रविवार, 30 जनवरी 2022

आईजी का टोटा खतम

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 30 जनवरी 2022

आईपीएस की प्रमोशन की फाइल तैयार होकर गृह विभाग में पहुंच गई है। मुख्यमंत्री से ओके होने के बाद किसी भी दिन आदेश निकल जाएगा। इसमें 97 बैच के दिपांशु काबरा आईजी से एडीजी प्रमोट होंगे। तो वहीं 2004 बैच आईजी बनेगा और 2008 बैच डीआईजी। 2004 बैच में आधा दर्जन आईपीएस हैं। अभिषेक पाठक, नेहा चंपावत, अजय यादव, बद्रीनारायण मीणा, अंकित गर्ग और संजीव शुक्ला। इनमें से अभिषेक और अंकित डेपुटेशन पर हैं। फिर भी एक साथ चार आईजी मिलेंगे। फिलहाल, आईजी की संख्या करीब आधा दर्जन है। प्रमोशन के बाद अब आईजी की टोटा जैसी स्थिति खतम हो जाएगी। अभी तक छत्तीसगढ़ में स्थिति यह थी कि जितने रेंज हैं, उतने अफसर नहीं होते थे। आईजी के प्रमोशन के साथ ही 2008 बैच के आईपीएस पारुल माथुर, प्रशांत अग्रवाल, नीतू कमल, डी. श्रवण, मिलना कुर्रे, कमललोचन कश्यप और केएल ध्रुव डीआईजी पदोन्नत होंगे। हालांकि, पिछले साल आईपीएस का प्रमोशन 11 महीने विलंब से नवंबर में हुआ था...मगर इस बार संकेत हैं, सब कुछ जल्दी होगा।      

एसपी की लिस्ट

आईपीएस का प्रमोशन चाहे जब भी हो, उसके साथ एसपी की लिस्ट भी निकलेगी। वजह यह कि दुर्ग एसपी बद्री नारायण मीणा प्रमोट होकर आईजी बन जाएंगे। और देश में आईजी बनने के बाद कप्तानी करने का दृष्टांत कहीं मिलते नहीं। एडीजी प्रमोशन के बाद रेंज आईजी का प्रभार जरूर रहा है। एमपी कैडर के आईपीएस विजय यादव एडीजी प्रमोट होने के बाद भी लंबे समय तक भोपाल रेंज के प्रभारी रहे। इसी सरकार में हिमांशु गुप्ता एडीजी बनने के बाद काफी दिनों तक दुर्ग पुलिस रेंज की कमान संभाले रहे। बहरहाल, छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 9 जिलों के एसपी रहने का रिकार्ड बना चुके बद्री आईजी बनने के बाद कप्तानी से विदा लेंगे तो दुर्ग को नया एसपी मिलेगा। दुर्ग बड़ा जिला है। वीवीआईपी के साथ संजीदा भी। चुनाव का समय भी आ रहा है। ऐसे में, सरकार वहां किसी सीनियर लेवल के अफसर को मौका देना चाहेगी। सीनियर में डीआईजी लेवल के जीतेंद्र मीणा जगदलपुर जिला संभाल रहे हैं और दीपक झा बलौदा बाजार। डीआईजी के हिसाब से बलौदा बाजार काफी छोटा हो जाता है। प्रमोटी में डीके गर्ग और बालाजी सोमावार भी हैं। एसएसपी लेवल में डी. श्रवण रायगढ़ में कमांडेंट हैं। जाहिर है, दुर्ग एसपी की नियुक्ति के साथ ट्रांसफर का एक छोटा चेन बनेगा। 

छत्तीसगढ़ में 'का बा'

नेहा सिंह राठौड़ बिहार की लोक गायिका हैं। यूपी इलेक्शन के दौरान उनका वीडियो सांग...यूपी में 'का बा'...यूपी में धूम मचाया ही,  देश भर में मशहूर हो गया है। हालांकि, नेहा सिंह के जवाब में भाजपा ने कई लोक कलाकारों को मैदान में उतारा है। लेकिन, नेहा की प्रस्तुतिकरण का जुदा अंदाज भारी पड़ रहा है। हालांकि, यूपी में 'का बा' के थीम पर छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने रमन का चश्मा नाम से एक वीडियो वायरल किया था। वीडियो में एक युवक चौराहे पर चश्मा बेचने वाले से पूछता है, भाई कौन-कौन से चश्मा रखे हो। चश्मे वाले ने कई चश्मा दिखाया, उनमें एक रमन का चश्मा था। युवक ने पूछा, इसकी खासियत? चश्मे वाले ने बताया, इसे लगा लेने से छत्तीसगढ़ में सब जगह अमन-चैन, हरियाली और डेवलपमेंट नजर आएगा। वीडियो में दिखाया गया था सायकिल सवार युवक जैसे ही रमन का चश्मा लगाता था, छत्तीसगढ़ में चकाचौंध, चहु ओर खुशहाली और उसे उतारते ही समस्याओं और तकलीफों से जूझते लोग। ये वीडियो भी काफी हिट हुआ था। यूपी में 'का बा' को इसका अपडेट वर्जन कहा जा सकता है।       

डेढ़ लाइन का व्हाट्सएप

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चुनावी साल की तरह अबकी गणतंत्र दिवस पर घोषणाओं की झड़ी लगा दी। ये एैसी घोषणाएं थी, जिसमें राज्य के खजाने पर कोई लोड नहीं पड़ना है....उल्टे अवैध निर्माणों को रेगुलराइज करने से 200 से 250 करोड़ रुपए सरकार के खजाने में आएंगे। मगर इस बार की खासियत यह है कि सरकार ने छोटी चीजों को पकड़ा, जिससे आम आदमी सिस्टम के चक्कर में हलाकान होता है। मसलन, अपने पेड़ काटने की अनुमति की प्रक्रिया इतना कठिन है कि आदमी पेड़ लगाना भूल जाए। सरकार ने इसका सरलीकरण किया है। महिलओं के लिए जिले में महिला सुरक्षा प्रकोष्ठ। फाइव डे वीक से मुख्यमंत्री ने कर्मचारियों को खुश किया तो इंडस्ट्रीयल लैंड के आबंटन में ओबीसी को 10 फीसदी रिजर्वेशन का सौगात दिया। रिहाईशी इलाकों में कामर्सियल निर्माण की नियमितीकरण एक बड़ा फैसला था। यही नहीं, इस बार गणतंत्र दिवस का मुख्यमंत्री का भाषण समाप्त होते ही मुख्यमंत्री सचिवालय हरकत में आया। सिकरेट्री और कलेक्टरों के व्हाट्सएप ग्रुप में सीएम सचिवालय से डेढ़ लाइन का मैसेज पोस्ट हुआ....दो दिन के भीतर मुख्यमंत्री की घोषणाओं पर क्रियान्यवन षुरू हो जाना चाहिए। यही वजह है कि 27 जनवरी की सुबह से मंत्रालय में नोटशीट चलने लगी।  

खुशी की बात सही...

