शनिवार, 3 जून 2023

DGP पोस्टिंग की पेंच

तरकशः 4 जून 2023

संजय के. दीक्षित

DGP पोस्टिंग की पेंच

डीजीपी अशोक जुनेजा की पोस्टिंग को लेकर इस समय कई तरह की बातें हो रही हैं....हर आदमी अपने हिसाब से ओपिनियन दे रहा...। दरअसल, जुनेजा डीजी पुलिस नहीं होते तो इस महीने 30 को रिटायर हो जाते। जून 63 का उनका बर्थ है। यानी ये महीना उनका लास्ट होता। मगर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक डीजीपी समेत कुछ पोस्टिंग को दो साल के लिए निर्धारित किया गया है। नियमानुसार राज्य सरकार ने केंद्र को डीजीपी के लिए पैनल भेजा था। जुनेजा के नाम पर केंद्र की सहमति मिलने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 अगस्त 2022 को डीजीपी पोस्ट किया। दो साल की पोस्टिंग के अनुसार वे 5 अगस्त 2024 को रिटायर होंगे। हालांकि, जुनेजा इससे पहिले अक्टूबर 2021 में डीएम अवस्थी को रिप्लेस कर डीजीपी बन गए थे। केंद्र से उनके नाम की मंजूरी अगस्त 2022 में मिली। इस वजह से उन्हें 11 महीने बोनस में एक्सट्रा मिल गया। अगर अक्टूबर 2021 में ही राज्य सरकार के पेनल को मिनिस्ट्री ऑफ होम से अनुमोदन मिल गया होता तो अक्टूबर 2023 में वे रिटायर हो जाते। यानी विधानसभा चुनाव के जस्ट पहले। लेट में पैनल के अनुमोदन से 11 महीने का कार्यकाल उनका बढ़ गया। मगर अभी भी नियमों की व्याख्या करने वाले चूक नहीं रहे हैं। अलबत्ता, जानकारों का कहना है, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के बिहाफ में एक बार क्रायटेरिया तय कर दिया है तो सर्विस का एक्सटेंशन अंडरस्टूड है। सेवावृद्धि की कोई समस्या नहीं आएगी। ये जरूर होगा कि राज्य सरकार ने जुनेजा को जून में रिटायर करने का जनवरी में जो आदेश निकाला था, राज्य सरकार को उसे विड्रॉ करना होगा। और, सरकार के लिए ये मामूली काम है। दो लाइन का एक नोटशीट ही तो चलाना है।

पुलिस के देव

विधानसभा, लोकसभा चुनाव कराने के बाद अशोक जुनेजा अगले साल अगस्त में रिटायर होंगे तो कोई देव छत्तीसगढ़ पुलिस का मुखिया बनेगा। वो या तो पवनदेव होंगे या फिर अरुण देव। दरअसल, जुनेजा के बाद सीनियरिटी में 90 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा आते हैं। मगर अगले साल यानी जनवरी 2024 में वे रिटायर हो जाएंगे। 91 बैच के लांग कुमेर नागालैंड जाकर वहां रिटायर हो चुके हैं। कुमेर के बाद 92 बैच में पवन देव और अरुण देव का नंबर आता है। ऐसे में, सरकार के पास ये दो ही विकल्प होंगे। सरकार को इन्हीं में से किसी एक को पुलिस का देव बनाना होगा। बता दें, दोनों का टेन्योर भी ठीक-ठाक होगा। पवन देव का रिटायरमेंट जुलाई 2028 है तो अरुण देव का जुलाई 2027। डीजीपी बनने पर पवन का चार साल और अरुण का तीन साल का कार्यकाल रहेगा।

जीपी की किस्मत

एडीजीपी लेवल के आईपीएस जीपी सिंह का कैरियर अगर डिरेल नहीं हुआ होता तो पवनदेव और अरुण देव से दो साल जूनियर होने के बाद भी डीजीपी के लिए वे दोनों को कड़ी टक्कर देते। क्योंकि डीजीपी को जिस तरह प्रैक्टिकल होना चाहिए, वे सारी खूबियां जीपी में थीं। मगर वक्त का क्या कहा जा सकता है। आदमी न तो बलवान होता है और न कमजोर। वक्त बलवान होता है, और कमजोर भी। आखिर, हम अपने आसपास लोगों को फर्श से अर्श पर जाते देखते ही हैं और अर्श से फर्श पर।

वेटिंग एसीएस

आमतौर पर सीट वैकेंट है तो ब्यूरोक्रेसी में टाईम से पहले प्रमोशन हो जाते हैं। ये सभी राज्यों में होता है और छत्तीसगढ़ में भी अनेक बार ऐसा हो चुका है। इसी सरकार में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू टाईम से काफी पहले एसीएस प्रमोट हो गए थे। मगर 1994 बैच का इस मामले में बैड लक है। एसीएस के चार पद खाली होने के बाद भी जून आ गया मगर डीपीसी की कोई कवायद नहीं है। जबकि, इस बैच के आईएएस मनोज पिंगुआ खुद आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट हैं। इस बैच के बाकी तीन अफसर ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर और विकास शील डेपुटेशन पर हैं। और दिक्कत यही है कि छत्तीसगढ़ में सिर्फ मनोज पिंगुआ हैं। अगर बाकी तीन भी यहीं होते तो चारों मिलकर प्रेशर बना लेते। छत्तीसगढ़ में इस समय एसीएस लेवल के तीन अफसर हैं। इनमें से अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री हैं। उनके अलावा रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू। किसी समय एसीएस के छह-छह, सात-सात अफसर होते थे। पोस्ट से ज्यादा भी। डीओपीटी से स्पेशल केस में अनुमति ले ली जाती थी। मगर अब शीर्ष स्तर पर अधिकारी ही नहीं हैं। 2002 बैच तक ऐसा ही चलेगा। 2003 बैच से अफसरों की संख्या बढ़नी शरू होगी। यानी 2033 के बाद राज्य में सारे लेवल पर पर्याप्त अफसर हो जाएंगे।

नेताजी की परेशानी

सियासत में कार्यकर्ताओं और समर्थकों की बड़ी भूमिका होती है। इसी से सियासी नेताओं का वजन और प्रभाव आंका जाता है। मगर कई बार वही समर्थक मुसीबत भी खड़ी कर देते हैं। बड़बोले समर्थकों की वजह से एक नेताजी ट्रेक से लगभग बाहर हो गए। नेताजी के अधिकांश समर्थकों में ये बताने की होड़ मची थी कि बस...अच्छे दिन आने ही वाले हैं। इसी तरह के बड़बोले समर्थक से एक नेताजी और परेशान हैं। समर्थकों ने व्हाट्सएप ग्रुपों में खुशी का इजहार भी शुरू कर दिया है। एक समर्थक ने ब्रॉडकास्ट ग्रुप में लिख दिया, बात हो गई है, बस कुछ दिनों की ही बात है...। एक समर्थक को नेताजी ने हाल ही में हड़काया भी। मगर चापलूस समर्थकों को इससे क्या वास्ता कि नौ मन तेल होगा कि नहीं...उन्हें अपनी दुकान चमकानी है।

अनुज या शिवरतन?

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सुपर स्टार अनुज शर्मा, रिटायर आईएएस आरपीएस त्यागी और राधेश्याम बारले ने बीजेपी ज्वाईन किया है। अनुज के भाजपा प्रवेश से भाटापारा विधायक शिवरतन शर्मा की धड़कनें बढ़ गई होंगी। असल में, अनुज 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाटापारा सीट से चुनाव लड़ने का मूड बना चुके थे। उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास भी किया, मगर कामयबी मिल नहीं पाई। अब चुनाव से पहले इस बार उन्होंने विधिवत बीजेपी प्रवेश कर लिया है तो जाहिर है वहां के पार्टी के विधायक शिवरतन का तनाव तो बढ़ेगा। हालांकि, शिवरतन बीजेपी के काफी एक्टिव विधायक हैं। लिहाजा, उनका टिकिट काटना आसान नहीं होगा। मगर अनुज की लोकप्रियता कैश करने के लिए बीजेपी जब तक उन्हें मैदान में नहीं उतारेगी तब तक पूरा फायदा मिलेगा नहीं। इसलिए, अनुज चुनाव लड़ेंगे मगर सीट भाटापारा होगी या कोई और, यह वक्त बताएगा। उधर, आरपीएस त्यागी पिछले चुनाव के दौरान न केवल कांग्रेस में शामिल हुए थे बल्कि कोरबा या कटघोरा से टिकिट के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने वहां दौरे भी प्रारंभ कर दिए थे। मगर टिकिट को लेकर बात बन नहीं पाई। अब वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं तो टिकिट मिले न मिले, चुनाव लड़ने की उनकी दबी हुई इच्छा बाहर आएगी ही। इनमें से बारले का अहिवारा से टिकिट मिलने का दावा जरूर मजबूत प्रतीत हो रहा है। क्योंकि, अहिवारा में बीजेपी के पास कोई मजबूत विकल्प नहीं है। ऐसे में, बारले को पार्टी चुनाव में आजमा सकती है।

ब्राम्हण दावेदार!

सियासी तौर पर बिलासपुर बाकी जिलों से ज्यादा संजीदा है। खासतौर पर कांग्रेस के लिए। यहां पहले से ही टिकिट के दावेदारों की फौज रही है। अब तो रुलिंग पाटी है। कांग्रेस के सबसे अधिक ब्राम्हण दावेदार यहीं से हैं। बिलासपुर से शैलेष पाण्डेय सीटिंग एमएलए हैं। कांग्रेस के भीतरघात के चलते राजेंद्र शुक्ला बिल्हा से पिछला चुनाव हार गए थे। लिहाजा, इस बार उनकी दावेदारी मजबूत समझी जा रही। बेलतरा से एडवाइजर टू सीएम प्रदीप शर्मा का नाम प्रमुखता से चल रहा है। तखतपुर से रश्मि सिंह कांग्रेस पार्टी की विधायक हैं। ब्राम्हण बिरादरी से उनका जुड़ाव जाहिर है। यानी बिलासपुर जिले की छह में से चार सीटों पर ब्राम्हण दावेदार। जनरल में सिर्फ कोटा बचा है। मस्तूरी अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। बहरहाल, टिकिट तय करते समय कांग्रेस के सामने बड़ी उलझन रहेगी कि एक ही जिले में चार-चार ब्राम्हणों को टिकिट कैसे दिया जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक ऐसे मंत्रीजी का नाम बताइये, जो पिछले तीन साल में एक बार भी मंत्रालय नहीं गए?

2. सोशल मीडिया के आरोपों को लेकर दुर्ग एसपी को हटाया गया तो क्या इसके लिए पीएचक्यू के अफसर जिम्मेदार नहीं हैं...एज ए सीनियर उन्हें टोका क्यों नहीं?


शनिवार, 27 मई 2023

3 पूर्व IAS अबकी चुनावी मैदान में!

 तरकशः 28 मई 2023

संजय के. दीक्षित

3 पूर्व IAS अबकी चुनावी मैदान में!

