शनिवार, 25 अगस्त 2012

तरकश, 26 अगस्त

पहली बार

राजभवन के सिकरेट्री जवाहर श्रीवास्तव के रिटायरमेंट में अब पांच दिन बच गए हैं। इसके साथ ही, उनके पुनर्वास की स्थिति भी अब क्लियर हो गई है। उन्हें राजभवन में संविदा में सिकरेट्री बनाया जा रहा है। इसके लिए सरकार को कहीं से इशारा हुआ था और उसे न मानने का सवाल ही नहीं था। सो, 31 दिसंबर को उनका आर्डर निकल जाएगा। राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब राजभवन में रिटायर आईएएस सिकरेट्री होगा। इससे पहले, सूचना आयोग में ताजपोशी की गुंजाइश तलाशी जा रही थी। यद्यपि, इसमें सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसले रोड़ा बन रहा था। मगर इस बीच राष्ट्रपति भवन में हुए घटनाक्रम ने श्रीवास्तव की राजभवन में ताजपोशी का रास्ता साफ कर दिया। प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन में पहली बार गैर आईएएस सिकरेट्री नियुक्त हुआ है। आईएएस कौन कहें, अमिता पाल आल इंडिया सर्विसेंज की भी अधिकारी नहीं हैं। मगर राष्ट्रपति की अनुशंसा थी, इसलिए केंद्र ने उन्हें अपाइंट करने में जरा-सी भी देर नहीं लगाई। ऐसे में राज्य सरकार श्रीवास्तव को भला राजभवन में पोस्टिंग कैसे नहीं करती।

नए सिकरेट्री

15 सितंबर तक सरकार को दो नए सिकरेट्री मिल जाएंगे। सीएम सचिवालय के दोनों स्पेशल सिकरेट्री, सुबोध सिंह और मुनिश कुमार त्यागी पदोन्नत होने जा रहे हैं। उन्हें सिकरेट्री बनाने के लिए केंद्र से हरी हरी झंडी मिल चुकी है। संकेत हैं, अगले महीने किसी भी दिन डीपीसी हो जाएगी और इसके बाद सुबोध और त्यागी प्रमोट हो जाएंगे। वैसे भी, आईएएस में सिकरेट्री लेवल पर सबसे अधिक टोटा है। अलबत्ता, डेपुटेशन पर जो आईएएस आ रहे हैं, वे भी जूनियर हैं। राज्य बनने के पहले पांच साल कई सीनियर आईएएस डेपुटेशन पर आए थे। पंकज द्विवेदी, उजागर सिंह, एजेवी प्रसाद, श्रीनिवासलू, रमेश पी रमेश कुमार, नंदकुमार जैसे कई नाम हैं। बहरहाल, दो सिकरेट्री बढ़ने से जाहिर है, सरकार को कुछ राहत मिलेगी। इसी के साथ मंत्रालय में एक छोटा फेरबदल भी होगा। सुबोध और मुनिश को नए विभाग मिलेंगे। सो, एक चेन तो बन ही जाएगा। एसीएस बनने के बाद विवेक ढांड के विभाग भी बदलने की अटकलें हैं।

ग्रह दशा

बिलासपुर के नाम से अभी तक आईपीएस कांपते थे, अब सीबीआई की भी स्थिति ठीक नहीं है। देश की सबसे भरोसेमंद जांच एजेंसी पर भी आखिर दाग लग गया। उसका इंस्पेक्टर दो लाख रुपए लेते ट्रेप हो गया। सुशील पाठक हत्याकांड की जांच के सिलसिले में सीबीआई टीम पिछले आठ महीने से बिलासपुर में कैंप कर रही है। ऐसे में लोग चुटकी ले रहे हैं, बिलासपुर पुलिस की खराब ग्रह दशा अब सीबीआई की ओर शिफ्थ हो गई है। आखिर, सुशील के मर्डर के बाद ही बिलासपुर पुलिस के दिन खराब होने शुरू हुए थे। और जयंत थोरात से जो विकेट गिरना चालू हुआ.....राहुल शर्मा ने गोली मार ली और आईजी बीएस मारावी हार्ट अटैक से चल बसे। जीपी सिंह के साथ इतना बुरा हुआ कि वे सपने में भी नहीं सोचे होंगे। अब, अशोक जूनेजा के आईजी बनकर आने के बाद स्थिति कुछ संभली है। मगर बुरे ग्रह किसी-न-किसी को चपेट में तो लेेंगे ही। सो, अब सीबीआई की बारी है।

