शनिवार, 30 जनवरी 2016

डीएम से खौफ क्यों?


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31 जनवरी


संजय दीक्षित
डीएम अवस्थी के डीजी बनने के पश्चात कुछ आईपीएस अफसरों के कैरियर पर काली छाया मंडराने लगी है। खौफ है, डीएम कहीं डीजीपी बन गए, तो अपना क्या होगा। दरअसल, डीजीपी बनने के बाद डीएम अगर क्रीज पर टिक गए तो आधा दर्जन से अधिक आईपीएस को डीजीपी बनने का अवसर नहीं मिलेगा। अप्रैल 2023 में डीएम का रिटायरमेंट है। याने आठ साल। सबसे लंबा। छत्तीसग़ढ़ में किसी भी डीजी का कार्यकाल इतना लंबा नहीं रहा। जाहिर है, नीचे वालों का ब्लडप्रेशर तो बढ़ेगा ही। अवस्थी से जस्ट नीचे 87 बैच के विनय कुमार सिंह और स्वागत दास हैं। दोनों भारत सरकार में डेपुटेशन पर हैं। इनमें से सिंह 2019 और दास 2022 में रिटायर हो जाएंगे। अब 88 बैच। इनमें सबसे सीनियर संजय पिल्ले। जुलाई 23 में वे रिटायर होंगे। डीएम के रिटायर होने के बाद उनके पास महज तीन महीने का समय रहेगा। इसके बाद आरके विज दिसंबर 21 और मुकेश गुप्ता सितंबर 22 में सेवानिवृत होंगे। 89 बैच के अशोक जुनेजा भी जून 23 में बिदा हो जाएंगे। सो, संजय पिल्ले कहीं आखिरी तक डीजीपी रहे, तो जुनेजा को उनसे एक महीना पहले नौकरी को बाय-बाय करना पड़ेगा। मगर यह तभी होगा, जब डीएम आउट नहीं हुए।

आईपीएस आगे, आईएएस पीछे

कैडर रिव्यू न हो पाने का खामियाजा सूबे के ताकतवर नौकरशाहों को इस तरह भुगतना पड़ रहा है कि प्रमोशन के लिए उन्हें आईपीएस अफसरों का सहारा लेना पड़ रहा है। डीएस मिश्रा से लेकर बैजेंद्र कुमार तक का प्रमोशन आईपीएस का हवाला देकर हुआ। आपको याद होगा, 82 बैच के रामनिवास 2011 में एडीजी बन गए थे। जबकि, 82 बैच के आईएएस डीएस मिश्रा का प्रमोशन नहीं हो रहा था। तब के चीफ सिकरेेट्री सुनिल कुमार ने रामनिवास की आड़ में डीएस का प्रमोशन कराया था। इसके बाद, फरवरी 2014 में 85 बैच के अमरनाथ उपध्याय डीजीपी बने तो 84 बैच के एमके राउत और 85 बैच के एन बैजेंद्र कुमार को इसी पैटर्न पर एसीएस प्रमोट किया गया। असल में, कैडर रिव्यू न होने का खामियाजा आईएएस को भुगतना पड़ रहा है। ब्यूरोक्रेसी में उपर लेवल पर अफसर बढ़ गए मगर पोस्ट बढ़ा नहीं। यही वजह है कि प्रिंसिपल सिकरेट्री सुनील कुजूर और अजयपाल सिंह एसीएस नहीं बन पा रहे हैं। सरकार ने उनके लिए दो स्पेशल पोस्ट मांगा है, मगर भारत सरकार से हरी झंडी मिल नहीं पा रही। जबकि, उन्हीं के 86 बैच के आईपीएस डीएम अवस्थी डीजी बन गए हैं। एसीएस और डीजी का पोस्ट समतुल्य होता है। सो, सामान्य प्रशासन विभाग अब डीएम का हवाला देकर अब भारत सरकार से फिर गुजारिश करने जा रहा है।

और मजबूत होगा एसीबी

सरकार ने एंटी करप्शन ब्यूरो को और मजबूत करने का फैसला किया है। गृह विभाग ने कुछ दिन पहले ब्यूरो से जिन 26 अफसरों एवं जवानों को वापिस बुलाने का फरमान जारी कर दिया था, सरकार के हस्तक्षेप के बाद इसे निरस्त किया जा रहा है। यही नहीं, पहली बार एसीबी को सिके्रट सर्विस मनी का प्रावधान किया जा रहा है। इतना सब हो रहा है तो आपको यह मानना पड़ेगा कि एसीबी चीफ मुकेश गुप्ता का जलजला कम नहीं हुआ है। वरना, 26 लोगों का ट्रांसफर केंसिल तो कदापि नहीं होता।

कांग्रेस के साथ पारी

आईजी रविंद्र भेडि़या 31 जनवरी को रविवार होने के चलते एक दिन पहले 30 को ही रिटायर हो जाएंगे। रिटायरमेंट के बाद वे कांग्रेस के साथ अपनी नई पारी की शुरूआत करेंगे। वैसे भी, वे कांग्रेसी परिवार से ही आते हैं। उनकी पत्नी अनिला भेडि़या डौंडीलोहारा से कांग्रेस से विधायक हैं। रविंद्र के बड़े भाई डोमेंद्र भेडि़या भी डौंडीलोहरा से कई बार विधायक रह चुके हैं। बहरहाल, छत्तीसगढ़ बनने के बाद भेडि़या कांग्रेस में शामिल होने वाले पहले रिटायर आईपीएस होंगे। यह भी हो सकता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में डौंडीलोहारा से पत्नी की बजाए वे मैदान में उतर जाएं। इससे पहले, आरसी पटेल की तब के पीसीसी चीफ नंदकुमार पटेल के साथ निकटता रही। पिछले विधानसभा चुनाव के समय टिकिट उनको मिलने की चर्चा भी खूब रही मगर उन्होंने कांग्रेस ज्वाईन नहीं किया।

