मंगलवार, 30 जनवरी 2018

गुड मार्निंग सर….

सीएम के ऑस्ट्रेलिया से लौटने के बाद कलेक्टरों के ट्रांसफर की अटकलें शुरू हो गई है। दरअसल, एसपी की लंबी लिस्ट निकलने के बाद कलेक्टरों की सूची भी निकलनी थी। लेकिन, सीएम की व्यस्तता के चलते चर्चा हो नहीं पाई। और, 13 जनवरी को वे ऑस्ट्रेलिया विजिट पर रवाना हो गए। वहां से उनके लौटने के बाद कलेक्टरों की धुकधुकी एक बार फिर तेज हो गई है। सीनियर अफसरों को वे रोज सुबह-शाम गुड मॉर्निंग और गुड इवनिंग का मैसेज भेज रहे हैं। ताकि, लिस्ट बनते समय कम-से-कम उनका नाम तो याद रहें।

वेटिंग कलेक्टर्स

दीगर राज्यों में 2011 बैच के कलेक्टर दूसरा जिला कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में अभी 2010 बैच ही पूरा नहीं हुआ है। इस बैच की रानू साहू बच गई हैं। 2011 बैच में भी एक-दो नही, पूरे छह आईएएस हैं। अब सबको इस सरकार में चांस मिलना मुमकिन नहीं है। बहुत हुआ तो दो। बाकी को विधानसभा चुनाव तक वेट करना होगा। कलेक्टरों की लिस्ट बनाते समय सरकार को इस पर भी मशक्कत करनी होगी। राप्रसे से आईएएस बने अफसरों की भी अपनी दावेदारी है। सरकार प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या और बढ़ाने पर विचार कर रही है। अभी प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या छह है। दुर्ग, जगदलपुर, कांकेर, नारायणपुर, मुंगेली और कोरिया। याने छह। पिछले चुनाव के समय 11 प्रमोटी कलेक्टर्स थे। जाहिर है, सरकार कम-से-कम चार प्रमोटी को और जिलों में भेजना चाहेगी। इस बार विधानसभा चुनाव कुछ अलग टाईप का होगा। जातिगत दांव-पेंच भी अजमाए जाएंगे। ऐसे में, कलेक्टरों की लिस्ट में जाति का तड़का भी लगेगा ही। सर्वाधिक फोकस इस बार दलित वोटों पर होगा। सरकार के पास दो दलित कलेक्टर हैं और दोनों आदिवासी इलाका बस्तर में। ट्राईबल की संख्या भी दो ही है…..सिर्फ मुंगेली और कोरिया। पिछले विधानसभा चुनाव में सिर्फ बस्तर में ही तीन आदिवासी कलेक्टर थे। जगदलपुर में भी ट्राईबल कलेक्टर रहे एमएस परस्ते। इस बार बस्तर में एक भी आदिवासी कलेक्टर नहीं हैं। लगता है, इसी गुणा-भाग में कलेक्टरों की लिस्ट में देरी हो रही है।

ग्रह-दशा का फेर

88 बैच के सबसे सीनियर आईपीएस संजय पिल्ले को इस महीने डीजी बन जाना था। लेकिन, बैच के चक्कर में बेचारे उलझ गए हैं। दरअसल, 88 बैच में तीन आईपीएस हैं। संजय के अलावा आरके विज और मुकेश गुप्ता। मगर पोस्ट एक ही वैकेंट है। राज्य सरकार चाहती है कि तीनों को एक साथ डीजी बनाया जाए। इसके लिए प्रयास किया जा रहा है…. भारत सरकार से दो और पोस्ट की मंजूरी मिल जाएं। पुराने चीफ सिकरेट्री ने केंद्रीय गृह सचिव को डीओ लेटर लिखा था। लेकिन, बात बनी नहीं। सरकार अब ऑस्ट्रेलिया से लौटी है तो लोगों की उत्सुकता बढ़ी है। वैसे, राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार है….छत्तीसगढ़ में 15 साल के सीएम भी…..इसलिए माना जा रहा है कि सरकार को कामयाबी मिल जाएगी। फिलहाल, संजय पिल्ले को इंतजार करना होगा।

शराब और संस्कृति

सरकार की कुछ पोस्टिंगे बड़ी बेमेल होती है। आईएएस जीतेंद्र शुक्ला को सरकार ने पहिले दारु बेचने का काम सौंपा और अब संस्कृति विभाग का डायरेक्टर बना दिया है। याने शराब और संस्कृति साथ-साथ। वैसे पता नहीं क्यों, दारु बिकवाने का काम सरकार पंडितों को ही सौंपती है। गणेश शंकर मिश्रा भी लंबे समय तक शराब विभाग के कमिश्नर रहे और सिकरेट्री भी। उनके बाद अशोक अग्रवाल इस पद पर जरूर आए, मगर सेकेंड पोजिशन पर जीतेंद्र शुक्ला को सरकार ने बिठा दिया। इसी तरह हेल्थ डिपार्टमेंट में जंगल विभाग के अधिकारी अनिल साहू सिकरेट्री हैं। अब, भला जंगल और हेल्थ का क्या संबंध?

गणेश होंगे रेरा मेम्बर?

विवेक ढांड को रेरा का चेयरमैन बनाने के बाद अब उसके दो मेम्बर्स अपाइंट करने का प्रासेज जल्द ही शुरू होगा। हालांकि, रेरा चेयरमैन के साथ मेम्बर्स के लिए भी आवेदन जमा किए गए थे। लेकिन, कमेटी ने सिर्फ चेयरमैन का नाम तय कर बाकी को खारिज कर दिया था। रेरा मेम्बर के लिए वैसे तो एक दर्जन से अधिक दावेदारी सामने आ रही है। लेकिन, अक्टूबर में रिटायर हुए प्रिंसिपल सिकरेट्री गणेश शंकर मिश्रा इसके मजबूत दावेदार हैं।

