शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

एक सीट कांग्रेस को!

9 सितंबर
विधानसभा चुनावों में पहिले बीजेपी और कांग्रेस में तीन-चार सीटों का गिव एंड टेक होता था। याने तू मुझे जीता, मैं तूझे….। दरअसल, उन सीटों पर जानबूझकर कमजोर प्रत्याशी उतारे जाते थे। ताकि, डील न गड़बड़ाए। रायपुर की एक सीट पर एक बड़े नेता के खिलाफ विरोधी पार्टी पिछले कई चुनाव से डमी प्रत्याशी उतार रही है। मगर इस दफा चुनाव में मुकाबला इतना टफ और नजदीकी रहेगा कि कोई पार्टी रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है। भले ही सामने वाले नेता कितना करीबी और उपयोगी क्यों न हो। हां, कोरबा में बीजेपी जरूर कांग्रेस को जीताने का प्रयास कर सकती है। इसके पीछे मिथक यह है कि वहां जिस पार्टी का विधायक चुना जाता है, राज्य में उसके विरोधी दल की सरकार बनती है। जय सिंह अग्रवाल दो बार से कोरबा से कांग्रेस के विधायक हैं। इससे पहिले 2003 में कटघोरा विस मे कोरबा आता था, तब कांग्रेस के बोधराम कंवर वहां से जीते थे। तब राज्य में बीजेपी की सरकार बनी थी। 1998 में बीजेपी के बनवारी लाल अग्रवाल जीते, तो अविभाजित मध्यप्रदेश में सरकार कांग्रेस की बन गई थी। ऐसे में, कोरबा से जय सिंह अग्रवाल खड़े हों या आरपीएस त्यागी, सत्ताधारी पार्टी कैसे नहीं चाहेगी कि कांग्रेस वहां से जीत जाए।

भूपेश का फेस

कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भले ही अलग-अलग दावे और अटकलें लगाई जा रही हों मगर सर्वे के आधार पर बात करें तो पीसीसी चीफ भूपेश बघेल का पलड़ा भारी होता जा रहा है। अभी तक जितने सर्वे हुए हैं, सबमें पसंदीदा मुख्यमंत्रियों में डा0 रमन सिंह के बाद भूपेश का नाम प्रमुखता से आ रहा है। हालांकि, कांग्रेस में दावेदारों की कमी नहीं है। भूपेश के साथ टीएस सिंहदेव, चरणदास महंत, रविंद्र चौबे, धनेंद्र साहू, सत्यनारायण शर्मा अग्रिम पंक्ति के अनुभवी लीडर हैं। आदिवासियों में चार बार के विधायक रामदयाल उईके भी कम आशान्वित नहीं हैं। दिल्ली की राजनीति में सांसद ताम्रध्वज साहू अलग अपनी स्थिति मजबूत करते जा रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के भीतर ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो मानते हैं कि पार्टी कहीं सत्ता में आई तो भूपेश की बजाए फलां को सीएम बनाया जाएगा….एक बड़े वर्ग का ये भी विश्वास है कि मुख्यमंत्री हमेशा दिल्ली से आता है। याने सांसद सीएम बनता है। जाहिर है, इशारा ताम्रध्वज की ओर है। लेकिन, सर्वे एकतरफा भूपेश की ओर जा रहा है। सियासी पंडितों का कहना है, इससे पार्टी के भीतर भूपेश की न केवल दावेदारी मजबूत हो रही है बल्कि कांग्रेस के अपने समकक्ष नेताओं में एक बड़े फेस के रूप में वे स्थापित हो रहे हैं।

कलेक्टर्स….हिट विकेट?

