संजय के. दीक्षित
तरकश, 29 जनवरी 2023
गंगा किनारे वाले एसपी
राज्य सरकार ने देर रात छह जिलों के एसपी बदल दिए। एकाध नाम जरूर चौंकाया। फिर भी इस बार लिस्ट ठीक निकली है। सरकार ने संतोष सिंह को बिलासपुर और सदानंद को रायगढ़ का एसपी बनाया है। गंगा किनारे वाले दोनों आईपीएस ठीक-ठाक अफसर माने जाते हैं। बिलासपुर में संतोष जैसे बैलेंस अफसर की ही जरूरत थी। राजनेताओं के वर्चस्व की लड़ाई में बिलासपुर की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि उसे चलाना सबके बूते की बात नहीं। सदानंद भी रिजल्ट देने वाले आईपीएस हैं। मगर मैदानी इलाके में उन्हें कभी काम दिखाने का मौका मिला नहीं। नारायणपुर में जख्मी होने के बाद भी उन्होंने स्थिति बिगड़ने नहीं दी। इसका उन्हें ईनाम मिला...रायगढ़ जैसा बड़े जिले की जिम्मेदारी मिली। साथ में जयपुर के पिंक महल जैसी सुविधाओं से लैस एसपी बंगला भी। इसके अलावा उदय किरण को सरकार ने कोरबा भेजा है। वहां अब ट्वेंटी-20 मैच देखने को मिलेगा। इस लिस्ट के नामों को देखकर प्रतीत होता है कि पीएचक्यू को वेटेज मिला है।
छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष-1
भाजपा ने 17 अगस्त को धरमलाल कौशिक को हटाकर उन्हीं के बिरादरी के नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया था...तब किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा कि चुनावी साल में पार्टी को ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ जाएगा। आलम यह है कि पांच महीने के भीतर चंदेल की कुर्सी डोलती प्रतीत हो रही है। उनका बेटा दुष्कर्म केस में फंस गया है। और गिरफ्तारी के लिए पुलिस लगातार छापे मार रही है। चंदेल इस्तीफा देंगे या कंटीन्यू करेंगे, ये पार्टी का मामला है। ये जरूर है कि इसी तरह का एक मामला बस्तर से जुड़े एक नेता प्रतिपक्ष के साथ भी 2007 में हुआ था। नेता प्रतिपक्ष का बेटा सामान्य परिवार की लड़की को लेकर फरार हो गया था। इस पर बड़ा बवाल हुआ। चूकि नेता प्रतिपक्ष का अपना सम्मान था। सो, जवानी की भूल मानते हुए इसे संजीदगी से हैंडिल किया गया। तब के एसपी स्व0 राहुल शर्मा ने इस केस में स्मार्टली काम किया। हालांकि, वह आम सहमति का मामला था। तब भी नेताजी 2008 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। चंदेल का मामला थोड़ा अलग है कि इसमें पीड़िता खुद रिपोर्ट दर्ज करवा गंभीर आरोप लगा रही है। सो, लगता है मामला और तूल पकड़ेगा।
छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष-2
प्रोटोकॉल और गाड़ी, घोड़ा, बंगला के तामझाम के चलने नेता प्रतिपक्ष पद का बड़ा क्रेज रहता है। विरोधी पक्ष का हर विधायक चाहता है कि उसे भी सदन के भीतर लीड करने का मौका मिले। मगर उन्हें यह भी जान लेनी चाहिए कि छत्तीसगढ़ में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी के साथ एक अजीब मिथक जुड़ गई है। नेता प्रतिपक्ष या तो चुनाव हार जाता है या फिर उसकी राजनीति खतम हो जाती है। याद कीजिए, राज्य बनने के बाद नंदकुमार साय नेता प्रतिपक्ष बनाए गए थे। 2003 में वे लाठी खाकर अपना पैर ही नहीं तोड़वाए बल्कि मरवाही से अगला चुनाव भी हार गए। उनके बाद 2008 में महेंद्र कर्मा नेता प्रतिपक्ष बनें। 