फाइव डे वीक का ऐलान करके मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कर्मचारियों को बड़ी सौगात दी। अब वे दो दिन छुट्टी का आनंद उठा सकेंगे। जाहिर है, इसे कर्मचारियों की ओर से रिस्पांस भी मिलना ही था। सरकार को शुक्रिया बोलने अधिकारी, कर्मचारी संघों में होड़ मच गई। वाकई ये एक बड़ा फैसला था। इस दृष्टि से भी कि आखिर महीने में दो शनिवार छुट्टी रहती ही है, दो और बढ़ाना था। लेकिन, इसी के साथ एक बात और....28 जनवरी को इस स्तंभ के लेखक ने केंद्र सरकार के रायपुर में स्थित एक आफिस के प्रमुख से मिलने का वक्त मांगा। टाईम मिला साढ़े नौ बजे। मैसेज देखकर चौंका...दिल्ली में ठीक है, रायपुर में...? निर्धारित टाईम से दो मिनट पहले केंद्रीय कार्यालय पहुंच गया। पीए से पूछा साब आ गए हैं, जवाब मिला साब नौ बजे आ जाते हैं। भारत सरकार में फाइव डे वीक है इसलिए नौ बजे से दफ्तर लग जाता है। अब चूकि हफ्ते में दो दिन छुट्टी मिल गई है तो कर्मचारियों को भी टाईम का पाबंद होना चाहिए। 

राठौर की याद

ऑफिस की टाईमिंग की बात आती है तो दिवंगत डीजीपी ओपी राठौर की याद बरबस आ जाती है। शांति सेना में कई साल तक कोसोवा और बोस्निया में पोस्टेड रहे राठौर समय और अनुशासन के बेहद पक्के रहे। ठीक साढ़े नौ बजे उनकी गाड़ी पुराने पुलिस मुख्यालय में लग जाती थी। नौ बजे से लेकर साढ़े दस बजे तक डीजीपी के आफिसियल लैंडलाईन नम्बर पर


कॉल आते थे, वे खुद रिसीव करते थे...यस, राठौर बोल रहा हूं। डीजीपी से वास्ता पड़ने वाले अधिकांश लोगों को पता था कि डीजीपी सुबह के टाईम सीधे फोन उठाते हैं। लिहाजा, पीए के नाना प्रकार के नखरे से बचने के लिए अनेक लोग सुबह फोन लगाकर सीधे उनसे बात कर लेते थे। कहने का आषय यह है कि नदी उपर से नीचे बहती है। अधिकारी अगर टाईम पर आने लगे तो कर्मचारी दो-तीन दिन इधर-उधर होंगे...इससे अधिक नहीं।      

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस जिले के एसपी पर पड़ोसी जिले के एसपी को बदनाम करने कुचक्र रचने के आरोप लग रहे हैं?

2. क्या कलेक्टरों की एक छोटी लिस्ट और निकल सकती है या फिर यूं ही फैलाया जा रहा है?

सोमवार, 24 जनवरी 2022

मंत्री हों तो ऐसे

 संजय के.दीक्षित

तरकश, 23 जनवरी 2022

यूं तो कई पूर्व मंत्रियों के पीए फोन में बात कराते समय अभी भी नाम से पहले माननीय लगाना नहीं भूलते। लेकिन, छत्तीसगढ़ में लंबा वक्त गुजार चुके पड़ोसी राज्य के एक मंत्री की सहजता और सरलता के विरोधी भी कायल हैं। हम बात कर रहे हैं, उड़ीसा के प्रभावशाली मंत्री कैप्टन डीएस मिश्रा की। कैप्टन काफी समय तक छत्तीसगढ़ सरकार के हेलीकॉप्टर के पायलट रहे। बाद में नौकरी छोड़कर वे सियासत की उड़ान भरने गृह राज्य चले गए। डीएस के पास गृह, उधोग और ऊर्जा जैसे पोर्टफोलियो हैं। इससे समझा जा सकता है कि नवीन बाबू के मंत्रिमंडल में उनका क्या पोजिशन होगा। बावजूद इसके वे जब रायपुर आते हैं तो पुराना कैप्टन बन जाते हैं। नो प्रोटोकॉल। हाल में वे रायपुर आये तो पुराने मित्रों के साथ बैडमिंटन खेलना नहीं भूले। रुकते भी हैं तो अफसर मित्र के घर पर। दोस्तों के साथ बेतकल्लुफी से बात, वही चिर-परिचित ठहाके। किसी के मुंह से मंत्रीजी निकल गया...डीएस टोके...मुझे डीएस ही रहने दो।

गजब का खेल

छत्तीसगढ़ में वन टू का फोर का ऐसा खेल शुरू है, कि जानकर आंखें चकरा जाएंगी। इसी खेल में सरकार के निर्देश पर कोरबा पुलिस ने मुकदमा कायम किया है। लेकिन, इसी बीच बेमेतरा का कांड लोगों को चौंका दिया है। बेमेतरा शहर के पास सरकारी जमीन से होकर गुजरने वाली सड़क को प्रभावशाली लोगों ने डिज़ाइन चेन्ज कराकर उसे प्राइवेट लैंड से निकाल दिया। पता चला है, उस इलाके की पूरी जमीन तीन-चार लोग मिलकर खरीद लिए हैं। अब हम इस खेल को बताते हैं। 5 हजार तक के छोटे टुकड़े का मुआवजा बाजार रेट से पांच-से-छह गुना ज्यादा होता है। चूकि नेताओं, नौकरशाहों और भूमाफियाओ को पहले पता चल जाता कि फलां इलाके से नई सड़क निकलनी है। उस इलाके की पूरी जमीनें इनलोग खरीद लेते हैं। पिछ्ली सरकार में बीजेपी के लोगों ने भी खूब डुबकी लगाई। सिर्फ अभनपुर क्षेत्र में भारत माला के तहत निकलने वाली सड़क के लिए सरकार को 300 करोड़ पेमेंट करना पड़ा। कोरबा का खेल भी 200 करोड़ से ऊपर का है। खैर अभनपुर, कोरबा का तो हो गया, बेमेतरा में सरकार चाहे तो बड़ी राशि बचा सकती है। 

धरती के भगवान

साल 2021 अस्पताल मालिकों के लिए जादुई रहा....सारी देनदारियां चूकता कर डॉक्टरों ने करोड़ों की मिल्कियत खड़ी कर ली। रजिस्ट्री विभाग की जानकारी है, राजधानी से लेकर न्यायधानी तक 70 फीसदी से अधिक जमीनों के बड़े सौदे डॉक्टरों ने किए हैं। मगर इस बार अस्पताल मालिक कुछ सहमे-सहमे से हैं...2022 कहीं दगा न दे दें। तीसरी लहर के लिए शादी-ब्याह जैसी अस्पतालों को तैयारियां की गई थी। राजधानी के एक बड़े हॉस्पिटल ने तीन महीने रात-दिन काम करवा कर टॉप फ्लोर पर 100 बेड का नया हॉल तैयार करा लिया था। ओमिक्रॉन की आहट मिलते ही बिलासपुर के एक बड़े अस्पताल ने नर्सिंग और मार्केटिंग स्टाफ को दुगुना कर दिया। सूबे के अमूमन सभी छोटे-बड़े नर्सिंग होम और अस्पतालों ने अपने-अपने लेवल में तैयारियां की थी। क्लास तो ये भी कि 50-60 लाख के रेंज की बीएमडब्लू खरीदने का मूड बनाए एक डॉक्टर ने तीसरी लहर की आस में एक करोड़ 40 लाख की वॉल्वो कार खरीद डाली...उन्हें लगा तीसरी लहर में सब बरोबर हो जाएगा। मगर ईश्वर का शुक्र कहिए...। ऐसे में, डॉक्टरों की मायूसी समझी जा सकती है।  

