रविवार, 27 मार्च 2022

सिस्टम पर सवाल?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 27 मार्च 2022

सुकमा में एक अप्रिय घटना हुई...कलेक्टर हटाओ नारे लगाते हुए लोग कलेक्ट्रेट में घुस आए। वैसे, इसे सिर्फ घुसना नहीं कहेंगे...दौडते हुए लोगों ने इस मुद्रा में धावा बोला जैसे किसी पर हमला करने जा रहे हों...उस रोज जिसने भी इसका वीडियो देखा सकते में था। सुकमा जैसे संवेदनशील जिले के कलेक्ट्रेट में प्रदर्शनकारी प्रवेश कर गए और पुलिस ताकती रह गई। यह घटना इसलिए गंभीर नहीं है कि नक्सली इलाके में हुई, गंभीर इस दृष्टि से भी है कि छत्तीसगढ़ में कलेक्टर हटाओ जैसे किसी आंदोलन के दृष्टांत नहीं मिलते। राज्य बनने से पहिले रायगढ़ से हर्षमंदर और शैलेंद सिंह को हटाने के खिलाफ लोगों ने आंदोलन जरूर किया था। यह पहला मौका है कि कलेक्टर के विरोध में लोग बेरिकेट्स को धक्का देकर भीतर घुस आए। आई। इस घटना के लिए कौन जिम्मेदार है, मंत्री, कलेक्टर, एसपी या किसी दीगर पार्टी के नेता, सिस्टम को इसे संज्ञान लेना चाहिए। क्योंकि, कलेक्ट्रेट में अगर कोई बड़ी घटना हो जाती तो आखिर नाम छत्तीसगढ़ का खराब होता।

ऐसे भी कलेक्टर

पांच-छह साल पुरानी बात होगी...कहीं से लौटते समय जांजगीर में पोस्टेड एक छत्तीसगढ़िया कलेक्टर से मिलने कलेक्ट्रेट गया। वहां मुलाकातियों की करीब 50 मीटर लंबी लाईन लगी थी। अप्रैल के महीने में कलेक्टर के चेम्बर का एसी बंद, खिड़कियां खुली हुईं। कलेक्टर एक-एक आवेदन को बारीकी से नजर डालते, फिर काम क्यों नहीं हुआ, संबंधित को फोन पर निर्देश...कभी झिड़की, तो कभी जमकर फटकार। कहने का आशय यह है कि आम आदमी की समस्याओं को लेकर कलेक्टर अगर थोड़ा सा भी संजीदा हो जाए तो चीजें काफी कुछ ठीक हो सकती हैं।

डीसी की पोस्टिंग

प्रोबेशन पूरा होने के बाद सरकार ने 19 डिप्टी कलेक्टरों को जनपद सीईओ अपाइंट किया है। कांग्रेस सरकार में पहली बार एकमुश्त इतनी बड़ी संख्या में डिप्टी कलेक्टरों को जनपद सीईओ बनाया गया है। प्रशासनिक दृष्टि से देखें तो सरकार का ये अच्छा कदम है। डिप्टी कलेक्टरों को कायदे से जनपद से ट्रेनिंग मिलनी चाहिए। ये अलग बात है कि डिप्टी कलेक्टरों को जनपद पंचायतों में काम करना रास नहीं आता। ऐसा नहीं कि वहां पैसा नहीं है...पैसे भी हैं और दबाकर कमाते भी हैं। मगर रुतबा नहीं रहता। डिप्टी कलेक्टरों को ये काफी अखरता है।