प्रोफेसर से आईएएस बने नीलकंठ टेकाम अब पॉलिटिशियन बनने जा रहे हैं। उन्होंने आईएएस से वीआरएस लेने के लिए अप्लाई कर दिया है। टेकाम ने अभी ये साफ नहीं किया है कि कांग्रेस के साथ सियासी पारी शुरू करेंगे या बीजेपी के साथ। मगर अटकलों का बाजार बीजेपी को लेकर ज्यादा है। 2018 के विस चुनाव के दौरान भी उनके बीजेपी से चुनाव लड़ने की चर्चा बड़ी तेज थी। मगर मामला कुछ जमा नहीं। टेकाम के करीबी लोगों का कहना है, केशकाल विधानसभा से उन्होंने चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। कोंडागांव में वे करीब पौने तीन साल कलेक्टर भी रहे हैं। केशकाल कोंडागांव में आता है। सो, केशकाल में उन्हें पहचान का संकट नहीं आएगा। बहरहाल, इस बार तीन पूर्व आईएएस अधिकारियों के चुनावी मैदान में किस्मत आजमाना तय है। कांग्रेस से एसएस सोरी अभी कांकेर से विधायक हैं। बीजेपी से ओपी चौधरी चंद्रपुर या रायगढ़ से चुनाव लड़ेंगे। और अब नीलकंठ टेकाम भी वार्म अप हो रहे। उधर, पूर्व आईएएस जीएस मिश्रा भी टिकिट की दौड़ में हैं। देखना है, उन्हें इसमें कामयबी मिलती है या नहीं।

लिस्ट अच्छी मगर...

एसपी की बहुप्रतीक्षित लिस्ट आखिरकार जारी हो गई। सरकार ने 12 जिलों के पुलिस अधीक्षकों का बदल दिया। इनमें कुछ का कद और प्रभाव बढ़ा, तो कुछ का महत्व कम हुआ। कांकेर एसपी शलभ सिनहा की रेटिंग अच्छी है, इसलिए वीवीआईपी जिला दुर्ग के लिए उनका नाम तय था। और वही हुआ। अभिषेक पल्लव का नाम रायपुर के लिए चर्चा में था। मगर रायपुर एसपी प्रशांत अग्रवाल को सरकार ने फिलहाल चेंज करना मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में, अभिषेक को दुर्ग से कवर्धा जाना पड़ा। लिस्ट में बेमेतरा के एसपी आईके ऐलेसेला को एसपी में कंटीन्यू करते हुए सूरजपुर भेजने से आईपीएस बिरादरी में भौंचक है। बेमेतरा में छत्तीसगढ़ की पहली सांप्रदायिक हिंसा हुई। तीन लोगों को जान गंवानी पड़ी। ऐलेसेला को बेमेतरा से भी ठीक-ठाक जिला सूरजपुर भेजकर गृह विभाग क्या संदेश देना चाह रहा...किसी को समझ में नहीं आ रहा। इसी तरह दंतेवाड़ा जैसे जिले से सिद्धार्थ तिवारी को मनेंद्रगढ़ जैसे नए जिले की कमान सौंपना भी थोड़ा चौंकाया। सुकमा में लंबे समय तक काम करने के बाद सरकार ने सुनील शर्मा को सरगुजा जैसे बड़े जिले की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि, इलेक्शन ईयर में सरगुजा में उन्हें कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। रिफाइनरी और रेत को लेकर पुलिस आरोपों के घेरे में है। बलरामपुर से मोहित गर्ग का हटना तय माना जा रहा था। विधायक बृहस्पति सिंह उनसे काफी नाराज थे। विधायक ने एसपी को बर्खास्त करने की मांग करते पूरे शहर में पोस्टर लगवा दिए थे। इसलिए, सरकार ने मोहित को बटालियन भेज दिया। उनकी जगह कवर्धा से डॉ0 लाल उम्मेद सिंह को बलरामपुर भेजा गया है। लाल उम्मेद बैलेंस करके काम करने वाले अफसर हैं। सरकार को उम्मेद से उम्मीद होगी कि वे बृहस्पति की उम्मीदों पर खरे उतरें।

पीएससी चेयरमैन की विदाई

पीएससी चेयरमैन टामन सिंह सोनवानी इस साल सितंबर में रिटायर हो जाएंगे। सितंबर में उनका 62 कंप्लीट हो जाएगा। याने उनके पास महज चार महीने का वक्त बचा है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के ये माटी पुत्र छत्तीसगढ़ के मानव संसाधन को विकसित करने के लिए दिन-रात एक कर दिए हैं। उनकी कोशिश है कि जाते-जाते पीएससी का एक बैच और क्लियर करके जाएं। जाहिर है, उन्होंने प्रिलिम्स का रिजल्ट घोषित करने के बाद महीने भर के कम समय में मुख्य परीक्षा का डेट निकाल दिया। संकेत हैं, रिटायरमेंट से पहले इंटरव्यू करके कई सारे डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी की भर्ती कर जाएंगे। सोशल मीडिया में लोग उन्हें नाहक बदनाम कर हैं...भाई-भतीजावाद का आरोप लगा रहे हैं। सोशल मीडिया में लिखा जा रहा...नाते-रिश्तेदारों जो बच गए होंगे, वो भी इस बार वैतरणी पार कर जाएंगे। मगर ये बेकार की बात है। विरोध करने वालों को समझना चाहिए कि भर्ती किसी की भी हो...हैं तो सभी छत्तीसगढ़िया। फिर जरा सोचिए...आदमी अपने परिवार का ध्यान नहीं रखेगा तो कौन रखेगा? और बीजेपी के समय जो पीएससी में हुआ, वो कम हुआ? ये तो उससे कम ही है।

चेयरमैन के दावेदार

टामन सिंह सोनवानी के रिटायरमेंट के बाद पीएससी चेयरमैन के लिए सरकार के पास बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है। सरकार अगर किसी आईएएस को लाना चाहेगी तो तीन ही ऐसे अफसर हैं, जो इस एक साल में रिटायर हो रहे हैं। इनमें पहला नाम राजभवन के सिकरेट्री अमृत खलको का है। वे इसी साल जुलाई में रिटायर हो जाएंगे। खलको को सरकार अगर पीएससी में बिठाना चाहेगी तो इसके लिए दो महीने वेट करना होगा। क्योंकि, सोनवानी सितंबर में रिटायर होंगे। खलको के बेटा और बेटी, दोनों इस बार डिप्टी कलेक्टर चुने गए हैं। सो खलको के चेयरमैन बनाने के दो फायदे होंगे। एक तो चुनाव के साल में आदिवासी होने का लाभ और दूसरा चूकि उनके दोनों बच्चे डीसी बन गए हैं सो, बाल-बच्चों को उपकृत करने वाले आरोप उन पर नहीं लग पाएंगे। इसके बाद दूसरा नाम होगा बिलासपुर और सरगुजा के कमिश्नर डॉ. संजय अलंग का। वे अगले साल जुलाई में रिटायरमेंट होंगे। सरकार अगर संजय को चेयरमैन बनाना चाहेगी तो इसके लिए उन्हें नौ महीने पहले आईएएस से वीआरएस लेना पड़ेगा। अलंग के बाद तीसरा नाम है रीता शांडिल्य का। वे अगले साल सितंबर में रिटायर होंगी। इसके लिए उन्हेंं पूरे एक साल पहले वीआरएस लेना पड़ेगा। हालांकि, इससे पहले कई आईएएस वीआरएस लेकर पीएससी चेयरमैन बने है। केएम पिस्दा रिटायरमेंट से करीब साल भर पहले वीआरएस लेकर पीएससी चेयरमैन बने थे। उसी तरह टामन सिंह सोनवानी भी रिटायरमेंट से साल भर पहले वीआरएस लेकर पीएससी चेयरमैन बनना बेहतर समझे थे। सोनवानी रुटीन में सितंबर 2021 में रिटायर हो गए होते। पीएससी चेयरमैन का एज 62 साल है, इसलिए उन्हेंं तीन साल चेयरमैन बनने का मौका मिल गया। रिटायरमेंट के बाद अगर वे चेयरमैन बने होते तो दो साल ही इस पोस्ट पर रहना पड़ता। बहरहाल, नए चेयरमैन के लिए संभावना का पलड़ा अमृत खलको की तरफ झुका दिख रहा है।

सीएस का प्रभार

चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन पारिवारिक कारणों से 16 दिन के अवकाश पर हैं। उन्होंने बकायदा छुट्टी ली है। एसीएस सुब्रत साहू को उनका प्रभार दिया गया है। इसमें दो बातें हैं। पहली, आमतौर पर सीएस अगर छुट्टी पर जाते हैं तो प्रभार देना मुनासिब नहीं समझते। इस मायने में अमिताभ जैन थोड़ा अलग हैं। और दूसरी, सुब्रत साहू को सेकेंड टाईम सीएस का प्रभार मिला है। पहली बार अमिताभ को जब कोविड हुआ था, तब सुब्रत 25 दिन सीएस के प्रभार में रहे। और अब 17 दिन। चलिए, सुब्रत इसी के जरिये वार्म अप हो रहे हैं। अमिताभ जैन के बाद आखिर कमान उन्हें ही संभालना है। अलबत्ता, रेणु पिल्ले उनसे सीनियर हैं। मगर सरकार दांव सुब्रत पर ही लगाना चाहेगी। हालांकि, अमिताभ का अभी करीब दो साल का टेन्योर बचा है। जून 2025 तक उनका टाईम है। इससे ये न समझा जाए कि 2025 में ही सुब्रत को मौका मिलेगा। सुब्रत को जिस दिन सीएस बनना होगा, उस रोज उनकी ताजपोशी हो जाएगी। सीएस, डीजीपी बनना माथे पर लिखा होता है। ऐसा नहीं होता तो जरा सोचिए! सुनील कुजूर सीएस और एएन उपध्याय कभी डीजीपी बन पाते?

आईएएस की लिस्ट

इस महीने डायरेक्टर इंडस्ट्रीज अनिल टुटेजा रिटायर हो जाएंगे। अनिल 2004 बैच के आईएएस हैं। 31 मई को उनके रिटायर होने पर सरकार को उनकी जगह किसी को डायरेक्टर पोस्ट करना होगा। आबकारी आयुक्त और आबकारी सचिव निरंजन दास लंबी छुट्टी पर हैं। सचिव को डे-टू-डे की फाइल नहीं जाती और फिर सचिव के लिंक अफसर होते हैं। सो, वे अगर छुट्टी पर जाते हैं, तो काम प्रभावित नहीं होता। मगर कमिश्नर का काम महत्वपूर्ण होता है। वे एचओडी होते हैं। वेतन निकालने से लेकर आबकारी का सारा कामकाज कमिश्नर की कलम से होता है। इससे समझा जाता है कि 31 मई के आसपास आईएएस पोस्टिंग की एक छोटी लिस्ट निकलेगी। इसमें नए आबकारी कमिश्नर की भी पोस्टिंग हो सकती है।

एसपी की भी!

राज्य सरकार ने 12 जिलों के एसपी बदल दिया। मगर जिनके नामों की पिछले छह महीने से चर्चा थी और जो सरकार के राडार पर हैं, उनमें से एक का नाम भी इस लिस्ट में नहीं है। इससे समझा जाता है कि जून-जुलाई में एसपी की एक लिस्ट और निकलेगी। अभी पांच जिलों में डीआईजी पोस्टेड हैं। इनमें से दो जिलों के एसएसपी जिले में रहने से अनिच्छा व्यक्त कर चुके हैं। अगली लिस्ट में हो सकता है एकाध आईजी का भी नंबर लग जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक मंत्री के बीजेपी में शामिल होने की अटकलों के पीछे कोई सच्चाई है या महज अफवाह?

2. एक फूड आफिसर ने चार दिन में पूरा डेम का पानी बहा दिया और सिस्टम सोता रहा, क्या इसके लिए सिस्टम जिम्मेदार नहीं है?


एसपी की धुआंधार बैटिंग

एसपी की धुआंधार बैटिंग

सरकार ने एक पुलिस कप्तान को प्रमोशन देकर भरोसे के साथ बड़े जिले की कमान सौंपी थी। मगर कप्तान साब ने ज्वॉइन करते ही इस कदर धुआंधार बैटिंग शुरू कर दी कि उसकी चर्चा राजधानी तक होने लगी है। खुद पुलिस मुख्यालय के लोग मानने लगे है कि अफसर की कप्तानी पारी कुछ ज्यादा हो गई है। बात चूकि सरकार की नोटिस में है, इसलिए ताज्जुब नहीं कि अगली लिस्ट में कप्तान को वापस पेवेलियन बुला लिया जाए।

नोट बंदी औ

र लाटरी!

