रविवार, 26 जून 2022

कलेक्टरों की बड़ी सूची

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 26 जून 2022

कलेक्टरों की बहुप्रतीक्षित ट्रांसफर की चर्चाएं फिर शुरू हो गई है। दावे तो यहां तक किए जा रहे कि जुलाई के पहले हफ्ते तक सरकार लिस्ट जारी कर देगी। असल में, कलेक्टरों का ट्रांसफर विधानसभा के बजट सत्र के बाद से ही चर्चा में है। तब मुख्यमंत्री के विस दौरे की वजह से टल गया। अब बस्तर और सरगुजा संभाग में सीएम के भेंट-मुलाकात के कार्यक्रम करीब-करीब पूरे हो गए हैं। जशपुर जिला भी आज निबट जाएगा। बचेगा सिर्फ सरगुजा और कोरिया विधानसभा। बाकी रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग संभाग के कलेक्टरों का पारफारमेंस परखने सरकार को वहां जाने की जरूरत नहीं। इन जिलों में मुख्यमंत्री के दौरे होते रहते हैं और उनके फीडबैक भी सरकार को मिलते रहते हैं। बेशक, लिस्ट इस बार काफी बड़ी होगी। 28 में से 18 से अधिक जिलों के कलेक्टर बदल जाएं, तो अचरज नहीं।

रजत रायपुर?

कलेक्टरों को लेकर ब्यूरोक्रेसी में जिस तरह की अटकलें चल रही...2012 बैच के आईएएस और बस्तर कलेक्टर रजत बंसल को राजधानी रायपुर की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। रजत रायपुर नगर निगम के कमिश्नर रहे हैं। फिर, रायपुर में कोई भी कलेक्टरी नहीं कर सकता। यहां ऐसे अफसर चाहिए, जो सबको लेकर चल सकें। रुलिंग पार्टी को वेटेज दे ही, अपोजिशन को भी बैलेंस कर चले। कुल मिलाकर रजत का नाम रायपुर के लिए सबसे उपर चल रहा है। वैसे भी, बस्तर के सात में से पांच जिलों के कलेक्टर बदले जाने के संकेत हैं। बदलने वालों में पांचों संभागीय मुख्यालयों याने जगदलपुर, रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा के कलेक्टर भी शमिल होंगे। सूबे के सबसे सीनियर कलेक्टर भीम सिंह की रायगढ़ से वापसी होगी। तो रायपुर कलेक्टर सौरभ कुमार, बिलासपुर कलेक्टर डॉ0 सारांश मित्तर, अंबिकापुर कलेक्टर संजीव झा, दंतेवाड़ा कलेक्टर दीपक सोनी को ठीक ठाक जिला मिल सकता है। कुल मिलाकर सरकार इस बार अगले साल चुनाव को देखते कलेक्टरों के नाम के पत्ते फेटेंगी। इस बार जो कलेक्टर अपाइंट होंगे, उनमें से कोई अगर हिट विकेट नहीं हुआ, तो वे ही विधानसभा चुनाव कराएंगे। ऐसे में, लिस्ट की संजीदगी समझी जा सकती है।

नया काम...बिल्कुल नहीं

कलेक्टरों का ट्रांसफर अब इसलिए भी अपरिहार्य हो गया है कि संभावित लिस्ट में शामिल कलेक्टरों ने पिछले कुछ महीनों से खुद को समेट लिया है। नए काम....बिल्कुल नहीं। मैदानी इलाकों के कलेक्टरों को मालूम है, मुख्यमंत्री का भेंट-मुलाकात भी अब बरसात के बाद ही होगा। सो, चिंता नहीं। दरअसल, 28 में करीब 15 कलेक्टरों को अच्छी तरह पता है कि उन्हें हटना ही है। भले ही जिला बदलेगा...फिर पुराने जिले में क्यों...नए जिले में जाकर जो करना होगा, करेंगे।

कलेक्टरों की प्रायरिटी

छत्तीसगढ़ के कलेक्टरों के कामकाज को इनोवेशन और प्रधानमंत्री अवार्ड ने बड़ा खराब किया...वरना, हमारे कलेक्टर ऐसे नहीं थे। खासकर, पिछले दशक में कलेक्टरों की लाईन, लेंग्थ एकदम बदल गई। सिर्फ और सिर्फ इनोवेशन...और उसे किसी तरह दिल्ली तक पहुंचाओ। इस चक्कर में मूल काम पीछे छूट गया। कलेक्टर लगे बिल्डिंग बनवाने। जबकि, कलेक्टरों का पहला काम है जनता की समस्याओं को कम करना और सरकार के लिए रेवन्यू बढ़ाना। इसे छोड़ कलेक्टर अपना रेवन्यू बढ़ाने लगे। बिल्डिंग बनाना पीडब्लूडी का काम है। सवाल उठते हैं, डीएमएफ का पैसा फूंक कलेक्टरों को पीठ थपथपाने का मौका क्यों दिया जाए। सरकार को इसे संज्ञान लेना चाहिए।

बुरे दिनों में प्रमोटी

एक समय था जब प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या कुल कलेक्टरों से आधे के करीब होती थी। इस सरकार में भी शुरू में 27 में 12 कलेक्टर प्रमोटी हो गए थे। मगर धीरे-धीरे प्रमोटी कलेक्टरों का पराभाव होने लगा...डायरेक्ट याने रेगुलर रिक्रूट्ड आईएएस भारी पड़ने लगे। पांच नए को मिला लें, तो छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या 33 हो गई है। नए जिलों के ओएसडी में भी डायरेक्ट आईएएस को प्राथमिकता मिली। इस वक्त बस्तर संभाग के सात जिलों में एक भी प्रमोटी नहीं हैं। जबकि, पहले सात में से कम-से-कम दो कलेक्टर प्रमोटी होते थे। रायपुर संभाग के सिर्फ बलौदाबाजार में डोमन सिंह प्रमोटी का झंडा उठाए हुए हैं। सबसे अधिक तीन कलेक्टर दुर्ग संभाग में हैं। तारन सिनहा राजनांदगांव, जनमजय मोहबे बालोद और रमेश शर्मा कवर्धा। बिलासपुर संभाग में जांजगीर में जितेंद्र शुक्ला। सरगुजा संभाग के सूरजपुर में इफ्फत आरा। याने 33 में छह प्रमोटी। हालांकि, इलेक्शन ईयर में प्रमोटी कलेक्टरों की संख्या बढ़ती है। दरअसल, चुनावी साल में प्रमोटी सरकारों के लिए ज्यादा उपयोगी होते हैं। डायरेक्ट वाले हवा का रुख भांपकर तेवर दिखाने लगते हैं। अब देखना दिलचस्प होगा, अबकी लिस्ट में कितने प्रमोटी को मौका मिलता है।

उप राष्ट्रपति छत्तीसगढ़ से?

राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही अगले महीने उप राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी। और अगस्त में देश को नए उप राष्ट्रपति मिल जाएंगे। नए उप राष्ट्रपति के लिए छत्तीसगढ़ बीजेपी के बड़े नेता और इस समय झारखंड के राज्यपाल का दायित्व निभा रहे रमेश बैस का नाम भी चर्चा में है। बैस रायपुर से लगातार सात बार सांसद रह चुके हैं। अटलबिहारी बाजपेयी सरकार में केंद्र में मंत्री भी। पिछले लोकसभा चुनाव में बैस को लोकसभा का टिकिट नहीं मिला। मगर बाद में उन्हें त्रिपुरा का राज्यपाल बनाया गया। फिर उसके बाद झारखंड का। बैस कुर्मी समाज से आते हैं। राष्ट्रपति आदिवासी महिला और उप राष्ट्रपति ओबीसी में दबदबा रखने वाले कुर्मी समाज से...जाहिर है 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इसका स्वाभाविक लाभ मिलेगा। बता दें, देश में लोकसभा की ट्राईबल रिजर्व सीटों की संख्या 47 और विधानसभा की 485 हैं।

रिटायर्ड...पर पद बरकरार

ठाकुर राम सिंह राज्य निर्वाचन आयुक्त पद से पिछले महीने रिटायर हो चुके हैं। लेकिन, उनकी कुर्सी अब भी बरकरार है। आप पूछेंगे कैसे? तो राज्य निर्वाचन के नियम है कि नए आयुक्त की ताजपोशी होने तक पुराने आयुक्त पद पर बने रहेंगे। हालांकि, इसकी समय सीमा है। अधिकतम छह महीने तक। छह महीने के भीतर सरकार को नया आयुक्त हर हाल में नियुक्त करना होगा। तब तक रिटायरमेंट के बाद भी राम सिंह पद पर बनें रहेंगे।

डीडी सिंह की ताजपोशी?

