शनिवार, 27 मई 2023

3 पूर्व IAS अबकी चुनावी मैदान में!

 तरकशः 28 मई 2023

संजय के. दीक्षित

3 पूर्व IAS अबकी चुनावी मैदान में!

प्रोफेसर से आईएएस बने नीलकंठ टेकाम अब पॉलिटिशियन बनने जा रहे हैं। उन्होंने आईएएस से वीआरएस लेने के लिए अप्लाई कर दिया है। टेकाम ने अभी ये साफ नहीं किया है कि कांग्रेस के साथ सियासी पारी शुरू करेंगे या बीजेपी के साथ। मगर अटकलों का बाजार बीजेपी को लेकर ज्यादा है। 2018 के विस चुनाव के दौरान भी उनके बीजेपी से चुनाव लड़ने की चर्चा बड़ी तेज थी। मगर मामला कुछ जमा नहीं। टेकाम के करीबी लोगों का कहना है, केशकाल विधानसभा से उन्होंने चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। कोंडागांव में वे करीब पौने तीन साल कलेक्टर भी रहे हैं। केशकाल कोंडागांव में आता है। सो, केशकाल में उन्हें पहचान का संकट नहीं आएगा। बहरहाल, इस बार तीन पूर्व आईएएस अधिकारियों के चुनावी मैदान में किस्मत आजमाना तय है। कांग्रेस से एसएस सोरी अभी कांकेर से विधायक हैं। बीजेपी से ओपी चौधरी चंद्रपुर या रायगढ़ से चुनाव लड़ेंगे। और अब नीलकंठ टेकाम भी वार्म अप हो रहे। उधर, पूर्व आईएएस जीएस मिश्रा भी टिकिट की दौड़ में हैं। देखना है, उन्हें इसमें कामयबी मिलती है या नहीं।

लिस्ट अच्छी मगर...

एसपी की बहुप्रतीक्षित लिस्ट आखिरकार जारी हो गई। सरकार ने 12 जिलों के पुलिस अधीक्षकों का बदल दिया। इनमें कुछ का कद और प्रभाव बढ़ा, तो कुछ का महत्व कम हुआ। कांकेर एसपी शलभ सिनहा की रेटिंग अच्छी है, इसलिए वीवीआईपी जिला दुर्ग के लिए उनका नाम तय था। और वही हुआ। अभिषेक पल्लव का नाम रायपुर के लिए चर्चा में था। मगर रायपुर एसपी प्रशांत अग्रवाल को सरकार ने फिलहाल चेंज करना मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में, अभिषेक को दुर्ग से कवर्धा जाना पड़ा। लिस्ट में बेमेतरा के एसपी आईके ऐलेसेला को एसपी में कंटीन्यू करते हुए सूरजपुर भेजने से आईपीएस बिरादरी में भौंचक है। बेमेतरा में छत्तीसगढ़ की पहली सांप्रदायिक हिंसा हुई। तीन लोगों को जान गंवानी पड़ी। ऐलेसेला को बेमेतरा से भी ठीक-ठाक जिला सूरजपुर भेजकर गृह विभाग क्या संदेश देना चाह रहा...किसी को समझ में नहीं आ रहा। इसी तरह दंतेवाड़ा जैसे जिले से सिद्धार्थ तिवारी को मनेंद्रगढ़ जैसे नए जिले की कमान सौंपना भी थोड़ा चौंकाया। सुकमा में लंबे समय तक काम करने के बाद सरकार ने सुनील शर्मा को सरगुजा जैसे बड़े जिले की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि, इलेक्शन ईयर में सरगुजा में उन्हें कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। रिफाइनरी और रेत को लेकर पुलिस आरोपों के घेरे में है। बलरामपुर से मोहित गर्ग का हटना तय माना जा रहा था। विधायक बृहस्पति सिंह उनसे काफी नाराज थे। विधायक ने एसपी को बर्खास्त करने की मांग करते पूरे शहर में पोस्टर लगवा दिए थे। इसलिए, सरकार ने मोहित को बटालियन भेज दिया। उनकी जगह कवर्धा से डॉ0 लाल उम्मेद सिंह को बलरामपुर भेजा गया है। लाल उम्मेद बैलेंस करके काम करने वाले अफसर हैं। सरकार को उम्मेद से उम्मीद होगी कि वे बृहस्पति की उम्मीदों पर खरे उतरें।

पीएससी चेयरमैन की विदाई

पीएससी चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी इस साल सितंबर में रिटायर हो जाएंगे। सितंबर में उनका 62 कंप्लीट हो जाएगा। याने उनके पास महज चार महीने का वक्त बचा है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के ये माटी पुत्र छत्तीसगढ़ के मानव संसाधन को विकसित करने के लिए दिन-रात एक कर दिए हैं। उनकी कोशिश है कि जाते-जाते पीएससी का एक बैच और क्लियर करके जाएं। जाहिर है, उन्होंने प्रिलिम्स का रिजल्ट घोषित करने के बाद महीने भर के कम समय में मुख्य परीक्षा का डेट निकाल दिया। संकेत हैं, रिटायरमेंट से पहले इंटरव्यू करके कई सारे डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी की भर्ती कर जाएंगे। सोशल मीडिया में लोग उन्हें नाहक बदनाम कर हैं...भाई-भतीजावाद का आरोप लगा रहे हैं। सोशल मीडिया में लिखा जा रहा...नाते-रिश्तेदारों जो बच गए होंगे, वो भी इस बार वैतरणी पार कर जाएंगे। मगर ये बेकार की बात है। विरोध करने वालों को समझना चाहिए कि भर्ती किसी की भी हो...हैं तो सभी छत्तीसगढ़िया। फिर जरा सोचिए...आदमी अपने परिवार का ध्यान नहीं रखेगा तो कौन रखेगा? और बीजेपी के समय जो पीएससी में हुआ, वो कम हुआ? ये तो उससे कम ही है।