विधानसभा चुनाव में अबकी कलेक्टरों के हिट विकेट होने की आशंका से सरकार भी चिंतित है। चार दिन की सुबह से शाम तक की ट्रेनिंग और परीक्षा पास करने के बाद भी भारत निर्वाचन आयोग के फुल कमीशन के समक्ष कलेक्टर्स और एसपी का पारफारमेंस कैसा रहा आखिर सबने देखा ही। दो कलेक्टर्स और एक एसपी की कमीशन ने जमकर क्लास ले डाली। असल में, सूबे के 27 में से सिर्फ एक बिलासपुर को छोड़कर बाकी सभी नए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में 26 कलेक्टरों का ये पहला विधानसभा चुनाव होगा। राजनांदगांवक कलेक्टर भीम सिंह लोकसभा चुनाव के दौरान नाइट वाचमैन के तौर पर जरूर धमतरी के कलेक्टर बनाए गए थे। लेकिन, लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बड़ा फर्क होता है। बहरहाल, बिलासपुर कलेक्टर दयानंद ऐसे डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन आफिसर होंगे, जिन्हें 2013 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा चुनाव कराने का तजुर्बा है। 2013 में वे कवर्धा कलेक्टर थे। ये उनका दूसरा विधानसभा चुनाव होगा।

सिद्धार्थ और दयानंद

बात कलेक्टर और इलेक्शन की निकली तो सिद्धार्थ कोमल परदेशी का जिक्र स्वाभाविक है। 2003 बैच के आईएएस सिद्धार्थ ने लगातार चार जिलों की कलेक्टरी की ही है। इनमें वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट कवर्धा और राजनांदगांव के साथ ही रायपुर और बिलासपुर जैसे पहले और दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा जिला शामिल हैं। यही नहीं, सिद्धार्थ छत्तीसगढ़ के पहले ऐसे कलेक्टर रहे, जिन्हें दो विधानसभा और दो लोकसभा इलेक्शन कराने का अवसर मिला। उन्होंने 2008 और 2013 के विधानसभा और 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव करवाया। अलबत्ता, बिलासपुर कलेक्टर दयानंद अपने तीन बरस सीनियर सिद्धार्थ का बड़ी तेजी से पीछा कर रहे हैं। उन्होंने परदेशी के लगातार चार जिलों में कलेक्टर रहने की बराबरी कर ली है, अगर लोकसभा चुनाव तक बिलासपुर में टिक गए तो सबसे अधिक चुनाव कराने वाले सिद्धार्थ की बराबरी कर लेंगे।

बंद कमरे में परीक्षा

चुनाव आयोग की परीक्षा में फेल तीन कलेक्टरों के नामों का खुलासा न हो सकें, इसके लिए आयोग के अफसरों ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। नीचे से लेकर उपर तक फारमान जारी किया गया, किसी भी सूरत में नाम बाहर नहीं जाना चाहिए। वरना, आईएएस बिरादरी की बदनामी होगी। हाल ही में फेल कलेक्टरों के लिए आयोग ने दोबारा परीक्षा आरगेनाइज की। निमोरा स्थित प्रशासन अकादमी में ऐसी व्यवस्था की गई कि फेल्योर कलेक्टर पीछे के दरवाजे से आए और बंद कमरे में एग्जाम देकर निकल लिए। इसे कहते हैं, यूनिटी। ये आईएएस में ही संभव है।

उल्टा-पुलटा

सरकार ने शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर जीतेंद्र शुक्ला को पंचायत में आरपी मंडल के पास भेज कर गुरू-शिष्य को फिर से एक साथ कर दिया। लेकिन, सरकार ने ऐसा करके जितेंद्र के साथ अन्याय कर दिया। नगरीय प्रशासन के अनुभवी इस ब्राम्हण अफसर को कलेक्टर बनाने की बजाए सरकार शराब बिकवाती रही और, चुनाव का समय आया तो पंचायत में भेज दिया। जबकि, जीतेंद्र को नगरीय प्रशासन का खासा अनुभव है। पंचायत में वे कभी रहे नहीं। बिलासपुर, रायपुर और कोरबा के वे नगर निगम कमिश्नर रहे। मंत्रालय में भी इसी विभाग के डिप्टी कमिश्नर रहे। उधर, तारण सिनहा, जिन्हें पंचायत का तजुर्बा है, उन्हें शराब और संस्कृति में भेज दिया। याने पूरे ही उल्टा-पुलटा।

