शनिवार, 18 जनवरी 2014

तरकश, 19 जनवरी

नो चांस

केंद्रीय कर्मियों का रिटायरमेंट दो साल बढ़ाने के प्रपोजल को प्रधानमंत्री कार्यालय ने दोबारा लौटा दिया है। खजाने के संकट का हवाला देते हुए केंद्रीय वित विभाग ने पीएमओ को रिटायरमेंट बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भेजा था। मगर जिस तरह आम आदमी पार्टी का आगाज हुआ, मामला गड़बड़ा गया। यूथ कहीं नाराज न हो जाए, इसको देखते भारत सरकार ने फिलहाल इसे खारिज करना ही मुनासिब समझा। सो, अब नो चांस। दरअसल, 80 हजार स्केल वाले सूबे के तीनों टाप के अफसर, चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और पीसीसीएफ दो महीने के भीतर रिटायर होने वाले हैं। इसलिए, स्वाभाविक रूप से यहां काफी उत्सुकता थी। लेकिन डीजीपी और पीसीसीएफ की 31 जनवरी को बिदाई तय मानिये। इसके बाद 28 फरवरी को सीएस का नम्बर आ जाएगा। वैसे, सीएस को इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। उन्होंने अभी से दिल्ली लौटने की तैयारी शुरू कर दी है।

एस्सार-2

नक्सलियों के लिए फंड जुटाने के आरोप में पकड़े गए कांकेर के व्यापारियों का मामला एस्सार-2 सरीखा हो सकता है। दो साल पहले दंतेवाड़ा पुलिस ने जिस तरह एस्सार का 15 लाख रुपए नक्सलियों को पहुंचाने के आरोप में वहां के ठेकेदार बीके लाला को पकड़ा था। उसी तरह का केस कांकेर का भी है। एक बड़े ग्रुप का कांकेर के नक्सल इलाके में काम चल रहा है। और, पुलिस के आला अफसरों की मानें तो नीरज और धर्मेंद्र उनके और माओवादियों के बीच मध्यस्थ का रोल निभा रहे थे। इस मामले में चार और रसूखदार कारोबारियों के नाम आ रहे हैं। इनमें दो तो सत्ताधारी पार्टी के एक नेता के खास हैं। तो एक सत्ताधारी पार्टी का मंडल अध्यक्ष रह चुका है। पुलिस अगर कड़ाई से जांच कर दे, तो कांकेर से लेकर रायपुर तक के कई सफेदपोश लोग सलाखों के अंदर होंगे।

नई इंट्री

सेंट्रल डेपुटेशन बीच में छोड़कर एडीजी एमडब्लू अंसारी दिल्ली से छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। उनकी वापसी को डीजीपी की दौड़ से जोड़कर देखा जा रहा है। हालांकि, डीजीपी कौन बनेगा, यह वक्त बताएगा या फिर डा0 रमन सिंह। मगर यह बात साफ है कि अंसारी के आने के बाद सरकार के सामने विकल्प का टोटा नहीं रहेगा। नायक के बाद सेकेंड नम्बर पर अंसारी हमेशा हाजिर रहेंगे। अलबत्ता, पुलिस मुख्यालय के समीकरण भी चेंज होंगे। एएन उपध्याय को अब डीजी बनने के लिए 2016 तक इंतजार करना होगा। तब, अंसारी के रिटायर होने के बाद पोस्ट खाली होगा। अंसारी अगर दिल्ली से नहीं आते तो रामनिवास के बाद रिक्त पद पर इस साल नहीं, तो अगले साल उपध्याय पक्का डीजी बन जाते। अंसारी के अलावा असम और बंगाल कैडर के दो और सीनियर आईपीएस भी डेपुटेशन पर छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। इनमें से एक तो एडीजी होंगे। जाहिर है, पीएचक्यू में सीनियर अफिसरों की कमी नहीं रहेगी।

31 के बाद

चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य 31 जनवरी तक बढ़ा दिए जाने के कारण प्रशासनिक फेरबदल फिलहाल टल गया है। आयोग ने राज्य सरकारों से आग्रह किया था कि 15 जनवरी तक कलेक्टरों को चेंज न किया जाए। आयोग ने अब डेट बढ़ा दिया है। हालांकि, आचार संहिता अभी प्रभावशली नहीं है, इसलिए आयोग की बात मानने की बाध्यता नहीं है। मगर सामने लोकसभा चुनाव को देखते राज्य सरकार आयोग को नाराज नहीं करना चाहेगी। इसलिए, अब 31 जनवरी की शाम या इसके दो-एक दिन के भीतर कलेक्टरों का आर्डर निकल जाएगा। मार्च फस्र्ट वीक में लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लगने के संकेत हैं, सो सरकार की कोशिश होगी कि दो फरवरी से पहले ट्रांसफर को अंजाम दे दिया जाए।

