रविवार, 24 अप्रैल 2022

छत्तीसगढ़ के ना-मर्द नेता

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 24 अप्रैल 2022

शादी-ब्याह और गरमी के सीजन में रेलवे ने पहले 10 यात्री ट्रेनों को बंद किया। और आज एकमुश्त 22। छत्तीसगढ और समता एक्सप्रेस से लेकर दर्जन भर से अधिक लंबी दूरी की ट्रेनें अब महीने भर तक बंद रहेंगी। तो आजादी के पहले से चल रही सर्वहारा वर्ग की जेडी पैसेंजर भी। इस महीने की शुरूआत में जब 10 ट्रेनें बंद हुईं तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तंज करते हुए ट्वीट किया। इसके कुछ घंटे बाद एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू ने रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर बंद ट्रेनों को शुरू करने का आग्रह किया था। मगर हिमाकत तो देखिए, छत्तीसगढ़ से हर साल 20 हजार करोड़ से अधिक कमाई करने वाली दपूम रेलवे ने फिर 22 ट्रेनों की बलि ले ली। ये हुआ क्यों..? क्योंकि पिछले वितीय वर्ष में टारगेट से चार-पांच मिलियन टन लदान कम हो गया। अब मालगाड़ियों को दौड़ाकर उसकी भरपाई जो करनी है। रेलवे ने ये काम अगर बिहार, बंगाल या साउथ के किसी सूबे में किया होता तो बवाल मच गया होता। वहां के सांसद पटरी पर बैठ गए होते। मगर ये छत्तीसगढ़ है। यहां के नेताओं का पानी सूख गया है। तभी तो सिर्फ सीएम और उनके सचिवालय ने विरोध जताया। इसके अलावा न किसी मंत्री ने एकशब्द बोला और न किसी सांसद, विधायक या दीगर जनप्रतिनिधि ने मुंह खोला। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के सूबे में पूरे नौ सांसद हैं। कांग्रेस के भी दो। प्रदेश में कांग्रेस, भाजपा का बड़ा कैडर है। फिर भी जनसरोकारों को लेकर ऐसा मौन....तो ऐसे में परेशानियों से दो-चार हो रही पब्लिक के मुंह से आखिर क्या निकलेगा...ना-मर्द नेता।

लोक नीचे, तंत्र उपर

छत्तीसगढ़ के 90 फीसदी से अधिक लोग आज भी आवागमन के लिए ट्रेनों और बसों पर निर्भर हैं। ये संख्या काफी बड़ी है मगर दिक्कत की बात ये है कि जिन पर भरोसा कर आम आदमी वोट देता हैं, उनका अब बस और ट्रेनों से कोई वास्ता नहीं रह गया है। राज्य बनने के बाद सूबे में अचानक से इतना पैसा आया कि छोटे-छोटे छूटभैया नेता हवा में उड़ने लगे। सूबे के विधायक ट्रेन में चलना भूल गए। पंच, सरपंच और पार्षद प्लेन में उड़ने लगे...विज्ञप्तिबाज नेता भी नेताओं के स्वागत-सत्कार जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के नाम पर अफसरों और कारोबारियों से इतना तो वसूली कर ही लेते हैं कि उन्हें ट्रेनों में सफर करने की जरूरत नहीं। और जब ट्रेनों से उन्हें वास्ता नहीं पड़ना तो रेलवे 22 ट्रेनें बंद कर दें, उन्हें क्या फर्क पड़ना? जनता भुगत रही...भुगते। वैसे भी लोकतंत्र में लोक नीचे हो गया है और तंत्र उपर। रेलवे तंत्र की मनमानी से ऐसे में फिर कौन रोक पाएगा।

आईजी और यक्ष प्रश्न

एसपी, आईजी की लिस्ट कब निकलेगी...रायपुर का आईजी कौन बनेगा...अभी क्लियर नहीं। मगर अटकलों का दौर बदस्तूर जारी है। दरअसल, रायपुर आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा का करीब ढाई साल हो गया है। उनके पास खुफिया जैसी अहम जिम्मेदारी है। विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा, जाहिर है उन पर लोड और बढ़ेगा। वीआईपी मूवमेंट का चार्ज भी खुफिया चीफ के पास होता है। लिहाजा, रायपुर में नए आईजी की पोस्टिंग तो होगी....लेकिन किसकी पोस्टिंग होगी, ये यक्ष प्रश्न है। वैसे पीएचक्यू के गलियारों में दो नाम प्रमुखता से चल रहे हैं। बद्री नारायण मीणा और आरिफ शेख। 2004 बैच के आईपीएस बद्री फिलवक्त दुर्ग के एसएसपी हैं। उनका आईजी प्रमोशन के लिए डीपीसी हो चुकी है। दूसरे, 2005 बैच के आईपीएस आरिफ एसीबी चीफ हैं। उनका अगले साल जनवरी में आईजी प्रमोशन ड्यू होगा। हालांकि, प्रमोशन कोई इश्यू नहीं है। डीआईजी रहते रेंज आईजी का प्रभार संभालने वाले कई नाम हैं। सुंदरराज, रतनलाल डांगी, अजय यादव डीआईजी रहते रेंज में पोस्ट हो गए थे। आरिफ एसीबी में आने से पहले रायपुर के एसएसपी थे तो बद्री भी रायपुर के कप्तान रह चुके हैं। जाहिर है, सरकार दोनों में से जिसे मुफीद समझेगी, उसे रायपुर आईजी की कुर्सी पर बिठाएगी।

