शनिवार, 28 दिसंबर 2013

तरकश, 29 दिसंबर

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अरबिंद और अमन

दिल्ली के सीएम अरबिंद केजरीवाल और छत्तीसगढ़ में प्रींसिपल सिकरेट्री टू सीएम अमन सिंह। दोनों के नाम सिर्फ अ से शुरू नहीं होते बल्कि और कई समानताएं हैं। दोनों भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। और बैच भी एक ही, 1995। दोनों के लिए 2013 कसौटी भरा रहा। आप नहीं जीतती तो कल्पना कीजिए, अरबिंद आजकहां होते और पालीटिशियन और ब्यूरोक्रेट्स उनके बारे में क्या बोल रहे होते। अमन के लिए भी स्थिति जुदा नहीं थी। एक ने भारतीय राजनीति में नया इतिहास लिखते हुए दिल्ली के सीएम बनें। तो दूसरे ने रमन सिंह की हैट्रिक बनवाने में कोई कसर नहीं उठा रखा। भाजपा अगर नहीं आती तो रमन सिंह नेता प्रतिपक्ष बन जाते। मगर जरा सोचिए, अमन सिंह कहां होते। बहरहाल, अमन ने अपना पूरा बेस्ट झोंक दिया। झलियामरी और जीरम घाटी कांड में जब सरकार डगमगाने लगी थी तब आक्रमक प्रचार अभियान के जरिये सरकार को फिर से पटरी पर लाने में कामयाब रहे। विकास यात्रा का दूसरा चरण जब चालू हुआ तो लगा ही नहीं कि जीरम घाटी जैसा भयानक हादसा हुआ है। मई के बाद अमन ने कभी छुट्टियां नहीं ली। दिन-रात लगे रहे। रात तीन बजे के पहले कभी सोए नहीं। सिर्फ व्यूह तैयार करते रहे। यही वजह थी कि एससी के 10 में से 9 सीटें भाजपा की झोली में आने जैसा अजूबा हो गया। और 2013 में जिस तरह अरबिंद पावरफुल शख्सियत बनें, उसी तरह अमन सूबे के पावरफुल ब्यूरोक्रेट्स। रमन सिंह ने हैट्रिक बनाने के बाद पहला आर्डर अमन का निकाला पीएस का। सिंगल आर्डर। मंत्रियों के षपथ से कुछ घंटे पहले। इससे अंदाजा लगा सकते हैं रमन केे लिए अमन की अहमियत का। और उनके पावर का।

आम आदमी का 2013

2013 में आम आदमी ने सिर्फ दिल्ली में अपनी ताकत नहीं दिखाई। बल्कि, छत्तीसगढ़ की जनता ने भी राजनेताओं को अपने पावर का अहसास कराया। खास कर उन्हें जो जनता का सेवक के बजाए खुद को उस इलाके का माई-बाप समझ बैठे थे। आम आदमी ने पांच दिग्गज मंत्रियों को कुर्सी से उतार दिया। तो स्पीकर और डिप्टी स्पीकर तक अपनी सीट नहीं बचा पाए। यहीं नहीं, कांग्रेस पार्टी का उपर का पूरा नेतृत्व ही साफ हो गया। मैनेजमेंट के जरिये कुछ मठ्ठाधीश जरूर अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। मगर, ऐसे नेताओं की आखों में भी 2018 का खौफ साफ दिखने लगा है। केजरीवाल ने उम्मीदों का जो दीपक जलाया है, यकीनन उसकी रोशनी यहां भी आएगी। और तब राजनेताओं का क्या होगा?