11 साल में 5000 पौधे

वर्ल्ड में सबसे महंगे पौधे छत्तीसगढ़ के वन विभाग के नर्सरी में तैयार हो रहे हैं। इस गौरवमयी उपलब्धि का खुलासा 23 जनवरी को विभाग के प्रेजेंटेशन के दौरान हुआ तो सीएस अजय सिंह भी हैरान रह गए। दरअसल, सीएस सभी विभागों के कामकाज को समझने के लिए इन दिनों रिव्यू कर रहे हैं। फॉरेस्ट की बारी आई तो सीएस ने पौधे तैयार करने की व्यवस्था और उसके रिजल्ट पर सवाल किया। अरण्य भवन के अफसरों ने उन्हें बताया कि डेढ़ करोड़ की लागत से टिश्यू कल्चर बनाया गया है। वहां 5 हजार पौधे तैयार किए गए हैं। सीएस ने पूछा, कितने दिन में? अफसरों ने बताया 11 साल में। इस पर सीएस कुछ देर तक शून्य से हो गए।

अच्छे दिन आयो रे

वन विभाग भले ही 11 साल में पांच हजार पौधे उगाता हो लेकिन, अब उसके अच्छे दिन आ गए हैं। आरा मिल प्रकरण में एक-एक करके सभी को बरी कर दिया गया था। सिर्फ दो माटी पुत्र बच गए थे। अब दोनों को राहत मिलने के संकेत मिल रहे हैं। वहीं, खबर है पीसीसीएफ के दो पदों के लिए डीपीसी होने जा रही है। इसमें एके द्विवेदी और केसी यादव को पीसीसीएफ बनने का मौका मिल सकता है। वजह? अब बदले की भावना वाला मामला नहीं रह गया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रियल इस्टेट के बड़े खिलाड़ियों ने किस अफसर के सम्मान में कचना के फार्म हाउस में कॉकटेल पार्टी दी?
2. सरकार का ऐसा कौन सा विभाग है, जिसमें सिर्फ बाहरी ठेकेदारों एवं सप्लायर्स को काम दिया जाता है?

गुरू ज्ञान केंद्र

यह एक इत्तेफाक हो सकता है, मगर पुराने मंत्रालय के सामने का इलाका अब रिटायर नौकरशाहों का रिहैबिलिटेशन जोन बन गया है। राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह यहां पहले से थे। अब टॉप लेवल के तीन और आ गए हैं। विवेक ढांड, एमके राउत और डीएस मिश्रा। तीन महीने पहिले सहकारिता आयोग के चेयरमैन बनकर डीएस मिश्रा आए। फिर, मुख्य सूचना आयुक्त एमके राउत और लास्ट में रेरा चेयरमैन विवेक ढांड भी। मुख्य सूचना आयुक्त और रेरा की बिल्डिंग तो एकदम अगल-बगल है। खाली रहने पर ढांड और राउत खिड़की खोलकर बतिया सकते हैं। यही नहीं, रिटायर होने के बाद आरपी जैन भी विभागीय जांच आयुक्त बन इसी जोन में टाईम बिता रहे हैं। रिटायर आईएएस अशोक अग्रवाल और रिटायर पीसीसीएफ एके सिंह भी सूचना आयुक्त हैं। इस रिहैबिलिटेशन जोन में कम-से-कम आधे दिन का समय लेकर जाना चाहिए। क्योंकि, इससे कम में होगा भी नहीं। वैसे, यंग ब्यूरोक्रेट्स को गुरू ज्ञान के लिए इस जोन में जाना ही चाहिए। वहां डिफरेंट टाईप के ज्ञानी लोग बैठे हैं। फास्ट काम करने से लेकर काम कैसे नहीं करना है….बिना काम किए भी अच्छा कैसे कहलाया जा सकता है….जनता को उल्लू बनाना, नेताओं को मिसगाइड करना….कम्बल ओढ़कर घी पीना….मलाईदार पोस्टिंग प्राप्ति गुर….क्रीज पर टिकने का कौशल…..रिटायरमेंट के बाद मनचाही पोस्टिंग प्राप्ति कला से लेकर तमाम तरह के तीन-तिकड़म, गुणा-भाग सब सिखने को मिल जाएगा। ऐसे गुरू ज्ञान केंद्र में अफसरों को तो मत्था टेकना ही चाहिए न।

सीएस की उलझन

खबर है, नए चीफ सिकरेट्री अजय सिंह बंगले को लेकर उलझन में हैं। सिंह पिछले 17 साल से शंकर नगर के सरकारी आवास में रह रहे थे। सीएस बनने के बाद उन्हें अब चीफ सिकरेट्री के इयर मार्क बंगले में शिफ्थ होना पड़ेगा। विवेक ढांड ने रेरा का आर्डर निकलने से पहिले ही इस बंगले को खाली कर दिया था। सीएस के सामने दिक्कत यह है कि नए बंगले में जाने पर उन्हें अपना पुराना घर खाली करना होगा। दो बंगला वे रख नहीं सकते…..लोग लगेंगे उंगली उठाने। और, खाली कर दिए तो….? दो साल बाद जब रिटायर होंगे, तो बेचारे कहां जाएंगे। पत्नी मेडिकल कॉलेज की डीन हैं….राजधानी में उन्हें ठीक-ठाक सरकारी घर कहां मिलेगा। जाहिर सी बात है, 17 साल से जिस घर में रह रहे हों तो दिक्कत तो होगी। फिर, पुराना बंगला उनके लिए शुभ भी तो रहा है….मुख्य सचिव की कुर्सी तक पहुंच गए।

चुनाव आयोग का लोचा

हफ्ते भर के भीतर छत्तीसगढ़ के दो आईएएस विदेश यात्रा से वंचित हो गए। विवेक ढांड और सुब्रत साहू। दोनों के लगेज तैयार था। लेकिन, विदेश यात्रा का योग नहीं था। ढांड तो रेरा चेयरमैन अपाइंट होने के कारण टीम रमन के ऑस्ट्रेलिया विजिट में शामिल नहीं हो पाए। सुब्रत में चुनाव आयोग ने अडं़गा लगा दिया। दरअसल, सुब्रत राज्य निर्वाचन अधिकारी हैं। लिहाजा, भारत निर्वाचन आयोग उनकी अथॉरिटी है। उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर के साथ श्रीलंका जाने के लिए अनुमति मांगी। लेकिन, आयोग ने स्पष्ट तौर पर इंकार कर दिया। इसके कारण उनकी टिकिट केंसिल कराई गई है। इसीलिए तो कोई अफसर राज्य निर्वाचन अधिकारी बनना नहीं चाहता। इस पोस्ट पर राज्य सरकार का कोई नियंत्रण नहीं रहता। विदेश जाने के मौसम में छोटे-छोटे अफसर फॉरेन जा रहे हैं। लेकिन, प्रिंसिपल सिकरेट्री होने के बाद भी आयोग ने उन्हें रोक दिया।