भरोसा जिंदा है

ऐसा नहीं कि चिकित्सा संस्थानों में सब जगह लूटमार और संवेदनशून्यता है। कुछ ऐसे भी हैं, जहां जाने पर लगेगा कि भरोसा अभी जिंदा है। आपको फुरसत मिले तो कभी राजधानी के एसीआई घूम आईयेगा। एसीआई बोले तो एडवांस कार्डियक इंस्टिट्यूट। एसीआई सरकारी संस्थान है मगर कारपोरेट अस्पताल से कम नहीं। सरकार अगर थोड़ा सा और ध्यान दे दें तो कॉरपोरेट हॉस्पिटल उसके सामने फीके नजर जाएंगे। वजह है, अस्पताल के धुन और लगन के पक्के डॉक्टरों की टीम। 

आईएएस संज्ञान लें

अधिकार का उपयोग गलत नहीं होना चाहिए। इस पर बिलासपुर हाईकोर्ट के जस्टिस संजय के अग्रवाल के आदेश पर नौकरशाहों को गौर फरमाना चाहिए। जीएसटी के एक ज्वाइंट कमिश्नर का सीआर गड़बड़ कर दिया था अफसरों ने। ज्वाइंट कमिश्नर ने जीएसटी सिकरेट्री संगीता पी के यहां प्रतिवेदन दिया। लेकिन, संगीता ने उसे सुनने की बजाए डिप्टी सिकरेटी को मार्क कर दिया और डिप्टी सिकरेट्री ने उपर से जैसा निर्देश था, वही किया... प्रतिवेदन को खारिज कर दिया। ज्वाइंट सिकरेट्री ने इसके खिलाफ बिलासपुर के युवा वकील अभ्युदय सिंह के जरिये हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस संजय के अग्रवाल ने इस पर आदेश दिया कि बिना कारण बताए किसी के अभ्यावेदन को खारिज नहीं किया जा सकता। अगर आप सीआर के अभ्यावेदन को रिजेक्ट कर रहे हैं तो उसका कारण लिखना होगा कि किस वजह से वे इसे खारिज कर रहे हैं। बता दें, संगीता के जीएसटी सिकरेट्री और कमिश्नर रहने के दौरान बड़ी संख्या में अधिकारियों के सीआर खराब हुए। इनमें से कुछ और अफसर हाईकोर्ट गए हैं। 

प्रमोटी को झटका

अभी तक डायरेक्ट याने आरआर आईएएस को शिकायत थी कि  कलेक्टरी में सरकार प्रमोटी आईएएस को ज्यादा वेटेज दे रही है। वाकई, एक समय प्रमोटी की संख्या 13 के करीब पहुंच गई थी। मगर अब यह संख्या सिमटकर छह पर आ गई है। हाल की लिस्ट 3 प्रमोटी के विकेट गिर गए। सरकार ने अबकी तीन प्रमोटी कलेक्टरों को वापिस बुला लिया। कोरिया कलेक्टर श्याम धावड़े,  बलौदाबाजार कलेक्टर सुनील जैन और नारायणपुर कलेक्टर धमेंद्र साहू। सरगुजा और बस्तर संभाग में अब एक भी प्रमोटी नही बचे। बिलासपुर संभाग में सिर्फ एक। जीतेंद्र शुक्ला जांजगीर। रायपुर संभाग में डोमन सिंह बलौदा बाजार और पीएस एल्मा धमतरी। दुर्ग संभाग जरूर प्रमोटी अफसरों को थामा हुआ है। वहां तारण प्रकाश सिनहा राजनांदगांव, जन्मजय मोहबे बालोद और रमेश शर्मा कवर्धा। असल में, आरआर वालों की तादात इतनी बढ़ती जा रही कि मुंगेली और जीपीएम जैसे जिले भी प्रमोटी के लिए नहीं बच गए। वरना, एक समय था, रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, रायगढ़ में प्रमोटी कलेक्टर रहे।

नारी शक्ति

कलेक्टरी में नारी शक्ति का योग इस समय प्रबल चल रहा है। महिला कलेक्टरों की संख्या कभी एक हो गई थी। अब तीन पहुंच गई है। रानू साहू कोरबा और नम्रता गांघी जीपीएम में थी। अभी के फेरबदल में नम्रता को गरियाबंद भेजकर ऋचा चौधरी को जीपीएम का कलेक्टर बनाया


गया है। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस अरूण देव गौतम को लोक अभियोजन में क्यों भेजा गया?

2. 26 जनवरी को कटघोरा को नए जिले बनाने की चर्चाओं में कितना दम है?

शनिवार, 15 जनवरी 2022

रंगदारी टैक्स?

 जय के. दीक्षित

तरकश, 16 जनवरी

ऐसा बिहार, यूपी में सुनने को मिलता था...मगर अब इस तरह की चीजें अब इधर भी दिखने लगी हैं। पता चला है, सूबे के एक मंत्रीजी ने बायोडीजल वाली गाड़ियों से रंगदारी टैक्स वसूलने महाराष्ट्र के सरदह पर लठैत तैनात कर दिए हैं। बताते हैं, एक व्यापारी से मंत्रीजी का पैच हुआ....व्यापारी ने मंत्रीजी को सुझाया कि बाहर से आने वाले बायोडीजल के टैंकरों को रोक दिया जाए तो इस धंधे में पूरा वर्चस्व हमलोगों का हो जाएगा। मंत्रीजी को बात जंच गई। बॉर्डर पर अब छत्तीसगढ़ आने वाली बायोडीजल गाड़ियों को रोक कर उन्हें इस कदर धमकाया जा रहा कि दोबारा फिर वे छत्तीसगढ़ न आने पाएं। तीन दिन पहले की बात है....कांडला से आने वाले दो दर्जन से अधिक टैंकरों को तीन दिन बॉर्डर पर खड़ा कर दिया गया। लठैतों के चलते कोई ट्रांसपोर्ट्स अब छत्तीसगढ़ का बायोडीजल बुक नहीं कर रहा। यही नहीं, मंत्री के लठैतों ने छत्तीसगढ़ होकर बंगाल जाने वाली बायोडीजल गाड़ियों से 10 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से वसूली षुरू कर दी है। मंत्री और व्यापारी के खेल में जाहिर है, नाम छत्तीसगढ़ का खराब हो रहा।     

