रविवार, 20 जनवरी 2019

रहिमन चुप हवे बैठिए….

20 जनवरी 2019
25 साल तक ब्यूरोक्रेसी की खूब चली। दिग्विजय सिंह के समय मध्यप्रदेश में और 2000 के बाद छत्तीसगढ़ में। दिग्गी राजा ने भी नौकरशाही का कम उपयोग थोड़े किया। छत्तीसगढ़ में शुक्ल बंधुओं को टाईट रखने के लिए चुन-चुनकर कलेक्टर भेजे। आखिरी-आखिरी में बिलासपुर के कई मंत्री जब बाउंड्री को लांघने लगे तो शैलेंद्र सिंह को कलेक्टर बनाकर भेज दिया था। शैलेंद्र सिंह ने सारे नेताओं की दुकान बंद करवा दी थी। जोगी शासन काल में भी नौकरशाहों का जलवा कम नहीं रहा। और, अब रमन सरकार पर नौकरशाही हॉवी होने के आरोप बीजेपी के लीडर ही लगा रहे हैं। अलबत्ता, स्थितियां अब बदल गई हैं। आधी रात को चीफ सिकरेट्री और डीजीपी की कुर्सी खिसक गई। आईएएस, आईपीएस के ऐसे ट्रांसफर हुए कि कोई इधर गिरा, कोई उधर….। मुकेश गुप्ता, नान, जीरम, चिप्स, संवाद के खिलाफ जांच बैठ गई। ऐसे में, अफसरशाही रहीम के इस दोहा को याद कर चुपचाप बैठने में अपनी भलाई समझ रही होगी…. रहिमन चुप हवे बैठिए, देखी दिनन के फेर, जब नीके समय आईहे, बनत न लगीहे देर। चलिये, लोकसभा चुनाव के बाद शायद ये, नीके समय… आ जाए। आखिर उम्मीद पर पूरी दुनिया टिकी है।

अध्यक्ष का टोटका

विधानसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय के बाद बीजेपी एक बार फिर आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को प्रदेश की कमान सौंपने जा रही है। बताते हैं, उनके नाम पर सहमति बन गई है….किसी भी दिन इसका ऐलान हो जाएगा। बता दें, छत्तीसगढ़ में भाजपा ने लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीते और तीनों में आदिवासी नेताओं की भूमिका अहम रही। पहली बार 2003 में डा0 रमन सिंह जरूर पार्टी के अध्यक्ष रहे लेकिन, सदन में पार्टी की बागडोर नंदकुमार साय के हाथ में रही। इसके बाद दोनों विस चुनावों में पार्टी की कमान आदिवासी लीडर के हाथ में रही। 2008 के विधानसभा चुनाव में रामसेवक पैकरा और 2013 में विष्णुदेव साय पार्टी के अध्यक्ष रहे। और, दोनों में भाजपा को फतह मिली। पिछले साल भी विष्णुदेव साय को अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी में चर्चा हुई थी। इसके पीछे आदिवासी वर्ग को साधने के साथ ही पार्टी का वह टोटका भी था कि आदिवासी अध्यक्ष रहते चुनाव में बीजेपी को जीत मिलती है। लेकिन, राज्य सभा की टिकिट के लिए सरोज पाण्डेय से शिकस्त मिलने के बाद धरमलाल कौशिक को अध्यक्ष के रूप में कंटिन्यू कर दिया गया। अब देखना दिलचस्प होगा, विष्णुदेव साय को अध्यक्ष बनाने से लोकसभा चुनाव में भाजपा का यह टोटका कितना काम आ पाता है।

गुरू गुड़ और चेला….

