सोमवार, 12 अप्रैल 2021

कलेक्टरों की जिद

 संजय के दीक्षित

तरकश, 11 अप्रैल 2021
कोविड से सबसे खराब स्थिति राजधानी रायपुर, दुर्ग और राजनांदगांव की है। रायपुर में कोविड से रोज 30 से अधिक मौतें हो रही हैं। ये स्थिति एक दिन में नहीं आई। कोई 15 मार्च से रायपुर में कोरोना का ग्राफ खतरनाक ढंग से उपर आने लगा था। 25 मार्च से केजुअल्टी की संख्या भी बढ़ती जा रही थी। बहरहाल, रायपुर, दुर्ग समेत नौ जिलों ने लाॅकडाउन का ऐलान कर दिया है। मगर कुछ कलेक्टर केसेज बढ़ने के बाद भी निर्णय नहीं कर पा रहे, तो कुछ अपने जिद पर हैं…लाॅकडाउन न करने से शायद उनका नम्बर बढ़ जाए। आखिर ऐसा क्यों? रायपुर जैसी स्थिति निर्मित होने का इंतजार क्यों? ये ठीक है…लाॅकडाउन से काफी नुकसान होता है। ये समस्या का स्थायी समाधान भी नहीं है। लेकिन, चेन को ब्रेक करने का इससे फास्ट कोई तरीका भी तो नहीं है। आखिर, जान के आगे सब कुछ है। जो लोग अपने प्रिय जनों को खो रहे हैं, उनसे पूछिए….। चेम्बर आफ कामर्स और व्यापारिक संगठनों से राय लेकर प्रशासन नहीं चलता। दुर्भाग्य है कलेक्टर यही कर रहे हैं। उन्हें मध्यप्रदेश को देखना चाहिए। जबलपुर में 300 केस आने पर लाॅकडाउन की घोषणा हो गई है। यहां पांच, छह सौ केस छोटे-छोेटे जिलों में आ रहे हैं।

छोटे जिले, बड़ी मुश्किलें


बड़े और वीआईपी जिलों में कुछ होता है, तो वो जल्दी नोटिस में आ जाता है। लेकिन, छोटे जिले? कोरोना से कोई सबसे अधिक परेशान हैं तो वो हैं छत्तीसगढ़ के छोटे जिले। छोटे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाएं वैसे भी नहीं के बराबर होती है। कस्बाई जिलों में एक तो प्रायवेट अस्पताल कम होते हैं। उसमें भी आक्सीजन और वेंटीलेटर की सुविधाएं नहीं होतीं। बेमेतरा, बालोद, बलौदा बाजार, जशपुर, महासमुंद में रोज तीन सौ, चार सौ केस आएंगे तो स्वाभाविक सा सवाल है कि उन्हें वे रखेंगे कहां। बड़े जिलों पर मीडिया का फोकस रहता है। लेकिन, जशपुर का नाम किसी मीडिया में आप नहीं देख रहे होंगे। जो लोग जशपुर गए होंगे, वे समझ सकते हैं कि प्रति दिन दो सौ, तीन सौ केस को कैसे हैंडिल किया जा रहा होगा। ऐसे में, छोटे जिलों की परेशानी समझी जा सकती है।

श्मशान में लाईन

रायपुर के अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा। लोग एडवांस पैसा धरे दो-दो, तीन-तीन दिन से गिड़गिड़ा रहे हैं। उधर, श्मशान गृहों में लाईन जैसे सिचुएशन बनने लगे हैं। आंबेडकर अस्पताल की मरचुरी की क्या स्थिति है, यहां उसे ना लिखना ही बेहतर होगा। मगर अगर समय रहते युद्धस्तर पर इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो स्थिति और बिगड़ेगी। लिहाजा, अब समय आ गया है, सरकार को अपने सारे सिकरेट्री को सड़क पर उतार दें। सिकरेट्री को जिले का प्रभार देकर उनसे दिन में दो टाईम अपडेट लिया जाए।

