शनिवार, 29 जुलाई 2023

Chhattisgarh Tarkash: डिप्टी कलेक्टरों को इम्पॉर्टेंस

तरकश, 30 जुलाई 2023

संजय के. दीक्षित

डिप्टी कलेक्टरों को इम्पॉर्टेंस

विधानसभा चुनाव में अबकी डिप्टी कलेक्टरों को अहम जिम्मेदारी मिलने जा रही है। सरकार ने सभी 90 विधानसभा सीटों पर एसडीएम या डिप्टी कलेक्टरों को रिटनिंग आफिसर अपाइंट करने का नोटिफिकेशन राजपत्र में प्रकाशित कर दिया है। इससे पहले कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ, नगर निगम कमिश्नर और अपर कलेक्टरों को ही आरओ बनने का मौका मिलता था। इक्का-दुक्का डिप्टी कलेक्टर ही आरओ बन पाते थे। मगर अब आरओ में डिप्टी कलेक्टरों का दबदबा रहेगा। बताते हैं, चीफ इलेक्शन आफिस से ऐसा कुछ प्रस्ताव निर्वाचन आयोग को भेजा गया था। और वहां से ओके हो गया। हालांकि, कुछ सूबों में पहले से डिप्टी कलेक्टरों को विस चुनाव का आरओ बनाया जाता था। बहरहाल, इस कंसेप्ट के पीछे तर्क यह है कि कलेक्टर जिले के निर्वाचन अधिकारी होते हैं इसलिए एक विधानसभा क्षेत्र का आरओ बनने के बाद उनका बाकी जिलों में काम प्रभावित होता है। मगर जिला पंचायत सीईओ, ननि कमिश्नर और एडिशनल कलेक्टर को आरओ बनाया जा सकता था। अब दिक्कत यह होगी कि सीनियर अफसरों को अपना औरा होता है...डिप्टी कलेक्टरों को 15 साल सरकार चलाने वाली भाजपा और सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ता कितना महत्व देंगे, इसे आप समझ सकते हैं। दूसरी दिक्कत यह है कि निर्वाचन आयोग से सारे सर्कुलर अंग्रेजी में आते हैं। अधिकांश डिप्टी कलेक्टरों का आंग्ल भाषा से सरोकार नहीं है। अब छत्तीसगढ़ पीएससी और उसमें सलेक्ट हुए डिप्टी कलेक्टरों के बारे में टिप्पणी करना यहां मुनासिब नहीं। मगर यह सही है कि डिप्टी कलेक्टरों के लिए विधानसभा चुनाव कराना बड़ी चुनौती होगी।

कलेक्टरों की लिस्ट पर ब्रेक

कलेक्टरों की बड़ी लिस्ट निकलते-निकलते दो पर आकर सिमट गई। वो भी एक्सचेंज किया गया। बिलासपुर वाले कोरबा और कोरबा वाले बिलासपुर। बताते हैं, लिस्ट लंबी होकर 10 कलेक्टरों से अधिक पहुंच गई थी। कई जिलों के कलेक्टर मेंटली तैयार थे...बोरिया-विस्तर भी समेटना चालू हो गया था। सरगुजा, कोरबा, कांकेर, मुंगेली, कोंडागांव, सक्ती, जांजगीर, जीपीएम का तो लगभग फायनल समझा जा रहा था। मगर किन्हीं विशेष वजहों से सरकार ने सिर्फ कोरबा से संजीव झा को बुलाकर न्यायधानी की कमान सौंप दी और सौरव कुमार को बिलासपुर से कोरबा भेज दिया। हालांकि, सौरव भी कोरबा खुश होकर नहीं गए होंगे। एक जमाना था, जब कोरबा का कलेक्टर बनने के लिए लोग जैक लगाते थे। मगर ईडी के छापों की वजह से आईएएस अब कोरबा जाने से कतरा रहे हैं। संजीव भी पोस्टिंग आदेश देखकर थैंक्स गॉड ही बोले होंगे।

आईजी पोस्टिंग

आईजी के ट्रांसफर में सबसे अधिक बस्तर आईजी सुंदरराज के बदलने की चर्चा थी। सुंदरराज का बस्तर में दो साल से अधिक हो गया है। फिर उन्हें कंटीन्यू करने निर्वाचन आयोग से अनुमति मिलने की भी खबर नहीं है। बहरहाल, चार पुलिस महानिरीक्षकों के ट्रांसफर में रतनलाल डांगी का ठीकठाक कहा जा सकता है। बिलासपुर आईजी के बाद पुलिस ट्रेनिंग अकादमी में डायरेक्टर बनाए गए डांगी अब रायपुर रेंज के आईजी बन गए हैं। डांगी बस्तर से लेकर सरगुजा तक काम कर चुके हैं। मगर रायपुर में उन्हें कभी पोस्टिंग नहीं मिली थी। उधर, डॉ0 आनंद छाबड़ा का दुर्ग से बिलासपुर ट्रांसफर हुआ है। बिलासपुर छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा ही नहीं, मलाईदार पुलिस रेंज माना जाता है। मगर खुफिया चीफ रह चुके छाबड़ा को बिलासपुर की पोस्टिंग कितनी रास आएगी, कहा नहीं जा सकता। बद्री नारायण मीणा जरूर वीवीआईपी रेंज दुर्ग के आईजी बनाए गए हैं। मगर राजनांदगांव रेंज बनने के बाद दुर्ग का दायरा छोटा हो गया है। तीन जिले इस रेंज से निकल गए हैं। झटका तो रायगढ़ के नए आईजी रामगोपाल गर्ग को भी लगा होगा। सरगुजा जैसे रेंज संभालने के बाद उन्हें रायगढ़ जैसा नया रेंज उन्हें मिला है। रायगढ़ में उनके लिए न आफिस होगा और न गाड़ी-घोड़ा। हालांकि, राहत की बात यह होगी कि दिसंबर में नई सरकार फर्म होने के बाद नए सिरे से फिर पोस्टिंग होगी। याने चार महीने बाद एक मौका होगा, पोस्टिंग ठीक कराने का।

आईपीएस को अवसर

राज्य सरकार ने रेंज आईजी की संख्या बढ़ाकर अब आठ कर दिया है। पहले पांच रेंज थे। सरकार ने पहले रायपुर देहात रेंज बनाया। फिर अब राजनांदगांव और रायगढ़। इससे आईजी रैंक के अफसरों को फायदा ये होगा कि फील्ड पोस्टिंग के लिए दो रेंज और बढ़ गए हैं। पहले आईजी लेवल पर अफसरों का बड़ा टोटा था। इसलिए, कई बार डीआईजी को भी प्रभारी आईजी बनाया गया। मगर अब ऐसी स्थिति नहीं है। 2003 बैच में तीन आईपीएस हैं। इसके बाद 2004 और 2005 बैच में संख्या और बढ़ गई है। अगले साल 2006 बैच वाले भी आईजी प्रमोट हो जाएंगे। यद्यपि, इन आठों रेंज में डायरेक्टर आईपीएस को ही मौका मिला है। पीएचक्यू में आईजी रैंक वाले तीन प्रमोटी आईपीएस भी हैं। संजीव शुक्ला, सुशील द्विवेदी और आरपी साय। आठ में से एक में भी प्रमोटी को मौका न मिलना जाहिर तौर पर उन्हें खटका होगा।