जूनियर अफसरों से काम कराने का जो ट्रेंड रमन सरकार में शुरू हुआ, भूपेश सरकार भी उससे बच नहीं पा रही। एसपी की पोस्टिंग में यह साफ तौर पर परिलक्षित हुई। रायपुर, बिलासपुर के बाद बड़े जिलों में रायगढ़ की गिनती होती है। किसी भी आईपीएस का वह दूसरा या तीसरा जिला होता था। एसपी के तौर पर दीपक झा का भी रायगढ़ तीसरा जिला था। उन्हें हटाकर सरकार ने राजेश अग्रवाल को एसपी बनाया है। राजेश को अचार संहिता लगने के दिन आईपीएस अवार्ड हुआ। उन्हें अभी बैच भी नहीं मिला है। बावजूद इसके, पहली बार में उन्हें रायगढ़ की कप्तानी सौंप दी गई। जबकि, 2006 बैच के आरएन दास जांजगीर और प्रशांत अग्रवाल बलौदाबाजार के एसपी है। हिट तो यह भी है कि प्रशांत पिछले साल जब राजनांदगांव के एसपी थे तो राजेश उनके एडिशनल एसपी। लेकिन, गुरू गुड़ रह गया और चेला शक्कर। सबसे बड़ी दिक्कत विजय अग्रवाल को होने वाली। राजेश के साथ ही आईपीएस बनें विजय बिलासपुर में अभी एडिशनल एसपी हैं। आईजी कभी कप्तानों की मीटिंग बुलाएंगे तो राजेश ठसके से आईजी के सामने बैठेंगे और विजय उनके लिए चाय-पानी का इंतजाम करते नजर आएंगे। वाह भाई! गजब की पोस्टिंग है।

नो कमेंट्स

आईपीएस पारुल माथुर छोटे से जिले मुंगेली की एसपी हैं। उनके पिता राजीव माथुर भी पहले मध्यप्रदेश, बाद में छत्तीसगढ़ कैडर के आईपीएस रहे। राजीव रायपुर के आईजी रहे। पुराने लोगों को याद होगा, आईजी रहने के समय वे वेश बदलकर थानों का निरीक्षण करने पहुंच जाते थे। कांग्रेस नेताओं से कथित संबंधों को लेकर पुरानी सरकार में उन्हें वेटेज नहीं मिला। सरकार के रुख को भांप कर ही वे डेपुटेशन पर भारत सरकार चले गए थे। और, वहीं से रिटायर हो गए। जाहिर है, उनकी बेटी पारुल को भी अच्छी पोस्टिंग नहीं मिली। चार साल से उपर तक रेलवे एसपी रहीं। पिछले साल वे उस मुंगेली जिले में भेजी गई, जहां फ्रेश आईपीएस भी नहीं जाना चाहते। कांग्रेस की नई सरकार से उन्हें जरूर उम्मीद रही होगी, लेकिन, इसमें भी वैसा ही हुआ। उन्हीं की 2008 बैच की नीतू कमल जांजगीर के बाद राजधानी की एसपी बन गई और पारुल मुंगेली में ही छुट गईं। इसी तरह दास और प्रशांत से चार बैच जूनियर 2010 बैच के अभिषेक मीणा बिलासपुर जैसे बड़े जिले के एसपी हैं।

बालोद को भूली सरकार

बलोद भले ही छोटा जिला है मगर नक्सली और दल्ली राजहरा माइंस के कारण सेंसेटिव केटेगरी में आता है। लेकिन, 25 दिसंबर से वहां कप्तान की कुर्सी खाली है। आईके ऐलेसेला को हटाकर सरकार ने नारायणपुर भेजा था, उसके बाद वहां कोई पोस्टिंग नहीं हुई है। हालांकि, ऐलेसेला को सरकार ने दस दिन के भीतर ही नारायणपुर से बुलाकर ईओडब्लू में पोस्ट कर दिया। मगर बालोद को लगता है, वह भूल ही गई है। जबकि, सीएम भूपेश बघेल के दुर्ग जिला से बालोद बिल्कुल सटा है। इसके बाद भी पुलिस महकमा संज्ञान नहीं ले रहा तो यह गंभीर बात है।

पिंगुआ को पावर

आईएएस मनोज पिंगुआ डेपुटेशन से लौटने वाले है। हो सकता है, 15 फरवरी तक वे यहां ज्वाईन कर लें। हालांकि, उनका डेपुटेशन एक साल पहले पूरा हो गया था। लेकिन, बच्चों की पढ़ाई के चलते उन्होंने उसे एक साल बढ़वा लिया था। बहरहाल, रायपुर लौटने पर जाहिर है, उन्हें अच्छी पोस्टिंग मिलेगी। वैसे भी कई अफसरों के पास विभागों का ओवरलोड है। 94 बैच के आईएएस पिंगुआ प्रिंसिपल सिकरेट्री लेवल के अफसर हैं। पिछले साल ही उन्हें प्रोफार्मा प्रमोशन मिला था। दिल्ली जाने के पहिले उनके पास ट्राईबल और जीएडी था। ट्राईबल में आदिवासी बच्चों की छात्रवृत्ति हड़पने वाले शिक्षा संस्थानों के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी।