चेयरमैन के दावेदार

टामन सिंह सोनवानी के रिटायरमेंट के बाद पीएससी चेयरमैन के लिए सरकार के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है। सरकार अगर किसी आईएएस को लाना चाहेगी तो तीन ही ऐसे अफसर हैं, जो इस एक साल में रिटायर हो रहे हैं। इनमें पहला नाम राजभवन के सिकरेट्री अमृत खलको का है। वे इसी साल जुलाई में रिटायर हो जाएंगे। खलको को सरकार अगर पीएससी में बिठाना चाहेगी तो इसके लिए दो महीने वेट करना होगा। क्योंकि, सोनवानी सितंबर में रिटायर होंगे। खलको के बेटा और बेटी, दोनों इस बार डिप्टी कलेक्टर चुने गए हैं। सो खलको के चेयरमैन बनाने के दो फायदे होंगे। एक तो चुनाव के साल में आदिवासी होने का लाभ और दूसरा चूकि उनके दोनों बच्चे डीसी बन गए हैं सो, बाल-बच्चों को उपकृत करने वाले आरोप उन पर नहीं लग पाएंगे। इसके बाद दूसरा नाम होगा बिलासपुर और सरगुजा के कमिश्नर डॉ. संजय अलंग का। वे अगले साल जुलाई में रिटायरमेंट होंगे। सरकार अगर संजय को चेयरमैन बनाना चाहेगी तो इसके लिए उन्हें नौ महीने पहले आईएएस से वीआरएस लेना पड़ेगा। अलंग के बाद तीसरा नाम है रीता शांडिल्य का। वे अगले साल सितंबर में रिटायर होंगी। इसके लिए उन्हेंं पूरे एक साल पहले वीआरएस लेना पड़ेगा। हालांकि, इससे पहले कई आईएएस वीआरएस लेकर पीएससी चेयरमैन बने है। केएम पिस्दा रिटायरमेंट से करीब साल भर पहले वीआरएस लेकर पीएससी चेयरमैन बने थे। उसी तरह टामन सिंह सोनवानी भी रिटायरमेंट से साल भर पहले वीआरएस लेकर पीएससी चेयरमैन बनना बेहतर समझे थे। सोनवानी रुटीन में सितंबर 2021 में रिटायर हो गए होते। पीएससी चेयरमैन का एज 62 साल है, इसलिए उन्हेंं तीन साल चेयरमैन बनने का मौका मिल गया। रिटायरमेंट के बाद अगर वे चेयरमैन बने होते तो दो साल ही इस पोस्ट पर रहना पड़ता। बहरहाल, नए चेयरमैन के लिए संभावना का पलड़ा अमृत खलको की तरफ झुका दिख रहा है।

सीएस का प्रभार

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन पारिवारिक कारणों से 16 दिन के अवकाश पर हैं। उन्होंने बकायदा छुट्टी ली है। एसीएस सुब्रत साहू को उनका प्रभार दिया गया है। इसमें दो बातें हैं। पहली, आमतौर पर सीएस अगर छुट्टी पर जाते हैं तो प्रभार देना मुनासिब नहीं समझते। इस मायने में अमिताभ जैन थोड़ा अलग हैं। और दूसरी, सुब्रत साहू को सेकेंड टाईम सीएस का प्रभार मिला है। पहली बार अमिताभ को जब कोविड हुआ था, तब सुब्रत 25 दिन सीएस के प्रभार में रहे। और अब 17 दिन। चलिए, सुब्रत इसी के जरिये वार्म अप हो रहे हैं। अमिताभ जैन के बाद आखिर कमान उन्हें ही संभालना है। अलबत्ता, रेणु पिल्ले उनसे सीनियर हैं। मगर सरकार दांव सुब्रत पर ही लगाना चाहेगी। हालांकि, अमिताभ का अभी करीब दो साल का टेन्योर बचा है। जून 2025 तक उनका टाईम है। इससे ये न समझा जाए कि 2025 में ही सुब्रत को मौका मिलेगा। सुब्रत को जिस दिन सीएस बनना होगा, उस रोज उनकी ताजपोशी हो जाएगी। सीएस, डीजीपी बनना माथे पर लिखा होता है। ऐसा नहीं होता तो जरा सोचिए! सुनील कुजूर सीएस और एएन उपध्याय कभी डीजीपी बन पाते?