खतरा

कर्मचारियों और अधिकारियों के ट्रांसफर के बाद मंत्रियों द्वारा उसे निरस्त करने की थोक में भेजी जा रही सिफारिशें, सचिवों के लिए मुसीबत का सबब बन गई है। नोटशीट आगे ना बढ़ाएं तो मंत्री खफा और मूव कर दिए तो चीफ सिकरेट्री की नाराजगी का खतरा। पता चला है, चीफ सिकरेट्री ने दो टूक कह दिया है, ट्रांसफर कैंसिल कराने की कोशिश करने वाले अफसरों के सीआर में वे लिख देंगे। असल में, इस बार अति हो गई है। शायद ही कोई विभाग होगा, जहां से डेढ़-दो सौ ट्रांसफर निरस्त करने के लिए नोटशीट न गई हों। 12 सौ से अधिक तबादले निरस्त करने के प्रस्ताव हैं। याने दोतरफा कमाई। पहले टंांसफर के लिए और बाद में उसे रोकने के लिए। यही वजह है, आईएएस अफसरों में बड़ा गुस्सा है, माल खाए मंत्री और मंत्री के लोग और रिकार्ड खराब हो हमारा। यही हाल रहा तो मंत्रियों और उनके पीए को अबकी पैसा वापिस करना पड़ जाएगा

सबसे तेज?

राज्य के सबसे तेज और ताकतवर मंत्री कहे जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के पीडब्लूडी का ये हाल हो जाएगा, खुद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा। सड़क को कौन पूछे, पुल बह जा रहा है। पांच महीने में चीफ इंजीनियर, सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर समेत 10 आला अधिकारी सस्पेंड हो चुके हैं। मार्च में देवभोग का पुल बहा था तो चीफ इंजीनियर समेत छह पर गाज गिरी थी और इस महीने मनेंद्र्रगढ़ में पुल बहा तो चार गए। सीबीआई की तफ्तीश में ईएनसी पीके जनवदे का विकेट गिर ही चुका है। स्थिति यह हो गई है, अफसरों की कमी के चलते अब देवभोग मामले में सस्पेंड छह अधिकारियों को बहाल करने पर विचार किया जा रहा है। अब रेट से दोगुना-तीगुना लेकर इंजीनियरों को पोस्टिंग मिलेगी, तो उनसे अंग्रेजों के जमाने जैसा पुल की उम्मीद कैसे की जाएगी। घर से तो वे पैसा लगाएंगे नहीं।

चतुर विधायक

कुलदीप जूनेजा बोले तो रायपुर उत्तर के विधायक। यही नहीं, स्कूटर पर चलने वाले संभवतः पहले एमएलए। स्कूटर देखकर चंदा-वंदा मांगने वाले उन्हें तंग नहीं करते। गणेश और दुर्गा के लिए रसीद बुक लेकर भूले-भटके कोई पहुंच भी गया तो यही जवाब मिलेगा, अगली बार हमारी सरकार बनेगी तो जो बोलना....। विधायक चुने जाने के बाद हालांकि उन्होंने चमचमाती सफारी खरीदी थी मगर इन्हीं सबके चलते उन्होंने अ-सरदार बुद्धि लगाई और स्कूटर पर चलना शुरू कर दिया। अब वे दिन में स्कूटर पर चलते हैं और रात में कार में। एक तरह से कहें तो स्कूटर ही उनका चलता-फिरता आफिस है। डिक्की में लेटरपैड, सील, सब रहता है। अब, आफिस बनाकर चाय-पानी का खर्चा क्यों बढ़ाएं। सो, उन्हें आप नियमित रूप से सुबह-शाम शहर के चैक-चैराहों पर खड़े या स्कूटर पर टिके देख सकते हैं। कोई काम लेकर आ गया तो लेटरपैड पर लिख कर दे दिया। काम हो गया तो वाहे गुरू, नहीं हुआ तो कोई टेंशन नहीं।    

अंत में दो सवाल आपसे

1. तमाम चीजों को मैनेज करने के बाद भी किस एक प्वाइंट पर ओवरकांफिडेंस की वजह से आईएएस अफसर बाबूलाल अग्रवाल प्रींसिपल सिकरेट्री बनने से चूक गए?
2. किस अफसर की वजह से सरकार और राज्य के पुलिस अधीक्षकों के बीच कम्यूनिकेशंस गैप बढ़ता जा रहा है?