सीनियर आईपीएस रिटायर

छत्तीसगढ़ के सबसे सीनियर आईपीएस संजय पिल्ले कल 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। संजय 1988 बैच के आईपीएस अफसर हैं और इस समय डीजी जेल का दायित्व संभाल रहे हैं। उनके रिटायर होने के बाद 1 अगस्त से डीजीपी अशोक जुनेजा प्रदेश के सबसे वरिष्ठ आईपीएस हो जाएंगे। संजय पिल्ले के रिटायर होने के साथ सवाल ये है कि जेल का नया मुखिया कौन होगा। हालांकि, मूलतः ये एडिशनल डीजी रैंक का पद है। 2017 के कैडर रिव्यू में इसे सातवें नंबर पर रखा गया है। पहले नंबर पर डीजी पुलिस, दूसरे पर डीजी ट्रेनिंग, तीसरा इंटेलिजेंस, चौथा प्रशासन, पांचवा फायनसेंस, छठा सीएएफ और सातवे नंबर पर जेल तथा होमगार्ड है। दरअसल, अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ये परंपरा चली आ रही है कि सेम रैंक या जूनियर के डीजी पुलिस बनने के बाद समकक्ष़्ा या सीनियर अफसरों को पुलिस मुख्यालय से हटाकर जेल की कमान सौंप दी जाती है। ताकि, सीनियरिटी का सम्मान बना रहे। चूकि लंबा समय हो गया इसलिए इसे डीजी का पद समझा जाने लगा। अभी अशोक जुनेजा सबसे सीनियर आईपीएस हैं इसलिए जरूरी नहीं कि डीजी रैंक का आईपीएस ही जेल की कमान संभाले। एडीजी को भी जेल और होमगार्ड का दायित्व सौंपा जा सकता है।

भीम को फैसला

पिछले सप्ताह तरकश में रिटायरमेंट से पहले खेला शीर्षक से एक खबर लगी थी, जिसमें जाते-जाते 45 करोड़ की दवा खरीदी की फाइल दौड़ने का जिक्र था। इसमें ऐसी कंपनियों की दवा खरीदी जा रही थी, जिसमें फिफ्टी-फिफ्टी का डील होता है। याने लगभग 20 खोखा का मामला था। मगर तरकश में खबर प्रकाशित होने के बाद सरकार ने आंखें तरेरी और खरीदी होल्ड कर दी गई। अब भीम सिंह लेबर कमिश्नर बन गए हैं। उनके सामने इस खरीदी पर फैसला करना होगा। क्योकि, प्रेशर में आकर परचेज कमिटी ने दवा खरीदी का एप्रूवल दे दिया है। देखना है, नए डायरेक्टर अब इस खरीदी एपिसोड पर क्या फैसला लेते हैं।

छत्तीसगढ़ की पूछपरख

विधानसभा चुनाव निकट आते ही बीजेपी की सियासत में छत्तीसगढ़ की पूछ बढ़ गई है। पार्टी अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा ने आज राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान किया। लिस्ट में पहली बार अबकी छत्तीसगढ़ के तीन नेताओं को उपाध्यक्ष पद दिया गया है। इनमें सबसे उपर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह का नाम है। हालांकि, वे पुरानी कार्यकारिणी में भी उपाध्यक्ष थे। मगर सरोज पाण्डेय और लता उसेंडी को भी इस बार उपाध्यक्ष के तौर पर नया शामिल किया गया है। चलिये, चुनाव के मद्देनजर ही सही छत्तीसगढ़ का इंपार्टेंस बढ़ा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कलेक्टर, एसपी के बीच ये मजाक क्यों चल रहा कि अगला चार महीने ठीक से निकालना है तो मनरेगा आयुक्त रजत बंसल को खुश करके रखो?

2. किस मंत्री के पीए ईडी के छापों को देखते विधानसभा रोड के पॉश कालोनी को छोड़कर सरकारी मकान में शिफ्थ हो गए हैं?


रविवार, 23 जुलाई 2023

Chhattisgarh Tarkash: रिटायरमेंट से पहले खेला!

 तरकश, 23 जुलाई 2023

संजय के. दीक्षित

रिटायरमेंट से पहले खेला!

लेबर कमिश्नर और सिकरेट्री दोनों के दायित्व संभाल रहे आईएएस अमृत खलको इस महीने 31 जुलाई को रिटायर होने जा रहे हैं। उनके पास इन दोनों के अलावा रजिस्टर्ड मजदूरों को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने वाला ईएसआई डायरेक्टर का भी प्रभार है। इसी ईएसआई में एक बड़ा खेला की इन दिनों खूब चर्चा है। दरअसल, खलको के रिटायरमेंट से 10 दिन पहले 45 करोड़ की दवा खरीदी के लिए विभाग में राकेट की गति से फाइल दौड़ रही है। गड़बड़झाले को भांपकर परचेज कमेटी के 10 में से दो सीनियर डॉक्टरों समेत चार सदस्यों ने बीमारी का बहाना बनाकर हाथ खड़ा कर दिया...यह कहते हुए कि साब चले जाएंगे, हमें फंसना नहीं। आनन-फानन में फिर नए सदस्यों को कमेटी में शामिल किया गया है। कमेटी ने दवाइयों की अनुशंसा कर दी है। किसी भी दिन कंपनियों को खरीदी का आर्डर दे दिया जाएगा। बता दें, खलको ईएसआई डायरेक्टर का पद अपने पास रखे हैं, उस पद पर विभाग के सीनियर डॉक्टर की पोस्टिंग की जाती है। मगर 2021 में डायरेक्टर डॉ0 भसीन के रिटायर होने के बाद इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं की गई। पिछले कुछ महीनों में 34 करोड़ की दवाइयां खरीदी गई, उसमें 11 करोड़ का विटामिन और 10 करोड़ का पेन किलर स्प्रे खरीद लिया। वो भी सभी प्रायवेट कंपनियों से। प्रायवेट कंपनियों से क्यों और बी कांप्लेक्स और पेन किलर स्प्रे क्यों...? इसे समझा जा सकता है। और अब जाते-जाते 34 करोड़ की और खरीदी। बताते हैं, सीएस से इसका कांप्लेन किया गया है। देखना है, सरकार इस पर क्या एक्शन लेती है। क्योंकि चुनाव सामने हैं। ऐसे में, यह बड़ा इश्यू बन सकता है।

नंगई, सियासात और कार्रवाई!