आईएएस की लिस्ट

इस महीने डायरेक्टर इंडस्ट्रीज अनिल टुटेजा रिटायर हो जाएंगे। अनिल 2004 बैच के आईएएस हैं। 31 मई को उनके रिटायर होने पर सरकार को उनकी जगह किसी को डायरेक्टर पोस्ट करना होगा। आबकारी आयुक्त और आबकारी सचिव निरंजन दास लंबी छुट्टी पर हैं। सचिव को डे-टू-डे की फाइल नहीं जाती और फिर सचिव के लिंक अफसर होते हैं। सो, वे अगर छुट्टी पर जाते हैं, तो काम प्रभावित नहीं होता। मगर कमिश्नर का काम महत्वपूर्ण होता है। वे एचओडी होते हैं। वेतन निकालने से लेकर आबकारी का सारा कामकाज कमिश्नर की कलम से होता है। इससे समझा जाता है कि 31 मई के आसपास आईएएस पोस्टिंग की एक छोटी लिस्ट निकलेगी। इसमें नए आबकारी कमिश्नर की भी पोस्टिंग हो सकती है।

एसपी की भी!

राज्य सरकार ने 12 जिलों के एसपी बदल दिया। मगर जिनके नामों की पिछले छह महीने से चर्चा थी और जो सरकार के राडार पर हैं, उनमें से एक का नाम भी इस लिस्ट में नहीं है। इससे समझा जाता है कि जून-जुलाई में एसपी की एक लिस्ट और निकलेगी। अभी पांच जिलों में डीआईजी पोस्टेड हैं। इनमें से दो जिलों के एसएसपी जिले में रहने से अनिच्छा व्यक्त कर चुके हैं। अगली लिस्ट में हो सकता है एकाध आईजी का भी नंबर लग जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक मंत्री के बीजेपी में शामिल होने की अटकलों के पीछे कोई सच्चाई है या महज अफवाह?

2. एक फूड आफिसर ने चार दिन में पूरा डेम का पानी बहा दिया और सिस्टम सोता रहा, क्या इसके लिए सिस्टम जिम्मेदार नहीं है?


एसपी की धुआंधार बैटिंग

एसपी की धुआंधार बैटिंग

सरकार ने एक पुलिस कप्तान को प्रमोशन देकर भरोसे के साथ बड़े जिले की कमान सौंपी थी। मगर कप्तान साब ने ज्वॉइन करते ही इस कदर धुआंधार बैटिंग शुरू कर दी कि उसकी चर्चा राजधानी तक होने लगी है। खुद पुलिस मुख्यालय के लोग मानने लगे है कि अफसर की कप्तानी पारी कुछ ज्यादा हो गई है। बात चूकि सरकार की नोटिस में है, इसलिए ताज्जुब नहीं कि अगली लिस्ट में कप्तान को वापस पेवेलियन बुला लिया जाए।

नोट बंदी औ

र लाटरी!

2000 के नोट बंद होने से सराफा और रियल इस्टेट में फिर से बूम आने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। याद होगा, 2016 के नोटबंदी से डूबते हुए रियल इस्टेट में रौनक आ गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रात आठ बजे नोटबंदी का ऐलान करते ही लोग सराफा दुकानों की तरफ दौड़ पड़े थे। यही हाल रियल इस्टेट में रहा। आम लोग 500, 1000 के नोट लेकर परेशान होते रहे और बिल्डर बिना किसी हिचक नोट खपाते रहे। बता दें, 2015 तक रियल इस्टेट की हालत खास्ता थी। मगर नोटबंदी से रियल इस्टेट इतना मजबूत हो गया कि कोरोना जैसे पीरियड में भी बिल्डरों ने मकानों के रेट कम नहीं किए। हालांकि, इस बार सिर्फ 2000 के नोट बंद हुए हैं। और ये नोट मीडिल क्लास के पास नहीं है। हायर मीडिल क्लास के पास भी मुश्किल से होगा। चूकि पिछले दो-तीन साल से 2000 के नोट दिखने बंद हो गए थे। सो, माना जा रहा था कि बड़े लोगों ने ये नोट दबा दिया है। आखिर, देश में इंकम टैक्स, सीबीआई और ईडी के जितने छापे पड़े हैं, सभी जगहों पर 2000 के नोटों का जखीरा ही पकड़ा गया। बहरहाल, धनिकों का ये पैसे कहीं-न-कहीं निकलकर इंवेस्ट तो होगा। ऐसे में, सराफा और रियल इस्टेट की उम्मीदें तो बढ़ेगी ही।

न्यायधानी में न्याय का मजाक

पुलिस ने ऐसा कमाल किया है कि अन्याय भी उसके आगे शरमा जाए। पुलिस ने रेप पीड़िता की विधवा मां को बिना जांच-पड़ताल किए जेल भेज दिया। दरअसल, रतनपुर की महिला ने एक समुदाय विशेष के युवक पर बेटी के साथ रेप करने का आरोप लगाया था। महिला की रिपोर्ट पर पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पीड़िता की बेटी का आरोप है कि केस वापस लेने उसे धमकी और प्रलोभन दिया गया। मगर जब केस वापस लेने तैयार नहीं हुए तो उसकी मां पर एक 9 साल के बच्चे का यौन शोषण का एफआईआर कर जेल भेज दिया गया। रेप पीड़िता बीएससी नर्सिंग की छात्रा है। पिता रहे नहीं। मां को पुलिस ने जेल भेज दिया। कोर्ट में वह लोगों के सामने न्याय की गुहार लगाती रही। वकीलों के पैर पकड़ ली...मेरी मां बेकसूर है। मां को जेल भेजे जाने का आदेश सुनते ही बेहोश होकर गिर पड़ी। सोचनीय प्रश्न है...जिस महिला की बेटी के साथ रेप हुआ होगा, वह मासूम बच्चे का यौन शोषण करेगी? रेप केस के आरोपी पक्ष के काउंटर रिपोर्ट पर पुलिस को क्या इन पहलुओं पर जांच नहीं करनी थी! ठीक है, बाल अपराध में सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन है मगर पुलिस को इस केस को संजीदगी समझनी चाहिए थी।