नए राज्य निर्वाचन आयुक्त के लिए रिटायर्ड आईएएस डीडी सिंह का नाम सबसे प्रमुख है। डीडी पिछले साल रिटायर होने के बाद संविदा में सिकरेट्री टू सीएम हैं। हो सकता है, मुख्यमंत्री की व्यस्तता की वजह से डीडी सिंह का आदेश नहीं निकल पा रहा हो। मगर अब संकेत मिल रहे हैं, जशपुर की भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के बाद सरकार कुछ करें। राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल छह बरस का है। याने डीडी को रिटायर हुए एक साल हो गया है। अभी अगर उनकी पोस्टिंग हो गई तो वे पांच साल और इस पद पर रहेंगे। याने 2027 तक।

ठगी पर चुटकी

स्वास्थ्य और पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव की तरफ से पिछले हफ्ते थाने में ठगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। इस पर सियासत और मीडिया के लोग चुटकी ले रहे हैं...बाबा ने किस ठगी की रिपोर्ट लिखाई हैं....?

लॉ एंड आर्डर बोले तो...

रायपुर पुलिस ने शिक्षा विभाग के रिटायर्ड अधिकारी की डायरी कांड का भले ही कर्मकांड कर अफसर को जेल भेज दिया। मगर स्कूल शिक्षा विभाग के कारनामे कम होने का नाम नहीं ले रहे। पोस्टिंग से लेकर, डेपुटेशन, अटैचमेंट, खरीदी, सप्लाई, हर चीज में पैसा। शिक्षा विभाग के खटराल अधिकारियों ने बकायदा कोड वर्ड बना लिया है...यह कहकर इशारा किया जाता है लॉ एंड आर्डर। इसका मतलब ला और आर्डर। याने लाऔ और आर्डर ले लो। गजबे है भाई।

डीएम का खौफ क्यों नहीं?

जशपुर में टीसी के बदले पैसे और बकरा मांगने वाले स्कूल की मान्यता डीईओ ने निरस्त कर दिया है। इसमें खबर यह है कि मुख्यमंत्री के जशपुर दौरे से एक दिन पहले किया गया। ऐसा क्यों? सीएम का दौरा नहीं होगा, तो कार्रवाई नहीं होगी। आखिर, जिलों के कलेक्टरो का खौफ क्यों नहीं? कलेक्टरों से विभाग के अधिकारी क्यों नहीं चमकते। असल में, एकाउंटबिलीटी की समस्या है। चीफ सिकरेट्री अगर जिम्मेदारी तय करने कोई स्पश्ट नियम बना दें तो कुछ तो सिस्टम सुधरेगा।

अंत में दो सवाल आपसेरजत 

1. जिले के किस पुलिस अधिकारी के बंगले पर लजीज भोजन पकाने के लिए दिल्ली से शेफ हायर किया गया है?

2. क्या जल्द ही किसी बड़े अधिकारी का विकेट गिर सकता है क्या?


रविवार, 19 जून 2022

यहां का मैं कलेक्टर

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 19 जून 2022

नए जिलों के कई ओएसडी कलेक्टर बनने से पहले ही गुल खिलाने लगे हैं। पिछले तरकश में हमने कुछ वाकयों का जिक्र किया था। उनमें एक ये भी...एक ओएसडी ने रजिस्ट्री से पहले जमीन की चौहदी लिखवाना अनिवार्य कर पटवारियों की कमाई का एक और रास्ता ओपन कर दिया। तरकश के इस खबर पर वहां के कलेक्टर ने रजिस्ट्री अधिकारी को फोन पर क्लास लिया। पूछा, किसने आदेश दिया तुम्हें। रजिस्ट्री अधिकारी ने कहा, ओएसडी साब ने कहा था। बोले...यहां का कलेक्टर अब मुझे ही समझो। इस पर कलेक्टर विफर पड़े...जिला बना नहीं और वो कलेक्टर कैसे बन गया...यहां का अभी मैं कलेक्टर हूं...पटवारी से चौहदी वाला इमिडियेट बंद करो। पता चला है, कलेक्टर की फटकार के बाद चौहदी लिखवाने वाला क्लॉज हटा दिया गया है। अब बिना चौहदी लिखवाए जमीनों की फिर से रजिस्ट्री होने लगी है। अब पटवारी बिलबिला रहे हैं, ओएसडी साब के पीछे इतना खरचा-पानी किए, सब बेकार गया।

छत्तीसगढ़ के पटवारी

पिछले हफ्ते जांजगीर से खबर थी....तीन पटवारी रंगरेलिया मनाते धरे गए। पकड़ने वाले भी कोई और नहीं, उन्हीं में से एक पटवारी की पत्नी थी। पति के बारे में जैसे ही पता चला, आस-पड़ोस के लोगों को लेकर धमक गई महिला के घर। वहां एक नहीं, तीन पटवारी पाए गए। तीनों की जमकर धुनाई हुई। हालांकि, बात ये भी सही है...छत्तीसगढ़ में पटवारी इतना पईसा पिट रहे...आखिर उसे खर्च कहां करें।

वेटिंग कलेक्टर, एसपी

जाहिर है, जनगणना के लिए प्रशासनिक सीमाओं को फ्रीज करने की सीमा 30 जून तय की गई थी। याने इसके बाद जिलों के स्वरूप में कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। ऐसे में, छत्तीसगढ़ सरकार ने पांच नए जिलों का ऐलान किया है, उसे 30 जून से पहले हर हाल में अमल में लाना पड़ता। मगर अब प्रशासनिक सीमाओं को फ्रीज करने की मियाद 31 दिसंबर तक बढ़ा दी गई है। याने सरकार को अब नए जिलों के गठन की कोई हड़बड़ी नहीं। अब 31 दिसंबर तक के लिए वो फ्री है। मगर पांचों जिलों के वेटिंग कलेक्टर और वेटिंग एसपी की बेचैनी समझी जा सकती है। जिले का गठन होगा, तभी कलेक्टर, एसपी बन पाएंगे। लेकिन, अब लगता है, दिल्ली अभी दूर है।

एसपी के घर चोरी

छत्तीसगढ़ के एक पुलिस कप्तान के पैतृक घर में पिछले हफ्ते चोर घुस गए। कप्तान के पैरेंट्स अंबिकापुर में रहते हैं। पारिवारिक शादी में वे बाहर गए थे, तभी चोरों ने धावा बोल दिया। इसमें खबर यह नहीं है कि एसपी के घर चोरी हो गई। खबर यह है कि चोरों को मायूस होकर हाथ मलते लौटना पड़ा। असल में, सूबे में इक्के-दुक्के ही सही, कुछ आईपीएस हैं, जो वर्दी और ओहदे का मान बचाकर रखे हुए हैं। तीन जिले के एसपी रहने के बाद भी कभी उंगली नहीं उठी। ऐसे एसपी के घर भला क्या मिलेगा।

व्हाट एन आइडिया!

छत्तीसगढ़ में एक ऐसा जिला है, जहां शहर के लगभग हर थाने में आपको फ्रीज मिल जाएगा। फ्रीज इसलिए कि जिले के कप्तान साब चिल्ड बियर पीने के शौकीन हैं। गश्त में भी उनकी गाड़ी में रोस्टेड काजू, बादाम रखा होता है। थानेदारों को कभी भी फारमान....10 मिनट में भिजवाओ। अब गरमी के दिन में शराब दुकानों में चिल्ड बियर कहां संभव है। सो, थानेदारों ने साब को खुश करने का रास्ता निकाला....थाने में फ्रीज और उसमें दर्जन भर बियर के कैन। साब के यहां फोन आता है और चिल्ड आइटम हाजिर। थानेदारों को सैल्यूट करना चाहिए और एसपी साहब को भी...क्या आइडिया निकाला। ़

इधर भी राहुल, उधर भी...

