रविवार, 25 जून 2023

Chhattisgarh Tarkash: शराबी अफसर, बेसुध सिस्टम

 Chhattisgarh Tarkash: 25 जून 2023

संजय के. दीक्षित

शराबी अफसर, बेसुध सिस्टम

शराब पीकर किसी महिला से छेड़खानी कर दें तो कार्रवाई नहीं होगी...राजधानी रायपुर में ऐसा ही कुछ चल रहा है। शराब के नशे में एडिशनल डायरेक्टर ने एक महिला अधिकारी को बीच रास्ते में रोककर छेड़छाड़ किया। पीड़िता ने थाने से लेकर हर उस दरवाजे को खटखटाया, जहां उसे लगा कि न्याय मिल सकता है। मगर 23 जून को घटना को एक महीना गुजर गया। पर वाह रे सिस्टम! तेलीबांधा थाना ने एफआईआर कायम किया तो अफसर ने बड़े फास्ट कानूनी राहत ले ली...आरोपी अधिकारी के ट्रांसफर के लिए विभागीय अधिकारियों ने फाइल चलाई। मगर नोटशीट एक माननीय के यहां जाकर अटक गईं। अफसर को बचाने एक संसदीय सचिव का इतना प्रेशर है कि पूरा सिस्टम हाथ खड़ा कर दिया है। विभाग ने एक महिला आईएएस को जांच के लिए रिकमंड किया। महिला अफसर ने हाथ जोड़ लिया। एक महिला डिप्टी डायरेक्टर ने सीनियर अफसर के खिलाफ जांच नहीं कर सकती, पत्र लिख छुट्टी पर चली गईं। उधर, सिस्टम में बैठे लोग यह कहकर आरोपी अफसर को बचा रहे कि पीने पर थोड़ा बहक जाता है...मगर आदमी बढ़ियां है। कहने का मतलब यह कि शराब पीकर छेड़छाड कर दिया तो यह कोई जुर्म नहीं है। एक महिला अफसर के साथ ऐसी ज्यादती उस राजधानी में हो रही, जहां मंत्री से लेकर प्रशासन से लेकर पुलिस के बड़े-बड़े अफसरान बैठते हैं। उस राजधानी में पीड़िता यह कहने पर मजबूर हो गई है कि मैं अब खुदकुशी कर लूंगी। वाकई ये शर्मनाक है।

सीएम का लंच

चुनाव आयोग की दो दिन की मैराथन बैठक के बाद तीसरे दिन मुख्यमंत्री निवास में सभी 33 जिलों के कलेक्टर-एसपी को लंच के लिए आमंत्रित किया गया था। हालांकि, मौका था बोर्ड परीक्षा के मेधावी बच्चों के सम्मान का। मगर सभी कलेक्टर-एसपी का एक साथ इंट्रेक्शन हो गया। जिले के इन दोनों बड़े अधिकारियों को ऐसा अवसर हमेशा मिलता नहीं। साल में एकाध बार कांफ्रेंस में कलेक्टर-एसपी जुटते हैं...सीएम के साथ डिनर भी हुआ है। मगर कांफ्रेंस के टेंशन की वजह से वे नार्मल नहीं रहते...चेहरा लटका होता है। पर इस बार तो सीएम हाउस का आमंत्रण था। सीएम हाउस का आमंत्रण मतलब सीएम का। सूबे का मुखिया घर बुलाकर भोजन कराएंगे तो कलेक्टर-एसपी का खुश होना लाजिमी है। अपने स्टाईल के अनुसार सीएम भूपेश लगभग सभी टेबलों पर जाकर कलेक्टर-एसपी के साथ बैठकर बात किए। बता दें, साढ़े चार साल में मुख्यमंत्री निवास में कलेक्टर-एसपी का पहला भोजन का कार्यक्रम था। यह खास इसलिए भी रहा कि सीएम ने अपने कक्ष में एक-एक कलेक्टर, एसपी से दो-दो, तीन-तीन मिनट का वन-टू-वन भी किया। पहले कलेक्टर, फिर एसपी। कलेक्टरों से उन्होंने उनके जिले में चल रहे विकास कार्याें आदि के बारे में फीडबैक लिया तो एसपी से लाॅ एंड आर्डर आदि के बारे में। लगभग डेढ़ से दो घंटे में सीएम ने सभी कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों से उनके जिले का अपडेट ले लिया।

विषकन्याओं से अलर्ट

2023 का विधानसभा चुनाव कुछ अलग किस्म का होगा। शह-मात के खेल में अलग-अलग हथकंडे अपनाए जाएंगे। खुफिया एजेंसियां भी इसको लेकर चौकस हैं तो केंद्रीय एजेंसियों की भी इस पर पैनी नजर है। दरअसल, सूचना है कि कुछ सियासी नेता टिकिट के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं। सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय रहने वाले सियासी पार्टी के एक युवा नेता अपनी विवाहेत्तर महिला मित्र को अभी तक कलेक्टरों के पास भेजकर जमीन-जायदाद, ठेका, सप्लाई का काम करवा रहे थे अब वे टिकिट के फेर में कुछ भी करने पर अमादा हैं। जाहिर है, खुफिया एजेंसियां इसको लेकर चिंतित तो होगी ही...विषकन्याएं कहीं बड़े सूरमाओं को डंस न लें।

निर्भिक कलेक्टर!

