शनिवार, 19 दिसंबर 2015

अब अप्रैल में


तरकश20 दिसंबर

संजय दीक्षित
कलेक्टरों की लिस्ट अब जनवरी में नहीं, अगले साल अप्रैल में निकलेगी। याने बजट सत्र के बाद। तब रायपुर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह रिटायर होंगे। तब तक तीन-चार कलेक्टरों का दो साल पूरा हो जाएगा। कोई हिट विकेट हो गया तो बात अलग है। अप्रैल में 2003 बैच भी अब क्लोज्ड हो जाएगा। इस बैच की लास्ट बैट्समैन रीतू सेन सरगुजा कलेक्टर हैं। इस बैच के सिद्धार्थ कोमल परदेशी, रीना बाबा कंगाले हाल ही में पारी खतम कर राजधानी लौटे हैं। हालांकि, रीतू के रायपुर कलेक्टर बनने की चर्चाएं भी खूब थीं। मगर नए बैच को मौका देने के लिए सरकार ने अब इस बैच को क्लोज्ड करना लगभग तय कर लिया है। दरअसल, सरकार की चिंता 2009 बैच है। दीगर राज्यों में 2010 बैच के आईएएस कलेक्टर बन गए हैं। छत्तीसगढ़ में 09 बैच का अभी चालू नहीं हुआ है। हालांकि, अगले फेरबदल में तय मानिये। मगर छह में से तीन-चार के ही नम्बर लग पाएंगे। जाहिर है, कलेक्टर बनने के लिए कंपीटिशन अब टफ हो गया है।
टू माइनस टू….
जनवरी में दो नए आईजी प्रमोट होंगे। हेमकृष्ण राठौर और बीपी पौषार्य। मगर इसके साथ ही दो आईजी माइनस भी होंगे। रविंद्र भेडि़या 31 जनवरी को रिटायर होंगे। उधर, सरगुजा आईजी लांग कुमेर एडीजी बन जाएंगे। याने दो आईजी बढ़ेंगे तो दो घट जाएंगे। टू माइनस टू एजकल्टु जीरो। याने आईजी की कमी बनी रहेगी। ये हो सकता है कि लांग कुमेर के बाद राठौर को सरगुजा का आईजी बना दिया जाए। क्योंकि, वे ट्रांसपोर्ट में रह चुके हैं। जाहिर है, ट्रांसपोर्ट में काम किए आईपीएस का सरकार से बढि़यां तालमेल बन जाता है।
डिमोशन मुबारक
राधाकृष्णन बोले तो देश के सबसे सीनियर चार में से एक आईएएस। 79 बैच के। याने चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड से भी दो साल सीनियर। शायद यही वजह है कि सरकार ने जब उन्हें वेयरहाउस में एमडी पोस्ट किया तो नौकरशाही भी चैंक गई। एमडी जूनियर आईएएस का पोस्ट है। अभी 2009 बैच के समीर विश्नोई एमडी थे। जाहिर है, ये राधाकृष्णन का डिमोशन था। दूसरा कोई पानी वाला आईएएस होता तो वीआरएस ले लेता। आखिर, पी जाय उम्मेन ने लिया ही। मगर जो पता चला है, आप भी हैरत में पड़ जाएंगे। राधाकृष्णन पिछले छह महीने से सीएम से चिरौरी कर रहे थे, आठ महीने बचा है रिटायरमेंट में। आखिरी वक्त में कुछ तो दे दीजिए। आदिवासी अनुसंधान परिषद में कुछ था नहीं। वेयरहाउस में कुछ तो है। वैसे भी आदत कुछ वाली है। सो, राधाकृष्णन को डिमोशन मुबारक।
एक नम्बर…..
रमन सरकार के 12 बरस पूरे होने पर टीवी चैनलों पर चल रहा विज्ञापन छत्तीसगढ़ एक नम्बर…..हिट हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे भी गुनगुना रहे हैं…..छत्तीसगढ़……। वैसे भी, 12 दिसंबर को पिं्रट एन इलेक्ट्रानिक मीडिया रमनमय रहा। आलम यह था कि मीडिया के जो लोग सालों तक राशन-पानी लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले रहे, वे भी 12 बरस सेलिब्रेट करने में कोई कमी नहीं की। बल्कि, वे आगे ही रहे। लिहाजा, सीएम ने जनसंपर्क विभाग की पीठ ठोकी तो जाहिर है, इतना तो बनता है।
गच्चा खा गई कांग्रेस