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के लिए गया सप्ताह काफी हैट्रिक रहा। भेंट-मुलाकात कार्यक्रम भी एक दिन के लिए सिर्फ पत्थलगांव विधानसभा का हो पाया। जशपुर का केंसिल करना पड़ा। दरअसल, राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के सिलसिले में उन्हें दो बार दिल्ली जाना पड़ा। तो उधर, पिहरीद में मिशन सेव राहुल ने भी सिस्टम को खूब छकाया। चार दिन और चार रात के बाद राहुल को बोरवेल से बाहर निकाला जा सका। सीएम इस पर लगातार नजर रखे रहे। वे खुद जिला प्रशासन के अधिकारियों के संपर्क में रहे तो राहुल के माता-पिता से वीसी के जरिये बात कर हौसला बढ़ाया। दिल्ली से लौटने पर राहुल को देखने वे रायपुर एयरपोर्ट से सीधे बिलासपुर गए। अगले दिन उन्होंने राहुल के बचाव कार्य में लगे लोगों को सम्मानित किया। तो उधर दिल्ली में राहुल के बचाव में उन्होंन सड़क पर धरना दिया। एक राहुल अपनी जीवटता और सरकार की मुस्तैदी से बच गया। अब देखना है, दिल्ली के राहुल ईडी से छुटकारा कैसे पाते हैं।

मीडिया माइलेज

राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ के खिलाफ दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेताओं का जमावड़ा लगा, उसमें सीएम भूपेश बघेल को खासा मीडिया माइलेज मिला। दरअसल, कांग्रेस के पास सीनियर नेता ज्यादा बचे नहीं हैं। और जो हैं, उनमें पहले जैसे दमखम नहीं। कांग्रेस के पास इस वक्त दो ही मुख्यमंत्री हैं। अशोक गहलोत और भूपेश बघेल। गहलोत सीनियर हो चुके हैं, फ्रंटफुट पर खेलने वाले बचे भूपेश। यही वजह है, नेशनल मीडिया में सिर्फ भूपेश बघेल को सबसे अधिक वेटेज मिला। वो ईडी दफ्तर तक मार्च हो या फिर धरना स्थल, फोकस में भूपेश रहे। दिल्ली पुलिस ने भूपेश के काफिले को सड़क पर रोका, उस पर भी जमकर बवाल हुआ...केंद्र के खिलाफ उन्होंने तीखे तेवर दिखाए। कह सकते हैं, ईडी के खिलाफ प्रदर्शन से कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में भूपेश का वजन बढ़ा है।

कैडर रिव्यू

आईएएस का कैडर रिव्यू प्रपोजल भारत सरकार को चला गया है। अब आईपीएस की बारी है। आईपीएस का कैडर रिव्यू मई 2017 में हुआ था। सो, पांच बरस हो गया है। पता चला है, पीएचक्यू ने कैडर रिव्यू की फाइल तैयार कर ली है। एकाध हफ्ते में गृह विभाग को प्रपोजल भेज दिया जाएगा। गृह विभाग फिर उसे मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर को भेजेगा। छत्तीसगढ़ में अभी आईपीएस के 142 का कैडर है। इनमें डीजी के दो, एडीजी के सात, आईजी के 11, डीआईजी के 12 पद शामिल हैं। अब पांच जिले और बढ़ गए हैं। यानी पांच एसपी के पद चाहिए। नक्सल प्रभावित स्टेट और पांच नए जिले का हवाला देते हुए पुलिस मुख्यालय अबकी कैडर की संख्या 200 से ज्यादा करने की मांग करेगा। सीधा सा हिसाब है 200 की डिमांड होगी तो पौने दो सौ के करीब मिल जाएगा।

पुरंदेश्वरी का हंटर

पुरंदेश्वरी पिछले साल छत्तीसगढ़ बीजेपी की प्रभारी बनी थी तब भाजपा के भीतर ही दावे किए गए थे, अमित शाह ने पार्टी को ठीक करने भेजा है, अब सब कुछ बदल जाएगा। पुरदेश्वरी ने तब तेवर भी दिखाईं थीं। जगदलपुर चिंतन शिविर में हारे हुए मंत्रियों और बड़े नेताओं की इंट्री नहीं होने दी। इसके बाद फिर राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश आए। शिवप्रकाश की अनुशासन की खूब दुहाई दी गई। मगर पार्टी की स्थिति वही...ढाक के तीन पात वाली ही है। राजधानी में हुई कार्यसमिति की बैठक में शिवप्रकाश और पुरंदेश्वरी की मौजूदगी में नेताओं की तल्खी फ्लोर पर आ गई। अब बीजेपी कार्यकर्ता पूछ रहे हैं, किधर हैं पुरंदेश्वरी के हंटर...? पुरंदेश्वरी के हंटर की स्थिति ये है कि विस चुनाव हारे हुए गौरीशंकर अग्रवाल को जगदलपुर चिंतन शिविर में प्रवेश नहीं मिला। मगर बाद में वे सबसे ताकतवर कोर कमेटी के मेम्बर बन गए।

डीआईजी की नौकरी

20 हजार रुपए के सागौन लकड़ी के चक्कर में बेचारे केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी के एक डीआईजी को नौकरी गंवानी पड़ गई। छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके में पोस्टेड डीआईजी साहब घर के लिए सागौन का फर्नीचर बनवाना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए ट्रक लेकर जवानों को नक्सल इलाके में किसी ठेकेदार के डिपो में भेज दिया। इसकी शिकायत हो गई। यह भी कि चार जवानों की जान आपने खतरे में डाला। नोटिस को देखकर डीआईजी साब समझ गए कि नौकरी गई। उन्होंने फौरन वीआरएस के लिए अप्लाई कर दिया। उपर वालों ने भी इस मामले में सदाशयता दिखा दी। वरना, वीआरएस भी संभव नहीं होता।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या राष्ट्रपति चुनाव में छत्तीसगढ़ से भी कोई प्रत्याशी हो सकता है?

2. आम आदमी पार्टी में छत्तीसगढ़ के एक बड़े नेता की इंट्री की खबर में कितनी सत्यता है?


रविवार, 12 जून 2022

पूर्व आईएएस पर मुकदमा

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 12 जून 2022

पूर्व आईएएस और बीजेपी नेता ओपी चौधरी पर कोरबा पुलिस ने फर्जी वीडियो वायरल करने के आरोप में गैर जमानती मुकदमा दर्ज किया है। इस धारा में तीन साल की सजा का प्रावधान हैं। इस एक ट्विस्ट और है...वह यह कि एफआईआर दर्ज करने वाली कोरबा पुलिस के कप्तान भोजराम पटेल हैं। ओपी और भोज दोनों खरसिया के पास अगल-बगल के गांव से हैं। दोनों अघरिया कुर्मी। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी लगभग एक जैसी। दोनों के पिता बचपन में गुजर गए...मां ने पालन-पोशण कर देश की सबसे बड़ी सर्विस के काबिल बनाया। जाहिर है, दोनों में रिश्ते भी परिवार जैसे हैं। मगर रिश्ते पर कर्तव्य भारी पड़ गया। भोज ने कोरबा की माता मड़वा रानी को प्रणाम कर ओपी के खिलाफ अपराध दर्ज करने थानेदार को आदेश दे दिया।

जिम्मेदारी तय हो

जांजगीर के मालखरौदा में राहुल बोरवेल में गिर गया। राहुल को बचाने सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है। 24 घंटे से पूरा प्रशासन मौके पर डटा हुआ है। एनडीआरएफ से लेकर सेना के एक्सपर्ट कल रात से कैंप कर रहे हैं। प्रदेश के लोग मिशन सेव राहुल के लिए प्रार्थना कर रहे हैं। लेकिन, इसके साथ कुछ सवाल भी उठते हैं। देश में आपरेशन प्रिंस के बाद बोरवेल में गिरने के 50 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन, कभी किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई। ऐसा क्यों? क्या उस गांव के सरपंच या किसी सरकारी एजेंसी का फर्ज नहीं बनता था कि बोरवेल खुदाई की गई है तो उसे जाकर एक बार चेक कर लें कि उसे प्रॉपर ढका गया है कि नहीं...लोगों को मोटिवेट करें। अब समय आ गया है कि इस तरह की घटनाओं से बचने जिम्मेदारी तय किया जाए।

हमारा बजाज...