मौके का फायदा

सरकार चुनावी कसरत में जुटी है तो कुछ अफसर मौके का फायदा उठाने में नहीं चूक रहे। आदिवासी संभाग के एक एसपी ने तो उगाही का संगठित कारोबार चालू कर दिया है। हाल ही में उसने एक कोयला व्यापारी की नस पकड़ी तो पूरे पेटी खोखा वसूल लिया। काले कोटधारी एक विचौलिये को उन्होंने इसी काम के लिए लगा दिया है। हालांकि, एसपी से तब रांग नम्बर डायल हो गया, जब उन्होंने एक दूसरे कोयला व्यापारी की गर्दन पकड़़ते हुए 50 पेटी की डिमांड कर डाली। उन्हें पता नहीं था कि जिस व्यापारी से वे अपने बिकने का रेट बताएं हैं, वह भाजपा ज्वाईन कर चुका है। अब एसपी को काटो तो खून नहीं। फिर, लगे माफी पर माफी मांगने।

पतली गली से….

इसे ही कहते हैं, पतली गली से निकलना। आईपीएस अभिषेक शांडिल्य का डेपुटेशन पर सीबीआई में हुआ था। लेकिन, राजभवन में एडीसी से वे रिलीव नहीं हो पा रहे थे। राज्यपाल बलरामदास टंडन का इस बीच देहावसान हो गया। और, अभिषेक चुपके से सीबीआई के लिए रिलीव होकर निकल लिए दिल्ली।

अंत में दो सवाल आपसे

1. चुनाव आयोग के हिट लिस्ट में किस कलेक्टर का नाम सबसे उपर है?
2. उम्र के आधार पर कहीं टिकिट न कट जाए, इस खौफ से कांग्रेस के किस वयोवृद्ध नेता ने अपना 82वां जन्मदिन नहीं मनाया?

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

वो सात घंटे!

2 सितंबर 2018
इलेक्शन कमीशन ने चुनावी तैयारी के लिए कलेक्टर, एसपी, आईजी, कमिश्नरों की लंबी बैठक ली। सवा दो बजे से रात नौ बजे तक। याने पूरे सात घंटे। एक जगह पर बिना हिले-डुले बैठना…..आप समझ सकते हैं। आयोग के अफसरों ने बैठक प्रारंभ होते ही ऐसा हड़का दिया कि लोगों को कंपा देने वाले कलेक्टर, एसपी भीतर से कांप गए! कहीं राडार पर आ गए तो निबटने में देर नहीं लगेगी। यही वजह है कि जब तक मीटिंग चलती रही, किसी अफसर ने जबर्दस्त जरूरत पड़ने के बाद भी वाशरुम जाने की हिमाकत नहीं की। दरअसल, दिल्ली से आए निर्वाचन आयोग के अफसरों ने मीटिंग प्रारंभ होते ही कलेक्टर, एसपी पर ऐसा खौफ जमा दिया कि पूछिए मत! सबसे पहिले एक कमिश्नर ने यह बोलकर कि यहां बैठे कई सीनियर अफसर उंघ रहे हैं, अधिकारियों की नींद भगा डाली। इसके बाद बारी आई एसपी की। सरगुजा संभाग के एक एसपी उतरे सलामी बल्लेबाजी के लिए। मगर वे पहली बॉल पर आउट हो गए। आयोग ने उनसे पूछा अगस्त में वे कितनी वारंट तामिल कराए। वे लगे साल का बताने। उनके पास मंथली डेटा नहीं था। इससे झल्लाकर इलेक्शन कमिश्नर ने उन्हें यह कहते हुए बाहर भेज दिया कि आप पता करके आईये। सरगुजा संभाग के ही दूसरे एसपी खड़े हुए, वे भी आंकडों मे ंउलझ गए। बताते हैं, अधिकांश एसपी साल का फिगर लेकर आए थे। उनके पास मंथली फिगर नहीं थे। लेकिन, सरगुजा संभाग के दो ओपनर बैट्समैन को देखकर बाकी एसपी सतर्क हो गए। और, लगे मातहतों को व्हाट्सएप भेजने। मोबाइल का कमाल था कि बाकी के पास तुरंत महीने का डेटा आ गया। और, लगा जान बची, लाखों पाए। बहरहाल, वो सात घंटे के बाद अफसर जब बाहर निकले तो उनका चेहरा देखने लायक था।