आम आदमी का डंडा-1

दिल्ली में आम आदमी की सरकार बनने के बाद छत्तीसगढ़ में खासकर सत्ताधारी पार्टी के लिए चुनौती खड़ी हो गई है। कांग्रेस को ज्यादा फिकर इसलिए नहीं होगा कि उसके पास खोने के लिए अब कुछ बचा नहीं है। मगर भाजपा के पास तो है। अगले साल नगरीय निकाय चुनाव में भी इसका ट्रेलर दिख सकता है। जिस तरह आप की तैयारियां चल रही है, और जिस तरह के लोग उससे जुड़ रहे हैं, कुछ नगर निगमों पर उसका कब्जा हो जाए तो ताज्जुब नहीं। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विकल्प की आवश्यकता आम आदमी महसूस कर रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो नोटा में इतने वोट नहीं पड़ते। ऐसे में, सियासी पार्टियों को अपनी स्टेज्डी बदलनी पड़ेगी। ठेकेदार, सप्लयार, खटराल नेताओं के बदले आम आदमी के बीच से पढ़े-लिखे, साफ-सुथरे चेहरों को पार्टी में लाना पड़ेगा। क्योंकि, अब वोटों के ठेकेदार नहीं चलने वाले। अब, चेहरा और काम बोलेगा। राजनीतिक पार्टियां अगर स्टाईल नहीं बदली तो 2018 का चुनाव बुरा हो सकता है। वजह यह कि शहरों के चैक-चैराहों से लेकर गांव के चैपालों तक, मंत्रालय के गलियारों से लेकर ट्रेन और बसों में, सिर्फ एक ही चर्चा है, टीम केजरीवाल की तरह अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए। और ईमानदारी से काम करेंगे, तो जनता हाथोंहाथ लेगी। सो, सावधान।

आम आदमी का डंडा-2

हमारे मंत्रियों को भी टीम केजरीवाल से कुछ नसीहत लेनी चाहिए। और कुछ ना सही, कम-से-कम सादगी ही सही। टीम केजरीवाल मेट्रो में शपथ लेने पहुंची। ना फैब का कुर्ता और ना ही चकाचक जैकेट। कार केट कौन कहंे, लाल बत्ती भी नहीं। प्रायवेट कार से मंत्रालय गए। एक अपने मंत्रीजी लोग हैं। पूरी ताकत शन-शौकत के जुगाड़ में लगा देते हैं। पसंद का पीए, पसंद का गनमैन और पसंद की गाड़ी। वाहन के आगे सायरन बजाते हुए जब तक पुलिस की गाड़ी नहीं चले, तब तक उन्हें यकीन नहीं होता कि वे मंत्री हैं। आगे तो आगे, पीछे भी पुलिस की गाड़ी होनी चाहिए। साथ में, विभाग की कुछ खाली गाडि़यां भी। ताकि, काफिले से लगे के फलां मंत्रीजी जा रहे हैं। काफिला बड़ा है मतलब जलवेदार हैं। जोगी सरकार में लाल बत्ती तो थी ही नहीं, 2003 में रमन सरकार ने सुरक्षा के लिहाज से केवल गृह मंत्री को पायलेटिंग और फालो गाड़ी की सुविधाएं दी थी। मगर बाद में सरकार पर प्रेशर बनाकर कई मंत्रियों ने यह सुविधाएं हथिया ली। अब, मंत्रीजी का काफिला निकलता है, तो पायलट गाड़ी का पुलिस वाला हाथ में डंडा लेकर आम आदमी को ऐसे हकालता है, जैसे किसी जानवर को सड़क से भगा रहा हो। मगर सवाल यह है कि अगले चुनाव में कहीं आम आदमी का डंडा चल गया तो हमारे मंत्रीजी लोगों का क्या होगा।

बड़ा प्लेयर

अशोक जुनेेजा के रूप में एक बड़े प्लेयर की इंट्री से पीएचक्यू में एक नए समीकरण की शुरूआत हो सकती है। आईपीएस में जुनेजा का सबसे हाई सर्विस रिकार्ड रहा है। बिलासपुर और रायगढ़ का एसपी, रायपुर, दुर्ग का एसएसपी, बिलासपुर और दुर्ग का आईजी। होम सिकरेट्री, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर। सेंट्रल डेपुटेशन करके उन्होंने अपनी लकीर और लंबी कर ली है। यही वजह है कि 5 दिसंबर को आर्डर पर सीएम का हस्ताक्षर हो जाने के बाद भी उनका आदेश 28 तारीख तक अटका रहा। बड़ा कश्मकश रहा….जुनेजा को क्या विभाग दिया जाए। फाइल योजना एवं वित्तीय प्रबंध के लिए चली मगर आखिर में उन्हें प्रशासन देने का फैसला किया गया। जुनेजा के बाद एक फरवरी को गिरधारी नायक भी पीएचक्यू पहुंच जाएंगे। उनके साथ अमरनाथ उपध्याय और संजय पिल्ले भी। उम्मीद कीजिए, अरसे बाद पीएचक्यू की साख लौटेगी।