बड़ा कैडर

एमके राउत जब एसीएस पंचायत थे, तब उन्होंने जनपद पंचायतों में डिप्टी कलेक्टरों को पोस्ट कराने के लिए फायनेंस को प्रस्ताव भेजा था। तब विवेक ढांड चीफ सिकेरट्री थे। ढांड भी इससे सहमत थे कि जनपद पंचायतों में डिप्टी कलेक्टरों को बिठाना चाहिए। उनके निर्देश पर वित विभाग ने 42 अतिरिक्त पदों की स्वीकृति दी थी। हालांकि, इसको लेकर डिप्टी कलेक्टर्स राउत से काफी खफा हुए थे। राउत ने डिप्टी कलेक्टरों से जनपद पंचायतों में काफी काम कराया। लेकिन, बाद में डिप्टी कलेक्टर जोर-जुगाड़ भिड़ाकर जनपदों से निकल लिए। बहरहाल, पोस्ट बढ़ने से डिप्टी कलेक्टरों का कैडर बढ़ता चला गया...इस समय करीब साढ़े तीन सौ डिप्टी कलेक्टर हो गए हैं। यही वजह है कि अब अधिकांश विभागों में डिप्टी कलेक्टर बिठाए जा रहे हैं।

पहला कलेक्टर

तरकश में पिछले दिनों एक सवाल पूछा गया था, छत्तीसगढ़ में किस कलेक्टर के नाम सबसे ज्यादा समय तक कलेक्टरी करने का रिकार्ड दर्ज है। इस सवाल पर कई जवाब आए, मगर सत्य के करीब नहीं कोई नहीं था। कुछ लोगों ने अजीत जोगी का नाम भेजा। जोगी मध्यप्रदेश के समय 11 साल कलेक्टरी की, उनका रिकार्ड आज भी कायम है। बात छत्तीसगढ़ की, तो सूबे में सबसे लंबी कलेक्टरी ठाकुर राम सिंह ने की है। पूरे नौ साल। 2008 से लेकर 2017 तक। उन्होंने बिना ब्रेक चार जिले किए हैं और चारों बड़े। रायगढ़, दुर्ग, बिलासपुर और फिर रायपुर। हालांकि, बिना ब्रेक चार जिले करने वालों में सिद्धार्थ परदेशी और दयानंद भी हैं। लेकिन, उनके टाईम राम सिंह से कम है। उनके नाम एक रिकार्ड और है। दो-दो विधानसभा, लोकसभा और नगरीय निकाय चुनाव कराने का। छत्तीसगढ़ में कई ऐसे कलेक्टर होंगे, जिन्हें एक भी चुनाव कराने का अवसर नहीं मिला। मगर राम सिंह ने 2008 और 2013 का विधानसभा तथा 2009 और 2014 का लोकसभा इलेक्शन कराया। 2013 में तखतपुर से उनका करीबी रिश्तेदार चुनाव मैदान में था, इसके बाद भी उनकी कुर्सी सलामत रही। राम सिंह की पोस्टिंग प्रोफाइल से आरआर याने डायरेक्ट आईएएस को ईर्ष्या होती होगी...रिटायरमेंट के साथ ही, राम सिंह को निर्वाचन की संवैधानिक कुर्सी मिल गई, जिस पर दीगर राज्यों में सीएस लेवल के अफसरों को बिठाया जाता है।

बदलेगा निजाम?

सत्ता के गलियारों से आ रही खबरों को मानें तो वन विभाग का निजाम बदल सकता है। सब कुछ ठीक रहा तो आईएफएस संजय शुक्ला जल्द ही वन महकमे की कमान संभाल सकते हैं। पीसीसीएफ राकेश चर्तुवेदी के स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की खबर है। वैसे, उनका रिटायरमेंट सितंबर में है। राकेश 2019 में पीसीसीएफ बने थे। सीएस, डीजीपी और पीसीसीएफ जैसे शीर्ष पदों के लिए तीन साल का समय कम नहीं, बल्कि काफी माना जाता है। राकेश चतुर्वेदी के छह महीने पहले वीआरएस लेने के बाद भी संजय शुक्ला करीब डेढ़ साल ही पीसीसीएफ रह पाएंगे। अगले साल अगस्त में उनका रिटायरमेंट है। बहरहाल, बात राकेश की तो वे माटी पुत्र तो हैं ही, सरकार से उनका इक्वेशन बहुत बढ़ियां रहा। अब तक का सवसे प्रभावशाली पीसीसीएफ उन्हें कहा जा सकता है। ऐसे अफसर की विदाई भी सम्मानजनक होगी। उन्हें किसी बड़े बोर्ड का चेयरमैन बनाए जाने की खबर है।