शीतकालीन सत्र की लाख तैयारी के बाद भी कांग्रेस सदन में सत्ताधारी पार्टी से गच्चा खा गई। किसानों की आत्महत्या के इश्यू को कांग्रेस जोर-शोर से उठाने की तैयारी की थी। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। असल में, रविवार को कैबिनेट में ही सरकार ने व्यूह तैयार कर ली थी। कांग्रेस 2018 में सीएम कौन बनेगा, वार-पलटवार में लगी रही और उधर, कैबिनेट में किसानों के लिए की जाने वाली घोषणओं का ड्राफ्ट तैयार हो रहा था। बताते हैं, सभी मंत्रियों को स्पष्ट हिदायत दी गई थी कि किसी भी सूरत में लीक नहीं होना चाहिए। गुरूवार को कांग्रेस विधायक बांह चढ़ाते हुए सदन में पहुंचे थे कि आज तो…..। मगर जैसे ही प्रश्नकाल खतम हुआ, मुख्यमंत्री किसानों के बारे में पहले से तैयार वक्तव्य पढ़ने लगे। कांग्रेस के पास अनुभवी विधायकों का टोटा है। इसलिए, कोई समझ नहीं पाया, क्या हो रहा है। कांग्रेसी क्लास के सुग्घड़ विद्यार्थी की तरह सीएम का वक्तव्य सुनते रहे। जरा सा, चु-चुपड़ भी नहीं। और, सीएम ने किसानों के लिए राहत की झड़ी लगा दी। विपक्ष इसे भांपता, तब तक देर हो चुकी थी। इसके बाद हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं था। जाहिर है, इसकी अगर भनक मिल गई होती तो कांग्रेसी शोर-शराबा करके सीएम को वक्तव्य नहीं पढ़ने दिए होते। कम-से-कम विरोध तो दर्ज हो जाता। सो, चूक गए।
तल्खी और बढ़ी
अमित जोगी के घर टीएस सिंहदेव के चाय पर जाने के बाद लगा था कि जोगी परिवार से सिंहदेव के संबंध सुधरेंगे। मगर सीएम की दावेदारी वाले बाबा के बयान ने दोनों के बीच तल्खी और बढ़ा दी है। कोरबा में शुक्रवार को जब जोगी से सिंहदेव के नेता प्रतिपक्ष से इस्तीफा पर सवाल हुआ तो जोगी इतना ही बोले, भगवान उन्हें सद्बुद्धि दे। इसका आशय आप समझ सकते हैं। हालांकि, सीएम की दावेदारी वाले बयान देकर सिंहदेव भी घिर ही गए हैं। सदन के भीतर या बाहर, हर जगह इसी पर सवाल। लोग चुटकी भी खूब ले रहे हैं। विस में शुरूआत प्रेमप्रकाश पाण्डेय से हुई। पाण्डेय ने पूछा, जोगीजी को आप क्यों भूल गए? सिंहदेव बोले, जोगीजी बुद्धिमान और ब्रिलियेंट लीडर हैं। इस पर पाण्डेय ने कहा, ऐसा है, तो जोगीजी का नाम सबसे उपर होना चाहिए। बाहर निकले तो इसी पर मीडिया ने भी बाबा को घेरा।
गेहूं के साथ घून भी
विधानसभा में जिस तरह सरकार का बयान आया, छत्तीसगढ़ के 45 आईएएस के खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो में कोई-न-कोई कंप्लेन हैं। सूबे में करीब 135 आईएएस पोस्टेड हैं। याने इनमें से लगभग एक तिहाई़। ठीक है, छत्तीसगढ़ में गड़बड़ नस्ल वाले आईएएस आ गए हैं। मगर इतना भी नहीं है। अखबारों में कुछ अफसरों का नाम देखकर आम आदमी भी चैंक गया….अरे! ये तो ऐसा नहीं है। दरअसल, ये सिस्टम की चूक है। एसीबी के पास ढेरों शिकायतें आती हैं। मगर उसकी जांच करके डिस्पोजल नहीं किया जाता। ये राज्य बनने के समय से चल रहा है। कोई शिकायत कर दिया तो उसका परीक्षण नहीं हो पाता। कायदे से परीक्षण करके मामला अगर सही है तो जुर्म दर्ज करना चाहिए या फिर उसे खारिज। मगर ऐसा होता नहीं। गेहंू के साथ घून भी पीस रहे हैं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. एक महिला कलेक्टर का नाम बताइये, जो मंत्रालय में सबको अश्वस्त करके र्गइं कि अपनी इमेज ठीक करके वे दिखा देगी, मगर मनीराम से उनका पुराना प्रेम फिर जागृत हो गया है?
2. सीएम की दावेदारी वाला बयान टीएस सिंहदेव ने खुद दिया था या फिर ये सब संगठन की सहमति से हुई?
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शनिवार, 12 दिसंबर 2015