विपक्ष को वेटेज

कांग्रेस को अबकी बजट में शिकायत नहीं रहेगी कि उनके इलाके को इगनोर किया गया है। सीएम डा0 रमन सिंह ने पहली बार अबकी कांग्रेस विधायकों को भी बजट पर सुझाव के लिए बुला रहे हैं। सरगुजा संभाग से विधायकों के साथ नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव भी एक जनवरी को शाम सीएम हाउस में अपनी बात रखेंगे। चलिये, बजट पर चर्चा के दौरान कांग्रेस को यह शिकवा नहीं होगी कि उन्हें नहीं सुना गया।

अफसर रहेंगे टारगेट में

बजट के लिए सीएम से वन-टू-वन मुलाकात में सुझाव कम, जाहिर तौर पर शिकायतें अधिक हांेगी। और, टारगेट में रहेंगे अफसर। पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा ने आज इसका आगाज कर भी दिया। एक न्यूज चैनल से बात करते हुए उन्होंने मंत्रालय में अफसरों के टाईम से न आने पर अफसरशाही को निशाने पर लिया। उन्होंने दो टूक कहा कि सुनिल कुमार जब सीएस थे तो अफसर कैसे 10 बजे मंत्रालय पहुंच जाते थे। वे सीएम से इस बारे में बात करेंगे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. आईएफएस अफसरों की डीपीसी की फाइल किसके पास अटकी हैं?
2. जुआ खिलवाने पर किस एसपी को पिछले हफ्ते सरकार ने फटकार लगाई?

शनिवार, 23 जनवरी 2016

फिर फिसली जुबां


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संजय दीक्षित
खेल एवं श्रम मंत्री भैयालाल रजवाड़े की एक बार फिर जुबां फिसल गई। सीएम हाउस में संसदीय सचिवों के शपथ लेने के बाद एक महिला संसदीय सचिव को वन विभाग मिलने पर मीडिया ने वन विभाग में उनकी प्राथमिकताओं पर सवाल पूछा। संसदीय सचिव इसका जवाब देतीं, इससे पहले बाजू में खड़े रजवाड़े तपाक से बोल पडे़, बोलो ना, वन के साथ मेरा तन है….। रजवाड़े की इस टिप्पणी से न केवल संसदीय सचिव बुरी कदर झेंप गईं बल्कि आसपास खड़े लोग भी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। याद होगा, पिछले साल आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के एक कार्यक्रम में महिलाओं पर की गई अमर्यादित टिप्पणी पर बड़ा बवाल मचा था। उन्होंने कहा था, पांच सौ की चाकरी, चार हजार की साड़ी, ये है आंगनबाड़ी। रजवाड़े की इस बेतुके बोल पर सरकार को भी शर्मसार होना पड़ा था।

भाई-भाई

छत्तीसगढ़ कांग्रेस और छत्तीसगढ़ पुलिस की हालत लगभग भाई-भाई वाली हो गई है। कांग्रेस में एक-दूसरे को एक्सपोज करने की होड़ मची है। तो पुलिस मुख्यालय के कुछ अफसरों और बस्तर पुलिस में जंग छिड़ी हुई है। जंग है, अधिकार और अहंकार की। बस्तर पुलिस सीएम और डीजीपी के इतर कहीं देखती नहीं। और पीएचक्यू के एक गुट को लगता है, उन्हें बायपास किया जा रहा है। ऐसे में, झगड़े तो होंगे ही। जाहिर है, भूपेश और जोगी की लड़ाई में कांग्रेस की भद पिट रही है तो पुलिस अफसरों की खींचतान में सरकार की। जगदलपुर में नक्सलियों की शादी पर सरकार की आखिर, किरकिरी हो ही गई। बस्तर पुलिस बड़बोलेपन में कह गई थी कि जिन नक्सलियों की शादी हो रही है, वे जीरम कांड-एक और दो में शरीक थे। पुलिस महकमे ने तीन दिन तक इसका खंडन करना भी मुनासिब नहीं समझा। अलबत्ता, विरोधी खेमा चटकारे लेता रहा, फंस गई बस्तर पुलिस…..बड़ा नक्सल एक्सपर्ट बनता है….अब आएगा मजा। उधर, कांग्रेस ने सीधे सरकार पर हमला बोल दिया, जीरम घाटी में कांग्रेसियों को मारने के एवज में सरकार नक्सलियों को शादी करवाकर नौकरी का तोहफा दे रही है। वास्तव में मैसेज भी कुछ ऐसा ही जा रहा था। सरकार भी मानती है कि गर पहले दिन ही इसका खंडन हो गया होता, तो विपक्ष को अवसर नहीं मिलता। सरकार की फटकार के बाद पुलिस जागी और तीन दिन बाद खंडन का ड्राफ्ट तैयार कर हांफते हुए सीएम सचिवालय पहुंचे पीएचक्यू के अधिकारी। मगर तब तक काफी देर हो चुकी थी। सीएम सचिवालय ने यह कहते हुए पुलिस अधिकारियों को झिड़क दिया कि झूठ को झूठ कहने में आपलोगों को तीन दिन लग गए।