इन्हें मिलेगा लाभ

राकेश चतुर्वेदी अगर वीआरएस लेते हैं तो इसका सीधा लाभ 88 बैच के एडिशनल पीसीसीएफ जय सिंह महस्के को मिलेगा। महस्के जून में एसएस बजाज के रिटायर होने के बाद पीसीसीएफ बनते। लेकिन, अब वे चतुर्वेदी के वीआरएस लेते ही उनका प्रमोशन हो जाएगा। महस्के का अक्टूबर में रिटारमेंट था। बजाज के बाद बनते तो जुलाई से अक्टूबर याने चार महीने पीसीसीएफ रह पाते। हालांकि, बजाज के रिटायरमेंट के बाद बाद आशीष भट्ट तीन महीने पहले पीसीसीएफ प्रमोट हो जाएंगे। वैसे, भट्ट का नम्बर राकेश चतुर्वेदी के सितंबर में रिटायर होने के बाद आता। मगर अब वे जुलाई में पीसीसीएफ प्रमोट हो जाएंगे।

रोचक चुनाव-1

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद दंतेवाड़ा, चित्रकोट और मरवाही...तीन विधानसभा उपचुनाव हुए हैं और तीनों में कांग्रेस जीती। खैरागढ़ का ये चौथा चुनाव होगा। इस चुनाव के लिए सत्ताधारी पार्टी ने यशोदा वर्मा को तो बीजेपी ने कोमल जंघेल को प्रत्याशी बनाया है। दोनों एक ही समुदाय से आते हैं। यशोदा को महिला होने का लाभ मिलेगा तो जंघेल पिछला चुनाव मात्र 850 वोटों से जोगी कांग्रेस के दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह से हारे थे। तब कांग्रेस तीसरे पोजिशन पर रही। मगर अब छत्तीसगढ़ की सियासत 360 डिग्री से घूम गया है। सूबे में कांग्रेस की सरकार है। लिहाजा, चुनाव अबकी रोचक होगा।

रोचक चुनाव-2

छत्तीसगढ़ के सबसे इंटरेस्टिंग विधानसभा उपचुनाव की बात करें, तो कोटा इलेक्शन की यादें ताजा हो जाती हैं। पं0 राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के निधन के बाद 2007 में उपचुनाव हुए थे। इस चुनाव में कांग्रेस से रेणु जोगी कंडिडेट थीं और सत्ताधारी बीजेपी से भूपेंद्र सिंह। वो चुनाव इस दृष्टि से ऐतिहासिक था कि एक तरफ अजीत जोगी की रणनीतिक कौशल दांव पर था तो दूसरी तरफ तत्कालीन सरकार की प्रतिष्ठा। बीजेपी ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी। वोटरों को मैनेज करने गली-गली में मंत्रियों की ड्यूटी लगाई गई। बावजूद इसके रेणु जोगी करीब 22 हजार मतों से चुनाव जीत गईं।

चावल योजना

सियासी प्रेक्षक आज भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि अगर कोटा चुनाव बीजेपी नहीं हारी होती, तो गरीबों के लिए सस्ता चावल योजना का आगाज नहीं हुआ होता। दरअसल, कोटा चुनाव के बाद सरकार हिल गई थी। उस समय अजीत जोगी बेहद पावरफुल थे। व्हील चेयर पर होने के बाद भी माना जाता था कि अगली सरकार जोगी की बनेगी। लिहाजा, रमन सरकार ने धूम-धड़ाके के साथ दो रुपए किलो चावल योजना को लांच किया। इस योजना का ही असर था कि बीजेपी 2008 का इलेक्षन निकालने में कामयाब हो गई।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ का वह कौन सा जिला है, जहां इतना पैसा है कि वहां पहुंचते ही अच्छे-अच्छे अधिकारियों का ईमान-धरम डोल जाता है?