2000 के नोट बंद होने से सराफा और रियल इस्टेट में फिर से बूम आने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। याद होगा, 2016 के नोटबंदी से डूबते हुए रियल इस्टेट में रौनक आ गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रात आठ बजे नोटबंदी का ऐलान करते ही लोग सराफा दुकानों की तरफ दौड़ पड़े थे। यही हाल रियल इस्टेट में रहा। आम लोग 500, 1000 के नोट लेकर परेशान होते रहे और बिल्डर बिना किसी हिचक नोट खपाते रहे। बता दें, 2015 तक रियल इस्टेट की हालत खास्ता थी। मगर नोटबंदी से रियल इस्टेट इतना मजबूत हो गया कि कोरोना जैसे पीरियड में भी बिल्डरों ने मकानों के रेट कम नहीं किए। हालांकि, इस बार सिर्फ 2000 के नोट बंद हुए हैं। और ये नोट मीडिल क्लास के पास नहीं है। हायर मीडिल क्लास के पास भी मुश्किल से होगा। चूकि पिछले दो-तीन साल से 2000 के नोट दिखने बंद हो गए थे। सो, माना जा रहा था कि बड़े लोगों ने ये नोट दबा दिया है। आखिर, देश में इंकम टैक्स, सीबीआई और ईडी के जितने छापे पड़े हैं, सभी जगहों पर 2000 के नोटों का जखीरा ही पकड़ा गया। बहरहाल, धनिकों का ये पैसे कहीं-न-कहीं निकलकर इंवेस्ट तो होगा। ऐसे में, सराफा और रियल इस्टेट की उम्मीदें तो बढ़ेगी ही।

न्यायधानी में न्याय का मजाक

पुलिस ने ऐसा कमाल किया है कि अन्याय भी उसके आगे शरमा जाए। पुलिस ने रेप पीड़िता की विधवा मां को बिना जांच-पड़ताल किए जेल भेज दिया। दरअसल, रतनपुर की महिला ने एक समुदाय विशेष के युवक पर बेटी के साथ रेप करने का आरोप लगाया था। महिला की रिपोर्ट पर पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। पीड़िता की बेटी का आरोप है कि केस वापस लेने उसे धमकी और प्रलोभन दिया गया। मगर जब केस वापस लेने तैयार नहीं हुए तो उसकी मां पर एक 9 साल के बच्चे का यौन शोषण का एफआईआर कर जेल भेज दिया गया। रेप पीड़िता बीएससी नर्सिंग की छात्रा है। पिता रहे नहीं। मां को पुलिस ने जेल भेज दिया। कोर्ट में वह लोगों के सामने न्याय की गुहार लगाती रही। वकीलों के पैर पकड़ ली...मेरी मां बेकसूर है। मां को जेल भेजे जाने का आदेश सुनते ही बेहोश होकर गिर पड़ी। सोचनीय प्रश्न है...जिस महिला की बेटी के साथ रेप हुआ होगा, वह मासूम बच्चे का यौन शोषण करेगी? रेप केस के आरोपी पक्ष के काउंटर रिपोर्ट पर पुलिस को क्या इन पहलुओं पर जांच नहीं करनी थी! ठीक है, बाल अपराध में सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन है मगर पुलिस को इस केस को संजीदगी समझनी चाहिए थी।

एपीसी की मीटिंग

कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने इस हफ्ते बिलासपुर में बिलासपुर और सरगुजा संभाग के कलेक्टरों की बैठक ली। एजेंडा था खेती-बाड़ी से लेकर वर्मी कंपोस्ट के उत्पादन और उसका रखरखाव। बैठक में कमलप्रीत के तेवर देख कई कलेक्टर बगले झांकने लगे तो जो बिना तैयारी चले आए थे उन्हें असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। दरअसल, दोनों संभागों के कलेक्टरों को किसी सिकरेट्री के इस अंदाज से कभी साबका पड़ा नहीं। पुराने जमाने में बैजेंद्र कुमार नाम के एक सिकरेट्री थे। वे बड़ी निर्ममता से जूनियर अधिकारियों को टोक देते थे। लिहाजा, अधिकारी इधर-उधर करने से पहले दस बार सोचते थे कि कहीं बैजेंद्र सर कहीं व्हाट्सएप ग्रुप में खिंचाई न कर दें। मगर नौकरशाही में अब वो नस्ल रहा नहीं। और ये मानवीय प्रवृति है घर में कोई टोकने-टाकने वाला नहीं रहा तो बच्चों के कदम इधर-उधर पड़ने लगते हैं। आज सूबे की नौकरशाही मुश्किल दौर से गुजर रही तो उसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी है।

लक्ष्मी और सरस्वती

किसी जमाने में कहा जाता था...जहां लक्ष्मी का वास होता है वहां सरस्वती नहीं आती और जहां सरस्वती रहती हैं, वहां लक्ष्मी नहीं। मगर कलयुग में सब बदल गया है। इस बार पीएससी के नतीजों को देखकर ऐसा ही प्रतीत होता है। पीएससी के मेरिट लिस्ट से अबकी कमजोर वगों के बच्चे सिरे से गायब हो गए। उनकी जगह सामर्थ्यवान अधिकारियों और नेताओं के बेटे, बेटियां, भतीजा, दामादों ने इस बार कब्जा जमा लिया...वे डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी सलेक्ट हो गए। गजब तो तब हुआ, जब एक घर से दो-दो डिप्टी कलेक्टर। पति-पति दोनों टॉप टेन में। दरअसल, प्रशासनिक सेवा भी एक बड़ा इंवेस्टमेंट हो गया है। डिप्टी कलेक्टर प्रमोट होकर आईएएस बन जाते हैं। और आईएएस बन गए तो रिटायरमेंट तक पांचों उंगली घी में। छोटे-मोटे उद्योगपति उनके सामर्थ्य के सामने नहीं टिकते। कारोबारियों को अब इसलिए इसमें इंट्रेस्ट आ गया कि घर-परिवार में एकाध प्रशासनिक अफसर निकल गया तो डीएमएफ और माईनिंग के युग में उनका धंधा फलने-फूलने लगेगा। सो, बेटा-बेटी न हो तो दामाद ही सही, प्रशासनिक अफसर होना चाहिए। और आईएएस, आईपीएस इसलिए इसमें इंवेस्ट कर रहे हैं कि बेटा प्रशासनिक अफसर बन गया तो रिटायरमेंट के बाद भी गाड़ी-घोड़ा की सुविधा मिलती रहेगी। इंवेस्टमेंट का नया आईडिया है ये।

आईएएस को झटका

एक आईएएस अधिकारी ने राजधानी के पॉश कालोनी में एक मकान का सौदा किया। करीब डेढ़ खोखा के मकान का आधा पैसा एक नंबर में देना था और आधे के करीब नगद। आईएएस के विभाग के एक सप्लायर ने ये सौदा कराया था। उसने बिल्डर को अश्वस्त किया था, कच्चा याने नगद वाला हिस्सा मैं दूंगा। इस बीच आईएएस का विभाग बदल गया। विभाग बदलते ही गिरगिट के रंग की तरह सप्लायर भी बदल गया। बिल्डर को उसने पैसा देने से साफ इंकार कर दिया। आईएएस ऐसे में क्या करते सौदा रद्द कर चेक से एक नंबर में दो लाख पेशगी दी थी, उसे वापिस ले लिया।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के किस शराब ठेकेदार के यहां से ईडी ने 28 करोड़ के जेवर सीज किया है?

2. किस वजह से बीजेपी ने थर्ड, फोर्थ लाइन के नेताओं को सरकार के विरोध के लिए आगे कर दिया है?

शनिवार, 13 मई 2023

Chhattisgarh Tarkash: बस्तर आईजी कौन?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 14 मई 2023

बस्तर आईजी कौन?

2003 बैच के आईपीएस और बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज का का टेन्योर विधानसभा चुनाव तक तीन साल क्रॉस कर जाएगा। इसको देखते समझा जा रहा था कि चुनाव से पहले सरकार उन्हें हटाकर किसी और आईजी को वहां की कमान सौंपेंगी ताकि चुनाव तक उन्हें बस्तर को समझने का टाईम मिल जाए। मगर सुनने में आ रहा कि बस्तर में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए सरकार सुंदरराज को कंटीन्यू करने पर विचार कर रही है। सुंदरराज बस्तर में नक्सली आपरेशनों को बढ़ियां ढंग से अंजाम दे रहे हैं। इससे नक्सली घटनाओं में भी बेहद कमी आई है। इसको देखते चुनाव आयोग को पत्र भेजा जा रहा कि माओवाद ग्रस्त बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज के केस में तीन साल में छूट दी जाए। चूकि बस्तर देश का सर्वाधिक नक्सल प्रभावित इलाका है, इसलिए आमतौर पर चुनाव आयोग से ऐसे केस में छूट मिल जाती है। वैसे भी सुंदरराज निर्विवाद अधिकारी हैं...उन पर कभी किसी पार्टी का लेवल नहीं लगा....बीजेपी सरकार में भी वे बस्तर में तैनात रहे। लिहाजा, विपक्ष को भी सुंदरराज के बस्तर में कंटीन्यू करने पर ऐतराज नहीं होगा। फिर भी देखना होगा, चुनाव आयोग क्या फैसला लेता है।

दो और आईजी

छत्तीसगढ़ कैडर के दो आईपीएस अधिकारियों का सेंट्रल डेपुटेशन कंप्लीट हो गया है। सात साल बाद दोनों आईपीएस केंद्र से रिलीव हो गए हैं। इनमें से 2004 बैच के आईपीएस अंकित गर्ग ने पुलिस मुख्यायल में ज्वाईनिंग दे दी है तो 2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत अगले महीने ज्वाईन करेंगे। गर्ग और भगत आईजी लेवल के अधिकारी हैं और दोनों बस्तर के कई जिलों में पोस्टेड रह चुके हैं। नक्सली हिंसा जब चरम पर था, तब अंकित गर्ग दंतेवाड़ा और बीजापुर में एसपी रहे। राहुल भगत भी कांकेर और नारायणपुर में एसपी रह चुके हैं। समझा जाता है कि विधानसभा चुनाव के बाद जब बस्तर आईजी रिप्लेस होंगे तो इनमें से किसी एक को वहां की जिम्मेदारी मिलेगी। बहरहाल, अंकित और गर्ग के आने के बाद सूबे में आईजी की संख्या बढ़कर 11 हो जाएगी। इस वक्त डॉ0 आनंद छाबड़ा, सुंदरराज, अजय यादव, बद्री नारायण मीणा और आरिफ शेख रेंज में आईजी हैं। वहीं, ओपी पाल, संजीव शुक्ला, आरपी साय और सुशील द्विवेदी मुख्यालय में पोस्टेड हैं। अंकित और राहुल दो और बढ़ गए। एक समय था जब पांच रेंज और चार से पांच आईजी हो गए थे। ऐसे में कई डीआईजी को प्रभारी आईजी बनाकर रेंज में पोस्ट करना पड़ा था।

कर्नाटक जीत का इम्पैक्ट

कर्नाटक में बीजेपी के हाथ से सत्ता फिसलने का असर छत्तीसगढ़ में चल रही ईडी की कार्रवाइयों पर भी पड़ेगा...इसको लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। असल में, कोल स्केम की रिपार्ट बेंगलोर में दर्ज है। कर्नाटक की पुलिस इस सिलसिले में दो-तीन बार रायपुर आ चुकी है। अब चूकि वहां कांग्रेस की सरकार आ गई है तो जाहिर तौर पर यह सवाल उठ रहे कि वहां अगर केस खारिज हो गया तो...?। और जब मूल केस ही खारिज हो जाएगा तो फिर ईडी की कार्रवाई कैसे सरवाईव कर पाएगी। दरअसल, मनी लॉड्रिंग एक्ट के तहत ईडी खुद एफआईआर दर्ज नहीं करती। किसी जांच एजेंसी में दर्ज मामले को वह आगे बढ़ाती है। राज्य पुलिस, आईटी या सीबीआई के बाद ही ईडी की इंट्री होती है।