धोखे में कलेक्टरी?

बलौदा बाजार से कलेक्टरी से हटने के बाद बसव राजू ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वे राजधानी रायपुर के कलेक्टर बन सकते हैं। वे तो कहां इंटर स्टेट डेपुटेशन पर अपने होम स्टेट जाने के लिए लगेज तैयार कर रहे थे। दिल्ली से भी उन्हें एप्रूवल मिल चुका था। बस, आखिरी चरण की कुछ प्रक्रियाएं चल रही थी। याने किसी भी दिन डीओपीटी से उनका आर्डर आ जाता। लेकिन, ओपी चौधरी के इस्तीफे के बाद घटनाक्रम कुछ यूं घूमा कि उनके प्रोफाइल में रायपुर जैसे जिले की कलेक्टरी जुड़ गई। दरअसल, पहली बार जीएडी ने अंकित आनंद का नाम आयोग को भेजा था। लेकिन, आयोग ने कुछ और नाम मांग लिए। दूसरी बार बताते हैं, अंकित के साथ ही दंतेवाड़ा कलेक्टर सौरभ कुमार और बसव राजू का नाम था। जीएडी को लगा कि सौरभ ऑलरेडी कलेक्टर हैं और बसव का डेपुटेशन क्लियर हो गया है, लिहाजा अंकित का हो जाएगा। लेकिन, आयोग ने दोनों का नाम छोड़कर बसव के नाम पर मुहर लगा दी।

सजा अंकित को

जीएडी की चूक की सजा आखिरकार आईएएस अंकित आनंद को भुगतनी पड़ी। जीएडी ने सरकार को बिना इंफार्म कए अंकित का नाम डेपुटेशन के लिए भारत सरकार को भेज दिया। इसी चलते चुनाव आयोग ने उन्हें रायपुर कलेक्टर बनाने पर राजी नहीं हुआ। आयोग का कहना था, जिस अफसर को भारत सरकार ने ले लिया है, उसे कलेक्टर नहीं बनाया जा सकता। अंकित जशपुर और जगदलपुर के कलेक्टर रह चुके थे। रायपुर उनका तीसरा जिला होता। लेकिन, वे कलेक्टर बनते-बनते रह गए।

आयोग सख्त

चीफ इलेक्शन कमिश्नर ओपी रावत सौम्य और शालीन नौकरशाह माने जाते हैं। मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस होने के कारण छत्तीसगढ़ से उनका स्वाभाविक जुड़ाव माना जा रहा था। लेकिन, शुरूआती झटके से सूबे के अफसर हतप्रभ हैं। अंकित आनंद को उन्होंने रायपुर कलेक्टर बनाने के लिए तैयार नहीं हुए वहीं, रायपुर आईजी प्रदीप गुप्ता और अंबिकापुपर कलेक्टर किरण कौशल के मामले में उन्होंने कोई राहत नहीं दी। प्रदीप का रायपुर होम डिस्ट्रिक्ट था। सरकार ने कई बार आग्रह किया कि राज्य में आईजी की कमी है। सिर्फ एक आईजी पीएचक्यू में हैं। लेकिन, आयोग टस-से-मस नहीं हुआ। आखिरकार, प्रदीप गुप्ता को बिलासपुर शिफ्थ करना पड़ा।