चुनावी साल में कुछ कलेक्टर डीएमएफ को लेकर बेहद खौफ में चल रहे हैं। इसकी वजह यह है कि बचे बजट को खर्च करने को लेकर उन पर काफी प्रेशर है। रायपुर ही नहीं देश भर के सप्लयार गिद्ध की तरह जिलों में मंडरा रहे हैं। कोई इधर से फोन करवा रहा, तो कोई उधर से...कलेक्टरों को पैसों को खर्च करने के लिए भांति-भांति के रास्ते सुझाए जा रहे हैं। कहीं हाथी के हमले से बचने मोबाइल में मैसेज भेजने पर पैसे लुटाए जा रहे तो कहीं कोरोना की जांच के लिए किट खरीदे जा रहे। अब भला बताइये, हाथी के हमले के शिकार कौन लोग होते हैं...वहां क्या मोबाइल होते हैं और मोबाइल होंगे भी तो जंगलों में नेटवर्क नहीं होते। गरीब गुरबे मोबाइल लेकर जंगलों में महुुआ बिनने तो जाते नहीं। मगर डीएमएफ का पैसे को खर्च करना है, सो आग लगा दो। ऐसे निर्भिक कलेक्टरों को सैल्यूट...दोनों हाथों से वे डीएमएफ को उड़ा रहे हैं।

प्रमुख सचिव की क्लास

पिछले हफ्ते कलेक्टरों की हुई वीडियोकांफ्रेंसिंग में प्रमुख सचिव डाॅ0 आलोक शुक्ला ने कई कलेक्टरों की क्लास ले ली। वे नाराज इसलिए थे क्योंकि स्कूल जतन योजना और बेरोजगारी भत्ते पर कई जिलों का पारफारमेंस संतोषप्रद नहीं था। शुक्ला स्कूल शिक्षा के प्रमुख सचिव हैं और रोजगार मिशन के डायरेक्टर भी। शुक्ला के सवालों के बौछारों से कई कलेक्टर लगे बगले झांकने। स्कूल जतन योजना सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। यह ऐसा काम है, जो ग्रामीण इलाकों में विकास को प्रदर्शित करेगा। मगर कुछ कलेक्टर इसमें भी डंडी मार रहे हैं।

पूर्व आईएएस की पोस्टर

प्रमुख सचिव के पद से रिटायर हुए पूर्व आईएएस गणेश शंकर मिश्रा ने दो साल पहले भाजपा का दामन थाम लिया था। सियासत में उतरने के बाद मिश्रा के चुनाव लड़ने की चर्चाएं चलती रहती थीं। मगर लगता है अब वे खुलकर मैदान में उतर आए हैं। राजधानी रायपुर में उनकी सियासी पोस्टर दिखने लगी है। मिश्रा को बीजेपी टिकिट देती है कि नहीं...ये वक्त बताएगा। मगर ये जरूर है कि इस बार कई रिटायर या वीआरएस वाले अफसर चुनावी मैदान में होंगे। रायपुर कलेक्टर से वीआरएस लेकर चुनावी मैदान में कूदे ओपी चैधरी को फिर से चुनाव लड़ने में कोई संशय नहीं है। तो वहीं नीलकंठ टेकाम भी वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिए हैं। केशकाल से उनका चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। कांकेर से कांग्रेस विधायक शिशुपाल सोरी फिर से चुनाव मैदान में होंगे। 

नौकरशाहों से पीछे नहीं

विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने सिर्फ अधिकारी नहीं बल्कि कर्मचारी और शिक्षक नेता भी मौका मिलने पर गोते लगाने तैयार हैं। पिछले चुनाव में शिक्षाकर्मी से नेता बने चंद्रदेव राय कांग्रेस की आंधी में चुनाव जीत गए थे। उनकी देखादेखी इस बार कई शिक्षक नेता अभी से जोर-तोड़ शुरू कर दिए हैं। इनमें से कुछ शिक्षक नेताओं नेे पिछली बार भी प्रयास किया था मगर बात बनी नहीं। इस बार सुनने में आ रहा कि कुछ कर्मचारी नेता भी टिकिट के लिए सियासी नेताओं के संपर्क में हैं। दरअसल, इस बार दोनों ही मुख्य पार्टियां फ्रेश चेहरों को मैदान में उतारने पर विचार कर रही है। इसको दृष्टिगत रखते कई शिक्षक और कर्मचारी नेता चंद्रदेव राय टाईप लाटरी निकलने को लेकर बेहद उत्साहित हैं।

बीजेपी सबसे कमजोर

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में बीजेपी शून्य है तो मैदानी इलाकों में उसकी सबसे बुरी स्थिति दुर्ग संभाग में है। 2018 के विस चुनाव में बस्तर से बीजेपी को एक दंतेवाड़ा की सीट मिली थी मगर उपचुनाव में वो भी हाथ से निकल गई। सरगुजा में पार्टी का खाता नहीं खुला। मैदानी इलाकों की बात करें तो बिलासपुर, रायपुर थोड़ा ठीक रहा...इन्हीं सीटों की बदौलत पार्टी दहाई आंकड़े में पहुंच पाई। वरना, दुर्ग में उसे बड़ा करंट लगा। दुर्ग में 20 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से बीजेपी को सिर्फ दो सीटें मिली। राजनांदगांव से डाॅ0 रमन सिंह और वैशाली नगर से विद्यारतन भसीन। भसीन भी कल दिवंगत हो गए। सियासी पंडितों का मानना है...अमित शाह की सभा के लिए इसीलिए दुर्ग को चुना गया। दुर्ग से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही नहीं आते बल्कि उनके मंत्रिमंडल के चार सदस्य भी दुर्ग संभाग से आते हैं। जाहिर तौर पर इस समय यह कांग्रेस का मजबूत गढ़ है। हालांकि, इससे पहले के तीन चुनावों में बीजेपी को हमेशा 20 में से 11 से 12 सीटें मिलीं। 2018 के कांग्रेस की आंधी में बीजेपी को पहली बार बड़ा झटका लगा...उसे सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा।

अंत में दो सवाल आपसे

1. पीसीसी चीफ मोहन मरकाम को इतनी उर्जा किधर से मिल रही कि प्रदेश प्रभारी द्वारा महामंत्रियों के प्रभार में बदलावों को निरस्त करने के बाद भी उनके तेवर कम नहीं हो रहे?

2. इन अटकलों मेें कितनी सत्यता है कि राजभवन के सिकरेट्री अमृत खलको पीएससी के नए चेयरमैन होंगे?