2. बजट सत्र में विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत के तेवर अबकी इतने कड़े क्यों थे?



शनिवार, 12 मार्च 2022

कलेक्टरों की बढ़ी मुश्किलें

 

संजय के. दीक्षित

तरकश, 13 मार्च २०२२


विधानसभा के बजट सत्र के बाद विधानसभावार दौरे का ऐलान कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टरों के दिल की धड़कनें बढ़ा दी है। मुख्यमंत्री सिर्फ दौरे ही नहीं करेंगे बल्कि रात्रि विश्राम के साथ ही विभिन्न संगठनों के लोगों से वन-टू-वन मिलेंगे भी। अब मुख्यमंत्री आम आदमी से मिलेंगे तो समझा जा सकता है क्या होगा? दरअसल, छत्तीसगढ़ में हो ऐसा रहा है कि कई कलेक्टर जनता के प्रति दायित्वों का समुचित निर्वहन नहीं कर रहे। सरकार जो टास्क दें, उसे टाईम लिमिट में कर दो। और बड़े नेताओं का दौरा हो तो डीएफएफ के पैसे से ऐसा झांकी दिखा दो कि लोग वाह कर उठे। इसके बाद कुर्सी सुरक्षित। ऐसे कलेक्टरों का खामियाजा पिछली सरकार को भी उठाना पड़ा। बहरहाल, इस बार मुख्यमंत्री ग्रामीण इलाकों में पहुंच कर देखना चाहते हैं कि कलेक्टर किस तरह काम कर रहे हैं। ऐसे में, कलेक्टरों को परेशानी तो होगी।

विधायकों का रिपोर्ट कार्ड

मुख्यमंत्री अपने दौरे में विकास कार्यो की समीक्षा नहीं करेंगे बल्कि सुनने में आ रहा, वे आम लोगों से विधायकों के परफारमेंस की रिपोर्ट भी लेंगे। नाइट हॉल्ट में देर रात तक विभिन्न संगठनों के नुमाइंदों के साथ ही पार्टी के छोटे-छोटे से पदाधिकारियों से वन-टू-वन चर्चा भी उनके कार्यक्रमों में शामिल किया जा रहा है। मुख्यमंत्री यह भी तस्दीक करेंगे कि किस विधायक की उनके इलाके में क्या स्थिति है...अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें रिपीट किया जाए या नहीं। सीएम के दौरे से विधायकों में भी खलबली है। 

अब अप्रैल-मई तक

कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित ट्रांसफर अब बजट सत्र की बजाए मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र के दौरे के बाद होगा। मुख्यमंत्री का दौरा बजट सत्र के तुरंत बाद शुरू हो जाएगा। सीएम सबसे पहिले बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग के विधानसभा जाएंगे। इसके बाद फिर रायपुर और दुर्ग में। मुख्यमंत्री के दौरे के बाद परफारमेंस के बेस पर कलेक्टरों का लिस्ट निकाली जाएगी। सो, अप्रैल लास्ट या मई फर्स्ट वीक से पहले लिस्ट निकलनी मुश्किल प्रतीत हो रही। चलिए, चला-चली की बेला वाले कलेक्टरों को मार्च का लाभ मिल जाएगा। अब फायनेंसियल ईयर एंडिंग से पहले वे बेफिकर होकर डीएमएफ का चेक काट सकेंगे।

मार्च का खेला

सामान्य जनों में मार्च का महीना होली या फिर बच्चों की परीक्षा के संदर्भ में जाना जाता है, मगर बड़े अधिकारियों के लिए मार्च का महीना वन टू का फोर करने के लिए। ये सालों से चला आ रहा है....विभागों का बजट 31 मार्च तक खतम करने के लिए सप्लायरों को बुला-बुलाकर आर्डर दिया जाता है...आर्डर के कुछ घंटे के भीतर चेक भी। आप देखिएगा, अधिकांश विभागों की 50 फीसदी से अधिक खरीदी मार्च में होती है। क्योंकि, उसके पास राशि लेप्स हो जाती है। कागजों में खरीदी के इस खेला में अफसर भी लाल होते हैं और सप्लायर भी।