2008 में वे भी अपनी कुर्सी नहीं बचा सके। इसके बाद उनका सियासी कैरियर लगभग अस्त होता गया। कांग्रेस के लोग ही सल्वा जुडूम आंदोलन को लेकर उन पर सवाल खड़े करने लगे थे। कर्मा के बाद रविंद्र चौबे नेता प्रतिपक्ष बनें। चौबे भी 2013 का चुनाव हार गए। भाजपा का सामान्य सा नेता ने उन्हें पटखनी दे दी। करीब 30 साल से उनके परिवार का साजा विधानसभा सीट पर वर्चस्व था। रविंद्र चौबे जितना अनुभवी आदमी आज बेहद लो प्रोफाइल में काम रहे हैं। चौबे के बाद टीएस सिंहदेव ने जरूर नेता प्रतिपक्ष के चुनाव हारने के मिथक को ब्रेक किया। अंबिकापुर से वे फिर निर्वाचित हुए। लेकिन, उसके बाद उनकी स्थिति आप देख ही रहे हैं। धरमलाल कौशिक को जब हटाया गया और बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा को मौका नहीं मिला तो निश्चित तौर पर ये चारों नेता दुखित हुए होंगे। लेकिन, कौशिक, बृजमोहन, अजय, शिवरतन को ईश्वर को थैंक्स बोलना चाहिए। और, सीएम भूपेश बघेल से गुरू मंत्र लेनी चाहिए। वे पीसीसी अध्यक्ष बनना पसंद किए न कि नेता प्रतिपक्ष। और देखिए आज वे कहां हैं।
बड़ा ब्रेक
राज्य सरकार ने एसीएस सुब्रत साहू का वर्क लोड कम करते हुए उनकी जगह जनकराम पाठक को आवास और पर्यावरण सचिव बनाया है। पाठक के लिए यह बड़ा ब्रेक होगा, क्योंकि उनका 2007 बैच अभी सिकरेट्री प्रमोट नहीं हुआ और उन्हें आवास और पर्यावरण जैसे विभाग का चार्ज मिल गया। किसी भी राज्य में आवास और पर्यावरण टॉप फाइव का क्रीम विभाग माना जाता है। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब स्पेशल सिकरेट्री रैंक के प्रमोटी आईएएस को यह जिम्मेदारी मिली हो। पाठक को सरकार ने नवंबर में रजिस्ट्रार पद पर पोस्टिंग देकर अगले दिन काम करने से रोक दिया था। वे एक दिन भी बतौर रजिस्ट्रार काम नहीं कर पाए। क्योंकि, रजिस्ट्रार रहते उन्होंने सहकारी बैंकों के अधिकारियों, कर्मचारियों का वेतन तीन गुना बढ़ा दिया था। सहकारी बैंक के सीईओ का वेतन चीफ सिकरेट्री से ज्यादा मिलता है। रिव्यू मीटिंग में जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पता चला तो वे बेहद नाराज हुए। उनके सख्त निर्देश पर सहकारिता विभाग ने जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है। बहरहाल, आवास, पर्यावरण विभाग के सचिव बनने से पाठक का कद काफी बढ़ गया है।
तारण और तंबोली
आईएएस के ट्रांसफर में जिन अधिकारियों को महत्वपूर्ण पोस्टिंग मिली, उनमें तारण सिनहा, अय्याज तंबोली और जनकराम पाठक शामिल हैं। पाठक का जिक्र उपर हो चुका है। तारण सिनहा जांजगीर के बाद अब रायगढ़ जैसे महत्वपूर्ण जिले के कलेक्टर बन गए हैं। राजनांदगांव और जांजगीर के बाद उनका यह तीसरा जिला होगा। तंबोली को सरकार ने इस बार नगरीय प्रशासन विभाग के स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार का दायित्व सौंपा है। याने नगरीय प्रशासन का प्रमुख। उनके दो बैचमेट...सौरभ और प्रियंका शुक्ला फिलवक्त कलेक्टर हैं। हालांकि, जगदलपुर कलेक्टर से हटने के बाद तंबोली को ढंग की पोस्टिंग नहीं मिली थी। उनके पास ऐसे-ऐसे पद थे, जिसका नाम उन्हें भी ध्यान नहीं रहता होगा। सरकार ने पहली बार मेडिकल एजुकेशन में आईएएस को बिठाया है। अभी तक डायरेक्टर हेल्थ या कमिश्नर हेल्थ ही मेडिकल एजुकेशन देखता था। मगर अब नम्रता गांधी को मेडिकल एजुकेशन का कमिश्नर अपाइंट किया है। राज्य में मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ती जा रही....डॉक्टर बैकग्राउंड के डीएमई याने डायरेक्टर से कॉलेज और अस्पताल संभल नहीं पा रहा है। डॉक्टर डीएमई ने 22 साल में एक ही काम किया है अपने बेटे-बेटियों को जालसाजी करके एमबीबीएस और पीजी में दाखिला करा लिया।
पहली महिला एसीबी चीफ?