शनिवार, 17 जून 2023

Chhattisgarh Tarkash: आईएएस पर डिप्टी कलेक्टर भारी

 तरकशः 18 जून 2023

संजय के. दीक्षित

आईएएस पर डिप्टी कलेक्टर भारी

ये स्टोरी हाल ही में हुए 23 आईएएस अधिकारियों के ट्रांसफर से जुड़ी हुई है। जैसे ही ट्रांसफर का आदेश निकला, अगले दिन आईएएस दफ्तर पहुंचे और संबंधित क्लर्क को बुलाकर बोले...95 लाख की सप्लाई के पेमेंट का नोटशीट तैयार कर दो...मैं आज बैकडेट पर साइन कर दूंगा। क्लर्क ने ये बात अपने जीएम को बताया। डिप्टी कलेक्टर इस समय वहां जीएम हैं और चार साल से वहां जमे हुए हैं। वो भी ऐसे दौर में जब छह महीने, साल भर में छुट्टी हो जा रही। इससे आप समझ सकते हैं कि वे कैसे फनकार होंगे। आईएएस बॉस की चतुराई वे तुरंत भांप गए। रुटीन में अगर ये पेमेंट होता तो 95 लाख में से कम-से-कम पांच लाख आईएएस को देना ही पड़ता। मगर जाते-जाते सप्लायर को पेमेंट कर जाते तो 20 फीसदी के हिसाब से पूरा पैसा वे एकतरफा ले जाते। सो, डिप्टी कलेक्टर ने फोन पर ही क्लर्क को इशारा किया। संकेत समझते ही बाबू ने अचानक स्वास्थ्य खराब होने का लीव अप्लीकेशन लिखा और फाइल अलमारी में बंद कर घर निकल गया। मोबाइल भी बंद। ऐसे में, आईएएस क्या करते। अगले दिन नए वाले चार्ज ग्रहण कर लिए। कह सकते हैं, आईएएस पर एसएएस अफस सवा सेर साबित हुए।

नेताओं और उद्योगपतियों का गठजोड़

छत्तीसगढ़ में एक बड़े तेज नेता थे...बेहद चौकस और तीव्र दृष्टि वाले। आमतौर पर इंडस्ट्री वाले लोग सियासी नेताओं के साथ बड़ी चतुराई से गठजोड़ बना लेते हैं। उन्हें पता होता है कि नेता लोग लक्ष्मीजी को उस लेवल में कभी देखें नहीं होते। जाहिर है, उनके कुर्सी पर बैठते ही लक्ष्मीजी की बरसात होने लगती है। सो, वे नेताओं को आइडिया देते हैं...सर, फलां जगह हमारी फैक्ट्री लग रही...आप कहें तो इसे वहीं लगा दें...आपका इतना परसेंट...बाकी आप जहां बोलेंगे आपका परसेंटेज वहां पहुंचता रहेगा। और एक बार नेताजी ने हां...कहा तो समझिए उद्योगपति के चक्कर में फंस गए। खुद भी बदनाम और बाल-बच्चे भी। छत्तीसगढ़ में भी नेताओं को ट्रेप करने वाले इंडस्ट्रलीज खूब हैं। मगर हम जिस नेता की बात कर रहे हैं...उद्योगपतियों को उनसे पार पाना मुश्किल काम था। बंगले पहुंचे कारोबारियों को उन्होंने दो टूक कह दिया...ज्ञान मत दो...थैली रखो और चुपचाप निकल लीजिए...मुझे सब आता है।

पहचान का संकट

लगातार 15 बरस तक सत्ता में रही बीजेपी इस समय बेहद कठिन दौर से गुजर रही है। आलम यह है कि विधानसभा चुनाव में चार महीने बच गए हैं और अभी तक यह तय नहीं है कि भूपेश बघेल जैसे सियासी योद्धा के सामने वह किसके लीडरशिप में चुनाव में उतरेगी। पार्टी में सबसे बड़ा संकट पहचान का है। शिवप्रकाश और अनिल जामवाल बड़े नेता हैं, उनसे कार्यकर्ताओं का अभी सीधा कनेक्शन बन नहीं पाया है। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, दोनों नए हैं। पवन साय पुराने जरूर हैं, मगर उन पर कई तरह के लेवल लग गए हैं। सबसे अधिक दुखी रायपुर वाले हैं। प्रदेश मुख्यालय में रायपुर वालों का दबदबा रहता था। मगर छत्तीसगढ़ बनने के बाद 23 साल में पहली बार संगठन में रायपुर वाले हांसिये पर चले गए हैं।

कर्नाटक की चूक

बीजेपी की चुनावी तैयारियों को देखकर प्रतीत हो रहा कि छत्तीसगढ़ में पार्टी के नेता मोदी और अमित शाह की बदौलत किसी चमत्कार की उम्मीद पाल रखे हैं। क्योंकि, सरकार पलटने के लिए जो जोश और जुनून दिखना चाहिए, उस पर ठंडा पानी पड़ा परिलक्षित हो रहा है। याद कीजिए, 2003 में इस समय तक पूरी पार्टी सड़क पर उतर आई थी। लखीराम जैसे बुजुर्ग नेता नारे लगा रहे थे...आग लगी है आग...भाग जोगी भाग। रायपुर में बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, संजय श्रीवास्तव जैसे नेता बेहद उग्र तेवर दिखा रहे थे। भिलाई में प्रेमप्रकाश पाण्डेय तो कोरबा में बनवारी लाल अग्रवाल आक्रमक थे। बस्तर में बलिराम कश्यप अकेले माहौल बनाए हुए थे। और अभी...? बड़े नेताओं को भी नहीं मालूम क्या हो रहा और क्या होगा? 15 साल सरकार में रहे कई नेता इसलिए चुप्पी साधे हुए हैं कि न जाने कौन सा पुराना पेपर निकल जाए। असल में, सियासी प्रेक्षक कर्नाटक चुनाव का वेट कर रही थे...वहां के बाद पार्टी नेता छत्तीसगढ़ पर फोकस बढ़ाएंगे। मगर महीना भर से अधिक हो गया कर्नाटक के नतीजे आए, छत्तीसगढ़ में कोई सुगबुगाहट नहीं है कि चुनाव जीतने के लिए कोई व्यूह बनाई जा रही है। हाल की खबर है...अमित शाह और राजनाथ सिंह का दौरा होने वाला है। मगर सियासी पंडितों का मानना है कि पार्टी को लोकल नेतृत्व को मजबूत करने पर विचार करना चाहिए। लोकल में जिसको दायित्व दिया गया है, वे खुद कंफ्यूज हैं उन्हें करना क्या है। ऐसे में, कर्नाटक की चूक कहीं छत्तीसगढ़ में भी न दुहरा जाए। कर्नाटक में यही हुआ, लोकल इश्यू और लोकल लीडरशिप को मजबूत करने पर ध्यान नहीं दिया गया। इसी चक्कर में मोदी और अमित शाह के लाख प्रयास के बाद भी नतीजा सिफर आया। नरेंद्र मोदी और अमित शाह नाव को वैतरणी पार लगा सकते हैं मगर नाव भी तो मजबूत होना चाहिए।