शनिवार, 18 अगस्त 2012

तरकश, 19 अगस्त

छत्तीसगढ़ के कांडा

अगले साल चुनाव को देखते राजनीतिक पार्टियां कांडा ब्रांड के नेताओं पर खास नजर रख रही हैं। उन्हें इशारा किया जा रहा है, कंट्रोल करेंेें। वैसे भी, राज्य में कांडा ब्रांड नेताओं की कमी नहीं है। आधा दर्जन से कम मंत्री नहीं होंगे। दो-तीन मंत्रियों का तो हर किसी को पता है। एक महिला आर्किटेक्ट पर एक मंत्रीजी की उदारता छिपी नहीं है। एक ईमानदार कहे जाने वाले मंत्रीजी रात दो-तीन बजे से पहले शायद ही कभी घर लौटते होंगे। कम-से-कम दो ऐसे मंत्री हैं, जिनके दिल्ली के लिए उड़ान भरने के ठीक बाद वाली फ्लाइट से उनकी गीतिकाएं दिल्ली पहुंच जाती हैं। इतना ही नहीं, राजधानी में एक ऐसी संस्था है, जहां राजनेता की ताजपोशी होते ही वहां का सिकरेट्री साब को लेकर विदेश निकल लेता है। और वहां से आने के बाद नेताजी की स्थिति किंकर्तव्यविमूढ़ सरीखी हो जाती है। एक मंत्रीजी के पीए का एकमात्र काम है......मंत्रीजी जब छत्तीसगढ़ में रहते हैं, पीए के पास कोई काम नहीं होता, मगर जैसे ही वे राज्य की सीमा से बाहर जाते हैं, पीए अपने मोड में आ जाता है। बहती गंगा में हाथ धोने में पीए भी पीछे नहीं हैं। इसी चक्कर में एक हाईप्रोफाइल पीए की बड़े साब ने छुट्टी कर दी। वैसे, सरकार की सख्ती के बाद आईएएस अफसरों का दिल्ली विजिट कुछ कम हुआ है। वरना, कांडा ब्रांड वाले आईएएस, आईपीएस हर हफ्ते दिल्ली निकल लेते थे।

सावधान

गर्दन दबा कर नोट लेने वाले भ्रष्ट अफसरों को अब सचेत हो जाना चाहिए। क्योंकि, अब ट्रेप कराने पर पैसा फंसने का डर नहीं रहेगा। बल्कि, जब तक मामले का निबटारा नहीं हो जाता, उस पर बैंक की तरह ब्याज मिलेगा। ऐसे में जाहिर है, एंटी करप्शन ब्यूरो में अब शिकायतें बढें़गी। खासकर बड़ी मछलियों के खिलाफ। अभी रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े जाने पर प्रार्थी का पैसा फंस जाता है.....10-15 साल के पहले शायद ही कोई केस निबट पाता है। यही वजह है, 10-15 हजार रुपए तक का ट्रेप लोग करा देते थे, इससे ज्यादा का नहीं। मगर अब ऐसा नहीं होगा। ईओडब्लू के एडीजी डीएम अवस्थी ने सरकार को इसके लिए प्रस्ताव भेजा था, ताकि रिश्वतखोर अफसरों की अधिक-से-अधिक लोग शिकायत कर सकें। वित्त महकमे ने गुरूवार को इसे हरी झंडी दे दी है।

गड्ढे रहेंगे या मंडल

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राज्य की जर्जर सड़कें सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा। एक सर्वे में पता चला है, लोग इसको लेकर खासे नाराज हैं और पोलिंग में इसका असर दिख सकता है। सो, सरकार अब सड़क पर फोकस करने जा रही है। पीडब्लूडी के प्रींसिपल सिकरेट्री आरपी मंडल ने शुक्रवार को अफसरों से दो टूक कह दिया है, 30 नवंबर के बाद या तो सड़क पर गड्ढे रहेंगे या फिर विभाग में मैं। टे्रडिशनल अंदाज में उन्होेने इंजीनियरों की खूब ऐसी-तैसी की। अब यह देखना दिलचस्प होगा, पीडब्लूडी में मंडल रहते हैं सड़कों पर गड्ढ़े।

उल्टा-पुल्टा

हर साल की तरह अबकी 15 अगस्त को रायपुर के पुलिस परेड मैदान में कुछ पुलिस अफसरों को विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित किया गया। इनमें से कुछ पुरस्कारों पर सवाल उठ रहे हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि किस मापदंड के तहत इसके लिए अफसरों का चुना गया। गीदम थाने पर नक्सली हमले के बाद सजा के तौर पर दंतेवाड़ा के एसपी अंकित गर्ग को हटाया गया था। इसके सात महीने बाद बेहतर काम के लिए उन्हें पुलिस पदक मिल गया। इसी तरह सरगुजा के आईजी भारत सिंह के बारे में राजधानी में कौतूकता है। दिमाग पर जोर डाल लोग याद कर रहे हैं, भारत सिंह ने ऐसा क्या कर डाला? संजय पिल्ले और विवेकानंद जैसे कुछ अफसरों को छोड़ दें, तो बाकी का यही हाल है।