बड़ा सवाल

एसपी, आईजी की लिस्ट तभी निकलेगी, जब प्रमोशन का आदेश जारी हो। पिछले महीने आईपीएस की डीपीसी हुई थी, मगर आदेश अभी पेंडिंग है। जो जहां है, वहां काम कर रहा, इसलिए सरकार भी जल्दी में नहीं है। सरकार के जल्दी में नहीं होने की एक वजह यह भी बताई जा रही कि दुर्ग के एसएसपी बद्री मीणा बढ़ियां से जिला संभाले हुए हैं। दुर्ग वीवीआईपी डिस्ट्रिक्ट है। कप्तान के तौर पर बद्री का ठीक-ठाक विकल्प नजर आ नहीं रहा। बद्री के प्रमोट होकर आईजी बन जाने पर उन्हें हटाना पड़ेगा। क्योंकि, आईजी बनने के बाद कप्तानी करने जैसे दृष्टांत देश में मिलते नहीं। हालांकि, चर्चा इस लाईन पर भी चल रही कि बद्री को आईजी का प्रमोशन देने के बाद दुर्ग रेंज में ही पदस्थ दिया जाए। लेकिन, ऐसे में फिर आईजी ओपी पाल को शिफ्थ करना होगा। मगर ये चर्चा ही है...बड़ा सवाल यह है कि पहले डीपीसी के बाद आदेश तो निकले।

कलेक्टरों पर नजर

सूबे के कई कलेक्टर खानापूर्ति के चक्कर में सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं को पलीता लगाने से नहीं चूक रहे हैं। आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल इनमें सबसे उपर है। निःसंदेह यह सरकार की यह बड़ी अच्छी योजना है। अफसरों ने ईमानदारी से अगर क्रियान्वयन कर दिया तो छत्तीसगढ़ के मानव संसाधन की रैंकिंग बढ़ जाएगी...गरीबों के बच्चे अंग्रेजी बोलते नजर आएंगे। लेकिन हो रहा उल्टा। कलेक्टरों के बिहाफ में चलने वाली इस योजना में इक्के-दुक्के कलेक्टर ही रुचि दिखा रहे। बाकी भगवान मालिक हैं। इसमें क्या हो रहा, हम बताते हैं। रायपुर से लगे एक छोटे जिले के प्योर हिंदी स्कूल की प्राचार्या को अंग्रजी स्कूल का प्राचार्या बना दिया गया है। प्राचार्य समझाने की कोशिश कर रही, मुझे अंग्रेजी नहीं आती। मगर डिप्टी कलेटर धमका रहे...पहले ज्वाईन करो, नही ंतो...। एसडीएम और डिप्टी कलेक्टरों द्वारा धमकाना सेकेंड्री है। बड़ा सवाल यह है कि हिन्दी टीचरों के भरोसे कलेक्टर बच्चों को अंग्रेजी कैसे पढ़वा पाएंगे। प्रदेश में आलम यह है कि आत्मानंद स्कूलों में 50 फीसदी से ज्यादा प्रतिनियुक्ति पर हिंदी स्कूलों के शिक्षकों की पोस्टिंग कर कलेक्टरों ने पल्ला झाड़ लिया। कलेक्टर चाहते तो विज्ञापन निकालकर कम-से-कम प्रिंसिपल को प्रायवेट स्कूलों से ले सकते थे। प्रायवेट स्कूलों के प्राचार्यां के पास अंग्रेजी स्कूल चलाने और रिजल्ट देने का तजुर्बा होता है। अब सरकारी हिंदी स्कूल के प्राचार्यार् से रिजल्ट कैसे आएगा...? सही फीडबैक लेकर सरकार को ऐसे कलेक्टरों को राडार पर लेना चाहिए। क्योंकि, कलेक्टर तो आज इस जिले में हैं, कल किसी और जिले में चले जाएंगे...जिले में नहीं गए तो राजधानी आ जाएंगे...नुकसान तो बच्चों का होगा और फेस सरकार को करना पड़ेगा।