हार्ड लक

छत्तीसगढ़ के 2004 बैच के चार आईपीएस केंद्र में आईजी इम्पेनल हुए हैं। इनमें अजय यादव, अभिषेक पाठक, नेहा चंपावत और संजीव शुक्ला शामिल हैं। लिस्ट में संजीव शुक्ला का नाम लोगों को जरूर चौंकाया। इसलिए...क्योंकि पिछले 25 साल में अविभाजित मध्यप्रदेश में स्टेट सर्विस से आईपीएस बना कोई अफसर भारत सरकार में आईजी इंपेनल नहीं हुआ है। लिहाजा, संजीव के लिए यह बड़ी उपलब्धि है। मगर बद्री मीणा और अंकित गर्ग का इंपेनलमेंट न होना उससे ज्यादा चौंकाया। जबकि, बद्री और अंकित केंद्र में काम कर चुके हैं। अंकित पिछले महीने ही डेपुटेशन से लौटे हैं। अंकित एनआईए में रहे तो बद्री आईबी में। इस मामले में दोनों का हार्ड लक रहा। हालांकि, हो सकता है दूसरी लिस्ट में इनका नाम आ जाए।

एक आईजी और

2005 बैच के आईपीएस राहुल भगत डेपुटेशन से अगले हफ्ते छत्तीसगढ़ लौट रहे हैं। राज्य सरकार ने उन्हें डीआईजी से आईजी पद पर प्रोफार्मा प्रमोशन दिया था। यहां आने के बाद उन्हें आईजी की पोस्टिंग मिलेगी। हालांकि, पिछले महीने सेंट्रल डेपुटेशन से लौटे अंकित गर्ग को अभी तक पोस्टिंग नहीं मिली है। वे पीएचक्यू में समय गुजार रहे हैं। सल्वा जुडूम के समय जब नक्सली गतिविधियां चरम पर थी, तब अंकित दंतेवाड़ा और बीजापुर के एसपी रहे। दंतेवाड़ा में उन्होंने नक्सलियों को सप्लाई होने वाले नोटों का जखीरा पकड़ा था। राहुल भगत भी अच्छे अफसर माने जाते हैं। वे कांकेर, नारायणपुर, रायगढ़, कवर्धा समेत कई जिलों के एसपी रह चुके हैं। वे गिने-चुने आईपीएस में होंगे, जिन्हें केंद्र में पुलिस से विभाग से बाहर की पोस्टिंग मिली। वे डायरेक्टर लेबर रहे। इसके बाद डायरेक्टर सोशल सिक्यूरिटी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। कुल मिलाकर पुलिस में आईजी लेवल पर अफसरों की संख्या अब बढ़ते जा रही है। एक समय था, जब जितने रेंज, उतने ही आईजी थे। सरकार के पास अब फुल च्वाइस है।

एसपी की वर्दी

वर्दी फोर्स की शान होती है। उस पर भी आईपीएस लिखा हुआ...बेहद किस्मत वालों को ही तो आईपीएस अवार्ड होता है...आईएएस के बाद दूसरी सबसे प्रतिष्ठित सर्विस आईपीएस होती है। पहले के जमाने में पुलिस के लोग वर्दी से बड़ा प्यार करते थे। आफिसों में भी आईपीएस अधिकारी एक सेट वर्दी रखते थे कि कहीं लॉ एंड आर्डर की स्थिति निर्मित हो जाए, तो तुरंत पहन लेंगे। बिलासपुर में जब कोरबा और जांजगीर शामिल था, उस समय डॉ0 आनंद कुमार एसपी होते थे। वे एंबेसडर कार में हैंगर में वर्दी लटका कर रखते थे। मगर समय के साथ आईपीएस अधिकारियों को वर्दी से अधिक गांधीजी से प्यार बढ़ता गया। डीजीपी पिछली मीटिंग में ऐसे ही नहीं भड़के। उनसे अधिक खुफिया चीफ अजय यादव ने पुलिस अधीक्षकों की क्लास ली। वे इस बात से नाराज थे कि बड़े साब की वीसी में दो एसपी टीशर्ट पहनकर आ गए थे। हालांकि, ये पहली बार नहीं हो रहा। राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन के समय की बात आपको बताते हैं। वे एक जिले के दौरे पर पहुंचे। वहां के एसपी सिविल ड्र्रेस में उन्हें रिसीव करने हेलीपैड आए थे। नरसिम्हन चूकि खुद भी आईपीएस रहे थे। सो, बुरी तरह बिगड़े। एसपी ने सफाई दी...सर तबियत ठीक नहीं है। नरसिम्हन बोले...तबियत खराब थी तो फिर आए क्यों? बहरहाल, कह सकते हैं छोटा राज्य बनने से सबसे अधिक नुकसान पुलिस की गरिमा और पोलिसिंग का हुआ।