रिटायर आईएएस पोस्टिंग

पिछले तरकश में पूर्व आईएएस के पुनर्वास पर खबर थी। ये सही निकली। सरकार के सिंगल नाम के पेनल पर राजभवन ने मुहर लगा दिया। ब्रजेश चंद मिश्र छत्तीसगढ़ निजी विष्वविद्यालय निमायक आयोग के मेम्बर अपाइंट हो गए। ब्रजेश राप्रसे से आईएएस बनें और जांजगीर और दुर्ग के कलेक्टर रहे। रायपुर और दुर्ग के संभागायुक्त भी। पानीदार आईएएस अफसरों के लिए ये जानकार तकलीफ हो सकती है कि प्रमोटी ही सही, अभी तक कोई रिटायर आईएएस निजी विवि नियामक आयोग का मेम्बर बनने की बात दूर, चेयरमैन नहीं बना। इसके गठन के बाद अभी तक प्राध्यापक ही चेयरमैन रहते आए हैं। अब रिटायर आईएएस विनियामक आयोग के मेम्बर होंगे।

अफसर लौटे

पांच राज्यों में चुनाव कराकर छत्तीसगढ़ के डेढ़ दर्जन अधिकारी आज रायपुर लौट आए। सोमवार से वे ड्यूटी ज्वाइन कर लेंगे। चुनाव कराने बाहर गए अफसरों से सरकार में बड़े पदों पर बैठे अधिकारियों को उन राज्यों के बारे में अपडेट लेना चाहिए। हो सकता है, कोई अच्छी योजना वे देखकर आएं हों, उसका लाभ छत्तीसगढ़ को मिले। क्योंकि, वे डेढ़, दो महीने चप्पे चप्पे का दौरा करके लौटे हैं। वैसे, सियासी नेताओं के लिए भी इन अफसरों का अनुभव उपयोगी होगा...चार राज्यों में सरकार का रिपीट होना, पंजाब में जाना, अफसरों से बेहतर फीडबैक मिल सकता है।

आसंदी की अवमानना?

बात छोटी है...मगर बात आसंदी के सम्मान से जुड़ी हुई हो, तो वह खबर बनती है। दरअसल, विधानसभा में बजट सत्र के दौरान मीडिया के लिए दोपहर के भोजन का बंदोबस्त रहता है। मीडिया के साथ सरकार की छबि निर्मित करने वाले विभाग के चार-पांच अधिकारी-कर्मचारी भी जिस दिन सदन चलता है, भोजन कर लिया करते हैं...ये अभी से नहीं, सालों से चला आ रहा है। मगर पिछले हफते अचानक विधानसभा के स्टाफ द्वारा उन्हें खाने से रोक दिया गया। अधिकारियों को इससे आहत होना स्वाभाविक था। खबर विभाग प्रमुख से होते हुए स्पीकर चरणदास महंत तक पहुंची। स्पीकर खासे नाराज हुए...बोले मैं खुद मध्यप्रदेश में जनसंपर्क मंत्री रहा हूं और मेरे होते विस में ये बर्ताव...बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने एक सीनियर अफसर को तलब कर कहा कि आप देखिए इसे...आइंदा से ऐसा नहीं होना चाहिए। इसके बाद गुरूवार को सब ठीक-ठाक रहा। मगर अगले दिन भोजनालय के गेट पर विधानसभा के दो लोग फिर खड़े हो गए...बिल्कुल घुसने नहीं देंगे। ये आसंदी की अवमानना हुई न!