गजब की किस्मत

राज्य निर्वाचन आयुक्त ठाकुर राम सिंह को सरकार ने छह महीने का और एक्सटेंशन दे दिया। इससे पहिले उन्हें दो बार छह-छह महीने का एक्सटेंशन मिल चुका है। ये तीसरा मौका है, जब सरकार ने उन्हें सेवा विस्तार दिया है। निर्वाचन में राम सिंह का छह साल का कार्यकाल पिछले साल मई में खतम हुआ था। हालांकि, इस महीने 10 तारीख को उनका एक साल का एक्सटेंशन समाप्त हो रहा था तो मानकर चला जा रहा था कि अब किसी और को निर्वाचन की कमान सौपी जाएगी। मगर आखिरी समय में उनके एक्सटेंशन की फाइल फिर बढ़ गई। बहरहाल, पोस्टिंग के मामले में राम सिंह किस्मत के धनी हैं। पिछली सरकार में उन्होंने रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ और दुर्ग याने प्रदेश के चारों टॉप के जिलों में कलेक्टरी की। छत्तीसगढ़ में किसी डायरेक्ट आईएएस को भी इन चार जिलों की कलेक्टरी करने का अवसर नहीं मिला है। वो भी छह महीने, साल भर की नहीं...चारों जिलों में उन्होंने 10 साल कलेक्टरी की। रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें राज्य निर्वाचन आयुक्त की पोस्टिंग दी। और इस सरकार में उन्हें तीन बार एक्सटेंशन मिल गया। है न गजब की किस्मत।

शुक्ला को एक्सटेंशन

प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला की तीन साल की संविदा पोस्टिंग इस महीने 31 को समाप्त हो जाएगी। शुक्ला के पास स्कूल शिक्षा के साथ ही चेयरमैन माध्यमिक शिक्षा मंडल और व्यापम के साथ ही रोजगार मिशन के डायरेक्टर का दायित्व है। सरकार ने आचार संहिता के पूर्व सितंबर तक मिशन मोड में नियुक्तियों को कंप्लीट करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में, सरकार आलोक शुक्ला की सेवाओं को कंटीन्यू करना चाहेगी। लिहाजा, यह मान कर चला जा रहा कि उन्हें एक्सटेंशन मिलने पर कोई संशय नहीं है। 86 बैच के आईएएस अधिकारी आलोक शुक्ला 2020 में रिटायर हुए थे।

सेकेंड पोस्टिंग

रिटायर होने के बाद नौकरशाहों को अभी तक एक पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल पाती थी। वो भी तब जब तगड़ा जैक हो और सरकार के साथ ट्यूनिंग अच्छी हो। मगर रिटायर नौकरशाहों को अब दूसरी पोस्टिंग भी मिलने लगी है। चीफ सिकरेट्री से रिटायर होने के बाद विवेक ढांड रेरा के चेयरमैन बनाए गए थे। रेरा से रिटायर होने के बाद उन्हें इनोवेशन आयोग का प्रमुख बनाया गया है। उधर, मुख्य सूचना आयुक्त से रिटायर होने के बाद एमके राउत रेड क्रॉस सोसाइटी के सीईओ अपाइंट हुए हैं। उनसे पहले सूचना आयुक्त से रिटायर होने के बाद अशोक अग्रवाल रेडक्रॉस सोसाइटी के चेयरमैन बने थे। राउत और अग्रवाल में गुरू-चेला का संयोग बना हुआ है। राउत जब कलेक्टर रायपुर थे, अग्रवाल रायपुर के एसडीएम रहे। अग्रवाल सूचना आयुक्त बने तो राउत वहां मुख्य सूचना आयुक्त बन गए। और अग्रवाल रेड क्रॉस चेयरमैन बनकर पहुंचे तो राउत उनके उपर सीईओ बन गए। कहने का मतलब यह है कि दोनों का साथ नहीं छुट रहा है।

रापुसे की बारी

सरकार ने इस हफ्ते राज्य प्रशासनिक सेवा के 39 अधिकारियों का जंबो ट्रांसफर किया। इनमें अधिकांश वे अधिकारी हैं, जिनका तीन साल हो गया था या वे विधानसभा चुनाव तक तीन साल के दायरे में आने वाले थे। राप्रसे के बाद अब राज्य पुलिस सेवा के अधिकारियों का नम्बर है। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने पुलिस महकमे के शीर्ष अधिकारियों की बैठक लेकर तीन साल वाले अधिकारियों की लिस्ट बनाने निर्देशित भी किया है। हालांकि, रापुसे अधिकारियों का ट्रांसफर सीएम लेवल पर होता है। मगर नोटशीट जाती है गृह विभाग से ही। बहरहाल, रापुसे की लिस्ट की चर्चाएं तेज हो गईं हैं।

ईडी की नजर

ईडी ने पंजीयन विभाग से पांच साल के रजिस्ट्रियों का ब्यौरा मांगा है। कुछ दिन पहले ईडी के अफसर पंजीयन मुख्यालय पहुंचे और अपनी रिक्वायरमेंट रखा। बताते हैं, मुख्यालय ने कहा कि विभागीय अधिकारियों से परामर्श लेकर वे जानकारी मुहैया करा पाएंगे। बताते हैं, महाधिवक्ता से राय मांगी गई है कि ईडी को जानकारी दी जाए या नहीं। ईडी को पांच साल की जानकारी मिलेगी या नहीं, ये बाद की बात है...मगर रजिस्ट्री अधिकारियों की हालत खराब है। क्योंकि, रजिस्ट्रियों में गाइडलाइंस में बड़ा गोलमाल किया गया है। हाईप्रोफाइल कालोनियों में स्थित प्लाटों को एग्रीकल्चर लैंड बताकर रजिस्ट्री कर दी गई। रजिस्ट्री विभाग ने इसकी जांच का आदेश दिया तो दलालों और भूमाफियाओं ने 30 पेटी चंदा करके जांच रोकवा दिया। हालांकि, ये खेला सिर्फ पांच साल का नहीं है। शुरू से ऐसा हो रहा है। मगर ईडी ने पांच साल का मांगा है, सो इस पीरियड में पोस्टेड अफसरों की हालत पतली हो रही।

ट्रांसफर में भाजपा नेता

राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद लंबे समय तक कार्यकर्ताओं की यह शिकायत रही कि कई मंत्री अब भी भाजपा शासन में मलाई खाने वालों की ठेका-सप्लाई का काम दे रहे हैं। साढ़े चार साल बाद बदलाव तो आया, लेकिन एक विभाग ऐसा है, जहां अभी भी एक भाजपा नेता के इशारे पर ट्रांसफर, पोस्टिंग हो रही। व्यापार प्रकोष्ठ के नेता का प्रभाव ऐसा है कि सीनियर अधिकारियों द्वारा नोटशीट में कुछ और लिखा जाता है, आदेश कुछ और होता है। दरअसल, मंत्रीजी सीधे-सादे हैं...सो, बीजेपी नेता और एक पटवारी ट्रांसफर, पोस्टिंग का खेला संचालित कर रहे हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के ऐसे आईएएस अफसरों का नाम बताइये, जो चार साल तक मौज काटने के बाद अब रणनीति के तहत किनारे हो लिए हैं?

2. एक सिकरेट्री का नाम बताइये, जो पिछले 15-20 दिन से वे कहां हैं किसी को नहीं मालूम?


रविवार, 7 मई 2023

Chhattisgarh Tarkash : परसेप्शन की सियासत

संजय के. दीक्षित

तरकश, 7 मई 2023

परसेप्शन की सियासत

साहू वोटरों पर डोरे डालने बीजेपी के शीर्ष नेता कबीर पंथ के गुरु प्रकाश मुनी जी के घर मत्था टेकने पहुंचे और उसके अगले दिन सत्ताधारी पार्टी ने बीजेपी के आदिवासी वोटों को टारगेट करते हुए बड़ा विकेट गिरा दिया। घटनाक्रम इतना तेज गति से हुआ कि भाजपा नेताओं को समझने, समझाने का मौका नहीं मिला और नंद कुमार साय जैसे पार्टी के समर्पित और निष्ठावान नेता ने बीजेपी को बॉय-बॉय कर दिया। चुनावी साल में साय के इस्तीफे से पार्टी को कितना नुकसान होगा, इसका पता विधानसभा चुनाव के समय चलेगा। मगर इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि परसेप्शन की लड़ाई में कांग्रेस भाजपा से आगे निकल गई। ऊपर से कांग्रेस पार्टी में सीएम भूपेश बघेल का कद बढ़ा, सो अलग। जाहिर है, देश में पिछले कुछ सालों से कांग्रेस के बड़े नेताओं के लगातार पार्टी छोड़ने की खबरें आ रही है...ऐसे समय में भूपेश ने बीजेपी के एक बड़े आदिवासी लीडर को कांग्रेस पार्टी में शामिल करा अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है।

जोर का झटका...

नंदकुमार साय अपनी पार्टी से दुखी थे, ये बातें किसी से छिपी नहीं थी। साय खुद कई बड़े नेताओं के समक्ष अपनी पीड़ा का इजहार कर चुके थे...वे किसी भी हद तक जा सकते हैं, इसका इशारा भी। मगर शीर्ष नेताओं को लगा साय जी पूर्व की तरह फिर मान जाएंगे। दरअसल, वे पहले भी कई बार अपनी नाराजगी जाहिर कर फिर मान गए थे। यही वजह है कि भाजपा नेताओं ने उनकी बातों को हल्के में लिया और गच्चा खा गए। इस्तीफे के बाद उनके कांग्रेस प्रवेश की अटकलें चलनी शुरू हुई, तब भी पार्टी के किसी नेता को यकीं नहीं हुआ कि साय कभी कांग्रेस ज्वॉइन कर सकते हैं। एक वरिष्ठ नेता ने इस स्तंभ के लेखक से बड़े कॉन्फिडेंस से कहा... साय जी को मैं बचपन से देख रहा, वे कांग्रेस में हरगिज नहीं जाएंगे। बहरहाल, साय जैसे नेता का पार्टी छोड़ना बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं था। पार्टी के नेता दबी जुबां से स्वीकार करते हैं, सायजी के साथ बहुत अच्छा तो नहीं हुआ। 2003 में जोगी सरकार के लाठी चार्ज में पैर टूट जाने के बाद विधानसभा चुनाव आया तो उन्हें निबटाने के लिए तपकरा की बजाय सीएम अजीत जोगी के खिलाफ मरवाही में उतार दिया गया। वरना, वे नेता प्रतिपक्ष थे...चुनाव जीतने के बाद मंत्री तो बनते ही सीएम के भी दावेदार होते।

राज्य सभा में साय?