जब रमन हुए लाल

पुलिस की आपसी लड़ाई में जब सरकार की छबि दागदार होने लगे तो सरकार को भला गुस्सा कैसे नहीं आएगा। नक्सलियों की शादी और उन्हें नौकरी देने पर जब सरकार पर आरोपों की बौछारें शुरू हो गईं तो गुरूवार को सीएम ने पुलिस और गृह महकमे के आला अफसरों की खबर ली। पूछा, जब झीरम कांड की जांच कर रही एनआईए के एफआईआर तक में दोनों नक्सलियों के नाम नहीं है, तो इसका खंडन क्यों नहीं किया गया। जबकि, पीएचक्यू में प्रवक्ता है, नक्सल सेल बना हुआ है। अब, सीएम के गुस्से का असर दिखना ही था। दिपांशु काबरा को उठाकर सरगुजा भेज दिया गया और लांग कुमेर को रायपुर पुलिस मुख्यालय। जबकि, सरगुजा आईजी के लिए हेमकृष्ण राठौर का नाम लगभग तय था। दिपांशु हाईप्रोफाइल आईपीएस माने जाते हैं। रायगढ़, दुर्ग और रायपुर जैसे जिलों में कप्तानी की है। सो, उनकी दावेदारी दुर्ग या रायपुर के लिए थी। मगर इससे पहले ही सरकार ने तलवार निकाल कर भांज दिया। आने वाले समय में पीएचक्यू में कुछ और उठापटक हो जाए, तो अचरज नहीं।

छाबड़ा का बल्ले-बल्ले

दिपांशु काबरा के सरगुजा जाने से डीआईजी स्पेशल इंटेलिजेंस ब्रांच डा0 आनंद छाबड़ा की हर महीने लगभग 60 हजार रुपए की लाटरी निकल जाएगी। दरअसल, एसआईबी में वेतन 50 फीसदी अधिक मिलता है। मगर एसआईबी में सिर्फ आईजी का पोस्ट सेंक्शन होने के चलते छाबड़ा को इसका लाभ नहीं मिल रहा था। हालांकि, पीएचक्यू ने फाइल चलाई थी मगर पोस्ट ना होने के कारण गृह विभाग ने उसे वापिस लौटा दिया था। अब, काबरा हट गए हैं तो छाबड़ा को तो बल्ले-बल्ले समझिए।

अवस्थी होंगे  डीजी

1986 बैच के आईपीएस डीएम अवस्थी को डीजी बनाने के लिए शनिवार को देर शाम मंत्रालय में डीपीसी हो गई। समझा जाता है, दो-तीन दिन में उनका आर्डर भी निकल जाएगा। वे सूबे के चैथे डीजी होंगे। एएन उपध्याय, गिरधारी नायक और डब्लूएम अंसारी पहले से इस रैक में हैं। यह पहला मौका होगा, जब छत्तीसगढ़ पुलिस में चार डीजी होंगे। प्रमोशन होने के बाद हाई प्रोफाइल आईपीएस अवस्थी को अब विभाग क्या मिलता है, इसकी अटकलें लगनी शुरू हो गई है।

सुबह भूपेश, शाम को जोगी

22 जनवरी को कांग्रेस के गुटीय प्रदर्शन में दोपहर तक भूपेश बघेल गुट हावी रहा। तमाम विरोधों के बाद भी संगठन खेमा जगह-जगह अंतागढ़ टेप कांड की सीडी चलाने में कामयाब हो गया। मगर दोपहर बाद जोगी खेमा ने राजधानी में कोलावेरी की पैरोडी चलाकर माहौल खींच लिया। पैरोडी थी, व्हाय दिस फर्जी टेप, फर्जी टेप जी…क्यों भूपेश….दू करोड़ में टेप बनाइंग, बैक डेट में ह महामत्री बनाइंग, ददा संग कांग्रेस चलाइंग, ओला घर के खेती बनाइंग, व्हाय दिस फर्जी टेप, फर्जी टेप जी। ठीक 3 बजे राजधानी में आधा दर्जन मिनीडोर इस पैरोडी को चलाते हुए निकले। उसमें पोस्टर भी चस्पा था, छत्तीसगढ़ में कार्यरत एक राष्ट्रीय पार्टी को आवश्यकता है, एक महामंत्री की। योग्यता-सजायाफ्ता मुजरिम हो, ब्लैकमेलर हो, कम-से-कम पांच आडिया, वीडियो कांड किए हो। योग्य उम्मीदवार को एक नेता का सीडी बनाना होगा। चयन होने के बाद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दो करोड़ रुपए एवं बैकडेट में नियुक्ति आदेश देंगे। मिनीडोर जहां भी गया, लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। हालांकि, इस पर पब्लिक का रियेक्शन अच्छा नहीं था। कुछ लोगों ने बड़ी तल्ख टिप्पणी की….दोनों गुट एक-दूसरे का कपड़ा खोल रहे हैं….इसमें नुकसान कांग्रेस पार्टी का ही होगा।

शक्ति प्रदर्शन

एक ओर कांग्रेस गुटीय शक्ति प्रदर्शन में दम-खम के साथ जुटी हुई है। वहीं, सत्ताधारी पार्टी 2018 के चुनाव के लिए अपना किला मजबूत करने में जुट गई है। बोर्ड एवं निगमों में ताजपोशी के बाद सरकार ने कैबिनेट और राज्य मंत्री का दर्जा देने में देर नहीं लगाई। पहली बार ऐसा हुआ कि दो दिन के भीतर किसको किस तरह की सुविधा की पात्रता होगी, आर्डर जारी कर दिया। वरना, दूसरी पारी में लाल बत्ती का दर्जा के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा था।

अंत में दो सवाल आपसे

1. छत्तीसगढ़ के आईएएस 30 अप्रैल को ब्यूरोक्रेसी में होने वाली किस उठापटक की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं? 
2. कांग्रेस के संगठन खेमे ने सिर्फ जोगी और मंतूराम पवार की सीडी ही क्यों चलाई?