खटराल अफसर

कलेक्टरों को अंग्रेजी स्कूलों को खोलने में जल्दीबाजी करने की बजाए सेटअप बनाकर पूरी तैयारी के साथ स्कूलों को लंच करना था। मगर आनन-फानन में ये काम ढंग से हो नहीं पाया। उल्टे स्कूलों में प्रतिनियुक्ति के बहाने ट्रांसफर का बड़ा खेल हो गया। खेल ऐसा कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों की बन आई और मास्टर साब लोगों का भी। अफसरों की जेब भर गई तो मास्टर साब लोग भी नुकसान में नहीं रहे। विभाग ने अंग्रेजी स्कूलों में पढाने वाले शिक्षकों के लिए 10 फीसदी भत्ता का प्रावधान किया है। याने हर महीने ढाई से तीन हजार वेतन बढ़ गया। वो भी बिना पढ़ाए। अब हिंदी स्कूल के टीचर हैं, अंग्रेजी कैसे पढ़ाएंगे। सो, उन्हें पढ़ाने के लिए कोई बोलेगा नहीं। कलेक्टरों को स्कूल खोलकर पीठ थपथपवाना था, सो हो गया। स्कूल शिक्षा विभाग ने हिंदी शिक्षकों की अंग्रेजी स्कूलों में भरती करने पर नोटिस इश्यू कर पल्ला झाड़ लिया। हालांकि, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, कलेक्टर चाहें तो सेटअप का पुनरीक्षण कर अभी भी व्यवस्था को ठीक कर सकते हैं। जब गलत नियुक्ति हुई है, तो उन्हें निरस्त करने में विभाग को हिचक क्यों?

ये दोस्ती...

इस हफ्ते केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी रायपुर दौरे पर थे। दीनदयाल उपध्याय सभागार में आयोजित समारोह में दोस्ताना रिश्तों का अद्भुत दृश्य था। सीएम भूपेश बघेल तारीफ कर रहे थे गडकरी की और गडकरी ने भी कहा, छत्तीसगढ़ में सड़कों का काम बढ़िया हो रहा। भूपेश तो यहां तक कह गए कि गडगरी जितने अच्छे मंत्री हैं, उतने ही अच्छे वक्ता भी...हमलोग उन्हें सुनना चाहते हैं। कार्यक्रम के बाद गडकरी भूपेश बघेल के आमंत्रण पर सीएम हाउस भी गए। सीएम के परिवार के सदस्यों से आत्मीयता से मिले। लोग हतप्रभ थे कि साढ़े तीन साल में ऐसी कोई झलक दिखी नहीं। सीएम केंद्र को निशाने में लेने से कभी नहीं चूके तो केंद्रीय मंत्रियों ने भी राज्य सरकार पर हमला करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इस सियासी यारी से निश्चित तौर पर भाजपा नेताओं के सीने पर सांप लोटा होगा मगर उन्हें ये भी याद होगा...अभी तो सिर्फ एक मंत्री राज्य सरकार की तारीफ में बात की है। यूपीए कार्यकाल में तो शायद ही कोई केंद्रीय मंत्री रहा हो, जो रायपुर विजिट में बीजेपी सरकार की सराहना नहीं की। सोचिए, तब कांग्रेस नेताओं पर क्या गुजरती होगी।

खैरागढ़ इम्पैक्ट

कांग्रेस ने निष्क्रिय पदाधिकारियों की छुट्टी करने का फैसला किया है। इसके पीछे खैरागढ़ चुनाव है। इलेक्शन के ऐलान के बाद सरकार के लोग जब खैरागढ़, गंडई और छुई खदान के पदाधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की तो हाल विकट था। फर्जीवाड़ा ऐसा हुआ था कि कई पदाधिकारियों को पता हीं नहीं था कि वे पद में है। चुनाव चल रहा था और कई पदाधिकारी इलाके से गायब थे। सरकार के विश्वस्त लोगों ने अगर कमान नहीं संभाली होती तो नतीजा कुछ और होता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कलेक्टरों की लिस्ट मुख्यमंत्री के जिलों के दौरे के पहले निकलेगी या उसके बाद में?

2. सीएम भूपेश बघेल के दिल्ली दौरे में मंत्रिमंडल में फेरबदल पर भी कोई चर्चा हुई?