जीपी हुए ताकतवर

आईपीएस के फेरबदल में जीपी सिंह और पावरफुल हो गए हैं। अभी तक वे रायपुर के आईजी के साथ ही पुलिस महकमे का सबसे अहम डिपार्टमेंट योजना और वित्तीय प्रबंध की कमान भी संभाल रहे थे। तब रायपुर रेंज में सिर्फ रायपुर और नया जिला बलौदाबाजार था। मगर सरकार ने रेंज का पुनर्गठन करके रायपुर में धमतरी, महासमंद और गरियाबंद जिले को भी शमिल कर दिया है। याने रायपुर अब, पांच जिलों का रेंज बन गया। और जीपी उसके आईजी।

15 के बाद

अशोक जुनेजा के प्रमोशन के कारण आईपीएस की एक छोटी लिस्ट तो निकल गई मगर आईएएस में चुनाव आयोग का पेंच आ गया है। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के चलते आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों को चेंज नहीं करने कहा है। सो, कलेक्टरों के चक्कर में आईएएस की लिस्ट अटक गई है। हालांकि, पहले यह खबर आ रही थी कि आयोग से परमिशन लेकर कुछ कलेक्टरों को बदला जाए। साथ में सिकरेट्रीज को भी। मगर अंदर से जैसी खबरें आ रही हैं, सरकार चाह रही है कि 15 के बाद एक साथ ही सिकरेट्रीज और कलेक्टरों की लिस्ट निकाली जाए। इसलिए, मामला आगे बढ़ सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1 बस्तर में तैनात जिला पंचायत के एक सीईओ का नाम बताएं, जिनके कारनामों से पब्लिक हलाकान हो गई है?
2. किस सीनियर आईएएस को राजस्व बोर्ड का अगला चेयरमैन बनाने की तैयारी की जा रही है?

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

तरकश, 22 दिसंबर

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पुनर्गठन की तलवार

मंत्रिमंडल में तीन पोस्ट बचाकर सीएम ने विधायकों को सिर्फ लालीपाप नहीं दिखाया बल्कि, मंत्रियों पर भी तलवार लटका दिया है। जाहिर है, लोकसभा चुनाव के बाद जब मंत्रिमंडल का पुनर्गठन होगा तो ऐसा नहीं है कि केवल तीन नए मंत्री ही शामिल होंगे। पुराने के कुछ विभाग खिसक सकते हैं तो कुछ का कद भी बढ़ सकता है। आखिर, नगरीय प्रशासन विभाग सीएम ने अपने पास रखा है, उसे किसी नए मंत्री को तो वे देंगे नहीं। बहरहाल, लोकसभा चुनाव में, जिस मंत्री के इलाके में पार्टी का ग्राफ गिरा, तो वहां कुछ भी हो सकता है। इस खतरे से मंत्रीगण अनजान नहीं हैं। तभी तो, दस का दम दिखाते हुए मुख्यमंत्री ने कई मंत्रियों का कद बौना किया तो किसी ने उह, आह भी नहीं किया। दबंग मगर गंभीर मिजाज के एक मंत्रीजी शपथ ग्रहण के एक दिन पहले शाम को सीएम हाउस पहुंचे थे। विभाग का संदर्भ आया तो बड़ी विनम्रता से उन्होंने कहा, आप मुख्यमंत्री हैं, आप जो विभाग दे दीजिए, मुझे कोई दिक्कत नहीं है। शुक्रवार को मंत्रालय में कार्यभार संभालने के बाद मंत्रीगण मुख्यमंत्री से उनके कक्ष में बुके भेंट कर धन्यवाद देना नहीं भूले।

कत्ल की रात

16 दिसंबर की रात मंत्रिपद के दावेदारों के लिए कत्ल की रात से कम नहीं थी। सीएम दिल्ली से लिफाफा लेकर लौट चुके थे। और मार्केट में तरह-तरह की अफवाहें चल रही थी….. कोई सीनियर मंत्रियों को लोकसभा चुनाव लड़ाने की बात कर रहा था……कुछ को किनारे करने की अटकलें लगाई जा रही थी। सीएम हाउस से कोई खबर नहीं आ रही थी। सभी अपना मोबाइल आन रखे थे। खासकर व्यक्तिगत मोबाइल की घंटी बजने पर तत्काल लपकते ……शायद सीएम हाउस से बुलौवा होगा। मगर रात में कोई संदेश नहीं आया। मंत्रियों की जान में जान तब आई, जब 17 दिसंबर को सीएम हाउस से फोन आना प्रारंभ हुआ। हालांकि, कुछ को डर उसमें भी लग रहा था कि, डाक्टर साब तसल्ली देने के लिए कहीं न बुलाए हों। आखिर, विक्रम उसेंडी और दयालदास बघेल के साथ ऐसा ही हुआ। सीएम ने जाते ही जिन्हें बधाई दी, उनकी गले में अटकी सांस भीतर गई। असल में, इस बार सिर्फ कहो दिल से……चला था, इसलिए मंत्री सहमे हुए थे कि डाक्टर साब का जो दिल कहेगा, वही करेंगे।