एपीसी की मीटिंग

कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने इस हफ्ते बिलासपुर में बिलासपुर और सरगुजा संभाग के कलेक्टरों की बैठक ली। एजेंडा था खेती-बाड़ी से लेकर वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन और उसका रखरखाव। बैठक में कमलप्रीत के तेवर देख कई कलेक्टर बगले झांकने लगे तो जो बिना तैयारी चले आए थे उन्हें असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। दरअसल, दोनों संभागों के कलेक्टरों को किसी सिकरेट्री के इस अंदाज से कभी साबका पड़ा नहीं। पुराने जमाने में बैजेंद्र कुमार नाम के एक सिकरेट्री थे। वे बड़ी निर्ममता से जूनियर अधिकारियों को टोक देते थे। लिहाजा, अधिकारी इधर-उधर करने से पहले दस बार सोचते थे कि कहीं बैजेंद्र सर कहीं व्हाट्सएप ग्रुप में खिंचाई न कर दें। मगर नौकरशाही में अब वो नस्ल रहा नहीं। और ये मानवीय प्रवृति है घर में कोई टोकने-टाकने वाला नहीं रहा तो बच्चों के कदम इधर-उधर पड़ने लगते हैं। आज सूबे की नौकरशाही मुश्किल दौर से गुजर रही तो उसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी है।

लक्ष्मी और सरस्वती

किसी जमाने में कहा जाता था...जहां लक्ष्मी का वास होता है वहां सरस्वती नहीं आती और जहां सरस्वती रहती हैं, वहां लक्ष्मी नहीं। मगर कलयुग में सब बदल गया है। इस बार पीएससी के नतीजों को देखकर ऐसा ही प्रतीत होता है। पीएससी के मेरिट लिस्ट से अबकी कमजोर वगों के बच्चे सिरे से गायब हो गए। उनकी जगह सामर्थ्यवान अधिकारियों और नेताओं के बेटे, बेटियां, भतीजा, दामादों ने इस बार कब्जा जमा लिया...वे डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी सलेक्ट हो गए। गजब तो तब हुआ, जब एक घर से दो-दो डिप्टी कलेक्टर। पति-पति दोनों टॉप टेन में। दरअसल, प्रशासनिक सेवा भी एक बड़ा इंवेस्टमेंट हो गया है। डिप्टी कलेक्टर प्रमोट होकर आईएएस बन जाते हैं। और आईएएस बन गए तो रिटायरमेंट तक पांचों उंगली घी में। छोटे-मोटे उद्योगपति उनके सामर्थ्य के सामने नहीं टिकते। कारोबारियों को अब इसलिए इसमें इंट्रेस्ट आ गया कि घर-परिवार में एकाध प्रशासनिक अफसर निकल गया तो डीएमएफ और माईनिंग के युग में उनका धंधा फलने-फूलने लगेगा। सो, बेटा-बेटी न हो तो दामाद ही सही, प्रशासनिक अफसर होना चाहिए। और आईएएस, आईपीएस इसलिए इसमें इंवेस्ट कर रहे हैं कि बेटा प्रशासनिक अफसर बन गया तो रिटायरमेंट के बाद भी गाड़ी-घोड़ा की सुविधा मिलती रहेगी। इंवेस्टमेंट का नया आईडिया है ये।

आईएएस को झटका

एक आईएएस अधिकारी ने राजधानी के पॉश कालोनी में एक मकान का सौदा किया। करीब डेढ़ खोखा के मकान का आधा पैसा एक नंबर में देना था और आधे के करीब नगद। आईएएस के विभाग के एक सप्लायर ने ये सौदा कराया था। उसने बिल्डर को अश्वस्त किया था, कच्चा याने नगद वाला हिस्सा मैं दूंगा। इस बीच आईएएस का विभाग बदल गया। विभाग बदलते ही गिरगिट के रंग की तरह सप्लायर भी बदल गया। बिल्डर को उसने पैसा देने से साफ इंकार कर दिया। आईएएस ऐसे में क्या करते सौदा रद्द कर चेक से एक नंबर में दो लाख पेशगी दी थी, उसे वापिस ले लिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के किस शराब ठेकेदार के यहां से ईडी ने 28 करोड़ के जेवर सीज किया है?

2. किस वजह से बीजेपी ने थर्ड, फोर्थ लाइन के नेताओं को सरकार के विरोध के लिए आगे कर दिया है?

शनिवार, 13 मई 2023

Chhattisgarh Tarkash: बस्तर आईजी कौन?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 14 मई 2023

बस्तर आईजी कौन?