कांग्रेस ज्वॉइन करने के बाद नंद कुमार साय को लेकर सियासी गलियारों में कई तरह की बातें चल रही है। कोई बोल रहा उन्हें फलां पद दिया जा सकता है, तो सुनने में ये भी आ रहा कि अगले साल सरोज पाण्डेय का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो जाएगा। उनकी जगह कांग्रेस साय को दिल्ली भेजेगी। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय स्तर पर कोई आदिवासी चेहरा नहीं है। और स्वयं साय भी दिल्ली में रहने के इच्छुक हैं। अब देखना है, कांग्रेस उनके अनुभवों को किस तरह इस्तेमाल करती है।

आईएफएस की पोस्टिंग

संजय शुक्ला के बाद सीनियरटी की दृष्टि से सुधीर अग्रवाल पीसीसीएफ के सबसे मजबूत दावेदार थे। क्योंकि, अतुल शुक्ला अगस्त में रिटायर हो जाएंगे और उनसे पहले इसी जून में आशीष भट्ट भी। जाहिर है, टाईम कम होने से इन दोनों अधिकारियों के लिए कोई चांस बचा नहीं था। मगर श्रीनिवास राव के पीसीसीएफ बन जाने से सुधीर अग्रवाल वन बल प्रमुख बनने से चूक गए। हालांकि, पीसीसीएफ लेवल के चार सीनियर अफसरों की पोस्टिंग में सुधीर के सम्मान का सरकार ने ध्यान रखा। उन्हें वाइल्ड लाइफ का दायित्व सौंपा गया। जबकि, चर्चा यह थी कि वाइल्ड लाइफ तपेश झा को दिया जाएगा और सुधीर को वन विकास निगम भेजा जाएगा। जाहिर है, वन महकमे में पीसीसीएफ के बाद वाइल्ड लाइफ की पोस्टिंग प्रतिष्ठापूर्ण मानी जाती है।

हॉफ कौन?

1990 बैच के आईएफएस अधिकारी श्रीनिवास राव रेगुलर पीसीसीएफ बन गए मगर हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स कौन होगा, इस पर अभी संशय बना हुआ है। दरअसल, राज्यों में 2.25 लाख के शीर्ष स्केल वाले तीन पद होते हैं। चीफ सिकरेट्री, डीजीपी और हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स याने हॉफ। तीनों स्केल के लिए सीनियरटी देखी जाती है। और सरकार की पसंद भी। संजय शुक्ला से अतुल शुक्ला सीनियर थे मगर सीनियरिटी कम मेरिट के आधार पर संजय शुक्ला हॉफ बन गए। मगर इस समय श्रीनिवास राव से सीनियर सात अफसर हैं। समझा जाता है कि जून में आशीष भट्ट और अगस्त में अतुल शुक्ला के रिटायरमेंट के बाद पांच सीनियर आईएफएस बचेंगे। सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू। इनमें से दो का सीआर काफी वीक है। बचे तीन। तीन को सुपरसीड कर श्रीनिवास राव को हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स बनाना आसान होगा। मगर इससे पहले उन्हें पीसीसीएफ प्रमोट करना होगा। अभी उन्हें पीसीसीएफ का ग्रेड मिला है मगर पोस्ट एडिशनल पीसीसीएफ का है। जून में आशीष भट्ट रिटायर होंगे। और एक पद संजय शुक्ला के रिटायर होने से खाली हुआ है। याने दो पद हुआ। जून के बाद सरकार डीपीसी करके अनिल साहू और श्रीनिवास राव को पीसीसीएफ प्रमोट कर देगी। हो सकता है, इसके बाद उनका हॉफ का आदेश भी हो जाए। तब तक उन्हें प्रभारी रहेना होगा।

प्रचारकों का आइफोनीकरण

आरएसएस की स्थापना के बाद जब भाजपा की सरकारें नहीं होती थीं, तब प्रचारकों का जीवन भी संघर्षपूर्ण होता था। सुबह का नाश्ता किसी स्वयंसेवक के घर कर लिया तो दोपहर का भोजन किसी स्वयंसेवक और रात का भोजन किसी और के घर। इसी बहाने संपर्क हो जाता था...सामाजिक जीवन में क्या चल रहा है, यह भी पता चल जाता था। कुटुंब प्रबोधन के लिए अलग से किसी कार्यक्रम की जरूरत महसूस नहीं होती थी, क्योंकि प्रचारकों का जीवंत संपर्क होता था। आरएसएस से जो संगठन मंत्री भाजपा में आते थे, वे भी इसी तरह रहते थे। कार्यकर्ताओं के घरों में भोजन, कार्यक्रम में सीधे उपस्थिति होती थी। पार्टी में क्या चल रहा है, यह भी पता चल जाता था. संगठन मंत्री कभी कभी तो नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं के घर भोजन कर उन्हें मना लेते थे और बात बाहर आने से पहले सुलझ जाती थी। मगर छत्तीसगढ़ में 15 साल भाजपा की सरकार रहने से पार्टी से जुड़ा व्यापारी वर्ग और सक्षम हो गया तो प्रचारकों की तीमारदारी भी खूब होने लगी। आलम यह हो गया कि प्रचारकों का सामान्य कार्यकर्ताओं के घर आना जाना कम हो गया। संगठन मंत्रियों का नेटवर्क भी कमजोर हो गया। एक तरह से उस पद का आइफोनीकरण हो गया है। कार्यकर्ता भी कहने लगे हैं कि आईफोन में आम कार्यकर्ता की आवाज सुनाई नहीं देती। तभी तो पार्टी के दिग्गज नेता नंद कुमार साय की मनाने की बात दूर, इतना बड़ा विकेट उड़ गया, किसी को भनक तक नहीं लगी।

3 खोखा की देनदारी

भर्ती खुलने से सूबे के एक बड़े विश्वविद्यालय के कुलपति के बुझे चेहरे पर रौनक लौट आई है। दरअसल, बाजार से तीन खोखा उधारी लेकर तमाम विरोधों के बाद भी कुलपति बने। मगर उनकी नियुक्ति के कुछ दिन बाद ही आरक्षण का लोचा आ गया। कुलपतियों की कमाई नियुक्तियों या फिर बिल्डिंगों के निर्माण से होती है। कुलपति जी ने भर्ती की उम्मीद में उधारी लेकर फंस गए थे। एक बड़े व्यापारी ने तगादा शुरू कर दिया था। अब आरक्षण का ब्रेकर हटने के बाद उन्होंने अब राहत की सांस ली है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईपीएस की बहुप्रतीक्षित लिस्ट किधर अटक गई है?

2. ट्रांसफर पर से बैन खुलने की चर्चाओं में कोई सच्चाई है?


 

शनिवार, 29 अप्रैल 2023

Chhattisgarh Tarkash: छत्तीसगढ़ में 36 का खेला

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 30 अप्रैल 2023

छत्तीसगढ़ में 36 का खेला

पीएम पोषण शक्ति योजना के तहत स्कूलों में सोयाबीन चिक्की का वितरण किया जाना था। चूकि सोया अपने यहां होता नहीं, इसलिए उसकी जगह मिलेट्स चिक्की के लिए सीएम भूपेश बघेल ने दो बार केंद्र को पत्र लिखा। और इसके लिए हरी झंडी मिल भी गई। इस योजना के लिए सूबे के 12 जिलों को चुना गया। एक जिले को करीब ढाई से तीन करोड़ का फंड मिला। याने 12 जिलों को लगभग 36 करोड़। सरकार ने कलेक्टरों को स्पष्ट निर्देश दिए....वन विभाग की समितियांं से मिलेट्स खरीद कर स्कूलों में स्व सहायता समूहों के माध्यम से चिक्की तैयार कराया जाए। मगर अफसरों ने खेला कर दिया। जिला शिक्षा अधिकारियों ने कलेक्टरों से सहमति लेकर सी मार्ट से खरीदी का आदेश जारी कर दिया। और एक कारोबारी को इशारा कर दिया गया। उसने सभी जिलों के सी मार्ट में रेडिमेड चिक्की सप्लाई कर दिया। पता चला है, रायपुर से स्कूल शिक्षा विभाग से आदेश जारी हुए उसी में चूक हुई या की गई। मार्च में भेजे आदेश में लिखा था, 30 अप्रैल तक चिक्की का वितरण कंप्लीट कर लिया जाए। आदेश देखकर डीईओ की बांछे खिल गई। दरअसल, सरकारी स्कूलों में मार्च में परीक्षा के बाद स्कूल खुलता तो जरूर है मगर बच्चे नहीं आते। सिर्फ शिक्षकों की उपस्थिति 30 अप्रैल तक अनिवार्य होती है। जाहिर है, चिक्की का वितरण कागजों में किया जाना था। सो, लार टपकाते हुए आनन-फानन में रेडिमेड चिक्की का आदेश देकर पांच से अधिक जिलों के बंद स्कूलों में इसका वितरण भी कर दिया गया। सीएम ने केंद्र को पत्र लिख मिलेट्स चिक्की के लिए केंद्र को सहमत कराया था, इससे पता चलता है कि वे इसके लिए कितने संजीदा हैं। मगर इस अच्छी योजना को अफसरों ने पलीता लगा अच्छी खासी रकम अंदर कर लिया।

डीएमएफ की लूट

कलेक्टर डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड याने डीएमएफ के प्रमुख जरूर होते हैं मगर डीएमएफ में काम क्या करना है, वह रायपुर के मुठ्ठी भर कारोबारी तय करते हैं। व्यापारी ही कलेक्टरों को आइडिया सुझाते हैं और पैसे के मोह में कलेक्टर फंस जाते हैं। पता चला है, हाथी प्रभावित कुछ जिलों में इसी तरह का खेला हुआ है। कलेक्टरों ने वहां डीएमएफ के तहत जंगलों में हाथी अलार्म लगवा दिया है। इसमें भी खटराल सप्लायरों ने कलेक्टरों को आइडिया दिया और कलेक्टरों ने ओके कर दिया। कलेक्टरों को पता होना चाहिए कि डीएमएफ का सेंट्रल ऑडिट होने वाला है। कलेक्टरों ने जिस तरह के कारनामे किए हैं, दर्जन भर वर्तमान और पूर्व कलेक्टरों की शामत आ सकती है। बता दें, पिछली सरकार में भी कई कलेक्टरों ने इसमें खूब गुल खिलाया था।

तीन साल के पीसीसीएफ

पिछले तरकश में हमने लिखा था कि आखिरी वक्त में कोई चमत्कार होगा तभी कोई दूसरा पीसीसीएफ बनेगा वरना श्रीनिवास राव का वन महकमे का मुखिया बनना निश्चित है। और वैसा ही हुआ। श्रीनिवास सात सीनियर आईएफएस को सुपरसीड कर फॉरेस्ट के सुप्रीमो बन गए। उनका रिटायरमेंट 2026 में है। याने वे तीन साल इस पद पर रहेंगे। श्रीनिवास का वर्किंग पैटर्न ऐसा है कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं...वे पूरा टर्म कंप्लीट करेंगे। जाहिर है, पिछली सरकार में भी वे प्रभावशाली थे और इसमें भी।

कैम्पा चीफ कौन?

