सोमवार, 31 मई 2021

चीफ सिकरेट्री…बिल्कुल नहीं

संजय के दीक्षित

चीफ सिकरेट्री…बिल्कुल नहीं


बीवीआर सुब्रमनियम भारत सरकार में सचिव बनने वाले छत्तीसगढ़ के पहले आईएएस बन गए। उन्हें कामर्स विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि, उनसे पहिले बीएस बासवान भी केंद्र में सिकरेट्री रहे और तीन-तीन विभाग संभाले। मगर उन्हें छत्तीसगढ़ कैडर का इसलिए नहीं समझा जाता कि वे मध्यप्रदेश के समय डेपुटेशन पर चले गए थे। नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़ कैडर मिलने के बाद बासवान कभी यहां आए नहीं। केंद्र से ही वे रीटायर हो गए। बासवान का छत्तीसगढ़ से इतना ही जुड़ाव रहा कि वे 90 के दशक में बिलासपुर के संभाग आयुक्त रहे। यद्यपि, सुब्रमनियम भी छत्तीसगढ़ में तीन साल ही रहे हैं। ज्यादातर समय वे डेपुटेशन पर रहे। फिर भी यहां होम सिकरेट्री रहने के कारण उन्हें जाना जाता है। बासवान के बारे में बहुत लोगों को मालूम नहीं होगा…मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही अजीत जोगी ने फर्स्ट चीफ सिकरेट्री के लिए बासवान से बात की थी। लेकिन, वे छत्तीसगढ़ आने तैयार नहीं हुए। बेहद ईमानदार आईएएस बासवान के बारे ये भी कहा जाता है, चीफ सिकरेट्री के ऑफर पर उन्होंने कभी मजाक में कहा था…छत्तीसगढ़ के ऐसे अफसरों का लीड करने से अच्छा है, दिल्ली में रहा जाए। तब ये चर्चा आम थी कि दिग्विजय सिंह ने मध्यप्रदेश के 98 फीसदी रिजेक्टेड अफसरों को छत्तीसगढ़ भेज दिया।

सीनियर पर जूनियर

सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के नाते आईएएस हिमशेखर गुप्ता 20 हजार करोड़ का सालाना बिजनेस करने वाले मार्कफेड के प्राधिकृत अधिकारी हैं। जबकि, उनसे सीनियर आईएएस अंकित आनंद प्रबंध निदेशक। अंकित 2006 बैच के आईएएस हैं और हिमशिखर 2007 के। मार्कफेड के एमडी को प्राधिकृत अधिकारी से अनुमोदन के लिए फ़ाइल हिमशिखर के पास भेजनी पड़ती है। जबकि, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। मार्कफेड भंग होने की स्थिति में एडिशनल चीफ सिकरेट्री लेवल के अफसर मार्कफेड के प्राधिकृत होते थे। बीकेएस रे, पी राघवन, आरपी बगाई लंबे समय तक प्राधिकृत अधिकारी रहे। एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू खुद 2004-05 के दौरान रजिस्ट्रार रहे औऱ प्रदत्त अधिकारों से उन्होंने बगाई और राघवन को प्राधिकृत अधिकारी अपॉइंट किया था। वरिष्ठतम ब्यूरोक्रेट्स को प्राधिकृत अधिकारी बनाने के पीछे मंशा यह होती थी कि प्रदेश की सबसे बड़ी कृषि और सहकारिता से जुड़ी इस संस्था की ठीक-ठाक मॉनिटरिंग हो सके। लेकिन, इस समय एमडी से जूनियर प्राधिकृत अधिकारी हो गए हैं। बता दें, चेयरमैन से भी ज्यादा पावरफुल प्राधिकृत अधिकारी होते हैं। क्योंकि चेयरमैन के साथ बोर्ड होता है। किसी फैसले पर सहमति के लिए पूरे बोर्ड की सहमति जरूरी होती है। लेकिन, बोर्ड जब भंग हो जाता है तो प्राधिकृत अधिकारी वन मैन आर्मी हो जाता है। यही वजह है, पहले प्राधिकृत अधिकारी बनने बड़ी खींचतान होती थी। बीकेएस रे और राघवन का विवाद पुराने लोगों को याद होगा। फिलहाल, अभी के सीनियर अफसरों को लगता है, प्राधिकृत अधिकारी का मतलब मालूम ही नहीं।

कलेक्टरों की लिस्ट व्हाट्सएप में

सूबे में यह पहली मर्तबा हुआ कि व्हाट्सएप में कलेक्टरों की लिस्ट ही वायरल नहीं हुई बल्कि सोशल मीडिया पर भावी कलेक्टरों का स्वागत और बधाइयों का दौर शुरू हो गया। जाहिर है, सरकार को यह नागवार गुजरा। और कुछ समय के लिए लिस्ट पर ब्रेक लगा दिया गया। मगर लाख टके का सवाल यह है कि लिस्ट के कुछ नाम लीक हुए कैसे? और अब लिस्ट कब निकलेगी? पहले सवाल का जवाब जरा कठिन टाइप है और दूसरे का जवाब सिर्फ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दे सकते हैं। कुछ दिनों के लिए लिस्ट रुकी जरूर है लेकिन, सूबे के मुखिया पर सब निर्भर करेगा…सीएम चाहेंगे तो दो दिन बाद लिस्ट निकल जायेगी और नहीं तो दो हफ्ते भी जा सकता है। ये जरूर है, भावी कलेक्टरों की नेताओं जैसी बधाइयां सरकार को अच्छा नहीं लगा।