इलेक्शन नोडल ऑफिसर

रायपुर देहात के आईजी आरिफ शेख को विधानसभा चुनाव का प्रभारी नोडल आफिसर बनाया गया है। हालांकि, ये फौरी तौर पर है। पूर्णकालिक नोडल आफिसर के लिए आयोग ने एडीजी लेवल के आईपीएस अफसरों का पेनल मंगाया है। समझा जाता है, अगले महीने तक नोडल आफिसर की नियुक्ति हो जाएगी। पिछले चुनाव में आईजी लेवल के अधिकारियों को नोडल आफिसर बनाया जाता था। इस बार चुनाव आयोग ने इसे बदलकर एडीजी कर दिया है। अत्यधिक संभावना है कि एडीजी प्रदीप गुप्ता के नाम पर चुनाव आयोग टिक लगा दे। नोडल आफिसर का काम चुनाव आयोग और स्टेट के बीच सिक्यूरिटी कोआर्डिनेशन का रहता है। वीवीआईपी मूवमेंट को भी नोडल आफिसर हैंडिल करते हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक प्रमोटी आईएएस में इतना पानी कहां से आ गया कि उन्होंने जूनियर के अंदर काम करने से अनिच्छा जता दी?

2. एक कांग्रेस विधायक का नाम बताइये, जो दो नाव की सवारी कर रहे हैं....कांग्रेस से अगर टिकिट नही तो बीजेपी से?


रविवार, 11 जून 2023

छत्तीसगढ़ के ऐसे एसपी

 तरकशः 11 जून 2023

संजय के. दीक्षित

छत्तीसगढ़ के ऐसे एसपी

निर्वाचन आयोग की ट्रेनिंग में हिस्सा लेने आए सूबे के पुलिस अधीक्षकों की डीजीपी अशोक जुनेजा ने भी लगे हाथ मीटिंग ले लिया। डीजीपी ने इस मौके पर लॉ एंड आर्डर को लेकर कड़े तेवर दिखाए। डीजीपी इस बात से काफी खफा थे कि कुछ एसपी उनका फोन रिसीव नहीं करते। भरी मीटिंग में उन्होंने यह बात कही तो सन्नाटा पसर गया। क्योंकि, ऐसा कहीं होता नहीं। एसपी डीजी का फोन रिसीव नहीं करें...इसका मतलब समझ सकते हैं कि पुलिस का सिस्टम किस हद तक डिरेल्ड हो गया है। हैरानी का विषय यह है कि डीजीपी का फोन रिसीव नहीं करने वाले कोई प्रमोटी नहीं बल्कि दो आरआर हैं और बड़े जिला संभाल रहे हैं। गृह विभाग को इसे सनद रखना चाहिए कि प्रदेश की पोलिसिंग किस दिशा में जा रही है। वैसे, डीजीपी का फोन रिसीव न करने से कुछ बिगड़ने वाला भी तो नहीं है। आपको याद होगा, दुर्ग में डीजीपी ने रिव्यू मीटिंग किया था। उसमें वहां के एडिशनल एसपी की उन्होंने न केवल क्लास ली बल्कि दूसरे दिन उनका ट्रांसफर रायगढ़ कर दिया गया। मगर गृह विभाग ने वीटो लगाते हुए अफसर का ट्रांफसर निरस्त कर दुर्ग में कंटीन्यू कर दिया। वे आज भी दुर्ग में जमे हुए हैं। जुनेजा जैसे हाई प्रोफाइल डीजीपी जब एक एडिशनल एसपी का कुछ नहीं कर सकते तो आगे आप समझ सकते हैं...गृह विभाग में हो क्या रहा।

पति की जगह पत्नी और...

90 सीटों के सर्वे वायरल करवा एक सियासी पार्टी ने अपने नॉन पारफारमेंस विधायकों को अलार्म कर दिया कि वे पार्टी के लिए किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहें। बता दें, छत्तीसगढ़ में दोनों बड़ी पार्टियां अबकी बड़ी संख्या में नए चेहरों को मैदान में उतारने की तैयारी कर रही हैं। जिन विधायकों की जीत में किंचित मात्र भी संदेह होगा, उन्हें किनारे लगाने में कोई गुरेज नहीं किया जाएगा। बताते हैं, कांग्रेस और भाजपा, दोनों पार्टियां टिकिट वितरण के लिए फायनल सर्वे कराने जा रही हैं। सर्वे में खासकर इस प्वाइंट को रेज किया जाएगा कि विधायक के खिलाफ अगर लोगों में नाराजगी है तो उसका विकल्प क्या होगा। इसके लिए तीन नाम सुझाए जाएंगे। इसमें एक और जानकारी आ रही कि एंटी इंकम्बेंसी कम करने के लिए अगर पति विधायक हैं तो उनकी जगह पत्नी को खड़ा कर दिया जाए और पत्नी की जगह पति को...कुछ सीमित सीटों पर यह प्रयोग किया जा सकता है।

नेता प्रतिपक्ष कोरबा से?

छत्तीसगढ़ की जांजगीर-चांपा ऐसी विधानसभा सीट है, जहां से कोई भी विधायक रिपीट नहीं करता। वहां से एक बार मोतीलाल देवांगन चुनाव जीतते हैं तो एक बार नारायण चंदेल। चंदेल वहां से फिलहाल विधायक हैं। संयोग की अगर पुनरावृति हुई तो इस बार मोतीलाल देवांगन की जीत पक्की मानी जा रही है। हालांकि, बीजेपी इस संयोग को दोहराने से रोकने कुछ नया करना चाह रही है। खबर है, पार्टी की तरफ से चंदेल को इशारा किया गया है, वे कोरबा से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मेंटली तैयार रहे...जांजगीर में इस बार किसी और को मौका दिया जाएगा। अगर ये खबर सही होगी तो फिर अगले साल ज्योत्सना महंत के सामने चंदेल प्रत्याशी होंगे। उधर, जांजगीर में इस बार सत्ताधारी पार्टी को कुछ ज्यादा ताकत लगानी होगी।