यूपी में दम है

कांग्रेस की नई कार्यकारिणी के बाद पार्टी कितनी मजबूत हुई है, इस बारे में कुछ कहना अभी जल्दीबाजी होगी। मगर इतना तो सही है कि सूची जारी होने के बाद पार्टी प्रभारी पीएल पुनिया बेहद ताकतवर हो गए हैं। लिस्ट जारी होने के बाद पूरी पार्टी उनके पीछे दौड़ रही है। आखिर कौन नहीं है….माटी पुत्र कांग्रेसी से लेकर गैर माटी पुत्र तक। पांच-पांच, छह-छह बार के विधायक, मंत्री सांसद, पूर्व केंद्रीय मंत्री तक। रिटायर ब्यूरोक्रेट्स पुनिया यूपी से हैं। वे न कभी विधायक रहे, न मंत्री। राजनीति पोस्ट के तौर पर सिर्फ केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष का तजुर्बा है। इसके बाद भी कमाल देखिए! ठीक ही कहते हैं, यूपी में दम है। छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी में जिधर देखिए, यूपी वाले ही मिलेंगे।

कलेक्टरों की लिस्ट

टीम रमन के ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद कभी भी कलेक्टरों की लिस्ट निकल सकती है। हालांकि, 5 फरवरी से विधानसभा का बजट सत्र प्रारंभ होने जा रहा है। लेकिन, अब तो सत्र के दौरान भी ट्रांसफर हो जाते हैं। इसलिए, सत्र का भी लोचा नहीं है। वैसे, लिस्ट छोटी ही होगी। अधिकतम आधा दर्जन जिले प्रभावित हो सकते हैं। वैसे, दो-एक बड़े जिलों के पुअर पारफारमेंस वाले कलेक्टरों को भी बदलने की भी चर्चा है। बहरहाल, सरकार चाहेगी कि नए कलेक्टरों को जिले को समझने का मौका मिले। अगस्त में चुनाव अचार संहिता प्रभावशील हो जाएगी। इसलिए, लगता नहीं कि अब इस कार्य में सरकार देर करना चाहेगी।

श्रीलंका पर सवाल

विदेश जाने के इस मौसम में एक-के-बाद एक मिनिस्टर फॉरेन जा रहे हैं। केदार कश्यप निकल चुके हैं। अजय चंद्राकर और राजेश मूणत रवाना होने वाले हैं। मूणत तो अबकी गणतंत्र दिवस भी चीली-वीली में कहीं मनाएंगे। लोगों को आश्चर्य अजय चंद्राकर के श्रीलंका यात्रा पर हो रहा है। श्रीलंका तो अपने पैसे से भी जाया जा सकता है। और फिर मंत्री श्रीलंका, नेपाल और मालद्वीप जैसे देशों में थोड़े ही जाता है। यूएस, यूरोप जाना चाहिए। चंद्राकर को कम-से-कम अपने अफसरों का तो खयाल करना चाहिए था। जा रहे हैं विदेश और नाम है श्रीलंका।

मैं तुझसे मिलने आई….

इस हफ्ते दो व्हाट्सएप खूब मूव हुए। पहला, इजराइली पीएम नेतन्याहू का….नेतन्याहू छत्तीसगढ़ के मूल वाशिंदे हैं….उनका असली नाम नेतराम साहू है। और दूसरा, बरसो पहले गाया गया गाना….मैं तुझसे मिलने आई, मंदिर जाने के बहाने…..इस बार सही उतरेगा….14 फरवरी को वेलेंटाईन डे है और महाशिवरात्रि भी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सीडी कांड में सीबीआई ने किन दो बड़े लोगों के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य जुटा लिया है?
2. जोगी कांग्रेस की विधानसभा प्रत्याशियों की तीसरी लिस्ट क्यों अटक गई है?

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

रमन मिलाई जोड़ी

13 जनवरी
अजय सिंह के सूबे के चीफ सिकरेट्री बनने के बाद छत्तीसगढ़ के 80 हजार स्केल वाले तीनों शीर्ष पोस्ट पर अब एक राशि के अफसर हो गए हैं। तीनों का स्वभाव लगभग एक समान है। बेहद कूल। सौम्य और शालीन। डीजीपी एएन उपध्याय का चेहरा ऐसा है कि कोई कितने भी गुस्से में जाए, निकलने पर बोलेगा….काम नहीं हुआ मगर आदमी शरीफ हैं। उनके डीजी बनने के बाद गुटबाजी से लेकर पीएचक्यू की दुकानें बंद हो गई है….सरकार को आखिर क्या चाहिए। पीसीसीएफ आरके सिंह लंबे समय तक विदेशों में रहे हैं। इसलिए, रहते हैं हमेशा सूटेड-बूटेड। लेकिन, सज्जनता और ईमानदारी तो पूछिए मत! रिजल्ट देने वाले अफसर में उनकी गिनती होती है। रही-सही कसर अजय सिंह को चीफ सिकरेट्री बनाकर मुख्यमंत्री ने पूरी कर दी है। चलिये, ऑस्ट्रेलिया में डाक्टर साब चैन से रहेंगे, काम भले ही फास्ट नहीं हो लेकिन, उंच-नीच नहीं होगी, इसकी पूरी गारंटी रहेगी।