देर आए, दुरुस्त आए

आईपीएस को जीएडी में लाने से आईपीएस लाबी भले ही खुश नहीं है मगर आईएफएस अफसरों को मुंहमांगी मुराद मिल गई है। आईएफएस भले ही डेपुटेशन में अच्छी पोस्टिंग पा जाते हैं मगर पोस्टिंग और प्रमोशन के मामले में उनका बुरा अनुभव रहा है। आईएएस में 97 बैच तक के अफसर सिकरेट्री बन गए हैं। आईएफएस में 90 बैच वाले सीसीएफ नहीं बन पाए हैं। भारत सरकार ने सीसीएफ को सर्किल में पोस्ट करने की अनुमति दे दी है। मगर छत्तीसगढ़ में सीसीएफ धक्के खा रहे हैं और प्रभारी सीएफ मलाई छान रहे हैं। आईपीएस तो बर्दी का रौब दिखाकर ब्यूरोक्रेसी से अपना काम निकाल लेते हैं। उनका काम कभी नहीं रुकता। किन्तु आईएफएस की कोई सुनवाई नहीं होती। बैजेंद्र कुूमार थोड़े दिन के लिए सिकरेट्री रहे तो कुछ आईएफएस का प्रमोशन हो गया वरना, मंत्री और मंत्री के पीए के आगे फाइल बढ़ नहीं पाती थी। अब तो आईएफएस डाक्टर साब की जय-जयकार कर रहे हैं।

इसी हफ्ते

मंत्रिमंडल के गठन के बाद अब, सबकी नजर प्रशासनिक फेरबदल पर टिक गई है। हालांकि, परिवर्तन बहुत बड़ा नहीं होगा। एक तो विकल्प सीमित है। दूसरा, सामने लोकसभा चुनाव है। काम करने के लिए मात्र दो महीना ही बचा है। जनवरी और फरवरी। ऐसे में बडी सर्जरी संभव प्र्रतीत नहीं होता। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के चलते चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों के ट्रांसफर पर वैसे भी रोक लगा दी है। सो, लिस्ट छोटी ही होगी। यद्यपि, सरकार में अभी इस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। लेकिन, इस हफ्ते के अंत तक होने के संकेत मिल रहे हैं।

उसेंडी पर विचार

बस्तर और सरगुजा में आदिवासियों के समर्थन के बाद भी कांग्रेस ने ओबीसी के भूपेश बघेल को पीसीसी चीफ अपाइंट कर दिया मगर दूरगामी सोच के तहत भाजपा फिर ट्राईबल कार्ड ही आजमाने पर विचार कर रही है। खबर है, मंत्री बनने से वंचित हुए विक्रम उसेंडी रामसेवक पैकरा की जगह ले सकते हंै। उसेंडी गोंड आदिवासी हैं। और छत्तीसगढ़ में इसी तबके के आदिवासियों की तदाद ज्यादा है। सो, भाजपा इसका लाभ उठाने की कोशिश कर सकती है। हालांकि, ट्राई पूर्व स्पीकर धरमलाल कौशिक के लिए भी चल रहा है। कौशिक चुनाव हार चुके हैं, इसलिए सरकार के लिए चुनौती भी नहीं बन सकेंगे। मगर पलड़ा उसेंडी का भारी दिखता है। वैैसे भी भाजपा जिस तरह का अध्यक्ष नियुक्त करती है, उसमें उसेंडी ही फीट बैठते हैं।

दूसरी बार

चरणदास महंत के लिए अध्यक्ष पद का ताज दोनों बार कांटो भरा ही साबित हुआ। पहली बार 2005 में उन्हें पीसीसी चीफ बनाया गया था। मगर मई 2008 में अपमानजनक ढंग से उन्हें डिमोट करते हुए कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। तब सेकेंड लाइन के धनेंद्र साहू को कमान सौंपी गई थी। जीरम नक्सली हमले में नंदकुमार पटेल की मौत के बाद पार्टी ने एक बार फिर भरोसा करते हुए महंत को पीसीसी चीफ बनाया। मगर उनकी दूसरी पारी साढ़े छह महीने में ही खतम हो गई। विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी ने उन्हें हटाकर भूपेश बघेल को अध्यक्ष नियुक्त कर दिया।