ना-ना करके….

तरकश 13 दिसंबर

संजय दीक्षित
12 दिसंबर को लगातार 12 साल पूरे करने वाले छत्तीसगढ़ के सीएम डा0 रमन सिंह के संदर्भ में बहुत कम लोगों को पता होगा कि वे राजनीति में आना नहीं चाहते थे। उनकी इच्छा मिलिट्री में जाने की थी। वहां डाक्टर बनने की। उधर, पिता चाहते थे, बेटा वकालत करे। मगर 80 के दशक की एक घटना ने उनके कैरियर की दिशा ही बदल दी। असल में, उनके पिता स्व0 विघ्नहरण सिंह वकालत के साथ जनसंघ से जुड़े थे। जनसंघ का कवर्धा में कोई आफिस नहीं था। इसलिए, अधिकांश बैठकें सिंह के घर पर ही होती थीं। ऐसी ही एक बैठक में पार्टी के लोग परेशान थे। युवा इकाई का अध्यक्ष बनने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा था। मीटिंग के दौरान रमन सिंह घर पर थे। पार्टी नेताओं ने सोचा कि फिलहाल टेम्पोरेरी तौर पर रमन को ही अध्यक्ष क्यों ना बना दिया जाए। पद कम-से-कम खाली तो नहीं रहेगा। इस बारे में रमन से पूछा गया। लेकिन, वे एकदम से बिदक गए। सबने उन्हें समझाया। अश्वस्त किया कि उन्हें अस्थायी अध्यक्ष बनाया जा रहा है। जैसे ही कोई तैयार होगा, तुम्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाएगा। इसके बाद वे अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हुए। लेकिन, वक्त ने उन्हें टेम्पोरेरी से रेगुलर पालीटिशियन बना दिया। यही नहीं, बल्कि मंजे हुए। आखिर, कांग्रेस को उन्होंने कम-से-कम 15 साल के लिए वनवास पर भेज ही डाला है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ और कठोर

अगले तीन साल में भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ कार्रवाइयां और तेज होगी। शुक्रवार को एक मुलाकात में सीएम इस पर बेबाकी से बोले। उनसे जब पूछा गया कि नान घोटाले के बाद जीरों टालरेंस और छापे की कार्रवाइयां जारी रहेंगी? उन्होंने दो टूक कहा कि और मजबूती से यह अभियान चलता रहेगा। भ्रष्ट लोगों को कठोरता से कुचला जाएगा।