रेरा का पेड़ा

चीफ सिकरेट्री विवेक ढांड आखिरकार रियल इस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के चेयरमैन बनने में कामयाब हो गए। इसके लिए उन्होंने चीफ सिकरेट्री की कुसी ढाई महीने पहिले ही छोड़ दी। रेरा का चेयरमैन बनने वाले वे देश के दूसरे चीफ सिकरेट्री होंगे। उनसे पहिले मध्यप्रदेश के रिटायर चीफ सिकरेट्री डिसूजा को शिवराज सरकार ने इस मलाईदार कुर्सी पर बिठाया था। जबकि, वहां भी रेरा के पेड़ा के लिए दर्जनों लोग लगे थे। डिसूजा और ढांड में फर्क यह है कि ढांड रिटायरमेंट से पहिले वीआरएस लेकर रेरा की चेयरमैनी संभाली है। बिल्डरों पर अंकुश लगाने के कारण रेरा चेयरमैन की कुर्सी को जलवादार के साथ ही मलाईदार मानी जा रही है।

कांग्रेस को बेचैनी

चुनावी साल में सरकार का लोक सुराज कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बन सकता है। क्योंकि, क्योंकि सरकार इसे कैश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। अब, बलौदा बाजार के खैरा गांव को ही लें। सीएम का हेलिकाप्टर वहां लैंड किया। डाक्टर साब ने भाषण के अंत में कहा कि आपलोगों की सेवा करता रहूं, इसके लिए आप लोग दोनां हाथ उठाकर मुझे आर्शीवाद दीजिए। इस पर सैकड़ों हाथ उठ गए। अब, किसे पता वे सेवा करने का आर्शीवाद मांगे या चौथी पारी के लिए। मंत्रियों के जनसमस्या शिविरों पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस के जाहिर है, इससे बेचैनी बढ़ेगी।

कोई इधर गिरा, कोई….

डीआईजी की पोस्टिंग देखकर आपको लगा होगा कि क्यों सूबे के कुछ आईपीएस डेपुटेशन के लिए खूंटा तूड़ा रहे थे। इस बार 11 आईपीएस डीआईजी प्रमोट हुए हैं। इनमें से सिर्फ नेहा चंपावत लकी रहीं। उन्हें पति मिला….पति मिलने का आशय आप गलत मत निकालियेगा….वो कोई खोए नहीं थे। किसी बात पर सरकार ने अविनाश चंपावत को रायपुर से सरगुजा भेज दिया था। कमिश्नर बनाकर। नेहा को डीआईजी प्रमोट करने के बाद सरकार ने रहम दिखाई। सरगुजा में छत्तीसगढ आर्म्स फोर्स में डीआईजी का एक नया पोस्ट क्रियेट कर अब उन्हें भी वहां भेज दिया है। बचे दस। उन बेचारों को तो पूछिए मत…कोई इधर गिरा, तो कोई उधर। पत्नी, बच्चे, डॉगी तक दुखी हैं। डीआईजी बनने वालों में पांच तो बड़े-बड़े जिलों के कप्तान थे। कप्तानी के बाद उन्हें पेवेलियन में दर्शक बनाकर बिठा दिया गया है। अब एक गाड़ी, एक घर में काम चलाना पड़ेगा। जिले का आरआई तो घर से लेकर बाहर तक का इंतजाम देख लेता था। रायपुर में दर्जनों आईपीएस हैं, यहां का आरआई किसको-किसको देखेगा। यही तो अंतर है, आईएएस और आईपीएस में। आईएएस में पावर बढ़ता जाता है। आईपीएस में एसपी के बाद सब खतम। इसमें तीन ही महत्वपूर्ण होते हैं, थानेदार, एसपी और डीजीपी। जीपी सिंह और दीपांशु काबरा जैसे आईजी हों तो बात अलग है। वरना, आईजी में 25 फीसदी ही रुतबा रह जाता है। बहरहाल, डीआईजी लोगों को सहानुभूति की जरूरत है। अब अगले पांच साल उन्हें जमापूंजी में से काम चलाना होगा।

कलेक्टरों की लिस्ट

एसपी, डीआईजी लेवल पर बड़ी सर्जरी के बाद ब्यूरोक्रेसी में कलेक्टरों के ट्रांसफर की अटकलें चल रही थी। लेकिन, पता चला है कलेक्टरों के ट्रांसफर अब टीम रमन के ऑस्ट्रेलिया से लौटने के बाद ही हो पाएगा। वैसे, नाम कम हैं, इसलिए सरकार भी बहुत जल्दी में नहीं है। बावजूद इसके, कलेक्टरों की रात की नींद उड़ी हुई है….जबकि, सीएम ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए दिल्ली पहुंच गए हैं। आखिर, वे सीएम के चीन प्रवास को भूले नहीं हैं। दो साल पहिले रायपुर से टेकऑफ करने के 15 मिनट बाद इंडिगो का प्लेन जब 20 हजार फुट की उंचाई पर पहुंचा तो सीएम ने अफसरों से बात करके लिस्ट को ओके कर दिया था। और, दिल्ली एयरपोर्ट से ही मीडिया को सूची जारी हो गई थी। कलेक्टरों को लग रहा, क्या पता 14 जनवरी को दोपहर ऑस्ट्रेलिया के लिए एयर इंडिया की फ्लाइट में बैठने से पहिले कुछ अनहोनी हो जाए। ऐसे में, उनकी बेचैनी समझी जा सकती है।

हमारी उमर लग जाए….