आईएफएएस एसएस बजाज इस महीने 31 को रिटायर हो जाएंगे। बजाज फिलवक्त लघु वनोपज संघ के एडिशनल एमडी हैं। कुछ महीने पहले ही वे पीसीसीएफ प्रमोट हुए थे। मूलतः कुनकुरी के रहने वाले बजाज रायपुर इंजीनियरिंग कालेज से बीई किए और फिर आईएफएस बनें। बजाज को नवा रायपुर का शिल्पी कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बाहर से आने वाले अपने गेस्ट को हम चौड़ी और स्मूथ सड़कें दिखाने नवा रायपुर ले जाते हैं...वह बजाज की देन है। जमीन अधिग्रहण से लेकर टेंडर और फिर रोड का निर्माण, उनकी देखरेख में हुआ। मंत्रालय और एचओडी बिल्डिंग भी उनका ही बनाया है। करीब 15 सौ करोड़ में 145 किमी फोर लेन सड़क बनी और मंत्रालय, एचओडी बिल्डिंग...लेकिन, बजाज पर कोई आंच नहीं आई। सहज, सरल, ग्रास रुल लेवल के अफसर माने जाने वाले बजाज पर कभी अफसरी हॉवी नहीं हो पाई। ग्रह-नक्षत्र की वजह से वे सस्पेंड हुए मगर बाद में उनके लिए कैबिनेट में पीसीसीएफ का स्पेशल पद क्रियेट कर सरकार ने उन्हें पीसीसीएफ बनाया। वन विभाग में अटकलें लगाई जा रही....बजाज को रिटायरमेंट के बाद लघु वनोपज संघ में संविदा पोस्टिंग मिल सकती है। चर्चा को बल इसलिए मिल रहा कि एमडी संजय शुक्ला देर-सबेर पीसीसीएफ बनकर जाएंगे तो संघ का व्यापक काम चल रहा, उसे कंटिन्यू रखने बजाज जैसा कमिटेड अफसर चाहिए। पर यह पूरा निर्भर करेगा इस बात पर कि सरकार क्या चाह रही।

छह महीने के कलेक्टर

पांच नए जिलों में ओएसडी की नियुक्ति के बाद सभी जगहों पर नए जिला मुख्यालयों की तैयारी जोर-शोर से प्रारंभ हो गई है। इसके साथ कुछ जगहों से शिकायतें भी आनी शुरू हो गई है। एक ओएसडी ने पटवारी राज को मजबूत करने अपने इलाके में जमीनों की रजिस्ट्री से पहले पटवारी से चौहद्दी लिखवाना अनिवार्य कर दिया। जबकि, उन्हें पता है कि ये नियम उनके पुराने जिले में लागू नहीं है और मुख्यमत्री लगातार कोशिश कर रहे हैं कि आम आदमी को पटवारियों का चक्कर लगाने से कैसे बचाया जाए। एक ओएसडी ने कलेक्टर बनने से पहले बैटिंग शुरू कर दी है। तो एक का वर्तमान कलेक्टर के साथ खटर पटर चालू हो गया है। आलम ये, कि दो ओएसडी के बारे में अभी से दावे और सवाल किए जाने लगे हैं...कलेक्टर बनने के बाद वे छह महीने से ज्यादा पिच पर टिक पाएंगे? अब देखना दिलचस्प होग कि ये दावे सही उतरते हैं या गलत।

नए जिलों में काम ठप

ओएसडी कलेक्टर कब बनेंगे ये अलग विषय है मगर यह सही है कि नए जिलों के हिस्से में जो एरिया आया है, वहां कामधाम बहुत अच्छा नहीं है। वजह यह कि ओएसडी अपने को कलेक्टर जैसे आचरण कर रहे....वे नहीं चाहते कि वर्तमान कलेक्टर उनके इलाके में अब दौरा करें। और कलेक्टरों को भी लगता है, आज नहीं तो कल ये कलेक्टर बन ही जाएंगे तो फिर खामोख्वाह पंगा क्यों लिया जाए। सो, ओएसडी को कोई पावर नहीं है और कलेक्टर अपने को अपने इलाके में समेट लिए हैं। इससे नए जिलों के कामकाज पर असर पड़ रहा है।

मरकाम की विदाई?

क्या इस महीने पीसीसी चीफ मोहन मरकाम की विदाई हो जाएगी....यह हम नहीं कह रहे...मरकाम ने कुछ जगहों पर भाषण में खुद ही 29 जून का डेट बताकर कार्यकर्ताओं को वोट फॉर थैंक्स कर रहे हैं। बिलासपुर के दौरे में दो जगहों पर मरकाम ने कहा कि 29 जून को उनका कार्यकाल खतम हो जाएगा। सवाल उठता है बिना चुनाव हुए वे पद छोड़ेंगे कैसे और खुद वे इसे कैसे कर सकते हैं। हो सकता है अगले साल चुनाव को देखते मरकाम जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हो। कांग्रेस के लहर में पिछला चुनाव उन्होंने 800 वोटों से निकाला था। इस बार कहीं कोई दिक्कत हुई तो अच्छा भला कैरियर खतरे में पड़ जाएगा।

राडार पर कलेक्टर

सीएम के भेंट मुलाकात कार्यक्रम में एक आईएफएस सस्पेंड हो चुके हैं। सूरजपुर दौरे में वहां के डीएफओ मनीश कश्यप को मुख्यमंत्री ने निलंबित कर दिया। वहीं, आईएएस सीईओ राहुल देव का ट्रांसफर। सुनने में आ रहा...एक कलेक्टर और एसपी की शिकायतें सरकार के पास पहुंच रही। सो, कोई आश्चर्य नहीं कि भेंट-मुलाकात के कार्यक्रम में शिकायत मिलने पर वे सरकार के राडार पर आ जाएं।

कैलकुलेटर वाले एसपी

कुछ अरसा से सूबे के कई एसपी पोलिसिंग का मतलब क्राईम और वीवीआईपी ड्यूटी समझने लगे थे। इसके अलावा और कुछ नहीं। पुलिस से रिलेटेड दीगर कामों की खानापूर्ति के लिए किसी डीएसपी को प्रभारी बना दिया। फिर कैलकुलेटर लेकर...कोयला से कितना आया, डीजल से इतना आया तो मन्नू कबाड़ी इस बार इतना कम क्यों दिया, फलां थाने के टीआई को बोलो, और बढ़ाए...इससे वक्त मिला तो सोशल मीडिया में वाहवाही मिलने वाले काम में व्यस्त। लेकिन, अब पुराने मामलों का निबटारा, गुमशुदा की तलाश, सायबर क्राईम और चिटफंड कंपनियों जैसे जानकारियों से एसपी साहब लोगों को अपडेट रहना पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि अब रेंज को एक्टिवेट किया गया है। रेंज आईजी अब वीसी के जरिये आए दिन एसपी लोगों को बिठाकर न केवल अपराधों का रिव्यू कर रहे बल्कि संजीदा मामलों की सुनवाई कर रहे हैं। कुल मिलाकर रेंज पुलिस की अहमियत बढ़ी है।

यादव दुखी?