अच्छी खबर

पंजाब के फिरोजपुर जिले को हेल्थ के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए प्रतिष्ठित जेआरडी टाटा अवार्ड मिला है। फिरोजपुर की चर्चा इसलिए लाजिमी है कि वहां के जिस कलेक्टर के कारण फिरोजपुर को यह उपलब्धि हासिल हुई है, वे छत्तीसगढ़ के लिए अनजान नहीं हैं। डा0 एसके राजू चार साल पहले तक छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस थे। यही टे्रनिंग की, बलौदा बाजार में एसडीएम रहे, फिर सरगुजा, कांकेर और रायगढ़ के कलेक्टर। आईएएस पत्नी को पंजाब कैडर आबंटित हो जाने के चलते राजू कैडर चेंज कराकर पंजाब चले गए। राज्य के लिए यह अच्छी बात है कि यहां टे्रेनिंग पाए अफसर दूसरे जगहों पर बढि़यां काम कर रहे हैं। पंजाब जैसे उन्नत राज्य में राजू जब से गए हैं, वहां कलेक्टर हैं और फिरोजपुर उनका तीसरा जिला है।

इगनोर दिस मैसेज

स्वंतत्रता दिवस पर बधाइयां देने के लिए अबकी एसएमएस खूब चलें। इनमें से कुछ तो बेहद दिलचस्प थे और लोगों ने इसे खूब फारवर्ड किया। जरा देखिए, हैप्पी इंडिपेंडेंस डे.......काइंडली इगनोर दिस मैसेज, इफ यू आर मैरिड.......। दूसरा, ऐसा देश जहां, कार लोन 7 फीसदी ब्याज पर और एजुकेशन लोन 12 फीसदी पर, जहां चावल 40 रुपए और मोबाइल के सिम फ्री में मिलते हैं। असम हिंसा पर एक एसएमएस था, लहू में डूब रही है, फिजां-ए-अर्ज-ए-वतन, मैं किस जुबां से कहूं, जश्ने-आजादी-मुबारक।

अंत में दो सवाल आपसे

1. गृह विभाग ने भारत सरकार से एक और डीजी के पद की स्वीकृति किनके लिए मांगी है?
2. राज्य के एक ऐसे एसपी का नाम बताइये, जो शहर से आठ किलोमीटर सूनसान इलाके में अपना निवास बनाया है?

रविवार, 12 अगस्त 2012

तरकश Aug 12


परेशां 


प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार पटेल ने बड़े उत्साह के साथ काम शुरू किया था। कुछ हद तक पार्टी को पटरी पर लाने में कामयाब भी हुए थे। मगर अब सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चिंता की एक बड़ी वजह अजीत जोगी और चरणदास महंत के बीच प्रगाढ़ होते रिश्ते भी हैं। याद होगा, पटेल के खरसिया में कांग्रेस का कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ था, उसे महंत के कटटर समर्थक विष्णु तिवारी ने आयोजित किया था और अजीत जोगी मुख्य अतिथि थे। तिवारी वहीं हैं, जिन्होंने पटेल के खिलाफ पिछली बार एनसीपी से चुनाव लड़ा था। हाल में, कांग्रेस में जो लेटर बम फूटा, उसके पीछे पटेल को डिस्टर्ब करने की ही रणनीति थी। ऐसे में नंदू भैया सत्ताधारी पार्टी से लोहा लें या अपनों से? रविंद्र चौबे और सत्यनारायण शर्मा के साथ भी अब संबंधों में पहले जैसी गरमी नहीं रही। दरअसल, कांग्रेस में कोर्इ भी नेता नहीं चाहता कि पटेल की लकीर और लंबी हो। सो, उन्हें अकेला करने की कोर्इ कोर कसर नहीं रखी जा रही।