आईएएस का तिलिस्म?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 17 अप्रैल 2022। आईएएस एसोसियेशन ने पहली बार कांक्लेव में उपयोगी डिबेट का आयोजन किया। देश के वरिष्ठ नौकरशाहों ने अभिभावक की मुद्रा में बताया कि किस तरह आईएएस को एटिट्यूड छोड़ कर लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप काम करना चाहिए। वैद्यनाथन अय्यर ने तो यहां तक कह डाला....कारपोरेट सेक्टर ज्यादा परफार्म कर रहा है। आईएएस के लिए वाकई यह आत्मचिंतन का विषय हो सकता है... देश की राजधानी से लेकर राज्यों की राजधानियों तक कमोवेश एक ही स्थिति है...ब्यूरोक्रेसी का तेजी से पराभाव। आलम यह है कि दिल्ली में ज्वाइंट सिकरेट्री तक के पदों पर दूसरे सेक्टर के लोगों को बिठाया जा रहा है। वहां की देखादेखी दीगर राज्यों में भी इस तरह की चीजें शुरू हो गई हैं। छत्तीसगढ़ भी इससे जुदा नहीं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के आने के बाद नौकरशाही की, हम सरकार चलाते हैं, वाला भ्रम टूटा है। दरअसल, ब्यूरोक्रेसी के बारे में धारणा बनती जा रही कि वे काम कम, रोड़े ज्यादा अटकाती हैं। दूसरा करप्सन। इससे आईएएस की छबि धूमिल हो रही है। आईएएस कांक्लेव में अपने सीनियरों के गुरू ज्ञान को आत्मसात कर छत्तीसगढ़ के आईएएस अधिकारियों को अपनी सर्विस की पुरानी प्रतिष्ठा बहाल करने का प्रयास करना चाहिए।

स्मार्ट अफसर, स्मार्ट पोस्टिंग

2017 बैच के आईएएस मयंक चतुर्वेदी को स्मार्ट सिटी का एमडी बनाया गया है। उनके पास रायपुर जिला पंचायत के सीईओ का चार्ज यथावत रहेगा। याने उनके पास ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी होगी और साथ में राजधानी को स्मार्ट बनाने की भी। राज्य बनने के बाद यह पहली दफा होगा, जब किसी यंग आईएएस को इस तरह की अहम जिम्मेदारी मिली हो। उनसे पहिले 2012 बैच के अभिजीत सिंह स्मार्ट सिटी के एमडी थे। मयंक उनसे पांच बरस जूनियर हैं। चूकि, मयंक के बैच के ही चंद्रकांत वर्मा स्मार्ट सिटी में एडिशनल एमडी थे। एक ही बैच के अफसर एमडी, एडिशनल एमडी कैसे होंगे...इसलिए मयंक के आने के बाद चंद्रकांत को रायपुर विकास प्राधिकरण का सीईओ बनाया गया है।

पोस्टिंग किसी और की

छत्तीसगढ़ मेडिकल कारपोरेशन के एमडी कार्तिकेय गोयल को हटाने के लिए लंबे समय से लॉबिंग चल रही थी। सलाना सात-आठ सौ करोड़ के दवा खरीदी वाले कारपोरेशन में सप्लायरों का रैकेट चाहता था कि कार्तिकेय जमाने के हिसाब से काम करें और कार्तिकेय टस-से-मस नहीं हो रहे थे। यही वजह है कि पिछले छह महीने में कई बार उड़ाया गया कि कार्तिकेय बस अब हटने ही वाले हैं। बहरहाल, उनकी जगह पर पहले एनआरडीए के सीईओ अय्याज तंबोली का नाम चल रहा था। मगर आखिर में अभिजीत सिंह का नाम फायनल हुआ। उम्मीद करते हैं, अभिजीत मेडिकल कारपोरेशन में टिकेंगे। वरना, इससे पहिले कोंडागांव कलेक्टरी से छह महीने में रायपुर वापिस हो गए थे। फिर रायपुर विकास प्राधिकरण और स्मार्ट सिटी एमडी। और थोड़े दिन बाद सीजीएमएससी।

सीएस की हाफ सेंचुरी

आईएएस कांक्लेव में चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने हाफ सेंचरी मारा। उन्होंने मंजे हुए बैट्समैन की तरह बैटिंग की। बैटिंग की मुद्रा भी गजब की। देव सेनापति के बाद वे दूसरे नम्बर पर रहे, वे दूसरे बल्लेबाज थे, जिन्होंने अर्धशतक मारा। मगर आईएएस में ही चुटकी लेने वाले की कमी नहीं हैं। मैच के बाद कई आईएएस चटखारे ले रहे थे...सीएस साहब को आउट करके उन्हें नाराज थोड़े करता...बॉलर उन्हें धीमी बॉल फेंक रहे थे।

महंत की आखिरी इच्छा

छत्तीसगढ़ से राज्य सभा की दो सीटें खाली होने जा रही है। जल्द ही इसके चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। संख्या बल चूकि कांग्रेस के साथ है, लिहाजा दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में जाएगी। यही वजह है कि दोनों सीटों के लिए कांग्रेस के भीतर बेचैनी देखी जा रही। दो सीट में से एक कोई बाहर का नेता नॉमिनेट होगा, दूसरा छत्तीसगढ़ से होगा। याने एक सीट के लिए कांग्रेस पार्टी के भीतर रस्साकशी होनी है। इसमें अनुसूचित जाति वर्ग की तगड़ी लाबिंग चल रही है तो विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत भी दावेदार हैं। पहले तो उन्होंने दबी जुबां में अपनी इच्छा व्यक्त की। मगर अब जब चुनाव नजदीक आ गया है तो उन्होंने इस हफ्ते बिलासपुर दौरे में यह कहते हुए मजबूत दावेदारी जता दी कि राज्य सभा में एक बार जाना मेरी अंतिम इच्छा है। अब कांग्रेसी बोलने में संकोच नहीं करते...भले अपने ही पार्टी के नेता क्यों न हो...कह रहे, महंतजी की एक और अंतिम इच्छा है, उसे वे विधानसभा चुनाव के समय बताएंगे।