शनिवार, 16 जनवरी 2016

दो पाटन के बीच

 

तरकश17 जनवरी
 संजय दीक्षित
कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई ने पार्टी नेताओं के सामने धर्मसंकट की स्थिति खड़ी कर दी है। आखिर, वे किस नाव की सवारी करें। जोगीजी की या भूपेश बघेल की। दोनों नाव को साधे रखने के चक्कर में गड़बड़ भी हो रहा है। आपने देखा ही, दो दिन जोगी जी के साथ रहने के बाद भूपेश बघेल की नाव की सवारी करने पीसीसी दफ्तर गए कवासी लकमा कैसे फंस गए। साजा वाले महराज, रविंद्र चैबेजी के समक्ष तो और विकट स्थिति है। एक ओर खाई तो दूसरी ओर…। टेप कांड से पहले उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र जांता में 18 जनवरी को सतनामी समाज का सम्मेलन के लिए जोगीजी का कार्यक्रम ले लिया था। सागौन बंगला से जोगीजी का कार्यक्रम भी रिलीज हो गया है। महराज अगर जोगी के साथ मंच शेयर करते हैं तो उन पर संगठन खेमे की भृकुटी तन जाएगी। और, कार्यक्रम अगर निरस्त करते हैं तो जोगीजी का तीसरा नेत्र खुल जाएगा। साजा में 12 फीसदी सतनामी वोटर हैं। जोगीजी को नाराज करने के वे मतलब आप समझ रहे हैं ना।

वाह जोगीजी!

अंतागढ़़ टेप कांड में अजीत जोगी पर कार्रवाई लगभग टल ही गई है। संगठन खेमे के लोग भी दबी जुबां से इसे स्वीकार करने लगे हैं। बताते हैं, राहुल गांधी ने साफ कह दिया कि एक के खिलाफ एक्शन तो हो ही गया है। एक माने अमित जोगी। राहुल गांधी वैसे भी अब पार्टी के नेताओं को प्यार का पैगाम दे रहे हैं। शुक्रवार को मुंबई में उन्होंने महाराष्ट्र कांग्रेस वर्सेज संजय निरुपम के केस में कहा कि पीसीसी कैसे चलती है, मुझे मालूम हो गया है। आपलोग प्यार से रहिये, पार्टी को मजबूत कीजिए……मैंने अपने स्टाफ से कहा है कि शिकवे-शिकायत ले कर दिल्ली आने वाले नेताओं को तिल का लड्डू खिलाएं और उनसे कहें कि वे एक-दूसरे के साथ प्यार से रहे। तिल का लड्डू खाकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के जय-बीरु कल लौट ही आए हैं। बहरहाल, जोगी ने एक बार फिर साबित किया कि वे ऐसे योद्धा हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ाई का रुख बदलने का माद्दा रखते हैं। ऐसे समय में, जब रायपुर से लेकर दिल्ली तक जोगी की घेरेबंदी हो गई थी। छत्तीसगढ़ की राजनीति मे दिलचस्पी रखने वाले कांग्रेस के कुछ दिग्गज नेता भी इसी एपीसोड में अपना पुराना हिसाब चूकता करना चाहते थे। लेकिन, मान गए जोगी को। उन पर कार्रवाई के लिए जय-बीरु दो-दो बार दिल्ली हो आए। जोगी छत्तीसगढ़ से हिले भी नहीं। जिस समय दिल्ली छत्तीसगढ़ की राजनीति का केंद्र बन गया था, जोगी पामगढ़ और अहिरवारा की सभा में दहाड़ रहे थे, छत्तीसगढ़ में मोर ले बड़े कोन नेता हवै। फिरोज सिद्दिी का अपनी आवाज से पलटना और टेप पार्ट-3, ओवर की आखिरी गेंद पर जावेद मियादाद का छक्का हो गया।

टर्निंंग प्वाइंट

टेप कांड एपीसोड में सोनिया गांधी का पीसीसी प्रमुख और नेता प्रतिपक्ष से न मिलना जोगी खेमे के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। दोनों नेताओं ने दो दिन प्रयास किया मगर सोनिया से दस जनपथ से ग्रीन सिग्नल नहीं मिल सका। सियासी प्रेक्षक भी मानते हैं कि भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को अगर दो मिनट का वक्त भी मिल गया होता….शिकायत तो दूर, सिर्फ दुआ-सलाम हो भी गया होता, तो जोगी खेमे की स्थिति आज कुछ और होती। जोगीजी के साथ आज जो विधायक खड़े हैं, इसमें से शायद आधे भी नहीं टिके रहते। असल में, सोनिया का संगठन नेताओं से नहीं मिलने के बाद जोगी खेमा अपने लोगों में यह मैसेज देने में कामयाब हो गया कि दिल्ली में साब का जादू अभी कायम है। यही वजह है कि दिल्ली में जोगी समर्थकों का जमावड़ा लग गया।

एक और सीडी

कांग्रेस नेताओं की एक और सीडी आने की चर्चा इन दिनों राजधानी में सुनाई पड़ रही है। बताते हैं, टेपकांड पार्ट-4 के बाद कांग्रेस की पालीटिक्स में कयामत आ जाएगी। वैसे, सीएम डा0 रमन सिंह भी संकेत दे चुके हैं कि अभी और सीडी आएंगी। सरकार के खुफिया अफसरों को भी इस सीडी के बारे में जानकारी मिल चुकी है।