रायपुर में एससी, एसटी युवाओं द्वारा विधानसभा रोड पर नग्न प्रदर्शन के बाद छत्तीसगढ़ शर्मसार है। इस घटना के बाद जाहिर तौर पर राष्ट्रीय फलक पर सूबे की छबि को काफी नुकसान पहुंचा है। अभी तक विदेशों में हमलोग इस तरह की यदा-कदा घटनाएं सुना करते थे। अपने देश में ये कल्पना से बाहर की बात थी। यही वजह है कि वीडियो जब वायरल हुआ तो एकबारगी यकीं नहीं हुआ...लोग हतप्रभ थे...अपने रायपुर में ऐसी शर्मनाक घटना। जाहिर है, चुनाव सामने है तो इस पर सियासत भी होनी ही थी। एक नेताजी नंगे युवाओं से भी आगे निकल गए। विधानसभा में उन्होंने मांग कर डाली...नग्न प्रदर्शन करने वाले युवाओं को निःशर्त रिहा किया जाए। आईएएस और आईपीएस लॉबी के बीच भी इस नग्न प्रदर्शन पर सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा। ब्यूरोक्रेसी में इस घटना के लिए पुलिस को जिम्मेदार बताया जा रहा है। पुलिस पर सवाल किए जा रहे...पहले से सूचना होने के बाद भी राजधानी पुलिस कुछ नहीं कर पाई। इसके लिए कुछ पुलिस अधिकारियों को हटाने की चर्चाएं भी हो रहीं। तो आईपीएस लॉबी का कहना है कि घटना के बाद मीटिंग करने की बजाए पहले ही मीटिंग कर प्राब्लम को शार्टआउट क्यों नहीं किया गया। बहरहाल, अब बातें जो भी, जितनी भी हो...छत्तीसगढ़ के माथे पर इस नग्न प्रदर्शन का कलंक तो लग ही गया।

तीसरी कार्रवाई 

छत्तीसगढ़ ब्यूरोक्रेसी के लिए यह किसी झटके से कम नहीं है...9 महीने के भीतर दो आईएएस अधिकारियों को जेल जाना पड़ा। पिछले साल अक्टूबर में 2009 बैच के आईएएस समीर विश्नोई को मनी लॉड्रिंग केस में ईडी ने गिरफ्तार किया था। समीर अभी भी जेल में हैं। हालांकि, उनके साथ आईएएस रानू साहू और उनके आईएएस पति जेपी मौर्या के यहां भी ईडी ने छापा मारा था। मगर तब पूछताछ करके उन्हें छोड़ दिया था। कल 9 महीने बाद ईडी फिर से रानू साहू के देवेंद्र नगर स्थित सरकारी बंगले पहुंची तभी से ब्यूरोक्रेसी गलियारों में दबी जुबां से बड़ी कार्रवाई की चर्चाएं शुरू हो गई थी। और आखिरकार आज ईडी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आईएएस की यह तीसरी गिरफ्तारी है। इन दोनों से पहले पिछली सरकार में आईएएस बीएल अग्रवाल को इंकम टैक्स और फिर सीबीआई ने गिरफ्तार किया था। बीएल को बाद में राज्य की सर्विस रिव्यू कमेटी की सिफारिश पर भारत सरकार ने कंप्लसरी रिटायर कर दिया था।

गिरफ्तारी और आईएएस कांक्लेव

डायरेक्टर एग्रीक्लचर रानू साहू की गिरफ्तारी आईएएस बिरादरी के लिए यकीनन किसी झटके से कम नहीं है। सिर्फ रानू ही नहीं, साल भर के भीतर दो साथी सलाखों के पीछे। इस बीच कल से राजधानी में आईएएस कांक्लेव प्रारंभ होने जा रहा है। रानू की ये घटना नहीं हुई होती तो आईएएस अधिकारियों में कांक्लेव को लेकर उत्साह कुछ और होता। मगर चूकि प्रोग्राम फायनल हो चुका है। 24 जुलाई शाम सीएम भूपेश बघेल भी इसमें हिस्सा लेंगे। अफसरों के मन में रानू की गिरफ्तारी को लेकर कसक तो रहेगी...वे अब प्रोग्राम स्थगित भी नहीं कर सकते। पिछले साल नवंबर में भी कांक्लेव होना था। मगर आईएएस अधिकारियों के यहां ताबडतोड़ छापे और समीर विश्नोई की गिरफ्तारी की वजह से उस समय कांक्लेव को स्थगित कर दिया गया था।

कलेक्टरों की लिस्ट कभी भी

विधानसभा का मानसून सत्र खतम हो जाने के बाद अब कलेक्टरों की लिस्ट निकलने की अटकलें शुरू हो गई है। अटकलों को हकीकत में बदलने में कोई संशय इसलिए नहीं है कि 2 अगस्त से मतदाता सूची का काम प्रारंभ होने जा रहा है। लिहाजा, उसके बाद कलेक्टरों का ट्रांसफर नहीं हो सकता। क्योंकि, कलेक्टर पदेन जिला निर्वाचन अधिकारी होते हैं। स्पेशल केस में अगर उनका ट्रांसफर करना भी होगा, तो भारत निर्वाचन आयोग से अनुमति लेनी पड़ेगी। ऐसे में, 2 अगस्त से पहले कलेक्टरों की एक लिस्ट निकलना निश्चित समझा जा रहा है। सत्र के बाद इस पर मंत्रणा भी प्रारंभ हो गई है। अभी तक छह-से-सात कलेक्टर बदले जाने की चर्चा है। मुंगेली कलेक्टर राहुल देव का किसी अन्य जिले के लिए नाम चल रहा है। उनके अलावा चार बड़े जिलों के कलेक्टर भी बदले जाएंगे। तीन कलेक्टरों को इधर-से-उधर किया जाएगा। सो, कुछ तीन-चार को रायपुर बुलाया जाएगा। 2017 बैच के पांच आईएएस में से आकाश छिकारा कलेक्टर बन गए हैं। सरकार अगर चाहे तो इस बैच के दो-एक आईएएस का नंबर कलेक्टर बनने के लिए लग सकता है।

एसपी भी बदलेंगे

कलेक्टरों के साथ तीन-चार जिलों के पुलिस अधीक्षकों के भी बदले जाने की चर्चा है। इनमें एक बड़े जिले के एसपी भी प्रभावित हो सकते हैं। बाकी पांच जिलों में डीआईजी जिले की कमान संभाल रहे हैं। इनमें रायपुर, गरियाबंद, बलौदा बाजार, गरियाबंद और जगदलपुर शामिल है। सरकार में इस पर विचार किया जा रहा कि इलेक्शन तक इन सीनियर अफसरों को जिले में रखा जाए या पुलिस मुख्यालय बुलाया जाए। यद्यपि, डीआईजी की जिले में पोस्टिंग से निर्वाचन आयोग को कोई आपत्ति नहीं होगी। ये सरकार का आउटलुक है कि किसे जिले में एसपी तैनात करती है।

अटकी पोस्टिंग

निर्वाचन आयोग में दो आईएएस की नियुक्ति होनी है। एक एडिशनल सीईओ और दूसरा ज्वाइंट सीईओ। 2018 के विधानसभा चुनाव के समय जून में इन दोनों पदों पर निर्वाचन आयोग ने पोस्टिंग कर दी थी। मगर इस बार रहस्मय कारणों से दोनों पोस्टिंग लटकी हुई है। बता दें, एडिशनल सीईओ किसी सिकरेट्री रैंक के आईएएस को बनाया जाएगा...हो सकता है वह 2007 बैच का हो। वहीं ज्वाइंट सीईओ के लिए 2011 या 2012 बैच के किसी आईएएस का नंबर लग सकता है। जब तक ये पोस्टिंग नहीं होगी, इन बैचों के अफसरों की धड़कनें बढ़ी रहेंगी। क्योंकि, निर्वाचन में कोई जाना चाहता नहीं। सो, अधिकारियों में बेचैनी है कि पेनल में नाम किसका गया है या भेजा जा रहा है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष फूलोदेवी नेताम ने इस्तीफा दे दिया है, मगर उनका इस्तीफा स्वीकार कर नए अध्यक्ष की नियुक्ति क्यों नहीं हो रही?