जेब में मंत्री

आदिवासी समुदाय के लिए ये एक विडंबना होगी कि उनके वोटों से जीतकर जो नेता मंत्री-मिनिस्टर बनते हैं, रायपुर आते ही कुछ खास तरह के ठेकेदारों और सप्लायारों के इशारों पर कत्थक करने लगते हैं। रामविचार नेताम थोड़ा ज्यादा ही तेज-तर्रार थे...एक एसडीएम को थप्पड़ तक जड़ दिया। बाकी की कमोवेश एक सरीखा स्थिति रही है। मंत्री पद की शपथ लेते ही या तो कोई गोयल, अग्रवाल या फिर अ-सरदार उन्हें लपक लेता है। उसके बाद वे जैसा चलाते हैं, मंत्री लोग वैसा ही चलते हैं। आपने देखा ही होगा...आदिवासी मंत्रियों की राजधानी में बड़े-बड़े होर्डिग्स लगते हैं, उसमें किन लोगों की फोटुएं रहती हैं। ये लोग हर फन में माहिर होते हैं। रमन सरकार के एक आदिवासी मंत्री को एक सप्लायर ने हैदराबाद और मुंबई का ऐसा चस्का लगवा दिया कि अभी भी उधरे ज्यादा पाए जाते हैं। इन सरल-सहज मंत्रियों को व्यापारियों के चंगुल से आजाद कराने सरकार को कुछ करना चाहिए।   

जब सीएम हुए भावुक

भिलाई में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के घर के पास में ही चरौंदा नगर निगम का दफ्तर है। भूपेश जब राजस्व मंत्री थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से आग्रह करके उन्होंने सन् 2000 में चरौंदा को नगरपालिक बनवाया था। लेकिन, हुआ कुछ ऐसा कि कांग्रेस एक बार भी वहां जीत नहीं पाई। नपा का पहला चुनाव परिवार से बगावत कर विजय बघेल निर्दलीय जीत गए। इससे भूपेश इतने आहत हुए कि 21 साल तक ननि दफ्तर में कदम नहीं रखा। समय के साथ 2015 में चरौंदा पालिका से निगम बन गया। 22 वे साल में पहली बार अबकी कांग्रेस का मेयर बना तो पदभार ग्रहण में मुख्यमंत्री भी पहुंचे। इस मौके पर वे भावुक हो गए। बोले...मेरा सपना था कि चरौंदा में कांग्रेस पार्टी का मेयर बने...ये एक संयोग है कि 22 बरस बाद पार्टी का महापौर बना और मैं मुख्यमंत्री के रूप में यहां मौजूद हूं। 

चार सिकरेट्री

एस भारतीदासन के सचिव प्रमोट होने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सचिवालय में अब चार सिकरेट्री हो गए हैं। वहां पहले से एसीएस सुब्रत साहू, सिद्धार्थ कोमल परदेशी और डीडी सिंह सिकरेट्री थे। अब भारतीदासन। पिछली सरकार में भी लगभग यही स्थिति रही। एन बैजेंद्र कुमार एसीएस रहे। उनके बाद अमन सिंह, सुबोध सिंह और एमके त्यागी। हालांकि, विधानसभा चुनाव से साल भर पहले बैजेंद्र डेपुटेशन पर एनएमडीसी चले गए। उसके बाद तीन ही सिकरेट्री रहे। अमन, सुबोध और त्यागी। हालांकि, तब संविदा में दो सिकरेट्री थे। अमन और त्यागी। इस समय संविदा वाले सिर्फ डीडी सिंह हैं।   

सूरज उगेगा 

पिछले तरकश में एक सवाल था, सत्ताधारी पार्टी के एक सीनियर नेता का नाम बताइये, जो अपने बेटे को अगले विधानसभा चुनाव में लांच करने के लिए चुनावी राजनीति से अलग होने वाले हैं। इसके जवाब में कई लोगों के फोन आए, मैसेज भी। लोगों का उत्तर था...चरणदास महंत, सत्यनारायण शर्मा, ताम्रध्वज साहू और रविंद्र चौबे। इनमें से तीन के बारे में अभी कुछ पुख्ता नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने अवश्य राज्यसभा में जाने की इच्छा जताई है। खबर है, अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो महंत का सूरज सक्ती में उगेगा। पिछले चुनाव में महंतजी ने लोगों को भरोसा दिया था कि वे सक्ती को जिला बनवाएंगे। चूकि सक्ती जिला बन गया है, सो अपने इकलौते बेटे सूरज की लांचिंग का इससे बढ़ियां कोई मौका नहीं हो सकता।

डबल कमिश्नर

ठीक ही कहा जाता है, वक्त बलवान होता है। अब आप देखिए, कभी मुकेश गुप्ता के बाद दूसरे नम्बर के पावरफुल आईपीएस माने जाने वाले जीपी सिंह सलाखों के पीछे हैं। और नई सरकार में पीएचक्यू में एक साल तक बिना विभाग के कठिन दौर देखने वाले दिपांशु काबरा आज दो-दो अहम विभागों के कमिश्नर। दोनों आईएएस वाले पदों पर। कमिश्नर पीआर और कमिष्नर ट्रांसपोर्ट। इन पदों पर पहले कभी कोई आईपीएस नहीं रहा। जाहिर है, जनसंपर्क आयुक्त बनने के बाद बेहतर पारफारमेंस से दिपांशु ने सरकार का विश्वास और गहरा किया है। 

राडार पर आईएएस

आय से अधिक संपत्ति के मामले में एसीबी ने सीनियर आईपीएस जीपी सिंह को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है। ऐसे में अब एसीबी पर आईएएस के खिलाफ भी कार्रवाई कर बैलेंस करने का प्रेशर बढ़ रहा है। इससे पहले मुकेश गुप्ता ने जब आईएएस को ट्रेप किया था तब ब्यूरोक्रेसी से आईपीएस को लेकर उंगलिया उठ रही थी। लेकिन, एसीबी चीफ आरिफ शेख ने हौसला दिखाते हुए एडीजी जैसे सीनियर अफसर को गिरफ्तार कर लिया। जीपी के खिलाफ मीडिया में संपत्तियों का ब्यौरा आ रहा है, वो काफी हो सकता है। मगर सवाल ये भी तो है कि क्या किसी आईएएस के यहां रेड पड़ेगा तो क्या इससे कम निकलेगा? 

ब्यूरोक्रेसी में खौफ

आय से अधिक संपत्ति के मामले में आईपीएस जीपी सिंह की गिरफ्तारी पर लोगों के अनेक मत हो सकते हैं। मगर नौकरशाही में माना जा रहा है कि सरकार ने कौवा मारकर टांग दिया है। खासकर दाएं-बाएं होने वाले अफसरों के लिए। सरकार गलती पाए जाने पर जब एडीजी रैंक के आईपीएस को सलाखों के पीछे भेज सकती है तो फिर किसी को भी लटका सकती है। इस सरकार के साथ अलग बात यह है कि अपना-पराया कुछ नहीं। कोई भी कितने भी बड़े पद पर क्यों नहीं बैठा हो, ये दावा नहीं कर सकता कि मैं फलां हूं....मैं ढिमका हूं। परिवहन विभाग में हल्का सा बर्तन बजने की आवाज आई, सरकार ने एक झटके में व्यवस्था बदल दी। सूबे के एक युवा विधायक की भी अब हैसियत कम करने की खबरें आ रही हैं।

छोटा जिला, बड़े अफसर

गरियाबंद इलाके में नक्सली मूवमेंट जब तेज होने लगा था तो पिछली सरकार ने 2012 में गरियाबंद को नया जिला बनाया था। मगर इस सरकार ने अफसरों की पोस्टिंग के मामले में जिले की रेटिंग बढ़ा दी है। गरियाबंद पहले आईएएस, आईपीएस का पहला जिला होता था। मगर अब ऐसा नहीं रहा। नीलेश क्षीरसागर को जशपुर के बाद गरियाबंद का कलेक्टर बनाया गया। तो नम्रता गांधी का भी ये दूसरा जिला है। इसी तरह 2008 बैच की पारुल माथुर को कप्तान। उनसे पहिले भोजराम पटेल भी कांकेर के बाद गरियाबंद के एसपी बने थे। यही नहीं, डीएफओ भी पहले प्रमोटी होते थे मगर अब डायरेक्ट आईएफ


एस को पोस्ट किया जा रहा।             

अंत में दो सवाल आपसे

1. रायपुर पुलिस ने कालीचरण को फिल्मी अंदाज में पकड़ा तो एसीबी ने जीपी सिंह को, इनमें किसकी कामयाबी सबसे अहम है?