प्राइज टाईप कलेक्टर्स

प्राइज टाईप कलेक्टर्स बोले तो सिर्फ प्राइज के लिए काम। सोशल सेक्टर का एक काम पकड़कर आंकड़ों की बाजीगरी करके दिल्ली से पुरस्कार ले आओ। ऐसे कलेक्टरों से अपनी सरकार बेहद नाराज है। सीएम डा0 रमन सिंह ने ऐसे कलेक्टरों को ताकीद की है कि कलेक्टर्स पुरस्कार की बजाए एडमिनिस्ट्रेशन पर फोकस करें। असल में, सरकार के पास रिपार्ट आई है कि 27 में से सात कलेक्टर भी एडमिनिस्ट्रेशन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। वैसे भी, बस्तर के सात जिलों में एडमिनिस्ट्रेशन करने के कोई गुंजाइश है नहीं। बचे 20। इनमें से सरगुजा संभाग का भी वहीं हाल है। एडमिनिस्ट्रेशन की कमजोरी के चलते सरकार की अच्छी योजनाएं भी लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है।

राठौर होंगे सरगुजा आईजी?

26 जनवरी के बाद सरगुजा के नए आईजी का आर्डर निकल जाएगा। वहां के आईजी लांग कुमेर एडीजी बनने जा रहे हैं। उनकी डीपीसी हो गई है। सिर्फ आदेश निकलना बाकी है। सरगुजा आईजी के लिए दो नाम चर्चा में है। दिपांशु काबरा और हेमकृष्ण राठौर। राठौर की भी डीआईजी से आईजी के लिए डीपीसी हो गई है। राठौर के सरगुजा आईजी बनाए जाने को इसलिए बल मिल रहा है क्योंकि, एक तो आईजी लेवल में अफसरों का टोटा है। लांग कुमेर के प्रमोट होने और आरके भेडि़या के इस महीने रिटायर होने से दो आईजी वैसे भी कम हो जाएंगे। दिपांशु हाई प्रोफाइल के आईपीएस हैं। जाहिर है, उनकी कोशिश होगी मैदानी एरिया में ही मैदान मारा जाए। सरगुजा क्यों जाएं? ऐसे में, राठौर का पलड़ा भारी दिख रहा है। राठौर ट्रांसपोर्ट में भी रह चुके हैं। ट्रांसपोर्ट वालों की उपर में ट्यूनिंग भी बढि़यां होती है।

गले पड़ गईं

आउटसोर्सिंग का विरोध करना लगता है, कांग्रेस पार्टी को भारी पड़ जाएगा। कांग्रेस के विरोध के बाद सरकार ने नर्र्साेंं की भरती निरस्त कर दी है। नौकरी से निकाली गईं नर्संे शुक्रवार को संुबह रायपुर आकर कांग्रेस भवन में जम गईं। हालांकि, कांग्रेसियों ने दूसरे रोज नर्साें के रुकने के लिए पास के धर्मशाला में बंदोबस्त कर दिया। मगर नर्सों का कहना है, कांग्रेस के विरोध के चलते उनकी नौकरी गई है, अब कांग्रेस ही उनके लिए कुछ करें। वरना, वे वापिस नहीं जाएंगी।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सूबे के एक ताकतवर शख्सियत के सचिवालय के किस नौकरशाह को इन दिनों बाजीराव कहा जा रहा है?
2. सिकरेट्री निधि छिब्बर को आखिर दिल्ली जाने की इजाजत क्यों नहीं मिल पा रही है?

शनिवार, 9 जनवरी 2016

बीजेपी के डा0 राज

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10 जनवरी
संजय दीक्षित
बीजेपी के दूसरी बार प्रदेश अध्यक्ष चुने गए धरमलाल कौशिक को अब पार्टी की खोई हुई ताकत वापिस लौटाने के लिए डा0 राज की भूमिका निभानी होगी। ये हम नहीं कह रहे हैं, पार्टी मुख्यालय में इस पर खूब चुटकी ली जा रही है। दरअसल, कौशिक की दूसरी बार हुई ताजपोशी के दौरान स्पीच में सभी ने इस बात पर जोर दिया था कि अध्यक्षजी को अब बीजेपी की खोई ताकत को वापिस लौटाने के लिए कमर कसना होगा। सभाकक्ष से बाहर निकलने के बाद पार्टी की खोई हुई ताकत पर जमकर ठहाके लगे। राजधानी के एक सीनियर मंत्री ने चुटकी ली, अध्यक्षजी को अब डा0 राज बनना होगा, तभी तो वे खोई ताकत लौटा पाएंगे। डा0 राज बोले तो जवानी और खोई हुई ताकत दिलाने वाले रायपुर के जाने-माने डाक्टर। ऐसे में, अध्यक्षजी का यह नया उपनाम हिट होना ही था।

राहू की दशा

अमित जोगी के बाद उनके पिता अजीत जोगी को ठिकाने लगाने के लिए कांग्रेस के जय-बीरु दिल्ली तो उड़े मगर उन्हें पता नहीं था कि रवाना होते वक्त राहू की दशा चालू हो गई थी। सो, जिस उत्साह के साथ गए थे, दो दिन बाद मायूसी के साथ लौट आए। अनुशासन कमेटी के प्रमुख एके एंटोनी दिल्ली से बाहर थे। कमेटी के एक दीगर मेम्बर से मिलने गए तो बताते हैं, उस रोज दादाजी के कान की मशीन खराब थी। दादाजी ने दोनों को यह कहते हुए लौटा दिया कि मशीन बन जाएगी, तो कल आकर बताना। एंटोनी के लिए अंग्रेेजी में रिपोर्ट बनाई गई थी। बाद में, चेंज कर उसे हिन्दी में तैयार करनी पड़ी। अगले दिन कान की मशीन बनने के बाद जय-बीरु ने अपनी फरियाद उनके सामने रखी। इसके बाद, रही-सही कसर सोनिया गांधी ने पूरी कर दी। मिलने का वक्त ही नहीं मिला। अब, आखिरी उम्मीद राहुल गांधी से है। बहरहाल, जोगी को इससे बड़ी राहत और क्या होगी। उन्हंें अपनी ताकत दिखाने और सेफ करने का पर्याप्त टाईम मिल गया। वैसे भी, कोई भी कार्रवाई तुरत-फुरत ही होती है। लंबा टाईम खिंचने का मतलब आप समझ सकते हैं।

पहले सत्ता, फिर…..