प्रशासनिक चक्रवात

अरब सागर में ताउते और बंगाल की खाड़ी में यास के बाद अब छत्तीसगढ़ में एक चक्रवात आने की चर्चा है…वह है प्रशासनिक चक्रवात। अंदेशा है, इस चक्रवात का प्रभाव इतना व्यापक होगा कि मंत्रालय से लेकर जिलों तक में स्थिति काफी बदल जाएगी। बड़ी संख्या में कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ हटेंगे और इधर-से-उधर होंगे….मंत्रालय में भी महत्वपूर्ण उलटफेर होगी। वैसे भी, भूपेश सरकार छोटी सर्जरी की बजाए मेजर सर्जरी में ज्यादा विश्वास करती है। सरकार संभालते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 20 कलेक्टरों को बदल दिया था। और, पिछले साल 27 मई को 23 कलेक्टर समेत 28 आईएएस। इस बार भी संख्या इसके आसपास ही होगी। मगर इस बार का चेंजेस अहम इसलिए है क्योंकि, अगले महीने सरकार के ढाई बरस पूरे होने जा रहे हैं। अब काम करने के लिए डेढ़ साल बचे हैं। आखिरी साल को काउंट नहीं किया जाता क्योंकि वो इलेक्शन ईयर होता है। इस दृष्टि से भूपेश सरकार की कोशिश होगी कि फील्ड में ऐसे अफसरों की तैनाती की जाए, जो रिजल्ट दें और अगले विधानसभा चुनाव तक क्रीज पर टिक सके। इसमें दोमत नहीं कि इनमें से कुछ कलेक्टर अगला विधानसभा चुनाव कराएं। बहरहाल, कलेक्टरों, जिला पंचायत सीईओ, मंत्रालय, डायरेक्ट्रेट और बोर्ड, निगमों को मिलाकर 35 से 40 आईएएस अधिकारियों की नई पदास्थापनाएं होंगी। भले ही ये दो, तीन फेज में होगा मगर चक्रवात निश्चित तौर पर ब्यूरोक्रेसी को झाँकझोरेगा।

सीनियर को तरजीह

सरकारें किसी भी पार्टी की हो…चुनाव जीतने के बाद और चुनाव के समय राजनीतिक दृष्टि से प्रशासनिक अफसरों को फील्ड में बिठाती है लेकिन, इसके बीच की अवधि में जब सरकार को रिजल्ट देने का समय होता है, उसमें अनुभवी अफसरों को प्राथमिकता दी जाती है। मध्यप्रदेश मे दिग्विजय सिंह ने इसी फार्मूले पर दस साल प्रशासन को चलाया । बहरहाल, यहां बात छत्तीसगढ़ की हो रही है और मौका सरकार के मध्यकाल का है तो लोगों की नजरें उन अफसरों पर हैं, जो राजधानी के ज्यादा फील्ड में रिजल्ट दे पाने की क्षमता रखते हैं। पता चला है, सरकार भी इस आप्सन को बंद नहीं किया है…2007, 08, 09 बैच भी फोकस में है। दरअसल, बड़े और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिलों में सीनियर अफसरों को कलेक्टर बनाकर बिठाने से लाभ यह होता है कि डेवलपमेंट के साथ ही राजनीतिक चीजें स्मूथली चलती है। इसका एक बड़ा फायदा यह भी होता है, आसपास जिलों के जूनियर कलेक्टर उनका अनुसरण कर अपना पारफारमेंस सुधारते हैं। सरकार को इस बार यह भी ध्यान देना चाहिए कि दाल-भात में नमक चलता है मगर आफिस को दुकान बना दें, ऐसे कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों को कड़ा मैसेज देना चाहिए। क्योंकि, अब जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का समय है।

मंत्रालय में परिवर्तन

कलेक्टरों के साथ मंत्रालय में भी कुछ सिकरेट्री बदलेंगे। रायपुर कलेक्टर मंत्रालय जाएंगे तो वहां भी उन्हें कोई ठीक-ठाक विभाग मिलेगा। हालांकि, उनका बैच अभी सिकरेट्री नहीं हुआ है। मगर अंकित आनंद की तरह लगता है भारतीदासन को भी स्पेशल सिकरेट्री के तौर पर कोई स्वतंत्र प्रभार मिलेगा। राजनांदागांव कलेक्टर टीपी वर्मा सिकरेट्री हो गए हैं। वे अगर वहां से हटे तो उन्हें भी मंत्रालय में सचिव की पोस्टिंग मिलेगी। टीपी कोंडागांव, दंतेवाड़ा के बाद राजनांदगांव के कलेक्टर हैं। इसलिए, उन्हें विभाग ठीक-ठाक ही मिलेगा। मंत्रालय में कई आईएएस अफसरों के पास दो-दो, तीन-तीन विभाग हैं। इनमें से कई सिकरेट्री के विभाग भी चेंज किए जाएंगे।