2. दीपक बैज के पीसीसी अध्यक्ष बनने के बाद मोहन मरकाम के समय के चर्चित महामंत्रियों का क्या होगा?



शनिवार, 15 जुलाई 2023

Chhattisgarh Tarkash: मंत्री को हड़काया

 तरकशः 16 जुलाई 2023

संजय के. दीक्षित

मंत्री को हड़काया

सीएम भूपेश बघेल के निर्देश पर बिलासपुर के जेडी स्कूल शिक्षा के खिलाफ जांच का आदेश दिया गया है, उस करप्शन के तौर-तरीके सुनकर आप दंग रह जाएंगे। बताते हैं, आरगेनाइज ढंग से इस पोस्टिंग घोटाले को अंजाम दिया गया। सहायक शिक्षकों के प्रमोशन के बाद पोस्टिंग की काउंसलिंग के दौरान अफसरों ने शहरों के आसपास के स्कूलों के रिक्त पदों को शो करने की बजाए उसे छुपा लिया। मजबूरी में शिक्षकों को दूरस्थ इलाकों में पोस्टिंग लेनी पड़ी और जैसे ही वे ज्वाईन कर लिए जेडी आफिस से खटराल बाबुओं ने फोन करना शुरू कर दिया...इस स्कूल को डेढ़ लाख...उसका दो लाख लगेगा। आरोप है...जेडी ने ऐसा करके करीब 400 ट्रांसफर को संशोधित कर डाला। बताते हैं, कुछ कांग्रेस नेताओं ने दो-एक संशोधन के लिए फोन किया तो जवाब मिला...किसी से भी फोन कराइये...पैसे लगेंगे। इस बात से नाराज होकर एक प्रभावशाली नेता ने एक मंत्री को फोन लगाया और बाबू की शिकायत की। बोले...सरकार की बदनामी हो रही है। मंत्रीजी बोले...आपके कहने से थोड़े हटा दूंगा। गुस्से में नेताजी ने मंत्री को हड़का दिया...हमलोग खून-पसीना बहाए हैं तो आप मंत्री बने हो...। और भी बहुत कुछ...जिसे लिखा नहीं जा सकता। बहरहाल, बिलासपुर का मामला कांग्रेस नेताओं के चलते बाहर आ गया...मगर वास्तविकता यह है कि लगभग सभी संभागों में ज्वाइंट डायरेक्टरों ने खुला खेल किया पोस्टिंग में।

चर्चा रुद्र की, निबट गए प्रेमसाय

मंत्रिमंडल में फेरबदल के दौरान पीएचई मंत्री रुद्र गुरू को ड्रॉप करने की चर्चा थी। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा था कि सतनामी समाज से दो मंत्री हैं। रुद्र और शिव डहरिया। जबकि, बीजेपी के 15 साल की सरकार में अनुसूचित जाति से एक-एक ही मंत्री रहे। लिहाजा, रुद्र को हटाने में कोई दिक्कत नहीं। मगर सतनामी वोट बैंक को देखते कांग्रेस पार्टी ने अल्टीमेटली कोई रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा। स्कूल शिक्षा में करप्शन की शिकायतों से सरकार भी नाखुश थी। इस विभाग में रैकेट इतना तगड़ा है कि सरकार ने विभाग के कामों को पटरी पर लाने के लिए दो डिप्टी कलेक्टरों को अपर संचालक पोस्ट किया तो उसके खिलाफ हाई कोर्ट से स्टे ले लिया गया। एक समय तो ऐसा हो गया था...एक ही अफसर डीईओ, वहीं असिस्टेंट डायरेक्टर और मंत्री का निज सचिव भी। विभाग में करप्शन की शिकायत इतनी ज्यादा थी कि डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव के करीबी होने के बाद भी वे मंत्री पद गंवा बैठे। बता दें, विधायक बृहस्पति सिंह के आरोपों से क्षुब्ध होकर सिंहदेव जब विधानसभा से बाहर निकल गए थे, तब उन्हें पोर्च तक छोड़ने जाने वालों में सिर्फ प्रेमसाय सिंह टेकाम थे।

मोदी और शाह के भरोसे

विधानसभा चुनाव की तैयारियों में देखें तो 15 साल सरकार में रही बीजेपी सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भरोसे दिख रही। रट वही...मोदीजी आएंगे, अमित शाहजी आएंगे...सब ठीक हो जाएगा। पिछले पखवाड़े मोदीजी भी आए और अमित जी भी। दोनों के दौरे के बाद बीजेपी थोड़ा चार्ज हुई। फिर वहीं शून्यता। सूबे में सत्ताधारी पार्टी सत्याग्रह कर रही और बीजेपी? अमित भाई अगले हफ्ते आएंगे...मोदीजी रायगढ़ में आएंगे...प्रतीक्षा कर रही। इसके उलट कांग्रेस अपने घर को तेजी से मजबूत करना चालू कर दिया है। इससे आप समझ सकते हैं कि सीएम भूपेश बघेल ने अपना उर्जा विभाग टीएस सिंहदेव को दे दिया। साहू वोटों पर पकड़ मजबूत करने ताम्रध्वज साहू को कृषि विभाग देकर उनका कद और बढ़ा दिया गया। निहितार्थ यह है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में पंजाब जैसी चूक नहीं करना चाहती।

सहमे कलेक्टर

आईटी और ईडी से छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी पहले से ही सहमी हुई थी। इस समय कई कलेक्ट्रेट में किसी सेंट्रल एजेंसी के छापे की चर्चाओं से कलेक्टरों की रात की नींद उड़ी हुई है। बातें तो यहां तक हो रहीं...छापे के लिए बाहर से अफसर आ रहे...फोर्स का इंतजाम किया जा रहा। निशाना डीएमएफ है। अब छापा पड़े या फिर अफवाह निकले...बेचारे कलेक्टर्स परेशान तो हो ही रहे हैं। खासकर, डीएफएफ बहुल जिले के कलेक्टर। सूबे में डीएमएफ बहुल 12 जिले हैं। भले ही सभी कलेक्टर डीएमएफ का खेला न किया हो, मगर यह तो बाद में पता चलेगा....इस समय उन्हें ही जांच का सामना करना पड़ेगा।