स्थानीय निकाय चुनावों में झटका लगने के बाद सरकार अब बोर्ड एवं कारपोरेशनों में ताजपोशी को लेकर गंभीर हो गई है। अभी लगभग दर्जन भर बोर्ड एवं निगमों में नियुक्तियां होनी हैं। मसलन, वित्त आयोग, श्रम कल्याण मंडल, वन विकास निगम, अंत्यवसायी निगम, मंडी बोर्ड, मदरसा बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग, कर्मकार मंडल, प्लानिंग कमीशन, पीएससी। इसके लिए सरकार पर पहले से काफी प्रेशर है। मगर निकाय चुनावों के बाद अब इनमें पोस्टिंग अपरिहार्य समझी जाने लगी है। सूत्रों की मानें तो मकर संक्रांति के बाद कभी भी लाल बत्ती का ऐलान हो सकता है। इसके बाद फिर, पार्टी के कप्तान धरमलाल कौशिक की टीम का ऐलान होगा। लाल बत्ती में जो बच जाएंगे, उन्हें संगठन में एडजस्ट किया जाएगा। याने पहले सत्ता, बाद में संगठन। ठीक भी है। संगठन हमेशा सत्ता के पीछे ही चलता है।

शिष्टाचार के दो रूप

होटल ताज में हुए टाउन प्लानिंग पर नेशनल सिम्फोजियम के इनोग्रेशन में सीएम के बायी ओर आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव अमन सिंह और दायी ओर विभागीय मंत्री राजेश मूणत और उसके बाद एक्स चीफ सिकरेट्री पी जाय उम्मेन बैठे थे। उम्मेन के लिए अमन सिंह ने न केवल अपनी कुर्सी छोड़ दी। बल्कि, उन्हें ससम्मान ले आकर उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाई। यहीं नहीं, उन्होंने अपने हाथ से ही नेम प्लेट को भी एक्सचेंज किया। दरअसल, कुर्सी पर रहने के दौरान किसी भी सरकारी मीटिंग में सीएस हमेशा सीएम के बगल में बैठते हैं। भले ही उसमें कितने भी मंत्री होें। उम्मेन तो सबसे ज्यादा समय तक सीएस रहे हैं। करीब साढ़े तीन साल। इसलिए, अमन ने बड़ा दिल दिखाया। मगर ब्यूरोक्रेटिक शिष्टाचार का यह दृश्य हमेशा देखने के लिए थोड़े ही मिलता है। नवंबर में मंत्रालय में हुए एक कार्यक्रम में एक एक्स सीएस को अपमानित करने के लिए कुछ अफसरों ने उन्हें बैठने के लिए जान-बूझकर चैथे नम्बर की कुर्सी निर्धारित कर दी थी। एक्स सीएस ठहरे स्वाभिमानी। वे कार्यक्रम में ही नहीं गए।

फटकार पर सवाल

पांच जनवरी को कलेक्टर्स कांफ्रेंस में सीएम की पांच कलेक्टरों की कथित फटकार को लेकर अगले दिन बवाल मच गया। सीएम के करीबी अफसरों के पास सबने चढ़ाई कर दी। सबका एक ही सवाल था, साब ने हमको कब डांटा? हमें कहां डांटा? एक कलेक्टर ने सीधे सीएम के परिजनों को फोन लगा डाला। असल में, फटकार पर सवाल इसलिए खड़े हुए क्योंकि, पांच में से तीन कलेक्टर सरकार के बेहद प्रिय हैं। लगातार तीसरा और चैथा जिला कर रहे हैं तो जाहिर है, वे ऐसे-वैसे भी नहीं होंगे। खैर, कलेक्टरों को दुखित नहीं होना चाहिए। उन्हें याद होना चाहिए, 2014 के कलेक्टर्स कांफ्रेंस में मुंगेली कलेक्टर को जमकार फटकार मिली थी। तब माना गया था कि उनकी छुट्टी तय है। मगर हटाने की बात तो दूर, छह महीने बाद संभागायुक्त बनाकर सरकार ने उन्हें ईनाम दे दिया था। इसलिए, फटकार नहीं मिली है, तो अच्छी बात है। और मिली है तो भी इसे बुरा नहीं मानना चाहिए। हो सकता है, मार्च-अप्रैल में होने वाले फेरबदल में उन्हें और बेहतर जिला मिल जाए।

जब सख्त हुए सीएम

कलेक्टर, एसपी कांफ्रेंस में सीएम का अधिकांश समय तो कलेक्टर्स के साथ चर्चा में निकल गया। शाम पांच बजे एसपीज को मौका मिला तो उसमें घंटा भर से ज्यादा वक्त पीडब्लूडी ने ले लिया। इसके बाद डीजीपी एएन उपध्याय बोले। फिर, सीएम। एक-दो एसपी यह कहते हुए अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश की कि जुआ और सट्टे में उनके जिले में कमी आई है। यह सुनते ही सीएम का चेहरा सख्त हो गया। बोले, चाय और पान ठेले वाले को भी पता होता है कि कहां जुआ और कहां सट्टा होता है, मगर आपलोगों को मालूम नहीं। बिना एसपी की जानकारी में मजाल नहीं, कि जुआ और सट्टा चल जाए। सीएम यहीं पर नहीं रुके। तल्खी से कहा, जुआ और सट्टा कम नहीं, बिल्कुल बंद होना चाहिए।