ओवरलोडेड सिकरेट्री

मंत्रालय में तीन आईएएस अफसर इतने ओवरलोडेड हो गए हैं कि उनकी घरवाली दुखी हो गई होंगी। खासकर सिकरेट्री टू सीएम गौरव द्विवेदी के पास पुराना स्कूल शिक्षा तो बरकरार है ही, उपर से माईनिंग, पब्लिक रिलेशंस, आईटी जैसे कई और विभाग जुड़ गए हैं। जबकि, सिकरेट्री टू सीएम होना ही एक बड़ा टास्क होता है। सारे विभागों की फाइलें सिकरेट्री से होकर ही सीएम तक जाती है। सिकरेट्री को सुबह-शाम सीएम हाउस भी जाना होता है। हाउस में भी विभिन्न मीटिंगे होती है। सीएस से कोआर्डिनेशन का दायित्व सिकरेट्री टू सीएम के पास होता है। उनके बाद नम्बर आता है 87 बैच के आरपी मंडल और 89 बैच के अमिताभ जैन का। मंडल के पास पंचायत पहले से था, अब गृह, जेल और परिवहन मिल गया है। पंचायत और गृह बड़े विभाग हैं। राज्य बनने के बाद गृह में हमेशा अलग सिकरेट्री रहा है। बड़े राज्यों में तो जेल और परिवहन के भी सिकरेट्री होते हैं। अमिताभ के पास फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण फायनेंस तो है ही। इसके साथ वाणिज्य और उद्योग एवं पीडब्लूडी भी है। हालांकि, वे फायनेंस और पीडब्लूडी में पहले भी रह चुके हैं, इसलिए इनमें उन्हें दिक्कत नहीं जाएगी। वाणिज्य और उद्योग जरूर उनके लिए नया होगा। बहरहाल, पता चला है, इनमें से एक का रोज पत्नी से विवाद हो जा रहा…क्योंकि शाम को वे समय पर घर नहीं लौट पा रहे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. धुर विरोधी कहे जाने वाले रमन सरकार के कुछ मंत्री क्यों हाथ मिला रहे हैं?
2. टीएस सिंहदेव क्यों बोल गए कि अमरजीत भगत मंत्री बन सकते हैं?

पोस्टिंग का वर्ल्ड रिकार्ड

सूबे के सबसे सीनियर आईपीएस गिरधारी नायक ने जेल विभाग में पोस्टिंग का वर्ल्ड रिकार्ड बना डाला है। जेल डीजी बने उन्हें 6 साल सात महीने हो चुके हैं। इतने लंबे समय तक जेल विभाग का प्रमुख भारत में ही नहीं, वर्ल्ड में भी कोई नहीं रहा है। चलिये, नायक डीजीपी नहीं बन पाए अलबत्ता, लंबी पोस्टिंग का रिकार्ड जरूर बनाने में कामयाब हो गए। हालांकि, प्रभारी डीजीपी रहने के दौरान जिस झीरम घाटी की फाइल तलब कर पिछली सरकार की नजरों में चढ़े थे, इसे भी उपर तक नहीं बता पाए। क्योंकि, झीरम इश्यू पर भूपेश सरकार बेहद संजीदा है। एसआईटी भी बन गई है। और, जो आईपीएस झीरम की फाइल के कारण ही बियाबान में धकेला गया, वह जेल में वर्ल्ड रिकार्ड बना रहा है। आखिर इसे दुर्भाग्य ही तो कहा जाएगा।

सीएस का फैसला

नई सरकार में सबसे अप्रत्याशित रहा चीफ सिकरेट्री अजय सिंह की छुट्टी। ऐसे समय में जब यह माना जाने लगा था कि लोकसभा चुनाव के बाद ही अब सीएस पर सरकार विचार करेगी, भूपेश सरकार ने बुधवार की देर रात बस्तर से लौटते ही उन्हें बदलने का आदेश दे दिया। बुधवार को कोंडागांव के रोड शो में सीएम को लेट हो गया। सूर्यास्त होने के कारण हेलिकाप्टर टेकऑफ नहीं कर पाता। इसलिए, वे कार से राजधानी के लिए रवाना हुए। बताते हैं, रास्ते में ही उन्होंने सीएस बदलने का फैसला किया। और, फोन से सीएम सचिवालय के अफसरों को नोटशीट तैयार करने के लिए ब्रीफ किया गया। सीएम रात करीब 11 बजे पहुना पहुंचे। इसके बाद उनके सामने नोटशीट प्रस्तुत की गई और उन्होंने उसे ओके कर दिया।