काश! ऐसा ही होता

गुरूवार को नया मंत्रालय पहली बार गुलजार दिखा। मौका था, नए मंत्रियों के कार्यभार ग्रहण का। सीएम मंत्रालय में थे। नौ में से आठ मंत्री भी थे। साथ में बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी। वीरान रहने वाले गलियारे लोगों से भरे थे। 7 नवंबर 2012 को मंत्रालय का उद्घाटन हुआ था और इसके बाद कभी भी मंत्रालय में ऐसा दृश्य नहीं दिखा। 2013 पूरा बीत गया, कैबिनेट की बैठक को छोड़कर शायद ही कोई मंत्री अपने कक्ष में बैठा हो। रायपुर में रहने पर सीएम जरूर हफ्ते में दो-तीन बार मंत्रालय चले जाते थे। लेकिन मंत्रियों को इससे कोई मतलब नहीं था। मंत्रालय की अगर रौनक बनानी हो तो सीएम को कम-से-कम मंत्रियों को मंत्रालय आने ताकीद करनी चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रायपुर में किस मंत्री के पास सबसे अधिक जमीन होगी?
2. युद्धवीर सिंह जूदेव किस वजह से मंत्री बनने से वंचित हो गए?

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

तरकश, 15 दिसंबर

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रमन एक्सप्रेस

सत्ताधारी पार्टी के लिए यह राहत की बात होगी…….सूबे में अब न आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ पाएगी और ना ही ओबीसी की कोई लामबंदी होगी। दौड़ेगी तो सिर्फ रमन एक्सप्रेस। दरअसल, धरमलाल कौशिक, चंद्रशेखर साहू, हेमचंद यादव और नारायण चंदेल जैसे सत्ताधारी पार्टी के ओबीसी चेहरे चुनाव हार गए। तो शीर्ष आदिवासी मंत्री रामविचार नेताम और ननकीराम कंवर भी अपनी सीट नहीं बचा सकें। यही नहीं, जिस बस्तर की बदौलत दोनों बार भाजपाकी सरकार बनी थी, वहां पार्टी 11 से चार सीट पर सिमट गई। आदिवासी एक्सप्रेस के डिरेल होने का एक नजारा बुधवार को सीएम हाउस में दिखा। 10 साल तक मंत्रीगिरी किए एक आदिवासी विधायक सीएम के सामने सहमे हुए खड़े थे। तो आदिवासी एक्सप्रेस का शिगुफा छोड़ने वाले नेता रमन से कह रहे थे, डाक्टर साब, केवल आपके चलते पार्टी जीती है। वरना, लुटिया डूब गई होती। अब क्या करें……मजबूरी है…….।

मंत्रियों पर अंकुश

रमन सिंह के चेहरे पर भरोसा करके जनता ने भाजपा को भले ही सिंहासन पर बिठा दिया हो मगर जनता की उम्मीदों पर सरकार खरी नहीं उतरी और मंत्रियों ने अपना काम नहीं सुधारा तो इस बार आधे मंत्री ही हारे हैं, 2018 मेंऔर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। दिल्ली जैसे हालत के खतरे भी होंगे। 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस वहां एक अंक में आ गई। बहरहाल, मंत्री बनने से पहले ही नेताओं ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। राजधानी के एक बड़े हाउस में कुछ अफसरों से चर्चा करते हुए एक नेता खम ठोक रहे थे, अब फिर जीत कर आ गया हूं, और फलां अफसर को छोड़ूंगा नहीं। भाजपा की जीत से मंत्री बौराए मत, इसके लिए सरकार और संगठन दोनों को नजर रखना होगा। खासकर रमन की चुनौती बढ़ गई है। उन्हें लोगो के मन को समझना होगा। लोग चाहते हैं कि मंत्रियों की निरंकुशता पर लगाम लगाई जानी चाहिए। कई मंत्री मैनेजमेट और पैसे के जोर पर भले ही चुनाव निकाल लिए हो, मगर इसे भी ध्यान रखना होगा कि उनके भ्रष्ट कारनामों की वजह से सत्ताधारी पार्टी बदनाम हुई और दूसरी सीटों पर इसका असर भी दिखा। हालांकि, अफसरों की पहली मीटिंग मे सीएम ने भ्रष्टचार के खिलाफ बातें करके अपरोक्ष तौर पर भावी मंत्रियों को कड़ा संदेश देने का काम किया कि अब ऐसा नहीं चलेगा।