आईएएस का ड्रेस कोड

आईएएस कांक्लेव में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आईएएस का ड्रेस कोड याने बंद गले के ब्लैक सूट में पहुंचे। आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट मनोज पिंगुआ ने स्वागत भाषण में इसका खास तौर से जिक्र किया। उन्होंने कहा, सीएम साहब ड्रेस कोड में आकर आपने हमारा मान बढ़ाया है। मगर अफसरों में कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने ड्रेस कोड का फॉलो नहीं किया। अलबत्ता, सीएम ड्रेस कोड में...ऐसे में मुख्यमंत्री के सामने झेंपना लाजिमी था। जाहिर है, आईएएस के पास बंद गले का ब्लैक सूट अवश्य होता है। कलेक्टर 15 अगस्त और 26 जनवरी को इसी सूट में होते हैं। या फिर राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री का विजिट हो। इसलिए, किसी भी आईएएस के पास ये ड्रेस होता है। ऐसे मौके पर वे इसे धारण कर गौरवान्वित महसूस करते है। याद होगा, इसी ड्रेस कोड की अवहेलना करने पर बवाल हो गया था, जब बस्तर कलेक्टर अमित कटारिया कलरफुल ड्रेस और चमकने वाले गागल पहन पीएम नरेंद्र मोदी की अगुवानी करने पहुंच गए थे।

ऐसी पराजय

खैरागढ़ विधानसभा सीट राज्य बनने के बाद से ही राजपरिवार या लोधी वोट बैंक के इर्द गिर्द ही रही है. खैरागढ़ में राजपरिवार का तिलिस्म भाजपा के कोमल जंघेल ने तोड़ा था. तब से भाजपा ने कोमल जंघेल को ट्रेड मार्क बना लिया. वैसे कोमल जंघेल के बारे में आपको ये बोलने वाले लोग मिल जाएंगे कि छठी-मरनी सबमें कोमल लोगों के घर पहुँच जाते हैं. इसी वजह से भाजपा ने ऐसे समय में भी कोमल पर दांव खेला जब दूसरी और सीएम भूपेश बघेल जैसे आलराउंडर थे. इस बार लेकिन कोमल नहीं चल पाए. सुबह जब काउंटिंग की शुरुआत हुई तब साल्हेवारा की तरफ के बूथ से हुई. तब भाजपा के नेता यह कहते सुने गए कि देखते रहिए अभी कोमल का बूथ आएगा. वैसे पिछले चुनावों में कोमल का रिकॉर्ड रहा है कि लगभग 40 बूथ से कभी नहीं हारे. इस बार 40 तो छोड़िए 4 बूथ से भी कोमल आगे नहीं बढ़ पाए.

मूंछ पर दांव

खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ऐसे नेता थे जिनका जीत पर सबसे ज्यादा भरोसा था. भगत ने अपनी कुर्सी ही दांव पर लगा दी. उनका डेडिकेशन समझिए कि भरी गर्मी में चुनाव प्रचार करते डिहाइड्रेशन के शिकार हो गए. दो दिन बैड रेस्ट पर रहे और फिर पहुँच गए मैदान में. वैसे छत्तीसगढ़ में चुनाव के दौरान दांव लगाने की भी पुरानी परंपरा रही है. कभी दिलीप सिंह जूदेव ने अपनी मूंछें ही दांव पर लगा दी थी. उस समय जीत बीजेपी की ही हुई थी.

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा के किन पांच जिला अध्यक्षों पर तलवार लटक रही है?

2. कलेक्टरों की ट्रांसफर लिस्ट पहले निकलेगी या एसपी की?


रविवार, 10 अप्रैल 2022

कमाल के अफसर

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 10 अप्रैल 2022

लालफीताशाही की इसे पराकाष्ठा कह सकते हैं...छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल मैकाहारा में कैंसर के सेल की जांच के लिए 2018 में एक हाईटेक जांच मशीन खरीदी गई थी। मशीन का नाम था पॉजिट्रॉन इमीशन टोमोग्राफी याने पेट सीटी स्केन। 18 करोड़ की ये मशीन केंसर के सेल को बड़ी बारीकी से डिटेक्ट कर लेती है। प्रदेश में ये जांच मशीन सिर्फ दो-एक प्रायवेट अस्पतालों के पास है, जो एक केस के लिए लोगों से 20 से 22 हजार रुपए तक ऐंठते हैं। बावजूद इसके मैकाहारा में इतनी महंगी और उपयोगी मशीन डिब्बे में बंद पड़ी है। दरअसल, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को आशंका थी कि इसकी खरीदी में अनियमितता बरती गई। लिहाजा, तीन साल से पेट सीटी स्केन खरीदी की जांच चल रही है। अरे भाई, जांच चलती रहती और उसका उपयोग भी चलता रहता तो क्या बिगड़ जाता। साढ़े तीन साल में सैकड़ों लोग इससे लाभान्वित हुए होते। मगर सिस्टम को क्या....लोगों की जेब कटते रहे....18 करोड़ की जांच मशीन बंद पड़ी है तो पड़ी रहे।