धान और बीजेपी

छत्तीसगढ़ की चुनावी सियासत में धान और किसान हमेशा बड़ा फैक्टर रहा है। 2008 में एक रुपए किलो चावल का ऐलान कर बीजेपी दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी। 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने धान और किसान पर लड़ा और एकतरफा जीत दर्ज की। पता चला है, बीजेपी इस बार धान पर कुछ बड़ा करने की तैयारी में है। पार्टी हाईकमान ने इसके लिए सूबे के काफी पढ़े-लिखे युवा नेता से डिटेल रिपोर्ट मंगाई थी। युवा नेता ने काफी मेहनत कर रिपोर्ट तैयार की और दिल्ली में बड़े नेताओं के समक्ष उसका प्रेजेंटेशन भी दिया। अब देखना है, बीजेपी क्या कुछ बड़ा कर रही।

फिर अजय चंद्राकर

भाजपा ने पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को आरोप पत्र तैयार करने वाली समिति का प्रमुख बनाया है। इससे पहले 2003 में अजीत जोगी सरकार के खिलाफ भी आरोप पत्र तैयार करने की जिम्मेदारी चंद्राकर को मिली थी। कुल मिलाकर भाजपा सभी पूर्व मंत्रियों को कोई-न-कोई जिम्मेदारी दे रही है। प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत एक-एक करके जिम्मेदारियां आबंटित करते जा रही।

मरकाम खुश हों या...

कांग्रेस पार्टी ने मोहन मरकाम को पीसीसी चीफ से हटाकर भूपेश सरकार में मंत्री बना दिया। मरकाम मंत्री तो बनना चाहते थे...कई मौकों पर उन्होंने इशारों में इच्छा भी व्यक्त किया था। मगर इस समय जब आचार संहिता लगने में ढाई महीने का समय बच गया हो...मंत्री बनकर वे खुशी मनाए या दुखी होंए, वे खुद भी समझ नहीं पा रहे होंगे। दरअसल, मंत्री के लिए काम करने या पद का इंजॉय करने के लिए चार साल ही होते हैं। इलेक्शन ईयर में अफसर सुनते नहीं। चुनाव के समय में तो और नहीं। मरकाम को संतोष इस बात से करना होगा कि उनके नाम के आगे अब पूर्व मंत्री लिखा जाएगा और मंत्री के तौर पर चार दिन के विधानसभा सत्र का सुख मिल जाएगा।

अ-सरदारों के चक्रव्यूह

दीपक बैज पीसीसी के नए चीफ बन गए हैं। वे युवा हैं। मात्र 42 साल के। बढ़ियां प्रोफाइल है। छात्र जीवन से राजनीति में। दो बार के विधायक। फिर सांसद। सौम्य हैं...सियासत करने के लिए लंबा टाईम भी। आदिवासी समुदाय को उनसे उम्मीदें भी होंगी। वो इसलिए...क्योंकि, सूबे के अधिकांश आदिवासी नेता रायपुर आते ही लक्ष्मीपुत्रों और अ-सरदारों से घिर कर डिरेल्ड हो जाते हैं। बीजेपी और कांग्रेस की सियासत में अनेक ऐसे नाम हैं, जो राजधानी के खटराल लक्ष्मीपुत्रों और अ-सरदारों के चक्रव्यूह में फंस कर अपना बड़ा नुकसान करा बैठे। दीपक अगर लंबी पारी खेलना चाहते हैं तो उन्हें अपनी अलग लकीर खींचनी होगी।

सरगुजा में महिला कलेक्टर

चूकि 2 अगस्त से मतदाता सूची का काम प्रारंभ हो जाएगा और जब तक मतदाता सूची का काम समाप्त नहीं हो जाएगा तब तक सरकार कलेक्टरों को हटा नहीं पाएगी। हटाने के लिए निर्वाचन आयोग से अनुमति लेनी होगी। लिहाजा, कलेक्टरों की आखिरी लिस्ट 2 अगस्त से पहले निकल जाएगी। कह सकते हैं विधानसभा के मानसून सत्र के बाद कभी भी। इसमें चार-पांच कलेक्टरों के बदले जाने के संकेत मिल रहे हैं। अंबिकापुर में कोई महिला कलेक्टर जा सकती हैं। कुंदन कुमार इधर किसी जिले में शिफ्थ किए जा सकते हैं। इसके अलावे भी लिस्ट में कुछ नाम और हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. फॉरेस्ट से बाहर पोस्टेड एक आईएफएस अफसर का नाम बताइये, जो अपने विभागीय मंत्री का मोबाइल नंबर ब्लॉक कर दिए हैं?

2. क्या अमित शाह की क्लास के बाद बीजेपी में पुराने और नए नेताओं के बीच सामंजस्य कायम हो गया?



शनिवार, 8 जुलाई 2023

Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़िया और बोरे बासी

 तरकशः 9 जुलाई 2023

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़िया और बोरे बासी

पीएम मोदी के दौरे के बाद यह तय हो गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में गांव, गरीब, किसान और छत्तीसगढियावाद महत्वपूर्ण मुद्दा रहेगा। जाहिर है, सीएम भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ियावाद उभार कर सूबे की सियासत में अपना कद काफी बड़ा कर लिया है। इसको देखते बीजेपी कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। पार्टी नेताओं को मालूम है कि पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और राष्ट्रवाद को इश्यू बनाने के बाद भी ममता बनर्जी को कुर्सी से हटा नहीं पाई। यही वजह है कि पीएम मोदी ने अपना भाषण गांव, गरीब और किसान के साथ खास तौर पर छत्तीसगढ़ियावाद पर फोकस किया। उन्होंने जय जोहार से अपना भाषण शुरू किया। मोदी ने छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया को भी कोट किया। पीएम के मंच पर छत्तीसगढ़ महतारी की फोटो भी लगी थी। हालांकि, सीएम भूपेश बघेल ने बीजेपी के छत्तीसगढ़ियावाद पर यह कहते हुए चुटकी ली कि क्या बीजेपी नेता एकात्म परिसर में बोरे बासी खाएंगे...?

अमित शाह की क्लास

पीएम नरेंद्र मोदी की सभा ठीक-ठाक हो गई, इसके पीछे अमित शाह की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। मोदी से दो दिन पहले शाह पांच जुलाई को शाम रायपुर पहुंचे और पार्टी मुख्यालय में रात ढाई बजे तक नेताओं की क्लास लगाई। फिर सुबह उठने के बाद आठ बजे से दस बजे तक। बताते हैं, शाह के तेवर बेहद तीखे थे। उन्होंने दो टूक कह दिया...पुराने नेता, नए नेता...ये सब नहीं चलेगा...सबको मिलकर काम करना है और रिजल्ट देना है। शाह की आंखें तरेरने का असर था कि रातोरात बीजेपी में पूरा भेद मिट गया। 15 साल सत्ता में रहे नेता भी फं्रट पर आ गए। मोदी की सभा से एक रोज पहले ही 20 हजार लोग रायपुर आ गए थे। उनके लिए 200 धर्मशालाएं बुक कराया गया था। तभी झमाझम बारिश के रुकते ही लोगों से पूरा डोम भर गया। सारे लोगों को सुबह नौ बजे खाना खिलाकर सभा स्थल रवाना कर दिया गया। हेलीपैड पर स्वागत से लेकर मंच तक नए और पुराने दोनों नेताओं को भरपूर तरजीह दी गई।