पर उपदेश

दिन फिरने के बाद प्रींसिपल सिकरेट्री, फायनेंस डीएस मिश्रा ने जिस तरह से तेवर दिखाने शुरू किए हैं, वह अफसरों को नागवार गुजर रहा है। वित्तीय कसावट के लिए उन्होंने हाल ही में कर्इ बंदिशें लगार्इ हैं। इनमें विदेश प्रवास भी शामिल हैं। अलबत्ता, मर्इ-जून में दर्जन भर से अधिक आर्इएएस के विदेश घूम कर लौट आने के बाद पाबंदी का औचित्य किसी को समझ में नहीं आ रहा। सूपा बोले चलनी से......का हवाला देकर लोग खूब चटखारे ले रहे हैं। दरअसल, मंत्रालय में सबसे महंगी गाड़ी उन्हीं के पास रही है और सबसे आलीशान चेम्बर भी। फायनेंस के फस्र्ट इनिंग में सबसे ज्यादा विदेश जाने वाले वे ही रहे हैं। विदेश जाने के लिए परमिशन के लिए जब भी उनके पास फाइल जाती थी, उनका नाम भी प्रतिनिधिमंडल में जुड़ जाता था। औरों के ंलिए नियम-कायदा और स्पेशल केस में अपने लिए खूब लग्जरी सुविधाएं जुटार्इ। उनके पीए तक मौज कर रहे हैं। बड़े अफसरों को एसी अलाउ नहीं है, उनके पीए सालों से एसी की ठंडक पा रहे हैं। और सुनिये, रमन की पहली पारी में मिश्रा जैसे ही प्रींसिपल सिकरेट्री, वित्त प्रमोट हुए थे, नियम बदलकर प्रींसिपल सिकरेट्री को भी हवार्इ जहाज के एक्जीक्यूटिव क्लास में सफर करने का आदेश निकाल दिया। ऐसे में सूपा और चलनी वाली बात गलत नहीं प्रतीत नहीं होती।

परिपाटी-1

भले ही यह संयोग हो, मगर 2007 से तो यह हर बार हो रहा है......सूबे में सीनियरिटी के बजाए हर बार दूसरे या तीसरे क्रम के आर्इएएस, चीफ सिकरेट्री बनाए जा रहे हैं। 2006 में सीनियरिटी के तहत सीएस बनने वाले रामप्रकाश बगार्इ लास्ट आर्इएएस थे। ऐसे में, सुनील कुमार के बाद वरिष्ठतता में तीसरे नम्बर के आर्इएएस डीएस मिश्रा अगर एकिटव हो गए हैं, तो इसमें गलत क्या है......परिपाटी अगर जारी रही, तो अवसर आखिर उन्हें ही मिलेगा। भले ही एसीएस विवेक ढांड उनसे सीनियर हों। हालांकि, अभी इसमें टार्इम है। सुनील कुमार फरवरी 2014 में रिटायर होंगे। मगर सत्ता और ब्यूरोक्रेसी में दूरगामी समीकरणों को ध्यान में रखकर बिसात पर गोटियां बिछार्इ जाती है। और घटनाएं कुछ हो भी ऐसी ही रही हैं। ढांड के साथ ही उनके जूनियर मिश्रा को एसीएस बनाने की कवायद के बाद लोगों के कान खड़े हो गए हैं। फिर यह भी, मिश्राजी फायनेंस संंभालते ही नए-नए फरमान जारी करने शुरू कर दिए हैं। पुरानी छबि को बदलने के लिए, कुछ दिखाना तो पड़ेगा ना।

परिपाटी-2

छत्तीसगढ़ बनने के बाद सूबे की राजनीति में भी कुछ इसी तरह का संयोग चल रहा है.....नेता प्रतिपक्ष के चुनाव हारने का। वो चाहे कांग्रेस का हो या भाजपा का, अगले चुनाव में उसकी हार हुर्इ है। पहली बार नंदकुमार साय हारे तो इसके बाद महेद्र कर्मा जैसे धाकड़ नेता दंतेवाड़ा में एक अल्पज्ञात युवा नेता से शिकस्त खा गए। सो, कांग्रेस में ही चौबे विरोधियों की बांछे खिली हुर्इ है तो इसी उम्मीद में साल भर पहले से लाभचंद बाफना ने साजा में तैयारी शुरू कर दी है। चौबे ने पिछले इलेक्शन में बाफना को हराया था। कहना तो यह भी है, साजा में चौबे विरोधियों को कांग्रेस के एक दिग्गज नेता से रसद-पानी मिल रहा है। राहुल गांधी जब रायपुर आए थे, उसी गुट के इशारे पर चौबे की शिकायत हुर्इ थी। इसलिए, चौबे को जरा सतर्क रहने की जरूरत है। आजादी के बाद से साजा सीट चौबे परिवार के पास रहा है। पहले उनके पिता, फिर मां और अब वे।