व्हाट एन आइडिया

नवा रायपुर में अफसरों के सेक्टर के पास रेलवे स्टेशन बनने के लिए एनआरडीए ने टेंडर फायनल कर दिया है। इस टेंडर में कई चीजें क्लास की हुई हैं। पहला, रेट ज्यादा। यूपी की कंपनी को पहले एसओआर से पांच फीसदी कम रेट पर काम मिला था। कंपनी ने महंगाई को देखते 10 फीसदी रेट बढ़ाने का लेटर दिया। चूकि पांच फीसदी कम में काम मिला था और 10 फीसदी बढ़ता तो एसओआर से सिर्फ पांच प्रतिशत ज्यादा होता। उसको छोड़ रिटेंडर में अफसरों ने गुजरात की कंपनी को एसओआर से 25 फीसदी ओवर रेट में टेंडर दे डाला। और क्लास देखिए...42 करोड़ के टेंडर में सिर्फ दो कंपनियों ने बीड डाला। जबकि, वहीं बगल में आरबीआई की बिल्डिंग बन रही, उसमें 29 कंपनियों ने टेंडर भरा और सीपीडब्लूडी ने उसका काम एसओआर से 28 फीसदी बिलो रेट में दिया है। बताते हैं, सूबे के एक पूर्व बीजेपी सांसद के निकटतम रिश्तेदार ने अफसरों से मुकम्मल सेटिंग की....दो बार टेंडर हुआ और दोनों बार दो ही कंपनियों ने टेंडर भरा। नेता के रिश्तेदार ने एक अपनी कंपनी का और दूसरा गुजरात की कंपनी का टेंडर डालवाया। शर्त भी ऐसी कि टेंडर गुजरात की कंपनी को मिला। और बीजेपी नेता के रिश्तेदार ने गुजरात की कंपनी से पेटी कंट्रेक्टर ले लिया। बताते हैं, स्मार्ट सिटी के पैसा का क्या किया जाए...इसलिए ये रास्ता निकाला गया। चूकि, काम भाजपा नेता को मिला इसलिए स्मार्ट सिटी के पैसे का बेजा उपयोग करने पर बीजेपी नेता भी कुछ नहीं बोलेंगे। वाकई, खेल बेजोड़ है।

नौकरशाह और थर्ड जेंडर

नवा रायपुर के सबसे प्राइम सेक्टर 15 में अधिकांश प्लाट नौकरशाहों ने लिया है। कई अफसरों ने अपने साथ-साथ अपने नाते-रिश्तेदारों के नाम पर भी बुक करवा लिया। अब एनआरडीए ने इसी सेक्टर में अफसरों के प्लाट के बगल में तीन पॉकेट के प्लाटों को नीलामी के लिए निकाला है। इसमें अप्लाई करने 20 अप्रैल आखिरी तारीख तय की गई है। इसमें खास यह है कि थर्ड जेंडर के लिए भी भूखंड रिजर्व किए गए हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने भी थर्ड जेंडर को समानता का अधिकार देने के लिए कहा है। इस दृष्टि से एनआरडीए ने बढ़ियां काम किया है। इस बारे में भूखंड क्रय करने वाले अधिकारी क्या सोचते हैं ये अलग बात है। नौकरशाहों के बगल में थर्ड जेंडर को रहने सौभाग्य मिलेगा, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।

पूर्व मंत्री की याद!

कर्मचारियों को फाइव डे वीक का लाभ मिला और अब पेंशन का। कर्मचारियों की तरफ से नई डिमांड अब डीए की आ रही है। कर्मचारियों की अगर वाजिब मांगे हैं तो उसे उन्हें रखनी भी चाहिए। बहरहाल, कर्मचारियों की बात चली तो पूर्व मंत्री स्व0 रामचंर्द्र सिंहदेव की याद आ गई। 2003 में वे विधानसभा में बजट पेश कर बाहर आए। परंपरा के अनुसार प्रेस को ब्रीफिंग शुरू हुई। कर्मचारियों की किसी मांग को लेकर सवाल था, सिंहदेव ने कहा हम 99 फीसदी लोगों के हितों की बलि चढ़ाकर एक फीसदी कर्मचारियों को उपकृत नहीं कर सकते। पत्रकारों ने फिर सवाल किया, इलेक्शन ईयर में आप कैसी बात कर रहे हैं...कर्मचारी नाराज हो गए तो....सिंहदेव बोले...मैंने कहा न...मेरी प्राथमिकता में 99 प्रतिशत जनता हैं, कर्मचारी नहीं।