मंत्रियों का दायित्व

महामारी के समय ये तो नहीं होना चाहिए कि मंत्री अपने घरों में बैठ जाएं। खासकर जिन जिलों में लाॅकडाउन नहीं लगा है, वहां तो वे सड़क पर उतर कर लोगों को, अपने कार्यकर्ताओं को कोविड के लिए अवेयर कर सकते थे। लेकिन, दुर्भाग्य से पिछले साल भी, और इस बार भी, किसी भी मंत्री में ऐसा नहीं दिखा। आखिर कोविड के प्रति उनका भी कुछ दायित्व बनता है। रायपुर, कोरबा, रायगढ़ जैसे कई जिलों में प्रशासनिक अफसर सड़क पर उतरे। इस तरह अगर नेता, मंत्री भी लोगों के बीच जाते तो निश्चित तौर पर उनकी अपील से फर्क पड़ता। यही हाल बीजेपी नेताओं का है। भाजपा नेता अपने घरों में बैठे-बैठे सरकार के खिलाफ बयान जारी कर विपक्षी नेता का धर्म निभा दे रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ की हालत तो बिगड़नी ही थी।

ट्रांसफर पर ब्रेक

कोविड ने कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों के बहुप्रतीक्षित ट्रांसफर पर ब्रेक मार दिया है। हालांकि, पिछले साल कोरोना के बावजूद सरकार ने 27 मई को 22 जिलों के कलेक्टरों समेत 29 आईएएस को इधर-से-उधर कर दिया था। लेकिन, इस बार चूकि कोरोना दूसरी तरह का है। पिछली बार पिक टाईम में 3800 केस आ रहे थे। इस समय 14 हजार से अधिक है। केजुअल्टी की तो कोई तुलना ही नहीं है। ऐसे में, नहीं लगता कि सरकार संकट की इस घड़ी में अफसरों को अभी बदलेगी। जिले में जाने के लिए सूटकेस तैयार कर बैठे आईएएस, आईपीएस अफसरों को लगता है, और वेट करना होगा।

कलेक्टरों पर प्रेशर

लाॅकडाउन में कलेक्टरों पर सबसे अधिक प्रेशर है। सरकार ने सिचुएशन को देखते उन्हें फ्री हैंड दे दिया है। लेकिन, जितना बीजेपी के समय व्यापारी वर्ग कलेक्टरों पर प्रेशर नहीं बना पाता था, उससे अधिक अभी हाॅवी हो गया है। रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग, सूबे के तीन बड़े शहर और व्यवसायिक केंद्र हैं। और, तीनों कलेक्टरों पर व्यवसायिक संगठनों का भारी दबाव है कि कंप्लीट लाॅकडाउन न हो। रायपुर में तो कल शाम से लाॅकडाउन प्रभावशील हुआ और दूसरे दिन भाजपा से जुड़े चेम्बर के नेता कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने चले गए। रायपुर में लाॅकडाउन की घोषणा होते समय भी चेम्बर ने काफी विरोध किया। चेम्बर के लोग अड़ गए थे कि पहले तीन दिन का लाॅकडाउन किया जाए। भारतीदासन सीनियर कलेक्टर हैं, इसलिए वे 10 दिन का लाॅकडाउन लगा दिए। वरना, जूनियर कोई अफसर होता तो तीन दिन पर मुहर लगा दिया होता। वैसे इस 10 दिन मेें पांच दिन सरकारी छुट्टी है। दो शनिवार, दो रविवार और एक आंबेडकर जयंती। इसलिए, व्यापारी मन मसोसकर मान गए। चेम्बर का अब जोर है कि लाॅकडाउन 19 अप्रैल से आगे नहीं बढ़ने दिया जाएगा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. भाजपा के किस नेता को इन दिनों राज्य सरकार का चैदहवां मंत्री कहा जा रहा है?
2. पांच राज्यों के चुनाव के बाद बीजेपी के एक नेता को राज्यपाल बनाए जाने की खबर में कितनी सच्चाई है? ?

शनिवार, 3 अप्रैल 2021

अफसर और खिलौना

 संजय के दीक्षित

तरकश, 5 अप्रैल 2021

महिला बाल विकास विभाग की एक महिला अधिकारी को हटा दिया गया। बताते हैं, उन्होंने विभाग की सप्लाई लाइन पर नजरें टेढ़ी कर दी थी। आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए 10 करोड़ रुपए से अधिक का खिलौना कांड में उन्होंने महकमे के एक रंगा को सस्पेंड करने लिख दिया था। बताते हैं, पाॅलीटेक्नीक काॅलेज के विशेषज्ञों ने खिलौने का टेस्ट कर गंभीर रिपोर्ट दी थी। बच्चों के लिए खरीदे गए खिलौने तय मानक के हिसाब से सही नहीं थे बल्कि किसी लेब का प्रमाण भी नहीं था कि खिलौने में टाॅक्सिन नहीं हैं। महिला अधिकारी ने इसके बाद न केवल रंगा को सस्पेंड करने लिखा बल्कि नए खरीदी की फाइल को रोक दी थी। इसके बाद मामला टर्न हो गया। अधिकारी ने सस्पेंड करने की नोटशीट भेजी और उसके दो दिन बाद 30 मार्च को उनका विभाग बदल गया। और, इसमें हाइट देखिए...30 को उनका ट्रांसफर हुआ और 31 मार्च को विभागीय अधिकारियों ने दोबारा खिलौने खरीदने का आर्डर दे दिया। बुलेट की रफ्तार से ये काम इसलिए किया गया क्योंकि 31 मार्च के बाद बजट लेप्स हो जाता।  