पोसिटंग

राजभवन के सिकरेट्री जवाहर श्रीवास्तव के 31 अगस्त को रिटायर होने की वजह से इस महीने के अंत में मंत्रालय में एक छोटा फेरबदल हो सकता है। श्रीवास्तव की जगह मंत्रालय से सिकरेट्री या पीएस रैंक के किसी आर्इएएस को राजभवन पोस्ट करना होगा। इसके लिए दो-तीन अफसरों के नाम चल रहे हैं। इनमें संस्कृति सचिव केडीपी राव प्रमुख है। राव पदोन्नत होकर प्रींसिपल सिकरेट्री हो गए हैं। मगर उनके पास खास काम नहीं है। डिपार्टमेंट भी सिर्फ संस्कृति और पर्यटन हैं। इसे पूछल्ला विभाग ही समझा जाता है। उस पर भी, बृजमोहन अग्रवाल जैसे मंत्री। इसलिए, राजभवन के साथ, उन्हें संस्कृति और पर्यटन का अतिरिक्त प्रभार मिल सकता है।

सुखी विधायक

चंदा के इस मौसम में राज्य का सबसे सुखी कोर्इ विधायक होगा, तो वे रायपुर उत्तर के कुलदीप जूनेजा होंगे। कृष्ण जन्माष्टमी से लेकर गणेशोत्सव के लिए चंदा मांगने वालों से राज्य के विधायक दो-चार हो रहे हैं। लेकिन स्कूटर में चलने वाले जूनेजा से चंदा मांगकर कोर्इ अपना मुंह क्यों खराब करें। भूले-भटके कोर्इ चला भी आया तो यही जवाब मिलेगा, अगली बार सरकार बनेगी तो जो बोलना....। विधायक चुने जाने के बाद हालांकि उन्होंने चमचमाती सफारी खरीदी थी मगर चंदा मांगने वालों की भीड़ को देखकर उन्होंने अपनी असरदार बुद्धि लगार्इ और स्कूटर पर चलना शुरू कर दिया। अब वे दिन में स्कूटर पर चलते हैं और रात में कार में। स्कूटर ही उनका चलता-फिरता आफिस है। डिक्की में ही रखते हैं, लेटरपैड, सील। घर में आफिस बनाकर चाय-पानी का खर्चा क्यों बढ़ाएं। सो, सुबह-शाम, चौक-चौराहे पर खडे़ हो जाते हैं। कोर्इ काम लेकर आ गया तो वहीं पर लिख कर दे दिया। काम हो गया तो ठीक, नहीं हुआ तो कोर्इ टेंशन नहीं।  

अंत में दो सवाल आपसे

1. कांग्रेस के एक तेज विधायक का नाम बताइये, जो एक सीमेंट कारखाना खरीदने जा रहे हैं?
2. रायपुर के सांसद रमेश बैस ने जनर्दशन चालू किया है, जनता के लिए या अपनी रेटिंग बढ़ाने के लिए?

रविवार, 5 अगस्त 2012

Tarkash 5 Aug


किंग खान

एसआई से पदोन्नत होते-होते एडिशनल एसपी तक पहुंचे आईएच खान का जलवा देखकर दीग्गज आईपीएस भी हतप्रभ है। खान 31 मई को रिटायर हुए थे और नियम-कायदों को ताक पर रख उन्हें संविदा में एडिशनल एसपी बनाने के लिए जिस तरह की हाईप्रोफाइल कोशिशें चल रही हैं, वह किसी आईपीएस के लिए भी संभव नहीं है। जबकि, खान के खिलाफ ईओडब्लू में आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज है, साथ ही सीआईडी में भी। संविदा के लिए अनिवार्य शर्त है, एसीआर बेदाग होनी चाहिए। मगर तुलसीदासजी बहुत पहले कह गए हैं, समरथ को नहीं दोष गोसाईं। हैरत की बात यह, खान के खिलाफ जांच का हवाला देते हुए आईजी प्रशासन पवनदेव ने 18 जुलाई को डीजीपी को नोटशीट भेजी थी, वही पवनदेव हफ्ते भर बाद, फिर लिखते हैं......विभाग ने जांच कर ली है, खान के खिलाफ कोई गड़बड़ी नहीं है। आमतौर पर किसी से हेठा नहीं खाने वाले पवनदेव अगर झुक गए तो समझा जा सकता है, कितना प्रेशर रहा होगा। खबर है, पीएचक्यू के प्रस्ताव को पीएस होम एनके असवाल ने अनुमोदन करके फाइल हाथो-हाथ उपर भेज दिया है। और संभव है, दो-एक दिन में खान की ताजपोशी का आदेश निकल जाए। और अब इधर देखिए......ठाकुरों की सरकार होने के बाद भी राजेश्वर सिंह ठाकुर, खान जैसे किस्मती नहीं रहे। सरगुजा रेंज एआईजी से रिटायर हुए सिंह के लिए रामविचार नेताम समेत संगठन के कई नेताओं ने जान लगा दिया। लेकिन सिंह इज किंग, नहीं हो पाया, भाजपा की सरकार में खान इज किंग हो गया।

स्टेट गेस्ट?