नसीब के धनी

टूलकिट विवाद से राष्ट्रीय स्तर पर किसे कितना लाभ हुआ, किसको नुकसान, ये तो नहीं पता मगर छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री डाॅ0 रमन सिंह को बेशक इसका बड़ा राजनीतिक माइलेज मिला। रमन सिंह को लेकर बीजेपी के भीतर ही कई तरह की बतकही, भविष्वाणियां की जा रही थी। बीजेपी के लोग भी दावा कर रहे थे कि छत्तीसगढ़ के बीजेपी में काफी कुछ चीजें बदल जाएगी। मगर गजब का नसीब…आलम यह हुआ, पूरी पार्टी रमन के नीचे आकर खड़ी हो गई। रमन के खिलाफ एफआईआर पर सारे नेता थाने में धरना पर बैठ गए। पूर्व मंत्रियों को नाक-भौं सिकोड़कर भी मई की गरमी में थाने में प्रदर्शन करना पड़ा। वाकई किस्मत के बेहद धनी हैं रमन। 17 साल पूर्व फ्लैशबैक में जाएं, तो 2004 में कोई भी आदमी मानने के लिए तैयार नहीं था कि रमन सिंह मुख्यमंत्री के रूप में कंटिन्यू करेंगे। सबकी दलील यही थी कि प्रदेश अध्यक्ष थे, इसलिए अटलजी ने उन्हें सीएम बना दिए…छह महीने, साल भर में रमेश बैस उस कुर्सी पर काबिज हो जाएंगे। मगर रमन ने एक के बाद एक करके तीन कार्यकाल निकाल डाले।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सरकार को अमित अग्रवाल जैसे आईएएस को अब दिल्ली डेपुटेशन से बुलाकर मंत्रालय में सीनियर लेवल के वैक्यूम को दूर नहीं करना चाहिए?

2.शिवप्रकाश की सख्ती और सक्रियता से भाजपा में क्या बदलाव आएगा?

बुधवार, 26 मई 2021

एसआई, आईपीएस…एक लाईन में

 संजय के दीक्षित

तरकश, 23 मई 2021
छत्तीसगढ़ में पुलिस उपेक्षित नहीं तो बहुत अच्छी स्थिति में भी नहीं कही जा सकती। एसआई, डीएसपी का प्रमोशन लंबे समय से ड्यू है तो सुपर समझने वाले आईपीएस की स्थिति भी उनसे जुदा नहीं है। आलम यह है कि 2008 बैच के आईपीएस को आधा साल बीत गया, अभी तक सलेक्शन ग्रेड नहीं मिल पाया है। जबकि, इसमें कोई डीपीसी की जरूरत भी नहीं। गृह विभाग जब चाहे, तब इनका आदेश निकाल सकता है। इस बैच के पारुल माथुर, प्रशांत अग्रवाल, नीतू कमल, डी श्रवण, मिलना कुर्रे, कमललोचन कश्यप और केएल ध्रुव जनवरी से वेटिंग में हैं। इसी तरह 2008 बैच के डीआईजी की वेंिटंग भी क्लियर नहीं हो पा रही। रामगोपाल गर्ग, जीतेंद्र मीणा, दीपक झा, अभिषेक शांडिल्य, धमेंद्र गर्ग और बालाजी राव सोमावार इस बैच के आईपीएस हैं। रामगोपाल और अभिषेक डेपुटेशन पर सीबीआई में हैं। मगर बाकी तो हैं। वीवीआईपी पुलिस रेंज दुर्ग के आईजी विवेकानंद का भी एडीजी प्रमोशन अटका हुआ है। चलिये, पुलिस विभाग में कम-से-कम आईएएस की तरह भेदभाव नहीं है….इसमें समानता है…सब इंस्पेक्टर से लेकर सीनियर आईपीएस तक, सभी एक लाइन में खड़े हैं।

उल्टा-पुलटा


एक वो भी जमाना था, जब प्रमोटी आईपीएस को ज्यादा फ्लेक्जिबल याने लचीला समझा जाता था…उनसे कुछ भी करा लो। एसपी की पोस्टिंग में सरकारें अपने एजेंडा के तहत प्रमोटी आईपीएस को प्रायरिटी देती थीं। लेकिन, अब जमाना बदल गया है। अब डायरेक्ट आईपीएस खुद को इतना बदल लिए हैं कि बैठने कहा जाए तो लेट जाने जैसी स्थिति हो गई है। छत्तीसगढ़ के 28 में से चार-पांच को छोड़ दे ंतो अमूमन सबका यही हाल है। जाहिर है, भूमिका बदल जाने से प्रमोटी आईपीएस परेशान होंगे ही। फिलवक्त, 9 प्रमोटी अफसर ही एसपी हैं। रायपुर रेंज में दो, दुर्ग में एक, बस्तर और सरगुजा में तीन-तीन। सबसे मलाईदार रेंज बिलासपुर में एक भी नहीं।

कप्तान के दावेदार!

एसपी की बहुप्रतीक्षित लिस्ट में नए नामों को लेकर इन दिनों अटकलें बड़ी तेज हैं। ट्रांसफर में कुछ पुलिस अधीक्षकों को इधर-से-उधर किए जाएंगे। मगर हटाए जाने वाले कप्तानों की जगह कुछ नए नाम भी जुड़ेंगे। इनमें अमित कांबले, गिरिजाशंकर जायसवाल, सुजीत कुमार, लाल उमेद सिंह, सदानंद, जीतेंद्र शुक्ला और उदय किरण जैसे नाम ज्यादा चर्चा में हैं। 2009 बैच के अमित कांबले के पास अब डीआईजी बनने में सिर्फ एक साल बचा है। वे एसपीजी से पिछले साल ही छत्तीसगढ़ वापिस आ गए थे। लेकिन, उनका चांस लगा नहीं। बहरहाल, सबसे अधिक जोर बिलासपुर पर है। बिलासपुर से प्रशांत अग्रवाल को सरकार हटाएगी या नहीं, अभी कुछ तय नहीं मगर अटकलें तेज है…बालाजी सोमावार, दीपक झा, पारुल माथुर और संतोष सिंह का नाम बिलासपुर के लिए चर्चाओं में है।

प्रमोशन के साथ रिटायर

प्रमोशन के मामले में आईएफएस की स्थिति भी अलग नहीं है। एडिशन पीसीसीएफ जेएससी राव अगले महीने 30 जून को रिटायर हो जाएंगे। पोस्ट खाली होने के बाद भी वे पीसीसीएफ नहीं बन पाए। अगर दु्रत गति से भी कार्रवाई की गई तो यही होगा कि वे प्रमोशन के साथ सेवानिवृत हो जाएंगे। राव के अलावा सीसीएफ से एडिशनल पीसीसीएफ के एक पद, सीएफ से सीसीएफ के 3 पद, डीएफओ से सीएफ के छह पद और एसडीओ से आईएफएस बनने के 3 पद जनवरी से खाली है। इन सभी की डीपीसी अभी तक नहीं हो पाई है।

2013 बैच कंप्लीट?