श्रीनिवास राव पिछली सरकार से कैंपा प्रमुख थे और अभी भी हैं। कैंपा को वन विभाग की सबसे क्रीम पोस्टिंग मानी जाती है। वित्तीय अधिकार के मामलों में पीसीसीएफ से भी रसूखदार और सत्ता से नजदीकी वाला। चूकि श्रीनिवास राव अब रेगुलर पीसीसीएफ बन गए हैं सो उन्हें यह पद छोड़ना होगा। पता चला है, इसके लिए तीन नाम चल रहे हैं, सुनील मिश्रा, अरुण पाण्डेय और कोई एक अन्य। चूकि यह कैलकुलेटर लेकर बैठने वाला पद है, इसलिए इनमें से एक इस पद पर आने के लिए इच्छुक नहीं है। एक को उपर के अफसर पसंद नहीं कर रहे। अगर तीसरे पर सहमति नहीं बनी तो हो सकता है कि कुछ दिन तक पीसीसीएफ ही इस पद को संभाले। बहरहाल, कैंपा के साथ ही जो पीसीसीएफ सुपरसीड हुए हैं, उन्हें सरकार नई पोस्टिंग देगी। याने वन विभाग में शीर्ष स्तर पर एक पोस्टिंग आदेश और निकलेगा।

बड़ा पोर्टफोलियो

भूपेश बघेल सरकार ने इस हफ्ते 26 आईएएस अफसरों को नई पोस्टिंग दी, उनमें सबसे अधिक किसी का कद बढ़ा तो वे हैं 2006 बैच के आईएएस अंकित आनंद। अंकित पहले से सिकरेट्री टू सीएम के साथ उर्जा सचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसके साथ बिजली कंपनियों के चेयरमैन भी। ताजा फेरबदल में सरकार ने उन पर भरोसा करते हुए सिकरेट्री फायनेंस का भी दायित्व सौंप दिया है। ये तीनों पोस्ट सरकार अपने विश्वस्त और सीनियर अफसरों को सौंपती है। देश में इतना बड़ा पोर्टफोलियों वाला अफसर शायद ही किसी राज्य में होगा। क्योंकि, सिकरेट्री टू सीएम की पोस्टिंग अपने आप में काफी होती है। उपर से बिजली सिकरेट्री और चेयरमैन का की पोस्टिंग अजय सिंह को छोड़ किसी को नहीं मिली। एक समय एक्स चीफ सिकरेट्री शिवराज सिंह चेयरमैन थे तो बैजेंद्र सिकरेट्री इनर्जी। सिकरेट्री फायनेंस होने का मतलब है सारे विभागों का कंट्रोल। अंकित लो प्रोफाइल में रहकर काम करने वाले आईएएस माने जाते हैं...सिर्फ काम से मतलब रखने वाले।

कलेक्टरों का एक आदेश और

सरकार ने 26 आईएएफस अफसरों को नई पोस्टिंग जारी की। इनमें छह जिलों के कलेक्टर भी शामिल थे, जिन्हें बदला गया। मगर ये संख्या काफी कम है। वास्तव में डेढ़ दर्जन से अधिक कलेक्टरों को बदला जाना है। आमतौर पर जून में कलेक्टरों की बड़ी लिस्ट निकलती है। इस सरकार में चारों साल जून में ही दो दर्जन से अधिक कलेक्टरों के तबादले हुए। जून के चक्कर में ही इस बार सिर्फ छह कलेक्टरों को बदला गया। बड़े जिलों के कलेक्टरों को जून के फेर में मोहलत मिल गई।

बैच नंबर-वन

कलेक्टरी में अभी 2011 बैच टॉप पर चल रहा है। इस बैच के सर्वाधिक सात आईएएस कलेक्टर हैं। रेगुलर रिक्रूट्ड याने आरआर में छह में से पांच कलेक्टर हैं तो प्रमोटी के चार में से दो। आरआर में इस बैच के डॉ. सर्वेश भूरे रायपुर, नीलेश श्रीरसागर महासमुंद, चंदन कुमार बलौदा बाजार, दीपक सोनी कोंडागांव और संजीव झा कोरबा। प्रमोटी में जन्मजय मोहबे कवर्धा और रिमुजियस एक्का बलरामपुर। आरआर में पांच में से चार आईएएस तीन-तीन जिला कर चुके हैं तो चंदन कुमार बलौदा बाजार में चौथा जिला कर रहे हैं। पिछले हफ्ते फेरबदल में उनका जगदलपुर से बलौदा बाजार हुआ है। 2011 बैच के छह में से सिर्फ विलास भोस्कर कलेक्टरी से बाहर हैं। बावजूद इसके, किसी एक बैच के, एक समय में कभी भी इतने कलेक्टर नहीं रहे। याने कलेक्टरी में इसे लकी बैच कहा जा सकता है।

जीएडी की चूक?

2007 बैच के सचिव स्तर के आईएएस कैसर हक को राज्य निर्वाचन आयोग में सिकरेट्री बनाया गया है। अभी तक इस पद पर किसी डायरेक्ट आईएएस को नहीं बिठाया गया। वो भी सिकरेट्री लेवल के। प्रमोटी आईएएस रिमुजियस एक्का को इस पद से कलेक्टर बनाकर बलरामपुर भेजा गया है। इससे समझा जा सकता है कि कैसी पोस्ट है ये। हालांकि, कैसर को सिकरेट्री मेडिकल एजुकेशन का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है मगर राज्य निर्वाचन वाली पोस्टिंग खटकने वाली है। वो भी तब, जब कैसर की छबि ठीकठाक अफसर की है...जीएडी से कहीं चूक तो नही हो गई। लिस्ट में नम्रता गांधी को डायरेक्टर पेंशन, चिकित्सा शिक्षा आयुक्त से हटाकर सिर्फ आयुष जैसे महत्वहीन पद दिया गया है। इसके पीछे उनका किसी डॉक्टर से विवाद होना बताया जा रहा। डॉक्टर लॉबी उनके खिलाफ लामबंद हो गई थी। रजत बंसल बलौदा बाजार से हटे नहीं, बल्कि स्वेच्छा से हटे हैं। उनके फादर इन लॉ चीफ इलेक्शन कमिश्नर हैं। चुनाव के दौरान कोई असहज स्थिति न पैदा हो, इस कारण उन्होंने पोस्टिंग चेंज का खुद आग्रह किया था। इस लिस्ट से एलायड सर्विस से आईएएस का कलेक्टर बनने का रास्ता खुल गया है। सरकार ने गोपाल वर्मा को खैरागढ़ का कलेक्टर बनाया है। आलोक अवस्थी के बाद छत्तीसगढ़ में एलायड कोटे से आईएएस बने किसी को भी कलेक्टर बनने का अवसर नहीं मिला।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईएएस के आगामी फेरबदल में एक कलेक्टर के सीएम सचिवालय में पोस्टिंग की चर्चा है, कौन हैं वो स्मार्ट कलेक्टर?

2. चार साल मलाईदार पदों पर रहने वाले नौकरशाह अब इस कोशिश में क्यों हैं कि उन्हें कोई गुमनामी वाली पोस्टिंग मिल जाए?


रविवार, 23 अप्रैल 2023

Chhattisgarh Tarkash: नए पीसीसीएफ कौन?

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 23 अप्रैल 2023

नए पीसीसीएफ कौन?

रेरा चेयरमैन अप्वाइंट होने के बाद हेड ऑफ फारेस्ट फोर्स संजय शुक्ला ने वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिया है। खबर है, 28 अप्रैल तक वे वन विभाग के प्रमुख रहेंगे। 29 और 30 को शनिवार, रविवार की छुट्टी है। वे एक मई को रेरा चेयरमैन का पदभार ग्रहण करेंगे। इससे पहले सरकार को नए पीसीसीएफ की नियुक्ति करनी होगी। नए पीसीसीएफ के लिए जिस तरह की जानकारी भीतरखाने से निकल कर आ रही है, अचानक कोई अवरोध नहीं आया तो कैम्पा प्रमुख श्रीनिवास राव की ताजपोशी निश्चित समझी जा रही है। हालांकि इसके लिए सात आईएफएस की सीनियरटी को ओवरलुक करना होगा। संजय शुक्ला के बाद दूसरे नंबर पर अतुल शुक्ला हैं। वे इसी साल अगस्त में रिटायर हो जाएंगे। आशीष भट्ट का नंबर उनसे पहले जून में आ जाएगा। याने दो माइनस हो गए। बचे सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू। श्रीनिवास को वन बल प्रमुख बनाने के लिए इन सभी को सुपरसीड करना होगा। सरकार के भीतर इस फार्मूले पर विचार चल रहा कि वाइल्डलाइफ और वन विकास निगम में सुधीर और तपेश को, संजय ओझा को वर्किंग प्लान तथा अनिल राय को लघु वनोपज संघ की जिम्मेदारी दी जाए। अनिल साहू पीसीसीएफ प्रमोट कर पर्यटन बोर्ड में ही कंटीन्यू किए जा सकते हैं। अब बिल्कुल ऐसा ही होगा, गारंटेड कुछ नहीं। क्योंकि, सरकार अपने हिसाब से फैसले लेती है। ये जरूर है कि सत्ता के गलियारों में चर्चाएं कुछ इसी तरह की है।

रेरा का पेड़ा

रेरा चेयरमैन के लिए सरकार के पास 10 आवेदन आए थे। मगर तीन सदस्यीय चयन कमेटी ने पीसीसीएफ संजय शुक्ला के नाम पर मुहर लगा दी। हाई कोर्ट के जस्टिस संजय के. अग्रवाल की अध्यक्षता में गठित चयन कमेटी में प्रदेश के आवास और पर्यावरण सचिव तथा विधि सचिव मेंबर थे। आवेदन करने वालों में रिटायर आईएएस केडीपी राव, रिटायर आईएफएस पीवी नरसिम्हा राव, पीसीसीएफ संजय शुक्ला, रिटायर आईएफएस पीसी पांडेय रायपुर, अशोक लूनिया न्यायिक सेवा रायपुर, नरेंद्र सिंह चावला उच्च न्यायिक सेवा रायपुर, प्रिया अग्रवाल रायपुर, मनोज सिंह रायपुर, एम लक्ष्मण मित्तल चंडीगढ़ और देव नारायण दत्ता बिलासपुर शामिल थे। यानी पांच साल की इस पोस्ट रिटायरमेंट कुर्सी के लिए कुल 10 अप्लीकेंट थे। इनमें से नौ लोग रेरा का पेड़ा हासिल करने से वंचित हो गए। बता दें, रेरा का गठन 2017 में हुआ था। विवेक ढांड उसके फर्स्ट चेयरमैन बने थे। ढांड और संजय शुक्ला में समानता ये है कि ढांड ने वीआरएस लेकर इस पोस्ट को होल्ड किया तो संजय शुक्ला भी वीआरएस लेने जा रहे हैं। दोनों के संबंध भी करीबी वाले हैं।

कलेक्टर, एसपी की लिस्ट

कलेक्टर, एसपी की मोस्ट अवेटेड लिस्ट को लेकर अफसरों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। कल देर रात आदेश निकलने की इस कदर चर्चा थी कि अफसर और मीडिया वाले रात दो बजे तक व्हाट्सएप पर नजर गड़ाए रहे...पता नहीं कब लिस्ट आ जाए। ब्यूरोक्रेसी में पिछले एक हफ्ते से अटकलें इस बात की चल रही कि कौन किस जिले में जा रहा और किसकी छुट्टी हो रही है....फलां महिला आईपीएस दुर्ग की कप्तान बन सकती हैं तो फलां आईएएस सीएम सचिवालय में जा रहे हैं। सीएम सचिवालय के एक आईएएस का डेपुटेशन पर जाना तय हो गया है, उनके विभाग भारतीदासन को दिए जाएंगे या किसी और को, ये भी चर्चा में है।

पोस्टिंग

रिटायर आईएएस ठाकुर राम सिंह का राज्य निर्वाचन कमिश्नर का कार्यकाल पिछले साल मई में खत्म हो गया था। सरकार ने पहले छह महीने के लिए उनका कार्यकाल बढ़ाया फिर बाद में एक साल कर दिया। अगले महीने उनका एक्सटेंशन भी खतम होने जा रहा है। इस संवैधानिक कुर्सी के लिए शुरू से रिटायर आईएएस डीडी सिंह के नाम की चर्चा रही। बाद में उन्हें संविदा में सिकरेट्री टू सीएम बना दिया गया। मगर राम सिंह का कार्यकाल समाप्त होने का टाईम जैसे-जैसे नजदीक आ रहा, डीडी सिंह को निर्वाचन आयुक्त बनाने की अटकलें जोर पकड़ने लगी हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री सचिवालय ये एक साथ दो-दो सचिवों का निकलना जरा मुश्किल जाएगा। फिर भी दो बड़े जिलों के कलेक्टरों का सीएम सचिवालय में जाने की चर्चा चल रही है, वे नाम ठीकठाक हैं। एक तो आईआईटीयन हैं।

महिला कलेक्टर

राज्य बनने के बाद पहला मौका होगा, जब एक साथ छह महिला कलेक्टर जिला संभाल रही हैं। इससे पहले एक टाईम में दो-एक महिलाएं कलेक्टर होती थीं। एक बार कुछ महीने के लिए ये संख्या तीन हुई थीं। मगर सरकार ने महिलाओं को अच्छा मौका दिया है। इस समय कांकेर में डॉ. प्रियंका शुक्ला, सूरजपुर में इफ्फत आरा, जीपीएम में प्रियंका मोहबिया, सक्ती में नुपूर राशि पन्ना, जांजगीर में ऋचा प्रकाश चौधरी और सारंगढ़ में फरिया आलम सिद्दकी कलेक्टर हैं। खबर है, महिला कलेक्टरों की अत्यधिक संख्या को देखते सरकार इस पर कुछ विचार कर रही है। वैसे भी चुनावी साल है...कई तरह के समीकरणों को सरकार को ध्यान में रखना पड़ता है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या एक रिटायर महिला आईएएस को कुनकुरी विधानसभा से कांग्रेस पार्टी की टिकिट मिलेगी?