नो कमेंट्स

जी चुरेंद्र को सरकार ने रायपुर संभाग का कमिश्नर बना दिया है। चुरेंद्र वहीं हैं, जिन्हें पिछले साल लोक सुराज के दौरान सरकार ने गंदे ढंग से हटा दिया था। बीजेपी गवर्नमेंट के 15 साल में पहला मौका था, जब सीएम ने किसी कलेक्टर को हटाने का ऐलान हेलीपैड पर मीडिया के सामने किया होगा। बताते हैं, सरकार चुरेंद्र के पारफारमेंस से खुश नहीं थी। उन्हीं चुरेंद्र को सरकार ने रायपुर का कमिश्नर बना दिया है। खैर, ये भी एक संयोग ही है कि पहली बार पांचों कमिश्नर प्रमोटी आईएएस हैं। उस पर भी, सब एक से बढ़कर एक। अंबिकापुर कमिश्नर के खिलाफ तो डीई चल रही है। चुरेंद्र के खिलाफ भी गंभीर मामले थे। पांचों में बस्तर के धनंजय देवांगन को छोड़ दे ंतो बाकी सभी कमिश्नर प्रातः स्मरणीय हैं।

तलवार की धार

कलेक्टरों और एसपी के लिए चुनाव में काम करना वास्तव में तलवार की धार पर चलने जैसे होता है। इलेक्शन कमिश्नर घुड़की दे गए हैं कि किसी राजनीतिक पार्टी से प्रेरित होकर काम किये तो खैर नहीं। और, ज्यादा नियम-कायदे दिखाए और सरकार कहीं बैक हो गई तो क्या होगा, इसे सोच कर ही अफसर सिहर जा रहे हैं। इनमें भी लंबे समय से जो कलेक्टरी और कप्तानी कर रहे हैं, वे तो पर्याप्त पर्याप्त सुख-सुविधा भोग चुके हैं। नए कलेक्टरों का भला क्या कसूर… बेचारों को चुनाव के दौरान सरकार ने कलेक्टर बना दिया।

सीधे सुप्रीम कोर्ट

2003 के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने पहले फेज में जांजगीर के कलेक्टर एमआर सारथी और जशपुर कलेक्टर अनंत की छुट्टी कर दी थी। आयोग के फैसले के खिलाफ दोनों हाईकोर्ट से स्टे ले आए थे। लेकिन, इलेक्शन कमीशन पीछे नहीं हटा। अगले दिन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और उसी दिन शाम को हाईकोर्ट के स्टे पर स्टे ले आया था। इसके बाद तो फिर किसी नौकरशाह ने आयोग के फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की हिमाकत नहीं की। अनंत और सारथी के बाद आयोग ने पिछले तीनों चुनाव में आधा दर्जन कलेक्टर्स और एसपी को हटाया लेकिन, किसी ने भी उसे चैलेंज नहीं किया।

कहा सो किया

कांग्रेस इस महीने की 15 तारीख तक कुछ टिकिटों का ऐलान कर सकती है। खासकर, जिन सीटों पर सिंगल नाम हैं। मसलन, रायपुर ग्रामीण, दुर्ग शहर, कवर्धा, अंबिकापुर, अभनपुर, साजा, राजिम, आरंग, कोंटा। हालांकि, पीसीसी से तो अनेक सीटों पर सिंगल नाम तय कर दिए हैं। लेकिन, आलाकमान से अभी उस पर मुहर नही लगा है। जाहिर है, जिन सीटों के दावेदारों का नाम दिल्ली से ओके नहीं हुआ है, उसमें अभी टाईम लगेगा। बाकी, दस से बारह सीटों पर दावेदारों के नाम की घोषणा 15 सितंबर तक कर दी जाएगी। इससे कांग्रेस नेताओं को ये कहने के लिए हो जाएगा कि जो कहा, सो किया। जाहिर है, कांग्रेस ने अगस्त तक प्रत्याशियों के नाम फाइनल करने का दावा किया था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस पार्टी के दावेदार ने 20 करोड़ में अपना टिकिट पक्का किया है?
2. ओपी चौधरी की तोड़ निकालने के लिए कांग्रेस ने आरपीएस त्यागी को पार्टी में लाया है, इसमें वो कितना सफल होगी?