प्रमुख सचिव को एक्सटेंशन

विधानसभा के सचिव चंद्रशेखर गंगराले का 21 महीने का एक्सटेंशन 31 मार्च को समाप्त हो जाएगा। गंगराले 2020 में रिटायर हो गए थे। मगर विस में अघोषित नियम बन चुका है...सिकरेटी को रिटायरमेंट के बाद दो साल का एक्सटेंशन दिया जाएगा। गंगराले को भी इसका लाभ मिला। उन्हें छह-छह महीने का तीन बार सेवावृद्धि दी गई। मगर चौथी बार स्पीकर ने तीन महीने कर दिया। 31 को तीन महीने कंप्लीट हो जाएगा। गंगराले के बाद दिनेश शर्मा का नम्बर है। दिनेश चरणदास महंत के साथ मध्यप्रदेश के समय से जुड़े हुए हैं। केंद्र में महंतजी मंत्री बनें, तब भी वे उनके साथ रहे। मगर ठहरे छत्तीसगढ़िया। तभी स्पीकर के इतना क्लोज होने के बाद भी अपना वाजिब हक नहीं ले पाए। सो, दिनेश की चर्चा जरूर है, मगर जब तक आदेश नहीं निकल जाता, तब तक एक अप्रैल को उनके सिकरेट्री बनने पर एतबार नहीं किया जा सकता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या विधानसभा सत्र के बाद लाल बत्ती की एकाध लिस्ट और निकलेगी?

2. इस खबर में कितनी सच्चाई है कि विधानसभा सत्र के बाद ट्रांसफर पर लगी रोक हटाई जाएगी?

शनिवार, 5 मार्च 2022

आईएएस पुनर्वास केंद्र!

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 6 मार्च 2022

सब कुछ ठीक रहा तो आईएएस पुनर्वास केंद्रों की संख्या में एक और नाम जुड़ जाएगा। नया रिहैबिलिटेशन सेंटर होगा निजी विनियामक आयोग। पता चला है, हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट ने निजी विनियामक आयोग के मेम्बर के लिए रिटायर आईएएस का नाम राजभवन भेजा है। अफसर को अगर पोस्टिंग मिल गई तो गाड़ी-घोड़ा का बंदोबस्त हो जाएगा। राजधानी में एक बंगला भी। मगर जरा सोचिए...वे जांजगीर और दुर्ग के कलेक्टर रहे हैं...रायपुर और दुर्ग के संभागायुक्त भी। प्रोफाइल भी इतना पुअर नहीं। नौकरशाही के लिए जरूर ये खुशी की बात होगी। वैसे भी, अब गरिमा-वरिमा की बातें पुरानी हो गईं। अधिकांश पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग खैरात होती है और मकसद भी सिर्फ और सिर्फ यही...गाड़ी, मकान और नौकर-चाकर की सरकारी सुविधा कुछ दिन और मिल जाए।

2008 बैच क्लोज

कलेक्टरों के पिछले फेरबदल में 2007 बैच क्लोज हुआ था। इस बार संकेत हैं कि 2008 बैच को कलेक्टरी के लिए बंद किया जाएगा। इस बैच के एकमात्र कलेक्टर भीम सिंह रायगढ़ संभाल रहे हैं। हालांकि, कुछ महीने पहिले तक दुर्ग के लिए उनका नाम मजबूती से चल रहा था। मगर अब सुनने में आ रहा कि सरकार अब नए अफसरों को मौका देने के लिए भीम सिंह को रायपुर बुलाएगी। ये अवश्य है कि रायपुर में पोस्टिंग उन्हें अच्छी मिलेगी। वैसे भीम सिंह का कलेक्टर बनना भी किसी चमत्कार से कम नहीं था। पिछली सरकार में तीन जिला करने के बाद वे भी नहीं सोचे होंगे कि उन्हें बड़े जिले की कलेक्टरी मिल जाएगी।