बूझो तो जानो

सामान्य प्रशासन विभाग ने 23 आईएएस अधिकारियों को नई पोस्टिंग दी। मगर इनमें आबकारी कमिश्नर कौन और सचिव महिला बाल विकास विभाग की जिम्मेदारी किसके पास रहेगी, आदेश में दोनों को गोल कर दिया। दरअसल, निरंजन दास आबकारी आयुक्त के साथ आबकारी सचिव भी थे। दोनों जिम्मेदारियों को संभालने में असमर्थता जताने के बाद सरकार ने जनकराम पाठक को आबकारी सचिव का प्रभार दिया और यशवंत कुमार को एमडी ब्रेवरेज कारपोरेशन का। मगर पूरे आदेश में आबकारी कमिश्नर का कोई उल्लेख नहीं है। इसी तरह भुवनेश यादव अभी तक महिला बाल विकास, उच्च शिक्षा, समाज कल्याण और वाणिज्य तथा उद्योग विभाग के सचिव थे। मगर नए आदेश में उन्हें पीडब्लूडी सौंपते हुए ये स्पष्ट नहीं किया गया कि महिला बाल विकास उनके पास रहेगा या किसी और को सौंपा जाएगा। आदेश में लिखा गया है...पीडब्लूडी का दायित्व सौंपते हुए उन्हें सचिव समाज कल्याण और वाणिज्य तथा उद्योग का अतिरिक्त प्रभार दिया जाता है। महिला बाल विकास का नाम इसमें से गायब है। याने आबकारी कमिश्नर और महिला बाल विकास सिकरेट्री कौन होगा? बूझो तो जानो।

खाता ओपन 

कलेक्टर बनने के लिए लंबे समय से वेट कर रहे 2017 बैच का खाता खुल गया है। राज्य सरकार ने इस बैच के आकाश छिकारा को रायपुर जिला पंचायत सीईओ से हटाकर गरियाबंद का कलेक्टर बनाया है। इस बैच में पांच आईएएस हैं। इनमें से सबसे पहले उपर से तीन अधिकारियों को कलेक्टर बनाए जाने की चर्चा थी। इनमें रायपुर और बिलासपुर नगर निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी और कुणाल दुदावत शामिल थे। मगर एक तो दोनों के पास अहम दायित्व है और फिर कलेक्टरों की लिस्ट इतनी छोटी थी कि इससे ज्यादा अधिकारियों का नंबर लग नहीं सका। दो ही जिलों के कलेक्टर बदले गए। गरियाबंद और महासमुंद। जून लास्ट या फिर जुलाई में मानसून सत्र के बाद कलेक्टरों की बड़ी लिस्ट निकलेगी, उसमें हो सकता है कि 2017 बैच को सरकार कंप्लीट कर दें। इस बैच में आकश छिकारा, रोहित व्यास, मयंक चतुर्वेदी, कुणाल दुदावत और चंद्रकांत वर्मा कुल पांच आईएएस हैं। इनमें से तीन सूबे के टॉप तीन नगर निगमों को संभाल रहे हैं। तो एक के पास मेडिकल कारपोरेशन की जिम्मेदारी है।

पोस्टिंग में चूक?

आईएएस के नए फेरबदल में 2007 बैच के आईएएस यशवंत कुमार को ब्रेवरेज कारपोरेशन का एमडी का दायित्व सौंपा गया है। और उन्हीं के बैच के प्रमोटी आईएएस जनकराम पाठक को आबकारी सचिव बनाया गया है। याने यशवंत जनकराम को रिपोर्ट करेंगे। बता दें, यशवंत सिकरेट्री प्रमोट हो चुके हैं। मगर जनकराम दुष्कर्म के केस की वजह से प्रमोशन से वंचित रह गए। वे अभी भी स्पेशल सिकरेट्री हैं। लगता है, नोटशीट तैयार करते समय जीएडी अधिकारियों से कोई चूक हो गई। वरना, यशवंत के साथ ऐसा तो नहीं होता।

2008 बैच कमिश्नर

छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार दो डायरेक्ट आईएएस डिवीजनल कमिश्नर बनाए गए हैं। भीम सिंह बिलासपुर और शिखा तिवारी सरगुजा। इससे पहले पांच संभागों में मुश्किल से एकाध ही डायरेक्ट आईएएस होते थे। मसलन, अलग-अलग समय में केडीपी राव, सोनमणि बोरा बिलासपुर के कमिश्नर रहे तो यशवंत कुमार रायपुर के। दिलचस्प ये भी...पांच संभागों में से चार संभागों में इस समय 2008 बैच के आईएएस कमिश्नर हो गए हैं। भीम और शिखा 2008 बैच के आईएएस हैं। इनके अलावा दुर्ग कमिश्नर महादेव कावड़े और बस्तर कमिश्नर श्याम धावड़े भी इसी बैच से हैं।

सबसे ताकतवर

सिकरेट्री लेवल पर दो बैच इस समय काफी प्रभावशाली हो गया है। वो है 2006 और 2010 बैच। 2006 बैच के अंकित आनंद और एस भारतीदासन पहले से सिकरेट्री टू सीएम हैं। अंकित के पास इसके अलावा फायनेंस, बिजली के साथ बिजली कंपनियों के चेयरमैन की भी जिम्मेदारी है। हम पहले भी लिख चुके हैं, अंकित जैसे पोर्टफोलियों वाला देश में कोई और आईएएस नहीं है। उधर, भारतीदासन भी सिकरेट्री टू सीएम के साथ सिकरेट्री स्कूल एजुकेशन और सिकरेट्री पीएचई हैं। 25 हजार करोड़ का जल जीवन मिशन पीएचई में ही आता है। इसी बैच के भुवनेश यादव को सरकार ने पीडब्लूडी जैसे बड़े विभाग भी सौंप दिया है। भुवनेश के पास पहले से वाणिज्य और उद्योग, समाज कल्याण के साथ ही अघोषित तौर पर महिला बाल विकास भी है। अब 2010 बैच। इस बैच में कार्तिकेय गोयल को छोड़ दें तो सभी के पास बढ़ियां पोर्टफोलियो है। खासकर जेपी मौर्या और सारांश मित्तर काफी वजनी हुए हैं। अभी 2008 बैच सिकरेट्री नहीं हुआ है। मगर मौर्या 2010 बैच के होने के बाद भी माईनिंग जैसे विभाग के स्पेशल सिकरेट्री स्वतंत्र प्रभार हो गए हैं। उन्हें डायरेक्टर हेल्थ भी बनाया गया है। इसी तरह सारांश मित्तर के पास पहले सीएसआईडीसी और रोड विकास निगम के एमडी की जिम्मेदारी थी। अब उन्हें नगरीय प्रशासन संचालक का भी प्रभार मिल गया है।

अंत में दो सवाल आपसे

1. नए-नए पर निकल रहे बीजेपी के एक युवा नेता विधानसभा टिकिट के लिए अपनी गर्लफ्रेंड का बखूबी उपयोग कर रहे हैं, नेताजी का नाम बताइये?