2. एसीबी के राडार पर कौन से तीन आईएएस अधिकारी हैं?

शनिवार, 8 जनवरी 2022

कलेक्टरों को नोटिस

संजय के. दीक्षित

तरकश, 9 जनवरी



धान खरीदी के लिए बनी मंत्रिमंडलीय उप समिति ने बारिश में धान भीगने पर सूबे के छह कलेक्टरों को नोटिस देने का फैसला किया। बैठक के बाद फूड मिनिस्टर अमरजीत भगत ने मीडिया को बाइट भी दे डाली। जाहिर तौर पर यह पहली बार हुआ कि मंत्रिमंडलीय उप समिति ने कलेक्टरों को नोटिस दी हो। यकीनन, कैबिनेट और मंत्रिमंडलीय उपसमिति अधिकारसंपन्न होती हैं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि वे मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी करने लगे। आमतौर पर होता ये है कि मंत्रिमंडलीय उप समितियों को किसी कलेक्टर के खिलाफ कोई प्वाइंट मिला भी तो उसे मुख्यमंत्री की नोटिस में दे देती है। बहरहाल, कलेक्टरों को नोटिस मामले की प्रतिक्रिया तो होनी ही थी। देर रात प्रचार मशीनरी हरकत में आई। अब सुना है कि कलेक्टरों को नोटिस तामील नहीं की जाएगी। 

जोगी ने जब हड़काया 

2001 में भाजपा ने अजीत जोगी सरकार के खिलाफ राजधानी रायपुर में तगड़ा प्रर्दशन किया था। शास्त्री चौक पर प्रदर्शनकारियों को रोकने पुलिस ने लाठी चार्ज किया। इसमें नेता प्रतिपक्ष नंदकुमार साय का पैर टूट गया। लाठीचार्ज के खिलाफ विधानसभा में काफी हंगामा हुआ। घटना की जांच के लिए विधानसभा की जांच कमेटी बनी। विधानसभा की कमेटी ने जांच के बाद रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर अमिताभ जैन और एसएसपी मुकेश गुप्ता को कसूरवार बताते हुए उन्हें सदन में तलब करने की सिफारिश की। सिफारिश पर अमल करते हुए विधानसभा ने दोनों को बुलाने की तारीख भी मुकर्रर कर दी। देर रात मरवाही के दौरे से लौटने पर मुख्यमंत्री अजीत जोगी को ये बात पता चली। उन्होंने विधानसभा वालों को जमकर हड़़काया और कलेक्टर, एसएसपी को सदन में बुलाने का फैसला टांय-टांय फुस्स हो गया। कहने का आशय यह है कि कलेक्टर, एसपी सिर्फ अफसर नहीं, जिले में वे मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि होते हैं। ऐसे में, विधानसभा की समिति हो या फिर मंत्रिमंडलीय उप समिति...उसे अधिकार तो है लेकिन, इसका ये मतलब नहीं कि मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि को ही लगे नोटिस देने, प्रताड़ित करने। कलेक्टर्स, एसपी सीधे-सीधे मुख्यमंत्री से नियंत्रित होते हैं और उन्हें नोटिस या सजा देने का अधिकार सिर्फ मुख्यमंत्री को है। मंत्री या मंत्रिमंडलीय उप समिति को नहीं।

एक थे उदय वर्मा

बात काफी पुरानी है। मध्यप्रदेश के समय 86, 87 के आसपास उदय वर्मा बिलासपुर के कलेक्टर थे। मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह का बिलासपुर दौरा था। चकरभाटा हवाई पट्टी पर उदय वर्मा भी थे। गांधीवादी नेता और हायर एजुकेशन मिनिस्टर चित्रकांत जायसवाल ने किसी बात पर उन्हें झिड़क दिया। उदय वर्मा सीएम को रिसीव किए बिना गाड़ी में बैठ लौट गए। अर्जुन सिंह जैसे मुख्यमंत्री कलेक्टर के हवाई पट्टी पर न होने के वाकये को इसलिए नजरअंदाज कर दिए कि उनके कलेक्टर के साथ जो हुआ, वो ठीक नहीं हुआ। उदय वर्मा सफलतम नौकरशाहों में रहे हैं। वे भारत सरकार में कई अच्छे विभागों के सिकरेट्री रहे। बहरहाल, अबके कलेक्टरों में न तो वो ठसन दिखता है, न स्वाभिमान और न काम। कलेक्टरों का एक सुत्रीय एजेंडा है...कुर्सी किसी तरह सुरक्षित रहे। यही वजह है कि उन्हें छूटभैया नेता चमका दे रहे। एक विधायक को हाल ही में कैमरे पर यह कहते सुना गया, कहां है कलेक्टर...। हाल में मुख्यमंत्री के दौरे में एक कांग्रेस नेता को सर्किट हाउस में इंट्री नहीं मिली। उसने कलेक्टर को व्हाट्सपएप ठोक दिया, ठीक है...हमारी सरकार बनने दो, फिर मैं बताता हूं। ऐसे में, अगर रजत कुमार या पी. दयानंद टाईप कलेक्टर होते तो वाकई बवाल हो जाता। 

कमांडेंट क्यों?

2008 बैच के आईपीएस डी. श्रवण को सरकार ने राजनांदगांव एसपी से हटाकर बटालियन का कमांडेंट बनाकर रायगढ़ भेज दिया। श्रवण कुछ दिन पहले ही सलेक्शन ग्रेड प्रमोशन पाकर एसएसपी हुए थे। उन्हें कमांडेंट बनाने की खबर से लोगों का चौंकना इसलिए स्वाभाविक था कि सलेक्शन ग्रेड याने अगले साल जनवरी में डीआईजी बनने वाले आईपीएस कमांडेंट बन जाए...। जबकि, पहले एडिशनल एसपी या फिर नए आईपीएस कमांडेंट बनते थे। मध्यप्रदेश के समय एसपी बनने से पहले आमतौर पर आईपीएस को कमांडेंट बनाया जाता था। ताकि फोर्स को टेकल करने का गुर अफसर सीख जाए। ऐसे में, सवाल उठते हैं कि श्रवण के साथ ऐसा क्यों हुआ? इस बारे में ये जरूर पता चला है कि किसी मामले में खुफिया अधिकारी राजनांदगांव एसपी से जरूर खफा चल रहे थे। 