ओपी आखिरी नहीं

26 अगस्त
बीजेपी ज्वाईन कर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले ओपी चौधरी अकेले आईएएस नहीं होंगे। कम-से-कम दो और आईएएस सरकार के रणनीतिकारों के संपर्क में हैं। बस्तर संभाग के एक कलेक्टर की बात तो फाईनल राउंड में पहुंच गई है। यदि बात बन गई तो बीजेपी उन्हें बस्तर के किसी सीट पर उतार सकती है। यही नहीं, एक एडिशनल एसपी को जांजगीर की सीट से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है। तानाखार से पूर्व आईजी भारत सिंह भी खम ठोंक रहे हैं। इनके अलावा भी टिकिट की दौड़ में कई और रिटायर आईएएस, आईपीएस बताए जा रहे हैं। रिटायर डीजी राजीव श्रीवास्तव भी संघ में सक्रिय हैं। टिकिट के लिए वे भी बीजेपी के संपर्क में हैं। दरअसल, 15 साल से सत्ता में जमी बीजेपी एंटी इंकाम्बेंसी का असर कम करने फ्रेश चेहरों को ढूंढ रही है। इस कड़ी में कुछ और लोगों को पार्टी में शामिल किया जा सकता है।

कलपेगी आत्मा

रमन कैबिनेट ने अटलजी के नाम पर नया रायपुर के साथ ही कई संस्थानों का नामकरण कर दिया। इसमें बाकी तो ठीक है, पर माड़वा ताप बिजली घर का नामकरण लोगों को खटक रहा है। दरअसल, कोरबा में बना माड़वा बिजली प्लांट के माथे पर देश का सबसे महंगा पावर प्लांट का दाग लगा है। 3000 करोड़ इसके बनने में फूंक गया। एक मेगावॉट पर 9.2 करोड़ रुपए लागत आई है। यह सब हुआ प्लांट निर्माण में लेट लतीफी पर। ऐसे प्लांट का नाम अगर अटलजी के नाम पर रखा जाएगा तो जाहिर है, उनकी आत्मा कलपेगी ही।

फिल्डिंग में कमजोर

अंबिकापुर जैसे बड़े जिले का कलेक्टर रह चुकीं किरण कौशल को सरकार ने बालोद जैसे छोटे जिले की कमान सौंप दी, तो लोगों का चौंकना स्वाभाविक था। दरअसल, मुंगेली के बाद अंबिकापुर भेजी गई किरण का नाम किसी बड़े जिले के लिए चल रहा था। लेकिन, बताते हैं आखिरी मौके पर जिस जिले में उन्हें भेजना था, वहां के कलेक्टर ने कुछ ज्यादा जोर लगा दिया। लिहाजा, सरकार के पास और कोई चारा नहीं बचा था। पता चला है, चुनाव आयोग भी किरण को एक बड़े जिले के लिए तैयार हो गया था। दिल्ली से पूछने पर यहां के अफसरों ने फीडबैक दिया था कि किरण के खिलाफ चुनाव आयोग के क्रायटेरिया के अलावा और कोई एडवर्स नहीं है। लेकिन, ऐन पोस्टिंग के वक्त मामला गड़बड़ा गया।

ये तो हद है!