एक्सचेंज

जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं, कलेक्टरों में रायपुर और बिलासपुर के बीच एक्सचेंज हो सकता है। ठाकुर राम सिंह बिलासपुर से रायपुर और सिद्धार्थ कोमल परदेशी रायपुर से बिलासपुर। वैसे, चेंज होने वाले कलेक्टरों में दर्जन भर से अधिक नाम हो जाएंगे। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, मंुगेली, बलौदाबाजार, जांजगीर भी। जांजगीर कलेक्टर पी अंबलगन को हालांकि, छै महीने ही हुए हैं, मगर उनकी पत्नी कांकेर कलेक्टर हैं। दूरी बहुत हो गई है। पहले वे अगल-बगल के जिलों में थे भी। अंबलगन जगदलपुर कलेक्टर थे। मगर जीरम नक्सली हमले के बाद यह जोड़ी बिछुड़ गई। अब, फिर उन्हें पास-पास लाने की कोशिश की जा रही है।

गूड न्यूज

छत्तीसगढ़ के लिए यह एक अच्छी खबर हो सकती है…..दंतेवाड़ा में लाइवलीहूड कालेज समेत एजुकेशन सेंटर डेवलप किया गया है, उसे देश के अन्य राज्यों में लागू करने के लिए भारत सरकार केस स्टडी तैयार करवा रही है। पिछले सप्ताह केंद्र का तीन सदस्यीय टीम ने दंतेवाड़ा का विजिट किया। इसके बाद रिव्यू करने के लिए केस स्टडी को हावर्ड यूनिवर्सिटी भेजा जाएगा केस स्टडी का थीम यह है कि अगर इच्छा शक्ति हो तो सुधार और विकास के काम करने के लिए यह मायने नहीं रखता कि वह एरिया और सिचुऐशन किस तरह का है। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जैसे रिमोट और हिंसाग्रस्त इलाके में शिक्षा के क्षेत्र में अनूठा काम हो गया। एक ही कैंपस में स्कूल, कालेज, कस्तूरबा विद्यालय, आदिवासी हास्टल, आईटीआई, पालीटेक्निक कालेज, महिला आईटीआई, आजीविका कालेज। वैसे, छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी जिलों में लाइवलीहूड कालेज खोलने का ऐलान किया है। अगर पूरे देश में यह लागूू हो गया तो छत्तीसगढ़ के साथ दंतेवाड़ा के तत्कालीन कलेक्टर ओपी चैधरी भी हीरो हो जाएंगे। जिन्होंने दंतेवाड़़ा जैसे जिले में यह काम कर दिखाया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नक्सलियो को मदद करने के आरोप में पकड़े गए नीरज और धर्मेंद्र चोपड़ा जिन लोगों के नाम बताएंगे, पुलिस उन्हंे गिरफ्तार कर सकती है?
2. विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसा क्या हुआ कि सरकार अधिकांश आईपीएस अफसरों से नाराज है?

शनिवार, 11 जनवरी 2014

तरकश, 12 जनवरी

बदले-बदले से. सरकार….

सरकार के हैट्रिक बनने का असर सीएम के तेवर और कंफिडेंस से झलकने लगा है। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने विपक्ष के सारे आरोपों को लच्छेदार भाषण से हवा में उड़ा दिया। सीएम को इससे पहले, इस तरह रौ में बोलते लोगों ने नहींे देखा होगा। वे बोलते गए और विपक्ष अनुशासित विद्यार्थी की तरह सुनता रहा। तो, शुक्रवार को अनुपूरक बजट पर बोलने के दौरान उनके मंत्रियों ने आपस में गुफ्तगू की तो उन्हें भी झिड़कने से नहीं चूके। असल में, सीएम बजट पर बोल रहे थे, बृजमोहन अग्रवाल, केदार कश्यप जैसे कुछ सीनियर मंत्री पीछे मुड़कर बातें करने में मशगूल थे। इस पर पहले तो सीएम ने घुरकर देखा। फिर, गुस्से में बोले, पहले आप लोग बात कर लो, फिर मैं बोलुंगा। इसके बाद सन्नाटा छा गया। विधानसभा परिसर में सीएम के बदले अंदाज की चर्चा भी खूब रही।