छत्तीसगढ़ सरकार अगर स्टेट गेस्ट का दर्जा देकर विशेषज्ञों की सेवाएं लेने का आफर करें, तो सहमति देने से पहले विद्वानों को ठीक से विचार कर लेना चाहिए। हो सकता है, चपरासी से भी बदतर व्यवहार आपके साथ होने लगे। राज्य के पुरातत्व सलाहकार अरुण शर्मा से ज्यादा इस बारे में कौन बता सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के रिटायर अफसर शर्मा को 2005 में संस्कृति और पुरातत्व विभाग ने 50 हजार मासिक वेतन और गाड़ी की सुविधाएं देने का आफर दिया था। शर्माजी छत्तीसगढि़यां ठहरे, इसलिए पैसे की भूख नहीं थी। सो, कह दिया मुझे पंेशन काफी है, बस, एक गाड़ी देई दो, काम चल जाएगा। तब संस्कृति विभाग ने उन्हें स्टेट गेस्ट का दर्जा दे दिया। बकायदा इसके लिए आदेश निकाला गया। लेकिन, वहीं संस्कृति विभाग अब अपने 80 वर्षीय राज्य अतिथि को नचाना शुरू कर दिया है। पिछले छह महीने में एक पैसा नहीं मिला है। खुदाई कार्य के लिए और ही गाड़ी और वहां तैनात चैकीदारों के लिए। आलम यह है, शर्मा को अपनी पेंशन से गाड़ी का किराया चूकता करना पड़ रहा है। पिछले छह महीने से वे पुरातत्व अफसरों के सामने पैसे के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं मगर कोई सुनने को तैयार नहीं है। लिहाजा, उन्होंने खुदाई बंद कर सिरपुर से लौटने का अल्टीमेटम दे दिया है.....भगवान बचाए, स्टेट गेस्ट बनाने वाले ऐसे लोगों से। वैसे, गलती शर्माजी की है। संस्कृति और पुरातत्व विभाग में काम करने के लिए पहली अनिवार्य शर्त है, हेवी प्रपोजल बनाओ, काम कागजों में करों.....खूब खाओ और खूब खिलाओं। शर्माजी ठहरे पुराने जमाने के आदमी। कोई फायदा नहीं तो उन्हें अब क्यों ढोया जाए। भाड़ में जाए खुदाई। पुराना पत्थर से क्या मिलेगा। अपना राजिम कुंभ और सिरपुर महोत्सव जिंदाबाद।  

बुरे दिन

एक समय था, जब दर्जन भर से अधिक बोर्ड और कारपोरेशन में आईएफएस अफसरों का कब्जा था। मगर लगता है, अब उनके दिन पूरे हो गए हैं। पिछले हफ्ते, नगरीय विकास आयुक्त संजय शुक्ला को घर का रास्ता दिखाया गया। इसके बाद, तीन और आईएफएस अब-तब की स्थिति में हैं। माईनिंग कारपोरेशन के एमडी राजेश गोवर्धन, हार्टिकल्चर मिशन के आलोक कटियार और पौल्यूशन बोर्ड के नरसिंह राव। किसी भी टाईम इनका विकेट गिर सकता है। सरकार की अब कोशिश है, निगम, बोर्ड में आईएएस बिठाए जाएं या फिर विभागीय अधिकारियों को कमान सौंपी जाए। देखा होगा आपने, संजय शुक्ला को हटाने के बाद नो रिस्क के तहत रोहित यादव को रायपुर कलेक्टर से रिलीव कराके तत्काल वहां ज्वाईन कराया गया, ताकि किसी आईएफएस की सिफारिश जाए। जबकि, रायपुर के नए कलेक्टर सिद्धार्थ परदेशी डेढ़ महीने की टे्रनिंग में प्रदेश से बाहर हैं। इसी तरह मंडी बोर्ड से एमडी सुब्रमण्यिम की छुट्टी हो गई और वहां अब विभागीय अफसर को पोस्ट किया गया है। पता चला है, डेपुटेशन पर बचेंगे तो सिर्फ एनआरडीए के सीईओ श्याम सुंदर बजाज, सीएसआईडीसी के एमडी देवेंद्र सिंह और एससीईआरटी के डायरेक्टर अनिल राय। वो भी इसलिए, कि छबि अच्छी है, काम आता है और सरकार के भरोसेमंद भी हैं।