2003 बैच के आईपीएस और बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज का का टेन्योर विधानसभा चुनाव तक तीन साल क्रॉस कर जाएगा। इसको देखते समझा जा रहा था कि चुनाव से पहले सरकार उन्हें हटाकर किसी और आईजी को वहां की कमान सौंपेंगी ताकि चुनाव तक उन्हें बस्तर को समझने का टाईम मिल जाए। मगर सुनने में आ रहा कि बस्तर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए सरकार सुंदरराज को कंटीन्यू करने पर विचार कर रही है। सुंदरराज बस्तर में नक्सली आपरेशनों को बढ़ियां ढंग से अंजाम दे रहे हैं। इससे नक्सली घटनाओं में भी बेहद कमी आई है। इसको देखते चुनाव आयोग को पत्र भेजा जा रहा कि माओवाद ग्रस्त बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज के केस में तीन साल में छूट दी जाए। चूकि बस्तर देश का सर्वाधिक नक्सल प्रभावित इलाका है, इसलिए आमतौर पर चुनाव आयोग से ऐसे केस में छूट मिल जाती है। वैसे भी सुंदरराज निर्विवाद अधिकारी हैं...उन पर कभी किसी पार्टी का लेवल नहीं लगा....बीजेपी सरकार में भी वे बस्तर में तैनात रहे। लिहाजा, विपक्ष को भी सुंदरराज के बस्तर में कंटीन्यू करने पर ऐतराज नहीं होगा। फिर भी देखना होगा, चुनाव आयोग क्या फैसला लेता है।

दो और आईजी

छत्तीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अधिकारियों का सेंट्रल डेपुटेशन कंप्लीट हो गया है। सात साल बाद दोनों आईपीएस केंद्र से रिलीव हो गए हैं। इनमें से 2004 बैच के आईपीएस अंकित गर्ग ने पुलिस मुख्यायल में ज्वाईनिंग दे दी है तो 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत अगले महीने ज्वाईन करेंगे। गर्ग और भगत आईजी लेवल के अधिकारी हैं और दोनों बस्तर के कई जिलों में पोस्टेड रह चुके हैं। नक्सली हिंसा जब चरम पर था, तब अंकित गर्ग दंतेवाड़ा और बीजापुर में एसपी रहे। राहुल भगत भी कांकेर और नारायणपुर में एसपी रह चुके हैं। समझा जाता है कि विधानसभा चुनाव के बाद जब बस्तर आईजी रिप्लेस होंगे तो इनमें से किसी एक को वहां की जिम्मेदारी मिलेगी। बहरहाल, अंकित और गर्ग के आने के बाद सूबे में आईजी की संख्या बढ़कर 11 हो जाएगी। इस वक्त डॉ0 आनंद छाबड़ा, सुंदरराज, अजय यादव, बद्री नारायण मीणा और आरिफ शेख रेंज में आईजी हैं। वहीं, ओपी पाल, संजीव शुक्ला, आरपी साय और सुशील द्विवेदी मुख्यालय में पोस्टेड हैं। अंकित और राहुल दो और बढ़ गए। एक समय था जब पांच रेंज और चार से पांच आईजी हो गए थे। ऐसे में कई डीआईजी को प्रभारी आईजी बनाकर रेंज में पोस्ट करना पड़ा था।

कर्नाटक जीत का इम्पैक्ट

कर्नाटक में बीजेपी के हाथ से सत्ता फिसलने का असर छत्तीसगढ़ में चल रही ईडी की कार्रवाइयों पर भी पड़ेगा...इसको लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। असल में, कोल स्केम की रिपार्ट बेंगलोर में दर्ज है। कर्नाटक की पुलिस इस सिलसिले में दो-तीन बार रायपुर आ चुकी है। अब चूकि वहां कांग्रेस की सरकार आ गई है तो जाहिर तौर पर यह सवाल उठ रहे कि वहां अगर केस खारिज हो गया तो...?। और जब मूल केस ही खारिज हो जाएगा तो फिर ईडी की कार्रवाई कैसे सरवाईव कर पाएगी। दरअसल, मनी लॉड्रिंग एक्ट के तहत ईडी खुद एफआईआर दर्ज नहीं करती। किसी जांच एजेंसी में दर्ज मामले को वह आगे बढ़ाती है। राज्य पुलिस, आईटी या सीबीआई के बाद ही ईडी की इंट्री होती है।

गजब की किस्मत

राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह को सरकार ने छह महीने का और एक्सटेंशन दे दिया। इससे पहिले उन्हें दो बार छह-छह महीने का एक्सटेंशन मिल चुका है। ये तीसरा मौका है, जब सरकार ने उन्हें सेवा विस्तार दिया है। निर्वाचन में राम सिंह का छह साल का कार्यकाल पिछले साल मई में खतम हुआ था। हालांकि, इस महीने 10 तारीख को उनका एक साल का एक्सटेंशन समाप्त हो रहा था तो मानकर चला जा रहा था कि अब किसी और को निर्वाचन की कमान सौपी जाएगी। मगर आखिरी समय में उनके एक्सटेंशन की फाइल फिर बढ़ गई। बहरहाल, पोस्टिंग के मामले में राम सिंह किस्मत के धनी हैं। पिछली सरकार में उन्होंने रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और दुर्ग याने प्रदेश के चारों टॉप के जिलों में कलेक्टरी की। छत्तीसगढ़ में किसी डायरेक्ट आईएएस को भी इन चार जिलों की कलेक्टरी करने का अवसर नहीं मिला है। वो भी छह महीने, साल भर की नहीं...चारों जिलों में उन्होंने 10 साल कलेक्टरी की। रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग दी। और इस सरकार में उन्हें तीन बार एक्सटेंशन मिल गया। है न गजब की किस्मत।