सरकार ने एक झटके में 15 जिलों के एसपी बदल दिए। पहली बार लिस्ट ऐसी निकली कि दो-एक को छोड़कर सभी सरकार को दुआएं दे रहे हैं….तुमको हमारी उमर लग जाए। जो दुखी हैं, वो भी हंड्रेड परसेंट नहीं, फिफ्टी परसेंट। पारुल माथुर बेमेतरा में एसपी रह चुकी हैं। तीन साल से वे रेलवे एसपी थीं। इसके बाद भी उन्हें मुंगेली एसपी बनाकर भेज दिया गया, जो किसी आईपीएस का पहला जिला होता है। नीथू कमल का पहला जिला मुंगेली ही था। लोग इस पर चुटकी ले रहे हैं, पारुल के आईपीएस पिता राजीव माथुर से जरूर पीएचक्यू के किसी अफसर से नाराजगी रही होगी, वरना….। दूसरे दुखियारे हैं, डी श्रवण। श्रवण लंबे समय बस्तर में रहकर पिछले साल ही कोरबा पहुंचे थे। इस आस में कि अब दो-चार साल सुकून के साथ मैदानी इलाके में गुजरेगा। लेकिन, उन्हें फिर बस्तर भेज दिया गया। इन दोनों के अलावे बाकी सबकी निकल पड़ी। मयंक श्रीवास्तव तक कोरबा एसपी बन गए। आरिफ शेख बस्तर से बिलासपुर, दीपक झा बालोद से रायगढ़ और मुंगेली एसपी नीथू कमल को जांजगीर जैसा जिला मिल गया, जहां 2004 बैच के अजय यादव एसपी थे। नीथू 2008 बैच की हैं। रायपुर एसपी संजीव शुक्ला को बिना मांगे मुराद मिल गई। वे चाहते थे, भले पीएचक्यू में ही पोस्ट कर दो, लेकिन यहां से शिफ्थ करो। वे दुर्ग जैसे जिले की कमान पा गए। सालों से बस्तर में पड़े नारायणपुर एसपी संतोष सिंह वहां से निकलने में सफल हो गए। उन्हें महासमुंद जिला मिल गया। एसपी को देखकर कलेक्टर भी प्रार्थना कर रहे….हमारी सूची भी ऐसी ही निकले।

बी फॉर…..

हालांकि, इसे एक संयोग कह सकते हैं, लेकिन आईपीएस आरिफ शेख के साथ लगातार चौथी बार हुआ है। बी नाम वाले जिले में वे चौथी बार एसपी बने हैं। बालोद, बलौदा बाजार, बस्तर और बिलासपुर। आरिफ के साथ एक इत्तेफाक यह भी रहा है, एक साल के भीतर उनका तीसरी बार ट्रांसफर हुआ। बालोद से बलौदाबाजार, फिर बस्तर और वहां से बिलासपुर। और, यह भी…उन्होंने बद्री मीणा के सात जिले की बराबरी भी कर ली है। गरियाबंद, धमतरी, जांजगीर, बालोद, बलौदा बाजार, बस्तर और बिलासपुर।

अंत में दो सवाल आपसे

1. शैलेष नीतिन कांग्रेस के मीडिया सेल के फिर प्रमुख बनाए गए हैं और पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा भी अंदरखाने से मीडिया को ही टेकल करते हैं। ऐसे में, दोनों के बीच टकराव तो नहीं होगा?
2. बालोद जैसे छोटे जिले से जम्प लगा दीपक झा सीधे रायगढ़ के एसपी बन गए। ये कैसे हुआ?

ऐ दिल है मुश्किल…!

7 दिसंबर
वेटिंग सीएस अजय सिंह का प्रोबेशन इतना लंबा खींचता जा रहा है कि अब लोग भी कहने लगे हैं सरकार माटी पुत्र के धैर्य की परीक्षा ले रही है। कहां, दिसंबर को लेकर उम्मीदें थी। अब जनवरी आया तो टीम रमन का ऑस्ट्रेलिया ट्रिप। वहां से लौटते ही 5 फरवरी से विधानसभा। फिर, उसके बाद मार्च में लोक सुराज। जरा सोचिए! इन कड़ियों को जोड़कर अजय सिंह का दिल बैठने नहीं लगता होगा। पंडरिया के इस ठाकुर अफसर की पीड़ा उनके मोबाइल के रिंग टोन से समझी जा सकती है…..तू ही सफर मेरा….तू ही मेरी मंजिल….तेरे बिना गुजारा…..ऐ दिल है मुश्किल। कम-से-कम ठाकुरों को ठाकुर की पीड़ा को समझना चाहिए।

बड़ी देर कर दी….

आईएएस अजय सिंह ही नहीं, छत्तीसगढ़ के 11 आईपीएस प्रमोशन के लिए दिसंबर से टकटकी लगाए हैं। अलबत्ता, डीआईजी कहलाने का चार्म भी धीरे-धीरे खतम होते जा रहा है। आखिर, कोई भी चीज समय पर होता है तो उसका एनजायमेंट है। लेकिन, गृह विभाग का क्या किया जा सकता है। अगर प्रमोशन के लिए भारत सरकार को टाईम पर लेटर चला गया होता, तो ये नौबत नहीं आती। होम ने चार दिसंबर को मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर से अनुमति मांगी। नियम यह है कि एक महीने के भीतर अगर भारत सरकार से कोई रिस्पांस नहीं आया तो राज्य सरकार प्रमोशन करने के लिए स्वतंत्र हो जाती है। गृह विभाग अगर नवंबर में पत्र भेज दिया होता तो दिसंबर में ही डीपीसी हो गई होती। बहरहाल, डीजीपी एएन उपध्याय के डीजी कांफ्रेंस के सिलसिले में छत्तीसगढ़ से बाहर होने के चलते एसपी के प्रमोशन अब आठ जनवरी के बाद ही होंगे। डीजीपी प्रमोशन कमेटी के मेम्बर होते हैं।

लिस्ट में संशोधन

दुर्ग और बिलासपुर में नए आईजी की पोस्टिंग के बाद एसपी की लिस्ट में कुछ संशोधन हो सकते हैं। मसलन, प्रखर पाण्डेय। प्रखर का नाम राजनांदगांव के लिए चल रहा था। लेकिन, हो सकता है, उन्हें सीएम सिक्यूरिटी में ही कंटीन्यू किया जाए। क्योंकि, सीएम सिक्यूरिटी के लिए सरकार को ढंग का कोई अफसर नजर आ नहीं रहा। फिर, प्रखर को सीएम हाउस से बाहर निकालने पर वहां पोस्टेड और कई डीएसपी खड़े हो जाएंगे…हमें भी फील्ड में भेजो। अगर प्रखर राजनांदगांव नहीं गए तो वहां के एसपी प्रशांत अग्रवाल भी हो सकता है, वहीं कंटीन्यू करें। प्रशांत का पहले दुर्ग के लिए नाम चल रहा था। लेकिन, जीपी अब दुर्ग के आईजी बन गए हैं। जीपी ऐसे आईजी हैं कि कमजोर एसपी हो, तब भी काम चला लेंगे। रायपुर में उनके आईजी रहने के दौरान ओपी पाल लंबे समय तक एसपी रहें…इसके आप समझ सकते हैं। सरकार में उच्च स्तर पर बैठे लोग जीपी की इस प्रतिभा से वाकिफ हैं। सो, दुर्ग में कोई लो प्रोफाइल का या फिर जूनियर एसपी पोस्ट हो जाए, तो अचरज नहीं। ऐसा ही कुछ बिलासपुर में भी हो सकता है।

