पहली बार
राजभवन के सिकरेट्री जवाहर श्रीवास्तव के रिटायरमेंट में अब पांच दिन बच गए हैं। इसके साथ ही, उनके पुनर्वास की स्थिति भी अब क्लियर हो गई है। उन्हें राजभवन में संविदा में सिकरेट्री बनाया जा रहा है। इसके लिए सरकार को कहीं से इशारा हुआ था और उसे न मानने का सवाल ही नहीं था। सो, 31 दिसंबर को उनका आर्डर निकल जाएगा। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब राजभवन में रिटायर आईएएस सिकरेट्री होगा। इससे पहले, सूचना आयोग में ताजपोशी की गुंजाइश तलाशी जा रही थी। यद्यपि, इसमें सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसले रोड़ा बन रहा था। मगर इस बीच राष्ट्रपति भवन में हुए घटनाक्रम ने श्रीवास्तव की राजभवन में ताजपोशी का रास्ता साफ कर दिया। प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन में पहली बार गैर आईएएस सिकरेट्री नियुक्त हुआ है। आईएएस कौन कहें, अमिता पाल आल इंडिया सर्विसेंज की भी अधिकारी नहीं हैं। मगर राष्ट्रपति की अनुशंसा थी, इसलिए केंद्र ने उन्हें अपाइंट करने में जरा-सी भी देर नहीं लगाई। ऐसे में राज्य सरकार श्रीवास्तव को भला राजभवन में पोस्टिंग कैसे नहीं करती।
नए सिकरेट्री
15 सितंबर तक सरकार को दो नए सिकरेट्री मिल जाएंगे। सीएम सचिवालय के दोनों स्पेशल सिकरेट्री, सुबोध सिंह और मुनिश कुमार त्यागी पदोन्नत होने जा रहे हैं। उन्हें सिकरेट्री बनाने के लिए केंद्र से हरी हरी झंडी मिल चुकी है। संकेत हैं, अगले महीने किसी भी दिन डीपीसी हो जाएगी और इसके बाद सुबोध और त्यागी प्रमोट हो जाएंगे। वैसे भी, आईएएस में सिकरेट्री लेवल पर सबसे अधिक टोटा है। अलबत्ता, डेपुटेशन पर जो आईएएस आ रहे हैं, वे भी जूनियर हैं। राज्य बनने के पहले पांच साल कई सीनियर आईएएस डेपुटेशन पर आए थे। पंकज द्विवेदी, उजागर सिंह, एजेवी प्रसाद, श्रीनिवासलू, रमेश पी रमेश कुमार, नंदकुमार जैसे कई नाम हैं। बहरहाल, दो सिकरेट्री बढ़ने से जाहिर है, सरकार को कुछ राहत मिलेगी। इसी के साथ मंत्रालय में एक छोटा फेरबदल भी होगा। सुबोध और मुनिश को नए विभाग मिलेंगे। सो, एक चेन तो बन ही जाएगा। एसीएस बनने के बाद विवेक ढांड के विभाग भी बदलने की अटकलें हैं।
ग्रह दशा
बिलासपुर के नाम से अभी तक आईपीएस कांपते थे, अब सीबीआई की भी स्थिति ठीक नहीं है। देश की सबसे भरोसेमंद जांच एजेंसी पर भी आखिर दाग लग गया। उसका इंस्पेक्टर दो लाख रुपए लेते ट्रेप हो गया। सुशील पाठक हत्याकांड की जांच के सिलसिले में सीबीआई टीम पिछले आठ महीने से बिलासपुर में कैंप कर रही है। ऐसे में लोग चुटकी ले रहे हैं, बिलासपुर पुलिस की खराब ग्रह दशा अब सीबीआई की ओर शिफ्थ हो गई है। आखिर, सुशील के मर्डर के बाद ही बिलासपुर पुलिस के दिन खराब होने शुरू हुए थे। और जयंत थोरात से जो विकेट गिरना चालू हुआ.....राहुल शर्मा ने गोली मार ली और आईजी बीएस मारावी हार्ट अटैक से चल बसे। जीपी सिंह के साथ इतना बुरा हुआ कि वे सपने में भी नहीं सोचे होंगे। अब, अशोक जूनेजा के आईजी बनकर आने के बाद स्थिति कुछ संभली है। मगर बुरे ग्रह किसी-न-किसी को चपेट में तो लेेंगे ही। सो, अब सीबीआई की बारी है।
खतरा