प्रेम है, वहां प्रकाश

इस बार पीएम नरेंद्र मोदी ने लगभग सबको तवज्जो दिया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल से पहले सरकारी कार्यक्रम में मिल लिए थे, हेलिपैड पर बृजमोहन अग्रवाल से कुशल क्षेम पूछा। सभास्थल पर मंच के नीचे पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय और अमर अग्रवाल ने उनका स्वागत किया। प्रेमप्रकाश को देखते ही मोदी ने चुटकी ली...जहां प्रेम है वहां प्रकाश है। इसके बाद अमर अग्रवाल से। चूकि अमर से उनके पिता लखीराम अग्रवाल के समय से उनकी पहचान है, सो प्रधानमंत्री ने उनके घर-परिवार के बारे में पूछा। अरुण साव, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर से भी वे बड़ी आत्मीयता से मिले। रायपुर से लौटते समय उन्होंने सभा की चार फोटो ट्वीट किया। उनमें एक आदिवासी नेता विष्णुदेव साय और रामविचार नेताम की गौर मुकुट पहनाए फोटो भी थी। इसकी ओरजिनल फोटो में पार्टी के सभी दिग्गज दिख रहे हैं मगर मोदी ने इसे क्रॉप कर सिर्फ दोनों आदिवासी नेताओं को लिया। इससे पता चलता है, मोदी ने सबको बराबर महत्व दिया।

ओम माथुर सर्वेसर्वा!

भाजपा में जो प्रदेश प्रभारी होता है, उसे ही चुनाव प्रभारी बनाया जाता है। इस लिहाज से ओम माथुर को चुनाव प्रभारी बनाया जाना कोई नई बात नहीं। मगर मोदी के दौरे के बाद एक बात स्पष्ट हो गई कि विधानसभा चुनाव के रण में बीजेपी के महारथी ओम माथुर ही होंगे। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी माथुर को काफी इम्पॉर्टेंस दिया। आम सभा में जब अरुण साव का उद्बोधन चल रहा था, मोदी ने माथुर को बुलाकर बगल में बुलाकर बात की। मोदी जैसे पीएम इस तरह से मंच से ऐसे संदेश नहीं देते। दरअसल, मोदी के एक तरफ रमन सिंह बैठे थे, दूसरी तरफ अरुण साव। ओम माथुर रमन के बाद बैठे थे। अरुण जब स्वागत भाषण दे रहे थे, मोदी ने इशारे से माथुर को बुलाकर साव की कुर्सी पर बिठाया और उनसे कुछ चर्चा की। इसके बाद कार में बैठने के दौरान भी पीएम ने माथुर को बुलाकर पांच मिनट बात की।

कार्ड पर बवाल

पीएम मोदी के रायपुर विजिट के निमंत्रण कार्ड तैयार किए गए, उस पर अंदरखाने में काफी बवाल हुआ। पहले वाले कार्ड में डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव का नाम था। मगर प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ ने इस पर आब्जेक्शन किया। पीएमओ का कहना था, सीएम जब हैं तो डिप्टी सीएम क्यों? इसके बाद टीएस का नाम हटा दिया गया। मगर कुछ देर बाद फाइनली उनका नाम जुड़ गया। हालांकि, राज्य सरकार की तरफ से कार्ड पर नाम छापने और मंच पर बैठने के लिए सीएम भूपेश के साथ डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव और पीडब्लूडी मंत्री ताम्रध्वज साहू के नाम पीएमओ भेजे गए थे। ताम्रध्वज का नाम इसलिए क्योंकि कार्यक्रम रोड नेटवर्क से भी जुड़ा था। मगर कार्ड में नाम छापने से पीएमओ ने पहले इंकार कर दिया। फिर, कहीं से फील्डिंग हुई...और डिप्टी सीएम का नाम कार्ड में छप गया। ताम्रध्वज का नाम कार्ड में नहीं था मगर मंच पर उन्हें बिठाया गया। कुल मिलाकर पीएम के सरकारी कार्यक्रम में राज्य सरकार को भी इम्पॉर्टेंस मिला...दो मंत्री भारत सरकार के बैठे तो दो राज्य के। दिल्ली से भूतल परिवहन मंत्री नीतिन गडगरी और स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया आए थे।

एडीजी सुरक्षा प्रभारी

प्रधानमंत्री के दौरे में पहले आईजी लेवल के अधिकारी को सिक्यूरिटी प्रभारी बनाया जाता था। पीएम मोदी भी इससे पहले जब भी छत्तीसगढ़ आए, आईजी को सुरक्षा प्रभारी बनाया गया। मगर पंजाब की घटना के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने पीएम विजिट के लिए सिक्यूरिटी के मैन्यूल तैयार किए हैं, उनमें पीएम के राज्यों के दौरे पर वहां के डीजी या एडीजी लेवल के आईपीएस को सिक्यूरिटी इंचार्ज बनाया जाएगा। इसी के तहत एडीजी प्रदीप गुप्ता को प्रधानमंत्री के दौरे का सुरक्षा प्रभारी बना गया।

कवासी पीसीसी चीफ

सियासत में जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वह दिखता नहीं...हम बात कर रहे हैं कांग्रेस के नए प्रदेश अध्यक्ष के संदर्भ में। छत्तीसगढ़ में लंबे समय से प्रदेश अध्यक्ष बदलने की चर्चाएं चल रही हैं। ये दीगर बात है कि चर्चाएं अंजाम तक नहीं पहुंच पाई। मगर आपके जेहन में होगा...अमरजीत भगत जब मंत्री बने थे, तब मोहन मरकाम को पीसीसी चीफ बनाया गया था। सियासी पंडितों का कहना है, टीएस सिंहदेव अब डिप्टी सीएम बन गए हैं लिहाजा पीसीसी चीफ भी निश्चित तौर पर बदले जाएंगे। नए पीसीसी चीफ के लिए वैसे दीपक बैज, अमरजीत भगत और लखेश्वर बघेल के नाम चल रहे हैं। वो इसलिए कि आदिवासी अध्यक्ष को हटाने पर किसी आदिवासी को ही पीसीसी की कमान सौंपी जाएगी। मगर अब खबर है...पीसीसी अध्यक्ष के लिए इन तीन नामों के अलावे एक नाम चार बार के विधायक कवासी लखमा का भी है। कवासी को पीसीसी अध्यक्ष बनाने के बाद उनके आबकारी और उद्योग विभाग मोहन मरकाम को सौंप दिए जाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो राजभवन में मरकाम को मंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी।

एसीबी छापा

एसीबी ने लंबे अरसे बाद पाठ्य पुस्तक निगम के पूर्व महाप्रबंधक और उनके रिश्तेदारों के आधा दर्जन से अधिक ठिकानों पर छापा मारा। छापे के बाद अनुपातहीन संपत्ति का पता लगाने एसीबी टीम दस्तावेज खंगाल रही है। इससे पहले एसीबी ने 1 जुलाई 2021 को एडीजी जीपी सिंह के 10 से अधिक ठिकानों पर रेड मारा था। उसके बाद से एसीबी के अधिकारी खाली बैठे हुए थे। ठीक दो साल बाद वे फिर से एक्शन में आए हैं। अब देखना है कि छापे की कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी...? वैसे डीएम अवस्थी जब एज ए आईजी एसीबी की कमान संभाल रहे थे, तब एक साल में 100 करोड़ की अनुपातहीन संपत्ति का पता लगाने का उन्होंने रिकार्ड बनाया था।