शुक्ला को एक्सटेंशन

प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला की तीन साल की संविदा पोस्टिंग इस महीने 31 को समाप्त हो जाएगी। शुक्ला के पास स्कूल शिक्षा के साथ ही चेयरमैन माध्यमिक शिक्षा मंडल और व्यापम के साथ ही रोजगार मिशन के डायरेक्टर का दायित्व है। सरकार ने आचार संहिता के पूर्व सितंबर तक मिशन मोड में नियुक्तियों को कंप्लीट करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में, सरकार आलोक शुक्ला की सेवाओं को कंटीन्यू करना चाहेगी। लिहाजा, यह मान कर चला जा रहा कि उन्हें एक्सटेंशन मिलने पर कोई संशय नहीं है। 86 बैच के आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला 2020 में रिटायर हुए थे।

सेकेंड पोस्टिंग

रिटायर होने के बाद नौकरशाहों को अभी तक एक पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल पाती थी। वो भी तब जब तगड़ा जैक हो और सरकार के साथ ट्यूनिंग अच्छी हो। मगर रिटायर नौकरशाहों को अब दूसरी पोस्टिंग भी मिलने लगी है। चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के बाद विवेक ढांड रेरा के चेयरमैन बनाए गए थे। रेरा से रिटायर होने के बाद उन्हें इनोवेशन आयोग का प्रमुख बनाया गया है। उधर, मुख्य सूचना आयुक्त से रिटायर होने के बाद एमके राउत रेड क्रॉस सोसाइटी के सीईओ अपाइंट हुए हैं। उनसे पहले सूचना आयुक्त से रिटायर होने के बाद अशोक अग्रवाल रेडक्रॉस सोसाइटी के चेयरमैन बने थे। राउत और अग्रवाल में गुरू-चेला का संयोग बना हुआ है। राउत जब कलेक्टर रायपुर थे, अग्रवाल रायपुर के एसडीएम रहे। अग्रवाल सूचना आयुक्त बने तो राउत वहां मुख्य सूचना आयुक्त बन गए। और अग्रवाल रेड क्रॉस चेयरमैन बनकर पहुंचे तो राउत उनके उपर सीईओ बन गए। कहने का मतलब यह है कि दोनों का साथ नहीं छुट रहा है।

रापुसे की बारी

सरकार ने इस हफ्ते राज्य प्रशासनिक सेवा के 39 अधिकारियों का जंबो ट्रांसफर किया। इनमें अधिकांश वे अधिकारी हैं, जिनका तीन साल हो गया था या वे विधानसभा चुनाव तक तीन साल के दायरे में आने वाले थे। राप्रसे के बाद अब राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों का नम्बर है। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने पुलिस महकमे के शीर्ष अधिकारियों की बैठक लेकर तीन साल वाले अधिकारियों की लिस्ट बनाने निर्देशित भी किया है। हालांकि, रापुसे अधिकारियों का ट्रांसफर सीएम लेवल पर होता है। मगर नोटशीट जाती है गृह विभाग से ही। बहरहाल, रापुसे की लिस्ट की चर्चाएं तेज हो गईं हैं।

ईडी की नजर

ईडी ने पंजीयन विभाग से पांच साल के रजिस्ट्रियों का ब्यौरा मांगा है। कुछ दिन पहले ईडी के अफसर पंजीयन मुख्यालय पहुंचे और अपनी रिक्वायरमेंट रखा। बताते हैं, मुख्यालय ने कहा कि विभागीय अधिकारियों से परामर्श लेकर वे जानकारी मुहैया करा पाएंगे। बताते हैं, महाधिवक्ता से राय मांगी गई है कि ईडी को जानकारी दी जाए या नहीं। ईडी को पांच साल की जानकारी मिलेगी या नहीं, ये बाद की बात है...मगर रजिस्ट्री अधिकारियों की हालत खराब है। क्योंकि, रजिस्ट्रियों में गाइडलाइंस में बड़ा गोलमाल किया गया है। हाईप्रोफाइल कालोनियों में स्थित प्लाटों को एग्रीकल्चर लैंड बताकर रजिस्ट्री कर दी गई। रजिस्ट्री विभाग ने इसकी जांच का आदेश दिया तो दलालों और भूमाफियाओं ने 30 पेटी चंदा करके जांच रोकवा दिया। हालांकि, ये खेला सिर्फ पांच साल का नहीं है। शुरू से ऐसा हो रहा है। मगर ईडी ने पांच साल का मांगा है, सो इस पीरियड में पोस्टेड अफसरों की हालत पतली हो रही।

ट्रांसफर में भाजपा नेता

राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद लंबे समय तक कार्यकर्ताओं की यह शिकायत रही कि कई मंत्री अब भी भाजपा शासन में मलाई खाने वालों की ठेका-सप्लाई का काम दे रहे हैं। साढ़े चार साल बाद बदलाव तो आया, लेकिन एक विभाग ऐसा है, जहां अभी भी एक भाजपा नेता के इशारे पर ट्रांसफर, पोस्टिंग हो रही। व्यापार प्रकोष्ठ के नेता का प्रभाव ऐसा है कि सीनियर अधिकारियों द्वारा नोटशीट में कुछ और लिखा जाता है, आदेश कुछ और होता है। दरअसल, मंत्रीजी सीधे-सादे हैं...सो, बीजेपी नेता और एक पटवारी ट्रांसफर, पोस्टिंग का खेला संचालित कर रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के ऐसे आईएएस अफसरों का नाम बताइये, जो चार साल तक मौज काटने के बाद अब रणनीति के तहत किनारे हो लिए हैं?