भाजपा और डीजीपी

राज्य बनने के बाद पांच आईपीएस ही ऐसे थे, जो छत्तीसगढ़ मांग कर आए थे। इनमें आरएलएस यादव, आरएल आम्रवंशी, राजीव माथुर, संतकुमार पासवान और गिरधारी नायक हैं। पांचों में अभी तक सिर्फ यादव किस्मती निकले, जो जोगी युग में डीजीपी बनने में कामयाब रहे। भाजपा शासनकाल में ऐसे अफसरों को डीजीपी बनने का मौका नहीं मिल सका। आम्रवंशी, माथुर और पासवान…..तीनों यूं ही बिदा हो गए। पांच में से आखिरी अब, गिरधारी नायक बच गए हैं। रामनिवास के इस महीने रिटायर होने के बाद नम्बर उन्हीं का आता है और उनके अलावा फिलहाल, कोई आईपीएस डीजीपी बनने का मापदंड पूरा नहीं करता। बावजूद इसके, यह देखना दिलचस्प होगा कि नायक भाजपा शासनकाल वाला मिथक तोड़ने में सफल होते हैं या……?

जैकेट प्रेम

ब्यूरोके्रट्स के ड्रेस की एक गरिमा होती है। खासकर सीएम या सीएस की मीटिंग हो तो हाफ शर्ट ना पहनना। कलरफुल कपड़ों से परहेज। पीएम या प्रेसिडेंट की विजिट में बंद गले का कोट। मगर अबकी विधानसभा के प्रथम सत्र में नौकरशाहों के जैकेट प्रेम से विधानसभा परिसर में नेताओं और उनमें फर्क करना मुश्किल हो गया। कुछ ब्यूरोक्रेट्स तो पांचों दिन सदन में बदल-बदलकर जैकेट पहनकर पहुंचे। राज्यपाल के अभिभाषण के दिन सीएम और नेता प्रतिपक्ष तक बंद गले का सूट पहनकर आए थे और अफसर रंगीन जैकेट में। कुछ अफसरों में तो होड़ मच गई थी। सदन की लाबी में तभी लोग चुटकी ले रहे थे, रमन सरकार के अफसर कहीं आम आदमी पार्टी ज्वाईन करने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं।

फंस गए राव

सरकार से रार ठानकर सीनियर आईएएस केडीपी राव अब बुरी तरह फंस गए हैं। पिछले साल 2 मई को बिलासपुर का कमिश्नर बनाए जाने के बाद सरकार के खिलाफ उन्होंने कानूनी लड़ाई छेड़ दी थी। मगर कैट के बाद अब, हाईकोर्ट में भी उनकी याचिका खारिज हो गई। राव के करीबी लोगों का कहना है, वे अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। मगर इसकी संभावना अब कम ही लग रही है। वहां साल-दो साल और निकल जाएगा। वैसे भी वे आठ महीना से घर में खाली बैठे हैं। स्टे्रज्डी के तहत सरकार ने उन्हें सस्पेंड भी नहीं किया। सस्पेंड होते तो उनकी आधी तनख्वाह मिलती रहती। संस्कृति विभाग ने उनकी गाड़ी भी वापिस ले ली। बच गया है सिर्फ बंगला। हालांकि, राव को सबने समझाया था, सरकार से पंगा लेना अक्लमंदी नहीं है। मगर कोई फर्क नहीं पड़ा। अब अगर वे ज्वाईन किए, तो यही कहा जाएगा, लौट कर बुद्धू घर…..। और सुप्रीम कोर्ट गए तो लंबे समय तक घर में बैठना पड़ जाएगा।