अब हवाई जहाज

छत्तीसगढ़ में कभी उड़ीया लॉबी सरकार चलाती थी। एसके मिश्रा जोगी के बाद रमन सरकार में भी सीएस रहे। एमके राउत का भी अपना रुतबा रहा। अब आईएएस में बच गए हैं सिर्फ सुब्रत साहू। चलिये, उड़ीसा के अफसरों की सरकार चलाने में भूमिका कम हो गई तो क्या हुआ, अब उनकी कंपनी छत्तीसगढ़ में जहाज चलाएगी।

छत्तीसगढ़ के गौरव

माटी पुत्र आईएएस जगदीश सोनकर को सरकार ने धमतरी जिला पंचायत सीईओ से हटाकर दंतेवाड़ा भेज दिया। दंतेवाड़ा के सीईओ गौरव सिंह अब धमतरी के नए सीईओ होंगे। धमतरी पंचायत मंत्री का गृह जिला है, सो वहां के लिए पसंद कर लाए जाने पर गौरव के दंतेवाड़ा के चाहने वालों ने ऐसी बिदाई दे डाली कि सुनील कुमार, विवेक ढांड और एमके राउत जैसे अफसरों ने ऐसी बिदाई की कल्पना नहीं की होगी। राजनांदगांव कलेक्टर मुकेश बंसल को वहां की एक सभा में सीएम खुद बोलकर लाए कि आपके सबसे बेहतरीन अफसर को और बड़ा काम करने के लिए मैं रायपुर लेकर जा रहा हूं और वे अपने साथ उन्हें हेलिकाप्टर में रायपुर लाएं। इसके बाद भी मुकेश की बिदाई कब हो गई, किसी को पता ही नहीं चला। एजुकेशन सिटी से सुर्खियां बटारने वाले ओपी चौधरी के फेयरवेल का पता नहीं चला। लेकिन, गौरव के फेयरवेल पर दंतेवाड़ा में जो जश्न हुआ, उसमें पैसे पानी की तरह बहाए गए। आसपास के कई कलेक्टर और एसपी भी उसमें शिरकत करने पहुंचे। विधायक देवती कर्मा समेत जनप्रतिनिधि से लेकर बड़े ठेकेदार, सप्लायर भी थे। आईएएस को कंधे पर बिठाकर भांगड़ा किया गया। ठीक है, दंतेवाड़ा में पैसे बेहिसाब है। करोड़ों रुपए माईनिंग फंड में आ रहा है। लेकिन, सरकार को कुछ करना चाहिए। कम-से-कम यंग आईएएस सीमाओं का ध्यान रखें।

शैलेंद्र सिंह की याद

अंबिकापुर कलेक्टर किरण कौशल ने वहां के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पर अपना ध्यान फोकस किया है। डाक्टरों की मौजूदगी से लेकर तमाम चीजों पर नजर रखने के लिए उन्होंने एप बनवाया है। बताते हैं, इसके आशातीत नतीजे मिल रहे हैं। डॉक्टर टाईम से अस्पताल आने लगे हैं। इस खबर को पढ़कर 87 बैच के तेज-तर्रार आईएएस शैलेष सिंह की याद ताजा हो गई। मुश्किल से डेढ़ साल बिलासपुर का कलेक्टर रहने का उन्हें मौका मिला। 99 मध्य से नवंबर 2000 तक। और, उन्होंने लोगों को बताया कि कलेक्टर अगर चाहे तो कुछ भी कर सकता है। जिला अस्पताल जो अब सिम्स बन गया है, कलेक्टर ने ऐसी व्यवस्थाएं बनाई कि लोग आज भी उन्हें याद करते हैं। अस्पताल पर नकैल कसने के लिए रोस्टर में रोज एक डिप्टी कलेक्टर की उन्होंने अस्पताल में ड्यूटी लगा दी थी। शहर में रहने पर वे खुद भी एक बार अस्पताल जाते थे। लेकिन, अब के कलेक्टरों को अस्पताल प्राथमिकता में रहा नहीं। एकाध इनोवेशन का काम पकड़कर सरकार से शाबासी ले लों। बाकी, अस्पताल में आम आदमी भेड़-बकरियों की तरह धक्के खा रहा है, तो खाने दो। भगवान ने आम आदमी इसीलिए तो बनाया है। चलिये, अच्छी बात है….एक महिला कलेक्टर ने उस संस्थान की सुध ली है, जहां 70 से 80 फीसदी दुखी-पीड़ित लोग पहुंचते हैं।

मंत्री की भड़ास

सीएम के साथ 5 दिसंबर को सरगुजा और जशपुर गए पीडब्लूडी मिनिस्टर राजेश मूणत वहां के एक आईएएस पर भड़क गए। हेलीपैड पर सीऑफ करने आए अफसर को मूणत यहां तक कह गए कि तुम्हारी शिकायत सौदान भाई साब तक पहुंच गई….देख लो, वरना तुम निबट जाओगे। अब लोग पता लगा रहे हैं कि माजरा क्या है। और, ये भी कि सरकार का इकबाल इतना कमजोर हो गया है कि मंत्री भी अफसरों को सौदान सिंह का नाम लेकर चमका रहे हैं।

ऐसे भी अफसर

भई! आईएफएस अफसरों का जवाब नहीं है। एक एडिशनल पीसीसीएफ के लेवल के अफसर मेडिसिनिल प्लांट बोर्ड में सीईओ रहे। जनाब ने वहां के संसाधनों का जमकर दुरु-उपयोग किया। और, वहां से हटे तो लेपटॉप, आईपैड, आईफोन और गाड़ी भी लेते गए। छह महीने बाद भी उन्होंने इसे लौटाया नहीं है। वर्तमान सीईओ शिरीष अग्रवाल ने अब परेशान होकर सरकार से दरख्वास्त किया है….अफसर से बोर्ड का सामान वापिस कराया जाए। इस एपीसोड से यह भी साफ हो गया है कि सरकारी धन को अफसर किस तरह अपना समझने लगते हैं। आखिर, आईफोन और आई पैड भी सरकारी खजाने से।