आईपीएस से तकरार

एक मंत्री की सीनियर आईपीएस से तकरार इन दिनों खूब चर्चा में है। बताते हैं, मंत्री ने वाहन के मामले पर आईपीएस से सवाल-जवाब किया। आईपीएस ने दो टूक जवाब दे दिया। इस पर मंत्री भड़क गए...बोले, ये बात करने का तरीका नहीं है, सस्पेंड हो जाओगे। आईपीएस ने भी कह दिया, ठीक है सर...सस्पेंड कर दीजिए। हालांकि, आॅल इंडिया के अफसर को सस्पेंड करने का अधिकार मंत्री को नहीं होता। सिर्फ मुख्यमंत्री के पास ये पावर है। मंत्री ने शायइ इसीलिए इसे इश्यू नहीं बनाया।

मंत्री का गुस्सा 

लगता है, मंत्री लोगों पर अब सत्ता का नशा हावी होने लगा है। तभी तो बलौदा बाजार रोड पर एक मंत्री ने कार वाले पर हाथ उठाते-उठाते रुके। बताते हैं, मंत्रीजी के सायरन के बाद भी भीड़-भाड़ की वजह से एक कार वाले ने जल्दी साइड नहीं दी। उनकी पायलट गाड़ी ने जब जोर-जोर से सायरन बजाने लगी तो कार वाले ने साइड तो दिया लेकिन, मंत्रीजी को लगा कि उसने गाली देने जैसा कुछ कहा है। उन्होंने तुरंत गाड़ी रुकवाई और नीचे उतर पड़े। उन्होंने पूछा, तूने गाली क्यों दिया। गुस्साते हुए मंत्रीजी ने हाथ उठा लिया था, तब तक पता चला कार वाला आरंग के पास उनके मामा गांव का रहने वाला है। इसके बाद समझाइस देते हुए मंत्री अपने काफिले में निकल गए। 

व्हाट एन आइडिया!

सूबे के एक मंत्री ने सेफगेम का अजब तरीका निकाला है। ट्रांसफर का काम बिलासपुर के एक अ-सरदार को सौंप दिया है तो विभागीय खरीदी-बिक्री का काम डौंडी लोहारा के एक व्यापारी संभाल रहे हैं। रायपुर में मंत्री के बंगले में व्यापारी के लिए बकायदा चेम्बर बन गया है। दरअसल, मंत्रीजी को किसी ने सलाह दी कि मंत्री बंगले से अगर जिले के अधिकारियों को फोन जाता है तो उसकी सुनवाई ज्यादा होेती है। मंत्रीजी को सलाह जमी और उन्होंने व्यापारी के लिए बंगले में चेम्बर बनवा दिया। इसके बाद जमकर काम भी हो रहा और मंत्रीजी सुरक्षित भी हैं। है न आइडिया! 

ऐसे कलेक्टर

छत्तीसगढ़ में दुर्ग कलेक्टर सर्वेश भूरे के नाम से एक वीडियो वायरल हुआ। वीडियो में कलेक्टर हाथ में लाठी लेकर बिना मास्क लगाए तफरी कर रहे लोगों की ठुकाई करते दिख रहे हैं। वीडियो देखकर यकबयक भरोसा नहीं हुआ...छत्तीसगढ़ में लाठी लेकर सड़क पर उतरने वाले ऐसे दमदार कलेक्टर कहां से आ गए। भरोसा सही निकला। वीडियो दुर्ग कलेक्टर का नहीं, मध्यप्रदेश के नागदा जिले का था। चूकि अफसर की शक्ल दुर्ग कलेक्टर से मिलती-जुलती थी, इसलिए किसी ने शरारत करते हुए भूरे के नाम से वायरल कर दिया। हालांकि,  ऐसे कलेक्टर पहले छत्तीसगढ़ के लोगों ने भी देखे हैं। उग्र प्रदर्शन होने पर कलेक्टर खुद लाठी लेकर निकल जाते थे। लेकिन, कैमरे वाला मोबाइल आने के बाद कलेक्टरों ने अब हाथ की सफाई दिखाना बंद कर दिया है।   

दमदार कलेक्टर?