ट्रांसफर का सप्ताह

आमतौर पर सरकार बनने के बाद बडे़ स्तर पर ट्रांसफर-पोस्टिंग होते हैं। लेकिन चुनाव आयोग के चलते सरकार के हाथ बंधे थे। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के कारण आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों का ट्रांसफर न करने के लिए कहा था। सो, एक साथ करने के लिए मंत्रालय में भी कुछ नहीं हुआ। अब, बुधवार को चुनाव आयोग की मियाद खतम हो जाएगी। संकेत हैं, इसके दो-एक दिन बाद लिस्ट निकल सकती है। विधानसभा का सत्र भी खतम हो गया है। कल रविवार को सूची पर मंत्रणा होने की खबर आ रही है। इसमें दर्जन भर कलेक्टर प्रभावित होंगे। छोटे जिलों के कई कलेक्टरों के दो साल हो गए हैं। पारफारमेंस के आधार पर उन्हें बदला जाएगा। बड़े जिले में बिलासपुर कलेक्टर ठाकुर राम सिंह का नाम सबसे उपर है। राम सिंह इससे पहले रायगढ़ और दुर्ग जिला कर चुके हैं। सूबे के वे सबसे रसूखदार कलेक्टर माने जाते हैं, इसलिए बिलासपुर के बाद बेशक, उन्हें कोई बडा जिला ही मिलेगा। इसके अलावा मंत्रालय में भी आधा दर्जन विभागों के सिकरेट्री चंेज होंगे। इनमें फूड और होम सबसे उपर है। होम में एनके असवाल का छह साल से ज्यादा हो गया है।

सिर्फ रमन

लोकसभा चुनाव के पहले सरकार आक्रमक प्रचार अभियान में जुट गई है। जनसंपर्क विभाग द्वारा इसके लिए कई योजनाएं बनाई गई है। इसके तहत पूरे प्रदेश में लोक लुभावन योजनाओं के बड़े स्तर पर होर्डिंग्स लगाए जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव में चूकि सिर्फ रमन सिंह का चेहरा चला है, उन्हीं के नाम पर वोट मिले हैं। सो, लोकसभा चुनाव में भी इसे कैश करने के लिए होर्डिंग्स में सिर्फ रमन सिंह की ही फोटो होंगी। मंत्रियों की नहीं। बताते हैं, गुजरात समेत कुछ राज्यों में होर्डिंग्स में सिर्फ सीएम की फोटो रहती हैं।

नए चेहरे

गौरीशंकर अग्रवाल के स्पीकर बनने के बाद सोमवार को अपनी शुभेच्छा देते हुए बद्रीधर दीवान ने गलत नहीं कहा कि सदन में नए चेहरों को देखकर लग रहा है, मैं कहां आ गया हूं। वास्तव में, इस बार सदन का नजारा बदला हुआ है। बड़े चेहरे गायब हैं। सत्ता पक्ष की पहली पंक्ति तो कुछ बची हुई है। विपक्ष की अगली दो पंक्ति पूरी तरह साफ हो गई है। स्पीकर के बायी ओर पहली पंक्ति में नेता प्रतिपक्ष रविंद्र चैबे बैठते थे। उसके बाद बोधराव कंवर, प्रेमसाय सिंह, हरिदास भारद्वाज, शक्राजीत नायक, परेश बागबहरा। दूसरी लाइन में ताम्रध्वज साहू, मोहम्मद अकबर, धर्मजीत सिंह, अमितेश शुक्ल, प्रतिमा चंद्राकर। सभी चुनाव हार गए। वहीं, भाजपा के अग्रिम पंक्ति से रामविचार नेताम और चंद्रशेखर साहू इस बार सदन में नहीं हैं। उनकी जगह पर प्रेमप्रकाश पाण्डेय और पुन्नूराम मोहले आ गए हैं।

सलामी जोड़ी

सत्यनारायण शर्मा और भूपेश बघेल में से भले ही कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं बन पाया। मगर प्रथम सत्र के ट्रेलर से यह तय हो गया है कि कांग्रेस के ओपनिंग बैट्समैन शर्मा और बघेल ही होंगे। राज्यपाल का अभिभाषण हो या अनुपूरक बजट, दोनों ने आक्रमक बैटिंग की। राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान शर्मा के प्रहार से सरकार का बचाव करने के लिए एक-एक कर अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, केदार कश्यप और शिवरतन शर्मा सामने आए। मगर चुटिले और नुकीले तीरों से शर्मा ने सबको धराशायी कर दिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रिटायर्ड ब्यूरोके्रट्स शरदचंद्र बेहार के आम आदमी पार्टी के सलाहकार बनने पर लोग अक्षय कुमार की खट्टा-मिठ्ठा फिल्म को क्यों याद कर रहे हैं?
2. एक आईएएस का नाम बताएं, जिनके बारे में चर्चा है कि वे चीफ सिकरेट्री बनने के लिए यज्ञ करा रहे हैं?