कलेक्टरों की लिस्ट पर सबसे अधिक 2013 बैच की टकटकी लगी है। इस बैच के अभी दो आईएएस ही कलेक्टर बन पाए हैं। विनीत नंदनवार और नम्रता गांधी। पांच अभी भी क्यूं में हैं। जबकि, दीगर राज्यों में 2014 बैच कलेक्टर बन गया है। 2013 वाले तो दो-दो जिला कर लिए हैं। बहरहाल, सरकार के सामने मुश्किल यह होगी कि एक साथ एक बैच के पांच को कैसे एडजस्ट करें। वजह यह कि दूसरे बैच वाले भी तो लाइन में हैं। हो सकता है, 2012 बैच की तरह एक साथ सबको मौका देकर बाद में पारफारमेंस बेस पर कुछ को वापिस बुला ले। क्योंकि, इस बैच को अब और ज्यादा वेट करा नहीं सकती।

प्रमोटी को भी मौका

दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या 28 में से 13 हो गई थी। याने लगभग आधा। लेकिन, धीरे-धीरे यह फीगर कम होता गया। कलेक्टरों की आने वाली लिस्ट में प्रमोटी आईएएस की दावेदारी भी अहम रहेगी। आरआर में 2013 बैच अगर पूरा नहीं हुआ है तो प्रमोटी में आलम यह है कि 2008 बैच के एसएन राठौर को पिछले साल ले देकर मौका मिल पाया। 2011, 2012 बैच में बड़ी संख्या में आईएएस हैं, और जिला संभालने के काबिल भी। सरकार को उन्हें भी देखना है।

कोरोना पीड़ित विभाग

वैसे तो करोना से कोई भी विभाग अछूता नहीं रहा है। किंतु जनसम्पर्क विभाग का तो पूछिए मत! फस्र्ट वेव में आयुक्त से लेकर चपरासी तक संक्रमित रहे। तो दूसरी वेव ने कहर बरपा दिया…. जनसम्पर्क अधिकारी छेदीलाल तिवारी और रितेश कांवरे को लाख प्रयास के बाद भी बचाया नहीं जा सका। अनेक अधिकारी, कर्मचारियों ने अपने निकटतम परिजनों को खोया। आयुक्त तारन प्रकाश सिन्हा के ससुर, अपर आयुक्त जे एल दरियों के पिता, संयुक्त संचालक संतोष मौर्य के ससुर, जनसम्पर्क अधिकारी रीनू ठाकुर की मां का निधन हो गया। कोंडागांव के जनसम्पर्क अधिकारी पुजारी ने अपने माता पिता, दोनो को खो दिया। इसके अलावा भी अनेक अधिकारियों ने अपने परिजन खोए।

सिस्टम पर सवाल

ब्लैक फंगस को महामारी घोषित की जा रही है मगर राजधानी रायपुर में क्या हो रहा इसे समझिएगा। बात कर रहे हैं, सूबे के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल आंबेडकर की। इस मेडिकल काॅलेज अस्पताल में ब्लैक फंगस का कौन सा इंजेक्शन खरीदना है, इसे तय करने में वहां के जिम्मेदार डाक्टरों ने इतनी देर कर दी कि प्रायवेट अस्पतालों ने एकतरफा खरीद कर डंप कर लिया। ब्लैक फंगस के लिए एम्फोटेरेसिन बी इंजेक्शन दिया जाता है। चूकि इस बार का ब्लैक फंगस बे्रन में घुस जा रहा, इसमें लायसोसोमल प्रोपर्टी के एम्फोटेरेसिन बी ज्यादा इफेक्टिव है। अब ज्यादा इफेक्टिव है तो रेट ज्यादा होगा ही। महंगा-सस्ता के फेर में आंबेडकर के डाक्टर उलझे रहे और प्रायवेट अस्पताल वालों ने स्टाॅक उठा लिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कलेक्टरों की आने वाली लिस्ट में महिला कलेक्टरों की संख्या दो से बढ़कर तीन होगी या चार?
2. छत्तीसगढ़ के किस मंत्री के डिप्टी कलेक्टर रैंक के पीएस स्टिंग आपरेशन में धरे गए हैं?

कलेक्टरों की जंबो लिस्ट?

 

तरकश के तीर : कलेक्टरों की जंबो लिस्ट?