85 लाख का गेट

वन विभाग का गेट कांड इन दिनों सुर्खियों में है। अफसरों ने बिना किसी नियम-कायदों का पालन किए, न्यू रायपुर के जंगल सफारी में 85 लाख का गेट बनवा डाला। इतना बड़ा काम बिना टेंडर का। बताते हैं, वन मुख्यालय के अफसरों ने नागपुर के अपने खास ठेकेदार से यह काम करवाया। लेकिन, अब उसका भुगतान पचड़े में पड़ गया है। वन मंत्री महेश गागड़ा ने उसका पेमेंट करने से इंकार कर दिया है।

दो करोड़ गड्ढे में

संस्कृति विभाग की समीक्षा बैठक में सीएम ने जब राजधानी में बन रहे बहुआयामी संस्कृति भवन का प्रोग्रेस पूछा तो पीडब्लूडी के अफसर बगले झांकने लगे। बाद में, अफसरों ने बताया कि पांच करोड़ मिला था। दो करोड़ खर्च हुआ है। क्या किया? सर! गड्ढा खोदा गया है। इस पर सीएम ने कटाक्ष किया, दो करोड़ गड्ढे में गया! इस पर पीडब्लूडी के अफसर बुरी कदर झेंप गए।

नौकरशाही भी जिम्मेदार

संजय बाजपेयी की असामयिक मौत के बाद स्वागत विहार का मामला भी अब खतम समझिए। मगर यह कहने में कोई हिचक नहीं कि इस एपीसोड में नौकरशाही भी बराबरी की दोषी रही। एक रिटायर आईएएस, जो उस समय टाउन एन कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर थे, उनसे पूछिए कि स्वागत विहार का लेआउट पास करने के लिए उन पर कितना प्रेशर था। इसके लिए उन्हें बड़े अफसरों की कितनी झाड़ खानी पड़ी। इस कांड का खुलासा होने के बाद उसकी जांच में रोड़े अटकाने में भी नौकरशाही ने कोई कमी नहीं की। और-तो-और जांच में विभिन्न विभागों द्वारा सपोर्ट न करने पर रायपुर पुलिस ने जब सरकार से एसीबी जांच की सिफारिश की तो उसे भी अटका दिया। अलबत्ता, अपना एक दूत भेजकर सरकार को डराया गया कि अगर एसीबी जांच हो गई तो नान घोटाले की तरह सरकार की छिछालेदर होगी। जबकि, वास्तविकता यह है कि स्वागत विहार केस में एक भी पालीटिशियन का नाम नहीं है। सीधी सी बात है, जमीन के चंद टुकड़ों के लिए नौकरशाहों ने अगर आंख पर पर्दा नहीं डाला होता, तो स्वागत विहार कांड नहीं होता।

किस्मत कोस रही महिला सिकरेट्री

सरकार का एक अहम महकमा संभाल रही एक महिला सिकरेट्री इन दिनों सिस्टम से बेहद खफा हैं। सरकार ने उन्हें बड़े विभाग की कमान तो सौंप दी मगर उन्हें ना तो उपर से सपोर्ट मिल रहा और न नीचे से। मंत्री तो मंत्री, मंत्री का भाई भी मंत्रिगिरी झाड़ जाता है। जरा सा तेवर दिखाया नहीं कि व्यापारी आकर चेम्बर में धमक जाते हैं। इसी के चलते दाल की कालाबाजारी के खिलाफ छापेमारी बंद करनी पड़ गई। उल्टे, जब्त दाल भी व्यापारियों को लौटाना पड़ा। लिहाजा, महिला सिकरेट्री अब किस्मत को कोस रही है, सरकार ने मुझे कहां फंसा दिया। ऐसा ही रहा, तो ताज्जुब नहीं कि वे फिर से डेपुटेशन पर निकल जाएं।