टू ईयर क्लब

विधानसभा के बजट सत्र सामने आते ही कलेक्टरों की सर्जरी की अटकलें शुरू हो गई है। खबर है, इस बार लिस्ट लंबी-चौड़ी होगी। 28 में से पांच जिलों के कलेक्टरों को सरकार ने जनवरी में चेंज किया था। जाहिर है, इनमें से कोई नहीं बदलेगा। बचे 23। इनमें से नौ जिलों के कलेक्टर पिछले साल जून में पोस्ट हुए थे। यानी अभी एक बरस भी नहीं हुआ है। बावजूद इसके इन नौ में भी से दो-एक विकेट चटक सकते हैं। बदलने वालों में उन कलेक्टरों का नाम सबसे उपर हैं, जिनका एक जिले में दो साल हो गया है। याने टू ईयर क्लब वाले। इनमें नौ कलेक्टर शामिल हैं। दुर्ग, बालोद, बिलासपुर, सरगुजा, जगदलपुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, रायगढ़ और कवर्धा। इन नौ में से कुछ को वापिस रायपुर बुलाया जाएगा तो कुछ को अपग्रेड कर बड़े जिलों में ताजपोशी की जाएगी। दुर्ग के सर्वेश् भूरे की हटने की लंबे समय से चर्चा चल रही थी मगर अब सुनने में आ रहा कि शायद कुछ महीनों के लिए वे दुर्ग में रुक जाएं। बाकी जगदलपुर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, सरगुजा, बालोद के कलेक्टरों को बदलना लगभग तय माना जा रहा है। बालोद के जन्मजय मोहबे को शायद कोई बड़ा जिला मिलेगा। सरगुजा के संजीव झा भी अपग्रेड होंगे। कोंडागांव वाले पुष्पेंद्र मीणा ने अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली हैं। हो सकता है, उन्हें अंबिकापुर की कमान मिल जाए। कांकेर के चंदन कुमार का भी और ठीक-ठाक हो जाए। दरअसल, कांकेर के लिए एक प्रमोटी आईएएस का नाम चल रहा है। उधर, 2009 बैच की आईएएस डॉ0 प्रियंका शुक्ला भी इस बार स्ट्रांग दावेदार हैं। जगदलपुर के लिए उनका नाम चर्चा में है। वैसे चर्चा किरण कौशल के भी जिले में जाने की है। रजत बंसल बिलासपुर और संजीव झा का नाम रायगढ़ के लिए कई महीने से चल रहा है। अब देखना है, सरकार उन्हें इन्हीं जिलों में भेजती हैं या कहीं और। ये जरूर है कि दोनों को जिला अच्छा मिलेगा। बिलासपुर कलेक्टर डॉ0 सारांश मित्तर को पहले वहां से हटाकर किसी बड़े मलाईदार बोर्ड का एमडी बनाने की चर्चा थी। मगर अब अचानक उनका एक बड़े जिले के लिए नाम चलना शुरू हो गया है। दंतेवाड़ा से दीपक सोनी को भी मैदानी जिले में लाए जाने की बात हो रही। कुल मिलाकर लिस्ट लंबी होगी। अब सवाल है, आदेश निकलेगा कब? बजट सत्र के बाद? कुछ भी हो सकता है...पिछली सरकार के समय कई बार सत्र के दौरान कलेक्टर बदल दिए गए थे। सो, सत्र कोई रोड़ा नहीं। अगले साल चुनाव का देखते सरकार अब 20-20 के मोड में बैटिंग करेगी, सो कुछ भी हो सकता है।

कड़ा रिव्यू

अगले साल विधानसभा चुनावों को देखते सरकार ने विभागों का रिव्यू प्रारंभ कर दिया है। इसकी शुरूआत जनसंपर्क विभाग से हुई है। सीएम हाउस में ढाई घंटे रिव्यू चला। विभिन्न माध्यमों के जरिये सरकार की योजनाओं को लोगों तक और बेहतर ढंग से पहुंचाने पर गहन चर्चा हुई। सुना है, इसके बाद पीडब्लूडी, पुलिस विभाग के कामकाज की समीक्षा होगी। इन विभागों ने होम वर्क शुरू कर दिए हैं। यूपी चुनाव के बाद सरकार एक्शन मोड में आने वाली है। सो, बताया जा रहा है कि बजट सत्र की कार्रवाई भी चलती रहेगी और विभागों के कामकाज की समीक्षा भी।