ठीक है, दुर्ग कलेक्टर ने लाठी से लोगों की पिटाई नहीं की। लेकिन, उन्होंने लाॅकडाउन का सबसे पहले फैसला लेकर दमदारी तो दिखाई। मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर कलेक्टरों को जरूरत के हिसाब से लाॅकडाउन लगाने का फ्रीडम दिया। इसके अगले दिन दुर्ग कलेक्टर ने लाॅकडाउन का आदेश जारी कर दिया। हालांकि, दुर्ग कलेक्टर के आदेश के बाद आईएएस के व्हाट्सएप ग्रुप में कोहराम मच गया। सवाल उठाया गया कि कलेक्टर ने बिना रायपुर के सीनियर अफसरों को बताए कैसे लाॅकडाउन का फैसला ले लिया...बिना सूचना कलेक्टर ऐसे फैसला कैसे ले सकता है। मगर ये समझना चाहिए कि  मुख्यमंत्री के जिले का कलेक्टर बिना उपर में इत्तला किए, ऐसा निर्णय ले सकता है....ये कतई संभव नहीं है। 

कभी भी सर्जरी

असम चुनाव प्रचार से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 4 अप्रैल को रायपुर लौट रहे हैं। ब्यूरोक्रेसी में अटकलें है, मुख्यमंत्री के आने के बाद कभी भी कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों की लिस्ट निकल सकती है। दोनों कैडर के अधिकारियों के ट्रांसफर विधानसभा सत्र के पहिले से प्रतीक्षित है। इस बार कलेक्टरों में एक जिले की कलेक्टरी करने वाले अफसरों को दूसरा मौका मिल सकता है। इनमें डाॅ0 प्रियंका शुक्ला का भी नाम है। रायपुर नगर निगम कमिश्नर सौरभ कुमार को सरकार कोई और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है। हेल्थ में डायरेक्टर नीरज बंसोड़ से लेकर स्पेशल सिकरेट्री सी प्रसन्ना तक के चेंज होने की अटकलें हैं। चूकि शहला निगार हेल्थ में सिकरेट्री बन गई हैं। लिहाजा, अब वहां स्पेशल सिकरेट्री होने का कोई अर्थ नहीं निकल रहा। प्रियंका शुक्ला अगर कलेक्टर बनीं तो कार्तिकेय गोयल को एनआरएचएम का प्रभार दिया जा सकता है।    

कार्यकारी अध्यक्ष?

विधानसभा चुनाव में पार्टी की शर्मनाक पराजय के ढाई साल पूरा होने पर बीजेपी आलाकमान ने एक सर्वे कराया है। इसमें रिपोर्ट ये मिली है कि छत्तीसगढ़ में आज अगर चुनाव हो जाए, तो पार्टी को बमुश्किल ढाई दर्जन सीटें मिल पाएंगी। सर्वे के नतीजे से बीजेपी परेशान हो गई है। ढाई साल के एंटी इंकाबेसी के बाद भी पिछले चुनाव की तुलना में दसेक सीटें बढ़ पा रही है। इसको दृष्टिगत रखते पार्टी ने छत्तीसगढ़ के सांगठनिक ढांचे में बदलाव पर गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया है। बंगाल चुनाव के बाद क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश छत्तीसगढ़ आएंगे। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी भी इस महीने के अंत में छत्तीसगढ़ आ रही हैं। पता चला है, प्रदेश अध्यक्ष के साथ सूबे में एक कार्यकारी अध्यक्ष अपाइंट करने पर विचार किया जा रहा है। वो भी कुर्मी समुदाय से। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता का दायित्व प्रेमप्रकाश पाण्डेय को सौंपा जा सकता है। आने वाले समय में पार्टी और भी कई फैसले ले सकती है।    

अंत में दो सवाल आपस

1- असम चुनाव के बाद लाल बत्ती की दूसरी लिस्ट निकल जाएगी या फिर संगठन चुनाव के बाद?

2. चीफ सिकरेट्री की वीसी में आबादी की तुलना में टीकाकरण का टारगेट ज्यादा मिलने पर किस कलेक्टर ने असंतुष्टि जाहिर ही?