बल्ले-बल्ले

डा0 रमन सिंह की हैट्रिक बनने से ब्यूरोक्रेसी में भी जश्न का माहौल है। होगा भी क्यों नहीं, जो मंत्री और विधायक सरकार में अफसरशाही हावी होने का आरोप लगाते रहे, वे सभी निबट गए या मैनेजमेंट करके जीत पाए। पांच मंत्री समेत आठ दिग्गज नेता निबट गए। काम आया रमन का चेहरा और अफसरों द्वारा किए गए विकास के काम।

मैनेजमेंट

पहले चरण की 18 सीटों पर पार्टी के पिछड़ने की रिपोट्र्स रमन सिंह को मिल गई थी। सरगुजा में भी हालात अच्छे नहीं थे। इसलिए, उन्होंने मैदानी इलाके की सीटों पर पूरा फोकस किया। और उनकी रणनीति कामयाब रही। एक-एक सीट को खुद हैंडिल किया। मंत्रियों में अमर अग्रवाल की स्थिति कुछ थी। बाकी सभी अपना किला बचाने में लगे थे। बृजमोहन अग्रवाल जैसे मंत्री रायपुर दक्षिण से बाहर नहीं निकल सकें। इसलिए, मंत्रियों से कोई सहयोग नहीं मिला। ऐसे में, रायगढ़ में बिहार भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री गिरिराज किशोर को, तो दुर्ग, कवर्धा में नागेन्द्र सिंह को बिठाया गया। अमर की जीत में कोई शंका नहीं थी, इसलिए सीएम ने पोलिंग के 24 घंटे पहले अमर को फोन करके बेलतरा और तखतपुर में मदद करने कहा। जाहिर है, इन दोनों सीटों का बड़ा हिस्सा बिलासपुर शहर से लगा है। बेलतरा के 55 हजार वोट बिलासपुर के शहरी इलाके में हैं। दोनों सीटों की स्थिति बुरी थी। और भाजपा की हारने वाली सूची में ये दोनों सीटें सबसे उपर थी। मगर मैनेजमेंट का कमाल कि दोनों ही सीटें भाजपा के खाते में चली गई।

पुराने चेहरे

चूकि सरकार रिपीट हो गई है, इसलिए लोकसभा चुनाव तक नौकरशाही में बड़ा फेरबदल नहीं होने वाला। बहुत हुआ तो एकदम खराब परफारमेंस वाले दो-तीन कलेक्टर, एसपी चेंज हो जाएं। सीएम सचिवालय के चेहरे भी वही होंगे। उधर, भारत सरकार ने रिटायरमेंट दो साल नहीं भी बढ़ाया तो सरकार चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार को फरवरी में रिटायर नहीं करने वाली। रमन चाहते हैं कि कम-से-कम लोकसभा चुनाव तक यहां रहें। पता चला है, उन्हें छह महीने का एक्सटेंशन दिया जाएगा।

गड्ढा खोदा

ठीक ही कहते हैं, दूसरों के लिए गड्ढा नहीं खोदना चाहिए, आदमी उसमें कभी खुद भी गिर सकता है। सरगुजा के एक भाजपा नेता ने पास-पड़ोस की सीटों पर पार्टी की लुटिया डूबाने में कोई कमी नहीं की। कई साथियों को हराने के लिए उन्होंने सुपारी दे दी थी। मगर विरोध की आंधी में खुद भी निबट गए। नेताजी के चलते सामरी जैसी सीट भाजपा लूज कर गई, जहां से कांग्र्रेस आज तक सिर्फ एक बार जीती है। पिछले छह चुनाव से वहां भाजपा जीतते आ रही थी। नेताजी ने रेणुका सिंह को भी हरवा दिया। आलम यह रहा कि भैयालाल रजवाड़े जब रमन सिंह से मिलने सीएम हाउस पहुुंचे तो कहा, मैं जीरम घाटी से बचकर आ रहा हूं, वरना, मुझे मारने के लिए पूरी घेरेबंदी थी।

भावुक हुए रमन

काउंटिंग के दूसरे दिन दुर्ग ग्रामीण की विधायक रमशीला साहू जब सीएम हाउस पहुंची तो उन्हें देखकर रमन सिंह भावुक हो गए। आगंतुक कक्ष में जब सामने रमशीला पड़ी तो उन्होंने कहा, अदृभूत…..रमशीला तुमने तो गजब कर डाला……तुमने तो असंभव को संभव बना डाला। असंभव वाली बात को उन्होंने तीन बार रिपीट किया। जाहिर है, रमशीला को रमन ने ही मैदान मंे उतारा था और लोग छूटते ही कहते थे, रमशीला तीसरे नम्बर पर आएंगी।

 अंत में दो सवाल आपसे

1. बृजमोहन अग्रवाल से 35 हजार वोट से किरणमयी नायक के हारने के पीछे क्या चक्कर था?
2. रमन सिंह के पुराने मंत्रिमंडल के किन दो मंत्रियों को ड्राप करने की चर्चा है?