छत्तीसगढ़़ मेंं कांग्रेस की सरकार बनने से पहले चंदन यादव प्रभारी सचिव बन गए थे। उन्होंने मेहनत करने में भी कोई कमी नहीं की। चुनाव के समय लंबे समय तक यहां डटे रहे। बिहार के रहने वाले चंदन सरकार बनने के बाद भी संगठन के कार्यो के सिलसिले में रायपुर आते रहते हैं। ऐसे में, बाहुबलि पप्पु यादव की पत्नी रंजीत रंजन का छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में जाना अखरेगा ही। पता चला है, चंदन पार्टी के फैसले से खुश नहीं है। बिहार से, यादव भी, छत्तीसगढ़ में काम भी...कांग्रेस नेताओं का कहना है, आखिर वे क्या बुरे थे।

अंत में दो सवाल आपसे

1. किस उर्जावान मंत्रीजी का नाम बताइये, जिन्होंने अपने एक सब इंजीनियर को वसूली मास्टर लिया है?

2. एक कलेक्टर का नाम बताइये, जो लोगों की शिकायतें और ज्ञापनों के लफड़े से बचने इन दिनों ऑफिस आना बंद कर दिए हैं?


बीजेपी के अष्टावक्र

 संजय के. दीक्षित

तरकश, 5 जून 2022

राजधानी रायपुर में हुई बीजेपी कार्यसमिति की बैठक में एक ऐसा प्रसंग आया, जब माहौल थोड़ा तल्ख हो गया। दरअसल, बैठक में राजनीतिक प्रस्ताव पेश करने के बाद नेताओं से सुझाव मांगा गया। इस दौरान पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने कहा कि सरकार के प्रति भाषा काफी नरम है, और कड़ी होनी चाहिए थी। इस पर शिवरतन शर्मा ने कहा, आपसे बेहतर कौन कर सकता है....आप ही ठीक कर दीजिए। चंद्राकर का चेहरा थोड़ा लाल हुआ...बोले, राजा जनक की सभा में एक से बढ़कर एक लोग बैठे हैं, मैं कौन होता हूं। चंद्राकर की बात पर राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश मुस्कुराए...बोले, राजा जनक की सभा में अष्टावक्र भी होते थे...आप अष्टावक्र हैं। चंद्राकर बोले, मैं नहीं...आपके बगल में अष्टावक्र बैठे हैं...नेता प्रतिपक्षजी...काफी विद्वान हैं। चंद्राकर की तल्खी पर धरमलाल कौशिक थोड़ा असहज हुए। फिर बोले, आप कह रहे हो तो हां...मैं मान लेता हूं...मैं अष्टावक्र हूं। बात बिगड़ती देख शिवप्रकाश ने यह कहते हुए स्थिति संभाली कि आप सभी विद्वान लोग हैं, चलिये आगे की चर्चा शुरू की जाए। इस प्रसंग की बीजेपी के गलियारों में काफी चर्चा रही। वजह यह कि राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश और प्रदेश प्रभारी पुरंदेश्वरी जैसी नेताओं की मौजूदगी में जो हुआ।

कौन थे अष्टावक?

अष्टावक्र कहोड़ ऋषि के पुत्र थे। धर्मग्रंथों में लिखा है...उद्दालक ऋषि अपने शिष्य कहोड़ की प्रतिभा से प्रभावित होकर अपनी पुत्री सुजाता का विवाह कहोड़ से कर दिया। सुजाता के गर्भ ठहरने के बाद ऋषि कहोड़ सुजाता को प्रतिदिन वेदपाठ सुनाते थे। तभी सुजाता के गर्भ से बालक बोला- 'पिताजी! आप गलत पाठ कर रहे हैं। इस पर कहोड़ को क्रोध आ गया, बोले...तू अभी से अपने पिता को अपमानित कर रहा है। उन्होंने शाप दिया...तू आठ स्थानों से टेढ़ा होकर पैदा होगा। कुछ साल बाद कहोड़ ऋषि राजा जनक के दरबार में एक महान विद्वान बंदी से शास्त्रार्थ में हारने के करीब पहुंच गए। यह बात 12 बरस के अष्टावक्र तक पहुंची। वह दौड़ते-भागते जनक की सभा में पहुंचे और अपनी विद्वता से सभी को कायल कर दिया। राजा जनक खुद बालक अष्टावक्र के ज्ञान से प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरू बना लिया।

सिंगल आर्डर

गरियाबंद कलेक्टर नम्रता गांधी को सरकार ने हटा दिया। फिलहाल उन्हें मंत्रालय में पोस्टिंग दी गई है। सुना है, व्यक्तिगत कारणों से वे अवकाश पर जा रही हैं। मगर खुद ब्यूरोक्रेसी के लोगों का मानना है, सिर्फ यही एक वजह नहीं हो सकती। नम्रता को हटाने की चर्चा दो महीने पहले भी चली थी। एक तो वहां पोस्ट करते समय जीएडी को यह ध्यान नहीं रहा कि गरियाबंद उनका ससुराल जिला है। राजिम में उनकी शादी हुई है। गृह जिला में वैसे भी पोस्टिंग होती नहीं। इसके अलावा दूसरी वजह....वे सुनती थोड़ी कम हैं। आज के दौर में कहें तो प्रैक्टिकल नहीं हैं। ऐसे में, गरियाबंद इलाके के सत्ताधारी पार्टी के नेता उनसे कैसे खुश रहते।

छप्पड़ फाड़ के

सीनियरिटी में पहले नम्बर के आईपीएस संजय पिल्ले भले ही डीजीपी नहीं बन पाए। लेकिन, इसके लिए वे किस्मत को दोष नहीं दे सकते। डीजी पुलिस को छोड़ दें तो उनसे ऐसी कोई पोस्टिंग नहीं छूटी, जो एक आईपीएस अधिकारी की हसरत होती है। और अब तो उपर वाले ने उन्हें ऐसा छप्पड़ फाड़कर दिया कि पूछिए मत! उनका बेटा अक्षय आईएएस बन गया है। सवाल है, आखिर कितने आईएएस, आईपीएस का बेटा आईएएस बनता है। संजय की किस्मत से लोगों को ईर्ष्या हो सकती है। इसलिए कि, बच्चे अगर काबिल नहीं हुए तो सारा धन-दौलत बेकार है। पिल्ले का अगले साल जुलाई में रिटायरमेंट हैं और उनकी पत्नी रेणु का 2028 में। यानी संजय को खुद के रिटायरमेंट के पांच साल बाद तक गाड़ी, बंगला की सुविधा बरकरार रहती। अब तो उनका बेटा भी आईएएस...। याने संजय पिल्ले को अब परमानेंट सरकारी सुविधाओं का लाभ मिलता रहेगा।

देश में रिकार्ड

संजय पिल्ले के परिवार में एक रिकार्ड बना है...वह है लगातार तीसरी पीढ़ी में आईएएस बनने का। 91 बैच की आईएएस रेणु पिल्ले के पिता केआरके गुनेला आंध्र कैडर के 63 बैच के आईएएस थे। और गुनेला के नाती अक्षय बनेंगे आईएएस। आईएएस का बेटा या बेटी आईएएस, बहुत कम ही होते हैं। प्रदेश में एकाध ही ऐसा होता होगा। छत्तीसगढ़ में एसीएस टू सीएम सुब्रत साहू के पिता उड़ीसा के चीफ सिकरेट्री रहे। कार्तिकेय गोयल के पिता भी आईएएस रहे हैं और अभी तेलांगना के मुख्यमंत्री के एडवाइजर की भूमिका निभा रहे हैं। मगर तीसरी पीढ़ी में आईएएस...देश में शायद यह पहली बार हुआ होगा।

डेपुटेशन की चर्चा

2006 बैच के आईएएस अंकित आनंद को मुख्यमंत्री सचिवालय का अतिरिक्त दायित्व सौंपा गया है। याने सिकरेट्री पावर के साथ ही बिजली कंपनियों के चेयरमैन वे बने रहेंगे। विभागीय जिम्मेदारी की दृष्टि से देखें तो अंकित काफी वजनदार हो गए हैं। इससे पहले उर्जा सिकरेट्री और बिजली कंपनियों के चेयरमैन के साथ ही सिकरेट्री टू सीएम का दायित्व किसी के पास नहीं रहा। अजय सिंह बिजली बोर्ड के चेयरमैन के साथ सिकरेट्री पावर थे मगर सीएम सचिवालय में नहीं। बैजेंद्र कुमार सिकरेट्री पावर के साथ एसीएस टू सीएम थे मगर बिजली कंपनियों के चेयरमैन नहीं...शिवराज सिंह तब चेयरमैन थे। अंकित के पास ये तीनों अहम जिम्मेदारी हांगी। बहरहाल, इसमें खबर यह है कि अंकित की पोस्टिंग के साथ ही ब्यूरोक्रेसी में सीएम सचिवालय के किसी अफसर के डेपुटेशन पर जाने की अटकलें शुरू हो गई है। वह इसलिए कि इससे पहले सीएम सचिवालय में कभी पांच सिकरेट्री रहे नहीं। अभी सुब्रत साहू, सिद्धार्थ परदेशी, डीडी सिंह, एस भारतीदासन के बाद अब अंकित।

छत्तीसगढ़ का दबदबा?