कलेक्टरों का रिपोर्ट कार्ड

गृह और उर्जा विभाग के कामकाज का मुख्यमंत्री रिव्यू कर चुके हैं और एग्रीकल्चर का आंशिक। खैरागढ़ उपचुनाव के बाद मुख्यमंत्री फिर विभागों की समीक्षा प्रारंभ करेंगे। समीक्षा खतम करने के बाद वे जिलों के दौरे पर निकलेंगे। बताते हैं, विभाग प्रमुखों के साथ बैठकों में सिर्फ योजनाओं का समीक्षा नहीं की जा रही, बल्कि जिलों में उसका क्रियान्वयन किस स्तर पर हो रहा, इसे भी नोट किया जा रहा है। इसके बाद मुख्यमंत्री दौरे पर निकलेंगे। समझा जाता है, 25 अप्रैल के बाद उनका दौरा शुरू होगा। और इसमें कलेक्टरों की शामत आएगी, क्योंकि सीएम के पास कलेक्टरों की कंप्लीट कुंडली होगी।

मई एंड में?

कलेक्टरों का ट्रांसफर अब मई लास्ट तक हो पाएगा। हालांकि, सुनने में ये भी आ रहा कि सरकार दो-एक कलेक्टरों के पारफारमेंस से खुश नहीं है और हो सकता है उनका आदेश पहले निकल जाए। इसके बाद फिर बड़ी लिस्ट। वैसे भी 12 कलेक्टरों के दो बरस हो गए हैं। और सात को एक साल। जिनके दो साल हो गए हैं, उन्हें तो निश्चित तौर पर बदला जाएगा। क्योंकि, अभी वे जिस जिले में जाएंगे तो फिर वे अगले साल विधानसभा चुनाव तक रह पाएंगे। जिले को समझने और पिच पर जमने के लिए उन्हें टाईम भी चाहिए।

महिला कलेक्टर

बिलासपुर कलेक्टर के लिए पहले एक युवा कलेक्टर का नाम चल रहा था। मगर अब एक महिला आईएएस की चर्चा शुरू हो गई है। अगर ऐसा हुआ तो बिलासपुर में पहली बार महिला कलेक्टर बनेगी। बड़े जिलों में सिर्फ बिलासपुर और रायपुर ऐसे दो जिले हैं, जहां अब तक कोई महिला कलेक्टर नहीं बन पाई हैं। इन दोनों जिलों में एसपी में भी पहली बार इसी सरकार में महिलाओं को मौका मिला। रायपुर में नीतू कमल और बिलासपुर में पारुल माथुर। बहरहाल, चर्चाओं पर अगर अमल हो गया तो बिलासपुर में कलेक्टर, एसपी दोनों महिला होंगी। इससे पहले मुंगेली में एक बार कलेक्टर, एसपी दोनों महिला पोस्टेड हुईं थीं।

सुपर एमएलए

नारायणपुर में होने वाला अबूझमाड़ पीस मैराथन इतना हिट हो रहा था कि पिछले साल 10 हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे। इस मैराथन में हिस्सा लेने विदेशों से लोग बस्तर आए थे। इसमें छह लाख के विभिन्न इनाम रखे गए थे। पर दुर्भाग्य यह कि इस बार यह आयोजन राजनीति का शिकार हो गया। 21 किलोमीटर मैराथन दौड को आयोजित करने में जिला और पुलिस प्रशासन ने हाथ खड़ा कर दिया है। बताते हैं, एक विधायक जी नहीं चाहते थे कि इस तरह का आयोजन किया जाए। उन्हें दिक्कत यह थी कि मैराथन से पॉलिटिकल माइलेज नहीं मिल रहा था। सो, इसे रोकवाने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। अब विधायकजी पहले भी एक कलेक्टर का विकेट उड़वा चुके हैं, सो सारी तैयारी के बावजूद अफसरों ने तेज गरमी का हवाला देते हुए इसे स्थगित कर दिया। मगर अब इसे केंसिल ही समझा जाए।Amazing officers... Tarkash, the popular weekly column of senior journalist Sanjay Dixit focused on the bureaucracy and politics of Chhattisgarh

अंत में दो सवाल आपसे

1. खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच जीत की मार्जिन 15 हजार से अधिक होगी या कम?

2. किन दो जिलों के कलेक्टरों के कामकाज से सरकार खुश नहीं है?