इलेक्शन हमेशा अर्जेंट होता है। लेकिन, छत्तीसगढ़ में आलम यह है कि कलेक्टर निर्वाचन कार्यालय का ही नहीं बल्कि मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी का फोन रिसीव नहीं कर रहे। सीईओ सुब्रत साहू ने कलेक्टरों को कड़ा पत्र भेजकर चेताया है कि वे आयोग को हल्के में न लें। उन्होंने लिखा है कि मेरा फोन हो या उनके दफ्तर का, हर हाल में वे पिक करें। यदि व्यस्त हों तो कॉल बैक करें। ये तो वाकई पराकाष्ठा है। सीईओ को लेटर लिखना पड़ रहा है। दरअसल, अधिकांश कलेक्टर नए जमाने के हैं। जरूरत है चीफ सिकरेट्री मंत्रालय में एक रिफ्रेशर कोर्स आयोजित कर सभी का ज्ञानवर्द्धन करवाएं। वरना, आचार संहिता लगने पर कई कलेक्टर हिट विकेट होंगे।

दस का दम

सामान्य प्रशासन विभाग ने सेंट्रल डेपुटेशन के लिए नाम भेजकर आईएएस अंकित आनंद को भले ही उलझन में डाल दिया। लेकिन, राज्य सरकार ने दम दिखाया। सरकार ने भारत सरकार से न केवल आर्डर चेंज करने के लिए लिखा है बल्कि रायपुर कलेक्टर बनाने के लिए चुनाव आयोग के पास अंकित आनंद का नाम प्रपोज कर दिया है। अंकित अगर रायपुर कलेक्टर बन गए तो फिर जनगणना में जाने का सवाल ही नहीं उठता।

नॉन आईएएस की ताजपोशी?

बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन के लिए चार रिटायर नौकरशाहों ने भी आवेदन किया है। राधाकृष्णन, डीएस मिश्रा, एनके असवाल और आरएस विश्वकर्मा। लेकिन, नॉन आईएएस एसके शुक्ला के नाम को लेकर खुसुर-फुसुर कुछ ज्यादा हो रही है। शुक्ला यहां क्र्रेडा में लंबे समय तक पोस्टेड रहे हैं। पिछले साल यहां उनका समीकरण गड़बड़ाया तो सौर उर्जा अभिकरण का चेयरमैन बनकर हरियाणा चले गए। हरियाणा सरकार ने उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा दिया है। राज्य मंत्री का ओहदा छोड़ अगर वे यहां चेयरमैन के लिए अप्लाई किए हैं, तो इसके अपने मायने होंगे। जाहिर है, नारायण सिंह के रिटायर होने के बाद विनियामक आयोग चेयरमैन का पोस्ट महीने भर से खाली है। नारायण भी रिटायर आईएएस थे। शुक्ला अगर चेयरमैन बनते हैं तो वे दूसरे नॉन आईएएस चेयरमैन होंगे। इसके पहिले बिजली बोर्ड के सचिव मनोज डे को सरकार ने एक मौका दिया था।

करप्शन पर लगाम?

किसानों के बिजली बिल का 100 रुपए लिमिट तय करने बिजली कंपनियों के कर्मचारियों को सरकार ने बड़ा झटका दिया है। क्योंकि, मीटर रीडिंग नियमित होती नहीं। एवरेज बिल के नाम पर हजारों रुपए का बिल किसानों को थमा दिया जाता था। फिर शुरू होता था उसे कम करने का खेल। जाहिर है, बिना नगद नारायण के बिल कम होता नहीं। अब लिमिट तय होने के बाद चलिये किसानों को राहत मिलेगी। और, चुनाव के समय किसान खुश हैं तो नेता भी। तभी तो कैबिनेट में जब यह प्रस्ताव आया तो सारे मंत्रियों ने एक सूर में कहा, इससे बढ़ियां बात और क्या हो सकती है।

हफ्ते का व्हाट्सएप

वो ईद पर भी खुश होते हैं, वो नानक जयंती पर भी खुश होता है, वो दीवाली पर भी खुश होता है, वो क्रिसमस पर भी खुश होता है, सरकारी कर्मचारियों का कोई मजहब नही होता, साहब वो हर छुट्टी पर खुश होता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नेताओं के जोगी कांग्रेस छोड़कर जाने के पीछे असली वजह क्या है?
2. किस जिले के एसपी चुनावी माहौल में भी थाईलैंड, पटाया का सैर कर आए?