मिठाई वाले सिकरेट्री

छत्तीसगढ़ में एक माल-मसाले वाले विभाग के सिकरेट्री हैं। उनके पास दो-तीन विभागाध्यक्षों का जिम्मा भी है। सिकरेट्री साब से जो भी मिलने जाता है, उसे कुछ बोलने से पहिले वे मिठाई का डिब्बा बढ़ा देते हैं। बताते हैं, सिकरेट्री को किसी तांत्रिक ने ग्रह-नक्षत्रों का कैलकुलेशन कर सलाह दी कि लोगों को अधिक-से-अधिक मिठाई खिलाना उनके लिए काफी चमत्कारिक होगा। सिकरेट्री साब उसका अक्षरशः पालन कर रहे हैं। घर हो या आफिस...बड़े लेवल का आदमी हो या छोटा मुलाजिम...सबसे पहले मिठाई का डिब्बा। आईएएस के विभाग के लोग बताते हैं, तांत्रिक का नुख्सा साब को सूट किया है...बीजेपी सरकार में भी साब ठीक-ठाक पोस्टिंग पाते रहे और इस सरकार में तो गजब...।

चुनावी ड्यूटी

यूपी समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का ऐलान हो गया है। चुनाव कराने डेढ़ दर्जन से अधिक आईएएस पांचों राज्यों में जाएंगे। अभी तक सामान्य प्रशासन विभाग इलेक्शन के लिए सिकरेट्री लेवल तक के अधिकारियों का नाम भेजता था। चूकि, इस बार चुनाव आयोग ने ज्यादा अधिकारियों के नाम मंगाए थे। लिहाजा, पहली बार प्रिंसिपल सिकरेट्री के नाम भी निर्वाचन आयोग को भेजे गए हैं। 10 मार्च को पांचों राज्यों का मतगणना है। इसलिए, इसके बाद ही इलेक्शन ड्यूटी वाले अफसर छत्तीसगढ़ लौटेंगे।   

नया जिला

कोरबा से अलग कर कटघोरा को नया जिला बनाने की मांग लंबे अरसे से की जा रही है। हालांकि, इसके पीछे सियासी समीकरण भी है। मगर वाकई अगर कटघोरा नया जिला बन गया तो कोरबा के पास सिर्फ बालको और एनटीपीसी बच जाएगा। याने 70 से 80 फीसदी डीएमएफ कटघोरा में चला जाएगा। पैसा अगर कटघोरा में होगा तो मलाईदार जिला कटघोरा ही होगा न। कटघोरा इलाके के सत्ताधारी पार्टी के नेताओं को 26 जनवरी को मुख्यमंत्री के भाषण से काफी उम्मीदें दिखाई पड़ रही हैं। 

अंत में दो सवाल आपसे

1. चार नए जिलों में ओएसडी अपाइंट होने में देरी क्यों हो रही है?

2. एक बड़े कांग्रेस नेता का नाम बताइये, जो अपने बेटे को अगले विधानसभा चुनाव में लंच करने के लिए खुद चुनावी राजनीति से हट रहे हैं? 

शनिवार, 1 जनवरी 2022

कालीचरण और पुलिस

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 1 जनवरी

रायपुर पुलिस के लिए 2021 बड़ी चुनौतीपूर्ण रही। अजय यादव जैसे ठीक-ठाक कप्तान को असहज स्थिति में हटना पड़ गया। अजय के बाद आए प्रशांत अग्रवाल भी समझ गए होंगे कि रायपुर की पोलिसिंग तलवार की धार पर चलने से कम नहीं है। बहरहाल, साले खतम होते-होते कालीचरण महाराज ने रायपुर पुलिस की साख जरूर ब़ढ़ा दी। मीडिया में जब ये इनपुट्स आई कि कालीचरण को ढूंढने रायपुर पुलिस की टीमें मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र गई हैं तो लगा कि पुलिस खाली लाठी पिट रही है। लेकिन, गुरूवार को सुबह-सुबह खबरें आई कि पेशेेवर अंदाज में पुलिस ने कालीचरण को पकड़ लिया है तो लोग वााकई चौंक पड़े। लोगों ने महाराष्ट्र पुलिस के बारे में ऐसा सुना था या फिर फिल्मो में देखा था। पुलिस मोबाइल लोकेशन के आधार पर खजुराहों से 25 किलोमीटद दूर भक्त बनकर बागेष्वर धाम में उसी जगह पर ठहरी जहां कालीचरण रुके हुए थे। और तड़के गिरफ्तार कर रायपुर के लिए रवाना हो गई। कालीचरण एपीसोड में रायपुर पुलिस का नम्बर निष्चित तौर पर बढ़ा है।     

कप्तान समेत 9 विकेट

2022 में पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी रिटायर होंगे। मगर वे अकेले नहीं जाएंगे, अपने साथ 8 और अफसरों को लेकर बिदा होंगे। जाहिर है, राकेश को मिलाकर वन महकमे में 9 आईएफएस इस साल रिटायर होंगे। इनमें सबसे पहला विकेट युनूस अली का गिरेगा अप्रैल में। अप्रैल में एसएसडी बड़गैया भी रिटायर होंगे। इसके बाद जून में एसएस बजाज, सितंबर में राकेश चतुर्वेदी, अक्टूबर में जय सिंह महस्के और अनुराग श्रीवास्तव, दिसंबर में पीवी नरसिंह राव, पीसी पाण्डेय और श्रीमती बीवी उमादेवी सेवानिवृत्त होंगी। 

अगला पीसीसीएफ?

राकेश चतुर्वेदी के बाद संजय शुक्ला को पीसीसीएफ बनना लगभग तय माना जा रहा है। संजय फिलहाल लघु वनोपज संघ में एमडी हैं। उन्हें रिजल्ट देने वाला अधिकारी माना जाता है। वर्तमान पावर केमेस्ट्री में भी उनकी स्थिति ठीक है। लिहाजा, उनके नाम पर कोई संशय तो नहीं लगता।    

सितंबर में तीन विकेट

प्रशासनिक दृष्टि से 2022 काफी महत्वूपूर्ण रहेगा। ईयर एंड तक किसी सीनियर अफसर के सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने की चर्चा है। इसके अलावा जून में राजस्व बोर्ड के चेयरमैन उमेश अग्रवाल का रिटायरमेंट है। उमेश सिकरेट्री लेवल के आईएएस हैं। अपवाद के तौर पर वे जरूर राजस्व बोर्ड के चेयरमैन का दायित्व संभाल रहे। मगर ये चीफ सिकरेट्री लेवल का कैडर पोस्ट है। बहरहाल, उमेश के बाद सितंबर में तीन आईएस रिटायर होंगे। इनमें बीवीआर सुब्रमणियम भी शामिल हैं। 87 बैच के सुब्रमणियम फिलहाल भारत सरकार में डेपुटेशन पर हैं। सुब्रमणियम के अलावा ए. टोप्पो और इमिल लकड़ा भी इस साल सितंबर में सेवानिवृत्त होंगे। दिलचस्प यह है कि ऐसे मौके कम आते हैं कि पति पहले रिटायर करें और पत्नी बाद में। सूबे की अफसरशाही में जितनी जोड़ियां हैं, सबमें पत्नी पहले, पति बाद में रिटायर हुए और आगे भी होंगे। लेकिन, आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम इस साल सितंबर में रिटायर होंगे और उनकी आईएफएस वाइफ उमा देवी दिसंबर में। हालांकि, बीवीआर करिश्माई अफसर हैं...अगर भारत सरकार में एकाध, दो साल का एक्सटेंशन मिल गया तो फिर वो पत्नी के बाद रिटायर होंगे।