संजय के दीक्षित

कोरोना के दौरान ही पिछले साल 27 मई को भूपेश सरकार ने सबसे बड़ी प्रशासनिक सर्जरी करते हुए 28 में से 23 कलेक्टरों को बदल दिया था। अव्वल इस बार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के पहले से कलेक्टरों के फेरबदल की अटकलें चल रही है। इस फेर में कई कलेक्टर मनीराम के अलावा दीगर कोई काम हाथ में ले नहीं रहे…न जाने कब बोरिया-बिस्तर बांधना पड़ जाए। कोरोना में वैसे भी लोग देख ही रहे हैं…अधिकांश कलेक्टर शतरंज की गोटी की तरह उतने ही कदम आगे बढ़ा रहे हैं, जिससे उनकी कुर्सी सुरक्षित रहे। बहरहाल, ये मई महीना कलेक्टरों को बेचैन कर रखा है। पिछले मई की तरह सरकार ने कुछ वैसा ही किया तो एक लाइन से कलेक्टर साफ हो जाएंगे। सुनने में आ भी कुछ ऐसा ही रहा है। डेढ़ दर्जन से कम कलेक्टर इस बार भी नहीं बदलेंगे। ये मई अंत तक भी हो सकता है या फिर जून के फर्स्ट वीक तक भी। जब भी हो, होगा तो बड़ा चेन्ज।

एसपी भी!

कलेक्टरों के साथ-साथ एसपी लेवल पर भी जल्द ही बड़ी उठापटक होगी। एसपी की लिस्ट भले ही दो-तीन फेज में निकले, पर संख्या कलेक्टरों के बराबर ही रहेगी। एसपी में कई का लंबा कार्यकाल हो गया है। दंतेवाड़ा एसपी डॉ अभिषेक पल्लव पिछले सरकार के समय से वहां पोस्टेड हैं। नक्सल मोर्चे पर उनका काम ऐसा है कि सरकार चाहकर भी उन्हें मैदानी इलाके में नहीं ला पा रही। उधर, कुछ एसपी प्रमोट होकर डीआईजी बनने वाले हैं। इसमें बालोद जैसे जिले खाली होंगे। जगदलपुर एसपी दीपक झा भी प्रमोशन वाली सूची में हैं। लेकिन, उनके बारे में खबर है, डीआईजी बनने के बाद भी वे वहीं रहेंगे या फिर किसी बड़े जिले में एसएसपी बनकर जा सकते हैं। जांजगीर एसपी पारुल माथुर का भी काफी समय हो गया है। इस तरह कह सकते हैं, एसपी की लिस्ट भी लंबी होगी।

सिर्फ डेढ़ साल

भूपेश सरकार के पांच में से ढाई साल निकल गए हैं। बचे सिर्फ ढाई साल। इसमें से आखिरी साल को काउंट किया नहीं जाता। छत्तीसगढ़ में नवंबर में विधानसभा चुनाव होते हैं, उससे पहिले मई से प्रशासनिक तैयारी प्रारंभ हो जाती है। कहने का आशय यह है कि सरकार के पास मोटे तौर पर डेढ़ साल बचे हैं। जाहिर है, सरकार अबकी मैदान में तेज दौड़ने वाले घोड़ों पर दांव लगाना चाहेगी। कलेक्टर हो या एसपी…का चयन इस बार थोक बजाकर किया जाएगा, ताकि डेढ़ साल में सरकार की योजनाओं में वो पंख लगा सकें। संकेत है, इस बार पोस्टिंग के मापदंड कड़े होंगे।

प्रभावशाली पीएस

प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला के पास पहले से स्कूल शिक्षा, तकनीकी शिक्षा के साथ व्यापमं और माध्यमिक शिक्षा मंडल के चेयरमैन का दायित्व था। सरकार ने अब कोविड के समय स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंप दी है। आम आदमी से जुड़े ये दोनों विभाग नौकरशाही की डिक्सनरी में भले ही क्रीम विभाग नहीं माने जाते। लेकिन, बावजूद इसके, है तो अति महत्वपूर्ण। आखिर, अरबिंद केजरीवाल इन्हीं दोनों विभागों पर फोकस कर दूसरी बार सत्ता में आने में कामयाब हो गए। बहरहाल, आलोक पहले भी इन दोनों विभागों को संभाल चुके हैं। 2005 में वे स्कूल शिक्षा में रहे तो उसके बाद दो बार हेल्थ में। फ़ूड में सिकरेट्री रहते उन्होंने हफ्ते भर में पीडीएस का नेटवर्किंग बना दिया था तो इस बार हेल्थ में आते ही टीका पोर्टल। नए अफसरों को आलोक से काम के प्रति कमिटमेंट सीखनी चाहिए। पुराने मंत्रालय में लोगों को अच्छी तरह याद है, पीडीएस बनाते समय अपना चेम्बर छोड़कर एनआईसी के हॉल में कंप्यूटर वालों के बगल में बैठे रहते थे। काम और उसका रिजल्ट आखिर मिलता भी ऐसे ही है।

कलेक्टर मतलब?

कलेक्टर जिले का मुखिया और सरकार का नुमाइंदा होता है। पहले वो जो बोल देता था वो आदेश समझा जाता था। मगर अब ये पुरानी बात हो गई। बिलासपुर का एक वाकया हम आपको बताते हैं। वहां के कलेक्टर डॉ सारांश मित्तर ने सबसे बड़े सरकारी अस्पताल सिम्स की खामियों को दुरुस्त करने आईएएस नूपुर राशि पन्ना को प्रशासक नियुक्त करने का आदेश दिया। मगर 15 दिन बाद भी इसका क्रियान्वयन वे नहीं करा सके। पहले रोड़ा अटकाया गया कि उनका पावर नहीं है। उसके बाद अनुमोदन के लिए फ़ाइल स्वास्थ्य विभाग भेजी गई, और फिर आई, गई बात हो गई । उसी बिलासपुर का एक दृष्टांत और है। आरपी मंडल बिलासपुर के कलेक्टर होते थे। उन्होंने किसी बात पर पीडब्ल्यूडी के एसीई को सस्पेंड कर दिया। चूंकि, कलेक्टर एसीई को निलंबित नहीं कर सकता। सो, उन्होंने मौखिक ऐलान किया और तुरंत मुख्यमंत्री अजीत जोगी से बात कर ओके करा लिया।