पारफारमेंस से दुखी

सीएस अजय सिंह ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए हालांकि कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। काउंटिंग के दिन कांग्रेस के पक्ष़्ा में रूझान मिलते ही उन्होंने कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल किसानों के कर्जमाफी का प्रासेज शुरू करा दिया था। तब सुनील कूजूर एसीएस कृषि थे। अजय सिंह ने जब उन्हें कर्जमाफी का ब्यौरा जुटाने का निर्देश दिया था तो कुजूर का माथा भी घूम गया था….काउंटिंग अभी कंप्लीट भी नहीं हुई है और सीएस साब हरकत में आ गए हैं। लेकिन, इसके बाद अच्छा नहीं हुआ। अंदर की खबर यह है कि भूपेश उनके पारफारमेंस से संतुष्ट नहीं थे। इस स्तंभकार से बातचीत में सीएम ने सीएस के पारफारमेंस पर कुछ नहीं कहा, लेकिन यह जरूर बोले कि सीएस ने अपने से होकर किसी नई योजना पर कोई सुझाव दिया और न ही कोई अपडेट। जाहिर है, इससे सीएम खुश नहीं रहे होंगे।

गौरव का प्रमोशन

सिकरेट्री टू सीएम बनने के बाद आईएएस गौरव द्विवेदी को अब प्रमोशन के रूप में सरकार से न्यू ईयर गिफ््ट मिल सकता है। गौरव 95 बैच के आईएएस हैं। 94 बैच के आईएएस पिछले साल प्रिंसिपल सिकरेट्री बन चुके हैं। इस चलते जनवरी में 95 बैच का प्रमोशन ड्यू हो गया है। गणेश शंकर मिश्रा के पिछले साल रिटायर होने के कारण पीएस का पद भी खाली है। और फिर इस पोस्ट के लिए और कोई दावेदारी भी नहीं है। गौरव 95 बैच के छत्तीसगढ़ में अकेले आईएएस हैं। सीआर भी आउटस्टैंडिंग है। प्रिंसिपल सिकरेट्री बनाने के लिए डीपीसी में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया से भी कोई अफसर नहीं आता। यहां से सिर्फ अनुमति के लिए लेटर जाता है। वहां से ओके होते ही चीफ सिकरेट्री और एक सीनियर एसीएस की मौजूदगी में किसी भी दिन उनके प्रमोशन पर मुहर लगा दिया जाएगा।

आधी रात का सच!

भूपेश से मीडिया परेशान है। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद अधिकांश ट्रांसफर आधी रात के बाद हुए हैं। और, मीडिया का वर्किंग कल्चर आजकल बदल गया है। इलेक्ट्रानिक चैनल में रात दस के बुलेटिन के बाद काम लगभग खतम हो जाता है। इसके बाद वैसे खबरों की टीआरपी भी नहीं होती। और प्रिंट और वेब में भी रात 11 बजे तक काम समेटा जाता है। भूपेश जब से सीएम बनें हैं, सिर्फ रिपोर्टरों को ही नहीं बल्कि संपादकों को भी रतजगी करनी पड़ रही है, पता नहीं कौन सी लिस्ट आ जाए। हालांकि, एक शोक मिलन में पहुंचे सीएम से कुछ लोगों ने इस आधी रात की सच के बारे में पूछ ही लिया। भूपेश बोले, सरकार दिन भर काम में व्यस्त रहती है। लिहाजा, सेटअप और ट्रांसफर के लिए दिन में सोचने का वक्त नहीं बचता। सो रात में….। अलबत्ता, उन्होंने खुद भी चुटकी ली, कई पत्रकार रात में सोने से पहिले फोन करते हैं….कोई लिस्ट तो नहीं आ रही।