आईपीएस पारुल माथुर एसपी की रिकार्ड पारी खेलकर रायपुर लौट रही हैं। राज्य सरकार ने उन्हें डीआईजी एसीबी बनाया है। छत्तीसगढ़ की वे पहली महिला एसपी होंगी, जिन्हें पांच जिले के एसपी रहने का मौका मिला। पारुल जिन जिलों की एसपी रहीं, उनमें बेमेतरा, मुंगेली, जांजगीर, गरियाबंद और बिलासपुर शामिल है। इसके अलावा रेलवे एसपी भी। चूकि मार्च में एसीबी चीफ डीएम अवस्थी रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में समझा जाता है कि डीआईजी के तौर पर पारुल ही एसीबी की कमान संभालेंगी।
एसपी का रिकार्ड
छत्तीसगढ़ में नौ जिले का एसपी रहने का रिकार्ड 2004 बैच के आईपीएस बद्री नारायण मीणा के नाम है। वे कुल नौ जिले के एसपी रहे। मगर उनका रिकार्ड ब्रेक करने 2011 बैच के आईपीएस संतोष सिंह तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। संतोष को कल सरकार ने बिलासपुर का एसपी अपाइंट किया। उनका ये आठवां जिला है। इससे पहले वे कोंडागांव, नारायणपुर, महासमुंद, रायगढ़, कोरिया, राजनांदगांव और कोरबा के कप्तान रह चुके हैं। हालांकि, बद्री 2014 में डेपुटेशन पर आईबी में चले गए थे। वहां से आने के बाद उन्होंने जांजगीर और दुर्ग जिला किया। संतोष बिना आउट हुए पिच पर टिके हुए हैं। याने बिलासपुर में ज्वाईन करते ही वे लगातार आठ जिले का रिकार्ड बनाएंगे। और ताज्जुब नहीं...जिस सधे अंदाज में खेल रहे हैं, दो-एक जिला वे और कर लें।
सिकरेट्री प्रमोशन
डीपीसी ने 2007 बैच के आईएएस अधिकारियों को सिकरेट्री प्रमोट करने हरी झंडी दे दी है। डीपीसी की मंजूरी के बाद फाइल अनुमोदन के लिए सीएम हाउस भेजी गई है। सीएम के हस्ताक्षर के बाद समझा जाता है, जल्द आदेश निकल जाएगा। इस बैच में सात आईएएस हैं। इनमें से छह अफसरों के प्रमोशन के लिए डीपीसी ने ओके कर दिया है। जनकराम पाठक के खिलाफ केस दर्ज होने की वजह से कमेटी ने उनका प्रमोशन रोक दिया। जिन नामों को डीपीसी में हरी झंडी मिली है, उनमें शम्मी आबिदी डायरेक्टर ट्राईबल, हिमशिखर गुप्ता स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार सहकारिता और वाणिज्यिक कर, मोहम्मद कैसर हक मनरेगा आयुक्त और यशवंत कुमार रायपुर डिवीजनल कमिश्नर शामिल हैं।
किस्मत हो तो
राज्य प्रशासनिक सेवा से प्रमोट होकर आईएएस बने अशोक अग्रवाल पोस्टिंग के मामले में गजब के किस्मती हैं। रायगढ़ और कोरबा, राजनांदगांव जैसे जिले के कलेक्टरी किए। सचिव बने तो आबकारी से नीचे कभी विभाग नहीं मिला। रिटायर होते ही सरकार ने सूचना आयुक्त बना दिया और सूचना आयुक्त से रिटायर हुए तो अब रेड क्रॉस सोसाइटी का चेयरमैन। जिलों में कलेक्टर रेड क्रॉस के चेयरमैन होते हैं। और राज्य में अब अशोक अग्रवाल।
अंत में दो सवाल आपसे
1. 31 जनवरी को रिटायर होने जा रहे आबकारी और पंजीयन सचिव निरंजन दास क्या संविदा में सेवा देने के लिए आवेदन किए है?
2. पीएस एल्मा ने कौन सी जादुई छड़ी घुमाई कि महीने भर में वे फिर से कलेक्टर बन गए?