चंद्रशेखर गंगराड़े के रिटायरमेंट के बाद दिनेश शर्मा ने विधानसभा सचिव का पदभार संभाल लिया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 22 साल में यह पहला मौका होगा, जब कोई छत्तीसगढ़ियां अफसर इस पद पर बैठा है। वरना, अभी तक होता वही था, जो भोपाली अधिकारी चाहते थे। बैक डोर नियुक्ति हो या प्रमोशन, लोकल अधिकारियों, कर्मचारियों की कोई सुनवाई नहीं थी। राजनैतिक प्रभाव के कारण नियम विरुद्ध नियुक्ति, पदोन्नति एवं व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों में बार-बार संशोधन कर उन्हें गैर वाजिब लाभ पहुंचाया गया। अब दिनेश शर्मा के विस सचिव बनने पर विस अधिकारियों, कर्मचारियों को अब ठीक-ठाक होने की उम्मीद जगी है।

आखिरी बात हौले से

राज्य सभा प्रत्याशियों को विधायकों से परिचय कराने सीएम हाउस में बैठक हुई। इसमें एक भी विधायक के चेहरे पर खुशी का भाव नहीं था...सबके चेहरे उतरे हुए। उधर, राजीव शुक्ला और रंजीत रंजन भी हैरान...स्तब्ध। बताते हैं, वे इसलिए आवाक थे कि उन्होंने अपने राज्य यूपी, बिहार में 30 साल में कांग्रेस की इतनी संख्या में कभी विधायक नहीं देखें।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या रायपुर के किसी प्रभावशाली नेता का कद कटिंग करने सियासी झटका मिल सकता है?

2. किस मंत्री ने अपना कमीशन बढ़ाकर 35 फीसदी कर दिया है?



यंगेस्ट डीजीपी

संजय के. दीक्षित

तरकश, 29 मई 2022

केवीआरएन रेड्डी यानी काशी विश्वनाथ राजेंद्र नाथ रेड्डी आंध्र प्रदेश के नए डीजीपी बनाए गए हैं। उन्हें 10 आईपीएस अधिकारियों की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर पुलिस महकमे की कमान सौंपी गई है। रेड्डी 92 बैच के आईपीएस हैं। देश में 90 बैच से नीचे वाले दो ही डीजीपी हैं। एक काशी विश्वनाथ और दूसरे नागालैंड के डीजीपी लांग कुमेर। कुमेर छत्तीसगढ़ कैडर के 91 बैच के आईपीएस हैं। वे डेपुटशन पर गृह प्रदेश गए और वहां की सरकार ने उन्हें पुलिस विभाग का मुखिया अपाइंट कर दिया। बहरहाल, इसमें खबर ये है कि देश के यंगेस्ट डीजीपी के बैच के दो आईपीएस छत्तीसगढ़ में भी हैं। पवनदेव और अरुणदेव गौतम। ये दोनों अभी एडीजी हैं। अगले बरस डीएम अवस्थी और संजय पिल्ले के रिटायरमेंट के बाद दोनों डीजी बन पाएंगे। इनमें से डीजीपी कब और कौन बनेगा, ये वक्त बताएगा।

स्मार्ट आईपीएस

लांग कुमेर की बात चली तो बता दें वे बेहद स्मार्ट निकले। लंबे समय तक वे बस्तर में डीआईजी, आईजी रहे, उसके बाद सरगुजा आईजी। एडीजी प्रमोट होने पर सरकार ने उन्हें पीएचक्यू बुलाया तो सही समय पर डेपुटेशन पर गृह प्रदेष नागालैंड चले गए और वहां डीजीपी बन गए। छत्तीसगढ़ में होते तो उन्हें एडीजी से ही रिटायर होना पड़ता। क्योंकि, वे 91 बैच के आईपीएस हैं। फिलवक्त 89 बैच के अशोक जुनेजा डीजी पुलिस हैं। जुनेजा से पहले लांग कुमेर इस साल अगस्त में रिटायर हो जाएंगे। दरअसल, छत्तीसगढ़ में डीजी के कैडर पोस्ट दो ही हैं। दो कैडर के साथ दो एक्स कैडर। याने चार। अभी डीएम अवस्थी, संजय पिल्ले, अशोक जुनेजा और राजेश मिश्रा स्पेशल डीजी हैं। छत्तीसगढ़ में आईपीएस अधिकारी आपस में टांग खिंचाई में लगे रहे। इसका नतीजा यह हुआ के कैडर की बेहतरी के लिए कोई काम नहीं हुआ।

एक अनार, सौ बीमार-1

जाहिर है, राज्यसभा की दो सीटों के लिए होने जा रहे चुनाव में बीजेपी के लिए कोई स्कोप नहीं है। निश्चित तौर पर दोनों सीटें कांग्रेस की झोली में जानी है। इसलिए, टिकिट के लिए जो भी एक्सरसाइज चलेगा, वह कांग्रेस में ही चलेगा। वैसे प्रत्याशी को लेकर कई तरह की अटकलें और कयासों का दौर चल रहा है। लेकिन, खुलकर कोई बोल नहीं रहा...अजीब तरह की खामोषी पसरी हुई है। स्पीकर चरणदास जरूर पहले मुखर थे। लेकिन, उन्होंने भी मौन साध लिया है। टिकिट फायनल करने के संदर्भ में हो सकता है बस्तर दौरे से लौटने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल दिल्ली जाएं। मगर राजनीतिक पंडितों की मानें तो कांग्रेस के लिए सब कुछ आसान नहीं है। ओबीसी और आदिवासी वर्ग से लोकसभा में एक-एक सदस्य हैं। लिहाजा, अजा नेता अपने समाज के लिए जोर लगा रहे तो साहू समाज भी शांत नहीं है। उधर, दिल्ली में छत्तीसगढ़ के पूर्व प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक और वर्तमान प्रभारी पीएल पुनिया भी छत्तीसगढ़ से उम्मीद लगाए बैठे हैं। विनोद वर्मा, गिरीश देवांगन और अटल श्रीवास्तव का नाम भी चर्चा में है तो आईएमए ने डॉ0 राकेश गुप्ता का नाम आगे बढ़ाया है। अभी तक फार्मूला यही है कि दो सीटों में से एक पर पार्टी के किसी राष्ट्रीय नेता को राज्यसभा भेजा जाएगा और एक पर लोकल नेता को।

एक अनार सौ बीमार-2

विधानसभा चुनाव में अभी करीब सवा साल का वक्त बचा है। लेकिन, सियासी पार्टियों के दावेदार विधानसभा सीटों की बिसात पर अपनी गोटियां बिठाने लगे हैं। अभी बात रायपुर की...रायपुर में चार सीटें हैं। रायपुर दक्षिण में बीजेपी के बृजमोहन अग्रवाल जैसे दमदार नेता हैं। सो, उधर कोई देखता नहीं। रायपुर पष्चिम जोखिम वाली सीट है। राजेश मूणत ने अपने तरफ से वहां कोई कसर नहीं छोड़ा, उसके बाद भी मतदाताओं ने विकास उपध्याय को विधायक बना दिया। रायपुर ग्रामीण में साहू वोटरों का दबदबा है। सत्तू भैया जानते हैं कि उन्हें दूसरी बार जीतने में कितनी मशक्कत करनी पड़ी। ऐसे में, सत्ताधारी पार्टी हो या भाजपा, दोनों पार्टियों की दावेदारों की पहली प्राथमिकता रायपुर उत्तर है। उत्तर से कांग्रेस से कुलदीप जुनेजा विधायक हैं। महापौर एजाज ढेबर की नजर भी उत्तर पर है। उत्तर में नगर निगम का सौंदर्यीकरण अभियान भी तेज हो रहा है। तो बीजेपी में भी लोग पीछे नहीं। कलेक्ट्रेट के घेराव के दिन इसका नजारा दिखा...एक दावेदार कलेक्टर की घेराव कर रहा था तो दूसरा पहुंच गया एसपी का घेराव करने। कुल मिलाकर टिकिटों की मारामारी उत्तर में ही होगी।

देर आए मगर...