2. हेल्थ डिपार्टमेंट के आईएएस अधिकारियों की तुलना बकरीद के बकरे से क्यों की जा रही है?


शनिवार, 3 जून 2023

DGP पोस्टिंग की पेंच

तरकशः 4 जून 2023

संजय के. दीक्षित

DGP पोस्टिंग की पेंच

डीजीपी अशोक जुनेजा की पोस्टिंग को लेकर इस समय कई तरह की बातें हो रही हैं....हर आदमी अपने हिसाब से ओपिनियन दे रहा...। दरअसल, जुनेजा डीजी पुलिस नहीं होते तो इस महीने 30 को रिटायर हो जाते। जून 63 का उनका बर्थ है। यानी ये महीना उनका लास्ट होता। मगर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक डीजीपी समेत कुछ पोस्टिंग को दो साल के लिए निर्धारित किया गया है। नियमानुसार राज्य सरकार ने केंद्र को डीजीपी के लिए पैनल भेजा था। जुनेजा के नाम पर केंद्र की सहमति मिलने के बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 अगस्त 2022 को डीजीपी पोस्ट किया। दो साल की पोस्टिंग के अनुसार वे 5 अगस्त 2024 को रिटायर होंगे। हालांकि, जुनेजा इससे पहिले अक्टूबर 2021 में डीएम अवस्थी को रिप्लेस कर डीजीपी बन गए थे। केंद्र से उनके नाम की मंजूरी अगस्त 2022 में मिली। इस वजह से उन्हें 11 महीने बोनस में एक्सट्रा मिल गया। अगर अक्टूबर 2021 में ही राज्य सरकार के पेनल को मिनिस्ट्री ऑफ होम से अनुमोदन मिल गया होता तो अक्टूबर 2023 में वे रिटायर हो जाते। यानी विधानसभा चुनाव के जस्ट पहले। लेट में पैनल के अनुमोदन से 11 महीने का कार्यकाल उनका बढ़ गया। मगर अभी भी नियमों की व्याख्या करने वाले चूक नहीं रहे हैं। अलबत्ता, जानकारों का कहना है, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के बिहाफ में एक बार क्रायटेरिया तय कर दिया है तो सर्विस का एक्सटेंशन अंडरस्टूड है। सेवावृद्धि की कोई समस्या नहीं आएगी। ये जरूर होगा कि राज्य सरकार ने जुनेजा को जून में रिटायर करने का जनवरी में जो आदेश निकाला था, राज्य सरकार को उसे विड्रॉ करना होगा। और, सरकार के लिए ये मामूली काम है। दो लाइन का एक नोटशीट ही तो चलाना है।

पुलिस के देव

विधानसभा, लोकसभा चुनाव कराने के बाद अशोक जुनेजा अगले साल अगस्त में रिटायर होंगे तो कोई देव छत्तीसगढ़ पुलिस का मुखिया बनेगा। वो या तो पवनदेव होंगे या फिर अरुण देव। दरअसल, जुनेजा के बाद सीनियरिटी में 90 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा आते हैं। मगर अगले साल यानी जनवरी 2024 में वे रिटायर हो जाएंगे। 91 बैच के लांग कुमेर नागालैंड जाकर वहां रिटायर हो चुके हैं। कुमेर के बाद 92 बैच में पवन देव और अरुण देव का नंबर आता है। ऐसे में, सरकार के पास ये दो ही विकल्प होंगे। सरकार को इन्हीं में से किसी एक को पुलिस का देव बनाना होगा। बता दें, दोनों का टेन्योर भी ठीक-ठाक होगा। पवन देव का रिटायरमेंट जुलाई 2028 है तो अरुण देव का जुलाई 2027। डीजीपी बनने पर पवन का चार साल और अरुण का तीन साल का कार्यकाल रहेगा।

जीपी की किस्मत

एडीजीपी लेवल के आईपीएस जीपी सिंह का कैरियर अगर डिरेल नहीं हुआ होता तो पवनदेव और अरुण देव से दो साल जूनियर होने के बाद भी डीजीपी के लिए वे दोनों को कड़ी टक्कर देते। क्योंकि डीजीपी को जिस तरह प्रैक्टिकल होना चाहिए, वे सारी खूबियां जीपी में थीं। मगर वक्त का क्या कहा जा सकता है। आदमी न तो बलवान होता है और न कमजोर। वक्त बलवान होता है, और कमजोर भी। आखिर, हम अपने आसपास लोगों को फर्श से अर्श पर जाते देखते ही हैं और अर्श से फर्श पर।