हाथी पर नियंत्रण

कलेक्टर्स कांफ्रेंस में जंगल विभाग के एक आला अधिकारी से हाथी समस्या पर प्रेजेंटेशन दिलाने का प्रोग्राम था। अफसर भी इसके लिए मचल रहे थे। जबकि, सीएम जानते थे कि इसमें बकवास के अलावा कुछ नहीं होने वाला। सो, उन्होंने यह कहते हुए कटाक्ष किया कि पहले हाथी पर ये नियंत्रण कर लें, फिर, प्रेजेंटेशन देंगे। सीएम के इस तेवर से जंगल विभाग के अधिकारी सकपका गए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. अजीत जोगी के सबसे कठिन समय में उनके प्रिय विधायक कवासी लकमा और मनोज मंडावी साथ खड़े क्यों नहीं हुए?
2. भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को सोनिया गांधी से मिलने का आखिर वक्त क्यों नहीं मिला?

आस्तिन का सांप

Nतरकश3 जनवरी

संजय दीक्षित
अगर कोई आस्तिन में सांप पालेगा तो वह कभी-न-कभी डंसेगा ही। क्योंकि, डंसना उसका स्वभाव है। छत्तीसगढ़ की राजनीति को हिला देने वाला टेप कांड भी कुछ इसी तरह का हुआ है। 14-15 साल से हर करम-धतकरम मे साथ रहने वाले चेले ने नेताजी को कहीं का नहंी छोड़ा। बात भी कोई बड़ी नहीं थी। छोटा-सा इश्यू था। काम नहीं होने पर चेले ने लूज टाक कर दी। इससे नाराज होकर नेताजी ने पिछले महीने चेले को न केवल फटकार लगाई बल्कि बंगले में नहीं दिखने की चेतावनी दे डाली थी। और, यही घटना टेप कांड की पृष्ठभूमि बन गई। लंबे समय से आस्तिन में बैठे चेले ने नेताजी से हिसाब बराबर करने में देर नहीं लगाई। पिछले साल सितंबर में अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव के समय उसने अपने मोबाइल से नेताजी की सबसे बात कराई थी और पूरे एपीसोड को टेप कर लिया था। उसे उसने मीडिया को दे दिया। लेकिन, मीडिया वालों ने कहा, टेप में लेन-देन का माजरा क्लियर नहीं हो रहा है। तो दिसंबर के पहले हफते में कांकेर इलाके के एक नेता से मोबाइल पर फिर बात की गई। रिकार्डिंग से अनभिज्ञ नेताजी ने सबको खूब कोसा, मुझे इतना ही मिला…..सबने मुर्ख बना दिया। यद्यपि, इस कांड के खुलासे के चार दिन बाद भी लोग कंफ्यूज्ड हैं कि फोन रिकार्ड किसने किया….कैसे लीक हुआ……आखिर, अपनी निगेटिविटी को भला कोई टेप क्यों करेगा। अब, आपको क्लियर हो गया होगा कि चेले ने अपने मोबाइल से नम्बर डायल कर बात कराई। चेले पर भरोसा था। सो, किसी तरह का शक नहीं हुआ। मगर चेला आस्तिन का सांप निकल गया। उसने पूरा रिकार्ड करके अपने पास रख लिया था।

डर्टी पालीटिक्स

कांग्रेस के टेप कांड के खुलासे के बाद मानकर चलिये, छत्तीसगढ़ में डर्टी पालीटिक्स की शुरूआत हो गई है। संकेत हैं, जल्द ही जवाबी सीडी जारी किए जाएंगे। दरअसल, रायपुर में बहुत कम पालीटिशियन होंगे, जिनकी सीडी नहीं बनी है। अब वो रिश्वत का हो या बेडरुम का। एक कांग्रेस नेता के पूर्व करीबी को तो बड़े लोगों से हर महीने पांच से छह लाख रुपए इसीलिए मिलते हैं कि वो सीडी को सार्वजनिक ना करें। राजधानी के कांग्रेस के एक प्रभावशाली एवं होनहार युवा नेता की ऐसी फिल्म है कि कैरियर के साथ उनका परिवारिक जीवन तबाह हो जाएगा। कांग्रेस के अधिकांश पूर्व मंत्रियों और नेताओं के साथ भी यही स्थिति है। इस मामले में भाजपा भी पीछे नहीं हैं। संगठन के एक नेता की महिला अफसर के साथ सीडी किसी से छिपी नहीं हैं। वहीं, 12 में से कम-से-कम आधा दर्जन मंत्रियों के दामन भी सीडी में कैद हैं। चार के लेन-देन के, तो दो के पर्सनल। अब आप देखते रहिये, किस-किस तरह की सीडी बाहर निकलते हैं।