शनिवार, 4 जनवरी 2014

तरकश, 5 जनवरी

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28 की टिकिट

चीफ सिकरेट्री सुनिल कुमार ने जिस तरह दमदार पारी खेली, उसी दमदारी के साथ वे यहां से बिदा भी होना चाहते हैं। 28 फरवरी को उनका रिटायरमेंट है। इसके बाद वे यहां एक दिन भी नहीं रुकेंगे। उसी दिन शाम को वे छत्तीसगढ़ को बाय-बाय कर देंगे। पता चला है, शम की फ्लाइट की उनकी और टिकिट भी हो गई है। हालांकि, परंपरा फेयरवेल की रही है। मंत्रालय के साथ, आईएएस एसोसियेशन द्वारा बिदाई दी जाती है। मगर उनका फेयरवेल वगैरह नहीं होगा। वजह, सुनिल कुमार इस तरह की चीजें पसंद नहीं करते। दिल्ली में उनके पास सरकारी मकान है। मगर वे उसमें वे नियमानुसार चार महीने ही रह सकते हैं। फरीदाबाद में उनका मकान बन रहा है। तब तक उन्होंने दिल्ली में किराये के मकान में रहना तय किया है। उनके करीबी लोगों का कहना है, कहीं पोस्टिंग के बजाए अब, वे अपना समय लिखने-पढ़ने और समाज सेवा में व्यतीत करना चाहते हैं।

हाट इश्यू

ब्यूरोक्रेसी में इन दिनों भावी चीफ सिकरेट्री और डीजीपी हाट इश्यू बना हुआ है। मंत्रालय के हर कमरे में यही सवाल चल रहा है….नेक्स सीएस कौन होगा…..डीजीपी यहीं से बनंेगे या आयातित होंगे। सीएस के लिए दो नाम प्रमुखता से चल रहे हैं। वो हैं, विवेक ढांड और डीएस मिश्र। ढांड 81 बैच के हैं और मिश्रा 92 बैच का। सो, सीनियरिटी में ढांड हैं। मगर यह भी अहम है कि सीनियरिटी के आधार पर सीएस बनने वाले रामप्रकाश बगाई आखिरी थे। सो, इस बार क्या होगा, उत्सुकता लाजिमी है। उधर, डीजीपी रामनिवास इस महीने 31 को रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद गिरधारी नायक के अलावा और कोई नाम नहीं है। पीएचक्यू में पहली बार इस तरह वैक्यूम आया है। वरना, हमेशा डीजीपी के दो-एक दावेदार रहे हैं। असल में, एमडब्लू अंसारी अभी डीजी नहीं बने हैं और एएन उपध्याय की 30 साल की सर्विस पूरी नहीं हुई है। ऐसे में, मध्यप्रदेश से किसी आईपीएस को बुलाने की बात भी उड़ रही है। मगर सारे समीकरणों का देखते लगता है, नायक का नाम फायनल हो जाएगा।

स्वागत विहार-2

रायपुर में स्वागत विहार-2 का शिकार होने से रायपुर के लोेग बाल-बाल बच गए। दरअसल, कचना इलाके में एक नामी बिल्डर ने हाउसिंग बोर्ड की साढ़े सात एकड़ जमीन न केवल अपने पजेशन में ले लिया था, बल्कि उसने टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से एप्रूवल कराने के साथ ही नगर निगम से नक्शा भी पास करा लिया था। उसी दौरान स्वागत विहार एपीसोड हो गया। और संजय बाजपेयी को जेल जाना पड़ गया। इससे घबराकर बिल्डर ने हाउसिंह बोर्ड के अफसरों के पास यह कहते हुए जमीन सरेंडर कर दिया कि कोई कब्जा न कर लें, इसलिए उसने अपने घेरे में ले लिया था। सूत्रों का कहना है, रायपुर में कई बिल्डरों ने ऐसा खेल किया है। इसकी अगर जांच हो जाए, तो कम-से-कम दर्जन भर जेल में होंगे।