वेटिंग एसीएस

आमतौर पर सीट वैकेंट है तो ब्यूरोक्रेसी में टाईम से पहले प्रमोशन हो जाते हैं। ये सभी राज्यों में होता है और छत्तीसगढ़ में भी अनेक बार ऐसा हो चुका है। इसी सरकार में 91 बैच की रेणु पिल्ले और 92 बैच के सुब्रत साहू टाईम से काफी पहले एसीएस प्रमोट हो गए थे। मगर 1994 बैच का इस मामले में बैड लक है। एसीएस के चार पद खाली होने के बाद भी जून आ गया मगर डीपीसी की कोई कवायद नहीं है। जबकि, इस बैच के आईएएस मनोज पिंगुआ खुद आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट हैं। इस बैच के बाकी तीन अफसर ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर और विकास शील डेपुटेशन पर हैं। और दिक्कत यही है कि छत्तीसगढ़ में सिर्फ मनोज पिंगुआ हैं। अगर बाकी तीन भी यहीं होते तो चारों मिलकर प्रेशर बना लेते। छत्तीसगढ़ में इस समय एसीएस लेवल के तीन अफसर हैं। इनमें से अमिताभ जैन चीफ सिकरेट्री हैं। उनके अलावा रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू। किसी समय एसीएस के छह-छह, सात-सात अफसर होते थे। पोस्ट से ज्यादा भी। डीओपीटी से स्पेशल केस में अनुमति ले ली जाती थी। मगर अब शीर्ष स्तर पर अधिकारी ही नहीं हैं। 2002 बैच तक ऐसा ही चलेगा। 2003 बैच से अफसरों की संख्या बढ़नी शरू होगी। यानी 2033 के बाद राज्य में सारे लेवल पर पर्याप्त अफसर हो जाएंगे।

नेताजी की परेशानी

सियासत में कार्यकर्ताओं और समर्थकों की बड़ी भूमिका होती है। इसी से सियासी नेताओं का वजन और प्रभाव आंका जाता है। मगर कई बार वही समर्थक मुसीबत भी खड़ी कर देते हैं। बड़बोले समर्थकों की वजह से एक नेताजी ट्रेक से लगभग बाहर हो गए। नेताजी के अधिकांश समर्थकों में ये बताने की होड़ मची थी कि बस...अच्छे दिन आने ही वाले हैं। इसी तरह के बड़बोले समर्थक से एक नेताजी और परेशान हैं। समर्थकों ने व्हाट्सएप ग्रुपों में खुशी का इजहार भी शुरू कर दिया है। एक समर्थक ने ब्रॉडकास्ट ग्रुप में लिख दिया, बात हो गई है, बस कुछ दिनों की ही बात है...। एक समर्थक को नेताजी ने हाल ही में हड़काया भी। मगर चापलूस समर्थकों को इससे क्या वास्ता कि नौ मन तेल होगा कि नहीं...उन्हें अपनी दुकान चमकानी है।

अनुज या शिवरतन?

छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सुपर स्टार अनुज शर्मा, रिटायर आईएएस आरपीएस त्यागी और राधेश्याम बारले ने बीजेपी ज्वाईन किया है। अनुज के भाजपा प्रवेश से भाटापारा विधायक शिवरतन शर्मा की धड़कनें बढ़ गई होंगी। असल में, अनुज 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाटापारा सीट से चुनाव लड़ने का मूड बना चुके थे। उन्होंने अपने स्तर पर प्रयास भी किया, मगर कामयबी मिल नहीं पाई। अब चुनाव से पहले इस बार उन्होंने विधिवत बीजेपी प्रवेश कर लिया है तो जाहिर है वहां के पार्टी के विधायक शिवरतन का तनाव तो बढ़ेगा। हालांकि, शिवरतन बीजेपी के काफी एक्टिव विधायक हैं। लिहाजा, उनका टिकिट काटना आसान नहीं होगा। मगर अनुज की लोकप्रियता कैश करने के लिए बीजेपी जब तक उन्हें मैदान में नहीं उतारेगी तब तक पूरा फायदा मिलेगा नहीं। इसलिए, अनुज चुनाव लड़ेंगे मगर सीट भाटापारा होगी या कोई और, यह वक्त बताएगा। उधर, आरपीएस त्यागी पिछले चुनाव के दौरान न केवल कांग्रेस में शामिल हुए थे बल्कि कोरबा या कटघोरा से टिकिट के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने वहां दौरे भी प्रारंभ कर दिए थे। मगर टिकिट को लेकर बात बन नहीं पाई। अब वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं तो टिकिट मिले न मिले, चुनाव लड़ने की उनकी दबी हुई इच्छा बाहर आएगी ही। इनमें से बारले का अहिवारा से टिकिट मिलने का दावा जरूर मजबूत प्रतीत हो रहा है। क्योंकि, अहिवारा में बीजेपी के पास कोई मजबूत विकल्प नहीं है। ऐसे में, बारले को पार्टी चुनाव में आजमा सकती है।

ब्राम्हण दावेदार!

सियासी तौर पर बिलासपुर बाकी जिलों से ज्यादा संजीदा है। खासतौर पर कांग्रेस के लिए। यहां पहले से ही टिकिट के दावेदारों की फौज रही है। अब तो रुलिंग पाटी है। कांग्रेस के सबसे अधिक ब्राम्हण दावेदार यहीं से हैं। बिलासपुर से शैलेष पाण्डेय सीटिंग एमएलए हैं। कांग्रेस के भीतरघात के चलते राजेंद्र शुक्ला बिल्हा से पिछला चुनाव हार गए थे। लिहाजा, इस बार उनकी दावेदारी मजबूत समझी जा रही। बेलतरा से एडवाइजर टू सीएम प्रदीप शर्मा का नाम प्रमुखता से चल रहा है। तखतपुर से रश्मि सिंह कांग्रेस पार्टी की विधायक हैं। ब्राम्हण बिरादरी से उनका जुड़ाव जाहिर है। यानी बिलासपुर जिले की छह में से चार सीटों पर ब्राम्हण दावेदार। जनरल में सिर्फ कोटा बचा है। मस्तूरी अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है। बहरहाल, टिकिट तय करते समय कांग्रेस के सामने बड़ी उलझन रहेगी कि एक ही जिले में चार-चार ब्राम्हणों को टिकिट कैसे दिया जाए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक ऐसे मंत्रीजी का नाम बताइये, जो पिछले तीन साल में एक बार भी मंत्रालय नहीं गए?

2. सोशल मीडिया के आरोपों को लेकर दुर्ग एसपी को हटाया गया तो क्या इसके लिए पीएचक्यू के अफसर जिम्मेदार नहीं हैं...एज ए सीनियर उन्हें टोका क्यों नहीं?