सीट आरक्षित

टीम रमन 13 को 12 दिन के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रवाना हो रही है। टीम में सीएम के साथ सीएस, पीएस टू सीएम, सिकरेट्री इंडस्ट्री और एमडी सीएसआईडीसी के साथ डीपीआर राजेश टोप्पो शामिल हैं। राजेश पिछले बार भी साथ में थे। उससे पहिले सीएम के साथ कभी डीपीआर विदेश नहीं जाते थे। लेकिन, पिछले विदेश दौरे का मीडिया में जिस तरह कवरेज हुआ उसके बाद लगता है, सरकार ने डीपीआर के लिए एक सीट आरक्षित कर दी है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक आईएफएस अफसर का नाम बताएं, जो संपत्ति के ब्यौरा में राजधानी के मौलश्री विहार के मकान की कीमत में 20 लाख रुपए का अंतर बता दिया है?
2. छत्तीसगढ़ में हवाई सेवा शुरू करने वाली कंपनी में क्या प्रदेश के किसी कांग्रेस नेता की भी हिस्सेदारी है?

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

डीआईजी का गिफ्ट

31 दिसंबर
भारत सरकार से प्रमोशन के लिए सहमति नहीं आने की वजह से डीआईजी का प्रमोशन अब नए साल में ही हो पाएगा। हालांकि, डीआईजी में ज्यादा दिक्कत नहीं है। मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर से एक लाईन का आर्डर भर मंगाना है। चूकि, शनिवार, रविवार छुट््टी है। सो, संकेत हैं फर्स्ट वीक ऑफ जनवरी में किसी भी दिन डीआईजी की डीपीसी हो जाएगी। डीआईजी की डीपीसी में भारत सरकार के प्रतिनिधि की जरूरत भी नहीं होती। सीएस, पीएस होम और डीजीपी बैठकर कभी भी इस पर मुहर लगा सकते हैं। वैसे, आमतौर पर ईयर एंड तक एमएचए से रुटीन प्रमोशन के लिए अनुमति मिल जाती थी। लेकिन, डीजी के दो नए पदों के चक्कर में अबकी डीआईजी का मामला गड़बडड़ा गया। चलिये, ज्यादा लेट नहीं होगा। नए साल में सरकार प्रमोशन का गिफ्ट देगी। जाहिर है, पांच जिलों के एसपी समेत 11 आईपीएस डीआईजी बनने की बाट जोह रहे हैं।

एसपी की लिस्ट

एसपी की लिस्ट साल के आखिरी दिन या फिर उसके दो-तीन दिन के भीतर  निकलने की चर्चा है। बताते हैं, उच्च स्तर पर मंथन के बाद सरकार ने सूची तैयार कर ली है। लिस्ट को लेकर सरकार में असमंजस इसलिए थी कि भारत सरकार से डीआईजी के प्रमोशन के लिए हरी झंडी नहीं आई है। लेकिन, सरकार में बैठे लोग अब मान रहे हैं कि बाध्यता नहीं है कि डीआईजी बनने जा रहे एसपी को प्रमोशन के बाद ही वहां से हटाया जाए। ट्रांसफर के बाद भी उनका प्रमोशन किया जा सकता है। ऐसे में, अत्यधिक संभावना है कि 3 january से पहिले सरकार एसपी की लिस्ट जारी कर दे। हालांकि, 2008 में 31 दिसंबर को ऐसा ही हुआ था, जब लेट नाईट सरकार ने आईपीएस की लिस्ट जारी कर चौंका दिया था। वैसे, लिस्ट बड़ी होगी। 13 से 14 जिले इससे प्रभावित होंगे।

पारुल की याद

2008 बैच की आईपीएस पारुल माथुर को रेलवे एसपी बनाकर लगता है, सरकार भूल गई है। पारुल को रेलवे में गए तीन बरस से ज्यादा हो गए हैं। पारुल रिटायर आईपीएस राजीव माथुर की बेटी हैं। उनके पिता को भी जब वो अहमियत नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे, तो उन्होंने 2007 में भारत सरकार का रुख कर लिया था। बहरहाल, पारुल बेमेतरा की एसपी रह चुकी हैं। फेमिली कारणों के चलते वे बेमेतरा से ही छुट्टी पर गईं थीं। इसके बाद उन्हें जिला नहीं मिला। राज्य में अभी दो महिला एसपी हैं। नेहा चंपावत महासमुंद और नीथू कमल मुंगेली। नेहा डीआईजी बनने वाली हैं और नीथू जा रही हैं सीबीआई डेपुटेशन पर। ऐसे में, सरकार को कहीं पारुल की याद आ गई तो उन्हें जिला मिल सकता है। वरना….।

प्रशासन अकादमी की रेटिंग?

छत्तीसगढ़ में जिन संस्थाओं को पोस्टिंग के हिसाब से लूप लाईन माना जाता था, सरकार ने लगता है उसकी रेटिंग बढ़ाने की कवायद शुरू कर दी है। मसलन, प्रशासन अकादमी। अकादमी एक्चुअल में डंप करने वाली पोस्टिंग मानी जाती थी। किसी से सरकार नाराज है तो उसे प्रशासन अकादमी भेज दिया जाता था। मगर इन दिनों दिल्ली डेपुटेशन से जो सीनियर आईएएस छत्तीसगढ़ आ रहे हैं, उन्हें सबसे पहिले प्रशासन अकादमी का डायरेक्टर जनरल बनाया जा रहा है। सीके खेतान को तो दिल्ली से लौटते ही इसका जिम्मा मिल गया था। गौरव द्विवेदी के टाईम तो प्रशासन अकादमी का क्रेज कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया गया। गौरव 25 नवंबर को सरकार में ज्वाईनिंग दिए थे। ठीक एक महीना बाद उन्हें 24 दिसंबर को प्रशासन अकादमी का डीजी अपाइंट किया गया। लोग अब चुटकी ले रहे हैं….प्रशासन अकादमी के लिए महीने भर का वेट….सरकार का ये कैसा हिसाब? अब कोई कुछ भी कहें, जाहिर है अकादमी की रेटिंग बढ़ रही है।