छप्पड़ फाड़कर

ठीक ही कहा गया है, उपर वाला देता है तो छप्पड़ फाड़कर। आईएएस सुनील कुजूर से बढ़ियां इसे कौन समझ सकता है। कहां दो साल पहले तक वे एसीएस बनने के लिए धक्के खा रहे थे। मगर डीपीसी नहीं हो पा रही थी। वो तो थैंक्स कहें आईपीएस राजीव श्रीवास्तव को, जिनके डीजी बनने के बाद आईएएस एसोसियेशन के चेयरमैन बैजेंद्र कुमार ने कुजूर के लिए हल्ला किया। तब जाकर कुजूर को प्रमोशन मिल सका। इसी साल अक्टूबर में उनका रिटायरमेंट है। इसलिए, वे मान कर चल रहे थे कि एसीएस से ही उन्हें रिटायर हो जाना है। वैसे भी, वे कोई महत्वकांक्षी अफसर नहीं है। बिल्कुल पूर्व डीजीपी एएन उपध्याय की तरह। वे भी कभी नहीं सोचे थे कि डीजीपी बनेंगे। क्योंकि, तीन-तिकड़म उपध्याय का स्वभाव नहीं है। लेकिन, उपर वाले ने ऐसा छप्प़ड़ फाड़कर दिया कि पौने पांच साल पुलिस प्रमुख रहकर देश के दूसरे लंबे कार्यकाल वाले डीजी बन गए। हालांकि, कुजूर के पास समय बहुत कम है। फिर भी, चीफ सिकरेट्री कितने आईएएस बन पाते हैं।

रमन की जीत

डा0 रमन सिंह भले ही पार्टी को चौथी बार सत्ता में लाने में कामयाब नहीं हो सकें लेकिन, धरमलाल कौशिक को नेता प्रतिपक्ष बनवाकर यह संदेश देने में कामयाब रहे हैं कि दिल्ली में उनकी पकड़ बरकरार है। वरना, तो नेता प्रतिपक्ष के लिए पांच-पांच विधायकों ने दावेदारी करके उनकी नींद ही उड़ा दी होगी। जाहिर है, उनके पसंद का कोई विधायक इस पद पर नहीं बैठता तो आगे चलकर उन्हें सियासी नुकसान होता। इसलिए, वे पहले से ही धरमलाल के नाम को आगे कर दिए थे। और, तमाम विरोधों के बाद भी दिल्ली से एक लाइन का मैसेज आ गया, धरम को ओके किया जाए।

सेम बैच

छत्तीसगढ़ बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब चीफ सिकरेट्री और डीजीपी सेम बैच के होंगे। सीएस सुनील कुजूर 86 बैच के आईएएस और डीजीपी डीएम अवस्थी 86 बैच के आईपीएस हैं। इससे पहले एक बार को छोड़कर सीएस हमेशा बैच में डीजीपी से सीनियर रहता था। सिर्फ विश्वरंजन के समय ऐसा हुआ था कि चीफ सिकरेट्री से डीजीपी बैच में सीनियर हो गया है। विश्वरंजन जब डीजीपी थे, तब सीएस पी जाय उम्मेन उनसे पांच बैच जूनियर थे।

पोस्टिंग के मायने

आईपीएस की लिस्ट में सरकार ने तीन रेंज के आईजी समेत पांच आईपीएस अफसरों को बदल दिया। इनमें एडीजी अरुणदेव गौतम दूसरी बार सिकरेट्री होम बनाकर पीएचक्यू से मंत्रालय भेज दिए गए। रमन सरकार में भी वे एक बार सिकरेट्री होम रह चुके हैं। पिछले साल ही वे मंत्रालय से पीएचक्यू लौटे थे। आईपीएस की लिस्ट की सबसे अहम रहा, आईजी एसआरपी कल्लूरी को मेन स्ट्रीम में लाकर आईजी एसीबी-ईओडब्लू बनाना। वैसे, समझदार लोग इस पोस्टिंग के निहितार्थ समझ गए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्री कवासी लकमा को आबकारी, वाणिज्य और उद्योग जैसे विभाग देने के क्या मायने हैं?
2. नए डीजीपी डीएम अवस्थी अगर क्रीज पर जम गए तो कितने अफसरों की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा?

कांग्रेस के गढ़ में कमल!