तरकश, 15 दिसंबर

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रमन एक्सप्रेस

सत्ताधारी पार्टी के लिए यह राहत की बात होगी…….सूबे में अब न आदिवासी एक्सप्रेस दौड़ पाएगी और ना ही ओबीसी की कोई लामबंदी होगी। दौड़ेगी तो सिर्फ रमन एक्सप्रेस। दरअसल, धरमलाल कौशिक, चंद्रशेखर साहू, हेमचंद यादव और नारायण चंदेल जैसे सत्ताधारी पार्टी के ओबीसी चेहरे चुनाव हार गए। तो शीर्ष आदिवासी मंत्री रामविचार नेताम और ननकीराम कंवर भी अपनी सीट नहीं बचा सकें। यही नहीं, जिस बस्तर की बदौलत दोनों बार भाजपाकी सरकार बनी थी, वहां पार्टी 11 से चार सीट पर सिमट गई। आदिवासी एक्सप्रेस के डिरेल होने का एक नजारा बुधवार को सीएम हाउस में दिखा। 10 साल तक मंत्रीगिरी किए एक आदिवासी विधायक सीएम के सामने सहमे हुए खड़े थे। तो आदिवासी एक्सप्रेस का शिगुफा छोड़ने वाले नेता रमन से कह रहे थे, डाक्टर साब, केवल आपके चलते पार्टी जीती है। वरना, लुटिया डूब गई होती। अब क्या करें……मजबूरी है…….।

मंत्रियों पर अंकुश

रमन सिंह के चेहरे पर भरोसा करके जनता ने भाजपा को भले ही सिंहासन पर बिठा दिया हो मगर जनता की उम्मीदों पर सरकार खरी नहीं उतरी और मंत्रियों ने अपना काम नहीं सुधारा तो इस बार आधे मंत्री ही हारे हैं, 2018 मेंऔर मुश्किलें बढ़ जाएंगी। दिल्ली जैसे हालत के खतरे भी होंगे। 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस वहां एक अंक में आ गई। बहरहाल, मंत्री बनने से पहले ही नेताओं ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। राजधानी के एक बड़े हाउस में कुछ अफसरों से चर्चा करते हुए एक नेता खम ठोक रहे थे, अब फिर जीत कर आ गया हूं, और फलां अफसर को छोड़ूंगा नहीं। भाजपा की जीत से मंत्री बौराए मत, इसके लिए सरकार और संगठन दोनों को नजर रखना होगा। खासकर रमन की चुनौती बढ़ गई है। उन्हें लोगो के मन को समझना होगा। लोग चाहते हैं कि मंत्रियों की निरंकुशता पर लगाम लगाई जानी चाहिए। कई मंत्री मैनेजमेट और पैसे के जोर पर भले ही चुनाव निकाल लिए हो, मगर इसे भी ध्यान रखना होगा कि उनके भ्रष्ट कारनामों की वजह से सत्ताधारी पार्टी बदनाम हुई और दूसरी सीटों पर इसका असर भी दिखा। हालांकि, अफसरों की पहली मीटिंग मे सीएम ने भ्रष्टचार के खिलाफ बातें करके अपरोक्ष तौर पर भावी मंत्रियों को कड़ा संदेश देने का काम किया कि अब ऐसा नहीं चलेगा।

बल्ले-बल्ले

डा0 रमन सिंह की हैट्रिक बनने से ब्यूरोक्रेसी में भी जश्न का माहौल है। होगा भी क्यों नहीं, जो मंत्री और विधायक सरकार में अफसरशाही हावी होने का आरोप लगाते रहे, वे सभी निबट गए या मैनेजमेंट करके जीत पाए। पांच मंत्री समेत आठ दिग्गज नेता निबट गए। काम आया रमन का चेहरा और अफसरों द्वारा किए गए विकास के काम।