ढांड टीम

रमन सिंह की पहली पारी में विवेक ढांड का जलजला रहा। पांच साल तक सिकरेट्री टू सीएम रहे, साथ ही उर्जा और सिंचाई जैसे विभाग भी.....मगर दूसरी पारी में सब कुछ अच्छा नहीं रहा और वह बदस्तूर जारी है। अब तो, कुछ ज्यादा ही.....मंत्रालय के गलियारों में चर्चा ऐसे ही सरगर्म नहीं है, ढांड टीम के लोगों को एक-एक कर खिसकाया जा रहा है। पहले, सबसे करीबी अधिकारी संजय शुक्ला की छुट्टी की गई। और अब अनिल टूटेजा को ननि का आयुक्त बनाकर भिलाई भेजा गया है। आईएएस अवार्ड होने का इंतजार कर रहे टूटेजा ने सोचा भी नहीं होगा, इतना सीनियर और अनुभवी होने के बाद भिलाई में पोस्टिंग मिलेगी। वहां भाजपा-कांग्रेस नेताओं की गुटीय लड़ाई के अलावा काम कुछ खास नहीं है। संजय अग्रवाल टं्रांसफर कराके ऐसे ही रायपुर नहीं आए हैं। 

कभी खुशी, कभी....

मीडिया की वजह से एडीजी रामनिवास के लिए विचित्र स्थिति निर्मित हो गई.....खबर थी, भारत सरकार ने डीजीपी की एक अतिरिक्त पोस्ट की स्वीकृति दे दी है....हफ्ते भर में रामनिवास डीजी बन जाएंगे। इसके बाद तो बधाइयों और बुके का तांता लग गया। मगर लोगों ने जब आदेश देखा तो माजरा दूसरा निकला। दरअसल, वह अतिरिक्त डीजी की स्वीकृति नहीं, बल्कि, डीजीपी अनिल नवानी के 30 नवंबर को रिटायर होने के बाद 1 दिसंबर से रामनिवास को डीजी बनाने की भारत सरकार ने औपचारिक अनुमति दी है। विशुद्ध तौर पर यह पदोन्नति की प्रक्रिया है। इसे लोग समझ नहीं पाए। रामनिवास तो वैसे भी दिसंबर में ही डीजी बनने वाले हैं। नवानी के रिटायर होने के बाद डीजीपी बनने के लिए उनका संतकुमार पासवान से कांटे का टक्कर है, जो उनसे केवल चार साल सीनियर हैं, बल्कि पिछले तीन साल से डीजी हैं। सो, रामनिवास समय से पहले अगर डीजी बन जाते तो उनकी स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी।

याद आए....

नए रायपुर को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले रिटायर सीएस पी जाय उम्मेन को सोमवार को सीएम ने याद किया, तो मौजूद लोग एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। मौका था, नए रायपुर में पौधारोपण का। लोगों में धारणा थी, उम्मेन को हटाने के बाद उन्होंने जिस तरह वीआरएस लिया, उससे कड़वाहट बढ़ी होगी मगर डाक्टर साब ने चैंका दिया। उन्होंने कहा, नई राजधानी को शेप देने में उम्मेन की प्रयासों को भूलाया नहीं जा सकता। वे यही नहीं रुके। आवास पर्यावरण सचिव एन बैजंेद्र कुमार और एनआरडीए के सीईओ श्याम संुदर बजाज की भी उन्होंने जमकर तारीफ की। इशारा साफ था, नया रायपुर बनाने में जिन लोगों ने पसीना बहाया है, क्रेडिट उन्हें ही मिलेगी। और यह मैसेज यह भी, दूसरे लोग के्रडिट लेने की कोशिश ना करें। 

अंत में दो सवाल आपसे

1 जमीनों की अफरातफरी के मामले में मुख्यमंत्री के निर्देश पर किस पुलिस महानिरीक्षक को गृह मंत्री ननकीराम कंवर से मिलकर सफाई देनी पड़ी है?
2. शहरी इलाके में भाजपा का जनाधार लगातार खिसकने के बाद भी राज्य सरकार ने नगरीय प्रशासन विभाग को अजय सिंह और रोहित यादव जैसे आईएएस अफसर के हवाले कैसे कर दिया?