काम की खबर

अगर आप जमीनों के नामंतरण, ऋण पुस्तिक आदि के लिए तहसीलदार और पटवारी का चक्कर लगा रहे हैं, तो दसेक दिन ठहर जाइये। कैबिनेट ने भू-संहिता संशोधन विधयेक को पास कर दिया है और अब इसे विधानसभा के बजट सत्र में पेश किया जाएगा। विधयेक चूकि अभी पारित नहीं हुआ है, इसलिए डिटेल पता नहीं। मगर खबर है 1960 में बने भू-संहिता में काफी सुधार किया गया है। नामंतरण और ऋण पुस्तिक की प्रक्रिया सरल की गई है। वैसे मध्यप्रदेश ने नामंतरण और ऋण पुस्तिक समाप्त कर दिया है। कई राज्यों में तो ऋण पुस्तिका का प्रावधान ही नहीं है। छत्तीसगढ़ में ऋण पुस्तिका पटवारियों की कमाई का बड़ा जरिया बन गया है। आदमी और जमीन का साइज देखकर ऋण पुस्तिका के लिए पांच हजार से लेकर लाख-दो लाख तक वसूले जाते हैं। इसी तरह आईटी युग में रजिस्ट्री के साथ ही जमीनों का नामंतरण ऑनलाइन किया जा सकता है। मगर नामंतरण के नाम पर लोगों को परेशान ही नहीं किया जाता, उनसे तगड़ी वसूल की जाती है।

हार्ड लक

बड़ी कवायदों के बाद गिरिजाशंकर जायसवाल को पिछले साल अक्टूबर में नारायणपुर जिले का एसपी बनाया गया। मगर उनका हार्ड लक कि पांच महीने में उन्हें मुख्यालय लौटना पड़ गया। सरकार ने आश्चर्यजनक ढंग से उन्हें हटाकर बालोद एसपी सदानंद को नारायणपुर भेज दिया। गिरिजाशंकर का लंबे समय से एसपी बनने की चर्चा चल रही थी। दो साल पहले उन्हें कोंडागांव का ऑफर दिया गया। लेकिन, छोटा जिला होने के कारण तैयार नहीं हुए। पिछले साल उदय किरण हिट विकेट हुए तो गिरिजाशंकर नारायणपुर जाने के लिए राजी हो गए। मगर किस्मत ने साथ नहीं दिया।

छत्तीसगढ़ियां नहीं मगर...

किसी भी सूबे में आप जाएं, अगर वहां सक्सेस होना है तो सीधा सा फंडा है...वहां की बोली-भाषा, आचार-व्यवहार को एडाप्ट कीजिए। कुछ ब्यूरोक्रेट्स इसको फॉलो करते हैं। दंतेवाड़ा में एसपी अभिषेक पल्लव ने गोंडी सीख लिया था। इसी तरह की एक खबर बिलासपुर से है। अटल बिहार बाजपेयी विश्वविद्यालय के वीसी अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी छत्तीसगढ़ी को बढ़ावा देने छत्तीसगढ़ी में नोटशीट लिखते हैं। वीसी की नोटशीट पर रिप्लाई देने के लिए अधिकारी, प्रोफेसर अब वहां छत्तीसगढ़ी सीख रहे हैं। दरअसल, वे लंबे समय तक कोरबा जिले के किसी कॉलेज के प्रिंसिपल रहे हैं। सो, छत्तीसगढ़त्री जानते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नवा रायपुर में 30 करोड़ का वर्ल्ड लेवल का क्लब मंत्रियों के सेक्टर की बजाए अधिकारियों के सेक्टर 15 के बगल में क्यों बनाया जा रहा है?

2. कलेक्टर कांफ्रेंस में एक शीर्ष अफसर ने धान खरीदी पर सुझाव मांगते हुए ऐसा क्यों कहा, पता नहीं अगले साल धान खरीदी के समय हमलोगों में से कौन रहेगा, कौन नहीं?