2. कांग्रेस के सर्वे के बाद कितने विधायकों पर टिकिट का खतरा मंडरा रहा है?


शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

Chhattisgarh Tarkash: डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट में 16 महीने

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 16 अप्रैल 2023

डीजीपी के 16 महीने

डीजीपी अशोक जुनेजा के रिटायरमेंट को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। नए पुलिस प्रमुख की अटकलें तक। वायरल खबरों के अनुसार ढाई महीने बाद जून में डीजीपी रिटायर हो जाएंगे। मगर ऐसे लोगों को शायद पता नहीं कि जुनेजा के रिटायरमेंट में अभी 16 महीने बचे हैं। अगले साल पांच अगस्त को वे सेवानिवृत होंगे। हालांकि, इस साल जून में वे 60 बरस के हो जाएंगे। ऑल इंडिया सर्विसेज में 60 साल में रिटायरमेंट है। मगर सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के अनुसार डीजीपी की पोस्टिंग दो साल के लिए होती है। जाहिर है, राज्य सरकार ने 11 नवंबर 2021 को डीएम अवस्थी को हटाकर जुनेजा को प्रभारी डीजीपी बनाया था। वे 11 नवंबर को ही अगर पूर्णकालिक डीजीपी बन गए होते तब भी दो साल के नियम के अनुसार इस साल 11 नवंबर को रिटायर होते। लेकिन जुनेजा डीएम अवस्थी की तरह पोस्टिंग के मामले में किस्मती हैं। लोग उनके प्रभारी पोस्टिंग पर तंज कसते रहे। और उन्हें 10 महीने का बोनस मिल गया। दरअसल, यूपीएससी से डीजीपी के लिए तीन नामों का पेनल लेट में आया। इस वजह से राज्य सरकार ने पांच अगस्त 2022 को पूर्णकालिक डीजीपी का आदेश निकाला। गृह विभाग के आदेश में स्पष्ट तौर पर लिखा है....पुलिस बल प्रमुख का पदभार ग्रहण करने के डेट से दो साल अथवा कोई अन्य आदेश तक वे डीजीपी रहेंगे। याने जुनेजा को प्रभारी डीजीपी के तौर पर 10 महीने काम करने का मौका मिल गया और उसके बाद दो साल पूर्णकालिक तौर पर। वे न केवल इस साल विधानसभा चुनाव कराएंगे बल्कि अगले साल लोकसभा का चुनाव भी। अलबत्ता, आदेश में दो साल अथवा कोई अन्य आदेश लिखा है। अन्य आदेश का मतलब है कि सरकार कहीं किसी वजह से हटा दें। तो ऐसी कोई परिस्थिति फिलहाल दिखाई नहीं पड़ रही।

एसपी की लिस्ट

एसपी की ट्रांसफर लिस्ट लगभग तैयार बताई जा रही है। पेंच सिर्फ रायपुर को लेकर फंसा है। दरअसल, विधानसभा के बजट सत्र के तुरंत बाद ही तबादले होने थे। लिस्ट भी ज्यादा लंबी नहीं थी। जिन पुलिस अधीक्षकों को जिले में डेढ़ से दो साल हो रहे हैं, उन्हें बदला जाना है। मगर रायपुर किसे लाया जाए, ये बड़ा सवाल बन गया है। रायपुर में प्रशांत अग्रवाल एसपी हैं। उलझन यह है कि प्रशांत को किस जिले में भेजा जाए और उनकी जगह राजधानी की कमान किसे सौंपी जाए। पारूल माथुर का नाम रायपुर के लिए पहले चला था। उस समय फार्मूला यह था कि पारुल को रायपुर लाकर प्रशांत को दूसरी बार बिलासपुर का दायित्व दिया जाएगा। लेकिन, बिलासपुर में बढ़ते अपराधों की वजह से पारूल को वहां से हटाकर एसीबी भेज दिया गया। तब भी खबरें यही थी कि कुछ दिन बाद उन्हें रायपुर का कप्तान बनाया जाएगा। लेकिन, पारुल खुद ही हिट विकेट होकर सरगुजा चली गईं। रायपुर के लिए किसी प्रमोटी आईपीएस के नाम भी विचार किया जा रहा है। हालांकि, जब तक आदेश निकल नहीं जाता, तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसा भी हो सकता है विकल्प के अभाव में प्रशांत ही कंटीन्यू करें।

आईएएस के बुरे दिन

2003 बैच के प्रमोटी आईएएस गोविंद चुरेंद्र कभी रायपुर, बस्तर और सरगुजा के डिविजनल कमिश्नर रहे। मगर सरगुजा में उन्होंने ऐसा कुछ कर डाला कि उनकी गर्दिशों के दिन शुरू हो गए। सरकार ने उन्हें हटाकर बिलासपुर कमिश्नर डॉ0 संजय अलंग को सरगुजा डिविजन का एडिशनल चार्ज दे दिया। चुरेंद्र को नॉन कैडर पोस्ट पुलिस जवाबदेही प्राधिकरण में सचिव बनाया गया और अब राज्य सूचना आयोग के सचिव। इस आयोग में उपेक्षित केटेगरी के डिप्टी कलेक्टर पोस्ट होते रहे हैं। उस पद पर 2003 बैच के आईएएस। जाहिर सी बात है कि 2003 बैच पांच साल पहले सिकरेट्री बन चुका है। अब तो 2007 बैच भी सिकरेट्री प्रमोट हो गया है। मगर चुरेंद्र को अभी तक सचिव पद पर प्रमोशन नहीं मिला। एक पुरानी विभागीय जांच लंबित होने की वजह से उनका प्रमोशन रूक गया।

हार्ड लक!

2011 बैच के आईपीएस अधिकारी इंदिरा कल्याण ऐलेसेला तीन जिलों के एसपी रहे हैं और तीनों बार उनका हार्ड लक रहा। पहली बार रमन सरकार ने उन्हें सुकमा का पुलिस अधीक्षक बनाया था। मगर बस्तर में एक ऑटोमोबाइल शोरूम के उद्घाटन में उनकी जुबां फिसल गई थी। भाषण में उन्होंने कह डाला...बस्तर में माओवादियों को सपोर्ट कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गाड़ी से कुचल देना चाहिए। जाहिर है, इस पर बवाल मचना ही था। तब विस सत्र चल रहा था। रमन सिंह ने विधानसभा के अपने आफिस से कल्याण को हटाने का आदेश जारी किया था। इसके बाद भूपेश सरकार ने उन्हें बलौदा बाजार का एसपी अपाइंट किया। वहां उन्हें एक सिपाही ने ट्रेप कर लिया। क्वार्टर अलॉटमेंट के सिलसिले में सिपाही को एसपी ने कुछ अपशब्द कह दिए थे और सिपाही ने उसे रिकार्ड कर वायरल कर दिया। ऑडिया वायरल होने के बाद सरकार ने उन्हें हटा दिया। तीसरी बार उन्हें बेमेतरा जिले के एसपी बनाया गया। बेमेतरा में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई। इसमें तीन लोगों को जान गंवानी पड़ी। इसमें भी उनका हटना तय माना जा रहा है। क्योंकि, इस तरह की हिंसा के बाद सरकारें अधिकारियों को बदलती हैं।

व्हाट एन आइडिया!

रायपुर के टपरी वाले होटलों में भी 25 रुपए प्लेट से नीचे समोसे नहीं मिलते। और 10 रुपए से नीचे एक कप चाय नहीं। मगर 10 रुपए में भरपेट थाली मिल जाए, तो क्या कहेंगे। इसे चरितार्थ किया है, बिलासपुर के सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने। वो भी बिना अपना एक पैसा लगाए। स्वाभिमान थाली नाम की यह योजना सिर्फ स्टूडेंट्स के लिए है। कंसेप्ट यह है कि पांच-छह घंटे यूनिवर्सिटी में रहेंगे तो भूख लगेंगी। और भूखे पेट पढ़़ाई कैसे होगी? कुलपति प्रो. आलोक चक्रवाल ने इसके लिए अच्छा आईडिया निकाला। दरअसल, विवि के पास छात्रों को सस्ता भोजन कराने का कोई फंड नहीं होता। जेएनयू जैसे देश के शीर्ष विवि को सब्सिडी मिलती है फिर भी वहां इतना सस्ता भोजन नहीं मिलता। जेएनयू के कैंटीनों में भी एक बार के सामान्य भोजन में 40 से 50 रुपए जेब से निकल जाते हैं। प्रो0 चक्रवाल ने विवि के शिक्षकों से आग्रह किया कि वे बच्चों के भोजन के लिए स्वेच्छा से अंशदान करें। और देखते-देखते 60 लाख रुपए जमा हो गए। अब तो आउटर लोग भी दान के लिए विवि से संपर्क कर रहे हैं। अर्थशास्त्री कुलपति का है यह आइडिया है। बाकी शैक्षणिक संस्थान के प्रमुखों को भी इस तरह बिना खर्चे वाली अनुकरणीय योजनाएं चलानी चाहिए। क्योंकि, सरकारी संस्थानों में धनाढ्य नहीं बल्कि हर वर्ग के बच्चे बढ़ते हैं।

33 जिले, 77 दावेदार

छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या बढ़ गई है तो आईएएस की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है। इस समय कलेक्टर बनने की केटेगरी में 77 आईएएस हैं। 2008 बैच कलेक्टर के लिए लगभग क्लोज हो चुका है। 2009 बैच से सौरव कुमार और प्रियंका शुक्ला कलेक्टर हैं। 2016 बैच को कलेक्टर बनने का मौका मिल चुका है। 2017 बैच वेटिंग में है। 2009 से 2017 के बीच कैलकुलेट किया जाए, तो 77 आईएएस होते हैं। इन 77 में से ही इस समय 33 जिलों के कलेक्टर हैं। याने ये 33 आईएएस अपनी कलेक्टरी बचाने की दौड़ में हैं ही, बचे 44 आईएएस कलेक्टर बनने की दौड़ में हैं। बता दें, 2010 बैच के कभी चारों आईएएस कलेक्टर होते थे। इस समय सभी रायपुर वापिस लौट चुके हैं। इस बैच के दो-एक आईएएस कलेक्टर की दौड़ में शामिल हैं, तो प्रमोटी आईएएस में भी कई अधिकारी लंबे समय से वेटिंग में हैं। इनमें एडीएम के तौर पर रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव और कोरबा जैसे जिलों को संभालने वाले संजय अग्रवाल जैसे मैच्योर अफसर भी शामिल हैं। 2017 बैच के आईएएस की प्रतीक्षा अब लंबी होती जा रही है। दूसरा, चुनावी साल है...सरकार सोच-समझकर जिलों में कलेक्टरों को बिठाती है। ऐसे में, पोस्टिंग लिस्ट फायनल होना आसान नहीं है। उपर से तब, जब बेमेतरा जैसी घटना हो गई है, तो सरकार पदुम सिंह एलमा जैसों को कलेक्टरी से उपकृत करने से बचेगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक जिले का नाम बताइये, जहां के कलेक्टर, एसपी में समन्वय की स्थिति यह है कि दोनों आपस में बात नहीं करते?