कर्मचारियों और अधिकारियों के ट्रांसफर के बाद मंत्रियों द्वारा उसे निरस्त करने की थोक में भेजी जा रही सिफारिशें, सचिवों के लिए मुसीबत का सबब बन गई है। नोटशीट आगे ना बढ़ाएं तो मंत्री खफा और मूव कर दिए तो चीफ सिकरेट्री की नाराजगी का खतरा। पता चला है, चीफ सिकरेट्री ने दो टूक कह दिया है, ट्रांसफर कैंसिल कराने की कोशिश करने वाले अफसरों के सीआर में वे लिख देंगे। असल में, इस बार अति हो गई है। शायद ही कोई विभाग होगा, जहां से डेढ़-दो सौ ट्रांसफर निरस्त करने के लिए नोटशीट न गई हों। 12 सौ से अधिक तबादले निरस्त करने के प्रस्ताव हैं। याने दोतरफा कमाई। पहले टंांसफर के लिए और बाद में उसे रोकने के लिए। यही वजह है, आईएएस अफसरों में बड़ा गुस्सा है, माल खाए मंत्री और मंत्री के लोग और रिकार्ड खराब हो हमारा। यही हाल रहा तो मंत्रियों और उनके पीए को अबकी पैसा वापिस करना पड़ जाएगा
सबसे तेज?
राज्य के सबसे तेज और ताकतवर मंत्री कहे जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के पीडब्लूडी का ये हाल हो जाएगा, खुद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा। सड़क को कौन पूछे, पुल बह जा रहा है। पांच महीने में चीफ इंजीनियर, सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर समेत 10 आला अधिकारी सस्पेंड हो चुके हैं। मार्च में देवभोग का पुल बहा था तो चीफ इंजीनियर समेत छह पर गाज गिरी थी और इस महीने मनेंद्र्रगढ़ में पुल बहा तो चार गए। सीबीआई की तफ्तीश में ईएनसी पीके जनवदे का विकेट गिर ही चुका है। स्थिति यह हो गई है, अफसरों की कमी के चलते अब देवभोग मामले में सस्पेंड छह अधिकारियों को बहाल करने पर विचार किया जा रहा है। अब रेट से दोगुना-तीगुना लेकर इंजीनियरों को पोस्टिंग मिलेगी, तो उनसे अंग्रेजों के जमाने जैसा पुल की उम्मीद कैसे की जाएगी। घर से तो वे पैसा लगाएंगे नहीं।
चतुर विधायक
कुलदीप जूनेजा बोले तो रायपुर उत्तर के विधायक। यही नहीं, स्कूटर पर चलने वाले संभवतः पहले एमएलए। स्कूटर देखकर चंदा-वंदा मांगने वाले उन्हें तंग नहीं करते। गणेश और दुर्गा के लिए रसीद बुक लेकर भूले-भटके कोई पहुंच भी गया तो यही जवाब मिलेगा, अगली बार हमारी सरकार बनेगी तो जो बोलना....। विधायक चुने जाने के बाद हालांकि उन्होंने चमचमाती सफारी खरीदी थी मगर इन्हीं सबके चलते उन्होंने अ-सरदार बुद्धि लगाई और स्कूटर पर चलना शुरू कर दिया। अब वे दिन में स्कूटर पर चलते हैं और रात में कार में। एक तरह से कहें तो स्कूटर ही उनका चलता-फिरता आफिस है। डिक्की में लेटरपैड, सील, सब रहता है। अब, आफिस बनाकर चाय-पानी का खर्चा क्यों बढ़ाएं। सो, उन्हें आप नियमित रूप से सुबह-शाम शहर के चैक-चैराहों पर खड़े या स्कूटर पर टिके देख सकते हैं। कोई काम लेकर आ गया तो लेटरपैड पर लिख कर दे दिया। काम हो गया तो वाहे गुरू, नहीं हुआ तो कोई टेंशन नहीं।
अंत में दो सवाल आपसे
1. तमाम चीजों को मैनेज करने के बाद भी किस एक प्वाइंट पर ओवरकांफिडेंस की वजह से आईएएस अफसर बाबूलाल अग्रवाल प्रींसिपल सिकरेट्री बनने से चूक गए?
2. किस अफसर की वजह से सरकार और राज्य के पुलिस अधीक्षकों के बीच कम्यूनिकेशंस गैप बढ़ता जा रहा है?