यह सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ कांग्र्रेस का गढ़ रहा है। जनता पार्टी की लहर में मध्यप्रदेश के समय सबसे अधिक छत्तीसगढ़ से कांग्रेस को सीटें मिली थी। तो अभी भी देश में कांग्रेस कहीं मजबूत है तो वह है, छत्तीसगढ़। इसके बाद भी बीजेपी पिछले 15 साल से राज कर रही है तो उसे इसका गुमान नहीं होना चाहिए। याद होगा, एक विधायक ने पिछले साल अमित शाह के रायपुर विजिट में जब सरकार की शिकायत की तो शाह ने उस विधायक को लगभग झिड़की देते हुए कहा था कि यह मत भूलिये.....कांग्रेस के गढ़ में यहां तीन बार सरकार बनी है। बीजेपी नेता भी मानते हैं, 2003 में अगर जोगी सरकार की एंटी इंकाम्बेंसी और दूसरा, एनसीपी नहीं होती तो कांग्रेस की सरकार रिपीट हो गई होती। 2008 में सस्ता चावल की वजह से सरकार जरूर बन गई। मगर याद कीजिए....इतनी बड़ी सौगात देने के बाद भी सीटों की संख्या में कोई फर्क नहीं पड़ा। वास्तव में चावल योजना के बाद तो बीजेपी की सीटें 60 से उपर चली जानी चाहिए थी। 2013 में भी बीजेपी ने सतनामी समाज की मदद लेकर सरकार बनाने में कामयाब रही। 10 में से नौ अजा सीटें बीजेपी की झोली में चली गई। जबकि, आरक्षण की वजह से कांग्रेस इस कंफीडेंस में रही कि अजा सीटों पर बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाएगा। 10 में से पांच सीटें भी अगर कांग्रेस लेने में सफल हो गई होती तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होती। इस बार भी भाजपा की उम्मीद की वजह सिर्फ थर्ड फ्रंट है।
47 और 52
भाजपा नेताओं को पूर्ण विश्वास है कि वह सरकार बनाने के जादुई आंकड़े जुटा लेगी। उसे लगता है, कम-से-कम 47 सीटें उसे मिल जाएगी। याने बहुमत से एक अधिक। इसमें एकाध कम भी हुआ तो बीजेपी के पास बहुत सारे तवे हैं, उस पर वह रोटी सेंक लेगी। वहीं, कांग्रेस स्पष्ट तौर पर यह मानकर चल रही है कि उसे गिरे हालत में भी 52 सीटें मिल रही है। टीएस सिंहदेव को यकीन है.....हम 52 मानकर चल रहे हैं। उससे अधिक भी आ जाए तो आश्चर्य नहीं। वहीं, भूपेश बघेल को इससे भी अधिक की उम्मीद है। भूपेश की मानें तो बदलाव की हवा में थर्ड फ्रंट की कोई भूमिका नहीं रह जाती।

सडन डेथ


90 में से करीब दस सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी और कांग्रेस में कांटे का मुकाबला है। इसमें सडन डेथ से फैसला होगा। 2013 के विस चुनाव में भी दो-एक सीटों पर दो सौ से छह सौ मतों से जीत-हार तय हुई थी। सडन डेट वाली सीटों में इस बार दो-एक मंत्रियों का मामला भी हो सकता है। वे भी पांच सौ-हजार वोट से अपनी सीट निकालेंगे या फिर सब कुछ गवांएंगे। सियासी प्रेक्ष़्ाक भी मानते हैं, सडन डेथ वाली सीटें निर्णायक होंगी।   