2. क्या किसी प्रमोटी कलेक्टर को सरगुजा का संभागीय आयुक्त बनाया जाएगा या संजय अलंग अभी कंटीन्यू करेंगे?


शनिवार, 8 अप्रैल 2023

Chhattisgarh: तरकश-विरासत का सम्मान!

 संजय के. दीक्षित

Chhattisgarh: तरकश, 9 अप्रैल 2023

विरासत का सम्मान!

इस हफ्ते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरगुजा के दौरे पर थे। चूकि, मंत्री टीएस सिंहदेव दिल्ली में थे, सो उनके भतीजे और जिला पंचायत के उपाध्यक्ष आदित्येश्वर शरण सिंहदेव को मंच पर बिठाया गया। सीएम के संबोधन के दौरान जब आदित्येश्वर का नाम आया, तो पूरा नाम पढ़ते हुए उन्होंने चुटकी ली...नाम बहुत बड़ा है...आदि बाबा ही ठीक है। सीएम ने आदि को अपनी बगल की कुर्सी पर बिठाकर पांच मिनट बात की। बात क्या हुई...ये किसी को नहीं पता। जाहिर है, आदित्येश्वर को मंत्री सिंहदेव का सियासी वारिस माना जाता है... सरगुजा में मंत्री सिंहदेव के राजनीतिक काम आदि संभालते हैं।

पीसीसीएफ की डीपीसी

तीन आईएफएस अधिकारियों को पीसीसीएफ बनाने के लिए डीपीसी ने हरी झंडी दे दी है। मंत्रालय में इसके लिए 5 अप्रैल को डीपीसी बैठी थी। जिन अधिकारियों को पीसीसीएफ बनाने हरी झंडी मिली है, उनमें तपेश झा, संजय ओझा और अनिल राय का नाम शामिल है। डीपीसी के बाद तीनों आईएफएस अधिकारियों के नाम वन मंत्री मोहम्मद अकबर के पास अनुमोदन के लिए भेज दिए गए हैं। वन मंत्री के बाद फाइल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पास फायनल एप्रूवल के लिए जाएगी। मुख्यमंत्री से ओके होने के बाद फिर प्रमोशन का आदेश निकल जाएगा। प्रमोशन के बाद रेगुलर पीसीसीएफ संजय शुक्ला को मिलाकर पीसीसीएफ की संख्या सात हो जाएंगी। संजय शुक्ला, अतुल शुक्ला, सुधीर अग्रवाल और आशीष भट्ट पहले से पीसीसीएफ हैं।

अगला पीसीसीएफ कौन?

पीसीसीएफ संजय शुक्ला अगले महीने 31 मई को रिटायर होने के बाद रेरा चेयरमैन की कमान संभालेंगे, ये लगभग तय प्रतीत हो रहा है। मगर उनकी जगह अगला पीसीसीएफ कौन बनेगा, ये अभी क्लियर नहीं। संजय के बाद सीनियरिटी में पहला नाम सुधीर अग्रवाल का है। सुधीर इस समय पीसीसीएफ वाईल्डलाइफ हैं। पीसीसीएफ के प्रबल दावेदारों में एक नाम श्रीनिवास राव का भी है। श्रीनिवास कैम्पा के हेड हैं। हालांकि, वे अभी पीसीसीएफ प्रमोट नहीं हुए हैं। मगर उन्हें पीसीसीएफ का ग्रेड मिल गया है। सो, जानकारों का कहना है कि तकनीकी तौर पर कोई अड़चन नहीं आएगी। एक प्राब्लम ये आएगा कि श्रीनिवास को पीसीसीएफ बनाने के लिए छह आईएफएस अधिकारियों को ओवरलुक करना होगा। छह में से आशीष भट्ट इसी जून में रिटायर हो जाएंगे। मगर सुधीर अग्रवाल, तपेश झा, संजय ओझा, अनिल राय और अनिल साहू का डेढ़ साल से लेकर दो साल की सर्विस बची हुई है। ये सभी ऑल राउंडर हैं...सरकारें कोई भी हो, पोस्टिंग इन्हें अच्छी मिलती रही हैं। हालांकि, उत्तराखंड में पिछले हफ्ते ही रेगुलर पीसीसीएफ को हटाकर जूनियर को सरकार ने कमान सौंप दी थी। इसे कैट में चैलेंज किया गया। और कैट ने सरकार का फैसला पलट दिया। लब्बोलुआब यह है कि अपवादों को छोड़ दें तो होता वही है, जो सरकारें चाहती हैं। और सरकार की तरफ से कोई संकेत नहीं हैं।

पिकनिक भी रद्द

ईडी की मैराथन कार्रवाइयों से छत्तीसगढ़ की नौकरशाही सहमी हुई है। छापों को देखते आईएएस एसोसियेशन ने पहले आईएएस कांक्लेव स्थगित किया। अब माहौल शांत होता देख आईएएस एसोसियेशन द्वारा कांक्लेव की जगह फेमिली पिकनिक का प्लान किया जा रहा था। इसकी तैयारी भी शुरू हो गई थी। मगर ताबड़तोड़ छापों की वजह से अब पिकनिक कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया है।

बड़ी रजिस्ट्री नहीं

ईडी के छापों का असर अबकी जमीनों की रजिस्ट्री पर भी पड़ा है। रजिस्ट्री आफिस मार्च महीने में गुलजार रहता था...पिछले साल 31 मार्च को रात 12 बजे के बाद तारीख बदल गई मगर लाइन खतम नहीं हुई थी। मगर इस बार न लाइन थी और न रौनक। रजिस्ट्री अधिकारी बड़ी पार्टियों के इंतजार करते बैठे रहे। दरअसल, अधिकांश बड़ी रजिस्ट्री मार्च में होती है। इससे खजाने को अच्छा खासा रेवेन्यू आता है। बड़े सौदे भूमाफियाओं, बिल्डरों और नौकरशाहों के होते थे। मगर इस बार ईडी के छापों की वजह से सिस्टम सहमा हुआ है। ईडी की नजर चूकि रजिस्ट्री आफिस पर भी है। रजिस्ट्री अधिकारियों से लगातार जानकारियां मंगाई जा रही है, इसलिए कोई जोखिम नहीं लेना चाहता। हालांकि, रेवेन्यू पिछले साल से इसलिए कम नहीं हुआ क्योंकि 2020 के बाद जमीनों का मार्केट उछाल पर है। मगर ये बात जरूर है कि बड़े सौदे होते तो रेवेन्यू का ग्राफ और उपर जाता।

ताजपोशी

डीएम अवस्थी को 31 मार्च को रिटायर होते ही देर शाम पोस्ट रिटायरमेंट पोस्टिंग मिल गई। उन्हें पीएचक्यू में ओएसडी बनाया गया है। खबर है कि ओएसडी उनकी मूल पोस्टिंग रहेगी...ईओडब्लू और एसीबी चीफ का अतिरिक्त दायित्व सौंपा जाएगा। रिटायरमेंट के साथ ही पोस्टिंग पाने वाले डीएम सूबे के तीसरे अफसर बन गए हैं। बीजेपी सरकार में विवेक ढांड को आईएएस से वीआरएस स्वीकृत करते ही रेरा चेयरमैन की कमान सौंप दी गई थी। इसी तरह मुख्य सचिव से रिटायर होने के आधे घंटे के भीतर आरपी मंडल को एनआरडीए चेयरमैन बनाने का आर्डर निकल गया था। रमन सरकार में अधिकांश नौकरशाहों को रिटायरमेंट के हफ्ते-महीना भर बाद ही पोस्टिंग मिली।

प्रमोशन पर ब्रेक

सेंट्रल डेपुटेशन पर दिल्ली में पोस्टेड आईएएस अधिकारी अमित अग्रवाल का प्रमोशन रुक गया है। 93 बैच के आईएएस अमित की 30 साल की सर्विस पूरी हो जाने पर एडिशनल चीफ सिकरेट्री का प्रोफार्मा प्रमोशन मिलना था। बता दें, प्रतिनियुक्ति पर पोस्टेड अफसरों को प्रोफार्मा प्रमोशन दिया जाता है। प्रोफार्मा प्रमोशन में पद तो वहां के हिसाब से मिलता है मगर वेतनमान का लाभ मिलने लगता है। 2007 बैच के आईएएस अधिकारियों को सिकरेट्री प्रमोट करने डीओपीटी को फाइल भेजी गई, उसमें अमित अग्रवाल का नाम नहीं था। डीओपीटी से उसके लिए क्वेरी आ गई। ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि डीओपीटी की क्वेरी में अमित अग्रवाल की भूमिका थी। फायनली यह हुआ कि अमित प्रोफार्मा प्रमोशन से वंचित रह गए। अमित का हार्ड लक यह कि उनके बैच का यहां कोई दूसरा आईएएस नहीं है। दूसरे अधिकारियों के प्रमोशन से डेपुटेशन वाले अफसरों को फायदा मिल जाता है। अमित काबिल आईएएस हैं। कलेक्टरी तो महासमुंद जैसे एकाध जिले की किए हैं लेकिन, टेक्नोक्रेट हैं। आईटी में भी पकड़ है। चिप्स के फर्स्ट सीईओ अमित रहे। दिल्ली में मनमोहन सरकार हो या मोदी सरकार...उन्हें लगातार अच्छी पोस्टिंग मिली। रमन सरकार की तीसरी पारी वे छत्तीसगढ़ लौटे थे। लेकिन, उनका मन यहां रमा नहीं। साल भर में वापिस दिल्ली लौट गए। 23 साल में जोगी सरकार के तीन साल और रमन सरकार के समय एक साल...याने चारेक साल ही अमित छत्तीसगढ़ में रह पाए हैं। पिछली सरकार में प्रतिनियुक्ति से लौटने वालों के लिए नियम बनाया था कि उन्हेंं तुरंत पोस्टिंग नहीं दी जाएगी। अमिताभ जैन के साथ अमित अग्रवाल भी दो-एक महीने खाली बैठे रहे। कुल मिलाकर जोगी सरकार के बाद अमित के लिए छत्तीसगढ़ अनुकूल नहीं रहा।

गणेश शंकर की याद

बात प्रमोशन की...तो 1994 बैच के आईएएस भी रिटायर आईएएस अधिकारी गणेश शंकर मिश्रा को मिस कर रहे होंगे। गणेश शंकर के चलते डेढ़-पौने दो साल पहले उनका सचिव से प्रमुख सचिव प्रमोशन मिल गया था। वे प्रमुख सचिव बने और उसी शाम को रिटायर हो गए थे। उनके होने का फायदा बाकी अधिकारियों को मिला। बहरहाल, 1994 बैच को एसीएस बनने में आठ महीने का वक्त बच गया है। इससे पहले 91 और 92 बैच को एक से डेढ़ साल पहले एसीएस का प्रमोशन मिल गया था। लेकिन, 94 बैच में कोई झंडा उठाने वाला अफसर नहीं है। मनोज पिंगुआ आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट जरूर हैं। मगर जोड़-तोड़ वाला स्वभाव उनका नहीं है। उनके बैच की ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर और विकास शील डेपुटेशन पर हैं। अब देखना है, इस बैच का प्रमोशन टाईम पर मिलेगा या उससे पहले?

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के एक मंत्रीजी का नाम बताइये, जो कोई भी प्रदेश प्रभारी बने, उनके खास हो जाते हैं?

2. हाई प्रोफाइल रहने वाले डीएमएफ जिले के कई कलेक्टर इन दिनों खुद को बेहद लो प्रोफाइल में क्यों कर लिए हैं?