थोक में प्रमोशन

वन विभाग में लंबित प्रमोशन को डीपीसी ने क्लियर कर दिया है। फाइल अंतिम हस्ताक्षर के लिए मुख्यमंत्री के पास गई है। इसमें सीसीएफ एसएसडी बड़गैया अब एडिशनल पीसीसीएफ हो जाएंगे। वहीं, सीएफ राजेश चंदेले, मर्सी बेला, अमिताभ बाजपेयी, रामवतार दुबे समेत पांच आईएफएस सीसीएफ बन जाएंगे। वन विभाग में नीचे लेवल पर भी थोक में पदोन्नतियां हुई हैं। 131 डिप्टी रेंजर प्रमोशन पाकर रेंजर बन गए। 22 रेंजर एसडीओ बनें।

अगले साल चुनाव

कैलेंडर में 2021 से 2022 होने का फर्क कितना बडा है कि कल 31 दिसंबर की शाम तक कहा जाता था, छत्तीसगढ़ में 2023 में विधानसभा चुनाव है। और आज....अगले साल चुनाव है। चूकि अगले साल इलेक्शन ईयर है। लिहाजा अब सियासी पार्टियों की हलचल बढ़ेगी। सरकार अपनी रफ्तार और तेज करेगी तो विपक्षी पार्टियां आक्रमक होंगी। कुल मिलाकर  कांग्रेस के भीतर अभी प़क्ष-विपक्ष का रोल अदा किया जा रहा था, अब इसके किरदार बदलेंगे। सोई हुई बीजेपी अब विपक्ष की भूमिका में आ सकती है।    

प्रमोशन और लिस्ट

आईएएस के प्रमोशन लगभग फायनल है। सब कुछ ठीक रहा तो दो-एक दिन में आदेश जारी हो जाएंगे। 97 बैच के तीन आईएएस प्रमुचा सचिव बनेंगे और 2006 बैच के सात आईएएस सिकरेट्री। पता चला है, सिकरेट्री के प्रमोशन के बाद मंत्रालय स्तर पर सचिवों के दायित्वों में फेरबदल किया जाएगा। आधे दर्जन के करीब सिकरेट्री इधर-से-उधर किए जाने की अटकलें हैं। कुछ बोर्ड और निगमों में भी सरकार एचओडी बदलेगी। 

कलेक्टरों की सर्जरी

कलेक्टरों की लिस्ट भी तैयार हो रही है। चर्चाओं के अनुसार सरकार फिलहाल लिस्ट बड़ी नहीं करना चाह रही। संकेत हैं, चेन बहुत बड़ा हुआ तो आधा दर्जन तक। हो सकता है, सरकार मई-जून में बड़ी सर्जरी करें। तब तक जरूरी समझा जाने वाला ही आदेश निकलेगा। जिन जिलों में जनप्रतिनिधियों का विरोध है, उन कलेक्टरों को बदलेगी।       

अंत में दो सवाल आपसे


1. बिलासपुर का अगला कलेक्टर रजत बंसल और संजीव झा में से कोई बनेगा या तीसरे की इंट्री होगी?

2.. भाजपा की राजनीति में क्या उथल-पुथल होने वाली है?

यहां चप्पल, वहां...

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 26 दिसंबर 2021

बिहार विधानसभा में पिछले हफ्ते एक अजीब वाकया हुआ। लेबर मिनिस्टर जीवेश मिश्रा की गाड़ी विधानसभा की पोर्च में खड़ी थी...गाड़ी में मंत्रीजी बैठे थे। मगर पुलिस वालों ने एक न सुनी...उनकी गाड़ी साइड करवा दी कि पटना के कलेक्टर, एसपी साहब की गाड़ी आ रही है। विधानसभा सत्र के दौरान मंत्री, एमएलए साब लोग ज्यादा पावरफुल हो जाते हैं। लेकिन, पटना में अफसरों के लिए मंत्री की गाडी किनार लगवा दी गई। मंत्रीजी ने तुरंत सदन के भीतर जाकर मामला उठाया...बोले...जब एक मंत्री के साथ अधिकारी ऐसा व्यवहार करेंगे तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा। स्पीकर ने उन्हें यह बोलकर बिठा दिया कि देखते हैं....। जाहिर है, उसमें कुछ होना नहीं था, इसलिए कुछ नहीं हुआ। पटना के कलेक्टर, एसपी सरकार के बेहद क्लोज हैं, ऐसे में मंत्री लोग समझदार थे....समझ गए। एक घटना छत्तीसगढ़ के मुंगेली में भी हुई है। लेकिन पटना से बिल्कुल उलट। यहां जिला पंचायत के आईएएस सीईओ रोहित व्यास को महिला सदस्य ने चप्पल लेकर मारने दौड़ा दी। वाकई! ये छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ। अफसर इसे अलार्मिंग मानें।

सीनियर जिम्मेदार-1

मुंगेली जिपं सीईओ रोहित व्यास के साथ दुर्व्यवहार की घटना हुई, उसके लिए क्या सीनियर अफसर जिम्मेदार नहीं हैं? रोहित नए आईएएस हैं। मुंगेली कैसा जिला है, निष्चित रूप से वे वाकिफ नहीं होंगे। वो भी महिला सदस्य...लैला नानकू भिखारी जैसी तेज। महिला नेत्री को इससे क्या मतलब कि आप प्रमोटी आईएएस हो या आरआर। आडियो में सुना ही जा रहा...रोहित बोल रहे, एसपी साब से बात करता हूं....महिला नेत्री कह रही...एसपी साहब क्या कर लेंगे, बुला लो। फिर मुंगेली के एसपी भी बहुत बड़े वाले। महिला नेत्री प्रतिनिधिमंडल के साथ जातिगत गाली देने की शिकायत लेकर पहुंचती है....वो भी डायरेक्ट आईएएस के खिलाफ। एसपी बोलते हैं...आप सभी का स्वागत है...जांच के बाद कार्रवाई होगी। बहरहाल, सीनियर अफसर अगर रोहित को मुंगेली की हकीकत बता दिए होते तो यकीनन ब्यूरोक्रेसी को हिलाने वाली ये घटना नहीं होती।

सीनियर जिम्मेदार-2

पहले आईएएस अफसरों में बड़ा मेलजोल रहता था। प्रोबेशनर और जूनियर अफसर कलेक्टर, एसपी के बड़े घनिष्ठ हो जाते थे। कई बार परिवार के सदस्य की तरह। कलेक्टर, एसपी जूनियर अफसरों को डांटते भी थे, सीखाते भी थे और साथ में बिठाकर दो-एक पैग पिला भी देते थे। इससे नए अधिकारियों का स्ट्रेस खतम हो जाता था। मगर 2014-15 के बाद सीनियर-जूनियर अफसरों के बीच ये इंटरेक्शन धीरे-धीे खतम होते गए। आज अगर अमृत टोपनो स्ट्रेस में नौकरी से इस्तीफा देने की बात करते हैं तो कोई ऐसा सीनियर नहीं है, जो दो-चार गाली बके, डांटे और फिर पुचकारकर बता दे कि ये सब जीवन का हिस्सा है।