शहीद को बधाई

नारायणपुर में गुरूवार को शहीद जवान की़ डोंगरगढ़ में अंत्येष्टि के दौरान ए़क महिला विधायक ने जवान को श्रद्धांजलि की बजाए शहादत के लिए बधाई दे डाली। वो भी दो बार। काश! विधायक और सांसद बनने के लिए कोई मिनिमम क्वालिफिकेशन निर्धारित हो जाता।

नो किच-किच

कांग्रेस की चुनाव समिति की दिल्ली में हुई बैठक बिना किसी किच-किच के निबट गई। इधर-उधर की बातें ना जोगी बोले और ना ही भूपेश एवं सिंहदेव। सिर्फ काम की बातें हुई। सभी सुग्धड़ नेता बनकर चुपचाप बैठे रहे। कांग्रेस को अब इस पर शिद्दत से विचार करना चाहिए कि क्यों न पार्टी की सारी बैठकें दिल्ली में की जाए।

फर्जी जाति नहीं

भिलाई नगर निगम समेत 11 निकायों के चुनावों में कांग्रेस ने तय किया है कि विवादित जाति वालों को टिकिट ना दिया जाए। इससे बाद में पार्टी की फजीहत होती है। रायपुर और बिलासपर में एक-एक पार्षद जाति के चक्कर में फंस चुके हैं। लेकिन, इस चक्कर में कांग्रेस के करीब आधा दर्जन मजबूत प्रत्याशी फंस गए हैं। पार्टी के सर्वे में उन्हें जीतने वाला उम्मीदवार बताया गया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. स्वागत विहार में किस आईएएस ने अपने साथ ही नाते-रिश्तेदारों को भी उपकृत किया?
2. आईपीएस डीएम अवस्थी को क्या डीजी होमगार्ड बनाने की तैयारी चल रही है?

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

मंत्री के द्वार पहुंचे नौकरशाह


 तरकश6 दिसंबर
संजय दीक्षित
पिछले कैबिनेट में पंचायत मिनिस्टर अजय चंद्राकर वर्सेज सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के इश्यू पर बवाल मचने के बाद जाहिर है, कुछ तो होना ही था। दूसरे रोज नौकरशाह ने चंद्राकर से मिलने का टाईम मांगा। शाम का समय मिला। अफसर बिना किसी हो-हल्ला के मंत्री के सिविल लाइन वाले बंगले पहुंचे। दोनों बंद कमरे में 40 मिनट रहे। अफसर ने सफाई दी। मंत्री ने भी अपने मन की बात अपने अंदाज में की। इसके बाद दोनों के गिले-शिकवे कितने दूर हूए, ये नहीें कहा जा सकता। मगर इसे शरणम् गच्छामि भी नहीं कहा जा सकता। क्योंकि,, अफसर खुद से थोड़े ही पहुंचे मंत्री के घर। कैबिनेट के बाद सीएम ने बंद कमरे में 20 मिनट तक चंद्राकर से बात की थी, उसका ये असर हुआ। याद होगा, कैबिनेट के बाद चंद्राकर मायूसी लेकर सीएम से मिलने उनके कमरे में घुसे और मुस्कराते हुए निकले थे। तब से सत्ता के गलियारों में चंद्राकर के मुस्कराहट का राज जानने के लिए लोग उत्सुक थे। सो, ट्रेलर तो देखने को मिल गया है। बाकी पिक्चर विधानसभा के शीतकालीन सत्र के बाद सामने आ सकता है।