अब लोकसभा

विधानसभा चुनाव तो निबट गया मगर अब राजनीति पार्टियों को लोकसभा के लिए कंडिडेट ढूंढने में, ठंड में भी पसीना आ रहा है। दोनों ही प्रमुख पार्टियों के लिए 2014 का चुनाव चैलेंजिंग है। मगर, कांग्रेस का मामला और पेचीदा है। ऐसे में, उसे विधानसभा चुनाव में हारे हुए चेहरों पर भी दांव लगाना पड़ सकता है। बिलासपुर में धर्मजीत सिंह का नाम सामने आ ही रहा है। इसी तरह दुर्ग में रविंद्र चैबे और घनराराम साहू के बाद कांग्रेस को कोई नाम नहीं सूझ रहा है। राजनांदगांव में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। एक नाम है, देवव्रत सिंह। इसमें भी कहीं मुख्यमंत्री के बेटे अभिशेक खड़े हो गए तो चुनाव और टफ हो जाएगा। उधर, अजीत जोगी को रायगढ़ से उतारने के संकेत मिल रहे हैं। रायपुर की स्थिति भी अलग नहीं है। कांग्रेस के सूत्रों पर अगर यकीन करें तो सिचुएशन को समझते हुए पार्टी रायपुर से सत्यनारायण शर्मा को खड़ा करने के लिए विचार कर रही है। पार्टी के सभी नेताओं का मानना है कि शर्मा रायपुर से मजबूत दावेदार हो सकते हैं। और, कहना तो ऐसा भी है कि इस भूमिका के लिए ही नेता प्रतिपक्ष के लिए उनका नाम उस ढंग से नहीं चला, जैसा कि होना चाहिए था।

आम आदमी का डंडा

हमारे मंत्रियों को भी टीम केजरीवाल से कुछ नसीहत लेनी चाहिए। और कुछ ना सही, कम-से-कम सादगी ही सही। टीम केजरीवाल मेट्रो में शपथ लेने पहुंची। ना फैब का कुर्ता और ना ही चकाचक जैकेट। कार केट कौन कहंे, लाल बत्ती भी नहीं। प्रायवेट कार से मंत्रालय गए। एक अपने मंत्रीजी लोग हैं। पूरी ताकत शन-शौकत के जुगाड़ में लगा देते हैं। पसंद का पीए, पसंद का गनमैन और पसंद की गाड़ी। वाहन के आगे सायरन बजाते हुए जब तक पुलिस की गाड़ी नहीं चले, तब तक उन्हें यकीन नहीं होता कि वे मंत्री हैं। आगे तो आगे, पीछे भी पुलिस की गाड़ी होनी चाहिए। साथ में, विभाग की कुछ खाली गाडि़यां भी। ताकि, काफिले से लगे के फलां मंत्रीजी जा रहे हैं। काफिला बड़ा है मतलब जलवेदार हैं। जोगी सरकार में लाल बत्ती तो थी ही नहीं, 2003 में रमन सरकार ने सुरक्षा के लिहाज से केवल गृह मंत्री को पायलेटिंग और फालो गाड़ी की सुविधाएं दी थी। मगर बाद में सरकार पर प्रेशर बनाकर कई मंत्रियों ने यह सुविधाएं हथिया ली। अब, मंत्रीजी का काफिला निकलता है, तो पायलट गाड़ी का पुलिस वाला हाथ में डंडा लेकर आम आदमी को ऐसे हकालता है, जैसे किसी जानवर को सड़क से भगा रहा हो। मगर सवाल यह है कि अगले चुनाव में कहीं आम आदमी का डंडा चल गया तो हमारे मंत्रीजी लोगों का क्या होगा।

15 के बाद

अशोक जुनेजा के प्रमोशन के कारण आईपीएस की एक छोटी लिस्ट तो निकल गई मगर आईएएस में चुनाव आयोग का पेंच आ गया है। मतदाता सूची का पुनरीक्षण के चलते आयोग ने 15 जनवरी तक कलेक्टरों को चेंज नहीं करने कहा है। सो, कलेक्टरों के चक्कर में आईएएस की लिस्ट अटक गई है। हालांकि, पहले यह खबर आ रही थी कि आयोग से परमिशन लेकर कुछ कलेक्टरों को बदला जाए। साथ में सिकरेट्रीज को भी। मगर अंदर से जैसी खबरें आ रही हैं, सरकार चाह रही है कि 15 के बाद एक साथ ही सिकरेट्रीज और कलेक्टरों की लिस्ट निकाली जाए। इसलिए, मामला आगे बढ़ सकता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. मंत्रियों के प्रायवेट होर्डिंग्स का भुगतान मंत्री अपने जेब से करते हैं या उसे सरकारी बिल में एडजस्ट किया जाता है?
2. इस चर्चा में कितना दम है कि दिल्ली में लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी सूबे के एक नौकरशाह से संपर्क करने की कोशिश कर रही है?