नो चेंज या बड़ी उठापटक


यह बात स्पष्ट है कि सरकार अगर रिपीट हुई तो प्रशासनिक हल्को में बड़ा बदलाव नहीं होगा। कांग्रेस की सरकार बनने की आस में दो-चार अफसरों ने गुलाटी मारने की कोशिश की है, सिर्फ उन्हें ही बियाबान में भेजा जाएगा। 2011 बैच के आईएएस को कलेक्टर बनाया जाएगा। इसके अलावा बाकी चेंजेस लोकसभा चुनाव के बाद ही होंगे। लेकिन, सरकर कांग्रेस की बनी तो फिर पूछिए मत! पूरा उलटफेर हो जाएगा। 27 में से 15 से अधिक जिलों के कलेक्टर-एसपी बदल दिए जाएंगे। मंत्रालय में भी मेजर सर्जरी होगी। उस पर अगर भूपेश बघेल सीएम बनें तो सीएस, डीजीपी समेत मंत्रालय से लेकर तहसीलों तक के अफसर चेंज हो जाएंगे। टीएस, महंत या ताम्रध्वज को मौका मिलने पर उतना बड़ा चेंज नहीं होगा। हो सकता है, डीजीपी न बदलें। नौकरशाही फिलहाल तेल की धार समझने में लगी है। कुछ आईएएस, आईपीएस दोनों ओर सीटों की फीडबैक दे रहे हैं। याने डबल नावों की सवारी। हालांकि, पहले थर्ड फ्रंट और अब एग्जिट पोल ने ब्यूरोक्रेसी को कंफ्यूज कर दिया है। आखिर वे किधर हाथ बढ़ाएं?

भूपेश का गेटअप


कांग्रेस में सीएम के चार सक्रिय दावेदार हैं। भूपेश बघेल, चरणदास महंत, टीएस सिंहदेेव और ताम्रध्वज साहू। ऐसा कहा जा रहा है कि चारों ने अपने मंत्रिमंडल का प्रारुप तैयार कर लिया है। लेकिन, बॉडी लैग्वेज, कंफीडेंस और गेटअप तो भूपेश का दिख रहा है। जबर्दस्त जोश में दिख रहे हैं। एग्जिट पोल के दौरान टीवी पर उनका गेटअप और आत्मविश्वास कुछ अलग दिखा। तो क्या ऐसा मान लें कि दिल्ली से उन्हें कोई इशारा मिल गया है। हालांकि, ये तो उनके विरोधी भी मानते हैं कि कांग्रेस की जमीन तो भूपेश ने ही तैयार की। लेकिन, बचे तीनों भी कोई कसर नहीं उठा रखेंगे। 

सिकरेट्री टू सीएम


हालांकि, 11 दिसंबर को दोपहर तक ही स्पष्ट हो पाएगा कि सरकार किसकी बन रही है। मगर, सरकार बदलने की स्थिति में नौकरशाहों की सबसे अधिक नजर सिकरेट्री टू सीएम पद पर गड़ी हुई है। सरकार में मुख्यमंत्री के बाद अघोषित तौर पर सबसे कोई ताकतवार पद होता है तो वह है सिकरेट्री टू सीएम। मध्यप्रदेश के समय दिग्विजय सिंह सरकार में भी लोगों ने इसे देखा तो रमन सिंह गवर्नमेंट में पिछले 15 साल से लोग देख ही रहे हैं। रमन सरकार में अमन सिंह ने इसे और क्रेजी बना दिया है। दरअसल, मुख्यमंत्री अपने सबसे भरोसेमंद अफसर को सिकरेट्री अपाइंट करते हैं। सीएम सचिवालय के जरिये ही फाइलें मुख्यमंत्री तक पहुंचती है। इसे ऐसा कह सकते हैं, सीएम का सबसे अधिक राजदार उनका सिकरेट्री होता है। उसका कंपीटटेंट होना सबसे पहली शर्त होती है। सीएम सचिवालय के अफसरों के लिए सीएम हाउस का दरवाजा हमेशा खुला होता है। अभी अमन सिंह के साथ सुबोध सिंह और रजत कुमार सचिवालय में हैं। सरकार अगर बदली तो मानकर चलें, कम-से-कम नए सचिवालय में तीन आईएएस अपाइंट होंगे। और नहीं तो....फिर बदलने का सवाल ही पैदा नहीं होगा। बल्कि, सबका रुतबा और बढ़ जाएगा।

पुनिया  भी मौजूद


11 को काउंटिंग को लेकर कांग्रेस इतना उत्साहित है कि जश्न मनाने की तैयारी भी शुरू हो गई है। प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया भी 11 को सुबह रायपुर पहुंच रहे हैं। पुनिया को कांग्रेस नेताओं ने बुलाया है। मतगणना के दौरान वे राजीव भवन में मौजूद रहेंगे।   

अंत में दो सवाल आपसे


1. ब्यूरोक्रेसी के लिए सबसे उपयुक्त मुख्यमंत्री कौन रहेगा?
2. जोगी कांग्रेस-बसपा को आप कितनी सीटें मिलने की उम्मीद कर रहे हैं?