याय पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के प्रमुख हैं और दो महीने बाद वे रिटायर हो जाएंगे। बीके सिंह ईओडब्लू और एसीबी के डीजी हैं। नवंबर में उनका भी रिटायरमेंट हैं। बचे पिल्ले, विज और गुप्ता। इनमें से मुकेश गुप्ता को अलग कर दें। पिल्ले के पास इंटेलिजेंस और विज के पास प्लानिंग एन प्रोविजनिंग है। सरकार के पास एडीजी भी नहीं हैं, जिन्हें डीजी से रिप्लेस किया जा सकें। अभी तीन एडीजी पदोन्नत हुए हैं, उनमें से जीपी सिंह पहले से ईओडब्लू, एसीबी तथा एसआरपी कल्लूरी ट्रांसपोर्ट में हैं। तीसरे हिमांशु गुप्ता दुर्ग रेंज के आईजी हैं। पीएचक्यू में दो एडीजी और हैं। अशोक जुनेजा और पवनदेव। जुनेजा के पास प्रशासन और छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स है। कुल मिलाकर सरकार को पुलिस महकमे में एक बड़ी सर्जरी करनी होगी तब जाकर मामला दुरुस्त हो पाएगा।

फाइव इन वन?

आईएफएस में शीर्ष लेवल पर डीपीसी नहीं हो पाने के कारण पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी पर लोड बढ़ता जा रहा है। वे वन विभाग के प्रमुख तो हैं ही, वाईल्डलाइफ और लघु वनोपज संघ के पीसीसीएफ का चार्ज भी उनके पास है। आज वन विकास निगम के पीसीसीएफ केसी यादव और हर्बल मेडिसिनल प्लांट बोर्ड प्रमुख एके द्विवदी भी रिटायर हो रहे हैं। सरकार के पास पीसीसीएफ हैं नहीं। उपर से याने दो विभाग और खाली हो जाएंगे। जाहिर है, राकेश के पास तीन चार्ज पहिले से है और दो और बढ़ जाएंगे। याने पीसीसीएफ के साथ ही पांच चार्ज हो जाएंगे। हालांकि, राकेश सरकार से कई बार आग्रह कर चुके हैं कि उनका वर्कलोड कम किया जाए। वाईल्डलाइफ और लघु वनोपज संघ के प्रमुख के लिए नोटशीट चली भी थी। लेकिन, उपर में जाकर वो भी कहीं अटक गई हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस के रूप में पुलिस महकमे में 36 बरस तक कार्य करने वाले गिरधारी नायक के लिए बिदाई समारोह का आयोजन क्यों नहीं किया गया?
2. क्या बोर्ड एवं निगमों में नियुक्ति स्थानीय चुनाव के बाद हो पाएंगे या उससे पहिले?