कैबिनेट में बड़ा काम

छत्तीसगढ़ में स्टांप एक्ट में संशोधन को कैबिनेट ने मंजूरी दे दिया है। दरअसल, छत्तीसगढ़ में अंग्रेजां के जमाने का स्टाम्प कानून चल रहा था। इसका फायदा बड़े कारपोरेट घराने उठा रहे थे। मसलन, 1999 में रेमंड के सीमेंट संयंत्र लाफार्ज को 752 करोड़ के बेचा गया, लेकिन रजिस्ट्री में केवल 32 करोड़ कीमत दर्शा कर सरकार को उस समय के रेट से 72 करोड़ के राजस्व का नुकसान पहुंचाया गया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इस प्रकरण में छत्तीसगढ़ राजस्व मंडल के तत्कालीन चेयरमैन सीके खेतान ने राज्य सरकार को सिफारिश किया कि अन्य राज्यो के स्टांप कानूनों और आयकर, विक्रय कर आदि की तरह स्टांप एक्ट में संशोधन किया जाए...जब भी वसूली हो, स्टांप ड्यूटी के चूक कर्ताओं को देय तिथि से उस पर ब्याज सहित वसूली हो। खेतान ने लिखा कि चूक कर्ता कोर्ट-कचहरी में अपील कर मामले को पचासों साल खींचते है, और तब तक उस पैसे का मूल्य खत्म हो चुका होता है। केस लड़ते सरकार का काफी नुकसान हो चुका होता है। लिहाजा, कोई भी अपील बकाया राशि जमा करने के बाद ही स्वीकार किया जाए। मगर राजस्व मंडल के आदेश को रजिस्ट्री विभाग के अफसरों ने ये कह कर रद्दी में डलवा दिया कि स्टांप कानून सेंट्रल कानून है, इसलिए इसमें कुछ नहीं किया जा सकता। लेकिन एक अफसर को समझाया गया। उसने मध्यप्रदेश में पता किया तो मालूम हुआ कि स्टांप कानून में राज्य संशोधन कर सकती है। तब जाकर इसे कैबिनेट में रखा गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1.सीएम भूपेश और डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव फिर से अब साथ नजर आने लगे हैं...तो क्या इसे माना जाए कि जय और बीरु की जोड़ी आबाद हो गई है?

2. इस बात में कितनी सत्यता है कि अगले महीने 15 अगस्त को अनियमित कर्मचारियों को नियमित करने का ऐलान कर दिया जाएगा?


रविवार, 2 जुलाई 2023

Chhattisgarh Tarkash: लंपट अफसर पर गाज

 तरकशः 2 जुलाई 2023

संजय के. दीक्षित

लंपट अफसर पर गाज

पिछले सप्ताह तरकश में शराबी अफसर, बेसुध सिस्टम...हेडिंग से एक खबर लगी थी। मामला एडिशनल डायरेक्टर से जुड़ा था, जिसने शराब के नशे में एक महिला असिस्टेंट डायरेक्टर से सरेआम छेड़खानी किया था। राजधानी में महिला अधिकारी ने न्याय की आस में हर वो दरवाजा खटखटाया...मगर सिस्टम पर कोई असर नहीं हुआ। आरोपी अधिकारी को हटाने मंत्री के यहां फाइल भेजी गई, वो फाइल भी लौटकर नहीं आई। जाहिर है, साधारण आदमी होता तो एफआईआर दर्ज करते ही पुलिस उठा ली होती और कोर्ट-कचहरी से उसे कानूनी राहत भी नहीं मिलती। बहरहाल, महीना गुजर जाने के बाद भी कोई एक्शन नहीं हुआ तो दुखी और निराश महिला अधिकारी ने खुदकुशी करने की धमकी दे डाली। 25 जून के तरकश में हमने इस खबर को प्रमुखता से हेडलाईन बनाया। इस खबर का असर हुआ। बताते हैं, सर्वोच्च स्तर पर इसको संज्ञान लिया गया और अधिकारियों से सवाल-जवाब हुआ। और अगले ही दिन 26 जून को एडिशनल डायरेक्टर को डायरेक्ट्रेट से हटाकर मंत्रालय में अटैच कर दिया गया।

आईपीएस को रिटायर?

एडीजी लेवल के आईपीएस को फोर्सली रिटायर करने गृह विभाग ने भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा है। हालांकि, दो साल पहले भी प्रस्ताव गया था मगर उसमें तीन आईपीएस के नाम थे। मगर मुकेश गुप्ता के चक्कर में बाकी अधिकारियों को राहत मिल गई थी। मुकेश को मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर ने विभिन्न कारण गिनाते हुए रिटायर करने से मना कर दिया था। इस बार सिर्फ एक आईपीएस का नाम गया है। इससे पहले आईपीएस राजकुमार देवांगन, एएम जूरी और केसी अग्रवाल को रमन सरकार के प्रस्ताव पर एमएचए ने फोर्सली रिटायर कर दिया था। हालांकि, केसी अग्रवाल बाद में कैट में गए और वहां से जीत कर इसी सरकार में सरगुजा के आईजी भी रहे।

डीजी जेल रिटायर

88 बैच के आईपीएस संजय पिल्ले 35 साल की सेवा के बाद इस महीने 31 जुलाई को रिटायर हो जाएंगे। राज्य बनने के बाद बिलासपुर के एसपी रहे संजय पिल्ले पीएचक्यू में कई अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। वे पहले आईपीएस होंगे, जिन्हें दो बार खुफिया चीफ रहने का मौका मिला। पिछली सरकार में भी और इस सरकार में भी। वे गृह सचिव रहे तो डायरेक्टर स्पोर्ट्स भी। एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर की पोस्टिंग भी उन्होंने की। पुलिस मुख्यालय का काफी महत्वपूर्ण विभाग फायनेंस एंड प्रोवजनिंग भी उनके पास लंबे समय तक रहा। साफ-सुथरी छबि के अफसर माने जाने वाले संजय इस समय डीजी जेल का दायित्व संभाल रहे हैं।

अगला डीजी जेल कौन?