पब्लिसिटी स्टंट

सरगुजा संभाग के एक कलेक्टर ने जनप्रतिनिधि से मोबाइल पर हुई बातचीत को फेसबुक पर अपलोड कर सरकार को सकते में डाल दिया। जनप्रतिनिधि ने किसी के ट्रांसफर के सिलसिले में बात की थी। कलेक्टर ने नेताजी को न केवल गंदा सा जवाब दिया। बल्कि हाट टाक को रिकार्ड कर लिया। यह बात पुरानी हो गई। पिछले हफ्ते हरियाणा की आईपीएस संगीता कालिया नेशनल मीडिया की सुर्खियो में रही। अपने कलेक्टर को लगा यही राइट टाईम है। उन्हें उसे फेसबुक पर डाल दिया। हालांकि, उन्हें न तो सोशल मीडिया में ज्यादा तरजीह मिली और ना ही नेशनल मीडिया में। मगर अब मंत्री तक उनसे मोबाइल पर बातचीत करने में कतराने लगे हैं। हालांकि, कलेक्टर का ग्राउंड लेवल पर काम अच्छा है। मगर उनकी कई बचकानी हरकतों से सरकार पर बन आती है। बस्तर में जब वे कलेक्टर थे, तब सरकार पर कैसी आफत आई थी, सबको पता है। मगर वे नेशनल लेवल पर चर्चित हो गए थे। वही चाह उनकी बार-बार मचल जाती है।

पेरिस में चिंतन

हिम्मती मंत्री हो तो महेश गागड़ा जैसे। कैबिनेट ने पीसीसीएफ का दो पोस्ट सृजित किया था। उसकी डीपीसी भी हो गई। अब, पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पद के लिए डीपीसी बिना सीएम के हरी झंडी के होती नहीं। मगर वन मंत्री को नागवार गुजरा, उनकी राय नहीं ली गई। सो, आर्डर के लिए जब फाइल पहुंची तो उन्होंने उसे ओपिनियन के लिए विधि विभाग भेज दिया। महीना भर हो गया डीपीसी की फाइल धूम रही है। गागड़ा शुक्रवार को चले गए हैं, पेरिस। क्लाइमेट पर चिंतन के लिए। बीके सिनहा को पीसीसीएफ बनने से रोकने के लिए शायद वहीं पर अब चिंतन हो। आखिर, सिनहा की राह में रोड़े बोने वाले अफसर भी साथ में ही हैं।

तुम जिओ हजारों साल, मगर—-

नक्सल प्रभावित जिले के एक कलेक्टर ने धूमधाम से अपने बच्चे का बर्थडे मनाया। मगर यह खबर इसलिए बन गई कि भिलाई और नागपुर से टेंट और केटरिंग बुलाया गया। इसका भुगतान मनरेगा से हुआ। रांची, भागलपुर से रिश्तेदारों को लाने के लिए किराये की लग्जरी गाडि़यां गई, उसका सवा दो लाख रुपए का पेमेंट एजुकेशन डिपार्टमेंट ने किया। अमूमन सारे मलाईदारा विभागों को कोई-न-कोई जिम्मा दिया गया था। पूरा खर्चा लगभग 15 लाख बैठा। कलेक्टर के पीए ने पहले ही सबको बुलाकर इशारा कर दिया था। साब के बच्चे का मामला है, मातहतों को कम-से-कम 10 हजार का लिफाफा और ठेकेदारों एवं सप्लायरों का 50 हजार देना ही चाहिए। सो, चढ़ावे में खासी रकम आ गईं। साल भर के भीतर साब के घर दूसरा बर्थडे था। लोगों की बेबसी समझी जा सकती है। इसलिए, पार्टी से निकलने के बाद लोगों ने अपना मन हल्का किया…..तुम जिओ हजारों साल, मगर अब इस जिले में नहीं…।