2. एक सिकरेट्री का नाम बताइये, जो पिछले 15-20 दिन से वे कहां हैं किसी को नहीं मालूम?


रविवार, 7 मई 2023

Chhattisgarh Tarkash : परसेप्शन की सियासत

संजय के. दीक्षित

तरकश, 7 मई 2023

परसेप्शन की सियासत

साहू वोटरों पर डोरे डालने बीजेपी के शीर्ष नेता कबीर पंथ के गुरु प्रकाश मुनी जी के घर मत्था टेकने पहुंचे और उसके अगले दिन सत्ताधारी पार्टी ने बीजेपी के आदिवासी वोटों को टारगेट करते हुए बड़ा विकेट गिरा दिया। घटनाक्रम इतना तेज गति से हुआ कि भाजपा नेताओं को समझने, समझाने का मौका नहीं मिला और नंद कुमार साय जैसे पार्टी के समर्पित और निष्ठावान नेता ने बीजेपी को बॉय-बॉय कर दिया। चुनावी साल में साय के इस्तीफे से पार्टी को कितना नुकसान होगा, इसका पता विधानसभा चुनाव के समय चलेगा। मगर इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि परसेप्शन की लड़ाई में कांग्रेस भाजपा से आगे निकल गई। ऊपर से कांग्रेस पार्टी में सीएम भूपेश बघेल का कद बढ़ा, सो अलग। जाहिर है, देश में पिछले कुछ सालों से कांग्रेस के बड़े नेताओं के लगातार पार्टी छोड़ने की खबरें आ रही है...ऐसे समय में भूपेश ने बीजेपी के एक बड़े आदिवासी लीडर को कांग्रेस पार्टी में शामिल करा अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है।

जोर का झटका...

नंदकुमार साय अपनी पार्टी से दुखी थे, ये बातें किसी से छिपी नहीं थी। साय खुद कई बड़े नेताओं के समक्ष अपनी पीड़ा का इजहार कर चुके थे...वे किसी भी हद तक जा सकते हैं, इसका इशारा भी। मगर शीर्ष नेताओं को लगा साय जी पूर्व की तरह फिर मान जाएंगे। दरअसल, वे पहले भी कई बार अपनी नाराजगी जाहिर कर फिर मान गए थे। यही वजह है कि भाजपा नेताओं ने उनकी बातों को हल्के में लिया और गच्चा खा गए। इस्तीफे के बाद उनके कांग्रेस प्रवेश की अटकलें चलनी शुरू हुई, तब भी पार्टी के किसी नेता को यकीं नहीं हुआ कि साय कभी कांग्रेस ज्वॉइन कर सकते हैं। एक वरिष्ठ नेता ने इस स्तंभ के लेखक से बड़े कॉन्फिडेंस से कहा... साय जी को मैं बचपन से देख रहा, वे कांग्रेस में हरगिज नहीं जाएंगे। बहरहाल, साय जैसे नेता का पार्टी छोड़ना बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं था। पार्टी के नेता दबी जुबां से स्वीकार करते हैं, सायजी के साथ बहुत अच्छा तो नहीं हुआ। 2003 में जोगी सरकार के लाठी चार्ज में पैर टूट जाने के बाद विधानसभा चुनाव आया तो उन्हें निबटाने के लिए तपकरा की बजाय सीएम अजीत जोगी के खिलाफ मरवाही में उतार दिया गया। वरना, वे नेता प्रतिपक्ष थे...चुनाव जीतने के बाद मंत्री तो बनते ही सीएम के भी दावेदार होते।

राज्य सभा में साय?

कांग्रेस ज्वॉइन करने के बाद नंद कुमार साय को लेकर सियासी गलियारों में कई तरह की बातें चल रही है। कोई बोल रहा उन्हें फलां पद दिया जा सकता है, तो सुनने में ये भी आ रहा कि अगले साल सरोज पाण्डेय का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। उनकी जगह कांग्रेस साय को दिल्ली भेजेगी। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय स्तर पर कोई आदिवासी चेहरा नहीं है। और स्वयं साय भी दिल्ली में रहने के इच्छुक हैं। अब देखना है, कांग्रेस उनके अनुभवों को किस तरह इस्तेमाल करती है।

आईएफएस की पोस्टिंग

संजय शुक्ला के बाद सीनियरटी की दृष्टि से सुधीर अग्रवाल पीसीसीएफ के सबसे मजबूत दावेदार थे। क्योंकि, अतुल शुक्ला अगस्त में रिटायर हो जाएंगे और उनसे पहले इसी जून में आशीष भट्ट भी। जाहिर है, टाईम कम होने से इन दोनों अधिकारियों के लिए कोई चांस बचा नहीं था। मगर श्रीनिवास राव के पीसीसीएफ बन जाने से सुधीर अग्रवाल वन बल प्रमुख बनने से चूक गए। हालांकि, पीसीसीएफ लेवल के चार सीनियर अफसरों की पोस्टिंग में सुधीर के सम्मान का सरकार ने ध्यान रखा। उन्हें वाइल्ड लाइफ का दायित्व सौंपा गया। जबकि, चर्चा यह थी कि वाइल्ड लाइफ तपेश झा को दिया जाएगा और सुधीर को वन विकास निगम भेजा जाएगा। जाहिर है, वन महकमे में पीसीसीएफ के बाद वाइल्ड लाइफ की पोस्टिंग प्रतिष्ठापूर्ण मानी जाती है।

हॉफ कौन?