गृह विभाग ने प्रवीण सोमानी अपहरण कांड की गुत्थी सुलझाने वाले पुलिस टीम को एक इंक्रिमेंट देने का आदेश जारी कर दिया है। हालांकि, इसमें लंबा वक्त लगा। मुख्यमंत्री ने ढाई साल पहले इसकी घोषणा की थी। छह महीने पहिले पुलिस रिव्यू में इसको लेकर वे नाराज भी हुए थे। मगर चलिए अब आदेष जारी हो गया। हालांकि, इससे उस समय के आईजी डॉ0 आनंद छाबड़ा और कप्तान आरिफ शेख को फिलहाल इंक्रिमेंट का लाभ नहीं मिल पाएगा। उनका मामला एमएचए को भेजा जाएगा। वहां से एप्रूवल मिलने के बाद उन्हें इंक्रिमेंट का लाभ मिलेगा।

दुआ करें...

97 बैच की आईएएस एम गीता दिल्ली के बीएम कपूर हास्पिटल में क्रीटिकल स्थिति में हैं। कल से वे वेंटीलेटर पर हैं। उनके ब्रेन में क्लॉट है। कोमा में होने की वजह से ब्रेन की सर्जरी नहीं हो पा रही। डॉक्टर उनके होश में आने का प्रतीक्षा कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में एग्रीकल्चर सिकरेट्री और एपीसी रही गीता पिछले साल भारत सरकार में प्रतिनियुक्ति पर गईं थी। छत्तीसगढ़ में वे ओडीएफ की फर्स्ट मिशन डायरेक्टर रहीं और एसीएस एमके राउत के साथ उन्होंने काफी काम किया। महिला बाल विकास सिकरेट्री के तौर पर भी उन्होंने छत्तीसगढ़ को कई पुरस्कार दिलवाये। दुआ करें...वे जल्दी स्वस्थ्य हो जाएं।

मई और कलेक्टर

मई महीने में कलेक्टरों की बड़ी लिस्ट निकलती थी। बीजेपी 15 साल शासन में रही, उसमें आठ से दस साल मई में कलेक्टरों का ट्रांसफर हुआ। भूपेश बघेल सरकार में तो तीनों साल याने 2019, 20 और 21 के मई लास्ट में कलेक्टरों और आईएएस अधिकारियों की जंबो लिस्ट निकली। कांग्रेस सरकार का यह पहला मई है, जिसमें इस बार कलेक्टरों का तबादला नहीं हो रहा। मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र के दौरों की वजह से इस बार मई का ट्रांसफर टल गया है। अब जून लास्ट के पहले कोई उम्मीद नजर नहीं आती।

अंत में दो सवाल आपसे

1. एक आईजी का नाम बताइये, जिन्हें जमीन के सौदे में बड़ा घोखा खा गए है?

2. राज्यसभा चुनाव के बाद भूपेश बघेल मंत्रिमंडल में सर्जरी होगी, इस खबर में कितनी सत्यता है?



काली कमाई वाली आईएएस!

संजय के. दीक्षित

तरकश, 15 मई 2022

झारखंड की आईएएस पूजा सिंघल आखिरकार सीखचों के पीछे चली गईं। उन पर मनी लॉड्रिंग से लेकर करप्शन के कई चार्जेस हैं। सियासी दलों में पूजा इतनी गहरी थी कि कोई भी सरकार बनती थी, पाला बदलकर उसमें अच्छी पोस्टिंग का जुगाड़ हो जाता था। रघुवर दयाल की बीजेपी सरकार में भी पूजा उतने ही प्रभावशील रही। और, हेमंत सोरेन सरकार में भी। एटक नेता ने पूजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अर्जी लगाई थी। कोर्ट ने याचिका खारिज करने के साथ ही 50 हजार रुपए जुर्माना कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने भी क्लीन चिट दे दिया। लेकिन, एटक नेता ने हार नहीं मानी...पहुंच गए सुप्रीम कोर्ट। और वहां उन्हें न्याय मिला। कहने का मतलब यह है कि जब तक स्टार अच्छा है, तब तक सब ठीक है। बहरहाल, पूजा सिंघल के नस्ल वाले नौकरशाहों को इस वाकये से सबक लेनी चाहिए...क्योंकि लिमिट क्रॉस करेंगे तो ये होगा ही। अफसर अपने पैसे से मोबाइल तक रिचार्ज नहीं कराते...बाकी एयर टिकिट से लेकर घर के राशन-पानी की बात तो अलग है...सर्वोच्च सर्विस की गरिमा का लिहाज तो करना चाहिए न।

पोस्टिंग का रिकार्ड

क्रेडा के सीईओ आलोक कटियार के नाम एक रिकार्ड दर्ज होने जा रहा है...रिकार्ड पोस्टिंग का। आलोक बीजेपी सरकार में अंकित आनंद के बाद मई 2018 में क्रेडा के सीईओ बनाए गए थे। इसके बाद दिसंबर 2018 में सरकार बदली लेकिन, आलोक की कुर्सी सलामत रही। बाद में, उन्हें प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का भी दायित्व मिल गया। उधर, अंकित आनंद दुर्ग की कलेक्टरी करके रायपुर लौट आए। यहां वे मार्कफेड के एमडी के बाद तीसरी पोस्टिंग बिजली विभाग की कर रहे हैं। मगर आलोक क्रेडा में कंटिन्यू हैं। आईएफएस के लिए गर्व की बात इसलिए कि किसी भी राज्य में दो साल, ढाई साल वाली पोस्टिंग अब रही नहीं। यूपी, पंजाब जैसे राज्यों में एक-एक साल में ट्रांसफर हो जा रहा। छत्तीसगढ़ में भी अब टेन्योर कम हुआ है। आधा दर्जन से अधिक कलेक्टर, एसपी एक साल कंप्लीट नहीं कर पाए। अपवाद के तौर पर दंतेवाड़ा एसपी डॉ0 अभिषेक पल्लव जरूर पिछले शासनकाल से पोस्टेड रहे। मगर कुछ महीने पहले उनका भी ट्रांसफर हो गया। अब सिर्फ आलोक बचे हैं पिछले सरकार से पोस्टेड वालों में...तो अफसरों के लिए गर्व की बात हुई न।

विरोधियों को झटका

बीजेपी ने मणिपुर में विप्लव देव को यकबयक हटाकार माणिक साहा को मुख्यमंत्री बना दिया। माणिक 69 के हैं। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि उम्रगर नेताओं से भाजपा परहेज कर रही है। और जब माणिक को त्रिपुरा की कमान मिल सकती है तो फिर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह के समर्थकों को इससे बल क्यों नहीं मिलेगा। रमन भी लगभग 69 के ही हैं। त्रिपुरा में अगले साल चुनाव है और छत्तीसगढ़ में। छत्तीसगढ़ में अटकलें और कयासों को छोड़ दें तो पार्टी के नेता भी मानते हैं कि सूबे में फिलहाल सबसे बड़े छत्रप रमन सिंह ही हैं। जाहिर है, त्रिपुरा में नए सीएम की नियुक्ति से रमन कैंप में खुशी तो होगी।