रसूख पर सवाल

एक जमाना था जब पार्षद लेवल के नेता कलेक्टर के चेम्बर में जाने का साहस नहीं जुटा पाता था। और अब..? एक सत्य घटना है…कुछ महीने पहले की बात है, सूबे के एक बड़े राजनेता एक जिले के दौरे पर गए। वहां एक नेता को सर्किट हाउस में एंट्री नहीं मिल पाई। उसने कलेक्टर को फोन खड़कया। कलेक्टर वीवीआइपी ड्यूटी में थे, उन्होंने फोन पिक नहीं किया। नेता ने कलेक्टर को व्हाट्सएप दे मारा…कुछ दिन रुक जाओ, फलां महीने की फलां तारीख से आप नहीं हम तय करेंगे कि साहब से सर्किट हाउस में कौन मिलेगा, कौन नहीं। जाहिर सी बात है, छोटे राज्य के अफसरों की स्थिति वैसे भी बहुत अच्छी नहीं होती। पोस्टिंग जैसी चीजें अफसरों को इतना कंपा कर रखती है कि जिस अफसरी की वे सपने यूपीएससी का एग्जाम देते और मसूरी में ट्रेनिंग के दौरान देखते हैं, वे रीयल लाइफ में धराशायी हो जाते हैं। इसके लिए सिर्फ सिस्टम नहीं, बल्कि वे खुद ज्यादा जिम्मेदार होते हैं।

अब डॉक्टर लॉबी?

कोविड जैसी महामारी ऐसे ही आती रही तो खतरा ये है कि एक और लॉबी बेहद ताकतवर हो जाएगी, वो है मेडिकल लॉबी। देश में अभी सबसे सशक्त आईएएस लॉबी मानी जाती है। फिर भी उन पर सरकार का अंकुश इसलिए होता है कि पोस्टिंग को लेकर वे बेहद संजीदा होते हैं। मगर डॉक्टरों के साथ ऐसा है नहीं। प्राइवेट डॉक्टर का कुछ कर नहीं सकते और सरकारी डॉक्टर को कंट्रोल करने पर वो नौकरी छोड़ देंगे। कोविड के समय तो अच्छे-अच्छों की सुनवाई नहीं हो पा रही। राजधानी के एक नेताजी ने जो शेयर किया, उसकी आहट ठीक नहीं है। एक पूर्व मंत्री और एक वर्तमान मंत्री, यानी दो-दो सिफारिश पर वे डॉक्टर से मिलने गए। डॉक्टर के रूखा व्यवहार से वह दंग रह गए। कह सकते हैं, डॉक्टर भी अब मजबूत हो रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कोविड के इस दौर में आप अनुमान लगा सकते हैं कि नर्सिंग होमों को संरक्षण देने की एवज में सीएमओ प्रतिदिन कितना कमा रहे होंगे?

2. सरकार ने मंत्रालय और इंद्रावती भवन खोल दिया है मगर कितने अफसर रोज ड्यूटी पर जा रहे हैं ?

सीएम की फोटो क्यों नहीं?

 संजय के दीक्षित

तरकश 2 मई 2021. 18 प्लस को वैक्सीन लगाने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शुक्रवार शाम कैबिनेट के साथियों और कलेक्टरों के साथ वर्चुअल चर्चा की। इसमें कृषि मंत्री रविंद्र चैबे ने सुझाव दिया. 45 प्लस को वैक्सीन के सर्टिफिकेट में जब प्रधानमंत्री की फोटो आती है तो फिर राज्य अपने पैसे से वैक्सीन लगवा रहा, इसमें मुख्यमंत्री की फोटो क्यों नहीं लगनी चाहिए। सबको यह बात जमी। वर्चुअल मीटिंग में आईटी के जानकार सिकरेट्री डॉ आलोक शुक्ला भी कनेक्ट थे। उन्होंने बताया, अलग से एप्प बनाने के लिए भारत सरकार से अनुमति लेनी होगी। इस पर उन्हें कहा गया, वे देखें इसमें क्या किया जा सकता है। इसलिए, कोई आश्चर्य नहीं, छत्तीसगढ़ का अपना कोविन एप्प भी जल्द बन जाए।
उंट के मुंह में जीरा
18 प्लस में अंत्योदय को वैक्सीन लगाने सरकार के फैसले पर भले ही सवाल उठाए जा रहे मगर वास्तविकता यह है कि अभी जितना वैक्सीन आया है, उसमें अंत्योदय को भी लंबा वेट करना होगा। अभी डेढ लाख डोज आए हैं। सूबे मेें 14 लाख अंत्योदय परिवार हैं। एक घर से तीन सदस्य भी जोड़ें तो 42 लाख होते हैं। और वैक्सीन है मात्र डेढ लाख। फिर भी अंत्योदय को खोजने मे कलेक्टरों को पसीना आ गया। कल देर शाम सरकार ने अंत्योदय का फैसला लिया और कलेक्टरों के पास कुछ घंटे का वक्त था। कुछ जिलोें मेें दो-चार से महज बोहनी हो सकी। रायपुर मेें जरूर बीपीएल के साथ ही बैंक कर्मियों को भी टीके लग गए। पता चला है, आंध्र से संबंधित एक बैंक कर्मियों को स्वास्थ्य विभाग ने चुपके से टीका लगा दिया। विधायक शकुंतला साहू ने जिस तरह सोशल मीडिया में वैक्सीन लेते फोटो पोस्ट की थी, बैंक कर्मियों ने भी वही चूक की। और भंडाफोड़ हो गया।