मैनेजमेंट

पहले चरण की 18 सीटों पर पार्टी के पिछड़ने की रिपोट्र्स रमन सिंह को मिल गई थी। सरगुजा में भी हालात अच्छे नहीं थे। इसलिए, उन्होंने मैदानी इलाके की सीटों पर पूरा फोकस किया। और उनकी रणनीति कामयाब रही। एक-एक सीट को खुद हैंडिल किया। मंत्रियों में अमर अग्रवाल की स्थिति कुछ थी। बाकी सभी अपना किला बचाने में लगे थे। बृजमोहन अग्रवाल जैसे मंत्री रायपुर दक्षिण से बाहर नहीं निकल सकें। इसलिए, मंत्रियों से कोई सहयोग नहीं मिला। ऐसे में, रायगढ़ में बिहार भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री गिरिराज किशोर को, तो दुर्ग, कवर्धा में नागेन्द्र सिंह को बिठाया गया। अमर की जीत में कोई शंका नहीं थी, इसलिए सीएम ने पोलिंग के 24 घंटे पहले अमर को फोन करके बेलतरा और तखतपुर में मदद करने कहा। जाहिर है, इन दोनों सीटों का बड़ा हिस्सा बिलासपुर शहर से लगा है। बेलतरा के 55 हजार वोट बिलासपुर के शहरी इलाके में हैं। दोनों सीटों की स्थिति बुरी थी। और भाजपा की हारने वाली सूची में ये दोनों सीटें सबसे उपर थी। मगर मैनेजमेंट का कमाल कि दोनों ही सीटें भाजपा के खाते में चली गई।

पुराने चेहरे

चूकि सरकार रिपीट हो गई है, इसलिए लोकसभा चुनाव तक नौकरशाही में बड़ा फेरबदल नहीं होने वाला। बहुत हुआ तो एकदम खराब परफारमेंस वाले दो-तीन कलेक्टर, एसपी चेंज हो जाएं। सीएम सचिवालय के चेहरे भी वही होंगे। उधर, भारत सरकार ने रिटायरमेंट दो साल नहीं भी बढ़ाया तो सरकार चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार को फरवरी में रिटायर नहीं करने वाली। रमन चाहते हैं कि कम-से-कम लोकसभा चुनाव तक यहां रहें। पता चला है, उन्हें छह महीने का एक्सटेंशन दिया जाएगा।

गड्ढा खोदा

ठीक ही कहते हैं, दूसरों के लिए गड्ढा नहीं खोदना चाहिए, आदमी उसमें कभी खुद भी गिर सकता है। सरगुजा के एक भाजपा नेता ने पास-पड़ोस की सीटों पर पार्टी की लुटिया डूबाने में कोई कमी नहीं की। कई साथियों को हराने के लिए उन्होंने सुपारी दे दी थी। मगर विरोध की आंधी में खुद भी निबट गए। नेताजी के चलते सामरी जैसी सीट भाजपा लूज कर गई, जहां से कांग्र्रेस आज तक सिर्फ एक बार जीती है। पिछले छह चुनाव से वहां भाजपा जीतते आ रही थी। नेताजी ने रेणुका सिंह को भी हरवा दिया। आलम यह रहा कि भैयालाल रजवाड़े जब रमन सिंह से मिलने सीएम हाउस पहुुंचे तो कहा, मैं जीरम घाटी से बचकर आ रहा हूं, वरना, मुझे मारने के लिए पूरी घेरेबंदी थी।

भावुक हुए रमन

काउंटिंग के दूसरे दिन दुर्ग ग्रामीण की विधायक रमशीला साहू जब सीएम हाउस पहुंची तो उन्हें देखकर रमन सिंह भावुक हो गए। आगंतुक कक्ष में जब सामने रमशीला पड़ी तो उन्होंने कहा, अदृभूत…..रमशीला तुमने तो गजब कर डाला……तुमने तो असंभव को संभव बना डाला। असंभव वाली बात को उन्होंने तीन बार रिपीट किया। जाहिर है, रमशीला को रमन ने ही मैदान मंे उतारा था और लोग छूटते ही कहते थे, रमशीला तीसरे नम्बर पर आएंगी।

 अंत में दो सवाल आपसे

1. बृजमोहन अग्रवाल से 35 हजार वोट से किरणमयी नायक के हारने के पीछे क्या चक्कर था?
2. रमन सिंह के पुराने मंत्रिमंडल के किन दो मंत्रियों को ड्राप करने की चर्चा है?