ग्रह-नक्षत्र

प्रशासन अकादमी की पोस्टिंग से आईएएस गौरव द्विवेदी को झटका लगा होगा। मगर ऐसा देखा जा रहा है, डेपुटेशन से लौटने के बाद सरकार जिन अफसरों को झूला कर पोस्टिंग देती है, उनके कई ग्रह-नक्षत्र शांत हो जाते हैं….भारत सरकार की खुमारी भी उतर जाती है। सीके खेतान को प्रशासन अकादमी में पोस्टिंग के 15 दिनों के भीतर ही सरकार ने उन्हें एसीएस फॉरेस्ट का आर्डर निकाल दिया था। यहीं नहीं, पीएस होम सुब्रमण्यिम को पटखनी देकर खेतान अपने बैच में सीनियरिटी की लड़ाई जीत गए हैं। वे अब आगे चलकर चीफ सिकरेट्री के तगड़े दावेदार हो जाएंगे। इसी तरह अमिताभ जैन को भी सरकार ने महीने भर तक बिना विभाग का रखा। उसके बाद उन्होंने धमाकेदार पारी शुरू की। पीडब्लूडी के बाद अब वे सबसे अहम विभाग फायनेंस और टैक्सेशन विभाग संभाल रहे हैं। अमित अग्रवाल को भी झुलाया गया था। लेकिन, विभाग उन्हें भी बाद में बढ़ियां मिला। फायनेंस। ये अलग बात है कि उन्होंने खुद ही मैदान छोड़ दिया। और, डा0 आलोक शुक्ला? बेहद काबिल इस आईएएस अफसर को याद होगा, सरकार ने लाल जाजम बिछा कर स्वागत किया था। आलम यह था कि चुनाव आयोग से छत्तीसगढ़ के लिए रिलीव होने के पहिले ही फूड और हेल्थ विभाग का आर्डर निकल गया था। लेकिन, आलोक राहू के ऐसे शिकार हुए कि उनका सब कुछ खतम हो गया। अब ऐसा है तो….ठीक है।

अंसारी का जाना

छत्तीसगढ़ में सीनियरिटी में दूसरे नम्बर के आईपीएस डब्लूएम अंसारी 31 जनवरी को रविवार होने के चलते एक दिन पहिले 30 दिसंबर को रिटायर हो गए। अंसारी एएन उपध्याय से वरिष्ठ होने के बाद भी डीजीपी नहीं बन पाए और ना ही छत्तीसगढ़ में उन्हें ढंग की पोस्टिंग मिली। इससे उन्हें शायद कोई रंज नहीं होगा। जितना दुख रिटायरमेंट के 15 दिन पहिले उनसे विभाग छीनने से हुआ होगा। भारत सरकार ने एक अत्यंत छोटे मामले में डीई का आदेश दिया है। भारत सरकार का लेटर आते ही गृह विभाग इतना हरकत में आया कि अंसारी के रायपुर से बाहर होने के बाद भी पवनदेव को एकतरफा चार्ज दिलवा दिया। अंसारी की इस कदर बिदाई से आईपीएस अफसर ही नहीं बल्कि लोग भी सकते में हैं। दरअसल, सरकार का ऐसा चरित्र रहा नहीं है कि किसी अफसर को जाते-जाते ऐसा सलूक किया जाए। दो डीई के बाद भी राधाकृष्ण को सम्मानपूर्वक चेन्नई जाने दिया गया। फिर, छत्तीसगढ़ में तो विभागीय जांच वाले आईएएस ठसके से कलेक्टरी कर रहे हैं। कांकेर कलेक्टर टामन सिंह सोनवाने को भ्रष्टाचार के मामले में जब नारायणपुर कलेक्टर थे, डीई शुरू हुई थी। इसके बाद उन्हें हटाने की बजाए कांकेर जैसे जिले का कलेक्टर बनाकर उनका वजन बढ़ा दिया गया। और, राज्य सरकार अगर केंद्र का पैटर्न अपना लें तो छत्तीसगढ़ के सारे आईएएस, आईपीएस के खिलाफ उसे विभागीय जांच शुरू करनी पड़ जाएगी।

सौदान का कैंप

चुनाव के एक साल पहिले सौदान सिंह जैसे नेता का बस्तर में कैंप करने का मतलब आप समझ सकते हैं। दरअसल, सरकार के तमाम बोनस और सौगातों के बाद भी बीजेपी की बस्तर में स्थिति सुधर नहीं रही है। सरकार तो वहां अपना काम कर आती है, वहां के लोकल लीडर घर से निकल नहीं रहे हैं। बस्तर से दो मंत्री हैं, दोनों सुरक्ष़्ा कारणों से हवा-हवाई हो चुके हैं। पुलिस के हेलिकाप्टर से अपने गांव-घर जाते हैं, और उसी में शाम ढलते ही लौट आते हैं। कोंडगांव से पराजित विधायक लता उसेंडी रायपुर में ही रहती हैं। कोंटा में बीजेपी के संभावित प्रत्याशी के कांग्रेस से सेटिंग की खबर आ रही है। जबकि, कांग्रेसी विधायक दीपक बैज, लखेश्वर बघेल, मोहन मरकाम, कवासी लखमा बेहद सक्रिय हैं। यहां तक कि देवती कर्मा भी गांव-गांव घूम रही हैं। ऐसे में, संगठन ने अगर कुछ नहीं किया तो पिछले बार चार सीट आ गई थी, इस बार और दिक्कत हो सकती है। सौदान इस चीज को समझकर ही बस्तर का रुख किए हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं ने आजकल ताम्रध्वज साहू से मेल-मुलाकात क्यों बढ़ा दिए हैं?
2. डीजी के दो नए पदों की स्वीकृति रोकने के लिए कौन लोग मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर में फोन कर उसे अटकाने के लिए प्रेशर बना रहे हैं?