कलेक्टर बोले तो…

सरकार पाॅलिसी बनाती है और कलेक्टरों पर उसके क्रियान्वयन का जिम्मा होता है। कोविड की दौर में कलेक्टरों की यह भूमिका दिखाई नहीं पड़ रही। कई कलेक्टरों की प्रायवेट अस्पताल वाले सुन नहीं रहे। जबकि, कलेक्टर जिले के दंडाधिकारी भी होते हैं। आपदा के समय उन्हेें और पावर मिल जाता है। हालांकि, दुर्ग कलेक्टर ने बीएसपी के सेक्टर-9 अस्पताल को बता दिया कि डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट क्या होता है। अस्पताल प्रबंधन 50 बेड से अधिक बढाने के लिए तैयार नहीं था। लेकिन, कलेक्टर सर्वेश भूरे ने बंद कमरे में बुलाया और अस्पताल प्रबंधन ने 50 से बढ़ाकर 600 बेड कर दिया।

तीसरी पारी…

राजस्थान समेत कई राज्य सरकारों ने एमबीबीएस करने के बाद आईएएस बने अफसरों को कोरोना को कंट्रोल करने में झोंक दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी डॉ. आलोक शुक्ला को हेल्थ सिकरेट्री का अतिरिक्त जिम्मा सौंपा है। आलोक देश के पहले अफसर होंगे, जिन्हें तीसरी बार हेल्थ सिकरेट्री बनने का अवसर मिला है। इससे पहले रमन सिंह की पहली और तीसरी पारी में हेल्थ सिकरेट्री रहे थे। आलोक काबिल और रिजल्ट देने वाले अफसर माने जाते हैं। फूड सिकरेट्री रहने के दौरान उनका पीडीएस देश का मॉडल बन गया। इसके लिए उन्हें पीएम अवार्ड मिला। कायदे से कुछ और डाक्टर आईएएस को हेल्थ मेें लेना चाहिए।
लॉकडाउन में मछली
मनेन्द्रगढ़ के विधायक डॉ. विनय जायसवाल के गले में मछली का कांटा फंस गया। वहां के डॉक्टरों ने काफी कोशिश की। मगर बात बनी नहीं। उल्टे विनय को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। उनकी हालत ऐसी बिगड़ने लगी कि सरकारी हेलीकॉप्टर भेजने फोन लगाया गया। राजधानी के पुलिस लाइन हैंगर से हेलीकॉप्टर टेकऑफ करने वाला था कि खबर आई डॉक्टरों ने कांटा निकाल दिया है। यह खबर जब वायरल हुई तो विडंबना देखिये, विनय से सहानुभूति व्यक्त करने की बजाय राजधानी में कांग्रेस के लोगों का पहला सवाल था, लॉकडाउन में विनय को मछली मिली कहाँ से? सवाल गलत भी नहीं था। लॉकडाउन में सब लॉक हो गया है…। ऐसे में, विनय मछली उड़ाएं…मन ललचाएगा ही।

अंत में दो सवाल आपसे

1. रैमडेसिविर जब जरूरी नहीं है तो फिर इसके लिए मारामारी क्यों हो रही?
2. कोविड केे समय किस कलेक्टर के पारफारमेंस से सरकार खुश नहीं है?

प्रभारी सचिवों का औचित्य?

 संजय के दीक्षित

तरकश, 25 अप्रैल 2021. बेकाबू हो रही कोरोना में जिलों के प्रभारी सचिवों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। छोटे-छोटे जिलों का हाल-बेहाल हो रहा…कलेक्टर संसाधनों के लिए मशक्कत कर रहे हैं मगर सचिवों का कोई पता नहीं है। शायद ही किसी सचिव ने किसी कलेक्टर को फोन लगाकर क्रायसिस के बारे में पूछा होगा। एक कलेक्टर ने बताया…उनके प्रभारी सचिव पिछले साल अक्टूबर में फोन लगाए थे, उसके बाद फिर कभी नहीं। जबकि, कोआर्डिनेशन के लिए सरकार ने सभी जिलों में प्रभारी सचिव बना रखे हैं। इसके तहत मंत्रालय के सचिवों को एक-एक, दो-दो जिलोें का प्रभार दिया गया है। पिछली सरकारें भी प्रभारी सचिवों को जिलों में महीने में एक बार विजिट करने के साथ ही हर तीन महीने में एक बार संबंधित जिलों में रात्रि विश्राम करने का आदेश कई बार दिया था। हुआ क्या…? एक भी सचिव अपने जिले में नहीं रुके। भूपेश बघेल सरकार में पिछले साल चीफ सिकरेट्री आरपी मंडल ने सचिवों को हर महीने जिलों का दौरा कर रिपोर्ट मांगी थी। सरकार को पूछना चाहिए कि कितने सचिवों ने जिलों का दौरा किया और कब-कब रिपोर्ट सौंपी…कोरोना काल में उन्होंने कलेक्टरों को किस तरह मार्गदर्शन दे रहे हैं। फिर प्रभारी सचिवों का औचित्य सामने आ जाएगा।


ऐसा रिस्पांस

रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति के लिए सरकार ने दो आईएएस और एक आईएफएस समेत तीन अधिकारियों की ड्यूटी लगाई है। इनमें से दो अधिकारी मुंबई में कैम्प कर रहे ताकि जिलों को आसानी से इंजेक्शन की सप्लाई हो सकें। लेकिन हो क्या रहा….राजनांदगांव के एनएचएम के एक अधिकारी ने एक अफसर को मुंबई फोन लगाया तो अफसर ने मदद की बजाए चार कंपनियों के नम्बर दे दिए…लो इनसे बात कर लो। अब जब कंपनी से सीधे बात कर इंजेक्शन मंगाना है तो फिर इन अधिकारियों की नियुक्ति क्यों?