और ताकतवर

नगरीय निकाय चुनाव के इस तरह के नतीजों का दावा तो कांग्रेस के नेता भी नहीं कर पा रहे थे। सियासी पंडितों का भी तर्क था... भिलाई, चरौंदा और रिसाली में प्रबुद्ध वर्ग के वोटर ज्यादा हैं...शहरी मतदाता सरकार की नीतियों से बहुत खुश नहीं हैं। मगर जब रिजल्ट आया तो इन तीनों में कांग्रेस का परचम फहरा गया। स्थानीय चुनावों में रुलिंग पार्टी जीतती है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। बीजेपी के 15 साल के दौरान बिलासपुर, रायपुर, कोरबा, राजनांदगांव, भिलाई जैसे कई निगमों में कांग्रेस का महापौर रहा। जाहिर है, सियासत के इस सेमिफायनल में मिली जीत से सीएम भूपेश और ताकतवर हुए हैं।

आईपीएस की निगरानी

सर्विस रिव्यू कमेटी की अनुशंसा पर सरकार ने चार आईपीएस अफसरों के नाम भारत सरकार को भेजे हैं। इनमें से तीन को फोर्सली रिटायर और एक को निगरानी। निगरानी का मतलब होता है, संदिग्ध गतिविधियों को वॉच करना। याने पुख्ता सबूत नहीं है, मगर शक है। बीजेपी सरकार में लांग कुमेर को भी निगरानी में डाला गया था। ये अलग बात है कि वे डेपुटेशन पर अपने होम स्टेट नागालैंड जाकर डीजीपी बन गए। बहरहाल, जिन तीन आईपीएस को फोर्सली रिटायर करना है, उसमें से एक के बारे में पिछले तरकश में जिक्र किया गया था। सर्विस रिव्यू कमेटी के चेयरमैन चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन थे। मेम्बर में डीजीपी अशोक जुनेजा, एसीएस होम सुब्रत साहू और राजस्थान के डीजी डीएल सोनी। दरअसल, नियमानुसार चीफ सिकरेट्री ने राजस्थान के चीफ सिकरेट्री से एक डीजी लेवल के अफसर का नाम मांगे थे। सीएस ने 88 बैच के आईपीएस सोनी को भेज दिया। 4 दिसंबर को मीटिंग हुई। और, चार नाम तय किए गए। पिछली सरकार में सीएस विवेक ढांड की अध्यक्षता वाली रिव्यू कमेटी ने आईपीएस राजकुमार देवांगन, एएम जुरी और केसी अग्रवाल के नाम फोर्सली रिटायरमेंट के लिए भेजे थे। भारत सरकार ने तीनों को रिटायर कर दिया था। हालांकि, जुरी और अग्रवाल कैट से स्टे ले आए थे। देवांगन का कैरियर जरूर खतम हो गया।

बेचारे मंत्रीजी

एक मंत्रीजी को नगरीय निकाय चुनाव में प्रभारी बनाया गया था। वहां सत्ताधारी पार्टी पिछड़ गई। अब मंत्री की हालत पतली हो रही है। मंत्रिमंडल की सर्जरी में जिन तीन के नाम पब्लिक डोमेन में हैं, उनमें एक नाम उनका भी है। ऐसे में, उनकी चिंता समझी जा सकती है। पता चला है, मंत्रीजी ने अपने लोगों को फ्री हैंड दे दिया है...जो बोले...वो दे दो। मगर किसी भी सूरत में निकाय प्रमुख पार्टी का बनना चाहिए।

न्यू ईयर गिफ्ट

आईएएस अफसरों का प्रमोशन लगभग फायनल स्टेज में है। 97 बैच के सुबोध सिंह, निहारिका बारिक और एम गीता प्रमुख सचिव बनेंगे। और 2006 बैच के अंकित आनंद, श्रुति सिंह, पी0 दयानंद, सीआर प्रसन्ना, अलेक्स पाल मेनन, भुवनेश यादव और एस भारतीदासन सिकरेट्री। सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही इन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से न्यू ईयर गिफ्ट मिल सकता है।

नीयत पर सवाल

10 अक्टूबर के तरकश में-तेरे घर के सामने शिर्षक से स्तंभकार ने लिखा था कि नौकरशाहों को उपकृत करने एनआरडीए उनके सेक्टर के सामने रेलवे स्टेशन बनवा रहा। और यह बात सही निकली। रेलवे ने चार में से तीन के टेंडर निरस्त कर अब सिर्फ अफसरों की जमीन के पास वाले स्टेशन का टेंडर जारी कर दिया है। 30 दिसंबर को टेंडर भरा जाएगा। दरअसल, एनआरडीए ने सेक्टर 15 के सामने स्टेशन होने का हवाला देकर धड़ाधड़ पूरे प्लाट सेल कर डाले। उसमें कई नौकरशाहों ने दो-दो, तीन-तीन प्लाट खरीद डाले या फिर अपने नाते-रिश्तेदारों को खरीदवा दिए...10 साल बाद नवा रायपुर जब ठीक-ठाक हो जाएगा तो मस्त रहेंगे। बताते हैं, इस सेक्टर के 80 फीसदी प्लाट अफसरों या उनके रिश्तेदारों के नाम पर हैं। लेकिन, मामला तब गड़बड़ा गया जब रोकड़ा के अभाव में स्टेशन का प्रोजेक्ट बाइंडअप होने लगा। ऐसे में, नौकरशाहों की नाराजगी समझी जा सकती है...घर के सामने स्टेशन बनेगा, सोचकर पैसा फंसाए थे। अफसरों के गुस्से को देख एनआरडीए ने सिर्फ एक स्टेशन का रि-टेंडर किया है। वह सेक्टर 15 के बगल वाला। नौकरशाहों को इस तरह उपकृत करने से एनआरडीए की नीयत पर सवाल तो उठेंगे ही।

खड़मास में शपथ!

यह तय हो चुका है कि चारों नगर निगमों में सत्ताधारी पार्टी का महापौर बनेगा। अब सवाल है, परिषद का गठन कब होगा? नियम यह है कि राजपत्र में नोटिफिकेशन प्रकाशित होने के बाद 15 दिन के भीतर परिषद गठित होगा। राज्य निर्वाचन आयोग ने 24 दिसंबर को राजपत्र में प्रकाशित किया है। लिहाजा, 8 जनवरी तक महापौर एवं नगरपालिका, नगर पंचायत प्रमुखों को शपथ लेना होगा। इस समय खड़मास चल रहा होगा। लेकिन, किया कुछ नहीं जा सकता...नियम मतलब नियम।


अंत में दो सवाल आपसे

1. सर्विस रिव्यू कमेटी ने आईपीएस अफसर का नाम निगरानी सूची में रखने की सिफारिश की है?

2. मंत्रिमंडल की सर्जरी की चर्चा शुरू होने के बाद किस मंत्री को रात में नींद की गोली लेनी पड़ रही है?