मंत्री का लेवल

एक मंत्री द्वारा उद्योगपति से पांच लाख रुपए मांगने के पीछे की कहानी कुछ और निकली है। दरअसल, रायपुर के एक बीजेपी नेता और बड़े कारपोरेशन के चेयरमैन का सिलतरा की स्टील प्लांट में 51 लाख रुपए लगाए थे। फैक्ट्री मालिक हो गए दिवालिया। लिहाजा, स्टेट बैंक ने उसे नीलाम किया। भिलाई के एक उद्यमी ने उसे खरीदा। पैसा चूकि दो नम्बर का था इसलिए, नेताजी को कुछ मिला नहीं। नेताजी लगे उद्यमी पर प्रेशर बनाने। सीएसआईडीसी से प्लांट की बची जमीन सीज करवा ली। उद्यमी 25 लाख तक देने के लिए तैयार भी था। मगर नेताजी को चाहिए था पूरा। सो, नेताजी ने मंत्री के कंधे पर बंदूक रख दिया। मंत्री ठहरे बुरबक। खुद ही पहंुच गए। लेकिन, गलती उद्योगपति ने कर दी। ज्यादा एमाउंट का आरोप लगा दिया। मंत्रीजी का लेवल अभी उस लायक हुआ नहीं है। सो, पकड़ में आ गया। 50 हजार से एक लाख का आरोप होता तो बात हजम हो जाती।

बाबा ने किए कई शिकार

मुख्यमंत्री के दावेदारों को लेकर बयान देने के बाद कांग्रेस में टीएस भले ही घिर गए हों मगर उन्होंने एक तीर से कई शिकार कर डाले। पहला, अमित जोगी के घर चाय पीने के बाद उन पर जोगी से निकटता के आरोप लगे थे। वह एक झटके में खतम हो गया। दूसरा, जो राजनीतिक तौर पर अहम है, वे यह मैसेज देने में कामयाब रहे हैं कि सिर्फ भूपेश बघेल ही नहीं, वे भी, और भी…. सीएम के दावेदार हैं। याने सूबे में नेता और भी हैं। सिर्फ भूपेश नहीं। वरना, भूपेश का वर्चस्व पार्टी पर जिस तरह से बढ़ा था, उससे एक से 10 तक वही वे नजर आ रहे थे। तीसरा, पिछले चार-पांच दिन से टीएस मीडिया में छाये रहे। इतनी सुर्खिया तो उन्हें राजनीतिक जीवन में कभी नहीं मिली।

मंतूरामों से डरी कांग्रेस

बिरगांव में हार के बाद कांग्रेस मंतूरामों से बुरी कदर सहम गई है। बिरगांव में आखिर 29 पार्षद जीतने के बाद भी मेयर बीजेपी का बन गया। नगरीय निकाय के आगामी चुनावों के लिए पीसीसी की मीटिंग में यह बात गंभीरता से उठी। सभी ने एक स्वर से माना कि कांग्रेस के मंतूरामों को अगर ठीक नहीं किया गया तो बीजेपी एक चुनाव जीतने नहीं देगी। इसी पर मंथन करने के लिए अबकी नौ दिसंबर को पीसीसी की दिल्ली में बैठक होने जा रही है। आला नेताओं की मौजूदगी में हार की समीक्षा होगी।

सुनिल एसईसीएल के न्यू डायरेक्टर

छत्तीसगढ़ के एक्स चीफ सिकरेट्री और स्टेट प्लानिंग कमीशन के डिप्टी चेयरमैन सुनिल कुमार को भारत सरकार ने एसईसीएल का इंडिविजिअल डायरेक्टर अपाइंट किया है। भारत सरकार एसईसीएल का प्रोडक्शन बढ़ाकर 2019 में डबल करना चाहती है। याने 250 मीलियन टन। अभी 138 मीलियन टन है। सो, डिफरेंट फील्ड से डायरेक्टर अपाइंट किए जा रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एडीजी आरके विज और बस्तर आईजी एसआरपी कल्लूरी के बीच विवाद की असली वजह क्या है?
2. कांग्रेस की बैठक में अमितेष शुक्ल सत्यनारायण शर्मा से क्यों भिड़ गए?