एयर एंबुलेंस…ढाई गुना रेट

कोरोना महामारी में कोई भी दुखियों की जेब काटने का मौका नहीं छोड़ रहा। अस्पतालों की तो पूछिए मत! कोरोना से बिलबिलाते मरीजों में इतनी ताकत कहां होती है कि डिस्चार्ज होते समय अस्पताल वालों से हिसाब पूछ पाए। उसकी कोशिश होती है किसी तरह अपने घर पहुंच जाए। हमारा इशारा अनाप-शनाप बिलिंग की ओर है। उधर, सामान्य मरीजों का दिल्ली, मंुबई, चेन्नई के लिए एयर एंबुलेंस का रेट पांच से छह लाख है, वहीं कोरोना मरीजों से 14 से 15 लाख लिए जा रहे हैं। रायपुर, बिलासपुर से लगभग हर रोज एक मरीज एयर लिफ्ट हो रहे हैं। बिलासपुर से रायपुर के लिए एंबुलेंस का किराया 10 से 12 हजार देना पड़ रहा। राजधानी में एक गरीब आदमी आॅटो से एम्स गया। वहां कहा गया काली बाड़ी से कोरोना का टेस्ट कराकर लाओ। एम्स से काली बाड़ी आने और फिर वहां से एम्स जाने का आॅटो वाले ने दो हजार रुपए झटक लिया। याने उपर से नीचे वाले….सभी आपदा में अवसर ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

एम्स में एप्रोच नहीं

एम्स में पिछले साल कोरोना में वीआईपी से लेकर छुटभैये तक बेड का जुगाड़ कर लिया था। लेकिन, इस बार एम्स सख्त हो गया है। बताते हैं, पिछले साल एम्स में मची अफरातफरी को देखते वहां के डाक्टरों ने विरोध कर दिया था। दरअसल, पिछले साल मरीजों के क्राउड के चलते एम्स का सिस्टम ध्वस्त हो गया था। सबसे अधिक मौतें भी वहीं हुई थी। उसकी वजह यह थी कि वहां क्षमता से दस गुना मरीज हो गए थे। हर आदमी चाहता था कि किसी तरह एम्स में इंट्री मिल जाए। लेकिन, एम्स अबकी सतर्क है। वहां सिर्फ कोरोना के गंभीर मरीजों को ही भर्ती हो पा रही। वो भी रेफेरल केसेज। बीजेपी के नेताओं से जरूर एम्स वाले कुछ असहज महसूस कर रहे।

10 आईएएस, एक आईएफएस

कोरोना महामारी के मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग फिहलाल सरकार के टाॅप प्रायरिटी पर है। तभी सरकार इस महकमे को लगातार मजबूत कर रही। हेल्थ में आईएएस अफसरों की संख्या अब तक 10 हो चुकी है। दो आईएएस और एक आईएफएस को सरकार ने इस विभाग की मदद करने में लगाया है। हेल्थ में इस समय रेणु पिल्ले एसीएस, शहला निगार सिकरेट्री, सीआर प्रसन्ना स्पेशल सिकरेट्री, नीरज बंसोड़ डायरेक्टर हेल्थ, डाॅ0 प्रियंका शुक्ला ज्वाइंट सिकरेट्री और एमडी एनएचएम, कार्तिकेय गोयल एमडी सीजीएमएससी, केडी कुंजाम कंट्रोलर ड्रग, डी. राहुल वेंकट ओएसडी हेल्थ के साथ आईएएस हिमशिखर गुप्ता, आईएएस भोस्कर विलास संदीपन और आईएफएस अरुण प्रसाद को रैमडेसिविर की सप्लाई का जिम्मा सौंपा गया है।

महामारी में पब्लिसिटी

कुछ अफसर इस विपदा के समय में भी पब्लिसिटी को ध्यान में रखते काम कर रहे हैं। ये उन सैकड़ों फ्रंटलाइन वारियर्स का अपमान होगा, जो सिर पर कफन बांध कर सुबह से लेकर देर रात तक ड्यूटी बजा रहे हैं। वास्तव में सैल्यूट के लायक अस्पताल के नर्स और छोटे स्टाफ हैं, जो मामूली वेतन में भी जान जोखिम में डालकर कोरोना वार्डों में सेवाएं दे रहे। कैमरे के लिए दो मिनट सड़क पर खड़े होकर वाहवाही बटोरने वाली महिला आफिसर कतई नहीं….फोटो में इंटरेस्ट रखने वाले कलेक्टर भी नहीं।

अंत में दो सवाल आपसे

इस खबर में कितनी सत्यता है कि कोरोना से संबंधित संसाधनों की आपूर्ति में प्रमोटी कलेक्टरों से भेदभाव किए जा रहे हैं?
दवाइयों की मारामारी को रोकने कुछ समय के लिए किसी दबंग सिकरेट्री या प्रिंसिपल सिकरेट्री को ड्रग कंट्रोलर का दायित्व नहीं सौंपा जा सकता?