रायपुर सम्मानित

रायपुर के दो कलेक्टरों को देश की राजधानी दिल्ली में एजीआई अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इनमें एक हैं डॉ0 अजय तिर्की और दूसरे सोनमणि बोरा। तिर्की अविभाजित मध्यप्रदेश के समय रायपुर के कलेक्टर रहे और राज्य बंटवारे के बाद तिर्की मध्यप्रदेश चले गए। बोरा को छत्तीसगढ़ कैडर मिला और बाद में वे रायपुर के कलेक्टर बनें। दोनों अफसर इन दिनों सेंट्रल डेपुटेशन पर हैं। वो भी एक ही विभाग में। तिर्की भारत सरकार के लैंड मैनेजमेंट में सिकरेट्री हैं तो बोरा ज्वाइंट सिकरेट्री। लैंड मैनेजमेंट में आउटस्टैंडिंग काम के लिए दोनों को एजीआइ्र्र अवार्ड मिला है। दोनों आईएएस रायपुर के कलेक्टर रहे हैं, तभी चीफ सिकरेट्री अमिताभ जैन ने आईएएस के ग्रुप में खास तौर पर इसका जिक्र किया।

कलेक्टर से पहले कलेक्टरी

ये सही है कि आईएएस को सबसे बड़ा आकर्षण कलेक्टर बनने का होता है। मगर ऐसा भी नहीं कि कलेक्टरी मिलने से पहले ही कलेक्टरी करने लगे। दरअसल, सरकार के पांच नए जिलों में ओएसडी प्रशासन अपाइंट किया है, उनमें से कुछ आईएएस अभी से फरमान जारी करने लगे हैं। जबकि, ओएसडी की नियुक्ति जिले के लिए व्यवस्था करने के लिए होती है, कलेक्टरी करने के लिए नहीं। मगर एक ओएसडी को वहां के पटवारियों ने मिसगाइड कर दिया। पटवारियों ने अपना जेब गरम करने के लिए ओएसडी से मौखिक आदेश करवा लिया कि जमीन या घर की रजिस्ट्री से पहले चौहदी पटवारी से लिखवाया जाए। ओएसडी साब पटवारी की बात में आकर पंजीयन अधिकारी को सीधे निर्देश दे दिए। अब पटवारियों की निकल पड़ी। अब जमीन खरीदने के बाद नामंतरण के लिए पटवारी का चक्कर लगाना पड़ेगा। और, उससे पहले विक्रेता को चौहदी के लिए। एक चौहदी स्तंभकार के हाथ लगी। उसमें पटवारी पक्षकार से पूछ कर न केवल चौहदी लिखा है बल्कि नीचे में अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए लिखा है पक्षकार के बताए अनुसार। अब सवाल उठता है, जब पक्षकार के बताए अनुसार ही चौहदी लिखना है तो फिर पटवारी की जरूरत क्या। तो जवाब ये है कि नए प्रशासनिक अधिकारियों के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था पटवारी करते हैं, इसलिए उनके झांसे में आकर अफसर ने तुगलकी फरमान जारी कर दिया। सीनियर कलेक्टर को ये भी ध्यान रखना चाहिए उनके प्रस्तावित जिले के ओएसडी क्या कर रहे हैं।

पटवारी राज

डेपुटेशन पर छत्तीसगढ़ आए संजय गर्ग एक बार रायपुर कलेक्टर रहे। उन्होंने भी पटवारियों की बातों में आकर ये आदेश जारी कर दिया था कि जमीन बेचने से पहले पटवारी से चौहदी लिखवाया जाए। उस समय एक वकील हाईकोर्ट गए और वहां से कड़ा आदेश हुआ कि ये गलत है। छत्तीसगढ़ ही नहीं, देश में ऐसा कहीं नहीं है कि पटवारी चौहदी सत्यापित करें। ऐसे में तो आम आदमी लूट जाएगा। नामंतरण के लिए भी पटवारी को पैसा दें और उससे पहले जमीन की रजिस्ट्री से पहले चौहदी के लिए। सरकार को इसे संज्ञान में लेना चाहिए। बहरहाल, प्रस्तावित नए जिले में पटवारियों ने ओएसडी से जो मौखिक आदेश कराया है, जाहिर है उसकी देखादेखी दूसरे जिलों में भी यह वायरस पहुंच जाएगा।

ओएसडी के पावर

सवाल ये है कि नए जिले के ओएसडी क्या कोई आदेश दे सकते हैं क्या? बिल्कुल नहीं। जब तक जिला बन नहीं जाता और उनका कलेक्टर का आदेश नहीं निकलता, तब तक उनकी हैसियत पदनाम के अनुसार सिर्फ विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी की है। वे जिले के वर्तमान कलेक्टर के अधीन नए जिले का फ्रेम तैयार कराएंगे। लेकिन, चूकि ऐसा होता है कि ओएसडी ही आगे चलकर कलेक्टर कंटिन्यू करते हैं इसलिए स्वाभाविक तौर पर नीचे के लोग उन्हें कलेक्टर मान लेते हैं। यही वजह है कि पंजीयन अधिकारी ने पटवारी राज वाला मौखिक आदेश मानते हुए उस पर अमल शुरू कर दिया। एक नए जिले के ओएसडी बकायदा आदेश मार्क करने लगे हैं। तो एक जिले में और क्लास हुआ...सीएम के दौरे के सिलसिले में कलेक्टर ने डिप्टी कलेक्टरों को गांवों का दौरा करने का आदेश दिया। इस पर ओएसडी ने अकड़ में दो टूक कह दिया...मैं सब देख लूंगा, आने की कोई जरूरत नहीं।

30 जून से पहले

पांच नए जिलों का गठन 30 जून से पहले करना होगा, वरना जनगणना की पेंच आड़े आ जाएगी। अभी पुरानी जनगणना के आधार पर नए जिले बनाए गए हैं। 30 जून तक पुरानी जनगणना की मियाद है। इसके बाद नई जनगणना प्रारंभ हो जाएगी। ऐसे में, सरकार को हर हाल में 30 जून से पहले नए जिले बनाने होंगे। खैरागढ़ जिला सबसे बाद में बना है। उसकी 60 दिन की अधिसूचना की मियाद 20 जून को खतम होगी। उससे पहले जिला बन नहीं सकता। बाकी चार जिलों के 60 दिन पहले ही पूरे हो चके हैं। अब सरकार के उपर है कि या तो 21 जून से लेकर 30 जून तक या तो पांचों जिले अस्तित्व में ला दें या फिर खैरागढ़ का 20 जून के बाद करें और बाकी चार को उससे पहले। कुल मिलाकर 30 जून तक छत्तीसगढ़ में जिलों की संख्या 33 हो जाएंगी।

विधायक पति

अभी तक सरपंच पति, पार्षद पति सुनते थे मगर अब नया आ गया है...विधायक पति। दरअसल, एक महिला विधायक का पति, पत्नी जहां जाती है, फेविकोल की तरह चिपके रहते हैं। अधिकारी से मिलने जाएं तब भी पति साथ में और बड़े नेताओं से मिलने रायपुर आएं, तब भी। दुर्ग संभाग से वास्ता रखने वाली इस नेत्री को कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने समझाया भी है, मगर कोई फर्क नहीं पड़ा। अब कांग्रेस के नेता ही चुटकी ले रहे हैं, खतरा आखिर किस बात का?

पत्नी का प्रमोशन और...

सूरजपुर एसपी भावना गुप्ता को हाल ही में प्रमोशन देते हुए अंबिकापुर का कप्तान बनाया गया। इससे पहले वे सूरजपुर एसपी थीं। दूसरे जिले के रूप में भावना को बढियां जिला मिला। लेकिन, उनके पति राहुल देव ग्रह-नक्षत्र के शिकार हो गए। सीएम भूपेश बघेल के चौपाल में जिला पंचायत में कमीशनखोरी की शिकायत हुई और सरकार ने राहुल को हटा दिया। हालांकि, राहुल अच्छे अफसर हैं, मगर पता नहीं विभाग में वे कंट्रोल क्यों नहीं कर सके।

अंत में दो सवाल आपसे

1. क्या साहू समाज के किसी युवा नेता को कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा भेजे जाएगा?

2. आखिरी पारी समझकर कौन-कौन कलेक्टरों ने जिले में धुंआधार बैटिंग शुरू कर दिया है।