शनिवार, 2 अप्रैल 2022

छत्तीसगढ़ में 36 जिले....?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 3 अप्रैल 2022

छत्तीसगढ़ में फिलवक्त 28 जिले हैं और चार नए प्रॉसेज में हैं। पिछले साल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मनेंद्रगढ़, सक्ती, सारंगढ़ और मोहला-मानपुर को नए जिले बनाने का ऐलान किया था। याने 28 प्लस चार 32। खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव के घोषणा पत्र में कांग्रेस ने खैरागढ़ को भी जिला बनाने का वादा किया है। कांग्रेस की जीत के 24 घंटे के भीतर खैरागढ़-गंडई-छुईखदान नाम से नए जिले की घोषणा हो जाएगी। इस तरह छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़कर अब 32 हो जाएगी। उधर, जिला के लिए पत्थलगांव का दावा काफी पुराना है। जशपुर राजपरिवार के फेर में पत्थलगांव की मांग पूरी नहीं हो पाई। अंतागढ़ में भी जिले के लिए लंबे समय से आंदोलन चल रहा है। लिहाजा, अगले विधानसभा चुनाव के पहले तक छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़कर 36 हो जाए, तो अचरज नहीं।

जिले का क्रेज!

खैरागढ़ में अगर सत्ताधारी पार्टी की जीत होगी तो राजनांदगांव जिला तीन हिस्सों में बंट जाएगा। मानपुर-मोहला नए जिले की घोषणा पहले हो गई है और दूसरा खैरागढ़। कलेक्टर, एसपी के दावेदार इससे बेहद खुश होंगे। पांच नए जिले में पांच कलेक्टर एडजस्ट हो जाएंगे, पांच एसपी भी। सीनियर कलेक्टरों को जरूर धक्का लगेगा क्योंकि, नौ ब्लॉक का राजनांदगांव शांत और साफ-सुथरा जिला माना जाता है। मलाईदार जिलों में कलेक्टरी करने के बाद अधिकांश आईएएस की इच्छा होती है कि राजनांदगांव जिला भी जाए। मगर अब तीन हिस्सों में बंटने के बाद राजनांदगांव की रेटिंग नीचे आ जाएगी। अब नौ से घटकर पांच ब्लॉक का जिला हो जाएगा। अभी सूबे में नौ ब्लॉक वाले तीन जिले हैं। रायगढ़, जांजगीर और राजनांदगांव। नए जिलों के गठन के बाद जांजगीर में छह, राजनांदगांव में पांच और रायगढ़ में सात ब्लॉक बचेंगे। यानी रायगढ़ जिला नंबर वन हो जाएगा।

सीधा मुकाबला

खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टी और मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी में सीधी भिड़ंत है। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है। मगर यह भी सही है कि खैरागढ़ शुरू से कांग्रेस का गढ़ रहा है। बीजेपी सिर्फ दो बार इस सीट से जीत पाई है। 2007 का उपचुनाव और 2008 का आम चुनाव। दोनों ही बार कोमल जंघेल जीते। इस बार भी बीजेपी ने जंघेल को चुनाव मैदान में उतारा है। कोमल जंघेल जमीनी नेता हैं। लोधी वोटरों में उनका प्रभाव भी है। मगर दोनों ही चुनाव तब निकाले, जब भिड़ंत त्रिकोणीय रही। पिछले बार भी जोगी कांग्रेस की वजह से मुकाबला त्रिकोणीय रहा। इसमें कोमल जंघेल ने कड़ा टक्कर दिया था...वे दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह से मात्र 850 वोटों से हार गए। मगर इस बार मुकाबला सीधा है। इसलिए, बीजेपी नेता भी स्थिति को लेकर नावाकिफ नहीं हैं।

आईएएस कॉन्क्लेव

आईएएस कॉन्क्लेव अबकी कई मायनों में खास रहेगा। तीन दिन का कॉन्क्लेव 14 से शुरू होकर 16 अप्रैल तक चलेगा। इसमें लेक्चर देने देश के जाने माने पूर्व नौकरशाहों को बुलाया जा रहा है। 15 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शिरकत करेंगे। बाकी, आईएएस परिवार के लिए सेलिब्रेशन का तगड़ा इंतजाम रहेगा।

अब डीए चाहिए

सरकार ने कर्मचारियों को फाइव डे वीक दिया। इसके बाद अप्रत्याशित रूप से पेंशन की मांग पूरी की। अब सुनने में आ रहा महंगाई भत्ते याने डीए बढ़ाने को लेकर कर्मचारियों के बीच कुछ-कुछ चल रहा। ठीक है, कर्मचारियों की मांगे वाजिब हो सकती हैं, पर सिस्टम को वर्किंग कल्चर बनाने पर जोर देना चाहिए, जो कि 21 साल में हुआ नहीं। फाइव डे वीक होने के बाद भी आफिसों में 11 बजे से पहले कोई पहुंच नहीं रहा।

अंत में दो सवाल आपसे?

1. क्या मंत्रिमंडल में फेरबदल का कोई फार्मूला तैयार हो रहा है?

2. खैरागढ़ चुनाव के बाद लाल बत्ती की छोटी लिस्ट निकलेगी?