संजय पिल्ले के रिटायरमेंट के बाद सवाल यह है कि उनके बाद डीजी जेल किसे बनाया जाएगा। इसका जवाब जरा मुश्किल इसलिए है कि 31 जुलाई के बाद सूबे में सिर्फ एक डीजी रहेंगे। डीजी पुलिस अशोक जुनेजा। जबकि, छत्तीसगढ़ में डीजी के दो कैडर पोस्ट हैं। दो एक्स कैडर पद मिलाकर चार डीजी हो सकते हैं। 90 बैच के राजेश मिश्रा को सरकार ने स्पेशल डीजी का वेतनमान दिया है मगर वे डीजी प्रमोट नहीं हो पाए हैं। 91 बैच में कोई है नहीं। 92 बैच की 30 साल की सेवा पूरी हो गई है। इस बैच में दो आईपीएस हैं...एडीजी पवनदेव और अरुण देव गौतम। पिछले साल जनवरी से इनका डीजी प्रमोशन ड्यू है। सरकार चाहे तो फास्ट फाइल चलाकर इन्हें डीजी प्रमोट कर सकती है। या इन्हीं अधिकारियों में से किसी को जेल का प्रभार सौंप सकती है। इनमें राजेश मिश्रा की संभावना फिलहाल इसलिए नजर नहीं आ रही क्योंकि डेपुटेशन से लौटने के बाद उन्हें ढंग की पोस्टिंग मिली नहीं है। बचे पवनदेव और गौतम। सो, इनमें से किसी को जेल का प्रभार मिल सकता है।

परसेप्शन को धक्का!

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले एक आम परसेप्शन बन गया था...संदर्भ था एसेंबली इलेक्शन। हर दूसरा आदमी छूटते ही कहता था...कुछ नहीं बदलेगा...सब यथावत रहेगा। मगर हफ्ते भर के भीतर सियासत में ऐसा झंझावत आया कि परसेप्शन बदला तो नहीं मगर उसे धक्का अवश्य लगा है। इसे सीधे अंजाम से नहीं जोड़ सकते। किन्तु यह तो सही है कि शह-मात का खेल सियासत का अहम हिस्सा होता है।

सियासी फार्मूला

ये बात छिपी नहीं है...छत्तीसगढ़ में सरकार और संगठन के बीच लंबे अरसे से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। आखिर, सीएम ने जिन दो नेताओं के खिलाफ हाईकमान से अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की थी, उसमें सिवाय नोटिस के कुछ नहीं हुआ। उल्टे पीसीसी ने उन नेताओं का महत्व बढ़ाने का ही प्रयास किया। पार्टी प्रमुख मोहन मरकाम भी एकतरफा फैसला लेते रहे हैं। मगर इस बार दांव जरा उल्टा पड़ गया। महामंत्रियों के प्रभार में बदलाव को प्रदेश प्रभारी सैलजा ने निरस्त किया तो मरकाम भड़क गए। लिहाजा लड़ाई के किरदार बदल गए हैं...मामला अब प्रदेश प्रभारी वर्सेज पीसीसी चीफ हो गया है। सुनने में आ रहा...हाईकमान एक बार फिर तीन कार्यकारी अध्यक्षों का फार्मूला आजमाने पर विचार कर रहा है। इसके तहत पीसीसी चीफ के साथ तीन कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाएंगे। इनमें सामान्य, साहू और दलित वर्ग से एक-एक को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जाएगा। जाहिर है, इससे मोहन मरकाम को दिक्कतें होगी।

ये भी डिप्टी सीएम

कांग्रेस हाईकमान ने टीएस सिंहदेव को छत्तीसगढ़ का उप मुख्यमंत्री बनाया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद वे पहले डिप्टी सीएम होंगे। हालांकि, राज्य बनने से पहले कोरबा के प्यारेलाल कंवर अविभाजित मध्यप्रदेश में डिप्टी सीएम रहे। तब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। उस समय दो डिप्टी सीएम का फार्मूला बना था। ओबीसी से सुभाष यादव और आदिवासी वर्ग से प्यारेलाल कंवर डिप्टी सीएम रहे। राज्य निर्माण के बाद रमन सिंह के कार्यकाल में एकाधिक बार डिप्टी सीएम की चर्चाएं जरूर चली मगर वो परवान नहीं चढ़ पाए।

डीएम-एसपी और पीएम विजिट

किसी भी कलेक्टर-एसपी के लिए पीएम विजिट कराना फख्र की बात होती है...इसके लिए देश भर में पोस्टेड बैचमेट से बधाइयां तो मिलती ही है...लाइफ लांग यह याद रखने वाला इवेंट होता है। दरअसल, सबको यह मौका मिलता नहीं। चूकि 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायपुर आ रहे हैं...जाहिर तौर पर रायपुर कलेक्टर डॉ0 सर्वेश भूरे और एसएसपी प्रशांत अग्रवाल के कैरियर के लिए यह यादगार घटना होगी। दरअसल, पीएम विजिट एसपीजी के निर्देशन में होता है मगर उसे एग्जीक्यूट करने का जिम्मा जिले के कलेक्टर-एसपी पर होता है। सिक्यूरिटी में भी फर्स्ट लेवल में एसपीजी के अधिकारी होते हैं...उसके बाद सेकेंड लेयर में कलेक्टर-एसपी। पीएम के काफिले में भी एसपीजी के बाद इन दोनों अफसरों की गाड़ियां होती हैं।

कलेक्टर का काला चश्मा

पीएम विजिट में कलेक्टर की क्या भूमिका होती है...दो घटनाओं से इसे स्पष्ट करते हैं। पहली, राज्य बनने के जस्ट पहले 98 की एक घटना है। बिलासपुर रेलवे जोन के उद्घाटन के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी बिलासपुर आने वाले थे। इसके लिए कार्यक्रम स्थल पर तीन हेलीपैड बने थे। कार्यक्रम से दो रोज पहले एसपीजी के डीआईजी मुआयना करने पहुंचे। हेलीपैड के आसपास छोटे-छोटे पत्थर पड़े हुए थे। डीआईजी इस बात से बेहद नाराज हुए। बोले...एक भी पत्थर अगर हवा से उड़कर हेलिकाप्टर से टकरा गया तो मालूम है आपलोगों का क्या होगा? उस समय डॉ. सुशील त्रिवेदी कलेक्टर थे और शैलेंद्र श्रीवास्तव एसपी। कलेक्टर ने कहा, रेलवे वालों ने हेलीपैड बनाया है। इस पर डीआईजी भड़क गए। बोले...आई डांट नो रेलवे...वनली नो डीएम एन एसपी। डीआईजी के कहने का आशय यह था कि रेलवे को हम नहीं जानते...सिर्फ कलेक्टर-एसपी इसके जिम्मेदार होंगे। अब रही दूसरी घटना...तो छत्तीसगढ़ के लोग इससे नावाकिफ नहीं होंगे। 2014 में पीएम मोदी दंतेवाड़ा आए थे। जगदलपुर एयरपोर्ट पर वहां के कलेक्टर अमित कटारिया ने रंगीन शर्ट और काला गॉगल लगाकर अगुवानी की। नेशनल मीडिया में यह मामला इतना तूल पकड़ा कि बस्तर के बाद अगले दिन पीएम चीन रवाना हुए। मगर कलेक्टर के काला चश्मे की खबर के आगे मोदी का चीन दौरा फीका पड़ गया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. डेपुटेशन से लौटे आईजी अंकित गर्ग और राहुल भगत की पोस्टिंग क्यों अटक गई हैं?

2. किस आईएएस अधिकारी को एडिशनल सीईओ बनाकर निर्वाचन में भेजा जा रहा है?