1990 बैच के आईएफएस अधिकारी श्रीनिवास राव रेगुलर पीसीसीएफ बन गए मगर हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स कौन होगा, इस पर अभी संशय बना हुआ है। दरअसल, राज्यों में 2.25 लाख के शीर्ष स्केल वाले तीन पद होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स याने हॉफ। तीनों स्केल के लिए सीनियरटी देखी जाती है। और सरकार की पसंद भी। संजय शुक्ला से अतुल शुक्ला सीनियर थे मगर सीनियरिटी कम मेरिट के आधार पर संजय शुक्ला हॉफ बन गए। मगर इस समय श्रीनिवास राव से सीनियर सात अफसर हैं। समझा जाता है कि जून में आशीष भट्ट और अगस्त में अतुल शुक्ला के रिटायरमेंट के बाद पांच सीनियर आईएफएस बचेंगे। सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू। इनमें से दो का सीआर काफी वीक है। बचे तीन। तीन को सुपरसीड कर श्रीनिवास राव को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनाना आसान होगा। मगर इससे पहले उन्हें पीसीसीएफ प्रमोट करना होगा। अभी उन्हें पीसीसीएफ का ग्रेड मिला है मगर पोस्ट एडिशनल पीसीसीएफ का है। जून में आशीष भट्ट रिटायर होंगे। और एक पद संजय शुक्ला के रिटायर होने से खाली हुआ है। याने दो पद हुआ। जून के बाद सरकार डीपीसी करके अनिल साहू और श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ प्रमोट कर देगी। हो सकता है, इसके बाद उनका हॉफ का आदेश भी हो जाए। तब तक उन्हें प्रभारी रहेना होगा।

प्रचारकों का आइफोनीकरण

आरएसएस की स्थापना के बाद जब भाजपा की सरकारें नहीं होती थीं, तब प्रचारकों का जीवन भी संघर्षपूर्ण होता था। सुबह का नाश्ता किसी स्वयंसेवक के घर कर लिया तो दोपहर का भोजन किसी स्वयंसेवक और रात का भोजन किसी और के घर। इसी बहाने संपर्क हो जाता था...सामाजिक जीवन में क्या चल रहा है, यह भी पता चल जाता था। कुटुंब प्रबोधन के लिए अलग से किसी कार्यक्रम की जरूरत महसूस नहीं होती थी, क्योंकि प्रचारकों का जीवंत संपर्क होता था। आरएसएस से जो संगठन मंत्री भाजपा में आते थे, वे भी इसी तरह रहते थे। कार्यकर्ताओं के घरों में भोजन, कार्यक्रम में सीधे उपस्थिति होती थी। पार्टी में क्या चल रहा है, यह भी पता चल जाता था. संगठन मंत्री कभी कभी तो नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं के घर भोजन कर उन्हें मना लेते थे और बात बाहर आने से पहले सुलझ जाती थी। मगर छत्तीसगढ़ में 15 साल भाजपा की सरकार रहने से पार्टी से जुड़ा व्यापारी वर्ग और सक्षम हो गया तो प्रचारकों की तीमारदारी भी खूब होने लगी। आलम यह हो गया कि प्रचारकों का सामान्य कार्यकर्ताओं के घर आना जाना कम हो गया। संगठन मंत्रियों का नेटवर्क भी कमजोर हो गया। एक तरह से उस पद का आइफोनीकरण हो गया है। कार्यकर्ता भी कहने लगे हैं कि आईफोन में आम कार्यकर्ता की आवाज सुनाई नहीं देती। तभी तो पार्टी के दिग्गज नेता नंद कुमार साय की मनाने की बात दूर, इतना बड़ा विकेट उड़ गया, किसी को भनक तक नहीं लगी।

3 खोखा की देनदारी

भर्ती खुलने से सूबे के एक बड़े विश्वविद्यालय के कुलपति के बुझे चेहरे पर रौनक लौट आई है। दरअसल, बाजार से तीन खोखा उधारी लेकर तमाम विरोधों के बाद भी कुलपति बने। मगर उनकी नियुक्ति के कुछ दिन बाद ही आरक्षण का लोचा आ गया। कुलपतियों की कमाई नियुक्तियों या फिर बिल्डिंगों के निर्माण से होती है। कुलपति जी ने भर्ती की उम्मीद में उधारी लेकर फंस गए थे। एक बड़े व्यापारी ने तगादा शुरू कर दिया था। अब आरक्षण का ब्रेकर हटने के बाद उन्होंने अब राहत की सांस ली है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस की बहुप्रतीक्षित लिस्ट किधर अटक गई है?

2. ट्रांसफर पर से बैन खुलने की चर्चाओं में कोई सच्चाई है?