त्रिदलीय राजनीति

टेप कांड में अमित जोगी पर कार्रवाई लगभग तय मानी जा रही है। वो भी 8 जनवरी के पहले। बर्खास्तगी तक हो सकती है। कांग्रेस आलाकमान में भूपेश बघेल को 6 जनवरी को दिल्ली तलब कर इस मामले में रिपार्ट मांगी है। भूपेश क्या रिपोर्ट देंगे, बताने की जरूरत नहीं है। फिर, अबकी पूरा केस दिल्ली लेवल पर हैंडिल हो रहा है। कार्रवाई में डिले इसलिए किया जा रहा है कि जोगी को सहानुभूति ना मिले। हालांकि, कांग्रेस का एक धड़ा तो अजीत जोगी के खिलाफ भी कार्रवाई की बात कर रहा है। मगर जोगी बच भी गए तो इस घटना के बाद पार्टी में उनके लिए कुछ बचेगा नहीं। संगठन खेमा पहले से ही उन्हें हांसिये पर डाल रखा है। नगरीय निकाय चुनाव में भी उन्हें नहीं पूछा गया। ऐसे में, जोगी समर्थकों के बीच नई पार्टी बनाने पर चर्चा शुरू हो गई है, तो इस पर आप हैरान मत होइयेगा। चर्चा इस पर भी हो रही है कि अलग पार्टी बनाने पर कितने विधायक जोगी के साथ खड़े होंगे। जोगीजी के घर में दो विधायक हैं। इसके अलावा सियाराम कौशिक, कवासी लकमा, अमरजीत भगत, आरके राय, मनोज मंडावी और रामदयाल उइके जोगी कैंप से जुड़े हैं। जोगी खेमे की मानें तो अभी सभी साब के साथ हैं। मगर ये तो वक्त बताएगा। लेकिन, इनमें से दो ने बातचीत मेें माना है कि छत्तीसगढ़ में आधा परसेंट से पिछला चुनाव में फैसला हुआ था। ऐसे में, चार से पांच विधायक भी जीत गए तो सरकार किसी भी पार्टी की बनें, जोगीजी किंग मेकर होंगे। ऐसे में, जोगीजी की छतरी के नीचे खड़े रहने में कोई रिस्क नहीं है। बहरहाल, ऐसा अगर हुआ, तो 2018 के चुनाव में तीसरी पार्टी भी मैदान में नजर आएगी।

रेणू बनी रहेंगी पार्टी में

हालांकि, इसे अभी काल्पनिक कहा जाएगा मगर जोगी खेमे की रणनीति रहेगी कि कोटा विधायक रेणू जोगी कांग्रेस में बनी रहें। यह हम नहीं बल्कि, जोगी खेमे से जुड़े लोग ही कह रहे हैं कि 2018 के इलेक्शन में अगर नई पार्टी को चार-पांच सीट भी आ जाएगी तो जोगी वह कांग्रेस को समर्थन के एवज में रेणू जोगी को सीएम बनाने की मांग करेगी।

बिदाई का साल

2016 छत्तीसगढ़ के दर्जन भर से अधिक नौकरशाहों के लिए बिदाई का साल रहेगा। सबसे अधिक आईएएस से सात अफसर रिटायर होंगे। प्रदेश के सबसे सीनियर आईएएस राधाकृष्णन, राजस्व बोर्ड के चेयरमैन डीएस मिश्रा, सचिव महिला एवं बाल विकास विभाग दिनेश श्रीवास्तव, सचिव सिंचाई बीएल तिवारी, बीएस अनंत, कलेक्टर रायपुर ठाकुर राम सिंह और एसएल रात्रे। आईपीएस में आईजी रविंद्र भेडि़या की पारी इसी महीने 31 को खतम हो जाएगी। इसके बाद एके खरे और सबसे आखिर में दिसंबर में एडीजी राजीव श्रीवास्तव बिदा लेंगे। इसी तरह आईएफएस में पीसीसीएफ नवीन पंत, एडिशनल पीसीसीएफ दिवाकर मिश्रा और बीके सिनहा भी इस साल रिटायर हो जाएंगे। इनमें से ठाकुर राम सिंह तुला राशि वाले हैं। तुला राशि बोले तो रमन सिंह, राजेश मूणत। तुला राशि का वक्त बढि़यां है। सो, रिटायर होने के बाद भी राम सिंह पावरफुल बने रहेंगे। पावरफुल कैसे? यह मई में पता चल जाएगा।

सौगातें भी

कई नौकरशाहों के लिए 2016 सौगातों का साल भी रहेगा। प्रिसिपल सिकरेट्री सुनील कुजूर का एडिशनल चीफ सिकरेट्री बनना ड्यू हो गया है। उनके लिए सरकार ने केंद्र से एसीएस का एक स्पेशल पोस्ट मांगा है। पोस्ट मिलने के बाद जल्द ही उनकी डीपीसी हो जाएगी। 2009 बैच के लिए 2016 कलेक्टर बनने का साल रहेगा। एक आईएएस का सबसे चार्मिंग कोई पोस्टिंग होती है तो वह है कलेक्टरी। इस बैच के छह आईएएस दूसरे राज्यों के अपने बैच से पीछे रह गए हैं। बिहार, झारखंड में 2010 बैच वाले कलेक्टर बन गए हैं। हालांकि, इस साल सभी का नम्बर लगना संभव नहीं है। फिर, तीन से चार अफसर कलेक्टर बन जाएंगे। आईपीएस में नए साल के पूर्व संघ्या पर ही आधा दर्जन अफसरों की सरकार ने डीपीसी कर दी। बचे हैं सरगुजा के आईजी लांग कुमेर। वे पदोन्नत होकर एडीजी बनेंगे। उनकी डीपीसी भी जल्द ही होगी। आईएफएस में प्रदीप पंत, दिवाकर मिश्रा और बीके सिनहा पीसीसीएफ की डीपीसी हो गई है। लेकिन, विभागीय गुटबाजी में आर्डर अटक गया है। हो सकता है, यह साल तीनों के लिए नया सौगात लेकर आए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. सीडी कांड पर अदालत में फैसला जो भी हो, आप इसे क्या मानते हैं, असली या नकली?
2. सीडी कांड के खुलासे से स्व0 दिलीप सिंह जूदेव के परिजन क्यों प्रसन्न हैं?